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moms_bachha

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Update 47


सुबह के सात बज चुके थे औऱ जगमोहन बेड पर ओंधे मुंह पड़ा हुआ कराटे मार रहा था.. सुमन उठकर नहा चुकी थी औऱ चाय बनाकर गौतम के कमरे की तरफ बढ़ गई थी.. गौतम भी आज जल्दी ही उठ गया था औऱ नहा चूका था..
सुमन चाय बेड के ऊपर सिरहने रखती हुई - चाय पिले शहजादे..
गौतम बेड से उठकर सुमन का हाथ पकड़ते हुए - इस शहजादे को चाय नहीं तुम्हारी चुत चाहिए शहजादी..
सुमन मुस्कुराते हुए - शहजादी तो चुत देने के लिए कब से तैयार है पर सही मौका औऱ दस्तूर भी तो हो..
गौतम सुमन का हाथ चूमते हुए - इतना सब्र किया तो कुछ पल औऱ सही..
सुमन गौतम के बालो को हल्का सा इधर उधर करते हुए - अब चाय पीके जा यहां से.. वो लोग आने वाले ही होंगे..
गौतम सुमन को बाहों में भरके गाल पर चुम्बन करते हुए - जो हुकुम मेरी सहजादी..
सुमन वहा से बाहर आ जाती है औऱ गौतम चाय पीके अपनी बाइक उठाकर बाहर चला जाता है..


गोतम कहा है?
मुझे क्या पता? गया होगा अपने दोस्तों के पास..
सुमन तूने जानबूझकर उसे बाहर भेजा है ना..
मैं क्यों उसे भेजनें लगी? वो खुद ही अपनी मर्ज़ी से गया है..
जगमोहन चिढ़ते हुए - मैं भी कहा तुमसे बात करने बैठ गया.. चाय ला दो..
सुमन - बनाके रखी है छन्नी करके पिलो..
जगमोहन उठकर जाता है कमरे से बाहर निकलता है की दरवाजे पर दो औरत औऱ एक आदमी दिखाई देते है..
जगमोहन उन्हें देखकर - माँ..
जगमोहन की माँ हेमा - जग्गू...
बृजमोहन - जग्गू भईया..
जगमोहन - आओ अंदर आओ..
हेमा उस घर देखकर - घर तो बड़ा सुन्दर बनाया है तूने जग्गू?
जगमोहन - आओ ना माँ.. बैठो... अरे सुमन देखो.. माँ मानसी औऱ ब्रजमोहन आये है..
सुमन कमरे से बाहर आकर बेरुखी से देखते हुए..
मानसी - कैसी हो सुमन?
सुमन - जैसी 18 साल पहले थी..
हेमा - बहु हमारा गौतम कहा है? अब तो बहुत बड़ा हो गया होगा.. पिछली बार जब दो साल का था तब देखा था उसे.. उसके बाद तो उसे देखने को आँखे ही तरस गई..
सुमन - मेरा गौतम दोस्तों के साथ बाहर गया है..
मानसी - सुमन तुम गाँव क्यों नहीं आई इतने सालों में..
सुमन - वहां मेरे औऱ मेरे ग़ुगु के लिए अब बचा ही क्या है..
बृजमोहन - ऐसा क्यों कहती हो भाभी.. वहा आपका घर है..
सुमन - घर औऱ जमीने तो तुमने अपने भाई से छीनकर अपने पास रख ली थी याद है.. सुना है सारी जमीन साहूकार को बेच दी तुमने अपनी ऐयाशी पूरी करने के लिए..
हेमा - सुमन.. पुरानी बातों को भूल जाओ.. उनसे अब किसी का भला नहीं होने वाला.. बृजमोहन अब बदल चूका है..
सुमन - सब लुटा कर अब बदलने की क्या जरुरत.. घर औऱ खेत बाकी है उसे भी बेच देते..
जगमोहन - सुमन.. ऐसे बात करते है अपनी सास से.. इतने सालों बाद आये है.. जाओ चाय औऱ नाश्ता बना दो.. सबके लिए..
सुमन बिना कुछ बोले रसोई में चली जाती है औऱ चाय बनाने लगती है..
उसके साथ ही मानसी भी सुमन के पीछे पीछे रसोई में चली जाती है..
जगमोहन बृजमोहन औऱ हेमा के साथ हॉल में लगे बड़े से सोफे पर बैठ जाता है औऱ बातें करने लगता है..
मानसी - सुमन.. लाओ मैं चाय बना देती हूँ.
सुमन - रहने दो मानसी.. मेहमान हो.. मैं बना लुंगी..
मानसी - इतनी भी क्या नाराज़गी सुमन.. मैं कोई पराई तो नहीं हूँ..
सुमन - अपनी भी कहा थी तुम मानसी..
मानसी - मैं जानती हूँ सुमन तुम गुस्सा हो हमसे पर मेरी बस में ना ही कल कुछ था ना ही आज कुछ है..
सुमन - साफ साफ कहो मानसी.. यहां क्यों आई हो?
मानसी - अपने जमाई को लेने..
सुमन - कोनसा जमाई? वो रिश्ता वही तोड़ के मैं यहां आई थी..
मानसी - तुम्हारे मेरे तोड़ने से रिश्ते नहीं टूटते सुमन.. गाँव में पंचायत के लोगों के सामने वो रिश्ता बना था.. बात तय हुई थी..
सुमन - बच्चों की शादी को सरकार भी शादी नहीं मानती मानसी..
मानसी - मगर पंचायत मानती है.. औऱ तुम जानती हो हमारे यहां ये फैसले कितने कड़ाई से निभाये जाते है..
सुमन - निभाए जाते होंगे.. मगर अब नहीं.. मैं मेरे ग़ुगु को हरगिज़ उस गाँव में नहीं जाने दूंगी..
मानसी - जाना तो उसे पड़ेगा सुमन.. कुसुम अब 18 साल की दहलीज़ को लांघ चुकी है.. उसे गौतम को अपनाना ही होगा..
सुमन - ऐसा नहीं होगा मानसी.. गौतम उसी से शादी करेगा जिससे उसका मन होगा..
मानसी - पर उसकी शादी हो चुकी है सुमन.. याद है तुम्हींने मेरी कुसुम को गोद में उठाकर कहा था ये ग़ुगु की दुल्हन बनेगी.. तुम्हारी मर्ज़ी शामिल थी उसमे..
सुमन - तब तक बटवारा नहीं हुआ था मानसी.. मुझे अगर पता होता कि तुम मेरे साथ ऐसा करोगे तो कभी वो सब नहीं करती..
मानसी - मैंने तुम्हारे साथ कभी कुछ गलत नहीं किया सुमन.. तुम जानती हो मेरा दिल साफ है.. अब मैं अपनी बेटी के लिए उसके पति को माँगने आई हूँ.. गाँव आकर गौतम कुसुम को पंचायत के सामने अपना कर अपने साथ रख ले बस.. मैं औऱ कुछ नहीं चाहती..
सुमन - ऐसा नहीं होगा मानसी.. गौतम को भूल जाओ.. कुसुम के लिए कोई औऱ लड़का देख लो..
मानसी - एक बार जिस लड़की का विवाह हो जाता है उसका किसी औऱ के साथ विवाह नहीं करवाया जाता.. अगर गौतम खुद गाँव आकर कुसुम को अपना नहीं बनाता तो मैं पंचायत में गौतम के खिलाफ गुहार लगा दूंगी.. औऱ तुम जानती हो पंचायत के नियम कितने कड़े है..
सुमन - तुम्हे जो करना है करो मानसी.. मेरा गौतम उस गाँव में नहीं जाएगा..
मानसी - उसे आना पड़ेगा सुमन.. वरना पंचायत ने जगन के साथ जो किया था तुम अच्छे से जानती हो.. तुम्हारी ज़िद कहीं सब ख़त्म ना कर दे..
सुमन - धमकी दे रही हो..
मानसी - नहीं.. भीख मांग रही हूँ.. अपनी कुसुम के लिए तुम्हारे गौतम की.. मेरी बात मान जाओ सुमन.. मैंने कुसुम को बहुत सभालके पाला पोसा है.. वो गौतम का अच्छे से ख्याल रखेगी.. औऱ तुम्हे भी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी.
सुमन - चाय बन गई है.. लो.. लेजाकर दे दो..
मानसी अपने पर्स में से एक तस्वीर निकालकर सुमन के सामने रख देती है औऱ चाय की ट्रे उठाकर रसोई से बाहर आ जाती है औऱ सबको चाय दे देती है.. सुमन की नज़र तस्वीर पर पडती है औऱ वो कुसुम की तस्वीर को देखने लगती है.. सुमन कुसुम को देखने लगती है और मन ही मन वो भी कुसुम को गौतम के लिए सही मानते हुए दोनों का बंधन होने की बात सोचने लगती है..

