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Update 31

सुबह 10:00 बजे नींद के आगोश में सोए गौतम की नींद दिन के 2:00 खुली.. गौतम ने जो सपना देखा था उसके बारे में काफी देर तक वो सोचता रहा कि कैसे उसे ऐसे अपने आ रहे है.. लेकिन फिर अपना ध्यान सपने से हक़ीक़त में लाता हुआ बेड से खड़ा हो गया... गौतम ने होटल में देखा तो लगभग सब घर जा चुके थे.. होटल में सिर्फ कुछ मेहमान लोग ही बचे थे. गौतम ने सुमन को फोन किया तो सुमन ने उसे घर आने के लिए कहा.. गौतम का सारा सामान सुमन अपने साथ घर ले जा चुकी थी बस एक शराब की बोतल यही पड़ी थी अभी तक.. और नींद में होने के कारण सुमन ने गौतम को जगाना जरूर नहीं समझा क्योंकि सुमन जानती थी कि गौतम रात भर का जगा हुआ है. सुमन से बात करके गौतम ने फोन रख दिया और फिर अपना मुंह धो कर होटल से घर के लिए निकल गया उसने देखा की यहां आज भी किसी ना किसी की शादी तैयारी चल रही थी..


गौतम जब घर पहुंचा तो उसने देखा कि ऋतु के विदाई की तैयारी चल रही है और घर पर कुछ खास मेहमानों के अलावा घर के लोग ही थे. गौतम अपने कमरे में जाकर नहाने लगा. जब गौतम बाथरूम से नहा कर निकाला तो उसके सामने चाय का कप हाथ में लिए गायत्री खड़ी थी गायत्री ने चाय का कप टेबल पर रखा और फिर गौतम के गाल को सलाहकार उसपर एक प्यारा सा चुंबन करती हुई बोली..
गायत्री - गूगु चाय पी ले और जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जा.. तेरी दीदी की विदाई होने वाली है..
गौतम ने गायत्री की कमर में हाथ डालकर उसे अपने बिल्कुल करीब खींचते हुए गले से लगा लिया और दीवार से चिपक कर उसके होठों के बिल्कुल करीब अपने होंठ लाकर गायत्री से बेहद कामुक अंदाज में बोला..
गौतम - विदाई तो होती रहेगी नानी थोड़ी सी चुदाई करें?
गायत्री गौतम के होठों से अपने होंठ सटाती हुई बोली - अभी नहीं बेटा.. पिछली बार का दर्द अब तक बाकी है जब ठीक हो जाएगा तब कर लेना..

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गौतम ने कुछ पल गायत्री के होठों का चुम्मा ही था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह गायत्री से दूर हटकर टेबल पर रखे चाय के कप को उठाकर चुस्कियां लेते हुए चाय पीने लगा और दरवाजे के बाहर से अंदर आते हुए उसे संजय दिखा जिसने आते ही गायत्री से कहा..
संजय गायत्री से - माँ चलो ना ऋतू को विदा करना है..
गायत्री - चल संजय मैं तो ग़ुगु को चाय देने आ गई थी..
संजय - ग़ुगु तू जल्दी नीचे आजा बेटा..
गौतम - ज़ी मामा ज़ी.. नहाने लग गया था मैं बस तैयार होकर आता हूँ..

गायत्री संजय के साथ नीचे चली गई थी और गौतम अपने कपड़े पहनने लगा था.. गौतम तैयार होकर जैसे ही नीचे आया उसने देखा कि हॉल में बहुत सारे लोग एकत्रित हो रखे थे और बीच में ऋतु में बैठे हुए थी राहुल के साथ. दोनों से मेहमान हंसी स्टोरी कर रहे थे और अपनी अपनी बातें एक दूसरे को बता रहे थे जब विदाई की बारी आई तो ऋतु के आंसू निकलने लगे और वह रोती हुई संजय औऱ गायत्री से लिपट गई..

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ऋतू तो फूट के रोने लगी और एक-एक करके सबसे मिलने लगी उसने सबसे पहले अपने पिता संजय फिर गायत्री फिर कोमल सुमन चेतन आरती और फिर ग़ुगु के गले लगते हुए रोना जारी रखा.
गौतम के गले लगकर रितु बहुत जोर से फूट-फूट कर रोने लगी जिस पर गौतम ने धीमी आवाज में ऋतु के कान में कहा.. दीदी इतना ड्रामा मत करो.. मैं जानता हूं आपको घंटा रोना नहीं आ रहा..
गौतम की बात सुनकर रितु रोना कम कर देती है मगर रोना बंद नहीं करती.. ऋतू आम लड़कियों की तरह ऐसा जता रही थी जैसे वह घर से विदा नहीं होना चाहती और हमेशा यही रहना चाहती है मगर गौतम को ऋतू की ये नाटक और ड्रामेबाजी अच्छे से समझ आ रही थी. सबके बार-बार समझाने पर भी रितु रोने का नाटक करने के राहुल के साथ विदा होने से इनकार कर कर रही थी और जाने से मना कर रही थी..

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घर के दरवाजे पर गाड़ी तैयार थी मगर ऋतू उसमे बैठने को तैयार नहीं थी उसने अब तक घर के हाल से कदम आगे नहीं बढ़ाया था और सब उसे बारी बारी से समझा कर थक चुके थे की बेटी लड़की को ससुराल जाना पड़ता है लड़की पराया धन होती है. जब ऋतू किसी के समझाने से नहीं समझी और अपना रोने धोने का नाटक जारी रखते हुए हाल में ही बैठ गई तो गौतम में रितु को अपनी गोद में उठा लिया और हाल से उठकर बाहर लाते हुए गाड़ी में बैठा दिया..

गौतम इमोशनल ड्रामा करते हुए ऋतू के बगल में बैठे हुए राहुल से कहा - जीजा जी ख्याल रखना मेरी बहन का.. फूलों की तरह कोमल नाजुक प्यारी है.. बहुत संस्कारी सुशील औऱ पवित्र भी.. कभी दिल मत तोडना मेरी बहन का..
राहुल - आप फ़िक्र मत कीजिये.. मैं ऋतू को खुश रखूँगा..

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गौतम इतना कहकर गाड़ी से दूर हो गया और फिर बारी-बारी से घर के लोग ऋतू से मिलने लगे और उसे समझने लगे की ससुराल में उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं.. इतना सब हो ही रहा था कि गौतम घर के गेट पर खड़ा हो गया.. औऱ अपने फ़ोन में पिंकी का कॉल आते देखकर ऊपर छत पर चला गया और पिंकी का कॉल उठाकर बोला..
गौतम - हेलो बुआ?
पिंकी - केसा है मेरा ग़ुगु?
गौतम - आपके बिना केसा हो सकता हूँ बुआ? कल कितने फ़ोन किये आपको.. पर आप फ़ोन बंद करके बैठी थी.. उस दिन कहा था ना शादी में आना है.. आपके बिना बोरिंग थी सादी..
पिंकी - सॉरी ग़ुगु.. वो फ्लाइट इतनी डिल्य हो गई की आना हो ही नहीं पाया.. फ़ोन भी चार्ज नहीं किया था मैंने.. अभी अभी घर पहुंची हूँ..
गौतम - कहाँ गई थी आप?
पिंकी - तेरे फूफा ज़ी के साथ लन्दन गई थी ग़ुगु.. तेरे लिए बहुत से गिफ्ट लाई हूँ.. अभी यही है ना?
गौतम - हाँ.. दीदी की विदाई का नाटक चल रहा है..
पिंकी हसते हुए - अच्छा वो सब छोड़ जल्दी मेरे पास आजा..
गौतम - एड्रेस पहले वाला ही है ना?
पिंकी - नहीं बाबू अब वहा नहीं रहते.. मैं तुझे व्हाट्सप्प करती हूँ अड्रेस.. तू जल्दी से आजा अपनी बुआ के पास.. मुझे तेरे प्यारे से होंठ चूमने है..
गौतम - आता हूँ बुआ..
पिंकी - बाय बाबू..
गौतम - बाय बुआ..

ऋतू की विदाई हो चुकी थी औऱ गौतम अपने कमरे में जूते पहन रहा था तभी सुमन अंदर आते हुए बोली - खाना खा ले ग़ुगु..
गौतम - होटल में खा लिया था माँ.. अब रात को ही खाऊंगा..
सुमन - कहीं जा रहा है..
गौतम - हाँ.. उस दिन आपने बुला लिया तो शहर अच्छे से घूम नहीं पाया था.. कल तो वैसे भी वापस घर चले जाएंगे तो आज बाकी का शहर घूम लेता हूँ..
सुमन मुस्कुराते हुए गौतम के सर को चूमकर - वापस आने में ज्यादा देर मत करना..
गौतम - I'll be back soon माँ..
सुमन - हम्म्म.. क्या ग़ुगु?
गौतम सुमन के गाल पर चूमा देकर - मैंने कहा मैं जल्दी आ जाऊंगा..
सुमन मुस्कुराते हुए - हाँ तो ऐसे बोल ना.. अंग्रेजी में क्या गिटर पीटर करता मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..
गौतम - आपने ही बड़े स्कूल में डलवाया था याद है?
सुमन - हा हा तो क्या अपनी अंग्रेजी अपनी अनपढ़ माँ पर झाड़ेगा?
गौतम सुमन का हाथ पकड़ते हुए - अनपढ़ कैसे हुई आप.. पढ़ना लिखना तो अच्छे से आता है आपको.. टीवी देखकर सारे इंग्लिश के वर्ड भी सिख गई हो.. औऱ घर का सब काम भी कितनी अच्छे से करती हो.. आप तो भारतीय संस्कारी नारी का परफेक्ट एक्साम्प्ल हो..
सुमन गौतम के होंठों को उंगलियों से पकड़कर - अब इतनी भी तारीफ़ मत कर अपनी माँ की..
गौतम सुमन ऊँगलीयों को चुमकर - काश मैं आपकी तारीफ़ कर सकता माँ.. आपकी तारीफ़ के लायक़ शब्द हो नहीं बने दुनिया में..
सुमन हसते हुए - हट बदमाश.. चल अब जा.. मुझे भी बहुत काम है अभी..
गौतम प्यार से बच्चों जैसा फेस बनाकर - किस्सी तो दे दो माँ..
सुमन मुस्कुराती हुई गौतम के सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसके होंठों से अपने होंठ मिलकर एक छोटा सा चुम्मा करती हुई गौतम से बोली - खुश? चल अब जाने दे..
सुमन चली जाती है औऱ गौतम भी घर से निकल जाता है..
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**********

अरे अरे कहा घुसे चले आ रहे हो भाई? क्या काम है, किससे मिलना है?
गॉर्ड ने बँगले के गेट पर गौतम को रोककर कहा..
गौतम - ज़ी मुझे पिंकी बुआ से मिलना है..
बँगले के गेट पर खड़े दो गार्डो में से एक ने कहा - यहां कोई पिंकी नहीं रहती जाओ यहां से..
गौतम फ़ोन में एड्रेस देखकर - पर ये अड्रेस तो यही का है..
एक गार्ड ने एड्रेस देखकर कहा - एड्रेस तो यही का है भईया पर यहां कोई पिंकी नहीं रहती.. गलत अड्रेस भेजा है किसी ने आपको.. आप जाइये यहां से मालकिन बहुत गर्म मिज़ाज़ की है.. उन्होंने किसी अजनबी को देख लिया तो हमारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी..

गौतम पिंकी को फ़ोन लगाता हुआ - हेलो.. बुआ?
पिंकी बँगले के गेट के पास अंदर बने गार्डन में एक चेयर पर बैठी हुई कोई फेशन मैगज़ीन पढ़ रही थी की गौतम का फोन आने पर फोन उठती हुई बोली - हाँ बाबू..
गौतम - बुआ ये अड्रेस तो गलत है शायद.. गेट पर खड़े गार्ड बोल रहे है यहां कोई पिंकी नहीं रहती है..
पिंकी गुस्से में मैगज़ीन सामने रखी टेबल पर फेंककर - तू रुक वही.. मैं आती हूँ..
गौतम को तुरंत ही रूपा का फ़ोन आ जाता है औऱ वो रूपा से बात करते हुए गेट से दूर चला जाता है..
पिंकी गुस्से से तिलमिलती हुई गार्डन से गुजरते हुए बंगले के गेट पर पहुंची..

पिंकी को देखकर दोनों गॉड सर झुकाकर एक साथ बोले - नमस्ते मेम साब..
पिंकी गुस्से में - तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई मेरे भतीजे को गेट पर रोकने की? इतनी भी तमीज नहीं है कि किसे रोकना है औऱ किसे नहीं? ये सब भी सीखना पड़ेगा तुम लोगों को..
एक गार्ड सर झुका कर - माफ़ करना मेमसाब.. हम नहीं जानते थे भईया ज़ी कौन है.. गलती हो गई हमसे..
पीछे से पिंकी के पति फ़कीरचंद आता हुआ..
फ़कीरचंद - क्या हुआ प्रमिला.. क्यों चिल्ला रही हो इन दोनों बेचारो पर..
पिंकी गुस्से में - चिल्लाऊ नहीं तो क्या करू.. पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है औऱ उसे अंदर आने से रोक दिया दोनों ने.. इनको अभी नौकरी से निकालती हूँ मैं..
दूसरा गार्ड सर झुका कर - मालिक.. हमें माफ़ कर दो.. हमें गलतफेहमी हो गई थी.. हमें पता नहीं था प्रमिला मेमसाहेब के घर का नाम पिंकी है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - अरे छोडो ना प्रमिला.. गलतफहमी हो जाती है.. इंसान है.. औऱ ग़ुगु आया है? कहा है वो?
प्रमिला गेट के बाहर आकर देखती है तो गौतम थोड़ी दूर पर रूपा से फ़ोन पर बात कर रहा होता है..
पिंकी आवाज लगा कर - ग़ुगु..
गौतम पिंकी को देखकर रूपा से बाद में बात करने की बात बोलकर फ़ोन रख देता है औऱ वापस आ जाता है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - कितना बड़ा हो गया है ग़ुगु? बिलकुल हीरो लगने लगा है..
पिंकी गौतम को जोर से गले लगाती हुई - लगने क्या लगा है.. है ही हीरो मेरा ग़ुगु..
गौतम - बुआ आराम से..
फ़कीर चंद हसते हुए - अब छोड़ भी दो अपने भतीजे को प्रमिला..
प्रमिला - सॉरी तुझे वेट करना पड़ा गेट पर..
गौतम - कोई बात नहीं बुआ.. ये तो बहुत छोटी सी बात है..
पिंकी - पैर वेर छूना नहीं सिखाया भाभी ने तुझे..
गौतम मुस्कुराते पिंकी के पैर छूकर - अच्छा लो..
पिंकी - अरे मेरे नहीं अपने फूफाज़ी के.. पागल बच्चा.. चल अंदर.. तेरे लिए तेरी मनपसंद चीज बनाई है..
फ़कीरचंद - अच्छा तभी आज अपने हाथों खाना बनाया जा रहा था..
पिंकी - तो ना बनाउ? पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है..
फ़कीरचंद - अच्छा तुम बुआ भतीजे बात करो मैं जरा बाहर हो आता हूँ..
पिंकी - अब आप कहा जा रहे हो?
फ़कीरचंद - फैक्ट्री हो आता हूँ.. मुकेश को कुछ कागजो पर दस्तखत चाहिए थे..
पिंकी - तो उसे ही यहां बुलवा लिया होता.. आपको मैनेजर के पास जाने की क्या जरुरत?
फ़कीरचंद - वो तो आ रहा था मैंने ही मना कर दिया.. सोचा थोड़ा टहल भी आऊंगा.. बहुत समय हो गया फैक्ट्री गए हुए.. आते हुए कारखाने की तरफ भी हो आऊंगा..
पिंकी - दवाइया साथ लेकर जाना.. औऱ ड्राइवर से कहना गाडी धीरे चलाये..
फ़कीरचंद - ठीक है..
गौतम पानी पीते हुए - दवाइया कैसी?
पिंकी - मधुमय है तेरे फूफाजी को.. तू चल बैठ टेबल पर.. मैं अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी मेरे बाबू को आज..
गौतम - खाना तो खा चूका हूँ बुआ..
पिंकी - ठीक पर खीर तो खानी पड़ेगी.. पसंद है ना तुझे? (पिंकी आवाज लगाकर) कम्मो.. ख़िर लेकर आना जरा.. एक औरत ख़िर की प्याली लेकर आती है जिसे पिंकी लेकर गौतम के बगल में डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसे खिलाने लगती है..
गौतम ख़िर खा कर - बस बुआ.. औऱ नहीं..
पिंकी - अच्छा.. ये बता भईया भी आये है शादी में?
गौतम मुंह साफ करता हुआ - नहीं बुआ.. उनको कहा फुर्सत.. मैं भी नहीं आने वाला था मगर माँ ने कसम खिला दी औऱ ले आई..
पिंकी गौतम को ऊपर अपने कमरे में लेजाती हुई - अच्छा किया भाभी.. वरना तू मुझसे मिलने कैसे आता?
गौतम - वैसे बुआ उस दिन फूफाजी को देखकर लगा नहीं था इतने अमीर होंगे वो..
पिंकी कमरे का दरवाजा लगाकर मुस्कुराते हुए - सही हाथ मारा है ना तेरी बुआ ने?
गौतम - ऐसे क्यों बोल रही हो बुआ.. आप कितना ख़याल रखती हो फूफाजी का.. उनको आपका शुक्रगुजार रहना चाहिए..
पिंकी अपनी साडी उतारते हुए - शुक्रगुजार तो है ही.. इसलिए मेरे नाम पर ये बांग्ला ख़रीदा है उन्होंने औऱ कुछ दिनों में दोनों फैक्ट्री औऱ कारखने भी मेरे नाम करने वाले है..
गौतम मुस्कुराते हुए - वो तो करना ही था.. आगे पीछे है भी कौन फूफाजी के आपके अलावा.. सही खेल गई बुआ आप तो..
पिंकी हसती हुई अपनी साडी कमरे में रखे सोफे पर पटककर बेड पर गौतम के पास आती हुई - मान गया ना अपनी बुआ को? है ना मेरा शातिर दिमाग.. पहली मुलाक़ात में ऐसा फसाया की अब तक फसा रखा है..
गौतम - वो तो है.. अच्छा लन्दन केसा है? सिर्फ तस्वीरों में देखा है मैंने.. जैसा फिल्मो में दीखता है वैसा ही है?
पिंकी गौतम के ऊपर आती हुई - काश में तुझे वहा ले जा पाती.. भाभी को फ़ोन किया था पर तेरी माँ तो जैसे मेरे पिछले जन्म की बैरी है.. मेरे कहते ही बोलने लगी.. ग़ुगु वहा जा कर क्या करेगा? तू अकेले ही चली जा.. ग़ुगु के इम्तिहान भी आने वाले है.. फलाना ढिमकाना.. औऱ एक हफ्ते से तुझे यहां शादी में लाकर बैठी है.. अब भाभी को तेरे इम्तिहान की परवाह नहीं है.. चालक चुड़ैल कहीं की..
गौतम - बुआ माँ को चुड़ैल मत बोलो..
पिंकी - क्यों तुझे बहुत तकलीफ होती है.. वो जब मेरे बारे में इतना कुछ कहती है तब तुझे तकलीफ नहीं होती?
गौतम - जब माँ आपके बारे में कुछ गलत बोलती है तो मैं उनको भी मना करता हूँ चाहो तो पूछ लो.. मुझसे तो आप औऱ माँ दोनों एक जैसा प्यार करती हो.. मैं आप दोनों के लिए कुछ गलत नहीं सुन सकता..
पिंकी - अच्छा छोड़.. मुझे अब मेरी किस्सी चाहिए..
गौतम पिंकी को चूमते हुए - ठीक है बुआ..
पिंकी चूमते हुए - बहुत सॉफ्ट लिप्स है तेरे बाबू..

