Update 45
ये कब हुआ?
सुबह 5 बजे के करीब हुआ था भाई.. जब तक हॉस्पिटल लड़कर पहुचे अब्बू जा चुके थे..
गौतम - बुरा हुआ आदिल..
आदिल - हाँ भाई.. पता नहीं था अचानक से इतना सब हो जाएगा..
गौतम ने आदिल से बात करके शबाना की तरफ कदम बढ़ा फिया औऱ एक कोने उदास खड़ी शबाना का हाथ पकड़ कर संतावाना देना लगा..
शबाना उदास थी मगर इतनी भी नहीं वो गौतम के आगे फुट फुट के रोती..
उदास मत हो अम्मी.. मैं औऱ आदिल है आपका ख्याल रखने के लिए..
शबाना ने उदासी के परदे हटा कर एक नज़र गौतम को देखा औऱ फिर उसके गले से लगती हुई बोली..
शबाना - पता नहीं था ऐसे चले जाएंगे..
गौतम शबाना को गले से लगाकर - अब किसको पता होता है अम्मी.. आप उदास मत हो..
शबाना उदासी से - कल तक तो ठीक थे बेटा.. फिर एकदम से...
गौतम आदिल से - मैं तेरी अम्मी को घर लेकर जा यह हूँ.. यहां रहेगी तो उदास रहेंगी ... तू बाइक की चाबी रख ले.. कोई जरुरत हो तो फ़ोन कर देना..
आदिल - ठीक है भाई.. जैसे हॉस्पिटल से बॉडी मिलती है मैं भी घर आ जाऊँगा.. मैं सबको फ़ोन कर रहा हूँ..
गौतम - चलो अम्मी...
गौतम शबाना को लेकर हॉस्पिटल के बाहर आ जाता है औऱ एक रिक्शा पकड़ कर उसे घर ले आता है..
गौतम - अम्मी उदास मत हो..
शबाना - फारूक बहुत अच्छे इंसान थे बेटा..
गौतम - जानता हूँ अम्मी.. मगर अब होनी को कौन टाल सकता है? जो होना था सो हो गया.. अब आप खुदको उदास मत करो..
शबाना - कैसे ना करु बेटा.. 25 साल से साथ थे..
गौतम शबाना के करीब आकर उसे बाहो में भरकर उसके आंसू पोंछते हुए - अम्मी.. मैं जानता हूँ फारूक मिया एक अच्छे इंसान थे.. मगर अब आपको आगे देखना है.. औऱ जीना है..
शबाना गौतम के कंधे पर सर रखकर उदासी से - बेटा.. ये सब क्या हो गया.. अब हमारा क्या होगा?
गौतम शबाना को बिस्तर पर बैठाते हुए - कुछ नहीं होगा अम्मी.. मैं हूँ ना.. चलो अब मुस्कुरा दो.. जीना तो हसके चाहिए ना..
शबाना हलकी सी मुस्कान चेहरे पर ले आती है..
गौतम शबाना की जांघ पर हाथ रखकर - अम्मी आप चाहो तो मैं..
शबाना गौतम के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए - नहीं बेटा.. आज नहीं..
गौतम अपने होंठ शबाना के होंठों के करीब लाकर - किसीको पता नहीं चलेगा अम्मी.. मैं जानता हूँ आप बहुत उदास हो औऱ मैं आपकी उदासी नहीं देख सकता..
शबाना गौतम के होंठों पर एक हल्का सा चुम्बन करके - नहीं बेटा.. कम से काम मैं आज ऐसा कुछ नहीं कर सकती.. आज फारूक के खातिर मैं अपनी हद पार नहीं कर सकती..
गौतम खड़ा होता हुआ - ठीक है अम्मी जैसा तुम कहो.. अभी मैं जाता हूँ.. फारूक मिया को जब ले जाएंगे तब आऊंगा..
शबाना गौतम का हाथ पकड़ कर - थोड़ी देर रुक जा ना बेटा.. मैं तेरे लिए चाय बना देती हूँ..
गौतम वापस बैठता हुआ - रहने दो अम्मी.. आप यही मेरे साथ बैठी रहो...
गौतम शबाना को गोद में बैठाकर बाहों में भर लेटा है औऱ शबाना गौतम के गले में हाथ डालकर उदासी से उसके बाहों में कसी हुई बैठी रहती है..
कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक होती है..
आदिल गौतम से - भाई तेरी चाबी..
गौतम चाबी लेते हुए - सबको फ़ोन कर दिया?
आदिल - हाँ.. कर दिया.. सब आने वाले होंगे.. आस पड़ोस के लोग भी खबर लगते ही जमा हो जाएंगे..
