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insotter

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Update 27


विवाह समपन्न हुआ आज से आप पति पत्नी..
संजय - आओ बेटी.. चलो.. चेतन.. ये सामान कमरे में पंहुचा दे..
चेतन - ठीक है पापाज़ी...
गायत्री - संजय बेटा.. दामाद ज़ी औऱ ऋतू को एक साथ ही ले जा.. कोमल तू भी साथ में जा...
आरती - मम्मी ज़ी अब तो अकेले छोड़ दो दामाद ज़ी औऱ ऋतू को.. सब हँसने लगते है..
गायत्री - रात के डेढ़ बज चुके है औऱ तू अभी भी मज़ाक़ मस्ती में लगी हुई है.. चल अब तू भी चेतन के साथ चली जा.. अब थोड़ा आराम कर लेते है.. कल विदाई में बहुत काम है..
संजय - सही कहा माँ.. आज का दिन बहुत थका देने वाला था..
कोमल - तुम तो रोज़ ही थके हुए लगते हो.. कोनसी नई बात है..

बात करते हुए सब अपने अपने रूम में चले गए थे..
राहुल औऱ उसके दो दोस्त अब साथ थे औऱ दोस्त राहुल को इशारे से बुला रहे थे..
एक दोस्त - क्या बात है साले.. शादी होते ही हमारी बात नहीं सुन रहा..
राहुल अलग जाकर - अबे तुम भी जाकर सो जाओ क्यों भूत की तरह सर पर घूम रहे हो..
दूसरा दोस्त - भाई तेरी नींद का जुगाड़ तो हो गया हम अकेले कैसे सोये?
राहुल - एकदूसरे की गांड मार लो.. अब चल.. जाने दे मुझे..
दोस्त - अभी से डरने लगा तू तो अपनी बीवी से..
राहुल - अबे टाइम देख अब तुम भी सो जाओ जाकर..
दोस्त हसते हुए - अरे यार थोड़ी सी दारु तो पिले.. बिल्ली कैसे मारेगा.. वरना..
राहुल - ठीक है मैं बोलके आता हूँ तुम रूम में जाओ..
दोस्त - हाँ हाँ बोलके आ.. अब तो परमिशन लेनी ही पड़ेगी तुझे..

राहुल ऋतू से थोड़ी देर दोस्तों के साथ बैठने की बात बोलके दोस्तों के साथ रूम में बैठकर शराबखोरी करने लगता है औऱ ऋतू अकेली अपने कमरे में सोफे पर बैठी हुई दिनभर की थकान से चूर होकर एक सिगरेट जलाकर कश लेने लगती है.. ऋतू ने अपने भारी भरकम दुल्हन वाले कपडे बदल लिए थे औऱ सादा सूट पहन लिया था.. ऋतू बैठी ही थी कि उसके फ़ोन पर अनजान नम्बरो से व्हाट्सप्प पर एक वीडियो आया औऱ नीचे टेक्स्ट आया - छत पर मिलो...

ऋतू वीडियो देखकर समझ गई कि ये विकर्म ने भेजा है क्युकी वीडियो में ऋतू औऱ विक्रम कि चुदाईलीला थी.. ऋतू समझ गई की विक्रम वापस उसे चोदने के लिए बुला रहा है इसलिए ऋतू सिगरेट का पैकेट लाइटर औऱ कंडोम का पैकेट लेकर छत पर चली गई.. छत पर अँधेरा था औऱ लोन की भी लगभग सभी लाइट बंद हो गई थी लोन की एक्का दुक्का लाइट से छनकर आती मामूली रोशनी छत के अँधेरे को दूर नहीं कर रही थी.. पूर्णिमा का चाँद निकला हुआ था मगर बदलो ने उसे ढक लिया था.. छत पर अंधेरा था औऱ किसीका चेहरा देख पाना मुश्किल था..

ऋतू को छत पर बने एक कमरे के बाहर परछाई दिखी जिसे उसने विकर्म समझ लिया औऱ ऋतू बोली - बोला था ना.. अब मत मिलना मुझसे.. तुम ब्लैकमेल करना बंद क्यों नहीं कर देते मुझे.. मेरी शादी हो चुकी है विक्रम..
परछाई में विकर्म नहीं गौतम था जिसने मुंह पर मास्क लगाया हुआ था औऱ गौतम ने कुछ नहीं कहा तो ऋतू फिर से बोली - मेरी लेने आये हो ना वापस? लो ये कंडोम औऱ जल्दी से मुझे चोदकर निकल जाओ यहां से.. मेरी गलती थी जो तुमको वीडियो बनाने दिया उस रात..

गौतम कंडोम लेकर ऋतू को पलट देता है औऱ उसे झुकाते हुए उसकी पज़ामी का नाड़ा खोलकर पज़ामी नीचे कर देता है, पेंटी भी नीचे सरकाते हुए कुर्ती ऊपर करके अपने लंड पर कंडोम पहन लेता है औऱ पीछे से ऋतू की चुत पर लोडा लगाते हुए एक जोरदार झटके के साथ अपनी बहन ऋतू की चुत चिरते हुए अपना लंड ऋतू की चुत में घुसा देता है...

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ऋतू चिल्लाते हुए - अह्ह्ह्ह... ये क्या है.. विक्रम..?? आहहह... इतना बड़ा..
गौतम लंड घुसते ही एक हाथ से ऋतू के बाल पकड़कर झटके पर झटके मारना शुरू कर देता है जिससे ऋतू सिसकती हुई चिल्लाने लगती है औऱ छत पर ऋतू की चुदाई का संग्राम शुरू हो जाता है..

गौतम पीछे से ऋतू की चुत चोदे जा रहा था जिसमे ऋतू भी अब पूरी तरह शामिल हो चुकी थी उसे चोद रहे आदमी पर शक हो रहा था मगर उसे मज़ा आने लगा था औऱ अब वो काम सुख की हवा में बहकर गौतम को विकर्म समझती हुई उससे बात भी करने लगती है जो सिर्फ एक तरफा थी..
गौतम ऋतू की बात का कोई रिप्ली नहीं दे रहा था..
ऋतू - विकर्म क्या हो गया है आज तुम्हे... आहहह... औऱ ये तुम्हारा लंड.. ये आज इतना बड़ा कैसे लग रहा है... आहहह... तुम बदले बदले कैसे लग रहे हो.. विक्रम.. अह्ह्ह्ह.. मज़ा आ रहा है.. चोदो मुझे ऐसे ही चोदो.. अह्ह्ह्ह... फाड़ दो मेरी चुत..

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गौतम बिना रुके धक्के पर धक्के लगाता हुआ ऋतू को पीछे से चोद रहा था औऱ चोदते चोदते गौतम ऋतू को छत पर उसी सामान से भरे हुए कमरे में ले आता है जहा उसने सुमन के साथ बातें की थी..

कमरे में घनघोर अँधेरे था औऱ बस लोन में लगे एक बल्ब से हलकी सी रौशनी आ रही थी.. ऋतू औऱ गौतम वहां चुदाई कर रहे थे औऱ चुदाई की आवाज यहां घूंज रही थी..
गौतम ने ऋतू को पलट कर अपनी तरफ मोड़ लिया औऱ दिवार से ऋतू की पीठ लगाते हुए उसकी एक टांग उठा कर उसकी चुत में अपना लंड घुसा कर फिर से तेज़ तेज़ झटको से चोदने लगा जिसमे ऋतू भी काम के वाशीभूत होकर आनंद उठा रही थी.. उसे परवाह नहीं रह गई थी कि उसे चोदने वाला विक्रम है या कोई औऱ..
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ऋतू को चुदाई के दौरान मिले रहे आंनद के बीच शक था कि उसे चोदने वाला विकर्म नहीं है.. औऱ अब वो अपने शक को यकीन में भी बदल लेना चाहती थी मगर उसे मिल रहे सुख ने उसे काफ़ी देर तक रोके रखा औऱ फिर चुदाई के बीच ऋतू ने अपने हाथ से गौतम का मास्क उतार दिया औऱ अँधेरे में बड़ी गौर से उसका गौतम का चेहरा देखा तो वो चौंक पड़ी..

ऋतू का कामसुख गुस्से में बदल गया औऱ वो बोली - ग़ुगु तू... शर्म नहीं आई तुझे अपनी बहन के साथ..
गौतम नीचे से किसी के आने कि आहट सुनकर चुदाई रोकते हुए - दीदी कोई आ रहा है.. चुप रहना वरना हम पकडे जाएंगे..

कमरे के अंदर खिड़की के पास ऋतू औऱ गौतम थे जो एकदूसरे से लिपटे हुए थे गौतम का लंड ऋतू की चुत में अभी भी तनकर खड़ा था वही छत पर एक औरत आकर उसी कमरे की खिड़की के करीब बाहर की तरफ खड़ी हो गई.. गौतम औऱ ऋतू दोनों ही औरत को नहीं देख पाए.. लेकिन फिर एक आदमी आता दिखा औऱ ऋतू औऱ गौतम को आदमी की चाल से औऱ उसकी आवाज से पता चल गया था की ये ऋतू का बाप संजय है..

संजय उस औरत के करीब आकर - क्यों नाराज़ होती हो.. जानबूझकर नहीं कहा कोमल ने वो सब.. तुम तो जानती हो कोमल की जबान कैसी है? वो कभी भी कुछ भी बोल देती है..
औरत रोते हुए - मैं अच्छी तरह जानती हूँ भईया भाभी की जबान कैसी है? एक तो अपनी ही बेटी की शादी में मेहमान बनकर आई हूँ ऊपर से भाभी मुझे अपने अहसान गिनाते हुए ताने मार रही है.. मेरे ग़ुगु को छीनना चाहती है.. ग़ुगु सही कह रहा था.. हम यहां नहीं आते तो ही अच्छा था..
गौतम औऱ ऋतू को आवाज से पता चल चूका था की ये औरत औऱ कोई नहीं गौतम की माँ सुमन है..
संजय - अरे तुम भी कैसी बातें लेकर बैठ गई सुमन.. आज भी बात बात पर नाराज़ होती हो.. कोमल ने हमारी ऋतू को कभी पराया नहीं समझा.. अपनी सगी बेटी समझकर पाला है.. हमारी कितनी मदद की है कोमल ने.. तुम तो सब जानती हो..
सुमन - भईया.. मदद की है तो फ़ायदा भी उठाया है भाभी ने.. ऋतू मेरी बेटी थी जिसे भाभी ने मुझसे छीन लिया..
संजय - छिना नहीं था मदद की थी हमारी.. शादी से पहले जो लड़की माँ बने उसे समाज क्या कहता है जानती हो ना?
ऋतू - ये बात तब याद नहीं थी आपको.. जब आप भाभी को अकेला छोड़कर रात रातभर मेरे साथ सोते थे? मैंने कितना समझा आपको ये सब गलत है पर आप नहीं माने..
संजय - पुरानी बातों पर मिट्टी डाल सुमन.. तू जानती है मैं जितना कोमल से प्यार करता हूँ उससे कहीं ज्यादा तुझसे करता हूँ.. मैं कब से तेरी मदद करने की कोशिश कररहा हूँ पर तू मानती ही नहीं..
सुमन - नहीं चाहिए भईया आपका अहसान.. मैं मेरे ग़ुगु के साथ उसी हाल में खुश हूँ..
संजय - सुमन.. ग़ुगु मेरा भी कुछ लगता है.. उसके लिए मैं कोई अहसान नहीं कर रहा हूँ.. पर मेरी मदद लेने में तो तेरी नाक नीची हो जायेगी ना..

गौतम औऱ ऋतू संजय औऱ सुमन की बात सुनकर ये जान चुके थे कि वो दोनों सुमन की औलादे है.. गौतम ये बात जानकार औऱ भी उत्तेजित हो चूका था कि ऋतू उसीकी बहन है जिसे सुमन औऱ संजय के व्यभिचार से जन्म मिला है.. औऱ ये बात जानने के बाद गौतम के लंड ने ऋतू की चुत में प्यार की पहली बरसात भी कर दी थी जिसे ऋतू महसूस कर सकती थी..

गौतम ने झड़ने के बाद भी ऋतू की चुत से लंड नहीं निकाला औऱ ना ही ऋतू ने गौतम को ऐसा करने का इशारा किया वो दोनों संजय औऱ सुमन की बात सुनने में लीन थे..

सुमन - भाभी तो चाहती नहीं थी कि मेरे कोई औलाद रहे.. तभी तो उस आदमी से मेरी जबरदस्ती शादी करवा दीं.. पहले भाभी ने मेरी ऋतू को मुझसे छीन लिया औऱ फिर मेरे ग़ुगु को भी मुझसे छीनने कि पूरी कोशिश की थी..
संजय - सुमन क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ रही हो.. उन बातों को भूल जाओ.. जो हुआ सो हुआ.. अब उन बातों का क्या फ़ायदा..
सुमन - ये बात आप भाभी को क्यों नहीं समझाते.. वो खुद बच्चा पैदा नहीं कर सकती इसमें मेरी गलती थोड़ी है.. पहले माँ से चेतन को छिना.. फिर मुझसे ऋतू को.. फिर ग़ुगु को छीनने की कोशिश की औऱ अब मुझे ही हर दम ताने मारती रहती है.. बता दूँ चेतन को कि वो आपका बेटा नहीं छोटा भाई है? माँ ने कभी कोई शिकायत नहीं कि पर मैं अब बर्दास्त नहीं करुँगी भईया.. अब अगर भाभी ने कुछ औऱ कहा तो मैं भी चुप नहीं रहूंगी.. वो बाँझ है इसमें हमारा क्या दोष?
संजय - सुमन.. पागलपन छोड़.. मैं कोमल से बात करुँगा.. उसने जो कहा गलत था पर तू भी समझती है वो कैसी है फिर उसकी बात को दिल पर क्यों लगाती है..
सुमन गुस्से में चिल्लाकर - क्यों ना लगाऊ दिल से.. ग़ुगु मेरा बच्चा है.. मेरे जीने मरने का सहारा.. भाभी उसे अब मुझसे छीनना चाहती है.. बचपन में उसका मंसूबा कामयाद नहीं हुआ तो अब वापस से उन्होंने कोशिश शुरू कर दीं.. मुझे पैसो का लालच देती है.. मेरे ग़ुगु के लिए मैं सारे जहान कि दौलत छोड़ सकती हूँ..
संजय - क्या फर्क पड़ता है सुमन.. ग़ुगु यहां रहे या वहा.. तू तो जानती है मैंने जो कुछ कमाया है उसे चेतन अकेले नहीं संभाल पायेगा..
सुमन - भईया ग़ुगु को मैंने जन्म दिया है मैंने पाला है.. मैं उसे यहां नहीं छोड़ने वाली. आप भाभी को समझा दीजिये कि वो मेरे ग़ुगु से दूर रहे औऱ उसका ख्याल छोड़ दे..