************

सलामपुर गाँव में खेतो को पार करके जंगल के मुहाने पर कटीली झाड़ियों के पीछे दो सहेलियां पानी का मग्गा लेके टट्टी करने बैठी थी..
अरे कुसुम.. सुना आज तेरे मम्मी पापा तेरे दूल्हे से मिलने गए है.. कहीं झुमरी के दूल्हे की तरह तेरा दूल्हा भी काला कलूटा औऱ भद्दा निकला तो.. तू चाँद सी चितवन काया वाली औऱ वो अँधेरी काली रात..
कुसुम - नहीं.. मीना.. ऐसा मत बोल.. मैं मर ही जाउंगी अगर ऐसा हुआ तो.. दादी ने बताया था वो बचपन में बहुत प्यारे लगते थे.. अब भी शायद वैसे ही हो..
मीना - अच्छा.. औऱ फुलवा की जैसे शराबी औऱ जुवारी निकला तो..
कुसुम - तू औऱ कुछ नहीं बोल सकती क्या.. मेरी तो टट्टी भी बंद हो गई तेरी बातें सुनकर..
मीना हसते हुए - अरे तो मुझसे कह दे.. तेरी गांड में ऊँगली डालकर निकाल देती हूँ टट्टी..
कुसुम शरमाते हुए मग्गे से पानी हाथ में लेकर गांड धोती हुई - हट बेशर्म.. चल अब..
मीना भी गांड धोती हुई - हाय कैसे शर्माती है तू.. जब तेरा दूल्हा पटक पटक के चोदेगा ना तब सारी शर्म निकल जाएगी.. मेरे वक़्त तो तू भी बड़ा बोलती थी.. अब अपना वक़्त आया तो कैसे चुप है..
कुसुम खेत की पगदंडी से मीना के साथ वापस घर आती हुई - चुदाई में दर्द होता होगा ना मीना..
मीना - पहले पहल होता है फिर मज़ा आता है.. मन करता है बस चुदवाते ही रहो.. देख चुदाई की बात करके तेरे चुचक कैसे खड़े हो गए.. मिलन की रातों में जब तेरे ये नुकिले चुचक तीर की तरह तेरे दूल्हे के सीने में चुभेगे तो उसे मज़ा ही आ जाएगा..
कुसुम शरमाते हुए - धत..
मीना कुसुम के चुचे अचानक से मसलकर - शर्मा क्यों रही है सहेली.. अब तेरे खेत में हल चलाने वाला जल्दी ही आने वाला है.. तेरी छोटी सी चुत को वो बड़ा कर देगा..
कुसुम मुस्कुराते हुए - घर आ गया.. तू भी जा...