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गौतम - आपके भी तो कितने प्यारे लिप्स है बुआ मन करता है खा जाऊ..
पिंकी जीभ से चाटते हुए - खा जा ना बाबू.. बुआ मना थोड़ी करेंगी अपने ग़ुगु को..
गौतम चूमता हुआ - बहुत miss किया बुआ आपको..
पिंकी गौतम की टीशर्ट उतारकर - ये सब क्या है ग़ुगु.. तेरे गले पर सीने पर इतने निशान किसने किये?
गौतम मुस्कुराते हुए - ये शादी में मिले है बुआ.. एक लड़की ने बहुत तंग किया मुझे..
पिंकी मुस्कुराते हुए - क्या नाम था उसका?
गौतम - सिमरन..
नाम लेटे ही सिमरन का फ़ोन गौतम के फ़ोन पर आ गया जिसे देखकर गौतम हसता हुआ बोला - देखो ना बुआ.. शैतान का नाम लिया शैतान हाज़िर..
पिंकी मुस्कुराते हुए - उठा ना.. बात कर क्या कहती है..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो..
सिमरन - क्या कर रहे हो?
गौतम - तुम्हे याद कर रहा था..
सिमरन - झूठ.. बड़े आये तुम मुझे याद करने वाले.. कल तो कितना भाव खा रहे थे..
गौतम - आखिर में प्यार भी तो किया था भूल गई?
सिमरन - कैसे भूल सकती हूँ रसगुल्ले.. अब तक पीछे की सुरंग में आतंक मचा हुआ है.. सुबह पोट्टी करते हुए तुझे याद करके बहुत गालिया दी मैंने..
गौतम हसते हुए - खतरों से खेलने का शोक तो तुम्हे ही था.. वापस कब मिलोगी?
सिमरन - मिलना चाहो तो आज रात को मिल सकती हूँ.. पर याद रखना सुरंग में नहीं घुसने दूंगी..
गौतम - तेरा बाप मान जाएगा? तूने तो कहा था बहुत स्ट्रिक्ट है वो..
सिमरन - वो सब मुझपर छोड़ दो.. सिटी मॉल में मिलना आठ बजे.. मूवी देखेंगे साथ.. लेट मत करना रसगुल्ले वरना घर से उठवा लुंगी..
गौतम हसते हुए - उठवाने की जरुरत नहीं पड़ेगी मैं पहुंच जाऊँगा.. फ़ोन कट हो जाता है..
पिंकी गौतम को छेड़ती हुई - रसगुल्ले.. हम्म्म..
गौतम मुस्कुराते हुए - बुआ आप भी ना..
पिंकी - अच्छा फोटो तो दिखा सिमरन की.. आवाज तो बहुत प्यारी है.
गौतम फोटो दिखाकर - लो.. कैसी है..
पिंकी - है तो मस्त.. चुचे औऱ चुत्तड़ भी अच्छे है फेस भी बड़ा प्यारा है.. पहली बार कैसे चोदा तूने इसको?
गौतम अपनी गांड मराई याद करते हुए - मैंने कहा चोदा बुआ.. यही मुझे चोद गई..
पिंकी हसते हुए - उसका क्या कसूर? तू है ही इतना चिकना..
गौतम - आप भी ना बुआ.. अब जल्दी से अपना ये घाघरा उठाओ बहुत मन कर रहा है आपकी गुफा में घुसने का..
पिंकी पेटीकोट कमर तक ऊपर करके - घाघरा नहीं पेटीकोट बोलते है इसे बाबू..
गौतम जीन्स खोलकर - पेंटी तो उतारो..
पिंकी गौतम के लंड को पकड़कर मसलते हुए - उतारने की क्या जरुरत है बाबू.. साइड हटा के घुसा दे.. (पिंकी पेंटी को एक हाथ से साइड करके दूसरे हाथ से गौतम का लंड अपनी चुत में घुसाती हुई)
गौतम पूरा लंड चुत में पेलकर - आह्ह.. बुआ अब मिली है असली जन्नत...

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पिंकी सिसकती हुए - आह्ह... बाबू.. बहुत याद किया इसे मैंने..
गौतम अपने दोनों हाथ से पिंकी के ब्लाउज को पकड़कर एक झटके में पूरा फाड़ देता है औऱ उसकी ब्रा ऊपर करके पिंकी के बूब्स चूसते हुए पिंकी को धीरे धीरे चोदने लगता है..

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पिंकी - ग़ुगु चूसके खाली कर अपनी बुआ के बोबो को बेटा.. आहहह...चोद बुआ को अच्छे से.. रांड समझके चोद मुझे बाबू.. मार झटके मेरी चुत में..
गौतम चोदने की स्पीड बढ़ाते हुए - लो बुआ सम्भालो.. अपने ग़ुगु के लंड को..
पिंकी - आह्ह.. ग़ुगु.. आह्ह... चोद मुझे.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है बाबू.. आह्ह..
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गौतम मिशनरी में चोदने के बाद पिंकी को घोड़ी बनाता हुआ चोदने लगता है - कितनी मोटी गांड है बुआ आपकी.. फूफाजी ने तो नहीं की चोदकर इतनी बड़ी.. कौन है बुआ आपका आशिक आवारा?
पिंकी आह करती हुई - बाबू तूने ही पेला था पिछली बार.. तब से किसीके साथ नहीं किया..
गौतम बाल पकड़ कर पीछे से झटके मारता हुआ - चल मेरी बुआ टूक टुक टुक.. चल मेरी बुआ टुक टुक टुक..
पिंकी - अहह.. अहह... अहह..

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गौतम बाल छोड़कर पिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर पीछे से चोदने लगता है - बुआ गांड कब दोगी मुझे?

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पिंकी - बड़ा है तेरा ग़ुगु.. चुत में दर्द कर देता है गांड का पता नहीं क्या हाल करेगा..
गौतम पिंकी को उठाकर अपनी गोद में लेलेता है औऱ चोदने लगता है - तो क्या मैं आपकी गांड से वंचित रह जाऊँगा बुआ?

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पिंकी चुदवाते हुए आहे भरकर - इस बार चुत से काम चला ले मेरे बाबू.. अगली बार पक्का गांड दे दूंगी.. पिंकी झड़ चुकी थी औऱ अब झड़ने के साथ अब मूतने भी लगी थी जिसमे उसे शर्म आ रही थी मगर गौतम ने लंड निकालकर अपना मुंह पिंकी चुत पर लगा दिया औऱ उसकी चुत से निकलते मूत को पिने लगा.. पिंकी ये देखकर हैरान औऱ रोमांचित हो उठी थी औऱ बार बार गौतम को अपना मूत पिने से रोकने की कोशिश कर रही थी मगर गौतम ने पिंकी की आखिरी मूत की बून्द तक अपने मुंह में लेकर पी ली..

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मूत पिने के बाद गौतम पिंकी की चुत चाटने लगा औऱ पिंकी गौतम के बाल पकड़ कर फिर से काम के दारिया में गोते खाने लगी. पिंकी ने अपनी चुत चटवाने का आनंद भोगते हुए गौतम का सर बहुत जोर से अपनी चुत पर दबा दिया जिससे गौतम की सांस घुटने लगी मगर गौतम ने जैसे तैसे अपने आप को पिंकी के हाथ से छुड़वा कर पिंकी दोनों टाँगे हाथों से उठा कर उसकी चुत चाटने लगा..
गौतम चुत चाटने के बाद पिंकी को उठाकर दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसी तरह छिपकली बनाकर चोदने लगा जैसे उसने सुबह शबनम को चोदा था..

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पिंकी चुदवाते हुए कामुक सिसकियाँ लेकर - थोड़ा धीरे ग़ुगु.. तेरी बुआ को दर्द हो रहा है.. अहह...
गौतम थोड़ी देर छिपकली पोज़ में चोदने के बाद पिंकी को पलट कर अपनी तरफ घुमा लेता है औऱ दिवार से सटाकर पिंकी की दोनों टाँगे उठाकर उसे चोदने लगता है.

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पिंकी गौतम के गले में दोनों हाथ डालकर उसे चूमते हुए सिस्कारिया भरके चुदवाती रहती है. वो वापस झड़ने वाली थी औऱ अब गौतम का भी निकलने वाला था..
गौतम - बुआ होने वाला है..
पिंकी - मेरा भी वापस होने वाला है बाबू.. मुझे बेड पर लेटा दे..
गौतम पिंकी को अपने ऊपर में लेटा कर पेलने लगता है औऱ कुछ देर बाद पिंकी के साथ ही झड़ते हुए पिंकी की चुत में अपना वीर्य भर देता है..

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पिंकी औऱ गौतम एक दूसरे की शकल देखते हुए मुस्कुराने लगते है पिंकी अपने फटे हुए ब्लाउज से गौतम के चेहरे पर आ रहा पसीना पोछती है..
पिंकी थोड़ी देर उसी तरह लेटी रहकर गौतम से बात करके बोलती है - अब इस शैतान को तो मेरी गुफा से बाहर निकाल लो..
गौतम - रहने दो ना बुआ थोड़ी देर गुफा के अंदर.. बेचारा बहुत दिनों बाद अपनी बुआ से मिला है..
पिंकी पलटकर- अच्छा ठीक है..
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गौतम पिंकी के ऊपर ही उसकी चुत में लंड घुसा के हल्का हल्का झटका मारते हुए लेटा रहता है औऱ पिंकी गौतम के होंठों को चूमते हुए उसके बालों में उंगलियां फिराती हुई गौतम के नीचे लेटी रहती है.. कुछ देर चूमने के बाद गौतम की आँख लग जाती है औऱ पिंकी भी अपने ऊपर लेटे हुए गौतम को सोने देती है करीब एक घंटे बाद जब गौतम की आँख खुलती है तो वो देखता है की पिंकी अभी भी उसके नीचे लेटी हुई है औऱ उसका लंड अभी भी पिंकी की चुत में घुसा हुआ है.
गौतम की नींद टूटने पर पिंकी - उठ गया मेरा बाबू?
गौतम - टाइम क्या हुआ है बुआ?
पिंकी - सात बजे है..
गौतम चुत से लंड निकाल कर खड़ा होता हुआ - जाना है बुआ..
पिंकी मुस्कुराते हुए खड़ी होकर - सिमरन के पास?
गौतम कपडे पहनते हुए - हाँ..
पिंकी पास में पड़े अपने पर्स से एक कार्ड निकाल कर गौतम की जीन्स में रखती हुई बोली - 2002..
गौतम एटीएम कार्ड देखकर वापस देता हुआ - बुआ मुझे नहीं चाहिए.. आप इसे अपने पास रखो..
पिंकी गौतम के होंठ चूमकर एटीएम वापस उसकी जेब में डालती हुई - मैंने पूछा नहीं है तुझसे लेना है या नहीं.. चुपचाप रख ले.. कुछ भी चाहिए हो खरीद लेना.. शर्माना मत.. मैंरे पास औऱ भी दो है..
गौतम पिंकी का बोबा पकड़कर उसके होंठ चूमते हुए - आई लव यू बुआ..
20381221
पिंकी - लव यू टू मेरा बच्चा...
गौतम - अच्छा बुआ अब चलता हूँ.. जल्दी मिलूंगा आपसे..
पिंकी ब्रा औऱ पेंटी के बाद nighty पहनते हुए - ग़ुगु रुक..
गौतम - हाँ बुआ..
पिंकी एक बेग निकालकर - इसे लेजा..
गौतम - इसमें क्या है..
पिंकी - कुछ कपडे है घड़ी परफ्यूम औऱ शूज भी तेरे लिए..
गौतम - बुआ इतना सब लाने की क्या जरुरत है हर बार..
पिंकी - क्यों जरुरत नहीं है.. तेरे सिवा मेरा है ही कौन जिसके लिए मैं कुछ खरीदू.. आगे जाके इन सब चीज़ो का वारिस तुझे ही तो बनना है.. ये तुझे ही तो संभालना है..
गौतम मुस्कुराते हुए पिंकी को बाहों में भरके - मुझे पैसो में कोई दिलचस्पी नहीं है बुआ, चुत में है... कम पैसो से भी मेरा काम चल जाता है.. पैरों में जूते जॉर्डन के हो या कैंपस के मुझे फर्क नहीं पड़ता..
पिंकी गौतम का चेहरा अपने हाथों में लेकर - पर मुझे फर्क पड़ता है ग़ुगु.. अपनी पसंद की चीज के लिए जैसे मैं तरसी हूँ वैसे मैं तुझे तरसते नहीं देखना चाहती.. मेरे पास जो कुछ है सब तेरा है.. तू मेरा सबकुछ है ग़ुगु.. तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ.. किसी की जान भी ले सकती हूँ..
गौतम - माँ सच कहती है बुआ.. आप ना सनकी हो..
पिंकी चूमते हुए - ऐसा सोचती है मेरे बारे में तेरी माँ..
गौतम - बुआ आप अब यूँही मुझे पकड़े रहोगी तो मैं जा नहीं पाऊंगा..
पिंकी गौतम अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल जा.. मज़े कर अपनी उस गर्लफ्रेंड के साथ.. मगर कंडोम लगा कर.. नहीं तो इतनी सी उम्र में बाप बन जाएगा..
गौतम पिंकी के सर औऱ गाल को चूमते हुए - बाय मेरी प्यारी बुआ..
पिंकी गौतम के होंठों को डांत से खींचकर चूमती हुई -
बाय बच्चा..

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गौतम पिंकी के पास से सिटी मॉल की तरफ चल देता औऱ कार पार्किंग में लगा कर मॉल के बाहर बनी एक चाय की टपरी पर बैठते हुए सिमरन को फ़ोन करता है..
गौतम - कहा रह गई यार..
सिमरन - आ रही हूँ बाबा.. जरा भी सब्र नहीं है तुम्हे तो.. अभी तो सिर्फ पौने आठ बजे है.. मूवी शुरू होने में डेढ़ घंटा है..
गौतम - मतलब अभी घर पर ही हो तुम.. ठीक है आ जाओ अपनी मर्ज़ी से.. मैं इंतजार कर लूंगा..
सिमरन - अच्छा सुनो भईया भी साथ आ रहे है उनकी भी टिकट बुक कर देना..
गौतम - वो कबाब में हड्डी बनने क्यों आ रहा है?
सिमरन - बाबा.. मम्मी ने अकेले जाने से मना किया इसलिए भईया को लाना पड़ेगा.. तुम उनकी फ़िक्र मत करो.. भईया थोड़ा दूर बैठ जाएंगे..
गौतम - ठीक है सिम्मी..
सिम्मी - क्या पहन के आउ रसगुल्ले?

गौतम - कुछ भी पहन के आजा मेरी रसमलाई.. होना तो नंगा ही है तुझे.. चल बाय.. मैं वेट कर रहा हूँ..

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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समर का मन बार बार उसे गजसिंह की बातों पर यक़ीन करने रोक रहा था.. मगर कहीं ना कहीं समर गजसिंह की कही हुई बातों में छुपी सच्चाई की तलाश कर लेना चाहता था.. समर अपने मन में ये प्राथना कर रहा था कि गजसिंह की कहीं हर बात झूठ निकले औऱ उसके मन की जीत हो.. मगर गजसिंह ने जो जो बात समर को बताइ थी उनमे से कुछ ऐसी बात थी जो सिर्फ समर जानता था औऱ उसने अपनी माँ लता को बताइ थी..

समर गजसिंह का कटा हुआ सर लेकर जब अपने घर पहुंचा तब लता धान साफ कर रही थी औऱ बाहर द्वार पर किसी के आने की आहट पाकर लता उठ खड़ी हुई औऱ बाहर झाँक कर देखी तो उसे समर खून से लथपथ दिखाई दिया.. लता द्वार पर जाकर ही समर को देखने लगी..
लता - इतना लहू? कहा चोट लगी है? मैं जाकर वैद को बुला लाती है तू बैठ यहां..
समर - मैं ठीक हूँ माँ.. ये खून उन शत्रुओ का है जिन्होंने रास्ते में राजकुमारी पर हमला किया था..
लता - तेरे ऊपर हमला हुआ था?
समर थैले से गजसिंह का सर निकालते हुए - हाँ माँ.. मैंने कहा था ना.. तेरे दोषियों को सजा दूंगा.. देख उस चांडाल का सर..
लता गजसिंह का कटा हुआ सर देखकर कुछ भी नहीं बोल सकी औऱ सन्न खड़ी रह गई..