ये कहकर सुमन नीचे चली जाती है औऱ उसके पीछे पीछे संजय भी नीचे चला जाता है..
सुमन औऱ संजय के नीचे जाने के बाद ऋतू अपने फ़ोन की फलेशलाइट ऑन करके गौतम का चेहरा देखती है औऱ उससे गुस्से में कहती है..
ऋतू - वो वीडियो कहा से आया तेरे पास?
गौतम फ्लशलाइट अपने चेहरे की तरफ से हटाकर - आपके उस आशिक विक्रम ने फ़ोन में दिखाया था..
ऋतू - तू उसे कैसे जानता है?
गौतम - शादी में मिला था आपके बारे में अनाप शनाप बक रहा था.. उसने आपका वीडियो दिखाया औऱ बाथरूम के पीछे जो आपके साथ किया वो बताया..
ऋतू - तो अब तू भी मुझे ब्लैकमेल करने लगा उसके साथ मिलकर? शर्म नहीं आई तुझे ये सब करते हुए?
गौतम ऋतू की चुत से लंड निकालकर - नहीं दीदी.. मैंने तो उसके फ़ोन से आपके सारे वीडियो डिलीट कर दिए.. औऱ नशे में उसका वीडियो बना लिया.. ये देखो.. मैं आपको सेंड करता हूँ.. अगली बार वो आपको ब्लैकमेल नहीं कर पायेगा.. आप चाहो तो उसे कर सकती हो.. उसका वीडियो भी वायरल कर सकती हो.. मैं तो बस आपको ये बताने के लिए छत पर बुलाया था..
ऋतू फ़ोन साइड में रख कर - बताने के छत पर बुलाया था तो मेरी लेने क्यों लगा?
गौतम सर झुकाकर - आपने ही कंडोम देकर कहा था मैं क्या करता? आप सेक्सी भी लग रही थी..
ऋतू मुस्कुराते हुए - सर ऊपर कर बुद्धू.. तूने विक्रम के साथ ये सब मेरे लिए किया?
गौतम - आप बड़ी बहन हो मेरी.. कोई आपको तंग करें मैं कैसे सहन कर सकता हूँ..
ऋतू हसते हुए - अच्छा तो फिर तुमने क्यों तंग किया अभी मुझे?
गौतम - मैंने कहा किया दीं.. अपने ही बोला था चोदने के लिए.. देखो मेरा तो आपकी चुदाई में कंडोम भी फट गया..
ऋतू हसते हुए घुटनो पर बैठकर गौतम के लंड से कंडोम उतारते हुए - भला कोई कंडोम पहन के भी अपनी बहन चोदता है? ग़ुगु तेरा ये लंड.. कितना बड़ा औऱ मजबूत है.. मुझे तो दर्द हो रहा था इससे चुदवाते हुए..
गौतम - दीदी यार आपकी चुत तो भाभी से भी ज्यादा चौड़ी है.. मेरा लंड तो आसानी से अंदर चला गया.. विक्रम सही कह रहा था पक्की रांड हो आप तो..
ऋतू धीरे धीरे गौतम का लंड हिलाती हुई - सगी बहन को रांड बोलता है.. तुझे तो सबक सीखना पड़ेगा ग़ुगु..
गौतम - अब रांड को रांड ही बोला जाता है दीदी.. यहां बिस्तर नहीं है मुझे सबक सिखाने के चक्कर में आपके गोड़े छील जाएंगे..
ऋतू सिगरेट सुलगाते हुए - छील जाए तो छील जाने दे ग़ुगु.. सुहागरात तो आज तेरी बहन तेरे साथ ही मनाएगी.. पहली बार कोई टक्कर का मर्द मिला है..
गौतम - फिर जीजाजी क्या करेंगे? वो क्या सारी रात हिलाएंगे अपना?
ऋतू - उसकी चिंता तू मत कर ग़ुगु.. वो साला ढीला है.. 2-4 मिनट में थक्के झड़ जाता है.. मैं 5-10 मिनट में उसको निपटा के तेरे पास आ जाउंगी..
गौतम हसते हुए - औऱ वो?
ऋतू - उसे नींद की गोली दे दूंगी.. पक्की खिलाड़ी हूँ मैं भी.. आज तो मेरी रात औऱ मेरी जवानी अपने भाई के नाम है..
गौतम - मत हिलाओ दीदी अब इसे खड़े होने में थोड़ा वक़्त लगेगा.. आज बहुत सारी चुते चोदी है इसने..
ऋतू सिगरेट के कश लेती हुई खड़ी होकर - इसे तो आज पूरी रात खड़ा रहना है..
गौतम - अब नीचे चलते है दीदी.. वरना कोई फिर से ऊपर आ जाएगा.. यहां किसी को चैन नहीं है..
ऋतू कश लेती हुई - सिगरेट तो ख़त्म हो जाए ग़ुगु.. फिर चलते है.. वैसे एक बात बता तुझे कैसे पता आरती भाभी की चुत का.. मुझसे ज्यादा टाइट है उनकी? सच सच बताना तूने कब चोदा भाभी को?
गौतम - कल दोपहर में दीदी.. औऱ आज भी भाभी लहंगा उठा के पीछे ही पड़ गई इसलिए अभी आपके फेरे होने से जस्ट पहले भी चोदना पड़ा..
ऋतू - भाभी तो बहुत चालु निकली.. देवर के साथ ही रासलीला शुरू कर दी..
गौतम - दीदी अब भाभी है.. देवर पर हक़ तो उनका भी है..
ऋतू सिगरेट का कश लेकर - दीदी नहीं ग़ुगु.. नाम से बुलाया कर.. 3-4 साल ही तो बड़ी हूँ तुझसे..
गौतम - जैसा आप कहो ऋतू ज़ी..
ऋतू - आप नहीं तूम.. अब से कोई फॉर्मेलिटी नहीं समझा.. औऱ अब नाराज़ हुआ तो बहुत मारूंगी..
गौतम ऋतू से सिगरेट लेकर फेंकता हुआ - ठीक है ऋतू.. अब चल नीचे..
ऋतू मुस्कुराते हुए - तू अपने कमरे में जा मैं राहुल को सेट करके आती हूँ..
गौतम - मेरे कमरे में तो तेरा पुराना यार लेता हुआ है नशे में धुत होकर.. सारे रूम्स भी फूल है.. अब क्या करें?
ऋतू - एक काम करते है गौतम.. मैं राहुल को सुलाने के बाद तुझे बुलाऊंगी तू मेरे रूम में आ जाना..
गौतम - ठीक है पर मुझे मेरी बहन दुल्हन की तरह सजी हुई चाहिए.. ऐसे सादा सलवार सूट में नहीं..
ऋतू - जैसा तू चाहे ग़ुगु..

ऋतू गौतम से ये कहकर अपने रूम में आ जाती है जहा कुछ देर बाद राहुल भी आ जाता है जो अपने दोस्तों के साथ शराब पिने के करण नशे में था.. राहुल को ऋतू पानी में नींद की दवा देकर जल्दी ही सुला देती है.. इधर गौतम जब अपने कमरे में पहूचता है तो देखता है कि विक्रम उसी तरह नधे में सो रहा है गौतम नहाने चला जाता है औऱ नहाने के बाद जैसे बाथरूम से बाहर आता है उसके कुछ देर बाद ऋतू का फ़ोन आ जाता है औऱ ऋतू गौतम को अपने रूम में आने के लिए कहती है..
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गौतम ऋतू के कमरे में आकर - बहुत खूबसूरत लग रही हो ऋतू.. (राहुल को देखकर) बेड पर क्यों सुलाया है इसे?
ऋतू - खुद सो गया..
गौतम राहुल को बेड से उठाकर सोफे पर पटक देता है औऱ ऋतू को बाहों में भरके फूलो से सजी सेज पर आ ऋतू के साथ गिरता है..
ऋतू एक गोली गौतम के मुंह में डाल कर - इसे खा लो गौतम..
गौतम - मुझे इसकी जरुरत नहीं है ऋतू..
ऋतू - खा लो ना ग़ुगु मेरे लिए.. अपनी बहन कि बात नहीं मानोगे?
गौतम - थोड़ी देर बाद तुम ही पछताओगी...
ऋतू - अब बातें ही करते रहोगे क्या कुछ करोगे भी? मेरी चुत में बहुत जोरो से खुजली मचने लगी है ऊपर से तुम्हारा लंड भी ऐसा है कि चुत में लेने कि तलब हो रही है..
गौतम - ऋतू अगर मुझे पहले पता होता कि मेरी बहन इतनी चुदक्कड़ है तो कब का तुझे चोद चूका होता..
ऋतू - गौतम अगर मुझे भी मुझे पहले पता होता कि मेरे भाई के पास इतना बड़ा लंड है तुझे पहले ही अपनी चुत में घुसा लेती.. कितने प्यारे होंठ है तेरे.. बच्चों जैसे..
गौतम - चूमो ना ऋतू.. मेरे ये होंठ कब से तुम्हारे होंठों से मुलाक़ात करना चाहते थे..
ऋतू गौतम को चूमती हुई - आई लव यू गौतम..

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गौतम और रितु एक दूसरे के साथ बिस्तर पर लिपटे हुए थे और एक दूसरे को चूम रहे थे जिससे दोनों के मुंह की लार एक दूसरे में घुल रही थी और दोनों को इसमें बहुत ही स्वाद और मजा आ रहा था रितु आज किसी भी कीमत पर गौतम को पा लेना चाहती थी और यही हाल गौतम का था गौतम भी किसी भी कीमत पर आज अपनी बहन ऋतु के साथ वह सब कर लेना चाहता था जो वह सोच चुका था..

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कुछ देर इसी तरह एक दूसरे को चूमने के बाद गौतम और रितु एक दूसरे के गले पर और चेहरे पर अपने अपने प्यार की अपनी-अपनी चुम्मिया बरसने लगे और एक दूसरे को इस बात का एहसास दिलाने लगी कि वह एक दूसरे से कितना आकर्षित है और कितना वह एक दूसरे को पढ़ने की ख्वाहिश रखते हैं..

गौतम और रितु ने एक दूसरे के बदन से एक-एक करके सारे कपड़े उतार कर बिस्तर के एक तरफ फेंक दिए और फिर दोनों लगभग एक सी अवस्था में नंगे होकर एक दूसरे के बदन को चूमने और चाटने लगे..

गौतम की तुलना में ऋतु का हाल और भी ज्यादा बुरा था मुझे तो बिल्कुल पागलों की तरह गौतम को अपनी बाहों में भरे हुए झूम रही थी और उसे अपने मुंह का सारा रस पिलाना चाहती थी.. गौतम रितु के इस व्यवहार से बहुत उत्तेजित हो चुका था और वह भी भर भर के अपने मुंह से ऋतु के मुंह का रस पी रहा था और अपनी बहन की हर इच्छा पूरी कर रहा था.. गौतम पर धीरे-धीरे गोली का नाश होने लगा था मगर उसे अब लगने लगा था कि कहीं ना कहीं जो ऋतू ने भी एक गोली खा ली है और यह उसी का असर है कि कामोतेजना से भरकर उसे चुम औऱ चाट रही है..

ऋतू ने काम उत्तेजना के वशीभूत होकर गौतम के होंठों को इतना जोर से अपने दांतों से काटा की गौतम की चीख निकल गई और वह ऋतु के दांतों से अपने होठों को छुड़वाकर रितु से बोला..
गौतम - पागल हो गई है क्या तू?
ऋतू वापस चूमती हुई - सॉरी छोटे भाई पर आज रात अपनी बहन को माफ़ कर देना..
गौतम रितु की हालत देखकर समझ गया था कि अब रितु काम के शिखर पर पहुंच चुकी है और जब तक उसकी उत्तेजना शांत नहीं हो जाती और उसकी चुत से बरसात का पानी निकाल कर बह नहीं जाता तब तक वह किसी भी बात को समझने और सोचने की हालत में नहीं आएगी इसीलिए गौतम ने अब रितु की काम उत्तेजना को ठंडा करने के लिए उसे अपने नीचे ले लिया..
गौतम ने रितु की टांग चोडी करते हुए उसकी चुत पर अपना लंड सेट करके की झटके में अंदर घुसा दिया अगर ऋतू पर गोली का असर ना होता तो वो चिल्ला पडती मगर इस वक़्त वो मज़े से चुदवाने लगी थी.. गौतम धीरे-धीरे चोदते हुए ऋतु के भारी भरकम चुचे पड़ककर मसलने लगा..

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ऋतू किसी रंडी की तरह सिसकियाँ लेते हुए चुदवाने लगी और उसकी सिस्कारिया पूरे कमरे में गूंजने लगी..
गौतम चोदते हुए ऋतु के चुचो को चूसने और चाटने लगा, मसलते हुए ऋतु के तनकर खड़े हुए चुचक को चूसने लगा..

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गौतम की चोदने की रफ्तार के साथ रितु की सिसकारियां और चीख भी तेज होने लगी थी उसकी आवाज और कमरे से बाहर जाने लगी थी और कोई अगर कमरे के आसपास से गुजरता तो ऋतू की आवाज उसके कान में पढ़ जाती..

ऋतू की चुदी हुई चुत में गौतम इतनी जोर जोर से झटके मार रहा था कि अब रितु को भी चुदवाने में दर्द होने लगा था और रितु दर्द और सुख के मिश्रित अनुभव को अनुभव करते हुए गौतम से लिपट गई थी..

दोनों जवान थे और दोनों में सेक्स की गोली खाई थी जिससे दोनों की चुदाई को चलते हुए अब तक एक घंटा हो गया था जिसमें कई बार रितु की नदी बह चुकी थी मगर गौतम अब तक उसी तरह ऋतु की नदी में बाढ़ पर बाढ़ लाये जा रहा था

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गौतम ऋतु को पोजीशन बदल बदल कर चोद रहा था कभी वह रितु को अपनी गोद में उठता
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तो कभी बिस्तर पर लेटाता
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कभी घोड़ी बनता
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तो कभी दीवार से चिपकाकर चोदता..
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रितु गौतम की हर बात मानते हुए उसके बताए गए हर पोज़ में चुदवा रही थी और गौतम अपनी बहन ऋतू को पिछले एक घंटे से चोदे जा रहा था..

ऋतू की चुत में दर्द अब ख़त्म हो चूका था औऱ जलन शुरू हो चुकी थी.. गौतम का लंड लेने का सुख उस जलन के मुक़ाबले में अतुलनीय था.. ऋतू बिलकुल रांड की तरह गौतम की हर बात मानकर चुदवा रही थी.. गौतम ने लगभग सवा घंटे चोदकर ऋतू की चुत में अपना माल भर दिया फुल ac ने भी दोनों पसीने से तर होकर पानी पानी थे..

ऋतू पेट बल बिस्तर पर लेटी हुई थी औऱ गौतम ऋतू के ऊपर उसकी चुत में लंड गुसाये हुए झड़ने के बाद भी ऋतू को चोद रहा था..

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ऋतू - गौतम..
गौतम - हाँ.. बहना...
ऋतू - शुक्रिया भाई.. मेरी सुहागरात को याद गार बनाने के लिए.. ऐसा मज़ा तो आज तक कभी नहीं मिला.. एक बार में इतनी बार कभी नहीं झड़ी..
गौतम - शुक्रिया केसा बहन? तेरा सगा भाई हूँ.. जो तु बोलोगी वो तो मुझे करना ही पड़ेगा..
ऋतू - छोटे भाई .. ये सच्चाई माँ पापा ने हम दोनों से छिपाई है.. चेतन भईया औऱ भाभी को भी इसका नहीं पाता.. इसे छिपी ही रहने देना.. हम जैसे ज़ी रहे है वैसे ठीक है.. मेरी असली माँ कौन है ये सच्चाई कई घर तोड़ सकती है.
गौतम ऋतू की चुत से लंड निकालकर - मुझे फर्क नहीं पड़ता ऋतू कौन क्या है.. मैं बस इतना जानता हूँ की मैं अपनी माँ का दिल नहीं दुखा सकता.. औऱ अब जब मुझे आता चल चूका है की तू भी मेरी सगी बहन है.. तु भी मेरे दिल में उतर चुकी हो..
ऋतू - किस्मत भी कितनी अजीब है गौतम.. हम दोनों सगे भाई बहन है औऱ फिर भी एकदूसरे को इतना पसंद है कि साथ सो रहे है..
गौतम बिस्तर से उठता हुआ - इसमें किसका कसूर है ऋतू.. किसे दोष दे..
ऋतू उठती हुई - छोडो ना छोटे भाई.. हमें एक दूसरे कि जरुरत है.. अब कोई भी रिश्ता हमें एक दूसरे के साथ मिलने से नहीं कोई रोक सकता.. अब तक जो हुआ उसे भूल जाते है.. तुम्हारी नाराजगी ने तुमको इतने साल मुझसे दूर रखा.. पता है कितना कोसा है मैंने अपने आपको तुम्हारे लिए?
गौतम ऋतू का बोबा पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचते हुए - ऋतू मैं मर्द हूँ किसी बात को दिल से लगा लू तो आसानी से नहीं मानता..
ऋतू - मर्द के साथ साथ भाई भी तो हो मेरे.. मेरी गलती को माफ़ नहीं कर सकते थे तुम?

गौतम ऋतू को दिवार से चिपका कर उसकी एक टांग उठाते हुए - मुंह से माफ़ी मांगी थी तुमने.. अगर चुत से मांगी होती तो कब का माफ़ कर देती मैं तुम्हे बहना..
ऋतू गौतम का लंड पकड़ कर अपनी चुत में घुसाती हुई - लो अब मांगती हूँ अपने छोटे भाई से चुत खोलकर माफ़ी.. करोगे कबूल अपनी बहन को माफी?
गौतम ऋतू की दोनों टांग उठाकर पहला झटका मारते हुए अपना पूरा लंड घुसाकर - कबूल है ऋतू.. तुम्हारे छोटे भाई को तुम्हारी माफ़ी कबूल है..

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ऋतू सिसकियाँ लेती हुई - आराम से ग़ुगु.. ये तुम्हारी बहन की छोटी सी चुत है, चम्बल का मैदान नहीं.. एक बार में पूरा घुसा दिया.. हाय.. वापस से दर्द होने लगा है मुझे तो..
गौतम धीरे धीरे धक्के मारते हुए - छोटी सी कहाँ है बहना? तेरी चुत को तो तेरे आशिक़ो ने चोद चोद के चौडा कर दिया है.. मुझे सच में ऐसा लग रहा है जैसे मैं कोई रांड चोद रहा हूँ.. पता नहीं इस गांडु ने तुझे इस फटी हुई चुत के साथ कैसे पसंद कर लिया औऱ शादी कर ली?
ऋतू चुदवाते हुए - दहेज के लालची चुत की सील नहीं पैसो की डील देखते है छोटे भाई..
गौतम मुस्कुराते - ये तो सही कहा बहना.. चल बचपन की तरह अंतराक्षरी खेले?
ऋतू गीतम को चूमती हुई - चुदाई के बीच अंतराक्षरी खेलनी है तुझे?
गौतम - खेलते है ना ऋतू.. चल पहले तू गा..
ऋतू चुदते हुए - मुन्नी बदनाम हुई डार्लिग तेरे लिए.. मैं झंडुबाम हुई डार्लिंग तेरे लिए.. मुन्नी के गाल गुलाबी होंठ शराबी चाल नवावी रे.. मैं आइटम बम हुई डार्लिंग तेरे लिये..
गौतम ऋतू को बेड ओर लेटा कर धीरे धीरे चोदते हुए - ये शाम मास्तानी मदहोश किये जाए.. मुझे चुत तेरी खींचे मेरा लंड लिए जाये.. ये से गा ऋतू..