**************


पता नहीं आज ये फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा..
रहने दो भईया.. आप तो उसे कल गाँव लेकर आ जाना.. कुसुम औऱ गौतम की रित निभाना है.. फिर जल्द ही दोनों का बंधन भी करवा देंगे..
मानसी - हाँ.. मेरा बहुत मन था गौतम को देखने का.. मगर आज नहीं तो कल सही.. जब वो गाँव आएगा तब देख लुंगी..
हेमा - अब चलना चाहिए.. कुसुम अकेली है.. शाम से पहले वापस पहुंचना है..
जगमोहन - माँ आप रुकिए मैं टेक्सी बुलवा देता हूँ..
सुमन - रहने दीजिये.. मैंने फ़ोन कर दिया था.. गौतम आने वाला होगा वही बस स्टेण्ड तक छोड़ आएगा..
मानसी ख़ुशी से - ये कितनी अच्छी बात है सुमन.. मतलब आज मैं अपने जमाई को देख सकती हूँ..

गौतम बाहर बाइक खड़ी करके अंदर आता है तो उसे देखकर हेमा मानसी औऱ बृजमोहन अपनी जगह से खड़े हो जाते है औऱ मानसी सुमन को देखकर कहती है..
मानसी - सुमन ये हमारा गौतम है ना?
सुमन - मानसी ये मेरा गौतम है..
मानसी सुमन की बात सुनकर आगे बढ़ती है औऱ गौतम को अपने गले से लगाकर - कितने प्यारा औऱ चाँद सा मुखड़ा है.. बिलकुल कोई शहजादा लगने लगा है.. माँ देखो ना..
हेमा आगे बढ़कर गौतम के चेहरे को चूमती हुई - हाँ सुमन.. मेरे पोते के जैसा सुन्दर और प्यारा तो कोई दूसरा ना होगा..
मानसी तस्वीर लेते हुए - अब तक हमसे छुपा के रखा था सुमन ने.. मगर आज देखो..
हेमा - बेटा मैं तेरी दादी..
गौतम पैर छूता है..
हेमा गले से लगाते हुए - अरे रहने दे ये सब.. तू तो मेरा अपना है.. तेरी माँ ने कब से तुझे हमसे छुपा के रखा था.. आज मिला है..
सुमन - ग़ुगु.. दादी औऱ चाचा चाची को बस स्टैंड तक छोड़ आ जरा..
गौतम सुमन की बात सुनकर उन सबको कार में बैठा कर बस स्टेण्ड छोड़कर आ जाता है.. तब तक जगमोहन घर से जा चूका था..