गौतम - मैं घर जाके आता हूँ.. जब जाने का टाइम तो बता देना..
आदिल - ठीक है.. मैं फ़ोन कर दूंगा.. दोपहर तक ले जाएंगे..
गौतम - वैसे भाई समझ नहीं आया.. एक दम से ऐसा क्या हुआ की हार्ट फ़ैल हो गया.. लोगों को तो एक दो हार्ट अटैक आते पर वो बच जाते है..
आदिल झेपते हुए - पता नहीं..
गौतम - कुछ तो बात है.. चल बात में बात करेंगे इस बारे में.. अभी चलता हूँ..
आदिल - भाई एक काम है..
गौतम - बोल ना..
आदिल - यार वो असलम साला नहीं आ रहा.. रेशमा आपा अकेली आ रही है तू जाकर उनको ले आएगा?
गौतम - ये कोई कहने की बात है.. मैं पहले रेशमा को है ले आता हूँ.. तू बाकी काम देख ले..
आदिल - ठीक है भाई..
गौतम - हेलो रेशु...
रेशमा - गौतम...
गौतम - कहा हो?
रेशमा - यहां से बस में बैठी हूँ.. आधे घंटे में पुरानाकांटा पहुंच जाउंगी.. फिर घर के दूसरी बस पकड़ूँगी.. डेढ़ घंटा लग जाएगा आने में..
गौतम - पुराना कांटा पहुँचो. मैं लेने आ रहा हूँ..
रेशमा - मैं आ जाउंगी गौतम..
गौतम - मैं आ रहा हूँ ना..
रेशमा - ठीक है..
रेशमा बस से उतरकर गौतम से - तू आ भी गया?
गौतम - सुबह का टाइम है ना.. खाली सडक थी.. चलो बैठो..
रेशमा - वैसे अब्बू ठीक तो है ना.. आदिल ने बताया था अटैक आया है उनको..
गौतम - औऱ कुछ नहीं बताया आदिल ने?
रेशमा - नहीं.. फिर फ़ोन काट दिया था..
गौतम रेशमा का हाथ पकड़कर - रेशु.. तेरे अब्बू का इंतेक़ाल हो गया.. हार्ट फ़ैल हो गया उनका..
रेशमा उदासी से - तू मज़ाक़ तो नहीं कर रहा ना baby.. मुझे ऐसा मज़ाक़ अच्छा नहीं लगता..
गौतम रेशमा के गले लगकर - मैं ऐसा मज़ाक़ नहीं करता..
रेशमा उदासी से गौतम को गले लगाकर - अचानक ऐसा क्या हुआ?
गौतम - मुझे नहीं पता रेशु.. सुबह फ़ोन आया तो पता चला.. हॉस्पिटल जाने पर पता चला.. चलो..
रेशमा गौतम के पीछे बैठकर - अब्बू को घर ले आये?
गौतम - हाँ..
गौतम रेशमा को घर छोड़ कर चला जाता है औऱ फिर दोपहर में फारूक के आखिरी मुकाम पर पहूँचने के बाद अगले दिन शाम को आदिल के साथ उसके घर की छत पर आकर बैठ जाता है..
गौतम - साले अब बता सच सच..
आदिल - क्या?
गौतम - फारूक मिया के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो लम्बे है हो गए..
आदिल - भाई क्या बात कर रहा है..
गौतम - अबे गांडु मुझे मत सीखा तुझे अच्छे से जानता हूँ मैं.. सच बता.. वरना तू जानता है मुझे..
आदिल - भाई तू बताएगा नहीं किसी को..
गौतम - ऐसी बातें बटाइ जाती है क्या गांडु.. मुझे बस जानना है.. औऱ कुछ नहीं..
आदिल - ठीक है बताता हूँ..
गौतम - बोल..
आदिल - रात को अब्बू औऱ अम्मी सो रहे थे.. तब मैंने अम्मी के कमरे में चला गया..
गौतम - फिर?
आदिल - फिर क्या भाई.. मुझे लगा अम्मी ने अब्बू को नींद की गोली दे दी होगी पर वो भूल गई.. अब तूने जो लेप दिया था वो मैंने अम्मी की चुत पर लगाया था और सच में अम्मी की चुत सिकुड़ गई थी.. मैं करने लगा और अम्मी सिस्कारिया भरने लगी... अम्मी की सिस्कारिया सुनकर अब्बू जाग गए औऱ अचानक हमारी तरफ देखने लगे..
गौतम - तभी बहनचोद...