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ऋतू चुदते हुए - ये गलिया ये चोबारा यहां आना ना दोबारा.. अब हम तो भये परदेसी की तेरा यहां कोई नहीं. कि तेरा यहां कोई नहीं.

गौतम ऋतू को बैठा देता है औऱ अपना लोडा उसके मुंह में देकर गाता है - होंठों से छू लो ऋतू, मेरा लंड अमर कर दो.. बन जाओ रांड मेरी, मुझे गांड भी दे दो..

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ऋतू मुंह से लंड निकालकर अपने बूब्स के बीच रखकर गौतम को titjob देती हुई - दिल दीवाना ना जाने कब खो गया.. तूने ऐसे चोदा कि कुछ हो गया.. कुछ हो गया.. कुछ हो गया.. कुछ हो गया मेरी जा..
गौतम ऋतू को पीछे धकेल कर उसकी टांग फैलाते हुए उसकी चुत में लंड सेट करके धक्का मरते हुए - जिसका मुझे था इंतजार, जिसके लिए लंड था बेक़रार.. वो घड़ी आ गई आ गई.. आज चुत में तेरी उतर जाना है.. चोद देना है तुझको या चुद जाना है..

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ऋतू सिसकियाँ लेते हुए - हर ग़म उठा लूँ तन्हा अकेली.. तेरे लिये भाई लोडा भी झेली.. इतना तुझे प्यार दू.. कपडे उतार दूँ.. चोद लो भईया.. चुत भी वार दूँ..
गौतम चोदने कि रफ़्तार बढ़ाते हुए - तुझको ना चोदू तो दिल घबराता है.. चोदके तुझको बहना मुझको चैन आता है.
ऋतू - आराम से ग़ुगु जलन हो रही है..

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गौतम लगातार मिशनरी में चोदता हुआ. - सॉरी ऋतू..
गौतम औऱ ऋतू की चुदाई इस बार भी चलती रही औऱ तब तक नहीं रुकी जब तक गौतम ने ऋतू की चुत को चोद चोद कर सुज्जा नहीं दिया.. ऋतू की चुत लाल हो चुकी थी जलन औऱ सूजन भी चुत पर आ चुकी थी डबल रोती की तरह फूली हुई चुत हो चुकी थी ऋतू की...ऋतू की चाल में औऱ ज्यादा लचक आ गई थी..

सुबह के साढ़े पांच बज चुके थे औऱ ऋतू गौतम की बाहों ने नंगी लेटी हुई मुस्कुराते हुए गौतम को देख रही थी.. जो एक हाथ में ऋतू का बोबा पकड़कर ऋतू को अपनी बाहों में जकड़े हुए था औऱ दूसरे हाथ से सिगरेट के कश लगा रहा था.. राहुल अब भी बेसुध सोफे पर पड़ा था.
गौतम सिगरेट बुझाकार - बहना अब मुझे चलना चाहिए.. सुबह होने वाली भीड़ बढ़ जायेगी.. कोई भी तेरे कमरे से निकलते हुए देख सकता है.
ऋतू गौतम के होंठ चूमकर - दिल औऱ चुत लेकर जा रहे हो छोटे भाई.. ख्याल रखना मेरे दिल का..
गौतम उठकर कपडे पहनते हुए - तु भी मेरे दिल का ख्याल रखना ऋतू.. बहुत नाजुक है जल्दी टूट जाता है..
ऋतू मुस्कुराते हुए - एक बार तोड़ चुकी हूँ अब वो गलती नहीं करुँगी..

गौतम रूम से चला जाता है औऱ ऋतू नहाने चली जाती है..
Nice update bro 👍
 

insotter

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Update 28


गौतम जब अपने रूम में पहुंचा तो उसने देखा कि विक्रम वहां से कहीं जा चुका था और रूम में अब कोई नहीं था. गौतम ने थोड़ी देर बिस्तर पर आराम करने के बाद में फिर से शावर लिया औऱ फिर कुछ देर इधर-उधर घूमने लगा. होटल की छत से लेकर वेडिंग हॉल तक और फिर वेडिंग लॉन तक गौतम यहां से वहा टहलता रहा..

मेहमान अब उठने लगे थे और होटल में चहल पहल बढ़ने लगी थी मगर अब भी कुछ लोग रात को देर से सोने के कारण सो रहे थे सुबह के 6:30 बज चुके थे और मेहमानों को अब चाय की चुस्की लेने में आनंद आने लगा था.. कोई रात को अपने साथ हुए किस्से और कहानियों का जाएका एक दूसरे को चाय की चुस्कीया लेते हुए सुना रहा था तो कोई हमेशा की तरह शादी में कमी और खामी निकल रहा था.

गौतम के अंदर गोली का असर अभी बाकी था और वह अभी अपने लिए किसी शिकार की तलाश कर रहा था उसने हर जगह टहलती हुई लड़कियों और औरतों को देखा मगर उसे कहीं भी अपने लायक माल नहीं मिला और ना ही नानी मामी या भाभी अकेली मिली. गौतम की कामुकता बरकरार थी और वह सुमन के कमरे की ओर जाने लगा मगर बीच में ही उसने चाय के दो कप अपने साथ ले लिए थे. सुमन रात को देर से सोई थी इसलिए उसकी नींद अभी भी नहीं खुली थी सुबह के 6:30 पर भी वह इत्मीनान से सो रही थी.

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रात को सुमन आरती के साथ ही सोई थी मगर आरती अब कमरे से बाहर जा चुकी थी और कमरे में सिर्फ सुमन अकेली ही बिस्तर पर नींद में थी. गौतम ने रूम में घुसते हुए कैमरे का दरवाजा बंद कर दिया और चाय के दोनों कप लेकर होटल में एक तरफ रखी टेबल पर रख दिया. गौतम ने कप उठकर चाय की तीन-चार चुस्की ली और फिर अपनी मां सुमन को देखने लगा. सुमन नींद में किसी हसीन ख्वाब में खोई थी और गौतम को सुमन परियों की तरह लग रही थी.
गौतम ने अपने हाथ से चाय का कप टेबल पर रख दिया और धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ गया. गौतम ने सो रही सुमन की साड़ी धीरे-धीरे कमर तक उठा दी और उसकी चड्डी नीचे करते हुए सुमन की जांघों के जोड़ पर अपने होंठ लगा दिये.. गौतम ने अपनी जीभ सुमन की जांघोँ के जोड़ पर लगाकर उसके नारीत्व को छेड़ना शुरू कर दिया था और अपनी जीभ से सुमन की चुत को चाटने और चूसने लगा था.

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गौतम ने सुमन की दोनों टांगें फैलाकर उसकी चुत को चूसना और चाटना शुरू कर दिया था जिससे सुमन नींद के आगोश से बाहर निकलने लगी थी और उसकी नींद कमजोर पढ़ने लगी थी. गौतम ने अपनी जीभ को सुमन की चुत में डाल दिया था और जितना अंदर घुस सकता था घुसा कर अपनी जीभ से सुमन के नारीत्व को छेड़ने लगा था जिससे सुमन कामुक होती हुई नींद से बाहर आ गई थी और उसने अपनी आंख खोलकर गौतम को अपने साथ छेड़खानी करते हुए देख लिया.

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सुमन की जैसे ही नींद खुली उसकी कामुकता अपने शिखर पर थी और उसने ना चाहते हुए भी गौतम के मुंह में ही अपने पानी की पिचकारी को छोड़ दिया जिसे गौतम ने अमृत समझकर पीते हुए सुमन की चुत को वापस से चाट कर साफ कर दिया और फिर मुस्कुराते हुए सुमन को देखकर बोला..
गौतम - गुडमॉर्निंग माँ.. चाय पी लो..
सुमन अपनी चड्डी पहनती हुई अपनी साडी के पल्लू से गौतम के गीले होंठो को साफ करती हुई बोली - गुडमॉर्निंग बेटा.. मुझे जगा लेता ना.. नींद में ही तू ये सब करने लगा.. दरवाजा तो बंद किया है ना तूने?
गौतम - दरवाजा बंद है माँ.. आप फ़िक्र मत करो.. मैं इतना भी लापरवाह नहीं हूँ..
सुमन मुस्कुराते हुए चाय का कप लेकर चाय पीते हुए - रात को सोया नहीं ना तू.. आँखे बिलकुल लाल है तेरी..
गौतम - दिन में सो जाऊँगा माँ.. रात को नींद ही नहीं आई..
सुमन गौतम की गोद में बैठकर चाय की चुस्कीया लेती हुई - रात को नींद नहीं आई या किसी ने सोने नहीं दिया मेरे शहजादे को? हाय रे.. तेरे गले पर तो कितने निशान है.. कल तो नहीं थे.. सच बता? गर्लफ्रेंड के साथ था ना तू जो कल मिली थी.. उसीने दिए है ना ये निशान.. कितना बुरे नाख़ून लगाती है.. तूने रोका नहीं उसे?
गौतम सुमन की जांघ सहलाते हुए - किसीको प्यार करने से थोड़ी रोका जाता है माँ..
सुमन चाय का कप रखकर - थोड़ा कम प्यार करा कर ग़ुगु.. तू बहुत बिगड़ गया है आज कल.. हर दम बस यही सब चलता है तेरे दिमाग में..
गौतम सुमन के चेहरे पर लटक रही जुल्फ को उसके कान के पीछे करता हुआ सुमन के गाल पर चुम्बन देकर कहता है - मैं तो सुधर जाऊ माँ पर आपका ये छोटा ग़ुगु नहीं सुधारता.. जहाँ भी खड्डा देखता है अपनेआप उसमे कूद जाता है.. औऱ पानी निकाल कर ही बाहर निकलता है..
सुमन गौतम की बात पर हस्ती हुई - कल चल वापस घर.. तेरे इस छोटे ग़ुगु की शिकायत करती हूँ बाबाजी से.. बेलगाम हो गया है बहुत.. लगाम लगानी पड़ेगी इस पर..
गौतम सुमन की गर्दन को अपनी जीभ से चाटता हुआ - बाबाजी को शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.. एक बार आप हाँ कर दो.. अपने आप लगाम लग जायेगी छोटे ग़ुगु पर..

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सुमन गौतम की गोद में से खड़ी हो जाती है औऱ कहती है - एक बार कह दिया ना ग़ुगु.. तू क्यों फालतू ज़िद करता है..
गौतम उठकर सुमन को बाहों में भरते हुए - अच्छा सॉरी माँ.. अब नहीं कहता कुछ.. आप जेसा चाहोगी वैसा होगा..
सुमन गौतम के लंड पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए - लगता बहुत देर से खड़ा है छोटा ग़ुगु.. पूरी खुराख़ मिली नहीं इसे..
गौतम सुमन के कंधे पर हाथ रखकर सुमन को नीचे बैठाते हुए - रात को सेक्स की गोली खा ली थी अब तक असर बाकी है..
सुमन गौतम की जीन्स खोलकर लंड पकड़ते हुए - तुझे कब से गोली की जरुरत पड़ने लगी ग़ुगु..
गौतम सुमन के बाल पकड़कर उसके चेहरे पर लंड रगढ़ते हुए - मैंने किसी के कहने पर खा ली.. छोडो उस बात को.. आप जल्दी से ठंडा कर दो छोटे ग़ुगु को..

सुमन गौतम के लंड को मुंह में लेकर चूसने ही लगी थी की दरवाजे पर किसी की दस्तक हुई..
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गौतम गुस्से में - पता किसकी माँ चुद गई.. साला कौन है..
सुमन मुस्कुराते हुए - रुक मैं देखती हूँ..
गौतम लंड पेंट में डालकर बेड पर बैठ जाता है औऱ सुमन दरवाजा खोलती है.
सिमरन सुमन से - आपको मालिक औऱ मालकिन बुला रहे है..
सुमन - मैं आती हूँ तू जा.. (वापस दरवाजा बंद करके) ग़ुगु जाना पड़ेगा बेटा..
गौतम सुमन को बाहों में भरके - कोई बात नहीं माँ.. आप जाओ औऱ मामी से किसी बात पर लड़ाई झगड़ा मत करने लग जाना..
सुमन मुस्कुराते हुए - भला मैं भाभी से क्यों झगड़ने लगी..
गौतम सुमन के होंठ चूमकर - आई लव यू माँ..

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सुमन वापस गौतम के होंठ चूमकर - आई लव यू टू बेटा.. अच्छा अब जाने दे वरना औऱ भी कोई बुलाने आ जाएगा.. मुझे बहुत तेज़ सुसु भी लगा है..
गौतम नीचे बैठकर सुमन की साडी उठाते हुए चड्डी नीचे सरकाकर - माँ पहले बताना था ना.. मुझे भी प्यास लगी थी.. ये कहकर गौतम सुमन की साडी उठाकर चुत पर अपना मुंह लगा देता है औऱ चूसने लगता है सुमन भी शर्माती हुई गौतम के बाल पकड़ कर गौतम के मुंह में मूतने लगती है..

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गौतम सुमन का पेशाब पी जाता है औऱ अपना मुंह चुत पर से तब तक नहीं हटाता जब तक पेशाब की आखिरी बून्द नहीं पी जाता.. सुमन भी गौतम को अपना मुंह हटाने के लिए नहीं कहती..
मूत पिने के बाद गौतम चुत से मुंह हटाकर खड़ा हो जाता है सुमन मुस्कुराते हुए फिर से अपनी साडी के पल्लू से गौतम का मुंह साफ कर देती है.. औऱ कमरे से बाहर चली जाती है..


गौतम अपने रूम में आकर रेशमा को फ़ोन करता है..
रेशमा - हेलो..
गौतम - तू आई नहीं ना कुत्तिया कल शादी में?
रेशमा - माफ़ कर दे मेरे कुत्ते.. मैंने कोशिश तो बहुत की पर असलम माना ही नहीं.. मैं करती भी क्या, ना आने के सिवा..
गौतम - अकेली नहीं आ सकती थी?
रेशमा - अकेली कैसे आती? इतनी बंदिश है मेरे ऊपर.. घर निकल भी जाऊ तो आफत आ जाती है सवालों की.. तू लड़का है इसलिए नहीं समझ पायेगा.
गौतम - ज्यादा ना ज्ञान मत चोदे रेशमा.. नहीं मिलना तो बता दे..
रेशमा - थोड़ा औऱ सब्र कर ले मेरे कुत्ते.. दो तीन दिन बाद अब्बू के घर आ जाउंगी तब जितना मिलना हो मुझसे मिल लेना.. मैं रोकूंगी नहीं तुझे..
गौतम - खाना खा लिया?
रेशमा - इतनी सुबह कौन खाना खाता है? अभी तो खाना बनाउंगी.. फिर खाउंगी.. जब तुझसे मिलूंगी तब तू अपने हाथों खिला देना खाना..
गौतम - मुझसे मिलते ही लंड खाएगी तू..वो भी अह्ह्ह्ह.. उह्ह्ह... करके..
रेशमा हसती हुई - तू जो खिलायेगा वो खा लुंगी मेरे कुत्ते.. मेरा भी बहुत मन है तुझसे मिलने का..
गौतम - मन क्या है साली.. सीधा बोल ना तेरी चुत में खुजली चल रही है.. चुदवाना है तुझे भी..
रेशमा - हाँ चल रही है तू मिटायेगा ना मेरी खुजली..
गौतम - एक बार मिल रेशमा.. ऐसा चटूंगा ना तेरी चुत को.. तेरी साली खुजली मिट जायेगी...
रेशमा चुत में ऊँगली करते हुए - उफ्फ्फ.. मेरे कुत्ते.. तू चाटेगा ना मेरी चुत को, अपनी बात से मुकर तो नहीं जाएगा..
गौतम - चाटूँगा भी चोदुँगा भी.. चुत औऱ गांड दोनों.. कुतिया बच्चा नहीं हो रह ना तेरे.. एक बार में प्रेग्नेंट ना कर दिया तो कहना..
रेशमा ऊँगली करती हुई - आई लव यू मेरे कुत्ते.. अब तो मुझसे भी सब्र नहीं हो रह.. मन कर रहा है उड़ के आ जाऊ तेरे पास..

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गौतम - अच्छा शोहर कहा है तेरा? आज सुबह सुबह चला गया क्या?
रेशमा - छोड़ ना बेबी.. गया होगा हराम का जना अपनी अम्मी चुदवाने... तू मीठी मीठी बात कर ना मुझसे.. बता मिलूंगी तो क्या क्या करेगा तू मेरे साथ?
गौतम हस्ते हुए - चुत में ऊँगली कर रही है ना तू मेरी कुतिया?
रेशमा - लड़कियों से ऐसी बातें नहीं पूछते..
गौतम - अच्छा दरवाजे पर कोई आया है मैं बाद में बात करता हूँ..
रेशमा - कुत्ते फ़ोन मत काटना.. जो भी आया है भगा उसे.. औऱ बात कर मुझसे..
गौतम ने फ़ोन बिना काटे टेबल पर रख दिया औऱ कानो में इयरबड्स लगाकर बात करते हुए रेशमा से कहा..
गौतम - ठीक है रुक दो मिनट मैं देखता हूँ कौन है..