**************

मानसी - कुसुम.. कुसुम.. कहा गई ये लड़की?
कुसुम - माँ सहेली के पास गई थी.. कुछ काम था..
मानसी - कल रीत का सारा सामान तूने रख लिया है ना..
कुसुम - जी..
मानसी - ठीक है.. कल समय से तैयार रहना.. किसी सहेली के यहां ना चले जाना..
कुसुम - माँ..
मानसी - बोल..
कुसुम - वो माँ आप..
मानसी मुस्कुराते हुए - क्या बोल ना..
कुसुम - नहीं.. कुछ नहीं..
मानसी - तेरे दूल्हे से मिली या नहीं यही पूछना चाहती है ना मेरी लाडो..
कुसुम शरमाते हुए - माँ..
मानसी - तस्वीर देखेगी अपने होने वाले दूल्हे की?
कुसुम शरमाते हुए कुछ नहीं बोलती और चुपचाप खड़ी रहती है..
मानसी छेड़ते हुए - नहीं देखनी तो तेरी मर्ज़ी.. मुझे क्या
कुसुम - आप तस्वीर लेके आई हो..
मानसी कुसुम से मसखरी करते हुए - हाँ.. पर क्या फ़ायदा? ना शकल अच्छी है ना रंग अच्छा है गौतम का.. शहर में बिलकुल बेरंग हो गया है.. मुंह भी बांका है.. बोलता है तो लगता है दाँत ही गिर पड़ेंगे.. मैंने तो कहा ये रिश्ता तोड़ देते है पर तेरे पापा नहीं माने.. मेरी वैसे भी कहा चलती है..
कुसुम फ़िक्र से - इतना बुरी सूरत है..
हेमा आते हुए - अरे क्यों छेड़ती है कुसुम को.. देख कैसे चेहरा उतर गया है बेचारी का.. कुसुम ले ये देख तेरे दूल्हे की तस्वीर.. है ना चाँद का टुकड़ा..
कुसुम फ़ोन में तस्वीर देखकर देखती रह जाती है और ख़ुशी से शरमाते हुए अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से छुपा कर खड़ी हो जाती है..
मानसी - अरे शर्मा रही है.. माँ जी लगता है गौतम पसंद नहीं आया कुसुम को.. शादी के लिए मना कर देंते है..
कुसुम एक दम से - मैंने ऐसा कब कहा?
मानसी और हेमा एक साथ हँसते है..
कुसुम फ़ोन लेकर अपने कमरे में भाग जाती है और गौतम की तस्वीर देखती हुई उसे अपनी आँखों में बसाने लगती है.. कुसुम के मन में बहुत से ख्याल आ जा रहे थे जिनसे खुश होते और सोचके शरमाते हुए कुसुम गौतम की तस्वीर को अकेले में अपने होंठों से चुम के बार बार उसके साथ शादी होने और प्यार करने के सपने अपनी खुली आँखों से देख रही थी..
कुसुम के मन की सारी चिंता और फ़िक्र निकल चुकी थी जिसके जगह प्यार उमंग और भविष्य की सम्भावनाओं ने ले लिया था.. कुसुम बार बार गौतम की तस्वीर को कभी अपने सीने से लगाती तो कभी चूमती.. उसने अपने फ़ोन के स्क्रीन पर भी गौतम की तस्वीर लगा दी और सोचने लगी की वो गौतम को अपनी पलकों पर सजा कर रखेगी उसे बहुत खुश रखेगी और प्यार करेगी..

**************

क्या हुआ माँ? क्या कह रहे थे वो लोग?
सुमन कुसुम की तस्वीर गौतम को देकर - कल हम गाँव जाने वाले है.. रित निभाने..
गौतम बिना तस्वीर देखे - क्या रित? कोनसी रित औऱ ये तस्वीर किसकी है?
सुमन - ये तेरी दुल्हन की तस्वीर है ग़ुगु..
गौतम बिना तस्वीर देखे रखते हुए - मैं कोई शादी नहीं करने वाला..
सुमन - तेरी शादी हो चुकी है.. जब तू 2 साल का था..
गौतम - क्या बकवास कर रही हो माँ.. मेरी साथ फालतू मज़ाक़ करने की कोशिश भी मत करना.
सुमन - ये मज़ाक़ नहीं है ग़ुगु.. कुसुम तेरे चाचा चाची की एकलौती बेटी है..
गौतम - चाचा चाची की? पर हमारे यहां कजिन मेर्रिज कहा होती है?
सुमन - होती है.. तेरे पापा से पूछना बाकी बातें.. मुझे बहुत काम है..
गौतम - काम गया माँ चुदाने.. ये हो क्या रहा है? साफ साफ बताओगी?
सुमन - ग़ुगु जैसे साउथ इंडिया में कजिन मैरिज होती है वैसे ही हमारे गाँव औऱ आस पास के गाँव में भी होती है.. तेरे पापा जिस समाज से है वो लोग सकड़ो साल पहले साउथ इंडिया आकर यहां बसे थे.. बचपन में मैंने तेरी औऱ कुसुम की शादी करवा दी थी मगर फिर बटवारे में विवाद के कारण मैं तुझे गाँव से लेकर यहां आ गई.. अब हमें वापस जाना होगा औऱ तुझे कुसुम के साथ रित निभाकर उसके साथ बंधन करना होगा..
गौतम - मैं कुछ नहीं करने वाला.. औऱ उस शादी को मना कर दो..
सुमन - नहीं कर सकते ग़ुगु.. अगर हमने मना किया तो मानसी पंचयात में चली जायेगी फिर पंचायत हमारे खिलाफ फैसला कर देगी.. जैसे सालों पहले जगन के साथ किया.. शादी तोड़ने के अपराध में उसे जान देनी पड़ी थी..
गौतम - अब वक़्त बदल चूका है माँ.. क़ानून से काम होता है..
सुमन - पंचायत का क़ानून ही सबकुछ है वहा गौतम. वो लोग नियम के मामले में बहुत कठोर है.. तुझे कल चलना ही होगा..
गौतम - तुम चाहती हो मैं वहा जाऊ औऱ कुसुम के साथ रीत निभाऊ उसे अपनी पत्नी बनाऊ?
सुमन - हाँ.. मैं चाहती हूँ..
गौतम - तो ठीक है मैं कल जाऊँगा.. लेकिन आज तुमको वो सब करना होगा जो मैं कहूंगा..
सुमन अपनी साडी का पल्लू गिराते हुए - मैं तैयार हूँ गौतम..
गौतम सुमन साडी खोलने से रोकता हुआ - यहां नहीं सुमन..
सुमन - तो?
गौतम सुमन को अपने साथ घर से लेकर कहीं बाहर चला जाता है...