आदिल - हाँ.. जब अब्बू ने देखा तो अम्मी मेरे आगे घोड़ी बनी हुई थी नंगी.. वो देखकर अब्बू ने अपना दिल पकड़ लिया औऱ बेड से जमीन पर गिर गए..
गौतम एक पल के हंसा फिर हंसी रोक कर बोला - साले.. तभी मैं सोचु..
आदिल - किसीको बताना मत तू.. ना ही अम्मी से इस बारे में जिक्र करना..
गौतम - तू उसकी फ़िक्र मत कर.. मेरी बात सुन.. आज रात मैं यही रुक जाता हूँ.. शबाना औऱ रेशमा दोनों उदास है.. तू शबाना की उदासी दूर कर दे मैं रेशमा की उदासी दूर कर देता हूँ.. तेरे रास्ते का रोड़ा हट गया.. अब तू दिन रात शबाना के करीब रह सकता है..
आदिल - अब्बू था मेरा रंडी.. क्या बोले जा रहा है.
गौतम - भाई फारूक मिया को जाना था वो चले गए.. अब क्या?
आदिल - तो क्या एक दिन मातम भी नहीं मनाऊं?
गौतम - भाई कल पुरे दिन मातम ही तो बना रहा था. अब छोड़ उन बातों को.. नई शुरुआत कर.. तुझे दूकान औऱ तेरी अम्मीजान दोनों को संभालना है..
आदिल - ठीक है..
गौतम - मैं घर कॉल कर देता हूँ.. औऱ रेशमा को लेके ऊपर वाले कमरे में जाता हूँ तू नीचे शबाना को संभाल ले.. कोई बात हो तो फ़ोन कर देना..
आदिल - भाई चुपचाप करना..
गौतम - फ़िक्र मत कर..
गौतम रेशमा से - चल ना रेशु.. तू भी क्या उदास होके बैठ गई..
रेशमा - baby.. रहने दे ना.. अब्बू चले गए है..
गौतम - ठीक है कुछ नहीं करता पर मेरे साथ सो सकती है..
रेशमा गौतम के साथ कमरे में आते हुए - ठीक है baby..
गौतम रेशमा को लेके ऊपर कमरे के बेड पर बाहों में बाहे डाले लेट गया था औऱ नीचे कमरे आदिल शबाना के साथ बेड पर लेटा हुआ था..
आदिल - मुझे लगा था आपने गोली दे दी होगी अब्बू को..
शबाना - मैंने तो दूध में मिला दी थी.. पर मुझे क्या आता था तेरे अब्बू दूध ही नहीं पिएंगे.. औऱ मेरा ध्यान भी नहीं गया उसपर..
आदिल शबाना के ऊपर आते हुए - छोडो अम्मी.. अब से हमें किसीका डर नहीं है..
शबाना - नहीं आदिल अभी नहीं.. मैंने कल गौतम को भी मना कर दिया इसके लिए..
आदिल - तुमने मना कर दिया तो वो रेशमा के पास चला गया.. दोनों का चक्कर चल रहा है..
शबाना हैरानी से - कब से औऱ तुझे कैसे पता?
आदिल - तुम जानती हो असलम को.. किसी काम का नहीं है साला.. रेशमा को कितना परेशान करता है.. औऱ रेशमा गौतम को पसंद करती थी तो मैंने दोनों की सेटिंग करवा दी..
शबाना - अच्छा है.. कम से कम रेशमा खुश तो रहेंगी गौतम के साथ..
आदिल - अम्मी अब खोलो ना सलवार.. अब्बू की जगह मैं हूँ ना..
शबाना - ठीक है.. सलवार सरका दे नीचे औऱ धीरे धीरे कर ले.. उनको पता ना चले..
आदिल - तुम फ़िक्र मत करो अम्मी.. किसीको कुछ पता नहीं चलेगा..
आदिल सलवार सरका कर शबाना की चुत में लंड घुसा देता है औऱ धीरे धीरे चोदने लगता है चुत में लंड जाते ही शबाना भी फारूक को भूलकर आदिल को बाहों में भर लेती है औऱ चुदवाते हुए कहती है..
शबाना - बेटा अब तुझे ही सब संभालना होगा.
आदिल - फ़िक्र मत कर अम्मी.. मैं सब संभाल लूंगा..
इधर शबाना की चुदाई शुरु हो गई थी उधर गौतम ने भी रेशमा को चुदने के लिए तैयार कर लिया था..
रेशमा सलवार खोलकर - इतनी नौटंकी करने की जरुरत नहीं है.. कर लो जो करना चाहते हो.. मैं तैयार हूँ..
गौतम मुंह बनाकर - तेरा मन नहीं है तो रहने दे.. मैं सब्र कर सकता हूँ..