गौतम ने दरवाजा खोला तो सामने शबनम हाथ में एक ट्रे लेकर खड़ी थी जिसमें एक चाय का कप और कुछ खाने का सामान था.. शबनम ने गौतम को देखते हुए उसकी आंखों से आंखें मिलाकर कहा - ग़ुगु भैया आपकी मम्मी ने आपके लिए नाश्ता भिजवाया है.. गौतम ने बिना कुछ कहे इशारे से शबनम को नाश्ते की ट्रे टेबल पर रखने को कहा और दरवाजा अंदर से बंद करके शबनम के पीछे-पीछे आ गया औऱ शबनम को अपनी तरफ घुमा कर उसके मुंह पर हाथ रखते हुए फ़ोन म्यूट करके शबनम से बोला...
गौतम - तुझे समझाया था ना भईया मत बोला कर..
शबनम मासूमियत से गौतम का हाथ हटा कर - गलती हो गई..
गौतम शबनम के बूब्स पर हाथ फेरकर - अब गलती की है तो फिर से सजा मिलेगी..
शबनम अपने बूब्स पर गौतम का हाथ देखकर - छोटे मालिक आप ये क्या कर रहे है? कोई देख लेगा?
गौतम - कोई नहीं आएगा औऱ अब तू मुंह से आवाज मत निकालना.. सेटिंग से बात कर रहा हूँ.. उसे तेरी आवाज ना सुनाई दे.. मैं कुछ भी करू तू चुप रहना बिलकुल..
शबनम - पर छोटे मालिक.. मालकिन को पता चला तो मेरी जान ले लेगी..
गौतम - तू बतायेगी? नहीं ना.. फिर? औऱ ये छोटे मालिक बहुत चूतिया लगता है सुनने में.. मैं कोई मालिक नहीं हूँ यहाँ पर.. तू भईया ही बोल वो फिर भी ठीक है..
शबनम गौतम की तरफ देखती हुई - ज़ी.. ग़ुगु भईया..
गौतम शबनम को चुप रहने का इशारा करते हुए फ़ोन का म्यूट खोलकर इयरबड्स हटा देता है औऱ फ़ोन स्पीकर पर डाल कर कहता है - हेलो..
रेशमा - हाँ मेरे कुत्ते.. चला गया जो आया था?
गौतम शबनम को बाहों में भरकर बिस्तर पर आता हुआ - हम्म..
रेशमा - तो अब बता क्या क्या करेगा जब मिलूंगी तब?
गौतम शबनम के होंठों को चूमता हुआ - सबसे पहले तो मैं तेरे गुलाबी होंठों को अपने होंठों में गिरफ़्तार कर लूंगा औऱ तेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर तेरे पुरे मुंह की तलाशी लूंगा..

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रेशमा ऊँगली करते - अहह... कुत्ते.. फिर..
गौतम शबनम के चेहरे औऱ गले को चूमकर चाटता हुआ - फिर तेरे चेहरे औऱ सुराही जैसी गर्दन पर अनगिनत चुम्बन करके lovebite दूंगा..
रेशमा - हाय.. मैं भी अपने कुत्ते को जीभर के चुमूँगी औऱ lovebite दूंगी.. उसके बाद क्या करोगे बेबी?
गौतम शबनम का बोबा अपने हाथ में पकड़कर मसलते हुए शबनम की आँखों में देखकर - फिर मैं तेरा दूध निकाऊंगा..

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रेशमा ऊँगली करते हुए - बेबी आराम से ज्यादा तेज़ मत दबाना मेरे चुचो को.. वरना दूध फट जाएगा..
गौतम शबनम की कुर्ती उतारकर ब्रा खींचकर निकालते हुए - फिर तेरे बोबो को बच्चों की तरह चूसूंगा मेरी कुतिया..
शबनम से अब रहा ना गया औऱ वो भी कामुकता के सागर में कश्तिया हाँकने लगी थी उसने अपने दोनों हाथों से गौतम के सर को पकड़कर गौतम को अपना बोबा चुसवाना शुरू कर दिया था..

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रेशमा - हाये अम्मी.. मैं भी तुझे बच्चों की तरह अपना दूध चुसवाउंगी मेरा बच्चा बनाकर.. पी लेना मेरा सारा दूध अपने मुंह से कुत्ते..
गौतम शबनम की आँखों में देखकर अपने हाथ में शबनम के बोबे पर कड़क होकर खड़े हुए चुचक को अपनी ऊँगली से पकड़ कर जोर से मरोड़ता हुआ - फिर मैं तेरे बोबे के दाने को मसलकर तुझे दर्द दूंगा रेशमा...
शबनम गौतम की आंखों में देखी हुई उससे अपने बोबे पर खड़े हुए चूचक को छोड़ने की आँखों से अपील कर रही थी. शबनम आह भरना चाहती थी मगर गौतम को बुरा ना लगे इसलिए उसने अपनी आवाज को अपने गले में ही दबा लिया और गौतम की आंखों में देखती हुई अपने चेहरे पर दर्द भरे भाव ला रही थी. गौतम से शबनम की हालत ज्यादा देर तक देखी नहीं गई और उसने बोबे पर खड़े हुए शबनम के चुचकों को मरोड़ना और मसलना बंद करके अपना हाथ उसकी कमर पर रख दिया..
रेशमा चूत में ऊँगली करती हुई - मैं जोर से चिंख पड़ूँगी बेबी अगर तू करेगा तो.. ज्यादा दर्द देगा ना तो अपने दांतो से तेरे होंठ काट खाउंगी..
शबनम रेशमा की बात सुनकर कामुकता से गौतम के होंठों को चुम लेती औऱ अपने दाँत से जोर से काट लेटी है.

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गौतम शबनम को हैरानी से देखता हुआ - साली काटती है.. रुक तुझे अभी बताता हूँ..
शबनम मुस्कुराते हुए गौतम को देखने लगती है औऱ उसकी शर्ट के बटन खोलने लगती है वही गौतम को शबनम के बर्ताव से शबनम पर प्यार आने लगा था.. गौतम उसके बूब्स को मसलता हुआ चूसने लगता है..
रेशमा - अब क्या कर रहे हो जानु?
गौतम शर्ट उतार कर शबनम की चुत सहलाता हुआ - तेरी चुत को तैयार कर रहा हूँ..
शबनम अपनी चुत गौतम से सहलवाती हुई अपने एक हाथ से गौतम की जीन्स का बटन खोलकर उसकी जीन्स नीचे सरका देती है औऱ अपने पैरों की मदद से गौतम की जीन्स पूरी नीचे तक उतार देती है जिसे गौतम खुद पैरों से निकालकर अब सिर्फ चड्डी में आ जाता है..
रेशमा ऊँगली करते हुए - धीरे सहलाना जानू मेरी चुत को.. कहीं अभी ही ना झड़ जाए.. आहहह... अब मेरी सलवार खोल दो ना बेबी?
गौतम रेशमा की बात सुनकर शबनम की सलवार का नाड़ा खोलने लगता है पर गौतम से शबनम की सलवार का नाड़ा नहीं खुलता जिस पर शबनम गौतम को देखती हुई दबी हुई हंसी हँसने लगती है..
रेशमा फ़ोन पर - खोल दी क्या जानू मेरी सलवार..
गौतम - यार ये नाड़ा नहीं खुल रहा..
रेशमा फ़ोन पर - लाओ बेबी मैं खोल देती हूँ..
रेशमा की बात सुनकर शबनम अपना एक हाथ बढ़ाकर अपनी सलवार का नाड़ा खोल देती है औऱ अपनी सलवार नीचे सरका देती है.. औऱ मुस्कुराते हुए गौतम की आँखों में देखकर इशारे से वही कहती है जो रेशमा फोन पर बोलती है..
शबनम इशारे से औऱ रेशमा फ़ोन पर - खुल गया जानू..
गौतम मुस्कुराते हुए शबनम की चड्डी नीचे सरकाकर शबनम की चुत देखकर - कितने सारे बाल है यार तुम्हारी चुत पर.. काट तो लेती इन्हे..
शबनम मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथों से अपने दोनों कान पकड़कर गौतम से इशारे में बिना आवाज किये बोलती है - सॉरी..
रेशमा फ़ोन पर - अगली बार साफ कर लुंगी जानू.. आज माफ़ कर दो..

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शबनम गौतम की चड्डी नीचे सरकाकर उसके लंड को देखते ही हैरानी से कुछ बोलने ही वाली थी की गौतम ने शबनम के मुंह पर हाथ रखकर शबनम की चुत पर अपने लंड को रगढ़ते हुए रेशमा से कहा.
गौतम - चुत पर लंड रगड़ रहा हूँ रेशमा..
रेशमा ऊँगली करती हुई इस बार झड़ गई औऱ बोली - जानू तुमने तो रगड़ कर ही झड़वा दिया.. मैंने अंदर तक लेने का सोच लिया था..

गौतम धीरे से शबनम के मुंह से हाथ हटाकर उसे चुप रहने का इशारा करते हुए रेशमा से कहा - झड़ भी गई.. अब मेरा क्या होगा? मुझे तो चुत चाहिए थी..
रेशमा हसते हुए - फोन पर लेकर क्या करोगे जानू? जब मिलूंगी तो रियल में ले लेना.. अच्छा अब रखती हूँ खाना भी बनाना है.. बाय मेरे कुत्ते..
गौतम फ़ोन काटते हुए - ठीक है मेरी कुत्तिया...
शबनम फ़ोन कटने पर - ग़ुगु भईया आपका तो बहुत बड़ा है..
गौतम मुस्कुराते हुए - डर लग रहा है लेने में? नहीं लेना तो मना कर दो. मैं नाराज़ नहीं हूंगा..
शबनम थोड़ा थूक लगाकर गौतम का लंड पकड़ते हुए अपनी चुत में घुसाती हुई - मैं तो कब से लेना चाहती हूं ग़ुगु.. तभी तो कब से आगे पीछे घूम रही हूं..
गौतम - क्या बात है शबनम? ग़ुगु भईया से सीधा ग़ुगु?
शबनम अपनी गांड उठाकर धीरे धीरे गौतम का लंड चुत में अंदर लेती हुई - 10 साल छोटे हो तुम मुझसे.. इतना तो मै बोल ही सकते हूँ.
गौतम मिशनरी में पहला तेज़ झटका मारते हुए शबनम की चुत में अपना आधे से ज्यादा लंड घुसा देता है औऱ शबनम से कहता है - मुझे बड़ी औरते चोदने में बहुत मज़ा आता है शबनम..

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शबनम आह्ह करती हुई - इतनी जोरआजमाइश क्यों कर रहे हो ग़ुगु? तुमको जो चाहिए वो दे तो रही हूँ.. प्यार से नहीं ले सकते मेरी?
गौतम सॉरी बोलते हुए - तुम ठीक तो हो ना शबनम?
शबनम सिसकियाँ लेती हुई - अब तक तो ठीक हूँ पर आगे का पता नहीं.. तुम क्या हाल करोगे मेरा..
गौतम बिलकुल धीरे धीरे झटके मारकर चोदते हुए - दो बच्चे है तुम्हारे तो.. फिर भी इतनी टाइट है... अब्दुल लेता नहीं है क्या?
शबनम गांड उठाकर चुदाई में गौतम का बराबर साथ देती हुई - चुत का क्या है ग़ुगु.. कुछ टाइम ना चुदे तो सिकुड़ जाती है.. औऱ तुम्हारा इतना बड़ा है तुमको तो छोटी लगेगी ही..
गौतम झटको की रफ़्तार बढ़ाते हुए - सच सच बताना शबनम.. दोनों बच्चे अब्दुल के है या किसी औऱ के?
शबनम कामुक आहे भरती हुई - एक तो अब्दुल का..
गौतम झटके मारते हुए - औऱ दूसरा?
शबनम - दूसरा आरती भाभी के पापा का है..
गौतम हैरानी से - आरती का बाप कब चोद गया तुझे?
शबनम - चोद के नहीं गया ग़ुगु.. मैं औऱ अब्दुल पहले आरती भाभी के घर ही काम करते थे.. वहा अंकल ज़ी ने बहुत बार मेरा फ़ायदा उठाया था.. आरती भाभी से कहकर मैं यहां उनके पास आ गई..
गौतम - चोदने वाला अगर अपनी पसंद का आदमी ना हो तो कितना बुरा लगता है समझ सकता हूँ शबनम..
शबनम मुस्कुराते हुए - छोटी सी उम्र में कितनी समझदारी वाली बात करते हो गुगु.. अब जल्दी जो चाहिए वो लो औऱ मुझे जाने दो.. मैं नहीं मिलूंगी तो मालकिन हल्ला मचा देगी..
गौतम शबनम की चुत में पूरा लंड घुसाकर रुक जाता है औऱ शबनम के होंठ चूमकर कहता है - तुम्हारी मालकिन को मैं देख लूंगा.. तुम चिंता मत करो शबनम..

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शबनम कामुक निगाहो से गौतम को देखती हुई - कल शादी में बहुत प्यारे औऱ हैंडसम लग रहे थे तुम?
गौतम - तू छुप छुप के देख रही थी मुझे?
शबनम मुस्कुराते हुए गौतम के होंठों पर उंगलियां फेरती हुई - जब से आये तो मेरी निगाहे तो तुम्ही पर है..
गौतम - अच्छा इतना पसंद आय तुम्हे.. बहुत चालक हो..
शबनम कुछ कहती इससे पहले दरवाजा बज गया..
गौतम - हर बार कोई ना कोई अपनी माँ चुदाने आ ही जाता है... तू रुक मैं देखकर आता हूँ..

शबनम बाथरूम में चली जाती है औऱ अपने कपडे अपने हाथ में पकड़कर बाथरूम में एक तरफ रख देती.. वही गौतम तौलिया लपेटकर दरवाजा खोलता है सामने कोमल थी..
कोमल - बेटा.. तूने शबनम को कहीं देखा है? मिल नहीं रही..
गौतम कोमल को बाहों में भरके उसका बोबा मसलते हुए - शबनम को नहीं देखा मामी पर आपको आज बिस्तर में नंगा देखने की बहुत तलब है..
कोमल मुस्कुराते हुए गौतम का कान खींचकर - रात ने देख लेना बेटा.. अभी घर जाना है तेरी बहन की विदाई भी होनी है.. ऊपर से वो शबनम भी नहीं मिल रही..
गौतम कोमल का बोबा ब्लाउज से बाहर निकाल कर चूसते हुए - शबनम को मैंने बाजार भेजा है मामी.. उसे आने में समय लगेगा.. कुछ काम है तो बोलो मैं कर देता हूँ..

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कोमल गौतम से अपना बोबा छुड़वा कर वापस ब्लाउज में डालती हुई - ये सब रात में कर लेना ग़ुगु अभी बहुत काम है.. शबनम वापस आये तो मेरे पास भेज देना..
गौतम - मामी एक kiss तो दे जाओ..
कोमल गौतम के होंठो को अपने होंठो में भरके एक लम्बा औऱ गिला चुम्मा करके - चल अब अपना ख्याल रख बेटा.. मैं जाती हूँ..
गौतम अपना तौलिया हटाकर अपना लंड हिलाते हुए - बाय मामी..
कोमल मुस्कुराते हुए गौतम का लंड देखकर - बाय बेटा...
कोमल के जाने के बाद गौतम दरवाजा बंद कर देता है औऱ बाथरूम का दरवाजा खोलकर अंदर पोट पर बैठी हुई शबनम से कहता - पोट्टी कर रही हो क्या?
शबनम खड़ी होकर - नहीं तो.. कौन था?
गौतम - मामी थी तेरे बारे में पूछ रही थी..
शबनम - तो? क्या कहा तुमने?
गौतम शबनम को बाहों में भरते हुए - मैंने कहा.. तुम्हे टाइम लगेगा.. बहुत जरुरी काम कर रही हो मेरा..
शबनम मुस्कुराते हुए - मालकिन ने क्या कहा?
गौतम - मामी ने कहा.. जब काम पूरा हो जाए तो भेज देना..
शबनम - सच में?
गौतम शबनम को बाहों से आजाद करते हुए - औऱ क्या मैं झूठ बोलूंगा?
शबनम मुस्कुराते हुए टेबल पर पड़ी सिगरेट के पैकेट से सिगरेट निकालकर लाइटर से सुलगाते हुए - ऐसा मैंने कब कहा?
गौतम - तु सिगरेट पीती है?
शबनम - जब इतनी सी उम्र में तुम पी सकते हो तो मैं तो तीस साल की हूँ.. मैं नहीं पी सकती?
गौतम बेड पर बैठके - सिर्फ सिगरेट ही पीना आता है मेरा ये सिगार भी पीना जानती हो..
शबनम गौतम के आगे फर्श पर बैठकर सिगरेट का कश लगाकर उसके लंड को पकड़ते हुए - मुझे सिगरेट पीते हुए सिगार पीना अच्छे से आता है ग़ुगु.. ये कहते हुए शबनम सिगरेट के कश लगाकर गौतम का लोडा मुंह में लेकर चूसने लगी..