 
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सुबह के सात बज चुके थे औऱ जगमोहन बेड पर ओंधे मुंह पड़ा हुआ कराटे मार रहा था.. सुमन उठकर नहा चुकी थी औऱ चाय बनाकर गौतम के कमरे की तरफ बढ़ गई थी.. गौतम भी आज जल्दी ही उठ गया था औऱ नहा चूका था..
सुमन चाय बेड के ऊपर सिरहने रखती हुई - चाय पिले शहजादे..
गौतम बेड से उठकर सुमन का हाथ पकड़ते हुए - इस शहजादे को चाय नहीं तुम्हारी चुत चाहिए शहजादी..
सुमन मुस्कुराते हुए - शहजादी तो चुत देने के लिए कब से तैयार है पर सही मौका औऱ दस्तूर भी तो हो..
गौतम सुमन का हाथ चूमते हुए - इतना सब्र किया तो कुछ पल औऱ सही..
सुमन गौतम के बालो को हल्का सा इधर उधर करते हुए - अब चाय पीके जा यहां से.. वो लोग आने वाले ही होंगे..
गौतम सुमन को बाहों में भरके गाल पर चुम्बन करते हुए - जो हुकुम मेरी सहजादी..
सुमन वहा से बाहर आ जाती है औऱ गौतम चाय पीके अपनी बाइक उठाकर बाहर चला जाता है..