समर अपनी माँ के चेहरे पर गजसिंह का कटा सर देखने के बाद भी ख़ुशी औऱ उल्लास के स्थान पर एक फ़िक्र औऱ बेकसी देखकर हैरान था उसके मन की हार होने लगी थी औऱ वो अब औऱ भी चिंता में डूबे जा रहा था लता के हावभाव उसके मन के मेड़ को बहा ले जा रहे थे..

लता सन्न खड़ी हुई उस कटे सर को देखकर ऐसे चुप थी जैसे जमींदार का फरमाबरदार डांट खाकर हो जाता है.. अपनी माँ की ऐसी हालत देखकर समर का शक अब यकीन में बदलने लगा था मगर अब भी उसके मन में कहीं ना कहीं अपनी माँ के लिए इज़्ज़त औऱ सम्मान था जिसके करण वो अब भी पूरी तरह यक़ीन करने में असमर्थ था..
समर - ख़ुशी नहीं हुई माँ आपको?
लता सन्नाटे से बाहर आती हुई - समर तूने सच में गजसिंह को मार डाला..
समर - माँ आपका अपमान करने वाले को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ? मेंने कहा था ना मैं इस जालिम को एक ना एक दिन जरूर ढूंढ़ के मौत के घाट उतार दूंगा.. मैंने उतार दिया..
लता आगे कुछ नहीं बोलती औऱ भीतर चली जाती है.. समर लता का ये व्यवहार समझ नहीं पाया था उसके मन में लता के मन के भाव जानने की इच्छा थी जो अब पूरी नहीं उसी थी.. समर ने गजसिंह का सर घर से थोड़ा दूर लेकर लकड़ियों के साथ जला दिया औऱ वापस घर आ गया..

रात होने पर लता ने खाना पकाया था मगर अब तक लता ने समर से कुछ बात ना की थी.. रात का खाना खाते हुए समर ने लता से कहा..
समर - माँ आप इतनी बेचैन क्यों है?
लता मुस्कुराते का नाटक करती हुई - नहीं तो बेटा.. मैं तो बहुत खुश हूँ तूने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर साबित कर दिया कि तू भी सच्चा मर्द है.. एक माँ को इससे ज्यादा औऱ क्या ख़ुशी होगी.. ले.. खा ना.. आज स्वाद नहीं बना भोजन?
समर लता की बातों के पीछे उसके भाव उसके बनावटी चेहरे से बखूबी पढ़ रहा था उसने खाना खाया औऱ उठकर सोने चला गया.. अब उसके मन में गजसिंह की बातें पूरी तरह उतर चुकी थी.. उसे लग्ने लेगा था कि गजसिंह जो कुछ कह रहा था सब सच औऱ सत्य है..
समर को गजसिंह की एक बात याद आने लगी.. गजसिंह ने कहा था उसके बाजू पर बना निशान लता की गांड पर भी है गौतम ने तय करलिया था की वो अपनी माँ के गांड के निशान को देखकर रहेगा..

आधी से ज्यादा का समय बीत चूका था समर चारपाई से उठकर भीतर सो रही अपनी माँ लता के पास जाने लगा.. अंदर दिए की रोशनी में उसे लता सोती दिखी.. देखने से लगता था कि लता सो गई है मगर वो सोइ नहीं थी.. समर लता के करीब जाकर चटाई पर लेट गया जिसका आभास लता को हो चूका था औऱ उसका मन उथल पुथल मचाने लगा था.

लता ये सोच कर शाम से ही डरही थी कहीं गजसिंह ने समर को सारी सच्चाई ना बता दी हो वही समर इस बात से डर रहा था कि गजसिह की बटाइ बातें सच ना हो..

समर बाती की रोशनी जमीन पर चटाई पर सो रही अपने माँ लता की गांड के पास लेजाकर अपनी माँ लता के घाघरे को धीरे धोरे ऊपर करने लगा.. लता समझ गई थी की समर निशान देखने की कोशिश कर रहा है..
समर ने धीरे धीरे जांघो तक घाघरा उठा लिया औऱ अब उसे गांड पर बना निशान हल्का सा दिखने लगा था कि लता ने समर का हाथ पकड़ते हुए उसे अपना घाघरा औऱ ऊपर उठाने से रोक दिया औऱ बोली..
लता - औऱ ऊपर मतकर समर.. रात बहुत हो गई है.. यही मेरे पास सो जा..
समर अपनी माँ लता के बदल में चटाई पर लेटते हुए - यानी जो कुछ गजसिंह कह रहा था सब सच है.. (समर की आँखों से आंसू बहने लगे थे)
लता समर के आंसू पोंछकर - मैंने अबतक जो भी किया कभी मज़बूरी में तो कभी हमारी भलाई के लिए किया है समर..
समर - आपने बाबूजी को..
लता समर का गाल सहलाती हुई - अगर मैं नहीं मारती तो वो मुझे मार देता बेटा..
समर - उस रात जो हुआ सब आपकी मर्ज़ी से हुआ?
लता - उन बातों को भूला दे समर.. उनसे किसी का भला नहीं होगा..
समर - वापसी का रास्ता भी आपने ही बताया था गजसिंह को?
लता समर को बाहों में लेकर सर सहलाती हुई - मैं मजबूर थी बेटा..
समर - माँ राजकुमारी को कुछ भी हो सकता था. वो डर गई थी..
लता - वो तो राजकुमारी है समर.. हम जेसो का क्या? इतने बड़े खतरे को टालने के बाद भी जागीरदार ने तुझे याद तक नहीं किया..
समर लता को देखकर - मैंने किसी को नहीं बताया कि मैंने गजसिंह औऱ कर्मा को मार दिया है.. इसलिए सब उन दोनों को ढूंढ़ रहे है..
लता - बता भी देगा तो कोनसा वीरेंद्र सिंह तेरे लिए महल के दरवाजे खोल देगा? समर मैंने दुनिया देखी है मुझे परख है सबकी.. तू मुझसे प्रेम करता है ये तुझे अब साबित करना होगा.. मेरी गलती के लिए तू मुझे माफ़ कर.. और मेरी बात सुन समर.. वीरेंद्र सिंह औऱ जागीर के प्रति तेरी निष्ठा तुझे तकलीफ ही देगी..
ये कहते हुए लता ने समर को अपने गले से लगा लिया औऱ उसके समर के सर को अपनी चाती में घुसाती हुई बातों में हाथ फेरकार सुलाने लगी.. समर थका हुआ बोझाल आँखों के साथ नींद के हवाले होने लगा था. कुछ देर बाद उसे लता की बाहों में नींद आ गई..

सुबह समर उठा तो लता ने उसके आगे रसोई परोस दी जिसे ठुकराते हुए समर ने लता से कहा..
समर - मैं अब आपके हाथ का खाना नहीं खा सकता.. मेरी निष्ठा औऱ कर्त्तग्यता जागीरदार के प्रति है.. मैं उनसे गद्दारी नहीं कर सकता है.. आपने जो किया गलत किया.. मैं आपके साथ अब औऱ नहीं रह सकता..
लता चिंता से सुबकती हुई - समर तू जागीरदार को अपनी माँ के बारे में सब बता देगा? बेटा तू जानता है गद्दार को कैसी सजा मिलती है.. मेरी बात सुन बेटा.. मैं तेरी माँ हूँ.. मेरे साथ ऐसा मत कर..
समर - मेरा हाथ छोड़ दो.. मैं अब औऱ यहां नहीं रुकने वाला.. रात को सच्चाई जानने के बाद एक पाल के लिए में गुम राह जरूर हुआ था मगर अब मुझे होश आ गया है..
लता भय चिंता औऱ क्रोध से भरते हुए बोली - समर अगर तूने घर से कदम बाहर रखा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा.. मैं आखिरी बार कहती हूँ रुक जा समर..
समर लता की बात नहीं सुनता औऱ घर से चला जाता वही लता सोचने लगती है की समर जागीरदार को उसके सच्चाई बता देगा औऱ जागीरदार गद्दारों को मिलने वाली दर्दनाक मौत की सजा लता को भी देगा.. मगर समर के मन में लता के प्रति प्रेम औऱ सम्मान पूरी तरह से नहीं निकला था.. उसने लता के बारे में जागीरदार को बताने के बारे में नहीं सोचा था औऱ ना ही वो अपनी माँ की जासूसी के बारे में बताना चाहता था.. वो जानता था की जागीरदार को अगर वो लता की सच्चाई बता देगा तो लता कितनी कड़ी सजा मिलेगी..

लता को समर पर क्रोध आ रहा था वही उसके चिंता भी थी की समर्थन अब जागीरदार को सब सच बता देगा औऱ भय इस बात का था कि जागीरदार उसे एक दर्दनाक भयानक मौत देगा.. लता ने अपने एक साथी लंगड़ू के पास चली गई जिसे समर अपने मामा के रूप में जानता था क्युकी लता ने बचपन से लंगड़ू को अपना भाई बनाकर समर से मिलवाया था...

क्रोध भय औऱ चिंता से भरी हुई लता ने लंगड़ू से कुछ बात की औऱ उसके 4-5 साथियो से साथ हो गई वही समर महल के जनाना कश के बाहर पहरेदारी ओर खड़ा हो गया..

*************

सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना
कबतक औऱ किस-किस को सुनाये
मिलन की रतिया गीत पुराना
विराह की बाते कर मो से
उ याद दिलावे भीत पुराना
हाय रे बैरी ज़ी ना छोड़े
ज़ी से गावे संगीत पुराना
सुन रे कागा नगर बता
जहा जाकर ढूँढू मीत पुराना

बैरागी सांझ ढले महल के पीछे उद्यान में बैठे हुए गीत गुनगुना रहा था..
उसके आस पास औऱ कोई नहीं था.. रात्रि का काला प्रकाश उजाले को निगलने ही वाला था.. बैरागी बंद आँख से अपने अतीत की स्वर्णिम यादो की मिठास में खोया हुआ था उसे कब सुबह से दिन हुआ औऱ दिन से रात हुई पता ही नहीं चल सका था.. बैरागी बस गीत गाता हुआ एक नीम की ठंडी चाव में सुबह का बैठा रात तक बैठा ही रहा था..

प्रेम अगर रोग बन जाए तो रोग का उपचार आवश्यकत बन जाता है.. आपके मधुरम गीत.. सुनने वाले के कान में मिश्री सी मिठास घोल देते है मगर इसके पीछे की विराह को जानना उनके लिए चोसर के खेल से कम नहीं..
समर ने बैरागी के समीप बैठते हुए उससे कहा तो समर की बात का प्रतिउत्तर देते हुए बैरागी बोला..
प्रेम तो अपनेआप में उपचार है.. जिसके होने से फूल खिल उठता है औऱ बारिश बरसने लगती है.. पपीहे गाने लगते है औऱ पंछी गुनगुनाने.. प्रेम तो जीवन का आधार है.. प्रेम के बिना तो सब वासना है..
समर - प्रेम औऱ वासना में अंतर मनुष्य के लिए आसान नहीं रागी भईया..
बैरागी - प्रकृति के लिए तो है समर.. प्रेम करुणा है औऱ वासना क्रोध.. प्रेम कोमल है वासना क्रूर.. प्रेम कुछ देता है वासना कुछ मांगती है.. प्रेम किसी के साथ भी हो सकता है वासना हर किसी पे नहीं होती..
समर - प्रेम औऱ सम्बन्ध का अल्पज्ञान मेरी सोच की सीमाओ को सिमित रखता है रागी भईया.. आपकी बातें मेरे जैसे साधारण योद्धा के कहा समझा आ सकती है..
बैरागी - तो फिर आने का प्रयोजन बताओ समर.. बिना कारण ही तुम मुझे इस तरह मेरे एकान्त से नहीं निकालोगे.. अभी तो रात्रि भोजन में भी समय है..
समर - रानी माँ.. मेरे आने का करण रानी माँ है बरागी भईया.. उन्होंने आपको अविलम्ब उनके समक्ष उपस्थित होने का आदेश दिया है..
बैरागी खड़ा होता हुआ - तो चलिए.. चलकर उनके बुलावे का करण जान लेते है..
समर साथ चलते हुए आसमान देखकर - लगता है पहली बारिश कभी भी हो सकती है.. बदल मंडराने लगे है..
बैरागी - बदलो के आने से वर्षा नहीं होती समर.. ये तो बस एक ऊपरी दिखावा है जों कुछ पल उम्मीद दे चला जाता है..
समर - इतना निराश होना मृत्यु के सामान है रागी भईया.. जयसिंह ज़ी कहते है.. औऱ आप देखना आज पहली बारिश होकर ही रहेगी..
बैरागी - तुमसे किसने कहा मैं निराश हूँ? मैं तो हर पल अपने मीत की प्रीत में गीत गाते हुए आनंदित रहता हूँ.. आशातीत रहता हूँ.. उसके साथ भी उसका था उसके बाद भी उसका हूँ..
समर - कुछ बताओ ना उनके बारे में..
बैरागी - क्या बताऊ समर.. उसके बारे में कुछ भी तो शब्दो से बयाँ कर पाना कठिन है.. हाँ बस एक बात मुझे आश्चर्य की लगती है.. मृदुला का मुख तुम्हारे मुख से बिलकुल मेल खाता है.. उसके नयननक्श, रंग औऱ आँखे बिलकुल तुम्हारे जैसी थी.. जैसे तुम्हारी जुड़वाँ बहन हो..
समर - उस दिन परछाई में मैं अपना अक्स देखा था.. तब से मैं यही सोच रहा था की ये कैसे संभव है? मैं औऱ आपकी मृदुला एक सामान मुख वाले कैसे हो सकते है?
बैरागी - मुझे ये जानने में कोई रूचि नहीं समर.. हाँ तुम चाहो तो अपनी संतुस्टी के लिए जान लो.. मृदुला ने बताया था की उसे कोई औरत जंगल में छोड़ कर चली गई थी.. उसके बाद जंगल में एक साधना करने वाले आदमी ने उसे पाला.. जिसे मृदुला बाबा बोलती थी.. औऱ वो आदमी भी मृदुला को बेटी ही समझता था.. लो.. हम पहुंच गए..

बैरागी महल के जनाना हिस्से में रानी सुजाता के साथ चला जाता है औऱ समर बैरागी से बात करके महल के जनाना हिस्से के बाहर पहरेदारी पर खड़ा हो जाता है..

समर के सर में बैरागी की कही एक एक बात वापस घूमने लगी औऱ वो सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है कि उसकी कोई जुड़वाँ बहन हो?
समर को रह रह कर उस पागल की याद आ रही थी जो ये बात बताता था की उस रात उसने शान्ति को बच्चा ले जाते देखा था.. समर ने ये तय कर लिया था की अब वो शान्ति से इस सच्चाई को उगलवा के रहेगा.. चाहे कुछ भी हो जाये वो सच्चाई जानकार रहेगा.. वो अधीरता से अपने पहरेदारी के समय की समाप्ति का इंतजार करने लगा..

बैरागी जब जनाना महल में पंहुचा तो उसे सुजाता रुक्मा के कश में ले गई जहा रुक्मा ज्वार में थी वैद्य भी वही बैठा था..
बैरागी के आते ही वैद्य ने कहा - मेरी उम्र तुमसे तीन गुना है बैरागी.. मगर मैं जानता हूँ मेरा ज्ञान तुमसे उतना ही अल्प है..
बैरागी - बात क्या है वैद्य ज़ी.. कुछ बताएंगे..
सुजाता - रुक्मा जब से गढ़ से वापस आई है रागी.. उसपर ज्वार चढ़ा हुआ है.. तीन दिनों से ना ठीक से खाया है ना पिया है.. बस नींद में राजकुमार कहकर चुप हो जाती है.. मुझे तो लगता है रास्ते में जो कुछ हुआ उसका भय रुक्मा के मन में बैठ गया है.. जागीरदार भी गजसिंह औऱ कर्मा की तलाश में जा चुके है उन्हें संदेसा भिजवाया है पर उनका कोई पता नहीं.. अब मुझे समझ नहीं आ रहा रागी मैं क्या करू?
वैद्य - ज्वार में जो औषधि दी जाती है मैं राजकुमारी को दे चूका हूँ पर ये ज्वार तो जाने का नाम ही नहीं लेता.. तुम ही कुछ उपाए बताओ बेटा..
बैरागी नींद में लेटी रुक्मा की जांच करके - ज्वार तो बहुत तेज़ है औऱ आपकी दी हुई औषधि भी सही है.. फिर राजकुमारी के स्वास्थ्य में सुधार क्यों नहीं हो रहा? ये आश्चर्य की बात है रानी माँ..
सुजाता - रागी अब तुम ही कोई उपाय करो..
बैरागी - मैं कुछ करता हूँ रानी माँ.. आप बाहर से समर को बुलवा दीजिये.. मुझे उससे कुछ मँगवाना है..
सुजाता ने एक पहरेदार से समर को अंदर भेजनें को कहा..
समर अंदर आकर सर झुकाते हुए - रानी माँ..
समर की आवाज रुक्मा के कानो में जाते ही उसकी आँख खुल गई औऱ उसकी नज़र समर पर पड़ते ही रुक्मा की आँखों में चमक आ गई..
बैरागी की नज़र भी रुक्मा पर पड़ गई औऱ रुक्मा जिस प्रेम लगाव औऱ तृष्णा की भावना से भरकर समर को देख रही थी उससे बैरागी को समझते देर न लगी कि रुक्मा का ज्वार किसी औषधि से नहीं बल्कि समर की उपस्थिति से ठीक होगा..
सुजाता बैरागी से - रागी.. बताओ क्या लिवाना है.. समर उपस्थित है..
बैरागी मुस्कुराते हुए - अब कुछ लिवाने की आवश्यकता नहीं है रानी माँ.. आप खाने का आदेश दीजिये.. राजकुमारी को भूख लगी है..
रुक्मा समर को देखे जा रही थी औऱ अब समर की नज़र भी रुक्मा से मिल चुकी थी मगर समर ने होनी आँख नीचे झुका ली..
सुजाता ये बात नहीं समझ सकी थी वो बोली - क्या कह रहे हो रागी? रुक्मा ने तीन दिनों से खुश नहीं खाया..
बैरागी मुस्कुराते हुए - रानी माँ.. अब आप खिलाइये.. राजकुमार सब खा लेगी.. औऱ वैद्य ज़ी के साथ समर को भी यही रहने दीजिये.. उसे राजकुमारी के कश की पहरेदारी पर लगा दीजिये.. वैद्य ज़ी को आसानी होगी..
सुजाता खाना मंगवाती है औऱ रुक्मा को खिलाने लगती है रुक्मा कश के बाहर तैनात समर को खिड़की के झरोखे से देखती हुई खाना खा लेती है..