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गौतम - उफ्फ्फ.. शबनम.. अहह..
शबनम थोड़ी देर लोडा चूसकर - मज़ा आ रहा है ना ग़ुगु? तुम्हारा तो झड़ने का नाम ही नहीं लेता.. इतनी देर में तो अब्दुल 4 बार अंकल ज़ी 6 बार झड़ जाते..
गौतम - ये मर्द का लंड है शबनम.. आसानी से नहीं झडेगा..
शबनम - ग़ुगु एक बात बोलू.. बुरा तो नही मानोगे?
गौतम - खुलके बोल शबनम.. बुरा मान जाऊंगा तो तुझे चोदके बदला भी ले लूंगा..
शबनम मुंह से लंड निकालकर - ग़ुगु मैं घर की नोकरानी हूँ.. कभी मालकिन नहीं बन सकती.. पर लाइफ में एक बार मुझे मालकिन बनकर चुदाई करनी है अपने नोकर की.. मैं चाहती हूँ कोई मेरा नौकर बनकर रहे.. मेरा हर हुकुम माने..
गौतम शबनम के होंठ चुम्मा कर - इतनी सी बात?
(गौतम अपनी पेंट से अपना बेल्ट निकालकर अपने गले में पहन लेता है औऱ बिलकुल किसी कुत्ते की तरह उसका पट्टा शबनम के हाथ में देकर कुत्ते की तरह फर्श पर अपने हाथ पैर रखकर kutta बनते हुए शबनम से कहता है..
गौतम - लो हाज़िर है तुम्हारा गुलाम या कुत्ता.. दो हुकुम अपने इस गुलाम को मालकिन..
शबनम मुस्कुराते हुए गौतम के सर को चूमकर - गुगु बुरा तो नहीं मानोगे ना तुम.. मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है..
गौतम - अगर तुने अपनी fantasy पूरी नहीं की तो जरूर बुरा मान जाऊँगा.. जो करना है करो.. समझी.. अब शुरू करो.. मुझे भी बहुत बोर हो गया था सिर्फ चुदाई करते हुए.. अब roleplay करके थोड़ा मज़ा लेता हूँ... भो भो.. मालकिन क्या हुकुम है अपने कुत्ते के लिए?
शबनम मूंड में आती हुई पट्टा अच्छे से पकड़ कर - क्या नाम है तेरा मेरे कुत्ते?
गौतम भोंकते हुए - ग़ुगु मालकिन..
शबनम बेड पर बैठकर अपने पैर का अंगूठा गौतम के मुंह में देती हुई - मालकिन के पैर की उंगलियां चूस मेरे कुत्ते..
गौतम अंगूठा औऱ उंगलियां चूसते हुए - ज़ी मालकिन..
शबनम कामुकता के अर्श पर थी उसने कहा - जीभ लगा के चूस.. मादरचोद..रंडी के बच्चे.. मालकिन नाराज़ हो गई तो जानता है ना क्या होगा?
गौतम रोने का नाटक करते हुए - चूसता हूँ मालकिन.. आप गुस्सा मत करो..
शबनम - रो मत साले कुत्ते.. चाट मेरे परो को अच्छे से.. जीभ लगा लगा के..
गौतम पैर चाटते हुए - जैसा आप बोलो मालकिन..

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शबनम पैर चटवाने के बाद पट्टा खींचते हुए गौतम का मुंह अपनी चुत के करीब लाती हुई उसे गाली बकती है - साले ग़ुगु मादरचोद, बहन के लोडे, रंडी के मूत, चुदाईखाने, भोस्डिके भड़वे.. चाट अपनी मालकिन की चुत को.. बाहर निकाल अपनी जीभ..
गौतम अपनी जीभ बाहर निकालकर चुत पर फिराते हुए - मालकिन बदबू आती है आपकी चुत से..
शबनम गौतम को एक थप्पड़ मारकर - तुझसे पूछा मैंने कुत्ते? चाटने के बोला है ना.. तो फिर चाट अच्छे.. साला नौकर मुझसे जबान लड़ायेगा..
ये कहते हुए शबनम अपनी दोनों टाँगे औऱ अच्छे से खोलकर बेड पर लेट गई औऱ ग़ुगु के बाल पकड़कर उसके मुंह को जबरदस्ती अपनी चुत पर लगाती हुई उसे चुत चटवाने लगी..

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इसके साथ ही शबनम ने एक सिगरेट जलाकर कश लेते हुए धुआँ ग़ुगु के मुंह पर छोड़ दिया.. औऱ बोली..
शबनम - अब आ रही है बदबू तुझे? साले नौकर.. छोटा सा होके अपनी मालकिन से जुबान लड़ायेगा.. चाट मादरचोद.. ठीक से चाट वरना काम से निकाल दूंगी औऱ झूठा केस लगाकर पुलिस स्टेशन में बंद भी करवा दूंगी..
गौतम रोते हुए - मालकिन नहीं आ रही बदबू.. मैं चाट रहा हूँ आपकी चुत को.. प्लीज मुझे पुलिस में मत देना.. पुलिस बहुत मारती है.
शबनम सिगरेट का कश लेकर मुझे मूतना है मेरे कुत्ते चल मेरे साथ बाथरूम में..
गौतम - ज़ी मालकिन...
शबनम बेल्ट का पट्टा पकड़ कर गौतम को बाथरूम ले जाती है औऱ गौतम कुत्ते की तरह ही अपने हाथ पैरों पर कुत्ते की तरह चलते हुए बाथरूम में चला जाता है..
शबनम पट्टा खींचते हुए गौतम को घुटनो पर बैठाकर एक थप्पड़ औऱ जमाती हुई - मुंह खोल साले नौकर.. तेरे मुंह में मूतेगी आज तेरी मालकिन..
गौतम मुंह खोलकर - लीजिये मालकिन..
शबनम एक हाथ से सिगरेट के कश लेकर दूसरे हाथ से गौतम के बाल पकड़कर उसके मुंह में मूतती हुई - पी साले कुत्ते.. गरीब.. तू मेरा मूत पिने लायक़ ही है..

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गौतम शबनम का सारा मूत पी जाता है औऱ चाट कर उसकी चुत भी साफ कर देता है..
शबनम - मुंह खोल मेरे कुत्ते.. मालकिन को थूकना है..
गौतम मुंह खोलकर - लो मालकिन थूक दो मेरे मुंह में..
शबनम गौतम के मुंह में थूक देती है फिर शबनम सिगरेट पोट में फेंककर फ्लश करती है औऱ पट्टा खींचकर वापस गौतम को कुत्ते की तरह बिस्तर पर ले आती है औऱ कहती है - आजा मेरे कुत्ते.. अपनी मालकिन के दोनों बोबो को चूस के सारा दूध निकाल दे..
गौतम शबनम के बोबे चूसता हुआ - ज़ी मालकिन.. बहुत बड़े बड़े दूदू है आपके.. आह्ह.. मालकिन आपका दूदू बहुत मीठा है.. बहुत स्वादिस्ट है..

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शबनम एक पल मुस्कुराते हुए गौतम को बेहद प्यार भरी नज़र से देखती है औऱ फिर गौतम के लंड को अपनी चुत में डाल कर कहती है - बहुत हो गई चूसाईं अब कर अपनी मालकिन की चुदाई मेरे कुत्ते..
गौतम लंड घुसते ही धमाकेदार धक्के मारना शुरू कर देता है - ज़ी मालकिन.. 161315f3171afe50f8b99db192a265e3
शबनम एकदम से सिसकती हुई - आह्ह.. कुत्ते थोड़ा धीरे.. मालकिन को धीरे चोद.. मालकिन को दर्द हो रहा है...
गौतम गले से पट्टा निकालकर - मालकिन की माँ की चुत.. साली..
शबनम कामुक सिसकियाँ लेते हुए - आहहह.. ग़ुगु थोड़ा आराम से..
गौतम मिशनरी में शबनम की चुत को कुछ देर चोदकर रुक जाता है औऱ शबनम झड़ जाती है मगर फिर भी कामुकता से भरी हुई आँखों से गौतम को देखती है और कहती है..
शबनम आहे भरती हुई - क्या हुआ ग़ुगु? करो ना..
गौतम चुत से लंड निकालकर - पोजीशन चेंज करनी है..
शबनम - बोलो ना.. क्या बनु? कुतिया या घोड़ी?
गौतम बेड से शबनम को उठाकर दिवार की तरफ मुंह करके खड़ा करते हुए पीछे से उसकी एक टांग उठाकर अपना लंड उसकी चुत में ड़ालते हुए कहता है - छिपकली...

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शबनम दोनों हाथ दिवार पर लगाकर पीछे से गौतम के झटके खाती हुई सिसकती - अहह.. ग़ुगु.. आहिस्ता थोड़ा करो ना...
गौतम कुछ देर उसी तरह चोदकर शबनम को अपनी गोद में उठकर चोदता हुआ कहता है - अंदर ही निकाल दू ना मालकिन..

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शबनम गौतम को चुमकर - जहा तुम्हारा मन हो ग़ुगु ..
गौतम शबनम चोदता हुआ बिस्तर पर पटककर शबनम की चुत में 8-10 धक्के पूरी ताकत से मारता हुआ झड़ जाता है औऱ अपना सारा माल शबनम की चुत में छोड़ देता है..
शबनम भी चीखती हुई गौतम से लिपटकर झड़ जाती है औऱ गीतम के होंठों को लगातार चूमने लगती है.. बहुत लम्बे समय तक दोनों उसी तरह से बिस्तर पर पड़े हुए एकदूसरे को चुम रहे थे..
गौतम चुम्बन तोड़कर - हैप्पी?
शबनम मुस्कुराते हुए - वैरी हैप्पी... थैंक्यू ग़ुगु भईया... औऱ सॉरी भी.. मैंने तुम्हारे इतने प्यारे चेहरे पर थप्पड़ मारा औऱ जो कुछ भी किया.. मगर तुम भी ना.. लंड घुसते ही औऱ छिपकली बनाके इतना कस के चोदा है मुझे कि क्या कहु.. बदला निकाल रहे थे ना जानू?
गौतम - बदला औऱ तुमसे? नहीं यार..
शबनम बेड से उठकर कपडे उठाकर पहनते हुए - अह्ह्ह्ह... हाय क्या हलात कर दी मेरी.. अब क्या जवाब दूंगी मालकिन को? कैसे प्यारे से दिखते हो पर बिलकुल शैतान हो शैतान.. पहली चुदाई से दस गुना ज्यादा दर्द दिया है तुमने..
गौतम बिस्तर पर लेटा हुआ - बुलाऊगा तो वापस आओगी ना..
शबनम मुस्कुराते हुए गौतम के लंड को मुंह में लेकर साफ करती हुई - बस इशारा कर देना..
शबनम कमरे से जाने लगती है तो गौतम कहता है - शबनम लाइट बंद कर देना जाते हुए..

शबनम लाइट ऑफ करके चली जाती है औऱ गौतम सुबह 10 बजे गहरी नींद में सो जाता है औऱ एक सपना देखने लगता है...
Nice update bro 👍
 

moms_bachha

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Bahut hi shandar update he moms_bachha Bro,

Gugu ne mama ke ghar par kisi ko bhi naho chhoda......

Sabki chut ka bhosda bana diya gugu ne

Keep rocking Bro
😂😂😂🙏🏿🙏🏿
Super hot erotic update 🔥 🔥
Thanks🙏🏿
Erotic update...chalo shabnam ki bhi fantacy puri ho gai...Dekhta h gugu ki ichchha kab puri hogi
Jaldi hogi❤️
Shandar kahani 👍
Bahut hi umda lekhni gjb
Wow.....
Chuto ki barish ho rahi he aage dekhte he gugu sapne me kya karta he 👌👌👌👌
👍🏿👍🏿👍🏿❤️❤️
 
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moms_bachha

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वाह भई वाह क्या गजब का गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है मजा आ गया
रेशमा के साथ फोन पर चुदाई की बातें करते हुए शबनम के साथ वही करना बडा ही जबरदस्त साथ ही साथ शबनम की मालकिन बनने की इच्छा पुरी करके उसके साथ जो चुदाई का घमासान हुआ वो बडा ही खतरनाक हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks❤️👍🏿👍🏿
 
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moms_bachha

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Update 29


रानी सा.. आपने बुलाया?
हाँ.. जयसिंह ज़ी.. गढ़ पर जाने की तैयारी कीजिये.. रुक्मा (18) की सखी कुशाला का विवाह सकुशल संपन्न हो चूका है.. तीन दिवस के भीतर ही कुशाला की विदाई भी हो जावेगी.. अब गढ़ से रुक्मा को लिवाने के लिए प्रस्थान करना उचित होगा..
जयसिंह - किन्तु रानी सा.. हुकुम का आदेश है कोई भी सैनिक जागीर छोड़कर कहीं नहीं जाए.. औऱ आप तो भली भाति जानती है आज कल खतरा कितना बढ़ चूका है? कल ही जागीर कि सीमा में पड़ने वाले तीन गाँव में हुकुम के छोटे भाई गजसिंह ने बागियों औऱ डाकुओ के साथ मिलकर लूट की है.. ऐसे में महल छोड़कर गढ़ जाना वो भी हुकुम के आदेश की अवहेलना करते हुए.. माफ़ कीजिये रानी सा.. मैं ऐसा कदापि नहीं कर सकता..
सुजाता उर्फ़ रानी माँ (44)
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सुजाता (44)- जयसिंह ज़ी.. आप हुकुम के आदेश की चिंता मत कीजिये.. मैंने उनसे बात कर ली है औऱ उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी है.. कल प्रातः आप कुम्भसिंह को साथ लेकर गढ़ के लिए निकल जाए..
जयसिंह - रानी सा.. कुम्भसिंह कि यहां ज्यादा आवश्यकता है.. हुकुम की सुरक्षा औऱ महल की रखवाली कुम्भसिंह की ही जिम्मेदारी है.. मैं किसी औऱ सैनिक को अपने साथ ले जाऊँगा..
सुजाता - ठीक है जयसिंह ज़ी.. आप समर को भी अपने साथ ले जाइये.. वैसे भी उस जैसे कुशल योद्धा को महल के जनाना हिस्से की रक्षा मात्र तक सिमित रखना सही नहीं है..
जयसिंह - जैसी आपकी इच्छा रानी सा.. अनुभव में भले ही समर कुम्भसिंह से कमतर हो किन्तु युद्ध कौशल में समर बेजोड़ है.. मैं कल सुबह सूरज की पहली किरण निकलने से साथ गढ़ के लिए प्रस्थान कर दूंगा औऱ कुमारी रुक्मा को गढ़ से वापस महल ले आऊंगा..
सुजाता - सावधान रहिएगा जयसिंह ज़ी.. गजसिंह कपटी औऱ धूर्त है...
जयसिंह - रानी सा.. आप निश्चिन्त रहिये.. मैं राजकुमारी को पहाड़ी की तल्हाटी से गुजरे वाले गुप्त रास्ते से शीघ्र ही वापस ले लाऊंगा..
समर पास ही खड़ा हुआ जयसिंह औऱ सुजाता की बात सुन रहा था..