गोतम कहा है?
मुझे क्या पता? गया होगा अपने दोस्तों के पास..
सुमन तूने जानबूझकर उसे बाहर भेजा है ना..
मैं क्यों उसे भेजनें लगी? वो खुद ही अपनी मर्ज़ी से गया है..
जगमोहन चिढ़ते हुए - मैं भी कहा तुमसे बात करने बैठ गया.. चाय ला दो..
सुमन - बनाके रखी है छन्नी करके पिलो..
जगमोहन उठकर जाता है कमरे से बाहर निकलता है की दरवाजे पर दो औरत औऱ एक आदमी दिखाई देते है..
जगमोहन उन्हें देखकर - माँ..
जगमोहन की माँ हेमा - जग्गू...
बृजमोहन - जग्गू भईया..
जगमोहन - आओ अंदर आओ..
हेमा उस घर देखकर - घर तो बड़ा सुन्दर बनाया है तूने जग्गू?
जगमोहन - आओ ना माँ.. बैठो... अरे सुमन देखो.. माँ मानसी औऱ ब्रजमोहन आये है..
सुमन कमरे से बाहर आकर बेरुखी से देखते हुए..
मानसी - कैसी हो सुमन?
सुमन - जैसी 18 साल पहले थी..
हेमा - बहु हमारा गौतम कहा है? अब तो बहुत बड़ा हो गया होगा.. पिछली बार जब दो साल का था तब देखा था उसे.. उसके बाद तो उसे देखने को आँखे ही तरस गई..
सुमन - मेरा गौतम दोस्तों के साथ बाहर गया है..
मानसी - सुमन तुम गाँव क्यों नहीं आई इतने सालों में..
सुमन - वहां मेरे औऱ मेरे ग़ुगु के लिए अब बचा ही क्या है..
बृजमोहन - ऐसा क्यों कहती हो भाभी.. वहा आपका घर है..
सुमन - घर औऱ जमीने तो तुमने अपने भाई से छीनकर अपने पास रख ली थी याद है.. सुना है सारी जमीन साहूकार को बेच दी तुमने अपनी ऐयाशी पूरी करने के लिए..
हेमा - सुमन.. पुरानी बातों को भूल जाओ.. उनसे अब किसी का भला नहीं होने वाला.. बृजमोहन अब बदल चूका है..
सुमन - सब लुटा कर अब बदलने की क्या जरुरत.. घर औऱ खेत बाकी है उसे भी बेच देते..
जगमोहन - सुमन.. ऐसे बात करते है अपनी सास से.. इतने सालों बाद आये है.. जाओ चाय औऱ नाश्ता बना दो.. सबके लिए..
सुमन बिना कुछ बोले रसोई में चली जाती है औऱ चाय बनाने लगती है..
उसके साथ ही मानसी भी सुमन के पीछे पीछे रसोई में चली जाती है..
जगमोहन बृजमोहन औऱ हेमा के साथ हॉल में लगे बड़े से सोफे पर बैठ जाता है औऱ बातें करने लगता है..
मानसी - सुमन.. लाओ मैं चाय बना देती हूँ.
सुमन - रहने दो मानसी.. मेहमान हो.. मैं बना लुंगी..
मानसी - इतनी भी क्या नाराज़गी सुमन.. मैं कोई पराई तो नहीं हूँ..
सुमन - अपनी भी कहा थी तुम मानसी..
मानसी - मैं जानती हूँ सुमन तुम गुस्सा हो हमसे पर मेरी बस में ना ही कल कुछ था ना ही आज कुछ है..
सुमन - साफ साफ कहो मानसी.. यहां क्यों आई हो?
मानसी - अपने जमाई को लेने..
सुमन - कोनसा जमाई? वो रिश्ता वही तोड़ के मैं यहां आई थी..
मानसी - तुम्हारे मेरे तोड़ने से रिश्ते नहीं टूटते सुमन.. गाँव में पंचायत के लोगों के सामने वो रिश्ता बना था.. बात तय हुई थी..
सुमन - बच्चों की शादी को सरकार भी शादी नहीं मानती मानसी..
मानसी - मगर पंचायत मानती है.. औऱ तुम जानती हो हमारे यहां ये फैसले कितने कड़ाई से निभाये जाते है..
सुमन - निभाए जाते होंगे.. मगर अब नहीं.. मैं मेरे ग़ुगु को हरगिज़ उस गाँव में नहीं जाने दूंगी..
मानसी - जाना तो उसे पड़ेगा सुमन.. कुसुम अब 18 साल की दहलीज़ को लांघ चुकी है.. उसे गौतम को अपनाना ही होगा..
सुमन - ऐसा नहीं होगा मानसी.. गौतम उसी से शादी करेगा जिससे उसका मन होगा..
मानसी - पर उसकी शादी हो चुकी है सुमन.. याद है तुम्हींने मेरी कुसुम को गोद में उठाकर कहा था ये ग़ुगु की दुल्हन बनेगी.. तुम्हारी मर्ज़ी शामिल थी उसमे..
सुमन - तब तक बटवारा नहीं हुआ था मानसी.. मुझे अगर पता होता कि तुम मेरे साथ ऐसा करोगे तो कभी वो सब नहीं करती..
मानसी - मैंने तुम्हारे साथ कभी कुछ गलत नहीं किया सुमन.. तुम जानती हो मेरा दिल साफ है.. अब मैं अपनी बेटी के लिए उसके पति को माँगने आई हूँ.. गाँव आकर गौतम कुसुम को पंचायत के सामने अपना कर अपने साथ रख ले बस.. मैं औऱ कुछ नहीं चाहती..
सुमन - ऐसा नहीं होगा मानसी.. गौतम को भूल जाओ.. कुसुम के लिए कोई औऱ लड़का देख लो..
मानसी - एक बार जिस लड़की का विवाह हो जाता है उसका किसी औऱ के साथ विवाह नहीं करवाया जाता.. अगर गौतम खुद गाँव आकर कुसुम को अपना नहीं बनाता तो मैं पंचायत में गौतम के खिलाफ गुहार लगा दूंगी.. औऱ तुम जानती हो पंचायत के नियम कितने कड़े है..
सुमन - तुम्हे जो करना है करो मानसी.. मेरा गौतम उस गाँव में नहीं जाएगा..
मानसी - उसे आना पड़ेगा सुमन.. वरना पंचायत ने जगन के साथ जो किया था तुम अच्छे से जानती हो.. तुम्हारी ज़िद कहीं सब ख़त्म ना कर दे..
सुमन - धमकी दे रही हो..
मानसी - नहीं.. भीख मांग रही हूँ.. अपनी कुसुम के लिए तुम्हारे गौतम की.. मेरी बात मान जाओ सुमन.. मैंने कुसुम को बहुत सभालके पाला पोसा है.. वो गौतम का अच्छे से ख्याल रखेगी.. औऱ तुम्हे भी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी.
सुमन - चाय बन गई है.. लो.. लेजाकर दे दो..
मानसी अपने पर्स में से एक तस्वीर निकालकर सुमन के सामने रख देती है औऱ चाय की ट्रे उठाकर रसोई से बाहर आ जाती है औऱ सबको चाय दे देती है.. सुमन की नज़र तस्वीर पर पडती है औऱ वो कुसुम की तस्वीर को देखने लगती है.. सुमन कुसुम को देखने लगती है और मन ही मन वो भी कुसुम को गौतम के लिए सही मानते हुए दोनों का बंधन होने की बात सोचने लगती है..