*****
******

बैरागी बाहर आ जाता है औऱ बाहर होती बरखा देखकर मुस्कुराता आसमान औऱ फिर धरती की तरफ देखता है..
रुक्मा को खाना खिलाने के बाद सुजाता वहा से आ जाती है औऱ बैरागी को गलियारे के किनारे पर खड़ा देखकर उसके पास आ जाती है..

सुजाता - सावन की पहली बरखा.. कितनी मनोरम होती है.. मन में मोर नाचते हुए प्रतीत होते है.. कोयल की मधुर आवाज औऱ पपीहे की कुहू ह्रदय को कितना सुख देती है.. ऐसे में साजन या सजनी साथ ना ही तो सावन भी जेठ लगने लगता है..
बैरागी सुजाता को देखकर - रानी माँ.. सावन प्रेम के बंजर को हरा भरा रखने के लिए प्रकृति का वरदान है.. किसी के लिए ये वियोग का विलाप है तो किसी के लिए मिलन की मधुर बेला.. इसे देखना अपनी अपनी आँख की बात है.. जिसे जैसा लगता है वैसा कहता है.. मेरे लिए तो ये आज भी मृदुला की मनमोहक यादो से जुडा हुआ है..
सुजाता - इतना प्रेम? रागी.. मैं ये कहने की अधिकारी तो नहीं, मगर तुम मेरे पुत्र सामान हो तो कह देती हूँ.. प्रेम अविरल बहने की रीत है.. रुकने पर जैसे नदी का पानी सड़ जाता है वैसे ही प्रेम भी रुकने पर मानव के सम्पूर्ण जीवन को सड़ा कर नस्ट कर देता है.. जो हो गया उसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ो.. मृदुला के प्रति तुम्हारा प्रेम, मृदुला के बाद तुम्हारे जीवन को नस्ट कर रहा है.. केवल 24 वर्ष की आयु मैं यूँ बैराग धारण करना सही नहीं है.. तुम अब भी फिर से प्रेम करने औऱ प्रेम पाने के योग्य हो.. अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारे विवाह योग्य स्त्री ढूंढती हूँ.. किसी के जाने से जीवन नहीं समाप्त होता..
बैरागी मुस्कुराते हुए - मिलन औऱ विरह दोनों ही प्रेम के पूरक है रानी माँ.. मैंने जितना मेरे प्रियतम के साथ मिलन का सुख भोगा है उतनी ही उसके वियोग में विराह की पीड़ा भी भोगने का पात्र हूँ..
सुजाता बैरागी के करीब आकर - रागी.. मैं कामना करती हूँ तुम्हारी पीड़ा का जल्द ही समापन हो. औऱ कोई तुम्हे उसी तरह चाहे जैसे तुम मृदुला से प्रेम करते हो..
बैरागी मुस्कुराते हुए सुजाता को देखता है औऱ सुजाता भी मुस्कुराते हुए बैरागी को देखकर वहा से चली जाती है..

***********

जब समर के पहरदारी करने का समय समाप्त हुआ था वो सीधा शान्ति के पास चला गया.. शांति घर के अंदर थी औऱ उसका पति खेत में गया हुआ था.. आँगन में उसके 14 का बेटा औऱ 9 की बेटी खेल रहे था.. समर ने लड़के को अपने पास बैठा लिया औऱ लड़की को अंदर शान्ति को बुलवाने भेजा..
शान्ति जब बाहर आई तो उसने समर को देखकर कहा..
शान्ति - अरे समर तू कब आया? कुछ काम था?
समर अपनी कटार निकाल कर लड़के की हथेली पर चुभाते हुए - हाँ.. मौसी.. काम तो था.. औऱ बहुत जरुरी काम था..
शान्ति - समर क्या कर रहा है.. उसे लगेगा.. रक्त आ जाएगा..
समर - आएगा.. मगर तब जब आप झूठ बोलोगी..
शान्ति - मैं समझी नहीं समर तू क्या कह रहा है?
समर - वो बुढ़ा पागल.. जो कहता ये था कि उसने तुम्हे मेरे जन्म की रात मेरे घर से एक बच्चा ले जाते हुए देखा था.. कहा ले गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति हड़बड़ाती हुई - कोनसा बच्चा समर? क्या कह रहा है.. देख उसे लग जाएगा..
समर लड़की की हथेली पर कटार चुबो कर रक्त निकाल देता है औऱ कटार अब लड़के के गले पर लगा देता है..
समर - एक औऱ झूठ औऱ ये यही चित... मैं वापस नहीं बताऊंगी मौसी.. कहा लेकर गई थी आप वो बच्चा?
शान्ति डर से चिल्लाते हुए - जंगल.. समर छोड़ उसे..
समर - मुझे पूरी बात जाननी है मौसी..
शान्ति डरते हुए जमीन पर बैठकर समर को सारी सच्चाई बता देती है.. औऱ समर सच्चाई जानने के बाद लड़के को छोड़कर शांति के घर से निकल जाता है औऱ जंगल की तरफ उसी दिशा में जाने लगता है जहा शान्ति ने उसे बताया है..

***********

समर के पीछे उसकी माँ लता औऱ उसके 4-5 साथी लंगड़ू के साथ समर का पीछा कर रहे थे..
जंगल में एक जगह समर जाकर खड़ा हुआ औऱ जमीन पर गिरे हुए जामुन को खाने की नियत से उठाने के लिए नीचे झुका की पीछे से लंगड़ू का चलाया तीर समर के झुकने से उसे ना लगकर पेड़ को लगा औऱ समर अपनी तलवार निकालकर पीछे मुड़ गया जहा उसने 6 लोगो को खड़ा देखा.. लता पेड़ के पीछे छुप गई थी..
उन लोगों ने आव देखा ना ताव.. औऱ समर को मारने के लिए उसपर कुच कर दी मगर सभी लोग एक एक करके समर की तलवार के वार से जीवन को छोड़ कर चले गए.. लंगड़ू घायल होकर जमीन पर था..
लंगड़ू - समर मुझे छोड़ दे समर.. मैं तेरा मामा हूँ ना.. देख मैं तुझे नहीं मारना चाहता था.. समर... मुझे तो तेरी माँ यहाँ लाई थी..
लता एक मरे हुए साथी की तलवार उठा कर पीछे से समर पर हमला कर देती है मगर समर उसके तलवार का वार नाकाम करके एक जोरदार थप्पड़ लता के गाल पर मार देता है जिससे लता के हाथ से तलवार छुटकरा गिर जाती है औऱ लेता भी जमीन पर गिर जाती है..
समर लंगड़ू को मार देता है औऱ लेता जब वापस समर पर हमला करती है तो समर वापस उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है औऱ एक लात लता की गांड पर मारकर उसको जमीन पर गिरा देता है..
लेता गुस्से में देखते हुए - खड़ा खड़ा देख क्या रहा है मार दे मुझे भी.. जागीरदार की सजा से तड़पकर मरू उससे अच्छा है तेरे हाथो से मर जाऊ...



गौतम लता की ओढ़ानी खींचकर उससे अपनी तलवार साफ करता हुआ कहता है - वैश्या को मारा नहीं जाता.. उसके साथ बदन की आग बुझाई जाती है..

ये कहते हुए समर ने अपनी तलवार एक तरफ रख दी औऱ अपनी माँ के ऊपर आ जाता है औऱ उसकी चोली फाड़ देता है..
लता एक थप्पड़ मारकर - छोड़ मुझे..
समर लेता का घाघरा उठा कर उसकी झंगिया नीचे सरका देता है औऱ अपना फंफनता हुआ लंड अपनी माँ की चुत में घुसा देता है औऱ अपनी माँ को चोदने लगता है..

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लता लंड घुसते ही - समर.. अह्ह्ह्ह...
समर लगातार लता की चुत में झटके पर झटके मारके अपनी माँ लता उर्फ़ लीलावती को चोदने लगता है जिससे लता भी अब कामुक होने लगती है.. पहलेपहल विरोध औऱ बगावत करने वाली लता अब काम पीपासा से भर गई थी.. उसकी सारी चिंता, भय औऱ क्रोध अब काम की अग्नि में जलकर स्वाह हो गई थी...

कुछ देर पहले तक लता अपने बेटे समर के प्राण लेने पर उतारु थी मगर अब वो समर के नीचे पड़ी हुई समर की मर्दानगी से प्रभावित होकर समर को देख रही थी.. समर के सुन्दर मुखमंडल को देखते हुए लता चुदाई का सुख भोगने लगी थी अभी तक उसने अपनी औऱ से कोई शुरुआत नहीं की थी मगर अब उसने समर का विरोध करना भी छोड़ दिया था.

समर लगातार चोदते हुए अपनी माँ को गुस्से की नज़र से देख रहा था मगर अब लता की आँखों में समर के प्रति गुस्सा नहीं था बल्कि प्रेम उतर चूका था..
समर के मजबूत औऱ बड़े लंड की चोट खाकर लता गजसिंह के बूढ़े पतले औऱ अदमरे लंड को भूल चुकी थी..
समर के लंड की ठोकरे खाकर लता की चुत ने अपने बाँध का पानी छोड़ दिया औऱ वो झड़ गई जिससे अब समर का लंड औऱ आसानी से लता की चुत में अंदर बाहर होने लगा औऱ थप थप घप घप की आवाज का औऱ भी अधिक मधुरम संगीत आस पास सुनाई देने लगा..

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समर चोदते हुए लता का एक बोबा पकड़कर मसलते हुए पहली बार अपने होंठ लता के होंठों ओर रख देता है जिसे लता अपने होंठों से चूमने लगती है औऱ अपने दोनों हाथ समर के गले में डालकर उसके बाल सहलाते हुए समर के मुंह में अपनी जीभ डाल देती है औऱ समर एक दम से लता के इस व्यवहार से चौंक जाता है मगर लता की कामकला में पारंगत होने के करण समर लता को रोक नहीं पाता औऱ लता के मुख का स्वाद लेने लगता है..
समर को चोदते हुए काफी देर हो गई थी मगर उसका निकला नहीं था लता ने समर को धक्का देते हुए पलट दिया औऱ उसके ऊपर आकर जोर जोर से अपनी गांड हिलाने लगी जिससे समर सम्भोग के जाल में बुरी तरह फंस गया.. स्मार्ट अब लता को अपनी माँ या गद्दार के रूप में नहीं बल्कि एक चुदाई के सामान के रूप में देखने लगा था..

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उसे लगा था की वो लता को चोद कर सजा देगा मगर अब लता ही समर को चोद रही थी औऱ उसके साथ अपनी भी काम इच्छा संतुष्ट कर रही थी..
लता फिर से झड़ने की कगार पर थी औऱ समर भी लता के गांड हिलाने की कला से अब झड़ने के नज़दीक था..
दोनों एक साथ झड़ते हुए सम्भोग के शिखर तक पहुंच गए.. फिर लता समर के ऊपर ही गिर गई...

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लता के चुचक समर के सीने में चुभ रहे थे.. जो उसे एक मीठा औऱ दिलकश अहसास देने लगे थे.. समर का सारा गुस्सा लता की चुत ने शांत कर दिया था औऱ अब समर को केवल लता से नाराजगी थी..
वही लता का भी सारा डर चिंता औऱ भय समाप्त हो चूका था.. उसके मन में अब अपने बेटे समर के प्रति काम इच्छा का उदय हो चूका था..
कुछ देर यूँही पड़े रहे के बाद समर लता को अपने ऊपर हटाते हुए खड़ा हो गया औऱ अपने वस्त्र ठीक करने लगा.. लता ने भी कपडे पहन लिए औऱ समर के हाथो में उसकी तलवार देकर बोली - जान नहीं लेगा मेरी?

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समर लता का घाघरा उठाकर उससे अपना लंड साफ करता हुआ - मुझे अगर तुम्हारी जान लेनी होती तो मैं सुबह ही ले लेता लीलावती... या जागीरदार को सच्चाई बताकर तुझे क़ैद करवा लिया होता..
लता समर के हाथ से घाघरा लेकर खुद समर का लंड साफ करते हुए शर्म औऱ पछतावे भरे स्वर में - मुझे क्षमा कर दे समर.. मैं तेरी दोषी हूँ.. मैंने तेरी जान लेने की कोशिश की है..
समर जाते हुए - तुम मेरे लिए मर चुकी हो लीलावती.. अच्छा होगा कि तुम भी मुझे अब मरा हुआ मान लो.. तुम्हे जैसे जिसके साथ भी जीना है जाओ जिओ..
लता खड़ी खड़ी समर को जाते हुए देखती रहती है औऱ तब तक देखती जबतक समर आँखों से ओझल नहीं हो जाता.. फिर लता जंगल से निकलकर घर चली जाती है औऱ समर को मनाने का निर्णय करने लगी.. समर भी जंगल में इधर उधर घूमकर वापस आ जाता है उसे कहीं मृदुला के निशान नहीं मिले थे. समर घर जाने बजाये किसी औऱ के पास जाकर रात बिताता है औऱ सुबह फिर पहरेदारी पर तैनात हो जाता है..

समर पहरेदारी पर तैनात था.. रुकमा अपने कक्ष से रह रहकर समर को देख रही थी.. खिड़की से मिलती समर की झलक रुकमा के मन में प्रेम की छाप आपको और प्रगाढ़ कर रही थी.. रुक्मा अब तक समर से बात नहीं की थी वह समर से बात करना चाहती थी मगर वेद जी की उपस्थिति सुजाता के आने जाने और अन्य पहरेदारों के होने से उसकी हिम्मत समर से बात करने की नहीं हो रही थी.. रुकमा की बीमारी में सुधार आया था ये वैध जी की औषधि ने काम नहीं किया किंतु समर की उपस्थिति में रुकमा के स्वास्थ्य को सुधारने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई..
समर अपने प्रति रुकमा के मन में भरे प्रेम से पूरी तरह अनजान था.. समर को अब तक नहीं पता लगता था कि रुकमा उसे पर पूरी तरह से अपना दिल और जान हार बैठी है..

पहरेदारी के दौरान जब बैरागी और समर की बातचीत हुई तब समर ने बैरागी को बताया कि किस तरह शांति ने जन्म के दौरान उसकी जुड़वा बहन को जंगल में ले जाकर छोड़ दिया था.. बैरागी ये जानकार कर पूरी तरह समझ हो चुका था कि समर मृदुला का ही जुड़वाँ भाई है.. समर ने बैरागी से मृदुला के बारे में जानने की कोशिश की.. और बैरागी ने बड़े इत्मीनान और ठहराव के साथ समर को मृदुला के स्वभाव और गुणो के बारे में बताना शुरू कर दिया.. समय मृदुला की एक मनोरम छवि अपने हृदय में बना कर उसके बारे में सोचने लगा.. जिस तरह बैरागी में मृदुला का गुणगान किया था उससे समर को अपनी बहन से ना मिल पाने और उसे ना देख पाने का पछतावा और दुख हो रहा था.. उसे लग रहा था कि क्यों उसने उस बूढ़े आदमी कि बात पर पहले विश्वास नहीं किया और पहले अपनी बहन को नहीं खोजा..

बैरागी बैठा हुआ पौधों को देखा और परख रहा था.. विरेंद्र सिंह की बताई हुई जगह पर बैठकर बैरागी ने चार दिनों के भीतर कई रोग का इलाज ढूंढ लिया था जिसमें से एक स्त्री रोग भी था.. बैरागी किसी और रोग का उपचार ढूंढ रहा था कि वहां सुजाता आ गई और बैरागी को देखकर उससे बात करने लगी.. बैरागी और सुजाता की बात बैरागी के काम के साथ चलने लगी बैरागी पौधों की जांच और परख करता हुआ औषधि निर्माण कर रहा था और सुजाता उससे उस बारे में बातचीत करते हुए औषधीय और पौधों के बारे में जानकारी ले रही थी..

वीरेंद्र सिंह गजसिंह और कर्मा डाकू को ढूंढने के लिए निकल चुका था मगर उसे दोनों कहीं नहीं मिले.. और ना ही उसे इस बात की खबर मिली कि समर में उन दोनों को पहले ही मार गिराया है.. वीरेंद्र सिंह जंगल में यहां वहां भटकता हुआ जागीर की सीमा के बाहर भीतर आ जा रहा था और गजसिंह और कर्मा के सारे ठिकानों पर ढाबा बोल रहा था जहां उसे कोई नहीं मिल रहा था.. हर जगह बस उसे गजसिंह औऱ कर्मा के गांब होने की खबर मिल रही थी..

वीरेंद्र सिंह ने जिन सैनिको को पश्चिम में भेजा था वो लोग वही ठहर कर पहली बारिश का इंतजार कर रहे थे औऱ बटाइ गई चीज लाने को आतुर थे.. पश्चिम में अभी सावन की पहली बरखा नहीं गिरी थी..

लता समर के साथ सम्भोग के बाद पूरी तरफ बदल गई थी औऱ अब वो समर से माफ़ी मांगकर उसे अपने पचाताप का अहसास दिलाना चाहती थी.. इसके साथ ही लता चाहती थी की समर उसके जोबन की अभिलाषा को शांत कर उसके साथ नया रिश्ता कायम करें..