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लता उर्फ़ लीलावती (40)
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इतनी सुबह कहां निकालना है समर?
माँ.. रानी मां का आदेश है आज जयसिंह ज़ी के साथ गढ़ प्रस्थान करना है राजकुमारी रुकमा को गढ़ से वापस लीवाना है..
लता (40) - पर उसके लिए तो सकुशल योद्धा और अनुभवी योद्धाओं की अलग टुकड़ी जाती है रानी ने तुझे क्यों इस काम के लिए नियुक्त किया है..
समर (20) - वो तो मुझे नहीं पता माँ... आप तो जानती हैं रानी मां ने जागीरदार के हाथों मुझे मरने से बचाया है, उनका कहा तो मानना ही पड़ेगा..
लता - तेरी बात बिल्कुल सही है समर, पर महल से गढ़ और गढ़ से वापस महल आने में बहुत खतरा है.. रामप्यारी बता रही थी कि अभी कुछ दिनों पहले ही उसके गांव में बागी औऱ डाकुओं ने लूट की है.. ऐसे में तेरा गढ़ जाना मुझे तो बहुत चिंता हो रही है..
समर - रामप्यारी जो कह रही थी वह सत्य है मां.. गजसिंह डाकुओं के साथ मिल चुका है और अब वही जागीर के गांव में लूटपाट मचा रहा है..
लता डर से काँपते हुए - गजसिंह?
समर अपनी माँ लता को बाहों में थामकर गले लगाते हुए - आप चिंता मत करो माँ.. मुझे कुछ नहीं होगा.. इस बार अगर गजसिंह सामने आया तो मैं उसका सर अपनी तलवार से काट लूंगा औऱ आपके सामने लाकर रख दूंगा.. वैसे भी जब तक मैं आपके अपमान का बदला और पिताजी की मौत का बदला नहीं ले लेता मुझे चैन नहीं मिलने वाला..
लता - समर तू ऐसा कुछ नहीं करेगा.. तु मुझसे वादा कर कि तू गजसिंह और उसके साथियों से दूर रहेगा और अपना बदला लेने का संकल्प मन से निकाल देगा.. जो कुछ हुआ उसे भूल जायेगा औऱ कभी उस गजसिंह औऱ उसके साथियो के पास नहीं जाएगा..
समर - जो कुछ हुआ उसे आप भूल सकती है माँ.. मगर मैं उसे नहीं भूल सकता.. मुझे आज भी याद है जब उस रात जगसिंह ने मुझे बाहर बाँध कर यहां भीतर आपके साथ गलत काम किया था.. वह सब आज भी मेरी आंखों के सामने घूमता है माँ.. मैं आज भी रातों में उस पापी को याद करके चैन से सो नहीं पाता और हर बार यही सोचता हूं कि कैसे मैं उससे आपके अपमान का और पिताजी की मौत का बदला लूंगा..
लता - मैं तेरे पिताजी को खो चुकी हूं समर.. अब मैं तुझे नहीं खोना चाहती.. गजसिंह बहुत खतरनाक है और अब तो उसके साथ सुना है डाकुओं की टोली भी जुड़ गई है.. उसकी ताकत बढ़ती जा रही है ऐसे में तू अगर उसके पास जाएगा तो निश्चित ही वह तुझे मार डालेगा.. मैं तुझे नहीं खोना चाहती तुम मुझसे वादा कर कि तू ऐसा कुछ नहीं करेगा.. राजकुमारी को लिवाने के बाद तू सीधा वापस आएगा.. गजसिंह से बदला लेने का संकल्प त्याग देगा..
समर - कैसे मैं अपना संकल्प त्याग दूंगा माँ.. उस रात मेरे हाथ पांव रस्सीयो से बांधकर उसने इसी कमरे में आपको निर्वस्त्र किया था औऱ इसी जगह आपके साथ गलत काम किया था.. मैं कितना चीख और चिल्ला रहा था और उस दानव से आपको छोड़ने की कितनी विनती कर रहा था मगर मेरे आंसू औऱ चीख पुकार का उसपर कोई असर नहीं हुआ.. मैं उसे नहीं छोड़ने वाला माँ.. उसके कई लोगों को मैंने मौत के घाट उतारा है उसी तरह उसे भी उतार दूंगा..

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लता समर के चेहरे को अपने हाथो से पकड़कर - उस बात को 4 साल हो चुके हैं बेटा.. वह सब बातें अपने मन से निकाल दे.. आगे दुश्मनी रखने से किसी का भला नहीं होगा.. तेरे पिता ने गजसिंह से दुश्मनी की उसके कारण ही हमें वो सब झेलना पड़ा.. अब तू इसे आगे मत बढ़ा..
समर - धोखे से पिताजी को मारकर और मेरे सामने आपका मान सम्मान सब कुछ उतार कर, आपके साथ जबरन अपनी हवस मिटाकर वो गजसिंह अब तक बेखौफ घूम रहा औऱ आप कह रही है मैं अपना बदला भूल जाऊ? यह नहीं हो सकता माँ.. मैं अपने साथ हुई हर चीज भूल सकता हूं मगर आपके साथ और पिताजी के साथ गजसिंह ने जो किया उसे नहीं भूल सकता..
लता - तेरे सिवा मेरा है ही कौन जिसे मैं यह बात समझाऊं.. कई बार सबकुछ भूल जाने में ही सबकी भलाई होती है बेटा.. छोड़ दे ये हठ.. तू साधारण रास्ते से जाएगा औऱ वहा गजसिंह औऱ उसके साथी डाकुओ के साथ मिलके तुम पर हमला कर देंगे.. मेरा क्या होगा..
समर - मैंने आपका दूध पिया है माँ और आपके दूध का ऋण मैं जरूर चुका के रहूँगा.. मैं सब कुछ भूल जाने का वादा तो नहीं करता.. मगर यह वादा जरूर करता हूँ कि मैं गजसिंह का सर आपके कदमो में लाकर जरूर रख दूंगा.. हम साधारण रास्ते से जाएंगे जरूर पर आना हमारा गुप्त रास्ते से होगा.. जो पहाड़ की तल्हाटी से गुजरता है.. जाने की आज्ञा दीजिये..
समर ये कहते हुए लता के पैरों में झुक गया औऱ अपना सर लेता के पैरों में रखकर आशीर्वाद लेने लगा..
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लता समर को उठाकर अपनी छाती से लगा लेती है औऱ कहती है - जल्द लौटना बेटा.. मैं तेरी प्रतीक्षा करुँगी..
समर अपनी मां से आशीर्वाद लेकर वहां से चला जाता है और जयसिंह के साथ राजकुमारी रुकमा को लीवाने के लिए गढ़ की और प्रस्थान करता है..

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रुक्मा उर्फ़ राजकुमारी (18) सुजाता औऱ वीरेंद्र की बेटी
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अरे अरे ऐसे क्यों चेहरा उदास किया है मेरी सखी ने? अब तो सब तुम्हे राजकुमारी नहीं, रानी कहकर पुकारेंगे.. अजमेर से भी बड़ी रियासत में विवाह हुआ है तुम्हारा.. सुना बहुत सुन्दर स्थान है जहा तुम जाने वाली हो..
क्या तुम भी सबकी तरह मुझे छेड़ने लगी.. रुक्मा.. अब क्या विदाई से पहले के कुछ मैं अपने अतीत के उन लुभावने पलों को याद भी नहीं कर सकती जिन्हे मैंने यहां बिताये है? मैं उदास नहीं हूँ रुक्मा बस निराश हूँ कि आगे का जीवन मैं यहां से कहीं दूर बताने वाली हूँ..
रुक्मा (18) - विवाह का नियम तो औरत के त्याग का परिचायक है कुशाला.. हर औरत को इस डगर से निकलना पड़ता है.. माँ कहती है कि औरत का मन औऱ ह्रदय धरती की तरह शांत औऱ सहनशील होता है अहिंसा, स्नेह, बलिदान, सहजता औऱ संवेदना ही औरत को औरत बनाती है.. काम, क्रोध, क्रूरता, कपट, हिंसा औऱ असंवेदना पुरुषो में होती है.. औरत का उससे कोई नाता नहीं.. तुम जल्द ही नए बदलाव में ढल जाओगी औऱ अब की बातें तब तुम्हे हसने वाली प्रतीत होगी.
कुशाला (19) - तुम तो बड़ी सयानी बात करने लगी हो रुक्मा.. पता ही नहीं चला हम कब छोटे से बड़े हो गए..
रुक्मा - कुशाला अब उठो औऱ चलो विदाई का समय हुआ जा रहा है..
कुशाला - विदाई तो आज तुम्हारी भी है रुक्मा..
रुक्मा - मैं समझी नहीं कुशाला..
कुशाला - माँ ने बताया है कि तुम्हे लिवाने के लिए जागीर से जयसिंह काका आये है..
रुक्मा - इसका अर्थ है कि आज आप यहां से अपने ससुराल जायेंगी औऱ मैं वापस अपने माता पिता के पास..
कुशाला - सही कहा सखी..
रुक्मा कुशाला से गले मिलते हुए - जीवन के ये अठरा वर्ष जो हमने हंस खेलकर एकदूसरे से रूठकर औऱ एकदूसरे को मनाकर बिताये है वो हमेशा याद रहेंगे सखी..
कुशाला - सही कह रही हो सखी.. किन्तु मैं खत लिखूँगी.. औऱ अगली बार जब हम मिलेंगे तब मेरे हाथों कि मेहंदी तुम्हारे हाथों में होनी चाहिए.. मैं भी अब तुम्हारे विवाह मैं तुमसे मिलूंगी..
रुक्मा औऱ कुशाला दोनों सखियों की आँखों में आंसू थे औऱ दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में कसके पकड़ा हुआ था जो ये बता रहा कि जैसे दोनों को ही अब ये चिंता हो की आगे वो अब कहा औऱ कैसे मिलेंगे.. मिल भी पाएंगे या नहीं.. नियति ने आगे उनके लिए क्या तय किया है.. दोनों की विदाई आज तय थी औऱ दोनों ही इस जगह को नहीं छोड़ना चाहती थी ना ही एकदूसरे को नहीं छोड़ना चाहती थी.. मगर जो होना है सो होकर ही रहता है.. कुशाला बरात के संग अपने ससुराल तो रुक्मा जयसिंह के साथ जागीर की तरफ जाने के लिए मुड़ गई..

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गढ़ से जागीर तक वापसी का दो दिन का ये सफर शुरू हो चूका था औऱ रुक्मा घोड़ागाडी मैं बैठी हुई अपनी सखी कुशाला को याद कर रही थी औऱ उसके साथ बिताये उन पलों को याद कर रही थी जिसमे दोनों बचपन से खेलकर बड़ी हुई थी.. दो दिनो के सफर में आधे दिन का सफर ख़त्म हो चूका था औऱ रास्ते में एक बड़े से बड़ के पेड़ के नीचे जयसिंह ने कुछ देर घोड़ो को सुस्ताने के लिए अपना काफ़िला रोका औऱ रुक्मा को इसकी खबर करके खुद भी पेड़ के नीचे बैठकर साथ लाया हुआ भोजन खाने लगा.

सभी लोग खाना खाने में व्यस्त थे पर समर का ध्यान खाने में नहीं था वो कई दिनों से बस उस परछाई के बारे में ही सोच रहा था जिसे उसने बैरागी से निकलते औऱ उसीमें लीन होते देखा था..
रुक्मा घोड़ा गाडी से नीचे उतर चुकी थी औऱ अपने साथ अपनी दासीयों को लेकर बड़ के पेड़ के पीछे जाकर थोड़ा ठहलने लगी. रुक्मा जयसिंह की आँखों के सामने ही थी इसलिए उसने रुक्मा को वहा टहलने से नहीं रोका औऱ खाना खाते हुए अपने बाकी सैनिको के साथ बात करने लगा.. समर आधा अधूरा खाने के बाद उठ गया था औऱ उसने अपने हाथ पानी से धोकर वापस अपनी तलवार हाथ में पकड़ ली थी औऱ वही पर इधर उधर मंडराने लगा था..
रुक्मा औऱ उसकी दासिया हंस बोल कर इधरउधर टहल रहे थे की उन्हें सामने से खूंखार भेड़िया भागता हुआ उन्ही की तरफ आता हुआ दिखाई दिया औऱ एक साथ रुक्मा औऱ उसकी दासिया चिल्लाते हुए वापस बड़ के पड़ की तरफ भागने लगी. जयसिंह औऱ बाकी सैनिक उठकर अपनी अपनी तलवार संभालते हुए रुक्मा की तरफ दौड़े लेकिन वो लोग बहुत दूर थे.. भेड़िया रुक्मा औऱ उसकी दासियों पर झपटा मारने ही वाला था कि समर ने वहा आकर एन मोके पर अपनी तलवार के एक वार से उस भेड़िये के दो टुकड़े कर दिए औऱ भेड़िये को मार डाला..
जयसिंह ने समर को ऐसा करते देखकर अपनी सांस में सांस ली औऱ रुक्मा को वापस घोड़ा गाडी में बैठाकर आगे का रास्ता शुरू कर दिया..

रुक्मा औऱ उसकी दासिया इस हादसे से कुछ देर के लिए सहम गई थी मगर समर की बहादुरी औऱ उसके रूप पर मोहित होकर रुक्मा ने समर को उसी वक़्त अपने ह्रदय में प्रेमी का स्थान दे दिया था.. घोड़ागाडी मैं बैठी रुक्मा दासीयों से बात करने लगी थी औऱ उससे समर के बारे में पूछने लगी थी..
रुक्मा - ये क्या कह रही हो सुधा? मैं तो बस यूँही पूछ रही थी..
सुधा(दासी 21) - मैंने कई साल आपके साथ बिताये है राजकुमारी.. मैं आपका मन अच्छे से पढ़ सकती हूँ.. जिस पल उस योद्धा ने आपकी औऱ हम दोनों बहिनों की जान बच्चाई उसी वक़्त आपने उस योद्धा को अपने मन में उतार लिया था.. क्यों लीला..
लीला (दासी 22) - सही कहा सुधा.. राजकुमारी को जब से उस योद्धा ने भेड़िये के वार से बचाया है राजकुमारी की आँखे बस उसी योद्धा पर टिकी है.. मगर याद रहे राजकुमारी.. आप जागीरदार की पुत्री हो एक साधारण योद्धा से प्रेम करना आपके लिए उचित नहीं.. आपके प्रेम को जागीरदार कभी स्वीकृति नहीं देंगे..
रुक्मा - तुम दोनों क्या बेतुकी बातें कर रही हो.. ऐसा कुछ नहीं है.. मैंने बस ऐसे ही उसका नाम पूछा था.. नहीं बताना तो मत बताओ..
सुधा - राजकुमारी हमें भी उतना ही पता है उस योद्धा के बारे में जितना आप जानती हो.. मगर आप निश्चिन्त रहिये आगे जैसे ही गढ़ की सीमा पर कुए से पानी लेने के लिए कुछ देर हम रुकेंगे मैं उस योद्धा के बारे में सब सुचना जुटा कर ले आउंगी..
रुक्मा मुस्कुराती हुई परदे से बाहर समर को देखने लगती है जो आगे घोड़े पर सवार था..

गढ़ की सीमा पर से काफिला औऱ घोड़ा गाडी रुकी और पानी लेने के लिए कुछ लोग कुए की बढे.. सुधा घोड़ागाडी से उतर गई औऱ एक सैनिक के पास जाकर कुछ देर बात करके वापस आ गई सभी लोग वापस आगे के लिए बढ़ने लगे..
रुक्मा - कुछ पता चला सुधा?
लीला - देखा सुधा.. कुछ समय पहले तक तो राजकुमारी कह रही थी कि ऐसा कुछ नहीं है मगर अब कितनी उत्सुकता से उस योद्धा के बारे में जानने के लिए लालायित है.. इसे अब प्रेम ना कहा जाए तो क्या कह कर पुकारा जाए?
सुधा मुस्कुराते हुए - अब जान बचाने वाले के बारे में जानना प्रेम थोड़े हुआ लीला.. राजकुमारी ज़ी तो बस यूँही उस योद्धा के बारे में जानना चाहती है.. उस योद्धा से प्रेम थोड़ी हुआ है राजकुमारी ज़ी को.. सही कहा ना राजकुमारी ज़ी.
रुक्मा - मैं अच्छे से समझ रही हूँ जो खेल तुम दोनों बहिने मिलकर मेरे साथ खेल रही हो.. लौटने दो वापस पिताज़ी से कहकर खूब खबर लुंगी तुम्हारी..
सुधा औऱ लीला - अरे नहीं नहीं.. राजकुमारी..
लीला - राजकुमारी हम तो बस यूँही हंसी ठिठोली कर रहे थे आपके साथ..
सुधा - ज़ी राजकुमारी.. आप पूछिए जो आपको पूछना है.. मैंने सबकुछ पता लगा लिया है उस योद्धा के बारे में..
रुक्मा जिज्ञासा से - तो बताओ जो पूछा था मैंने.. नाम?
सुधा - समर सिंह.
रुक्मा - समर... रुक्मा सुधा को अधीरता से देखती हुई.. औऱ?
सुधा - कुछ दिनों पहले तक कोषागृह का पहरेदार था.. हुकुम के मेहमान का अपमान किया था.. हुकुम ने मौत का फरमान सुनाया था औऱ उस मेहमान से समर को मारकर अपने अपमान का प्रतिशोध लेने को कहा मगर मेहमान की दया औऱ रानी की कृपा से बच गया.. रानी ने जनाना महल का पहरेदार बनाया था मगर इस बार जयसिंह के साथ आपको लिवाने भेज दिया..
रुक्मा - घर-परिवार के बारे में?
सुधा - राजकुमारी ज़ी.. पिता भी राजाजी की सेना में थे मगर उस गजसिंह औऱ उसके साथियो ने धुपसिंह को मार डाला.. घर में बस उसकी माँ है.. एकलौता है.. औऱ कोई नहीं.. मगर एक भ्रान्ति है, पता नहीं इसमें कितना सच है औऱ कितना झूठ.
रुक्मा - कैसी भ्रान्ति?
सुधा - भ्रान्ति ये है राजकुमारी ज़ी कि समर के जन्म के वक़्त लल्ली ताई औऱ शान्ति धुपसिंह के घर पहुंची थी मगर उसके कुछ देर बाद शान्ति अकेले किसी बच्चे को लेकर जंगल की औऱ जाती हुई गाँव के एक बुजुर्ग को दिखाई दी थी.. लोग कहते थे वो बुढ़ा मंदबुद्धि था.. मगर वो बुढ़ा कहता था की उसने सच में शांति को बच्चा लेकर जंगल में जाते हुए देखा था औऱ उस दिन लता ने एक नहीं बल्कि दो बच्चों को जन्म दिया था.. कुछ सालों बाद वो मर गया, उसके कुछ सालों बाद लल्ली ताई भी चल बसी.. अब सिर्फ शान्ति बच्ची है जो बूढ़े को मंदिबुद्धि कहकर ही इस भ्रान्ति को खारिज कर देती है..
रुक्मा - समर इस बारे में क्या कहता है..
सुधा - उसे तो फर्क ही नहीं पड़ता राजकुमारी ज़ी.. वो शान्ति की बात को सही मानकर उस बूढ़े को गलत समझता है...
लीला - रात होने वाली है राजकुमार ज़ी.. लगता है जयसिंह ज़ी ने चाल धीरे करने को कहा है.. आसपास ही अब रात के विश्राम हेतु रुका जाएगा..
रुक्मा - तुमने सही कहा लीला..