रेशमा गौतम का लंड पकड़ कर चुत के मुहाने पर लगाती हुई - फिर पता नहीं कब मिलना होगा.. अब्बू तो चले गए.. उनके जाने में तुम्हारा क्या गुनाह.. लो आओ..
गौतम लंड घुसते हुए - शुक्रिया रेशु.. तू ऐसे माहौल में भी मेरे लिए इतना कर रही है.. मैं कभी नहीं भूलूंगा..
रेशमा सिसकती हुई - ग़ुगु आराम से ना.. चुत दीखते ही पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हे..
गौतम धीरे धीरे चोदते हुए - तुम्हारी टाइट है रेशु.. मैं क्या करू? तुम्हारी अम्मी तो अब आराम से झेल जाती है एक बार में..
रेशमा - तूने अम्मी के साथ भी किया है?
गौतम झूठमुठ कहानी बनाकर कहता है - मैं क्या करता? तेरी अम्मी पीछे ही पड़ गई थी मेरे.. एक दिन नंगी होकर मेरे ऊपर चढ़ गई.. अब मैं भी मर्द जात हूँ कितना कण्ट्रोल करता..
रेशमा सिसकियाँ भरते हुए - उनकी क्या गलती? पहली बार तुझे देखकर मेरा दिल आ गया तुझपर.. उनका भी आ गया होगा.. सालों से अब्बू औऱ अम्मी के बीच कुछ हुआ भी तो नहीं था.. उसके बाद तो तेरे पीछे पड़ गई होगी अम्मी..
गौतम - पड़ी थी मगर मैंने आदिल को सब बता दिया..
रेशमा हैरानी से - फिर?
गौतम चोदते हुए - फिर क्या? तेरी अम्मी को आदिल सँभालने लगा औऱ मेरी जान छूटी..
रेशमा - मतलब आदिल औऱ अम्मी के बीच..
गौतम रेशमा के बूब्स मसलकर - हाँ रेशु.. मुझे तो लगता है अब भी कमरे में दोनों साथ चुदाई कर रहे है.
रेशमा चुत से लोडा निकालकर सलवार पहनती हुई - मुझे देखना है.
गौतम - रेशु पहले मुझे कर तो लेने दो..
रेशमा - बाद में कर लेना रात पड़ी है पूरी... पहले मुझे देखकर आना है मुझे.. क्या हो रहा है नीचे..
गौतम जीन्स पहनकर - क्या करोगी देखकर?
रेशमा - कुछ नहीं बस देखना है..
गौतम - चलो..
गौतम औऱ रेशमा नीचे आकर शबाना औऱ आदिल की चुदाई का नज़ारा खिड़की की दरार से देखकर एक दूसरे को देखते है.. आदिल शबाना को घोड़ी बनाये हुए था.
गौतम दबी हुई आवाज में - बस देख लिया? अब चले..
रेशमा हैरान होकर - चल..
गौतम औऱ रेशमा वापस ऊपर कमरे में आ जाते है..
गौतम रेशमा को बाहों में भरते हुए - क्या हुआ?
रेशमा - कुछ नहीं.. बस यकीन नहीं हो रहा..
गौतम - छोडो ना.. रेशमा.. शबाना औऱ आदिल दोनों खुश है..
रेशमा गौतम को चूमकर - गांड चाहिए थी ना तुम्हे.. आज मार लो.. कुछ नहीं कहूँगी..
गौतम - सच?
रेशमा नंगी होकर बेड पर घोड़ी बन जाती थी औऱ सरसो का तेल गांड के छेद पर लगाकर गौतम के लंड पर भी लगा देती है.. गौतम लंड सेट करके धीरे धीरे अंदर डालने लगता है..
लंड का टोपा अंदर घुसने पर गौतम - दर्द तो नहीं हो रहा ना रेशु..
रेशमा - मैं सब दर्द सह लुंगी जानू तुम मेरी फ़िक्र मत करो.. घुसाओ.. अंदर..
गौतम लंड घुसाने लगता है औऱ बड़ी मसक्कत के बाढ़ आधा घुसा देता है औऱ आधे से ही धीरे धीरे रेशमा की गांड मारने लगता है..
गौतम - thanks रेशु...
रेशमा कराहती हुई - तुम्हारे लिए कुछ भी जान..
गौतम थोड़ा औऱ लंड अंदर घुसा देता है औऱ रेशमा को स्पीड हलकी सी बढ़ा कर चोदने लगता है तभी आदिल का वीडियो कॉल आता है..
गौतम फोन उठाकर - बोल..
आदिल - क्या कर रहा है?
गौतम - रेशमा की गांड मार रहा था.. तू क्या कर रहा है?