गौतम ने सपने में इतना सब देखा औऱ फिर उसकी नींद खुल गई.. उसने सपने के बारे में कुछ देर सोचा फिर उसे एक सामान्य सपना मानकर अपने ख्याल से निकाल दिया..

सुपर से भी ऊपर👌👌
 

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सुबह 10:00 बजे नींद के आगोश में सोए गौतम की नींद दिन के 2:00 खुली.. गौतम ने जो सपना देखा था उसके बारे में काफी देर तक वो सोचता रहा कि कैसे उसे ऐसे अपने आ रहे है.. लेकिन फिर अपना ध्यान सपने से हक़ीक़त में लाता हुआ बेड से खड़ा हो गया... गौतम ने होटल में देखा तो लगभग सब घर जा चुके थे.. होटल में सिर्फ कुछ मेहमान लोग ही बचे थे. गौतम ने सुमन को फोन किया तो सुमन ने उसे घर आने के लिए कहा.. गौतम का सारा सामान सुमन अपने साथ घर ले जा चुकी थी बस एक शराब की बोतल यही पड़ी थी अभी तक.. और नींद में होने के कारण सुमन ने गौतम को जगाना जरूर नहीं समझा क्योंकि सुमन जानती थी कि गौतम रात भर का जगा हुआ है. सुमन से बात करके गौतम ने फोन रख दिया और फिर अपना मुंह धो कर होटल से घर के लिए निकल गया उसने देखा की यहां आज भी किसी ना किसी की शादी तैयारी चल रही थी..


गौतम जब घर पहुंचा तो उसने देखा कि ऋतु के विदाई की तैयारी चल रही है और घर पर कुछ खास मेहमानों के अलावा घर के लोग ही थे. गौतम अपने कमरे में जाकर नहाने लगा. जब गौतम बाथरूम से नहा कर निकाला तो उसके सामने चाय का कप हाथ में लिए गायत्री खड़ी थी गायत्री ने चाय का कप टेबल पर रखा और फिर गौतम के गाल को सलाहकार उसपर एक प्यारा सा चुंबन करती हुई बोली..
गायत्री - गूगु चाय पी ले और जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जा.. तेरी दीदी की विदाई होने वाली है..
गौतम ने गायत्री की कमर में हाथ डालकर उसे अपने बिल्कुल करीब खींचते हुए गले से लगा लिया और दीवार से चिपक कर उसके होठों के बिल्कुल करीब अपने होंठ लाकर गायत्री से बेहद कामुक अंदाज में बोला..
गौतम - विदाई तो होती रहेगी नानी थोड़ी सी चुदाई करें?
गायत्री गौतम के होठों से अपने होंठ सटाती हुई बोली - अभी नहीं बेटा.. पिछली बार का दर्द अब तक बाकी है जब ठीक हो जाएगा तब कर लेना..

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गौतम ने कुछ पल गायत्री के होठों का चुम्मा ही था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह गायत्री से दूर हटकर टेबल पर रखे चाय के कप को उठाकर चुस्कियां लेते हुए चाय पीने लगा और दरवाजे के बाहर से अंदर आते हुए उसे संजय दिखा जिसने आते ही गायत्री से कहा..
संजय गायत्री से - माँ चलो ना ऋतू को विदा करना है..
गायत्री - चल संजय मैं तो ग़ुगु को चाय देने आ गई थी..
संजय - ग़ुगु तू जल्दी नीचे आजा बेटा..
गौतम - ज़ी मामा ज़ी.. नहाने लग गया था मैं बस तैयार होकर आता हूँ..

गायत्री संजय के साथ नीचे चली गई थी और गौतम अपने कपड़े पहनने लगा था.. गौतम तैयार होकर जैसे ही नीचे आया उसने देखा कि हॉल में बहुत सारे लोग एकत्रित हो रखे थे और बीच में ऋतु में बैठे हुए थी राहुल के साथ. दोनों से मेहमान हंसी स्टोरी कर रहे थे और अपनी अपनी बातें एक दूसरे को बता रहे थे जब विदाई की बारी आई तो ऋतु के आंसू निकलने लगे और वह रोती हुई संजय औऱ गायत्री से लिपट गई..

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ऋतू तो फूट के रोने लगी और एक-एक करके सबसे मिलने लगी उसने सबसे पहले अपने पिता संजय फिर गायत्री फिर कोमल सुमन चेतन आरती और फिर ग़ुगु के गले लगते हुए रोना जारी रखा.
गौतम के गले लगकर रितु बहुत जोर से फूट-फूट कर रोने लगी जिस पर गौतम ने धीमी आवाज में ऋतु के कान में कहा.. दीदी इतना ड्रामा मत करो.. मैं जानता हूं आपको घंटा रोना नहीं आ रहा..
गौतम की बात सुनकर रितु रोना कम कर देती है मगर रोना बंद नहीं करती.. ऋतू आम लड़कियों की तरह ऐसा जता रही थी जैसे वह घर से विदा नहीं होना चाहती और हमेशा यही रहना चाहती है मगर गौतम को ऋतू की ये नाटक और ड्रामेबाजी अच्छे से समझ आ रही थी. सबके बार-बार समझाने पर भी रितु रोने का नाटक करने के राहुल के साथ विदा होने से इनकार कर कर रही थी और जाने से मना कर रही थी..

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घर के दरवाजे पर गाड़ी तैयार थी मगर ऋतू उसमे बैठने को तैयार नहीं थी उसने अब तक घर के हाल से कदम आगे नहीं बढ़ाया था और सब उसे बारी बारी से समझा कर थक चुके थे की बेटी लड़की को ससुराल जाना पड़ता है लड़की पराया धन होती है. जब ऋतू किसी के समझाने से नहीं समझी और अपना रोने धोने का नाटक जारी रखते हुए हाल में ही बैठ गई तो गौतम में रितु को अपनी गोद में उठा लिया और हाल से उठकर बाहर लाते हुए गाड़ी में बैठा दिया..

गौतम इमोशनल ड्रामा करते हुए ऋतू के बगल में बैठे हुए राहुल से कहा - जीजा जी ख्याल रखना मेरी बहन का.. फूलों की तरह कोमल नाजुक प्यारी है.. बहुत संस्कारी सुशील औऱ पवित्र भी.. कभी दिल मत तोडना मेरी बहन का..
राहुल - आप फ़िक्र मत कीजिये.. मैं ऋतू को खुश रखूँगा..

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गौतम इतना कहकर गाड़ी से दूर हो गया और फिर बारी-बारी से घर के लोग ऋतू से मिलने लगे और उसे समझने लगे की ससुराल में उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं.. इतना सब हो ही रहा था कि गौतम घर के गेट पर खड़ा हो गया.. औऱ अपने फ़ोन में पिंकी का कॉल आते देखकर ऊपर छत पर चला गया और पिंकी का कॉल उठाकर बोला..
गौतम - हेलो बुआ?
पिंकी - केसा है मेरा ग़ुगु?
गौतम - आपके बिना केसा हो सकता हूँ बुआ? कल कितने फ़ोन किये आपको.. पर आप फ़ोन बंद करके बैठी थी.. उस दिन कहा था ना शादी में आना है.. आपके बिना बोरिंग थी सादी..
पिंकी - सॉरी ग़ुगु.. वो फ्लाइट इतनी डिल्य हो गई की आना हो ही नहीं पाया.. फ़ोन भी चार्ज नहीं किया था मैंने.. अभी अभी घर पहुंची हूँ..
गौतम - कहाँ गई थी आप?
पिंकी - तेरे फूफा ज़ी के साथ लन्दन गई थी ग़ुगु.. तेरे लिए बहुत से गिफ्ट लाई हूँ.. अभी यही है ना?
गौतम - हाँ.. दीदी की विदाई का नाटक चल रहा है..
पिंकी हसते हुए - अच्छा वो सब छोड़ जल्दी मेरे पास आजा..
गौतम - एड्रेस पहले वाला ही है ना?
पिंकी - नहीं बाबू अब वहा नहीं रहते.. मैं तुझे व्हाट्सप्प करती हूँ अड्रेस.. तू जल्दी से आजा अपनी बुआ के पास.. मुझे तेरे प्यारे से होंठ चूमने है..
गौतम - आता हूँ बुआ..
पिंकी - बाय बाबू..
गौतम - बाय बुआ..

ऋतू की विदाई हो चुकी थी औऱ गौतम अपने कमरे में जूते पहन रहा था तभी सुमन अंदर आते हुए बोली - खाना खा ले ग़ुगु..
गौतम - होटल में खा लिया था माँ.. अब रात को ही खाऊंगा..
सुमन - कहीं जा रहा है..
गौतम - हाँ.. उस दिन आपने बुला लिया तो शहर अच्छे से घूम नहीं पाया था.. कल तो वैसे भी वापस घर चले जाएंगे तो आज बाकी का शहर घूम लेता हूँ..
सुमन मुस्कुराते हुए गौतम के सर को चूमकर - वापस आने में ज्यादा देर मत करना..
गौतम - I'll be back soon माँ..
सुमन - हम्म्म.. क्या ग़ुगु?
गौतम सुमन के गाल पर चूमा देकर - मैंने कहा मैं जल्दी आ जाऊंगा..
सुमन मुस्कुराते हुए - हाँ तो ऐसे बोल ना.. अंग्रेजी में क्या गिटर पीटर करता मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..
गौतम - आपने ही बड़े स्कूल में डलवाया था याद है?
सुमन - हा हा तो क्या अपनी अंग्रेजी अपनी अनपढ़ माँ पर झाड़ेगा?
गौतम सुमन का हाथ पकड़ते हुए - अनपढ़ कैसे हुई आप.. पढ़ना लिखना तो अच्छे से आता है आपको.. टीवी देखकर सारे इंग्लिश के वर्ड भी सिख गई हो.. औऱ घर का सब काम भी कितनी अच्छे से करती हो.. आप तो भारतीय संस्कारी नारी का परफेक्ट एक्साम्प्ल हो..
सुमन गौतम के होंठों को उंगलियों से पकड़कर - अब इतनी भी तारीफ़ मत कर अपनी माँ की..
गौतम सुमन ऊँगलीयों को चुमकर - काश मैं आपकी तारीफ़ कर सकता माँ.. आपकी तारीफ़ के लायक़ शब्द हो नहीं बने दुनिया में..
सुमन हसते हुए - हट बदमाश.. चल अब जा.. मुझे भी बहुत काम है अभी..
गौतम प्यार से बच्चों जैसा फेस बनाकर - किस्सी तो दे दो माँ..
सुमन मुस्कुराती हुई गौतम के सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसके होंठों से अपने होंठ मिलकर एक छोटा सा चुम्मा करती हुई गौतम से बोली - खुश? चल अब जाने दे..
सुमन चली जाती है औऱ गौतम भी घर से निकल जाता है..
200


**********

अरे अरे कहा घुसे चले आ रहे हो भाई? क्या काम है, किससे मिलना है?
गॉर्ड ने बँगले के गेट पर गौतम को रोककर कहा..
गौतम - ज़ी मुझे पिंकी बुआ से मिलना है..
बँगले के गेट पर खड़े दो गार्डो में से एक ने कहा - यहां कोई पिंकी नहीं रहती जाओ यहां से..
गौतम फ़ोन में एड्रेस देखकर - पर ये अड्रेस तो यही का है..
एक गार्ड ने एड्रेस देखकर कहा - एड्रेस तो यही का है भईया पर यहां कोई पिंकी नहीं रहती.. गलत अड्रेस भेजा है किसी ने आपको.. आप जाइये यहां से मालकिन बहुत गर्म मिज़ाज़ की है.. उन्होंने किसी अजनबी को देख लिया तो हमारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी..

गौतम पिंकी को फ़ोन लगाता हुआ - हेलो.. बुआ?
पिंकी बँगले के गेट के पास अंदर बने गार्डन में एक चेयर पर बैठी हुई कोई फेशन मैगज़ीन पढ़ रही थी की गौतम का फोन आने पर फोन उठती हुई बोली - हाँ बाबू..
गौतम - बुआ ये अड्रेस तो गलत है शायद.. गेट पर खड़े गार्ड बोल रहे है यहां कोई पिंकी नहीं रहती है..
पिंकी गुस्से में मैगज़ीन सामने रखी टेबल पर फेंककर - तू रुक वही.. मैं आती हूँ..
गौतम को तुरंत ही रूपा का फ़ोन आ जाता है औऱ वो रूपा से बात करते हुए गेट से दूर चला जाता है..
पिंकी गुस्से से तिलमिलती हुई गार्डन से गुजरते हुए बंगले के गेट पर पहुंची..

पिंकी को देखकर दोनों गॉड सर झुकाकर एक साथ बोले - नमस्ते मेम साब..
पिंकी गुस्से में - तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई मेरे भतीजे को गेट पर रोकने की? इतनी भी तमीज नहीं है कि किसे रोकना है औऱ किसे नहीं? ये सब भी सीखना पड़ेगा तुम लोगों को..
एक गार्ड सर झुका कर - माफ़ करना मेमसाब.. हम नहीं जानते थे भईया ज़ी कौन है.. गलती हो गई हमसे..
पीछे से पिंकी के पति फ़कीरचंद आता हुआ..
फ़कीरचंद - क्या हुआ प्रमिला.. क्यों चिल्ला रही हो इन दोनों बेचारो पर..
पिंकी गुस्से में - चिल्लाऊ नहीं तो क्या करू.. पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है औऱ उसे अंदर आने से रोक दिया दोनों ने.. इनको अभी नौकरी से निकालती हूँ मैं..
दूसरा गार्ड सर झुका कर - मालिक.. हमें माफ़ कर दो.. हमें गलतफेहमी हो गई थी.. हमें पता नहीं था प्रमिला मेमसाहेब के घर का नाम पिंकी है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - अरे छोडो ना प्रमिला.. गलतफहमी हो जाती है.. इंसान है.. औऱ ग़ुगु आया है? कहा है वो?
प्रमिला गेट के बाहर आकर देखती है तो गौतम थोड़ी दूर पर रूपा से फ़ोन पर बात कर रहा होता है..
पिंकी आवाज लगा कर - ग़ुगु..
गौतम पिंकी को देखकर रूपा से बाद में बात करने की बात बोलकर फ़ोन रख देता है औऱ वापस आ जाता है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - कितना बड़ा हो गया है ग़ुगु? बिलकुल हीरो लगने लगा है..
पिंकी गौतम को जोर से गले लगाती हुई - लगने क्या लगा है.. है ही हीरो मेरा ग़ुगु..
गौतम - बुआ आराम से..
फ़कीर चंद हसते हुए - अब छोड़ भी दो अपने भतीजे को प्रमिला..
प्रमिला - सॉरी तुझे वेट करना पड़ा गेट पर..
गौतम - कोई बात नहीं बुआ.. ये तो बहुत छोटी सी बात है..
पिंकी - पैर वेर छूना नहीं सिखाया भाभी ने तुझे..
गौतम मुस्कुराते पिंकी के पैर छूकर - अच्छा लो..
पिंकी - अरे मेरे नहीं अपने फूफाज़ी के.. पागल बच्चा.. चल अंदर.. तेरे लिए तेरी मनपसंद चीज बनाई है..
फ़कीरचंद - अच्छा तभी आज अपने हाथों खाना बनाया जा रहा था..
पिंकी - तो ना बनाउ? पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है..
फ़कीरचंद - अच्छा तुम बुआ भतीजे बात करो मैं जरा बाहर हो आता हूँ..
पिंकी - अब आप कहा जा रहे हो?
फ़कीरचंद - फैक्ट्री हो आता हूँ.. मुकेश को कुछ कागजो पर दस्तखत चाहिए थे..
पिंकी - तो उसे ही यहां बुलवा लिया होता.. आपको मैनेजर के पास जाने की क्या जरुरत?
फ़कीरचंद - वो तो आ रहा था मैंने ही मना कर दिया.. सोचा थोड़ा टहल भी आऊंगा.. बहुत समय हो गया फैक्ट्री गए हुए.. आते हुए कारखाने की तरफ भी हो आऊंगा..
पिंकी - दवाइया साथ लेकर जाना.. औऱ ड्राइवर से कहना गाडी धीरे चलाये..
फ़कीरचंद - ठीक है..
गौतम पानी पीते हुए - दवाइया कैसी?
पिंकी - मधुमय है तेरे फूफाजी को.. तू चल बैठ टेबल पर.. मैं अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी मेरे बाबू को आज..
गौतम - खाना तो खा चूका हूँ बुआ..
पिंकी - ठीक पर खीर तो खानी पड़ेगी.. पसंद है ना तुझे? (पिंकी आवाज लगाकर) कम्मो.. ख़िर लेकर आना जरा.. एक औरत ख़िर की प्याली लेकर आती है जिसे पिंकी लेकर गौतम के बगल में डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसे खिलाने लगती है..
गौतम ख़िर खा कर - बस बुआ.. औऱ नहीं..
पिंकी - अच्छा.. ये बता भईया भी आये है शादी में?
गौतम मुंह साफ करता हुआ - नहीं बुआ.. उनको कहा फुर्सत.. मैं भी नहीं आने वाला था मगर माँ ने कसम खिला दी औऱ ले आई..
पिंकी गौतम को ऊपर अपने कमरे में लेजाती हुई - अच्छा किया भाभी.. वरना तू मुझसे मिलने कैसे आता?
गौतम - वैसे बुआ उस दिन फूफाजी को देखकर लगा नहीं था इतने अमीर होंगे वो..
पिंकी कमरे का दरवाजा लगाकर मुस्कुराते हुए - सही हाथ मारा है ना तेरी बुआ ने?
गौतम - ऐसे क्यों बोल रही हो बुआ.. आप कितना ख़याल रखती हो फूफाजी का.. उनको आपका शुक्रगुजार रहना चाहिए..
पिंकी अपनी साडी उतारते हुए - शुक्रगुजार तो है ही.. इसलिए मेरे नाम पर ये बांग्ला ख़रीदा है उन्होंने औऱ कुछ दिनों में दोनों फैक्ट्री औऱ कारखने भी मेरे नाम करने वाले है..
गौतम मुस्कुराते हुए - वो तो करना ही था.. आगे पीछे है भी कौन फूफाजी के आपके अलावा.. सही खेल गई बुआ आप तो..
पिंकी हसती हुई अपनी साडी कमरे में रखे सोफे पर पटककर बेड पर गौतम के पास आती हुई - मान गया ना अपनी बुआ को? है ना मेरा शातिर दिमाग.. पहली मुलाक़ात में ऐसा फसाया की अब तक फसा रखा है..
गौतम - वो तो है.. अच्छा लन्दन केसा है? सिर्फ तस्वीरों में देखा है मैंने.. जैसा फिल्मो में दीखता है वैसा ही है?
पिंकी गौतम के ऊपर आती हुई - काश में तुझे वहा ले जा पाती.. भाभी को फ़ोन किया था पर तेरी माँ तो जैसे मेरे पिछले जन्म की बैरी है.. मेरे कहते ही बोलने लगी.. ग़ुगु वहा जा कर क्या करेगा? तू अकेले ही चली जा.. ग़ुगु के इम्तिहान भी आने वाले है.. फलाना ढिमकाना.. औऱ एक हफ्ते से तुझे यहां शादी में लाकर बैठी है.. अब भाभी को तेरे इम्तिहान की परवाह नहीं है.. चालक चुड़ैल कहीं की..
गौतम - बुआ माँ को चुड़ैल मत बोलो..
पिंकी - क्यों तुझे बहुत तकलीफ होती है.. वो जब मेरे बारे में इतना कुछ कहती है तब तुझे तकलीफ नहीं होती?
गौतम - जब माँ आपके बारे में कुछ गलत बोलती है तो मैं उनको भी मना करता हूँ चाहो तो पूछ लो.. मुझसे तो आप औऱ माँ दोनों एक जैसा प्यार करती हो.. मैं आप दोनों के लिए कुछ गलत नहीं सुन सकता..
पिंकी - अच्छा छोड़.. मुझे अब मेरी किस्सी चाहिए..
गौतम पिंकी को चूमते हुए - ठीक है बुआ..
पिंकी चूमते हुए - बहुत सॉफ्ट लिप्स है तेरे बाबू..