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सलामपुर गाँव में खेतो को पार करके जंगल के मुहाने पर कटीली झाड़ियों के पीछे दो सहेलियां पानी का मग्गा लेके टट्टी करने बैठी थी..
अरे कुसुम.. सुना आज तेरे मम्मी पापा तेरे दूल्हे से मिलने गए है.. कहीं झुमरी के दूल्हे की तरह तेरा दूल्हा भी काला कलूटा औऱ भद्दा निकला तो.. तू चाँद सी चितवन काया वाली औऱ वो अँधेरी काली रात..
कुसुम - नहीं.. मीना.. ऐसा मत बोल.. मैं मर ही जाउंगी अगर ऐसा हुआ तो.. दादी ने बताया था वो बचपन में बहुत प्यारे लगते थे.. अब भी शायद वैसे ही हो..
मीना - अच्छा.. औऱ फुलवा की जैसे शराबी औऱ जुवारी निकला तो..
कुसुम - तू औऱ कुछ नहीं बोल सकती क्या.. मेरी तो टट्टी भी बंद हो गई तेरी बातें सुनकर..
मीना हसते हुए - अरे तो मुझसे कह दे.. तेरी गांड में ऊँगली डालकर निकाल देती हूँ टट्टी..
कुसुम शरमाते हुए मग्गे से पानी हाथ में लेकर गांड धोती हुई - हट बेशर्म.. चल अब..
मीना भी गांड धोती हुई - हाय कैसे शर्माती है तू.. जब तेरा दूल्हा पटक पटक के चोदेगा ना तब सारी शर्म निकल जाएगी.. मेरे वक़्त तो तू भी बड़ा बोलती थी.. अब अपना वक़्त आया तो कैसे चुप है..
कुसुम खेत की पगदंडी से मीना के साथ वापस घर आती हुई - चुदाई में दर्द होता होगा ना मीना..
मीना - पहले पहल होता है फिर मज़ा आता है.. मन करता है बस चुदवाते ही रहो.. देख चुदाई की बात करके तेरे चुचक कैसे खड़े हो गए.. मिलन की रातों में जब तेरे ये नुकिले चुचक तीर की तरह तेरे दूल्हे के सीने में चुभेगे तो उसे मज़ा ही आ जाएगा..
कुसुम शरमाते हुए - धत..
मीना कुसुम के चुचे अचानक से मसलकर - शर्मा क्यों रही है सहेली.. अब तेरे खेत में हल चलाने वाला जल्दी ही आने वाला है.. तेरी छोटी सी चुत को वो बड़ा कर देगा..
कुसुम मुस्कुराते हुए - घर आ गया.. तू भी जा...

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पता नहीं आज ये फ़ोन क्यों नहीं उठा रहा..
रहने दो भईया.. आप तो उसे कल गाँव लेकर आ जाना.. कुसुम औऱ गौतम की रित निभाना है.. फिर जल्द ही दोनों का बंधन भी करवा देंगे..
मानसी - हाँ.. मेरा बहुत मन था गौतम को देखने का.. मगर आज नहीं तो कल सही.. जब वो गाँव आएगा तब देख लुंगी..
हेमा - अब चलना चाहिए.. कुसुम अकेली है.. शाम से पहले वापस पहुंचना है..
जगमोहन - माँ आप रुकिए मैं टेक्सी बुलवा देता हूँ..
सुमन - रहने दीजिये.. मैंने फ़ोन कर दिया था.. गौतम आने वाला होगा वही बस स्टेण्ड तक छोड़ आएगा..
मानसी ख़ुशी से - ये कितनी अच्छी बात है सुमन.. मतलब आज मैं अपने जमाई को देख सकती हूँ..

गौतम बाहर बाइक खड़ी करके अंदर आता है तो उसे देखकर हेमा मानसी औऱ बृजमोहन अपनी जगह से खड़े हो जाते है औऱ मानसी सुमन को देखकर कहती है..
मानसी - सुमन ये हमारा गौतम है ना?
सुमन - मानसी ये मेरा गौतम है..
मानसी सुमन की बात सुनकर आगे बढ़ती है औऱ गौतम को अपने गले से लगाकर - कितने प्यारा औऱ चाँद सा मुखड़ा है.. बिलकुल कोई शहजादा लगने लगा है.. माँ देखो ना..
हेमा आगे बढ़कर गौतम के चेहरे को चूमती हुई - हाँ सुमन.. मेरे पोते के जैसा सुन्दर और प्यारा तो कोई दूसरा ना होगा..
मानसी तस्वीर लेते हुए - अब तक हमसे छुपा के रखा था सुमन ने.. मगर आज देखो..
हेमा - बेटा मैं तेरी दादी..
गौतम पैर छूता है..
हेमा गले से लगाते हुए - अरे रहने दे ये सब.. तू तो मेरा अपना है.. तेरी माँ ने कब से तुझे हमसे छुपा के रखा था.. आज मिला है..
सुमन - ग़ुगु.. दादी औऱ चाचा चाची को बस स्टैंड तक छोड़ आ जरा..
गौतम सुमन की बात सुनकर उन सबको कार में बैठा कर बस स्टेण्ड छोड़कर आ जाता है.. तब तक जगमोहन घर से जा चूका था..