रेशमा - कौन है...
गौतम - तेरा भाई..
आदिल - अम्मी की चुत मार रह था..
गौतम - बात करवा अम्मी से..
शबाना - बेटा..
गौतम रेशमा की गांड मारते हुए - अम्मी कल मुझे मना कर दिया अब आदिल का ले रही हो.. रेशमा ने तुमको देख लिया अभी अभी.. वो सब जान गई है..
शबाना - बेटा कल सुबह बहुत उदास थी. अभी तो तू भी आजा.. मना नहीं करुँगी..
रेशमा - ग़ुगु आराम से..
शबाना - बेटा धीरे.. रेशमा नहीं सह पाएगी..
आदिल - भाई नीचे आजा साथ में करते है..
गौतम - सुन तू अम्मी को लेके आजा ऊपर.. मैं नहीं आ सकता अभी..
आदिल - ठीक है.. फ़ोन कट जाता है..
गौतम - रेशमा.. थोड़ी गांड उठा यार फिर ठीक से अंदर जाएगा..
रेशमा - लो.. डाल दो.. कर दो मुझे बर्बाद..
गौतम कमर को ठीक से पकड़ कर झटके मारता हुआ - thanks रेशु..
गौतम रेशमा की गांड मार ही रहा था की दरवाजे किसीने बजा दिया..
गौतम - आ जाओ अंदर खुला ही है..
आदिल औऱ शबाना अंदर आते है औऱ शबाना गौतम औऱ रेशमा को देखकर कहती है - हाय.. आराम से.. तूने तो पूरा डाल दिया गांड में..
आदिल - भाई आपा को उस तरफ से कर.. मैं इस तरफ से अम्मी को करता हूँ..
गौतम बेड के दाई तरफ रेशमा को लाकर चोदने लगता है औऱ आदिल शबाना को बाई तरफ लाकर चोदने लगता है..
रेशमा शबाना के होंठ चुम लेती है औऱ चुदवाते हुए शबाना को kiss करने लगती है..
शबाना झड़ जाती है औऱ आदिल भी झड़ जाता है दोनों कमरे में एक तरफ रखी चेयर पर बैठ जाते है वही रेशमा सिस्कारी लेती हुई गांड मरवाने का कार्यक्रम चलू रखती है झड़ वो भी चुकी थी मगर गौतम के लिए अब भी गांड मरवा रही थी..
रेशमा की गांड का छेद अब अच्छी तरह खुल गया था जिसमे लंड आसानी से आ जा रहा था.. गौतम ने अब जोर के झटके मारने शुरु कर दिए औऱ रेशमा की आवाजे कमरे में घूंजने लगी.. रेशमा अपनी गांड पकड़कर गौतम से छुड़ाने लगी तो शबाना आगे आ गई औऱ गौतम से बोली - हाय कितना जोर कर रहा है बेटा तू..
गौतम ने रेशमा की गांड से लंड निकालकर उसे हटा दिया औऱ शबाना को घोड़ी बनाकर गांड में सीधा लंड अंदर तक डाल दिया..
शबाना भी एक दम से गांड में पूरा लंड जाने उचक पड़ी लेकिन गौतम ने बाल पकड़ कर शबाना की गांड मारना शुरु कर दिया..
रेशमा अपनी गांड सहलाती हुई बेड से नीचे गिर पड़ी जिसे आदिल ने अपनी बाहों में उठा लिया.. दोनों नंगे ही थे..
आदिल का लंड वापस खड़ा हो चूका था उसने रेशमा को वापस बेड पर पटक कर टांग खोलते हुए कहा - आपा बड़े लंड से दर्द होता है तो छोटा ले लो..
ये कहते हुए आदिल ने रेशमा की गांड में लंड घुसा दिया जिससे वापस रेशमा गांड मरवाने लगी.. मगर वो आदिल को न देखकर सामने शबाना औऱ गौतम को देखने लगी जो उसकी आँखों के सामने गांड मराई का खेल खेल रहे थे..
गौतम आदिल से - मादरचोद बोला था ना रेशमा मेरी है हाथ मत लगाना..
आदिल - माफ़ कर दे भाई पर.. एक बार तो लेकर रहूँगा रेशमा आपा की.. ये कहते हुए आदिल ने रेशमा को पलट दिया औऱ उसकी चुत मारने लगा.. कुछ ही देर में रेशमा वापस झड़ गई औऱ बेड से लचकती हुई नीचे उतर गई..
गौतम - गांडू इधर आ.. तेरी अम्मी का सैंडविच बनाते है..