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गौतम - आपके भी तो कितने प्यारे लिप्स है बुआ मन करता है खा जाऊ..
पिंकी जीभ से चाटते हुए - खा जा ना बाबू.. बुआ मना थोड़ी करेंगी अपने ग़ुगु को..
गौतम चूमता हुआ - बहुत miss किया बुआ आपको..
पिंकी गौतम की टीशर्ट उतारकर - ये सब क्या है ग़ुगु.. तेरे गले पर सीने पर इतने निशान किसने किये?
गौतम मुस्कुराते हुए - ये शादी में मिले है बुआ.. एक लड़की ने बहुत तंग किया मुझे..
पिंकी मुस्कुराते हुए - क्या नाम था उसका?
गौतम - सिमरन..
नाम लेटे ही सिमरन का फ़ोन गौतम के फ़ोन पर आ गया जिसे देखकर गौतम हसता हुआ बोला - देखो ना बुआ.. शैतान का नाम लिया शैतान हाज़िर..
पिंकी मुस्कुराते हुए - उठा ना.. बात कर क्या कहती है..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो..
सिमरन - क्या कर रहे हो?
गौतम - तुम्हे याद कर रहा था..
सिमरन - झूठ.. बड़े आये तुम मुझे याद करने वाले.. कल तो कितना भाव खा रहे थे..
गौतम - आखिर में प्यार भी तो किया था भूल गई?
सिमरन - कैसे भूल सकती हूँ रसगुल्ले.. अब तक पीछे की सुरंग में आतंक मचा हुआ है.. सुबह पोट्टी करते हुए तुझे याद करके बहुत गालिया दी मैंने..
गौतम हसते हुए - खतरों से खेलने का शोक तो तुम्हे ही था.. वापस कब मिलोगी?
सिमरन - मिलना चाहो तो आज रात को मिल सकती हूँ.. पर याद रखना सुरंग में नहीं घुसने दूंगी..
गौतम - तेरा बाप मान जाएगा? तूने तो कहा था बहुत स्ट्रिक्ट है वो..
सिमरन - वो सब मुझपर छोड़ दो.. सिटी मॉल में मिलना आठ बजे.. मूवी देखेंगे साथ.. लेट मत करना रसगुल्ले वरना घर से उठवा लुंगी..
गौतम हसते हुए - उठवाने की जरुरत नहीं पड़ेगी मैं पहुंच जाऊँगा.. फ़ोन कट हो जाता है..
पिंकी गौतम को छेड़ती हुई - रसगुल्ले.. हम्म्म..
गौतम मुस्कुराते हुए - बुआ आप भी ना..
पिंकी - अच्छा फोटो तो दिखा सिमरन की.. आवाज तो बहुत प्यारी है.
गौतम फोटो दिखाकर - लो.. कैसी है..
पिंकी - है तो मस्त.. चुचे औऱ चुत्तड़ भी अच्छे है फेस भी बड़ा प्यारा है.. पहली बार कैसे चोदा तूने इसको?
गौतम अपनी गांड मराई याद करते हुए - मैंने कहा चोदा बुआ.. यही मुझे चोद गई..
पिंकी हसते हुए - उसका क्या कसूर? तू है ही इतना चिकना..
गौतम - आप भी ना बुआ.. अब जल्दी से अपना ये घाघरा उठाओ बहुत मन कर रहा है आपकी गुफा में घुसने का..
पिंकी पेटीकोट कमर तक ऊपर करके - घाघरा नहीं पेटीकोट बोलते है इसे बाबू..
गौतम जीन्स खोलकर - पेंटी तो उतारो..
पिंकी गौतम के लंड को पकड़कर मसलते हुए - उतारने की क्या जरुरत है बाबू.. साइड हटा के घुसा दे.. (पिंकी पेंटी को एक हाथ से साइड करके दूसरे हाथ से गौतम का लंड अपनी चुत में घुसाती हुई)
गौतम पूरा लंड चुत में पेलकर - आह्ह.. बुआ अब मिली है असली जन्नत...

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पिंकी सिसकती हुए - आह्ह... बाबू.. बहुत याद किया इसे मैंने..
गौतम अपने दोनों हाथ से पिंकी के ब्लाउज को पकड़कर एक झटके में पूरा फाड़ देता है औऱ उसकी ब्रा ऊपर करके पिंकी के बूब्स चूसते हुए पिंकी को धीरे धीरे चोदने लगता है..

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पिंकी - ग़ुगु चूसके खाली कर अपनी बुआ के बोबो को बेटा.. आहहह...चोद बुआ को अच्छे से.. रांड समझके चोद मुझे बाबू.. मार झटके मेरी चुत में..
गौतम चोदने की स्पीड बढ़ाते हुए - लो बुआ सम्भालो.. अपने ग़ुगु के लंड को..
पिंकी - आह्ह.. ग़ुगु.. आह्ह... चोद मुझे.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है बाबू.. आह्ह..
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गौतम मिशनरी में चोदने के बाद पिंकी को घोड़ी बनाता हुआ चोदने लगता है - कितनी मोटी गांड है बुआ आपकी.. फूफाजी ने तो नहीं की चोदकर इतनी बड़ी.. कौन है बुआ आपका आशिक आवारा?
पिंकी आह करती हुई - बाबू तूने ही पेला था पिछली बार.. तब से किसीके साथ नहीं किया..
गौतम बाल पकड़ कर पीछे से झटके मारता हुआ - चल मेरी बुआ टूक टुक टुक.. चल मेरी बुआ टुक टुक टुक..
पिंकी - अहह.. अहह... अहह..

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गौतम बाल छोड़कर पिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर पीछे से चोदने लगता है - बुआ गांड कब दोगी मुझे?

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पिंकी - बड़ा है तेरा ग़ुगु.. चुत में दर्द कर देता है गांड का पता नहीं क्या हाल करेगा..
गौतम पिंकी को उठाकर अपनी गोद में लेलेता है औऱ चोदने लगता है - तो क्या मैं आपकी गांड से वंचित रह जाऊँगा बुआ?

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पिंकी चुदवाते हुए आहे भरकर - इस बार चुत से काम चला ले मेरे बाबू.. अगली बार पक्का गांड दे दूंगी.. पिंकी झड़ चुकी थी औऱ अब झड़ने के साथ अब मूतने भी लगी थी जिसमे उसे शर्म आ रही थी मगर गौतम ने लंड निकालकर अपना मुंह पिंकी चुत पर लगा दिया औऱ उसकी चुत से निकलते मूत को पिने लगा.. पिंकी ये देखकर हैरान औऱ रोमांचित हो उठी थी औऱ बार बार गौतम को अपना मूत पिने से रोकने की कोशिश कर रही थी मगर गौतम ने पिंकी की आखिरी मूत की बून्द तक अपने मुंह में लेकर पी ली..

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मूत पिने के बाद गौतम पिंकी की चुत चाटने लगा औऱ पिंकी गौतम के बाल पकड़ कर फिर से काम के दारिया में गोते खाने लगी. पिंकी ने अपनी चुत चटवाने का आनंद भोगते हुए गौतम का सर बहुत जोर से अपनी चुत पर दबा दिया जिससे गौतम की सांस घुटने लगी मगर गौतम ने जैसे तैसे अपने आप को पिंकी के हाथ से छुड़वा कर पिंकी दोनों टाँगे हाथों से उठा कर उसकी चुत चाटने लगा..
गौतम चुत चाटने के बाद पिंकी को उठाकर दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसी तरह छिपकली बनाकर चोदने लगा जैसे उसने सुबह शबनम को चोदा था..

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पिंकी चुदवाते हुए कामुक सिसकियाँ लेकर - थोड़ा धीरे ग़ुगु.. तेरी बुआ को दर्द हो रहा है.. अहह...
गौतम थोड़ी देर छिपकली पोज़ में चोदने के बाद पिंकी को पलट कर अपनी तरफ घुमा लेता है औऱ दिवार से सटाकर पिंकी की दोनों टाँगे उठाकर उसे चोदने लगता है.

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पिंकी गौतम के गले में दोनों हाथ डालकर उसे चूमते हुए सिस्कारिया भरके चुदवाती रहती है. वो वापस झड़ने वाली थी औऱ अब गौतम का भी निकलने वाला था..
गौतम - बुआ होने वाला है..
पिंकी - मेरा भी वापस होने वाला है बाबू.. मुझे बेड पर लेटा दे..
गौतम पिंकी को अपने ऊपर में लेटा कर पेलने लगता है औऱ कुछ देर बाद पिंकी के साथ ही झड़ते हुए पिंकी की चुत में अपना वीर्य भर देता है..

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पिंकी औऱ गौतम एक दूसरे की शकल देखते हुए मुस्कुराने लगते है पिंकी अपने फटे हुए ब्लाउज से गौतम के चेहरे पर आ रहा पसीना पोछती है..
पिंकी थोड़ी देर उसी तरह लेटी रहकर गौतम से बात करके बोलती है - अब इस शैतान को तो मेरी गुफा से बाहर निकाल लो..
गौतम - रहने दो ना बुआ थोड़ी देर गुफा के अंदर.. बेचारा बहुत दिनों बाद अपनी बुआ से मिला है..
पिंकी पलटकर- अच्छा ठीक है..
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गौतम पिंकी के ऊपर ही उसकी चुत में लंड घुसा के हल्का हल्का झटका मारते हुए लेटा रहता है औऱ पिंकी गौतम के होंठों को चूमते हुए उसके बालों में उंगलियां फिराती हुई गौतम के नीचे लेटी रहती है.. कुछ देर चूमने के बाद गौतम की आँख लग जाती है औऱ पिंकी भी अपने ऊपर लेटे हुए गौतम को सोने देती है करीब एक घंटे बाद जब गौतम की आँख खुलती है तो वो देखता है की पिंकी अभी भी उसके नीचे लेटी हुई है औऱ उसका लंड अभी भी पिंकी की चुत में घुसा हुआ है.
गौतम की नींद टूटने पर पिंकी - उठ गया मेरा बाबू?
गौतम - टाइम क्या हुआ है बुआ?
पिंकी - सात बजे है..
गौतम चुत से लंड निकाल कर खड़ा होता हुआ - जाना है बुआ..
पिंकी मुस्कुराते हुए खड़ी होकर - सिमरन के पास?
गौतम कपडे पहनते हुए - हाँ..
पिंकी पास में पड़े अपने पर्स से एक कार्ड निकाल कर गौतम की जीन्स में रखती हुई बोली - 2002..
गौतम एटीएम कार्ड देखकर वापस देता हुआ - बुआ मुझे नहीं चाहिए.. आप इसे अपने पास रखो..
पिंकी गौतम के होंठ चूमकर एटीएम वापस उसकी जेब में डालती हुई - मैंने पूछा नहीं है तुझसे लेना है या नहीं.. चुपचाप रख ले.. कुछ भी चाहिए हो खरीद लेना.. शर्माना मत.. मैंरे पास औऱ भी दो है..
गौतम पिंकी का बोबा पकड़कर उसके होंठ चूमते हुए - आई लव यू बुआ..
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पिंकी - लव यू टू मेरा बच्चा...
गौतम - अच्छा बुआ अब चलता हूँ.. जल्दी मिलूंगा आपसे..
पिंकी ब्रा औऱ पेंटी के बाद nighty पहनते हुए - ग़ुगु रुक..
गौतम - हाँ बुआ..
पिंकी एक बेग निकालकर - इसे लेजा..
गौतम - इसमें क्या है..
पिंकी - कुछ कपडे है घड़ी परफ्यूम औऱ शूज भी तेरे लिए..
गौतम - बुआ इतना सब लाने की क्या जरुरत है हर बार..
पिंकी - क्यों जरुरत नहीं है.. तेरे सिवा मेरा है ही कौन जिसके लिए मैं कुछ खरीदू.. आगे जाके इन सब चीज़ो का वारिस तुझे ही तो बनना है.. ये तुझे ही तो संभालना है..
गौतम मुस्कुराते हुए पिंकी को बाहों में भरके - मुझे पैसो में कोई दिलचस्पी नहीं है बुआ, चुत में है... कम पैसो से भी मेरा काम चल जाता है.. पैरों में जूते जॉर्डन के हो या कैंपस के मुझे फर्क नहीं पड़ता..
पिंकी गौतम का चेहरा अपने हाथों में लेकर - पर मुझे फर्क पड़ता है ग़ुगु.. अपनी पसंद की चीज के लिए जैसे मैं तरसी हूँ वैसे मैं तुझे तरसते नहीं देखना चाहती.. मेरे पास जो कुछ है सब तेरा है.. तू मेरा सबकुछ है ग़ुगु.. तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ.. किसी की जान भी ले सकती हूँ..
गौतम - माँ सच कहती है बुआ.. आप ना सनकी हो..
पिंकी चूमते हुए - ऐसा सोचती है मेरे बारे में तेरी माँ..
गौतम - बुआ आप अब यूँही मुझे पकड़े रहोगी तो मैं जा नहीं पाऊंगा..
पिंकी गौतम अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल जा.. मज़े कर अपनी उस गर्लफ्रेंड के साथ.. मगर कंडोम लगा कर.. नहीं तो इतनी सी उम्र में बाप बन जाएगा..
गौतम पिंकी के सर औऱ गाल को चूमते हुए - बाय मेरी प्यारी बुआ..
पिंकी गौतम के होंठों को डांत से खींचकर चूमती हुई -
बाय बच्चा..

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गौतम पिंकी के पास से सिटी मॉल की तरफ चल देता औऱ कार पार्किंग में लगा कर मॉल के बाहर बनी एक चाय की टपरी पर बैठते हुए सिमरन को फ़ोन करता है..
गौतम - कहा रह गई यार..
सिमरन - आ रही हूँ बाबा.. जरा भी सब्र नहीं है तुम्हे तो.. अभी तो सिर्फ पौने आठ बजे है.. मूवी शुरू होने में डेढ़ घंटा है..
गौतम - मतलब अभी घर पर ही हो तुम.. ठीक है आ जाओ अपनी मर्ज़ी से.. मैं इंतजार कर लूंगा..
सिमरन - अच्छा सुनो भईया भी साथ आ रहे है उनकी भी टिकट बुक कर देना..
गौतम - वो कबाब में हड्डी बनने क्यों आ रहा है?
सिमरन - बाबा.. मम्मी ने अकेले जाने से मना किया इसलिए भईया को लाना पड़ेगा.. तुम उनकी फ़िक्र मत करो.. भईया थोड़ा दूर बैठ जाएंगे..
गौतम - ठीक है सिम्मी..
सिम्मी - क्या पहन के आउ रसगुल्ले?

गौतम - कुछ भी पहन के आजा मेरी रसमलाई.. होना तो नंगा ही है तुझे.. चल बाय.. मैं वेट कर रहा हूँ..

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सुबह 10:00 बजे नींद के आगोश में सोए गौतम की नींद दिन के 2:00 खुली.. गौतम ने जो सपना देखा था उसके बारे में काफी देर तक वो सोचता रहा कि कैसे उसे ऐसे अपने आ रहे है.. लेकिन फिर अपना ध्यान सपने से हक़ीक़त में लाता हुआ बेड से खड़ा हो गया... गौतम ने होटल में देखा तो लगभग सब घर जा चुके थे.. होटल में सिर्फ कुछ मेहमान लोग ही बचे थे. गौतम ने सुमन को फोन किया तो सुमन ने उसे घर आने के लिए कहा.. गौतम का सारा सामान सुमन अपने साथ घर ले जा चुकी थी बस एक शराब की बोतल यही पड़ी थी अभी तक.. और नींद में होने के कारण सुमन ने गौतम को जगाना जरूर नहीं समझा क्योंकि सुमन जानती थी कि गौतम रात भर का जगा हुआ है. सुमन से बात करके गौतम ने फोन रख दिया और फिर अपना मुंह धो कर होटल से घर के लिए निकल गया उसने देखा की यहां आज भी किसी ना किसी की शादी तैयारी चल रही थी..