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समर से राजकुमारी रुकमा को वापस लीवाने की सूचना पाकर लता घर से निकल पड़ती है और जंगल के छोटे-मोटे रास्तों से होती हुई एक सुनसान जगह पहुंचती है जहां कई लोगों ने डेरा डाला हुआ था..
लता उसके पास पहुंचकर पहरेदारी कर रहे एक आदमी से कहती है..
लेता - सरदार से मिलना है.. औऱ इतना कहकर लता अपने घाघरे को ऊंचा करके अपनी गांड पर एक निशान पहरेदार को दिखाती है..
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पहरेदार लता की गांड पर निशान देखकर उसे अपने पीछे पीछे एक गुफा की तरफ ले आता है औऱ बाहर खड़ा होकर कहता है..
पहरेदार - सरदार.. आपकी एक रखैल आपसे मिलने आई है..
गुफा के अंदर गजसिंह किसी वैश्या से अपना लोडा चुसवा रहा था.. औऱ लोडा चुसवाते चुसवाते ही गजसिंह ने पहरेदार से रखैल को अंदर भेजने को कहा..
लेता पर्दा हटाकर गुफा में आगई औऱ वापस पर्दा लगाकर गजसिंह के सामने खड़ी होकर अपने हाथ जोड़कर गजसिंह से बोली..
लता - छोटे हुकुम..
गजसिंह ने अपना लंड चूस रही लड़की को वहा से जाने का इशारा किया औऱ लता से करीब आने का इशारा किया.. लता गजसिंह का इशारा समझ कर उसके करीब आ गयी औऱ उसी जगह बैठ गई जहा लड़की बैठी थी..
गजसिंह अपने करीब रखे मदिरा के प्याले को उठाकर मदिरा पीते हुए - क्या बात है लीलावती.. तू अपने छोटे हुकुम को भूल ही गई.. कितने समय बाद आई है..
लता उर्फ़ लीलावती - आपको कैसे भूल सकती हूँ छोटे हुकुम.. आपने ही तो इस वैश्या को वैश्यालय से निकालकर अपने साथ रखा है.. मेरा नाम लीलावती से लता करके मेरा विवाह धुपसिंह से करवाया ताकि मैं आपको जागीर से जुडी हुई गुप्त सुचना दे सकूँ औऱ आप अपने भाई वीरेंद्र सिंह को हराकर जागीरदार बन सके.. मेरी जैसी कितनी वैश्या को आपने नई जिंदगी दी है छोटे हुकुम.. ये कहकर लता गजसिंह का लोडा मुंह में भरके चूसने लगती है..

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गजसिंह बाल पकड़ कर लंड चुसवाते हुए - समर का क्रोध शांत किया तूने या नहीं.. पिछली बार भी मेरे 4 साथियो को उसने मौत के घाट उतार दिया.. सिर्फ तेरे कहने पर मैंने उसे अब तक जीवित छोड़ा है..
लता मुंह से लंड निकालकर - उसकी रगो में आपका ही खून है छोटे हुकुम.. इतनी आसानी से कैसे ठंडा हो जाएगा.. अब तक उस रात जो हुआ उसे याद करके क्रोध से भर जाता है.. मैंने आपसे कहा था छोटे हुकुम मैं आपके पास जंगल में आ जाउंगी आप यहां कुछमत कीजिये.. मगर आप धुपसिंह से इतने क्रोधित थे कि आपने तो समर के सामने मेरे ही ऊपर चढ़ाई करके मेरे साथ अपनी हवस मिटाइ.. बेचारा अपनी माँ के साथ जो कुछ हुआ उसे नहीं भूल पाया है..
गजसिंह - धुपसिंह ने आखिरी मोके पर मुझे वीरेंद्र को मारकर जागीरदार बनने से रोक दिया था लीलावती.. मैं उस आग में जल रहा था.. मुझे औऱ कुछ नहीं सूझ रहा था.. मैं अपने हाथों से धुपसिंह को मारना चाहता था.. मगर तूने मुझसे वो मौका भी छीन लिया..
लता - मैं क्या करती छोटे हुकुम.. धुप सिंह को मेरे बारे में सब सच पता चल गया था औऱ वो मुझे मारने के लिए हाथों में तलवार उठाने ही वाला था.. मैं अगर उस कटार से धुपसिंह को नहीं मारती तो वो मुझे मार देता.. फिर मैं आपके किसी काम की नहीं रहती.. ना ही आपको कोई औऱ सुचना दे पाती..
गजसिंह लता के बाल पकड़कर - तो बता लीलावती.. इस बार क्या गुप्त सुचना लेकर आई है तू? या फिर इस बार भी मेरे साथ बस रात बिताकर मुझे खुश करने के लिए आई है?
लता मुस्कुराते हुए - सुचना तो बहुत गुप्त है छोटे हुकुम.. मगर पहले आपको मुझसे एक वादा करना होगा..
गजसिंह - केसा वादा लीलावती..
लता (लीलावती) - आप समर को कुछ नहीं करेंगे.. औऱ उसके प्राण बक्श देंगे..
गजसिंह - ये वादा मैंने पहले भी तुझसे किया है औऱ वापस करता हूँ लीलावती.. तू जानती है गजसिंह अपने वादे का कितना पक्का है.. अब बता क्या गुप्त सुचना है..
लता (लीलावती) - जागीरदार ने राजकुमारी रुक्मा को गढ़ से लिवाने के लिए एक 40 सैनिको की टुकड़ी भेजी है..
जागीरदार - इतना तो मुझे मेरा पहरेदार भी बता सकता है लीलावती.. कुछ औऱ बताना हो तो कहो..
लता (लीलावती) - मगर हर बार आप नाकाम रहे है छोटे हुकुम.. इस बार मुझे उनके वापसी के रास्ते का भी पता है..
गजसिंह - इतनी गोपनीय सुचना तुझे कैसे मिली लीलावती..
लता (लीलावती) - छोटे हुकुम.. समर ने जाने से पहले मुझसे बात कर रहा था.. मैंने बातों बातों में उससे ये सुचना उगलवा ली.. वो लोग वापसी में पहाड़ी की तल्हाटी वाले रास्ते से आएंगे.. छोटे हुकुम आप राजकुमारी को वहा से अगुवा कर वीरेंद्र सिंह से जागीरदारी छीन सकते है.. राजकुमारी को अगुवा कर आप सभी सैनिको को ख़त्म कर सकते है किन्तु समर को जीवित जाने देंगे..
गजसिंह लता के चुचे पकड़कर अपनी तरफ खींचते हुए - वाह.. लीलावती आज तूने सिद्ध कर दिया कि तू मेरी असली रखैल है.. जब मैं जागीरदार बन जाऊँगा तब तुझे महल में साथ रखूँगा..
लता - आराम से छोटे हुकुम.. चोली फट जायेगी..
गजसिंह चोली फाड़कर उसका घाघरा खोल देता है औऱ लता को नंगा करके अपने नीचे लेटा कर उसकी चुत में अपना लोडा डालकर लता को चोदने लगता है..

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गजसिंह - लीलावती तेरी योनि तो आज बहुत मज़ा दे रही है मुझे..
लता (लीलावती) - छोटे हुकुम.. आठ माह हो गया.. पिछली बार भी आपने ही मुझे अपने नीचे लेटाया था.. तब से अब तक किसीने मेरे साथ कुछ नहीं किया..
गजसिंह लता को पीठ के बल लेटाते हुए - लीलावती तू अब वैश्या नहीं लगती.. ऐसा लगता है सच में किसी घर कि घरेलु औरत है..
लता (लीलावती) - ये आपका बड़प्पन है छोटे हुकुम.. मुझे वैश्या को इतना सम्मान देने के लिए..
गजसिंह पैर फैलाकर लता को चोदते हुए - समर को समझा लीलावती.. अपनी हठ छोड़ दे.. मैं बार बार उसके प्राण नहीं बक्शऊँगा.. उसने अब तक मेरे 26 आदमी मार दिए औऱ मैं बस तेरे कारण हर बार उसे माफ़ कर देता हूँ..

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लता (लीलावती) - छोटे हुकुम.. समर मुझ वैश्या की कोख से पैदा हुआ है तो क्या हुआ.. है तो आपका अपना खून.. आपने एक बेटे के सामने उसकी माँ का चीरहरण किया था.. वो कैसे ये सब भूल जाएगा.. पर छोटे हुकुम मैं आपसे वादा करती हूँ.. मैं जल्द ही समर को लेके यहां से दूर चली जाउंगी.. औऱ जब आप जागीरदार बन जाएंगे तब समर को किसी भी तरह समझाकर मना लुंगी..
गजसिंह लता को घोड़ी बनाकर चोदता हुआ - ठीक है लीलावती.. इस बार मैं नहीं चुकने वाला.. वीरेंद्र से जागीरदारी छीनकर ही रहूँगा..

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गजसिंह लता को चोदकर उसकी चुत से लोडा निकालकर उसके बदन पर अपना माल झाड़ते हुए गुफा से बाहर आ गया औऱ लता अपनी फ़टी हुई चोली औऱ घाघरा पहन कर रात के अँधेरे में छुपते छुपाते अपने घर वापस आ गई..

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वीरेंद्र सिंह - आओ बैरागी.. इतनी सुबह बुलवा लिया तुम्हे.. तुम्हारी नींद में विघ्न पड़ा होगा..
बैरागी - मुझे रातों में नींद नहीं आती हुकुम.. मैं तो बस अपने प्रियतम से ही बात करके अपनी राते गुज़ारता हूँ.. कहिये आपने जिस उद्देश्य से मुझे बुलवाया है उसका क्या प्रयोजन है? मैं आपके क्या काम आ सकता हूँ?
वीरेंद्र सिंह - तुम अच्छे से जानते हो बैरागी मैं तुमसे क्या चाहता हूँ.. फिर भी तुम मुझसे पूछ रहे हो तो मैं वापस तुम्हे बता दू.. मेरे डर औऱ चिंता को दूर करो बैरागी..
बैरागी - मैंने आपसे पहले भी कहा था हुकुम.. आपका डर केवल आपके मन की उपज मात्र है जिसे आप स्वम ही ठीक जर सकते है..
वीरेंद्र सिंह - अगर मेरे बस में होता तो मैं कई सालों से इस तरह बावरा बनकर अपना उपचार नहीं कर रहा होता बैरागी.. तुम कोई ना कोई उपाय तो जरूर जानते होंगे.. मुझे तुम्हारी क़ाबिलियत का अनुमान है.. तुम बस मुझे मेरा उपचार बताना नहीं चाहते..
बैरागी - ऐसा नहीं है हुकुम.. प्रकृति ने सब बहुत सोच समझ कर बनाया है.. उसके नियम हमारे नियमो से बहुत ऊपर है.. उसके साथ हेरफेर करना प्रकृति की संरचना को ललकारने जैसा है.. इसमें किसी का हित नहीं है हुकुम..
वीरेंद्र सिंह - बैरागी मुझे उपदेश नहीं उपचार चाहिए.. मैं तुम्हे जो भी चाहिए दे सकता हूँ.. हर वो पौधा जो इस जमीन पर वरदान बनकर उगा है, भले ही किसी किस्म का हो मेरे पास उपलब्ध है..
बैरागी - इस जमीन पर उगने वाली औषधि का समस्त भण्डार आपके पास होना.. ये तो बहुत विचित्र बात है हुकुम..
वीरेंद्र सिंह -चलो बैरागी मैं तुम्हे महल का वो हिस्सा दिखाता हूँ जो सिर्फ मेरे लिए ही सिमित है.. औऱ तुम्हारा संशय अभी दूर किये देता है..
बैरागी - अगर ऐसा है तो मैं भी आपके साथ उस हिस्से को देखने के लिए उत्सुक हूँ हुकुम..
वीरेंद्र सिंह बैरागी को अपने साथ महल के बीच एक हिस्से में ले आते है जहा किसी को आने की अनुमति नहीं थी औऱ एक बड़े से जमीनी हिस्से पर उगे हुए पौधे औऱ जड़ो को दिखाता हुआ बैरागी से कहता है..
वीरेंद्र सिंह - लो बैरागी.. देख लो अपनी आँखों से.. यहां 5 सो से ज्यादा अलग अलग किस्म के पौधे है जो किसी ना उपचार में काम आते है.. सबकी अपनी पहचान है.. मैं तो कुछ पौधों के बारे में ही जान पाया हूँ अभी तक..
बैरागी - राजा महाराजा जागीरदार ठिकानेदार सब धन दौलत सम्पति अर्जित करते है औऱ उन्हें पहरे में रखते है.. पर आपने तो इन पौधों को पहरे में रखा हुआ है..
वीरेंद्र सिंह - धन से ज्यादा जरुरी देह होती है बैरागी.. तुझे जिस किसी औषधि औऱ पौधे की जरुरत है तू यहां से ले जा सकता है मगर मेरा भय ख़त्म होने के पश्चात..
बैरागी - आपका भय मृत्यु से जन्मा है हुकुम...
वीरेंद्र सिंह - तो कुछ ऐसा प्रबंध कर कि मेरी मृत्यु कभी हो ही ना बैरागी..
बैरागी - धरती पर अमर तो ईश्वर भी नहीं रहे हुकुम.. उन्होंने भी प्रकृति के नियम नहीं बदले..
वीरेंद्र सिंह - जो ईश्वर नहीं कर पाए उसे मैं करना चाहता हूँ बैरागी.. मैं मरना नहीं चाहता.. हमेशा अमर रहना चाहता हूँ.. अगर तू मेरी मदद कर दे तो.. मैं इस जगह को तुझे सौंप दूंगा.. फिर तू इन पौधों औऱ औषधियौ से किसी भी उपचार की दवा बनाकर अपने उद्देश्य में सफलता पास सकता है..
बैरागी उस जगह उगे हुए पौधे औऱ औषधियों को देखकर - ठीक है हुकुम.. अगर आपकी यही शर्त है तो मुझे मंज़ूर है.. मैंने जो कुछ भी सीखा औऱ पाया है उससे मैं आपका ये भय दूर कर दूंगा..
वीरेंद्र सिंह मुस्कुराते हुए - अब तुमने मेरे ह्रदय को जितने वाले मधुर शब्द बोले है बैरागी.. आज से ये जगह तुम्हारी.. तुम्हे जो कुछ चाहिए पहरेदार लाकर देगा.. बस जल्दी से मुझे अमर कर दो..
बैरागी उस जगह पर घूमते हुए - सवान की पहली बारिश जब दूर पश्चिम की रेतीली जमीन पर गिरती है तो उस रेतीली जमीन से एक अलग किस्म की पिली खरपतवार निकलती है. जिसकी जड़ में सफ़ेद दानेदार बेल भी लगती है.. अगर वो बेल उगने के 3 दिवस में मुझे मिल जाए तो मैं आपको अपके जीवन से 11 गुनाह लम्बे समय तक जीवित रख सकता हूँ..
वीरेंद्र सिंह - सावन की पहली बारिश तो कभी भी बरस सकती है बैरागी.
बैरागी - फिर तो आपको देर नहीं करनी चाहिए हुकुम.. इस वक़्त पश्चिम के लिए किसी सैनिक को भेजना चाहिए..
वीरेंद्र सिंह उस जगह से बाहर जाते हुए - मैं अभी कुछ सैनिकों को इस काम के लिए भेजता हूँ वैरागी..

***********

कुछ देर बाद जागीर की सीमा पर पहुंचकर जयसिंह के इशारे पर सभी लोग पहाड़ी की तल्हाटी में एक समतल जगह देखकर घोड़ा गाडी औऱ बाकी की बैलगाड़ी रोक देते है औऱ घुड़सवार सैनिक भी घोड़े से नीचे उतर कर अपना घोड़ा खुटा गाड के बाँध देते है समर भी यही करता है.. सभी साथ लाये भोजन को ही खाने लगते है.. रुक्मा भी भोजन करने लगती है औऱ उसकी दोनों दासिया भी रुक्मा के कहने पर उसीके साथ बैठकर भोजन करती है..
खाना खाने के बाद लगभग आधे लोग पहरेदारी के लिए तैनात हो जाते है बाकी के आधे आराम करते है..
रात आधी बीत चुकी थी औऱ अब पहरेदार बदल चुके थे जो लोग अब तक आराम कर रहे थे वो लोग अब पहरेदारी करने लगे थे औऱ जो अब तक पहरेदारी कर रहे थे वो लोग आराम के लिए लेट गए थे..