गौतम पीछे से शबाना की गांड मार रहा था औऱ अब्ब आदिल शबाना की चुत में घुस गया.. दोनों एक टाइम पर शबाना को चोद रहे थे औऱ शबाना खुलकर सिसकियाँ भरते हुए चुदवा रही थी..
आदिल - भाई आगे आ ना मुझे पीछे से करना है.
गौतम - शबाना तू ही पलट जा... औऱ शबाना को घुमा के अपनी तरफ कर लेटा है..
दोनों शबाना को एक साथ चोदते हुए मज़े लेते है..
शबाना आदिल औऱ गौतम के बीच ऐसे फसी हुई थी जैसे बर्गर में टिकिया..
आदिल वापस झड़ गया औऱ शबाना का पानी भी फिर से निकल गया था मगर गौतम अब भी मजबूती से मोर्चा संभाले हुए खड़ा था..
उसने आखिर में रेशमा औऱ शबाना को एक साथ घुटनो पर बैठा दिया औऱ लंड चूसाने लगा..
आदिल थोड़ी देर बाद बेड से खड़ा हुआ औऱ कमरे से बाहर चला गया..
रेशमा औऱ शबाना बिना एक दूसरे से शर्म किये गौतम के लंड को चूस औऱ चाट रहे थे..
आदिल बाहर से आया तो उसके हाथ में शराब की आधी खाली बोतल थी जिसमे से उसने दो पेग बना दिए औऱ एक पेग गौतम को देकर बोला - भाई कब झाड़ेगा? अम्मी औऱ आपा का मुंह दुखने लगा होगा अब तो..
गौतम पेग पीकर गिलास वापस देते हुए - यार लंड चूसते हुए कितनी अच्छी लगती है तेरी अम्मी औऱ बहन..
आदिल- अब झाड़ भी दे.. हमारा दो बार हो गया तू एक बार भी नहीं निकाला..
गौतम - ठीक है यार..
गौतम लंड शबाना के मुंह से निकलकर अपने हाथ में पकड़ लेटा है औऱ दोनों को सामने मुंह खोलकर बैठने को बोलता है फिर लंड मुठियाते हुए दोनों के मुंह पर अपने वीर्य की एक के बाद एक लम्बी लम्बी धार मारता है औऱ झड़ जाता है..
आदिल - तूने झाड़ा है या नहलाया है मेरी अम्मी और आपा को..
गौतम - छोड़ ना यार नींद आ रही है..
रेशमा औऱ शबाना मुंह साफ करके खड़ी हो जाती है शबाना गौतम से कहती - चल में सुलाने देती हूँ..
रेशमा - नहीं अम्मी मेरे साथ सोयेगा गौतम.. चल जानू में सुलाती हूँ तुझे लोरी सुनाके..
आदिल शबाना को पकड़कर - तू मुझे सुला दे ना अम्मी..
चारो उसी बेड पर एकदूसरे की बाहों में बाहे डाले औऱ एकदूसरे से लिपटकर नंगे लेट जाते है..
आदिल - असलम साला कल आया नहीं..
गौतम - रेशमा तू असलम से तलाक़ लेले..
रेशमा - फिर?
गौतम - फिर क्या? सलमा ने जैसे घर बदल कर अपने अब्बू के साथ रह रही है वैसे तू आदिल से निकाह करके अपने भाई के साथ रह.. और मैं तो तेरे साथ हूँ ही..
शबाना - घर बेच कर दूसरी जगह जाना पड़ेगा..
आदिल - इसमें हर्ज़ ही क्या है? यहां हमें सब जानते है..
गौतम - शबाना सलमा से बात कर.. वो मदद करेगी..
आदिल - आपा आप करोगी मुझसे निकाह?
रेशमा - कर लुंगी पर गौतम को नहीं छोडूंगी..
गौतम - पहला निकाह होगा जो अकेले में होगा..
आदिल - हाँ.. और हम जल्दी ही यहां से कहीं और चले जाएगे.. दूकान मैं संभाल ही लूंगा..
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पहाड़ी के पीछे नीचे की तरफ बड़े बाबा जी अपने ध्यान में मग्न थे और उनके पास ही बैरागी की आत्मा भी बैठी हुई उन्हें देख रही थी..
बैरागी जानता था कि बड़े बाबा जी ध्यान कर सकते में अब उतने समर्थ नहीं है उसनका ध्यान भटक रहा है...
जब से गौतम बड़े बाबा जी से मिला था उनका ध्यान डगमगाने लगा था और उनका मन त्रस्त हो चुका था उनके मन में तरह-तरह के ख्याल आने लगे थे और उथल-पुथल मचने लगी थी..