गौतम जब घर पहुंचा तो उसने देखा कि ऋतु के विदाई की तैयारी चल रही है और घर पर कुछ खास मेहमानों के अलावा घर के लोग ही थे. गौतम अपने कमरे में जाकर नहाने लगा. जब गौतम बाथरूम से नहा कर निकाला तो उसके सामने चाय का कप हाथ में लिए गायत्री खड़ी थी गायत्री ने चाय का कप टेबल पर रखा और फिर गौतम के गाल को सलाहकार उसपर एक प्यारा सा चुंबन करती हुई बोली..
गायत्री - गूगु चाय पी ले और जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जा.. तेरी दीदी की विदाई होने वाली है..
गौतम ने गायत्री की कमर में हाथ डालकर उसे अपने बिल्कुल करीब खींचते हुए गले से लगा लिया और दीवार से चिपक कर उसके होठों के बिल्कुल करीब अपने होंठ लाकर गायत्री से बेहद कामुक अंदाज में बोला..
गौतम - विदाई तो होती रहेगी नानी थोड़ी सी चुदाई करें?
गायत्री गौतम के होठों से अपने होंठ सटाती हुई बोली - अभी नहीं बेटा.. पिछली बार का दर्द अब तक बाकी है जब ठीक हो जाएगा तब कर लेना..

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गौतम ने कुछ पल गायत्री के होठों का चुम्मा ही था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह गायत्री से दूर हटकर टेबल पर रखे चाय के कप को उठाकर चुस्कियां लेते हुए चाय पीने लगा और दरवाजे के बाहर से अंदर आते हुए उसे संजय दिखा जिसने आते ही गायत्री से कहा..
संजय गायत्री से - माँ चलो ना ऋतू को विदा करना है..
गायत्री - चल संजय मैं तो ग़ुगु को चाय देने आ गई थी..
संजय - ग़ुगु तू जल्दी नीचे आजा बेटा..
गौतम - ज़ी मामा ज़ी.. नहाने लग गया था मैं बस तैयार होकर आता हूँ..

गायत्री संजय के साथ नीचे चली गई थी और गौतम अपने कपड़े पहनने लगा था.. गौतम तैयार होकर जैसे ही नीचे आया उसने देखा कि हॉल में बहुत सारे लोग एकत्रित हो रखे थे और बीच में ऋतु में बैठे हुए थी राहुल के साथ. दोनों से मेहमान हंसी स्टोरी कर रहे थे और अपनी अपनी बातें एक दूसरे को बता रहे थे जब विदाई की बारी आई तो ऋतु के आंसू निकलने लगे और वह रोती हुई संजय औऱ गायत्री से लिपट गई..

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ऋतू तो फूट के रोने लगी और एक-एक करके सबसे मिलने लगी उसने सबसे पहले अपने पिता संजय फिर गायत्री फिर कोमल सुमन चेतन आरती और फिर ग़ुगु के गले लगते हुए रोना जारी रखा.
गौतम के गले लगकर रितु बहुत जोर से फूट-फूट कर रोने लगी जिस पर गौतम ने धीमी आवाज में ऋतु के कान में कहा.. दीदी इतना ड्रामा मत करो.. मैं जानता हूं आपको घंटा रोना नहीं आ रहा..
गौतम की बात सुनकर रितु रोना कम कर देती है मगर रोना बंद नहीं करती.. ऋतू आम लड़कियों की तरह ऐसा जता रही थी जैसे वह घर से विदा नहीं होना चाहती और हमेशा यही रहना चाहती है मगर गौतम को ऋतू की ये नाटक और ड्रामेबाजी अच्छे से समझ आ रही थी. सबके बार-बार समझाने पर भी रितु रोने का नाटक करने के राहुल के साथ विदा होने से इनकार कर कर रही थी और जाने से मना कर रही थी..

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घर के दरवाजे पर गाड़ी तैयार थी मगर ऋतू उसमे बैठने को तैयार नहीं थी उसने अब तक घर के हाल से कदम आगे नहीं बढ़ाया था और सब उसे बारी बारी से समझा कर थक चुके थे की बेटी लड़की को ससुराल जाना पड़ता है लड़की पराया धन होती है. जब ऋतू किसी के समझाने से नहीं समझी और अपना रोने धोने का नाटक जारी रखते हुए हाल में ही बैठ गई तो गौतम में रितु को अपनी गोद में उठा लिया और हाल से उठकर बाहर लाते हुए गाड़ी में बैठा दिया..

गौतम इमोशनल ड्रामा करते हुए ऋतू के बगल में बैठे हुए राहुल से कहा - जीजा जी ख्याल रखना मेरी बहन का.. फूलों की तरह कोमल नाजुक प्यारी है.. बहुत संस्कारी सुशील औऱ पवित्र भी.. कभी दिल मत तोडना मेरी बहन का..
राहुल - आप फ़िक्र मत कीजिये.. मैं ऋतू को खुश रखूँगा..

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गौतम इतना कहकर गाड़ी से दूर हो गया और फिर बारी-बारी से घर के लोग ऋतू से मिलने लगे और उसे समझने लगे की ससुराल में उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं.. इतना सब हो ही रहा था कि गौतम घर के गेट पर खड़ा हो गया.. औऱ अपने फ़ोन में पिंकी का कॉल आते देखकर ऊपर छत पर चला गया और पिंकी का कॉल उठाकर बोला..
गौतम - हेलो बुआ?
पिंकी - केसा है मेरा ग़ुगु?
गौतम - आपके बिना केसा हो सकता हूँ बुआ? कल कितने फ़ोन किये आपको.. पर आप फ़ोन बंद करके बैठी थी.. उस दिन कहा था ना शादी में आना है.. आपके बिना बोरिंग थी सादी..
पिंकी - सॉरी ग़ुगु.. वो फ्लाइट इतनी डिल्य हो गई की आना हो ही नहीं पाया.. फ़ोन भी चार्ज नहीं किया था मैंने.. अभी अभी घर पहुंची हूँ..
गौतम - कहाँ गई थी आप?
पिंकी - तेरे फूफा ज़ी के साथ लन्दन गई थी ग़ुगु.. तेरे लिए बहुत से गिफ्ट लाई हूँ.. अभी यही है ना?
गौतम - हाँ.. दीदी की विदाई का नाटक चल रहा है..
पिंकी हसते हुए - अच्छा वो सब छोड़ जल्दी मेरे पास आजा..
गौतम - एड्रेस पहले वाला ही है ना?
पिंकी - नहीं बाबू अब वहा नहीं रहते.. मैं तुझे व्हाट्सप्प करती हूँ अड्रेस.. तू जल्दी से आजा अपनी बुआ के पास.. मुझे तेरे प्यारे से होंठ चूमने है..
गौतम - आता हूँ बुआ..
पिंकी - बाय बाबू..
गौतम - बाय बुआ..

ऋतू की विदाई हो चुकी थी औऱ गौतम अपने कमरे में जूते पहन रहा था तभी सुमन अंदर आते हुए बोली - खाना खा ले ग़ुगु..
गौतम - होटल में खा लिया था माँ.. अब रात को ही खाऊंगा..
सुमन - कहीं जा रहा है..
गौतम - हाँ.. उस दिन आपने बुला लिया तो शहर अच्छे से घूम नहीं पाया था.. कल तो वैसे भी वापस घर चले जाएंगे तो आज बाकी का शहर घूम लेता हूँ..
सुमन मुस्कुराते हुए गौतम के सर को चूमकर - वापस आने में ज्यादा देर मत करना..
गौतम - I'll be back soon माँ..
सुमन - हम्म्म.. क्या ग़ुगु?
गौतम सुमन के गाल पर चूमा देकर - मैंने कहा मैं जल्दी आ जाऊंगा..
सुमन मुस्कुराते हुए - हाँ तो ऐसे बोल ना.. अंग्रेजी में क्या गिटर पीटर करता मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..
गौतम - आपने ही बड़े स्कूल में डलवाया था याद है?
सुमन - हा हा तो क्या अपनी अंग्रेजी अपनी अनपढ़ माँ पर झाड़ेगा?
गौतम सुमन का हाथ पकड़ते हुए - अनपढ़ कैसे हुई आप.. पढ़ना लिखना तो अच्छे से आता है आपको.. टीवी देखकर सारे इंग्लिश के वर्ड भी सिख गई हो.. औऱ घर का सब काम भी कितनी अच्छे से करती हो.. आप तो भारतीय संस्कारी नारी का परफेक्ट एक्साम्प्ल हो..
सुमन गौतम के होंठों को उंगलियों से पकड़कर - अब इतनी भी तारीफ़ मत कर अपनी माँ की..
गौतम सुमन ऊँगलीयों को चुमकर - काश मैं आपकी तारीफ़ कर सकता माँ.. आपकी तारीफ़ के लायक़ शब्द हो नहीं बने दुनिया में..
सुमन हसते हुए - हट बदमाश.. चल अब जा.. मुझे भी बहुत काम है अभी..
गौतम प्यार से बच्चों जैसा फेस बनाकर - किस्सी तो दे दो माँ..
सुमन मुस्कुराती हुई गौतम के सर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर उसके होंठों से अपने होंठ मिलकर एक छोटा सा चुम्मा करती हुई गौतम से बोली - खुश? चल अब जाने दे..
सुमन चली जाती है औऱ गौतम भी घर से निकल जाता है..
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**********

अरे अरे कहा घुसे चले आ रहे हो भाई? क्या काम है, किससे मिलना है?
गॉर्ड ने बँगले के गेट पर गौतम को रोककर कहा..
गौतम - ज़ी मुझे पिंकी बुआ से मिलना है..
बँगले के गेट पर खड़े दो गार्डो में से एक ने कहा - यहां कोई पिंकी नहीं रहती जाओ यहां से..
गौतम फ़ोन में एड्रेस देखकर - पर ये अड्रेस तो यही का है..
एक गार्ड ने एड्रेस देखकर कहा - एड्रेस तो यही का है भईया पर यहां कोई पिंकी नहीं रहती.. गलत अड्रेस भेजा है किसी ने आपको.. आप जाइये यहां से मालकिन बहुत गर्म मिज़ाज़ की है.. उन्होंने किसी अजनबी को देख लिया तो हमारी नौकरी खतरे में पड़ जायेगी..

गौतम पिंकी को फ़ोन लगाता हुआ - हेलो.. बुआ?
पिंकी बँगले के गेट के पास अंदर बने गार्डन में एक चेयर पर बैठी हुई कोई फेशन मैगज़ीन पढ़ रही थी की गौतम का फोन आने पर फोन उठती हुई बोली - हाँ बाबू..
गौतम - बुआ ये अड्रेस तो गलत है शायद.. गेट पर खड़े गार्ड बोल रहे है यहां कोई पिंकी नहीं रहती है..
पिंकी गुस्से में मैगज़ीन सामने रखी टेबल पर फेंककर - तू रुक वही.. मैं आती हूँ..
गौतम को तुरंत ही रूपा का फ़ोन आ जाता है औऱ वो रूपा से बात करते हुए गेट से दूर चला जाता है..
पिंकी गुस्से से तिलमिलती हुई गार्डन से गुजरते हुए बंगले के गेट पर पहुंची..

पिंकी को देखकर दोनों गॉड सर झुकाकर एक साथ बोले - नमस्ते मेम साब..
पिंकी गुस्से में - तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई मेरे भतीजे को गेट पर रोकने की? इतनी भी तमीज नहीं है कि किसे रोकना है औऱ किसे नहीं? ये सब भी सीखना पड़ेगा तुम लोगों को..
एक गार्ड सर झुका कर - माफ़ करना मेमसाब.. हम नहीं जानते थे भईया ज़ी कौन है.. गलती हो गई हमसे..
पीछे से पिंकी के पति फ़कीरचंद आता हुआ..
फ़कीरचंद - क्या हुआ प्रमिला.. क्यों चिल्ला रही हो इन दोनों बेचारो पर..
पिंकी गुस्से में - चिल्लाऊ नहीं तो क्या करू.. पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है औऱ उसे अंदर आने से रोक दिया दोनों ने.. इनको अभी नौकरी से निकालती हूँ मैं..
दूसरा गार्ड सर झुका कर - मालिक.. हमें माफ़ कर दो.. हमें गलतफेहमी हो गई थी.. हमें पता नहीं था प्रमिला मेमसाहेब के घर का नाम पिंकी है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - अरे छोडो ना प्रमिला.. गलतफहमी हो जाती है.. इंसान है.. औऱ ग़ुगु आया है? कहा है वो?
प्रमिला गेट के बाहर आकर देखती है तो गौतम थोड़ी दूर पर रूपा से फ़ोन पर बात कर रहा होता है..
पिंकी आवाज लगा कर - ग़ुगु..
गौतम पिंकी को देखकर रूपा से बाद में बात करने की बात बोलकर फ़ोन रख देता है औऱ वापस आ जाता है..
फ़कीरचंद मुस्कुराते हुए - कितना बड़ा हो गया है ग़ुगु? बिलकुल हीरो लगने लगा है..
पिंकी गौतम को जोर से गले लगाती हुई - लगने क्या लगा है.. है ही हीरो मेरा ग़ुगु..
गौतम - बुआ आराम से..
फ़कीर चंद हसते हुए - अब छोड़ भी दो अपने भतीजे को प्रमिला..
प्रमिला - सॉरी तुझे वेट करना पड़ा गेट पर..
गौतम - कोई बात नहीं बुआ.. ये तो बहुत छोटी सी बात है..
पिंकी - पैर वेर छूना नहीं सिखाया भाभी ने तुझे..
गौतम मुस्कुराते पिंकी के पैर छूकर - अच्छा लो..
पिंकी - अरे मेरे नहीं अपने फूफाज़ी के.. पागल बच्चा.. चल अंदर.. तेरे लिए तेरी मनपसंद चीज बनाई है..
फ़कीरचंद - अच्छा तभी आज अपने हाथों खाना बनाया जा रहा था..
पिंकी - तो ना बनाउ? पहली बार मेरा ग़ुगु मेरे पास आया है..
फ़कीरचंद - अच्छा तुम बुआ भतीजे बात करो मैं जरा बाहर हो आता हूँ..
पिंकी - अब आप कहा जा रहे हो?
फ़कीरचंद - फैक्ट्री हो आता हूँ.. मुकेश को कुछ कागजो पर दस्तखत चाहिए थे..
पिंकी - तो उसे ही यहां बुलवा लिया होता.. आपको मैनेजर के पास जाने की क्या जरुरत?
फ़कीरचंद - वो तो आ रहा था मैंने ही मना कर दिया.. सोचा थोड़ा टहल भी आऊंगा.. बहुत समय हो गया फैक्ट्री गए हुए.. आते हुए कारखाने की तरफ भी हो आऊंगा..
पिंकी - दवाइया साथ लेकर जाना.. औऱ ड्राइवर से कहना गाडी धीरे चलाये..
फ़कीरचंद - ठीक है..
गौतम पानी पीते हुए - दवाइया कैसी?
पिंकी - मधुमय है तेरे फूफाजी को.. तू चल बैठ टेबल पर.. मैं अपने हाथ से खाना खिलाऊंगी मेरे बाबू को आज..
गौतम - खाना तो खा चूका हूँ बुआ..
पिंकी - ठीक पर खीर तो खानी पड़ेगी.. पसंद है ना तुझे? (पिंकी आवाज लगाकर) कम्मो.. ख़िर लेकर आना जरा.. एक औरत ख़िर की प्याली लेकर आती है जिसे पिंकी लेकर गौतम के बगल में डाइनिंग टेबल पर बैठकर उसे खिलाने लगती है..
गौतम ख़िर खा कर - बस बुआ.. औऱ नहीं..
पिंकी - अच्छा.. ये बता भईया भी आये है शादी में?
गौतम मुंह साफ करता हुआ - नहीं बुआ.. उनको कहा फुर्सत.. मैं भी नहीं आने वाला था मगर माँ ने कसम खिला दी औऱ ले आई..
पिंकी गौतम को ऊपर अपने कमरे में लेजाती हुई - अच्छा किया भाभी.. वरना तू मुझसे मिलने कैसे आता?
गौतम - वैसे बुआ उस दिन फूफाजी को देखकर लगा नहीं था इतने अमीर होंगे वो..
पिंकी कमरे का दरवाजा लगाकर मुस्कुराते हुए - सही हाथ मारा है ना तेरी बुआ ने?
गौतम - ऐसे क्यों बोल रही हो बुआ.. आप कितना ख़याल रखती हो फूफाजी का.. उनको आपका शुक्रगुजार रहना चाहिए..
पिंकी अपनी साडी उतारते हुए - शुक्रगुजार तो है ही.. इसलिए मेरे नाम पर ये बांग्ला ख़रीदा है उन्होंने औऱ कुछ दिनों में दोनों फैक्ट्री औऱ कारखने भी मेरे नाम करने वाले है..
गौतम मुस्कुराते हुए - वो तो करना ही था.. आगे पीछे है भी कौन फूफाजी के आपके अलावा.. सही खेल गई बुआ आप तो..
पिंकी हसती हुई अपनी साडी कमरे में रखे सोफे पर पटककर बेड पर गौतम के पास आती हुई - मान गया ना अपनी बुआ को? है ना मेरा शातिर दिमाग.. पहली मुलाक़ात में ऐसा फसाया की अब तक फसा रखा है..
गौतम - वो तो है.. अच्छा लन्दन केसा है? सिर्फ तस्वीरों में देखा है मैंने.. जैसा फिल्मो में दीखता है वैसा ही है?
पिंकी गौतम के ऊपर आती हुई - काश में तुझे वहा ले जा पाती.. भाभी को फ़ोन किया था पर तेरी माँ तो जैसे मेरे पिछले जन्म की बैरी है.. मेरे कहते ही बोलने लगी.. ग़ुगु वहा जा कर क्या करेगा? तू अकेले ही चली जा.. ग़ुगु के इम्तिहान भी आने वाले है.. फलाना ढिमकाना.. औऱ एक हफ्ते से तुझे यहां शादी में लाकर बैठी है.. अब भाभी को तेरे इम्तिहान की परवाह नहीं है.. चालक चुड़ैल कहीं की..
गौतम - बुआ माँ को चुड़ैल मत बोलो..
पिंकी - क्यों तुझे बहुत तकलीफ होती है.. वो जब मेरे बारे में इतना कुछ कहती है तब तुझे तकलीफ नहीं होती?
गौतम - जब माँ आपके बारे में कुछ गलत बोलती है तो मैं उनको भी मना करता हूँ चाहो तो पूछ लो.. मुझसे तो आप औऱ माँ दोनों एक जैसा प्यार करती हो.. मैं आप दोनों के लिए कुछ गलत नहीं सुन सकता..
पिंकी - अच्छा छोड़.. मुझे अब मेरी किस्सी चाहिए..
गौतम पिंकी को चूमते हुए - ठीक है बुआ..
पिंकी चूमते हुए - बहुत सॉफ्ट लिप्स है तेरे बाबू..