समर खाना खाने के बाद लगातार एक पत्थर पर जलती हुई आग के सामने बैठकर किसी ख्याल में घूम था.. उसकी आँखों में नींद नहीं थी औऱ नींद तो रुक्मा की आँखों में भी नहीं थी.. रुक्मा अपना दिल समर पर हार चुकी थी.. रुक्मा ने दिन के हादसे के बाद से समर से अपनी नज़र नहीं हटाइ थी औऱ अब वो समर को ही देखे जा रही थी..
लाली औऱ सुधा दोनों को नींद आ चुकी थी.. आधी रात से ज्यादा का समय हो चूका था..

पहाड़ी के पीछे से गजसिंह डाकुओ के मुखिया कर्मा के साथ जयसिंह के इस काफ़िले को देख रहा था जो इस वक़्त रुका हुआ था..
कर्मा - अब किस बात की प्रतीक्षा सरदार.. मुट्ठी भर सैनिक ही तो है.. चलिए रोंध देते है इन सबको औऱ राजकुमारी का अपहरण कर लेते है.. उसके बाद तो वीरेंद्र सिंह अपने हथियार त्याग ही देगा..
गजसिंह - अभी नहीं कर्मा.. हमला सूरज की पहली किरण निकलने के साथ होगा.. इस अँधेरे में अगर कहीं रुक्मा को हानि होती है तो इस हमले का कोई मतलब नहीं रह जाएगा..
कर्मा - मगर सरदार सुबह की पहली किरण पर तो सभी सैनिक फिर से पहरे पर होंगे.. अभी आधे सैनिक नींद में है..
गजसिंह - तुझे कितने सैनिक दिखाई देते है कर्मा?
कर्मा - आग की रौशनी में देखने से लगता है लगभग 20 होंगे सरदार.. औऱ इतने ही सैनिक सोये हुए लगते है..
गजसिंह - तो क्या तुझे लगता है की हमारे 200 लोगो का मुकाबला ये 40 लोग कर सकते है?
कर्मा - वो बात नहीं है सरदार मुझे इस जयसिंह का डर है.. पिछली बार जब भिड़ंत हुई थी इसने अकेले ही मेरे बारह आदमियों को मार गिराया था.. बहुत सख्त जान है..
गजसिंह - इस जयसिंह का मुक़ाबला मुझसे होगा कर्मा.. मैं खुद जयसिंह को हराकर उसके अभिमान को परों से कुचल दूंगा.. तू अपने सभी आदमियों को समझा दे.. राजकुमारी रुक्मा औऱ उस आग के पास बैठे योद्धा समर को एक भी खरोच नही आनी चाहिए..
कर्मा - उस योद्धा को क्यों सरदार..
गजसिंह - कर्मा अभी ये तेरे जानने का समय नहीं है.. तू बस तेरे हर आदमी को ये समझा दे.. उन दोनों में से किसी को भी कुछ नहीं होना चाहिए.. औऱ सब सूरज की पहली किरण पर मेरे इशारे पर एक साथ हमला करेंगे..
कर्मा - जैसा आप कहे सरदार..
गजसिंह ने अपने बागियो औऱ कर्मा ने अपनी डाकुओ से राजकुमारी रुक्मा औऱ समर को छोड़कर सभी को जान से मार डालने का आदेश सुना दिया औऱ हमले के लिए त्यार रहने को कहा..

भोर होने में बहुत थोड़ा समय था गजसिंह का हमला होने वाला था.. समर आँख कुछ पल के लिए लगी थी जो अपने आसपास किसी के होने की आहट पाकर खुल गई थी.. समर ने देखा की राजकुमारी रुक्मा उसके समीप खड़ी हुई उसे देख रही थी..
समर झट से उठकर सर झुकाते हुए - राजकुमारी..
रुक्मा - बहुत कच्ची नींद है तुम्हारी.. राजकुमार.. रातभर इस पत्थर पर बैठकर पहरेदारी करते रहे औऱ कुछ पल आँख लगी तो मेरी आहट पर तुरंत ही नींद भी टूट गई..
समर - मैं कोई राजकुमार नहीं हूँ राजकुमारी.. बस एक साधारण सैनिक हूँ..
रुक्मा समर के थोड़ा नजदीक आकर - मुझे पता है तुम कौन हो.. मैंने तुम्हे उस नाम से बुलाया है जो मैं तुम्हे बनाना चाहती हूँ.. अब से तुम मेरे पहरेदार हो.. अब से मेरी अंतिम सांस तक मेरी रक्षा तुम्हारी जिम्मेदारी है.. मेरे प्राण बचाने के लिए आभार.. तुम्हारी बहादुरी औऱ सुंदरता मेरे मन को भा गई है..

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समर - राजकुमारी.. ये आप क्या कह रही है.. जीवनभर आपकी रक्षा मेरे जिम्मेदारी? मैं एक साधारण योद्धा हूँ.. सूर्यउदय होने वाला है.. आपको वापस जाकर अपनी दासियों के साथ बैठना चाहिए..
रुक्मा - मुझे तुमसे प्रेम हो गया है राजकुमार.. अपनी राजकुमारी की रक्षा तो अब तुम्हे ही करनी पड़ेगी..
जयसिंह - क्या हुआ राजकुमारी.. कोई गलती हो गई इस योद्धा से?
रुक्मा - नहीं.. काका.. मैं तो बस कल मेरे प्राण बचाने के लिए आभार कहने आई थी.. औऱ अपनी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध करने..
जयसिंह - आपकी रक्षा के लिए तो सभी प्रतिबद्ध है राजकुमारी.. महल तक आपको सकुशल पंहुचा कर ही हम चैन से बैठेंगे.. भोर होने वाली सूरज की पहली किरण के साथ महल की औऱ आगे बढ़ेंगे.. आप जाकर घोड़ागाड़ी मैं बैठ जाइये..
रुक्मा - जैसा आप कहे.. काका..

पहली किरण के साथ ही चारो तरफ से गजसिंह कर्मा के साथ मिलकर काफ़िले पर हमला कर देता है औऱ जयसिंह अपने सैनिको के साथ गजसिंह औऱ कर्मा के साथ उनके लोगों से मुक़ाबला करने लगता है.. समर अपनी जगह छोड़कर रुक्मा के करीब आ जाता है औऱ रुक्मा के करीब आने वाले हर सैनिक को अपनी तलवार के एक ही वार से काट कर मार डालता है..
जयसिंह के साथ 40 लोग थे औऱ गजसिंह के साथ दो सो.. मगर फिर भी मुक़ाबला कड़ा हो रहा था.. जयसिंह के 22 आदमी मर चुके थे मगर अब तक गजसिंह भी अपने 90 से ज्यादा आदमी खो चूका था.. जयसिंह ने अकेलेपन ही 30 से ज्यादा आदमियों को मार गिराया था औऱ समर भी अब तक 22 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार चूका था.. गजसिंह औऱ कर्मा का जो भी साथी रुक्मा की तरफ बढ़ता समर अपनी तलवार से उसके प्राण हरण कर लेता.. गजसिंह के कहे अनुसार उसके औऱ कर्मा के किसी भी साथी ने समर पर हमला नहीं किया जिसकी कीमत उन सबको अपनी जान देकर चुकानी पड़ी..
देखते ही देखते.. लाशों का जमघट लग गया औऱ औऱ उस स्थान पर रक्त ही रक्त बिखरा हुआ नज़र आने लगा.. आखिर में घोड़ागाड़ी में बैठी रुक्मा औऱ उसकी दासिया के अलावा जयसिंह औऱ समर ही जिन्दा बचे रह गए.. वही गजसिंह की तरफ से गजसिंह औऱ कर्मा के साथ उनके 3 औऱ साथी ज़िंदा बचे रह गए थे.. बाकी सब जमीन पर अपनी जान गवा कर पड़े हुए थे..
समर के सामने जैसे ही गजसिंह का चेहरा आया वो क्रोध से भर गया औऱ गजसिंह की तरफ भागते हुए उस पर हमला कर दिया.. गजसिंह इस हमले से बच गया लेकिन उसके दो साथी जो इस हमले को रोकने के लिए बीच में आये थे उनको जान गवाना पड़ा..
गजसिंह औऱ कर्मा अब पीछे हट गये थे औऱ मुड़कर घोड़े पर बैठकर भागने लगे..
समर का सर गजसिंह का चेहरा देखकर क्रोध औऱ बदले की अग्नि से फटा जा रहा था.. समर ने भी अपने घोड़े की लगाम खींची औऱ उस पर बैठकर गजसिंह का पीछा करने लगा..
जयसिंह भयानक रूप से घायल हो चूका था मगरफ़िर भी उसने आखिर में बचे गजसिंह के एक आखिरी साथी को मार गिराया और खुद भी उसके वार से जमीन पर गिरकर लहूलुहान हो गया..
समर गजसिंह का पीछा करते हुए पहाड़ी के दूसरी तरफ आ गया जहा से खाई शुरू होती थी. समर ने कर्मा डाकू को अपनी तलवार के एक ही वार से मार डाला.. पहाड़ी पर आगे रास्ता ख़त्म हो चूका था भागने की जगह नहीं थी.. औऱ समर अब गजसिंह के सामने खड़ा था..
गजसिंह घोड़े से उतर कर - बहुत बड़ी गलती की मैंने तुझे ज़िंदा छोड़कर.. मुझे अगर पता होता की तू आज मेरा जागीरदार बनने का सपना चकनाचूर कर देगा तो मैं पहले ही तुझे मार डालता..
समर - गलती तो तूने की गजसिंह.. मगर मुझे ज़िंदा छोड़कर नहीं बल्कि मेरे पिता को मारके औऱ मेरी माँ का अपमान करके..
गजसिंह जोर से हसते हुए - तेरा पिता? कौन तेरा पिता समर? वो धुपसिंह? अरे वो तेरा पिता नहीं था.. तेरा पिता तेरे सामने खडा है.. औऱ कोनसे अपमान की बात कर रहा है तू? तेरी माँ का अपमान? अरे उसको मैं तब से जानता हूँ जब तू इस धरती पर आया भी नहीं था.. दिल्ली के एक वैश्यालय में वैश्यवर्ती करती थी तेरी माँ.. औऱ सिर्फ तेरी माँ ही नहीं औऱ भी कई औरतों को मैंने उस वैश्यालय से खरीद कर उनका विवाह वीरेंद्र सिंह की रक्षा में तैनात सैनिको से करवाया था ताकि मुझे उन वैश्याओं से वीरेंद्र के बारे में गुप्त सुचना मिलती रहे..
समर - अपनी मौत को सामने देखकर कहानी बना रहा है गजसिंह.. मगर आज मैं अपनी तलवार से तेरा सर काटकर अपने पिता की मौत का बदला जरूर लूंगा..
गजसिंह हसते हुए - कितनी बार कहु तुझे.. तेरा बाप धुपसिंह मैं हूँ.. यकीन ना हो तो जाकर पूछ ले अपनी माँ से.. जिसे वैश्यालय की लीलावती से साधारण घरेलु लता बनाकर मैंने धुपसिंह से विवाह करवाया था. औऱ धुपसिंह की हत्या मैंने नहीं बल्कि तेरी माँ लीलावती ने अपने हाथों से की थी.. क्युकी धुपसिंह लीलावती के वैश्या होने रहस्य औऱ उसके कूल्हे पर मेरी निशानी का अर्थ वो जान गया था..
समर क्रोध से - चुपकर गजसिंह.. तुझे क्या लगता है मैं तेरी इन बातों पर विश्वास कर लूंगा? औऱ तू मुझे मुर्ख बनाकर यहां से निकल जाएगा? आज तेरा बचना संभव नहीं है गजसिंह..
गजसिंह अपने बाजू पर बनी निशानी दिखाते हुए - अगर मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो जा औऱ जाकर अपनी माँ के दाए कूल्हे को देख.. ऐसी ही एक निशानी तुझे तेरी माँ के दाए कूल्हे पर भी दिखाई देगी जो मेरी हर बात सही सिद्ध कर देगी कि तेरी माँ मेरी रखैल है.. तुझे औऱ एक बात बताऊ? राजकुमारी को जयसिंह किस रास्ते से वापस जागीर ला रहा है ये गुप्त सुचना भी तेरी माँ ही मुझे देने आई थी.. औऱ जब आई थी तो सुचना के साथ अपना रूप औऱ जोबन भी देकर गई थी मुझे.. जिसके निशान उसकी छाती औऱ गले पर अब तक होंगे जा जाकर देख.. बदले में तुझे ज़िंदा छोड़ने वादा लिया था उसने मुझसे, इसिलए आज मेरे किसी आदमी ने तेरे ऊपर प्रहार नहीं किया.. राजकुमारी को किस गुप्त रास्ते से लाया जा रहा है.. तूने ही लीलावती को बताया था ना इस बारे में? लाल घाघरा चोली पहनी थी ना तेरी माँ ने उस दिन? अब भी कहेगा की मैं मनगढंत बात बना रहा हूँ? अरे तुझे तो उस रात से लेकर अब तक कई बार लीलावती मेरे हाथों मरने से बचा चुकी है.. कभी सोचा तूने कि मेरे इतने साथी मारे पर मैं कभी तुझे मारने क्यों नहीं आया? क्युकी तेरे अंदर मेरा भी खून है औऱ मैंने लीलावती से वादा किया तुझे ना मारने का..
समर का मन उथल पुथल था - गजसिंह.. अगर तेरी बातें सच हुई तो भी क्या मैं तुझे यहाँ से जीवित जाने दूंगा?
गजसिंह - मुझे मारकर तुझे कुछ हांसिल नहीं होने वाला समर.. वीरेंद्र सिंह पूछेगा भी नहीं तुझे.. उसके लिए तू बस एक प्यादा है जिसके होने या ना होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता.. मेरी बात मान जा समर.. मुझे रुक्मा का हरण करने दे.. मैं वीरेंद्र सिंह को जागीरदारी से हटाकर खुद जागीरदारी संभाल लूंगा औऱ फिर तुझे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दूंगा.. तू जानता मेरा कोई उत्तराधिकारी नहीं है..
समर आगे बढ़ते हुए - बात अगर वीरेंद्र सिंह की होती तो शायद में अपना मन बदलने के बारे में सोचता.. मगर गजसिंह तूने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुझे राजकुमारी रुक्मा का हरण करने दूंगा..
इतना कहकर समर ने गजसिंह का सर अपनी तलवार से काट दिया औऱ गजसिंह का सर लेकर वापस उसी जगह आ गया जहा गजसिंह औऱ जयसिंह के बीच लड़ाई हुई थी..
समर जब वापस आया तो उसने देखा कि जयसिंह पत्थर का सहारा लेकर बैठा हुआ है औऱ रुक्मा औऱ उसकी दासिया जयसिंह के जख्मो पर कपड़ा बाँध रही है..
समर ने गजसिंह का सर एक कपडे में लपेटकर घोड़ागाड़ी पर लटका लिया औऱ जयसिंह को घोड़ागाड़ी पर लादकर राजकुमारी रुक्मा औऱ उसकी दासियों से वापस घोड़ागाड़ी में बैठने को कहा.. फिर खुद उस घोड़ागाडी को चलाकर जागीर की सीमा पर तैनात सिपाहीयों तक ले आया.. जहा समर ने तैनात सैनिको को सुबह हुई लड़ाई के बारे में बताया औऱ जयसिंह के प्राथमिक उपचार का कार्य किया.. औऱ कुछ सैनिको को वहा जाकर पड़ी हुई लाशों को लाने का कहा औऱ स्वम राजकुमारी रुक्मा औऱ उसकी दासियो को लेकर सीमा पर तैनात कुछ सैनिको को साथ लेकर सांझ होने तक महल आ पंहुचा..
महल पहुंचने पर वहा के सैनिको ने जयसिंह को घोड़ागाड़ी से उतरा औऱ वैध के पास ले गए.. रुक्मा समर को मुस्कुराते हुए एक नज़र देखकर महल में चली गई औऱ बाकी सैनिक वापस सीमा की तरफ चले गए..
समर घोड़ागाड़ी महल में छोड़कर गजसिंह का सर लेकर महल से चला गया.. उसने किसी से भी कर्मा औऱ गजसिंह की मौत की बात नहीं की थी..

वीरेंद्र सिंह को जब इसका पता चला तो वो क्रोध में आग बबूला हो गया औऱ अपने सैनिको से हर जगह गजसिंह औऱ डाकुओ के मुखिया कर्मा को ढूंढने औऱ उसके ठिकानो का पता लगाने का आदेश सुना दिया वही खुद भी इस काम को करने के लिए महल से निकलने लगा पर सुजाता के समझाने पर रुक गया..
 
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