थोड़ी देर ध्यान में बैठने के बाद बड़े बाबा जी एकदम से अपनी आंख खोलकर सामने देखने लगे उनके चेहरे पर आने वाले हाव-भाव यह बताने में बिल्कुल सटीक थे कि उनका ध्यान डगमगा गया है और वह जो देखना चाहते थे वह नहीं देख पाए हैं..
बड़े बाबा जी का इस तरह आंख खोल कर सामने देखना और विचलित हाव-भाव देखकर बैरागी समझ गया था कि वीरेंद्र सिंह जो देखना चाहता है वह नहीं देख पाया है..
वीरेंद्र सिंह ने सामने देखकर एक नजर अपने पास में बैठे बैरागी को देखा और उसकी आंखों में देखते हुए वह समझ गया कि बैरागी को इस बात का अनुमान हो चुका है कि वीरेंद्र सिंह अब ध्यान करते वक्त अपना मन स्थिर नहीं रख पाता और विचलित हो जाता है..
बैरागी और वीरेंद्र सिंह एक दूसरे को देख रहे थे और मन ही मन वह दोनों जानते थे कि वीरेंद्र सिंह ध्यान में क्या देखने की कोशिश कर रहा था और वह क्यों ध्यान करते हुए विचलित हो रहा था बैरागी इस बात से भी पुणता परीचित था कि बड़े बाबा जी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह गौतम का पिछला जन्म देखने के लिए आतुर है और वह इस लिए ध्यान करने बैठे हैं मगर बार बार उनका उचट जाता है...
बैरागी - क्या हुआ हुकुम.. कुछ दिनों से आपका ध्यान बार बार उचट रहा है.. कोनसा ख्याल आपका मन अस्थिर कर रहा है?
वीरेंद्र सिंह - बहुत सारे ख्याल है बैरागी.. किस किस के बारे में बताऊ? मगर जो मेरी समस्या की जड़ में बैठा है वो ख्याल है की आखिरी गौतम पिछले जन्म में कौन था.. धुप सिंह ने किस बंजारन से प्रेम किया था?
बैरागी - इसका जवाब तो आप मुझसे भी पूछ सकते थे हुकुम.. व्यर्थ ही कब से अपने आपको इतनी पीड़ा देने का कार्य कर रहे थे...
वीरेंद्र सिंह आश्चर्य से - क्या तू जानता है बैरागी आखिर गौतम अपने पिछले जन्म में कौन था?
बैरागी - हां हुकुम... मैं जानता हूं गौतम अपने पिछले जन्म में कौन था और कहां था.. और मैं उससे मिल भी चूका हूं..
वीरेंद्र सिंह - तु उससे मिल चुका है.. मगर कहां बैरागी? क्या धूपसिंह का असली पुत्र महल के ही किसी भाग में है या महल के आसपास?
बैरागी - नहीं हुकुम... ना तो वह महल में है ना ही महल के आसपास.. वह आपकी जागीर की सीमा के भीतर आने वाले जंगल के मुहाने पर बसी हुई बंजारा बस्तियों का बशिंदा था जिसे जंगल में मैंने देखा था..
वीरेंद्र सिंह - तू उसे कब कैसे मिला बैरागी.. आखिर तूने उसे कहां देखा और क्या बात की?
बैरागी - मैं आपको सब बताता हूं हुकुम.. मैं आपसे कुछ भी नहीं छुपाना चाहता..
वीरेंद्र सिंह - बताओ बैरागी... जल्दी बताओ मैं बहुत आतुर हुआ जा रहा हूं यह सुनने के लिए की गौतम पिछले जन्म में कौन था? और कहां था? मेरी मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले तुम अब मुझे बताओ कि मुझे इस जीवन से मुक्ति दिलाने वाला आखिर अपने पिछले जन्म में था कौन?
बैरागी - तो सुनिए हुकुम.. जब मैं अपने उद्देश्य के लिए निकला था तब आपकी जागीर में आने से पहले जंगल के रास्ते पर था.. जहां जंगल के मुहाने पर बसी हुई बस्तियां थी और मैं उनके पगडंडियों वाले मार्ग पर चलता हुआ आपके जागीर की सीमा के भीतर प्रवेश कर चुका था.. जब मैं उस बंजारा कबिले के पास पहुंचा तो मेरी मुलाकात काबिले के सरदार डाकी से हुई..
डाकी कबिले के पुराने सरदार लाखा को द्वन्द युद्ध में मारकर सरदार बना था औऱ लाखा की दोनों पुत्री मुन्नी औऱ शीला को अपनी दासी बनाकर उनका स्वामी... कबले की परम्परा के मुताबिक लाखा की पत्नी को भी डाकी की पत्नी बनना पड़ता मगर लाखा की पत्नी बहुत पहले चल बसी थी औऱ उस वक़्त की कोई पत्नी नहीं थी..