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गौतम - आपके भी तो कितने प्यारे लिप्स है बुआ मन करता है खा जाऊ..
पिंकी जीभ से चाटते हुए - खा जा ना बाबू.. बुआ मना थोड़ी करेंगी अपने ग़ुगु को..
गौतम चूमता हुआ - बहुत miss किया बुआ आपको..
पिंकी गौतम की टीशर्ट उतारकर - ये सब क्या है ग़ुगु.. तेरे गले पर सीने पर इतने निशान किसने किये?
गौतम मुस्कुराते हुए - ये शादी में मिले है बुआ.. एक लड़की ने बहुत तंग किया मुझे..
पिंकी मुस्कुराते हुए - क्या नाम था उसका?
गौतम - सिमरन..
नाम लेटे ही सिमरन का फ़ोन गौतम के फ़ोन पर आ गया जिसे देखकर गौतम हसता हुआ बोला - देखो ना बुआ.. शैतान का नाम लिया शैतान हाज़िर..
पिंकी मुस्कुराते हुए - उठा ना.. बात कर क्या कहती है..
गौतम फ़ोन उठाकर - हेलो..
सिमरन - क्या कर रहे हो?
गौतम - तुम्हे याद कर रहा था..
सिमरन - झूठ.. बड़े आये तुम मुझे याद करने वाले.. कल तो कितना भाव खा रहे थे..
गौतम - आखिर में प्यार भी तो किया था भूल गई?
सिमरन - कैसे भूल सकती हूँ रसगुल्ले.. अब तक पीछे की सुरंग में आतंक मचा हुआ है.. सुबह पोट्टी करते हुए तुझे याद करके बहुत गालिया दी मैंने..
गौतम हसते हुए - खतरों से खेलने का शोक तो तुम्हे ही था.. वापस कब मिलोगी?
सिमरन - मिलना चाहो तो आज रात को मिल सकती हूँ.. पर याद रखना सुरंग में नहीं घुसने दूंगी..
गौतम - तेरा बाप मान जाएगा? तूने तो कहा था बहुत स्ट्रिक्ट है वो..
सिमरन - वो सब मुझपर छोड़ दो.. सिटी मॉल में मिलना आठ बजे.. मूवी देखेंगे साथ.. लेट मत करना रसगुल्ले वरना घर से उठवा लुंगी..
गौतम हसते हुए - उठवाने की जरुरत नहीं पड़ेगी मैं पहुंच जाऊँगा.. फ़ोन कट हो जाता है..
पिंकी गौतम को छेड़ती हुई - रसगुल्ले.. हम्म्म..
गौतम मुस्कुराते हुए - बुआ आप भी ना..
पिंकी - अच्छा फोटो तो दिखा सिमरन की.. आवाज तो बहुत प्यारी है.
गौतम फोटो दिखाकर - लो.. कैसी है..
पिंकी - है तो मस्त.. चुचे औऱ चुत्तड़ भी अच्छे है फेस भी बड़ा प्यारा है.. पहली बार कैसे चोदा तूने इसको?
गौतम अपनी गांड मराई याद करते हुए - मैंने कहा चोदा बुआ.. यही मुझे चोद गई..
पिंकी हसते हुए - उसका क्या कसूर? तू है ही इतना चिकना..
गौतम - आप भी ना बुआ.. अब जल्दी से अपना ये घाघरा उठाओ बहुत मन कर रहा है आपकी गुफा में घुसने का..
पिंकी पेटीकोट कमर तक ऊपर करके - घाघरा नहीं पेटीकोट बोलते है इसे बाबू..
गौतम जीन्स खोलकर - पेंटी तो उतारो..
पिंकी गौतम के लंड को पकड़कर मसलते हुए - उतारने की क्या जरुरत है बाबू.. साइड हटा के घुसा दे.. (पिंकी पेंटी को एक हाथ से साइड करके दूसरे हाथ से गौतम का लंड अपनी चुत में घुसाती हुई)
गौतम पूरा लंड चुत में पेलकर - आह्ह.. बुआ अब मिली है असली जन्नत...

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पिंकी सिसकती हुए - आह्ह... बाबू.. बहुत याद किया इसे मैंने..
गौतम अपने दोनों हाथ से पिंकी के ब्लाउज को पकड़कर एक झटके में पूरा फाड़ देता है औऱ उसकी ब्रा ऊपर करके पिंकी के बूब्स चूसते हुए पिंकी को धीरे धीरे चोदने लगता है..

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पिंकी - ग़ुगु चूसके खाली कर अपनी बुआ के बोबो को बेटा.. आहहह...चोद बुआ को अच्छे से.. रांड समझके चोद मुझे बाबू.. मार झटके मेरी चुत में..
गौतम चोदने की स्पीड बढ़ाते हुए - लो बुआ सम्भालो.. अपने ग़ुगु के लंड को..
पिंकी - आह्ह.. ग़ुगु.. आह्ह... चोद मुझे.. आह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है बाबू.. आह्ह..
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गौतम मिशनरी में चोदने के बाद पिंकी को घोड़ी बनाता हुआ चोदने लगता है - कितनी मोटी गांड है बुआ आपकी.. फूफाजी ने तो नहीं की चोदकर इतनी बड़ी.. कौन है बुआ आपका आशिक आवारा?
पिंकी आह करती हुई - बाबू तूने ही पेला था पिछली बार.. तब से किसीके साथ नहीं किया..
गौतम बाल पकड़ कर पीछे से झटके मारता हुआ - चल मेरी बुआ टूक टुक टुक.. चल मेरी बुआ टुक टुक टुक..
पिंकी - अहह.. अहह... अहह..

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गौतम बाल छोड़कर पिंकी के दोनों हाथ पकड़ कर पीछे से चोदने लगता है - बुआ गांड कब दोगी मुझे?

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पिंकी - बड़ा है तेरा ग़ुगु.. चुत में दर्द कर देता है गांड का पता नहीं क्या हाल करेगा..
गौतम पिंकी को उठाकर अपनी गोद में लेलेता है औऱ चोदने लगता है - तो क्या मैं आपकी गांड से वंचित रह जाऊँगा बुआ?

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पिंकी चुदवाते हुए आहे भरकर - इस बार चुत से काम चला ले मेरे बाबू.. अगली बार पक्का गांड दे दूंगी.. पिंकी झड़ चुकी थी औऱ अब झड़ने के साथ अब मूतने भी लगी थी जिसमे उसे शर्म आ रही थी मगर गौतम ने लंड निकालकर अपना मुंह पिंकी चुत पर लगा दिया औऱ उसकी चुत से निकलते मूत को पिने लगा.. पिंकी ये देखकर हैरान औऱ रोमांचित हो उठी थी औऱ बार बार गौतम को अपना मूत पिने से रोकने की कोशिश कर रही थी मगर गौतम ने पिंकी की आखिरी मूत की बून्द तक अपने मुंह में लेकर पी ली..

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मूत पिने के बाद गौतम पिंकी की चुत चाटने लगा औऱ पिंकी गौतम के बाल पकड़ कर फिर से काम के दारिया में गोते खाने लगी. पिंकी ने अपनी चुत चटवाने का आनंद भोगते हुए गौतम का सर बहुत जोर से अपनी चुत पर दबा दिया जिससे गौतम की सांस घुटने लगी मगर गौतम ने जैसे तैसे अपने आप को पिंकी के हाथ से छुड़वा कर पिंकी दोनों टाँगे हाथों से उठा कर उसकी चुत चाटने लगा..
गौतम चुत चाटने के बाद पिंकी को उठाकर दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसी तरह छिपकली बनाकर चोदने लगा जैसे उसने सुबह शबनम को चोदा था..

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पिंकी चुदवाते हुए कामुक सिसकियाँ लेकर - थोड़ा धीरे ग़ुगु.. तेरी बुआ को दर्द हो रहा है.. अहह...
गौतम थोड़ी देर छिपकली पोज़ में चोदने के बाद पिंकी को पलट कर अपनी तरफ घुमा लेता है औऱ दिवार से सटाकर पिंकी की दोनों टाँगे उठाकर उसे चोदने लगता है.

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पिंकी गौतम के गले में दोनों हाथ डालकर उसे चूमते हुए सिस्कारिया भरके चुदवाती रहती है. वो वापस झड़ने वाली थी औऱ अब गौतम का भी निकलने वाला था..
गौतम - बुआ होने वाला है..
पिंकी - मेरा भी वापस होने वाला है बाबू.. मुझे बेड पर लेटा दे..
गौतम पिंकी को अपने ऊपर में लेटा कर पेलने लगता है औऱ कुछ देर बाद पिंकी के साथ ही झड़ते हुए पिंकी की चुत में अपना वीर्य भर देता है..

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पिंकी औऱ गौतम एक दूसरे की शकल देखते हुए मुस्कुराने लगते है पिंकी अपने फटे हुए ब्लाउज से गौतम के चेहरे पर आ रहा पसीना पोछती है..
पिंकी थोड़ी देर उसी तरह लेटी रहकर गौतम से बात करके बोलती है - अब इस शैतान को तो मेरी गुफा से बाहर निकाल लो..
गौतम - रहने दो ना बुआ थोड़ी देर गुफा के अंदर.. बेचारा बहुत दिनों बाद अपनी बुआ से मिला है..
पिंकी पलटकर- अच्छा ठीक है..
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गौतम पिंकी के ऊपर ही उसकी चुत में लंड घुसा के हल्का हल्का झटका मारते हुए लेटा रहता है औऱ पिंकी गौतम के होंठों को चूमते हुए उसके बालों में उंगलियां फिराती हुई गौतम के नीचे लेटी रहती है.. कुछ देर चूमने के बाद गौतम की आँख लग जाती है औऱ पिंकी भी अपने ऊपर लेटे हुए गौतम को सोने देती है करीब एक घंटे बाद जब गौतम की आँख खुलती है तो वो देखता है की पिंकी अभी भी उसके नीचे लेटी हुई है औऱ उसका लंड अभी भी पिंकी की चुत में घुसा हुआ है.
गौतम की नींद टूटने पर पिंकी - उठ गया मेरा बाबू?
गौतम - टाइम क्या हुआ है बुआ?
पिंकी - सात बजे है..
गौतम चुत से लंड निकाल कर खड़ा होता हुआ - जाना है बुआ..
पिंकी मुस्कुराते हुए खड़ी होकर - सिमरन के पास?
गौतम कपडे पहनते हुए - हाँ..
पिंकी पास में पड़े अपने पर्स से एक कार्ड निकाल कर गौतम की जीन्स में रखती हुई बोली - 2002..
गौतम एटीएम कार्ड देखकर वापस देता हुआ - बुआ मुझे नहीं चाहिए.. आप इसे अपने पास रखो..
पिंकी गौतम के होंठ चूमकर एटीएम वापस उसकी जेब में डालती हुई - मैंने पूछा नहीं है तुझसे लेना है या नहीं.. चुपचाप रख ले.. कुछ भी चाहिए हो खरीद लेना.. शर्माना मत.. मैंरे पास औऱ भी दो है..
गौतम पिंकी का बोबा पकड़कर उसके होंठ चूमते हुए - आई लव यू बुआ..
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पिंकी - लव यू टू मेरा बच्चा...
गौतम - अच्छा बुआ अब चलता हूँ.. जल्दी मिलूंगा आपसे..
पिंकी ब्रा औऱ पेंटी के बाद nighty पहनते हुए - ग़ुगु रुक..
गौतम - हाँ बुआ..
पिंकी एक बेग निकालकर - इसे लेजा..
गौतम - इसमें क्या है..
पिंकी - कुछ कपडे है घड़ी परफ्यूम औऱ शूज भी तेरे लिए..
गौतम - बुआ इतना सब लाने की क्या जरुरत है हर बार..
पिंकी - क्यों जरुरत नहीं है.. तेरे सिवा मेरा है ही कौन जिसके लिए मैं कुछ खरीदू.. आगे जाके इन सब चीज़ो का वारिस तुझे ही तो बनना है.. ये तुझे ही तो संभालना है..
गौतम मुस्कुराते हुए पिंकी को बाहों में भरके - मुझे पैसो में कोई दिलचस्पी नहीं है बुआ, चुत में है... कम पैसो से भी मेरा काम चल जाता है.. पैरों में जूते जॉर्डन के हो या कैंपस के मुझे फर्क नहीं पड़ता..
पिंकी गौतम का चेहरा अपने हाथों में लेकर - पर मुझे फर्क पड़ता है ग़ुगु.. अपनी पसंद की चीज के लिए जैसे मैं तरसी हूँ वैसे मैं तुझे तरसते नहीं देखना चाहती.. मेरे पास जो कुछ है सब तेरा है.. तू मेरा सबकुछ है ग़ुगु.. तेरे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ.. किसी की जान भी ले सकती हूँ..
गौतम - माँ सच कहती है बुआ.. आप ना सनकी हो..
पिंकी चूमते हुए - ऐसा सोचती है मेरे बारे में तेरी माँ..
गौतम - बुआ आप अब यूँही मुझे पकड़े रहोगी तो मैं जा नहीं पाऊंगा..
पिंकी गौतम अपनी बाहों से आजाद करती हुई - चल जा.. मज़े कर अपनी उस गर्लफ्रेंड के साथ.. मगर कंडोम लगा कर.. नहीं तो इतनी सी उम्र में बाप बन जाएगा..
गौतम पिंकी के सर औऱ गाल को चूमते हुए - बाय मेरी प्यारी बुआ..
पिंकी गौतम के होंठों को डांत से खींचकर चूमती हुई -
बाय बच्चा..

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गौतम पिंकी के पास से सिटी मॉल की तरफ चल देता औऱ कार पार्किंग में लगा कर मॉल के बाहर बनी एक चाय की टपरी पर बैठते हुए सिमरन को फ़ोन करता है..
गौतम - कहा रह गई यार..
सिमरन - आ रही हूँ बाबा.. जरा भी सब्र नहीं है तुम्हे तो.. अभी तो सिर्फ पौने आठ बजे है.. मूवी शुरू होने में डेढ़ घंटा है..
गौतम - मतलब अभी घर पर ही हो तुम.. ठीक है आ जाओ अपनी मर्ज़ी से.. मैं इंतजार कर लूंगा..
सिमरन - अच्छा सुनो भईया भी साथ आ रहे है उनकी भी टिकट बुक कर देना..
गौतम - वो कबाब में हड्डी बनने क्यों आ रहा है?
सिमरन - बाबा.. मम्मी ने अकेले जाने से मना किया इसलिए भईया को लाना पड़ेगा.. तुम उनकी फ़िक्र मत करो.. भईया थोड़ा दूर बैठ जाएंगे..
गौतम - ठीक है सिम्मी..
सिम्मी - क्या पहन के आउ रसगुल्ले?

गौतम - कुछ भी पहन के आजा मेरी रसमलाई.. होना तो नंगा ही है तुझे.. चल बाय.. मैं वेट कर रहा हूँ..

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ग़ज़ब का अपडेट। भई वाह।
 

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Bas writer bro is bar maje maje ke chakkar me simran se gugu ki mat marwa dena warna sb mjja bakwaas ho jayega
sambhog me sarv sukh hi sampan sambhog hota hai... aur socho ki uske niche ek choti lulli latak rahi hai to iska matlab ye to nahi ki wo prem aur sambhog se vanchit rahe... waise jaisa kahani ka naam hai "CHIRHARAN" kahani bilkul waise hi chal rahi hai... sabhi ka chirharan ho raha hai... chahe to aap vastra samjhe ya chahe to sabhi ki persnol life... cheerharan to ho raha hai... aur baki logo se guzarish hai ki jaldi se 30 like kar do... simran ka prem dekhna hai...
 

tom riddle

Noob Writer & Fantasizer
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बुआ तो ऐसी ही होती हैं लेकिन अब परिवार और रिश्तों की प्राइवेसी ने आपस में प्यार ही फॉर्मल और शो-ऑफ कर दिया।

हंसी आती है जब फोरम पर इन्सेस्ट के मठाधीश चाचा, ताऊ, बुआ, मामा के रिश्तों को इन्सेस्ट ही नहीं मानते, परिवार से बाहर मानते हैं,
क्योंकि उन्होंने कभी जॉयन्ट फैमिली में रहकर ही नहीं देखा

मेरी बुआ तो ऐसी ही थीं, प्रापर्टी तो नहीं दी और ना मैं लेता उनके 7 बच्चों के हक की, लेकिन शॉपिंग, जेबखर्च और चूत बिना मांगे दे देती थीं, 35-36 की उम्र में दुनिया छोड़ गईं वरना बाप बनने की खुशी भी दे‌ ही देखतीं मुझे :D
भाई तुमने तो एक ही बार में अच्छी और बुरी खबर एक साथ ही सुना दी, सही जगह हाथ मारा था तुमने भी लेकिन अफसोस तुम्हारी किस्मत अच्छी होकर भी खराब हो गई😁
 

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FoX - Federation of Xossipians
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भाई तुमने तो एक ही बार में अच्छी और बुरी खबर एक साथ ही सुना दी, सही जगह हाथ मारा था तुमने भी लेकिन अफसोस तुम्हारी किस्मत अच्छी होकर भी खराब हो गई😁
मौत ही जिन्दगी की सच्चाई है
जिसे झुठला नहीं सकते
 
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