वीरेंद्र सिंह - ये सब मैं जानता हूँ बैरागी.. तू ये बता इन सब में से गौतम का पिछला जन्म कौन था? साफ-साफ बता? आखिर उस कबीले में कौन था जो गौतम का पिछला था..
बैरागी - हुकुम... गौतम का पिछला जन्म और कोई नहीं लाखा की बड़ी पुत्री मुन्नी का एकलौता बेटा हाक़िम था..
वीरेंद्र सिंह - हाक़िम?
बैरागी - हां हुकुम.. हाक़िम.. जब मैं कबीले के सरदार डाकी से मिलकर वापस आने के लिए निकला तब जंगल के रास्ते में एक पेड़ के नीचे मेरी मुलाक़ात हाक़िम से हुई..
गौतम आज इस जन्म में जितना आत्मविश्वास से भरा हुआ निडर निर्भीक और जांबाज है अपने पिछले जन्म में उतना ही कमजोर और डरपोक था..
नाजायज संतान होने के कारण उसे कई बार कबीले के ताने सुनने पड़े. और किसी ने उसका साथ नहीं दिया.. लाखा ने भी हाक़िम को कभी नहीं अपनाया.. हाक़िम पर बस उसकी माँ मुन्नी औऱ मौसी शीला ही अपने प्रेम की वर्षा करती थी.. और शीला की पुत्री उर्मि भी हाक़िम को अपने दिल में पसंद करती थी मगर जब सरदार बदला और नया सरदार बना तब हकीम का अपनी मां मुन्नी और मौसी शीला से भी मिलना कम हो गया हाक़िम से वो लोग छुप छुप कर मिलते थे..
डाकी ने हाक़िम को काबिले से निकाला दे दिया औऱ हाक़िम की माँ मुन्नी औऱ मौसी शीला को अपने साथ रखकर भोग विलास करने लगा..
हाक़िम कबीले से दूर जंगल में अपने दिन गुजरने लगा और यह सोचने लगा कि अगर वह कमजोर ना होता इतना डरपोक ना होता और लड़ना जानता तो वह डाकी से लड़कर अपनी माँ मुन्नी औऱ मौसी शीला को उसके चंगुल से आज़ाद करवा लेता.. उसे कबीला नहीं छोड़ना पड़ता उसे कबीले से नहीं निकाला जाता..
हाक़िम जब मुझसे मिला तब उसने अपना दिल खोल कर मेरे सामने रख दिया था हुकुम.. वह अपने मन की हर एक गहराइयों में छुपी हुई बातों को मेरे सामने प्रकट करके मुझे मदद की उम्मीद कर बैठा और मैंने भी उससे मदद करने का वादा किया था..
हुकुम अब आप जान गए हैं कि गौतम अपने पिछले जन्म में कौन था और क्या था अब समय आने वाला है कि आप उसे उसके पिछले जन्म में भेज कर अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं.. मगर आप अच्छी तरह जानते हो कि वह यहां से अपने पिछले जन्म में जितनी भी चीज ले जाएं मगर वहां से एक ही चीज वापस ला सकता है.. अगर वो जड़ी बूटी के अलावा कुछ और लेकर आता है तो फिर आपकी और मेरी मुक्ति अगले बचे हुए 500 सालों तक नहीं हो पायेगी हुकुम..
वीरेंद्र सिंह - तू सही कह रहा है बैरागी.. गौतम अगर जड़ीबूटी के अलावा कुछ और लेकर आ गया तो मेरे साथ साथ तुझे भी मुक्ति मिले बिना ही रह जाएगी.. उसे वापस आने के लिए औऱ कार्य ठीक से करने के लिए कोई ठोस वजह देनी होगी और यह भी तय करना होगा कि वह सिर्फ जड़ीबूटी ही लेकर आए और कुछ नहीं..
बैरागी - वजह तो उसे मिलने वाली है हुकुम.. वह वापस जरूर आएगा मगर क्या वह जड़ी बूटी लेकर आएगा या कुछ और? यह सोचने का विषय है.. अगर आप उसे इस बात पर अडीग कर ले कि वह सिर्फ जड़ी-बूटी लेकर आएगा तब आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और हमें मुक्ति मिल सकती है आप जल्दी से उसे इस कार्य के लिए सज्य करें वक्त आने वाला है जब हमें एक साथ मुक्ति मिलेगी और आपका जीवन इस पीड़ा से इस कष्ट से और बंधन से आजाद हो जाएगा..
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