**************

मानसी - कुसुम.. कुसुम.. कहा गई ये लड़की?
कुसुम - माँ सहेली के पास गई थी.. कुछ काम था..
मानसी - कल रीत का सारा सामान तूने रख लिया है ना..
कुसुम - जी..
मानसी - ठीक है.. कल समय से तैयार रहना.. किसी सहेली के यहां ना चले जाना..
कुसुम - माँ..
मानसी - बोल..
कुसुम - वो माँ आप..
मानसी मुस्कुराते हुए - क्या बोल ना..
कुसुम - नहीं.. कुछ नहीं..
मानसी - तेरे दूल्हे से मिली या नहीं यही पूछना चाहती है ना मेरी लाडो..
कुसुम शरमाते हुए - माँ..
मानसी - तस्वीर देखेगी अपने होने वाले दूल्हे की?
कुसुम शरमाते हुए कुछ नहीं बोलती और चुपचाप खड़ी रहती है..
मानसी छेड़ते हुए - नहीं देखनी तो तेरी मर्ज़ी.. मुझे क्या
कुसुम - आप तस्वीर लेके आई हो..
मानसी कुसुम से मसखरी करते हुए - हाँ.. पर क्या फ़ायदा? ना शकल अच्छी है ना रंग अच्छा है गौतम का.. शहर में बिलकुल बेरंग हो गया है.. मुंह भी बांका है.. बोलता है तो लगता है दाँत ही गिर पड़ेंगे.. मैंने तो कहा ये रिश्ता तोड़ देते है पर तेरे पापा नहीं माने.. मेरी वैसे भी कहा चलती है..
कुसुम फ़िक्र से - इतना बुरी सूरत है..
हेमा आते हुए - अरे क्यों छेड़ती है कुसुम को.. देख कैसे चेहरा उतर गया है बेचारी का.. कुसुम ले ये देख तेरे दूल्हे की तस्वीर.. है ना चाँद का टुकड़ा..
कुसुम फ़ोन में तस्वीर देखकर देखती रह जाती है और ख़ुशी से शरमाते हुए अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से छुपा कर खड़ी हो जाती है..
मानसी - अरे शर्मा रही है.. माँ जी लगता है गौतम पसंद नहीं आया कुसुम को.. शादी के लिए मना कर देंते है..
कुसुम एक दम से - मैंने ऐसा कब कहा?
मानसी और हेमा एक साथ हँसते है..
कुसुम फ़ोन लेकर अपने कमरे में भाग जाती है और गौतम की तस्वीर देखती हुई उसे अपनी आँखों में बसाने लगती है.. कुसुम के मन में बहुत से ख्याल आ जा रहे थे जिनसे खुश होते और सोचके शरमाते हुए कुसुम गौतम की तस्वीर को अकेले में अपने होंठों से चुम के बार बार उसके साथ शादी होने और प्यार करने के सपने अपनी खुली आँखों से देख रही थी..
कुसुम के मन की सारी चिंता और फ़िक्र निकल चुकी थी जिसके जगह प्यार उमंग और भविष्य की सम्भावनाओं ने ले लिया था.. कुसुम बार बार गौतम की तस्वीर को कभी अपने सीने से लगाती तो कभी चूमती.. उसने अपने फ़ोन के स्क्रीन पर भी गौतम की तस्वीर लगा दी और सोचने लगी की वो गौतम को अपनी पलकों पर सजा कर रखेगी उसे बहुत खुश रखेगी और प्यार करेगी..

**************

क्या हुआ माँ? क्या कह रहे थे वो लोग?
सुमन कुसुम की तस्वीर गौतम को देकर - कल हम गाँव जाने वाले है.. रित निभाने..
गौतम बिना तस्वीर देखे - क्या रित? कोनसी रित औऱ ये तस्वीर किसकी है?
सुमन - ये तेरी दुल्हन की तस्वीर है ग़ुगु..
गौतम बिना तस्वीर देखे रखते हुए - मैं कोई शादी नहीं करने वाला..
सुमन - तेरी शादी हो चुकी है.. जब तू 2 साल का था..
गौतम - क्या बकवास कर रही हो माँ.. मेरी साथ फालतू मज़ाक़ करने की कोशिश भी मत करना.
सुमन - ये मज़ाक़ नहीं है ग़ुगु.. कुसुम तेरे चाचा चाची की एकलौती बेटी है..
गौतम - चाचा चाची की? पर हमारे यहां कजिन मेर्रिज कहा होती है?
सुमन - होती है.. तेरे पापा से पूछना बाकी बातें.. मुझे बहुत काम है..
गौतम - काम गया माँ चुदाने.. ये हो क्या रहा है? साफ साफ बताओगी?
सुमन - ग़ुगु जैसे साउथ इंडिया में कजिन मैरिज होती है वैसे ही हमारे गाँव औऱ आस पास के गाँव में भी होती है.. तेरे पापा जिस समाज से है वो लोग सकड़ो साल पहले साउथ इंडिया आकर यहां बसे थे.. बचपन में मैंने तेरी औऱ कुसुम की शादी करवा दी थी मगर फिर बटवारे में विवाद के कारण मैं तुझे गाँव से लेकर यहां आ गई.. अब हमें वापस जाना होगा औऱ तुझे कुसुम के साथ रित निभाकर उसके साथ बंधन करना होगा..
गौतम - मैं कुछ नहीं करने वाला.. औऱ उस शादी को मना कर दो..
सुमन - नहीं कर सकते ग़ुगु.. अगर हमने मना किया तो मानसी पंचयात में चली जायेगी फिर पंचायत हमारे खिलाफ फैसला कर देगी.. जैसे सालों पहले जगन के साथ किया.. शादी तोड़ने के अपराध में उसे जान देनी पड़ी थी..
गौतम - अब वक़्त बदल चूका है माँ.. क़ानून से काम होता है..
सुमन - पंचायत का क़ानून ही सबकुछ है वहा गौतम. वो लोग नियम के मामले में बहुत कठोर है.. तुझे कल चलना ही होगा..
गौतम - तुम चाहती हो मैं वहा जाऊ औऱ कुसुम के साथ रीत निभाऊ उसे अपनी पत्नी बनाऊ?
सुमन - हाँ.. मैं चाहती हूँ..
गौतम - तो ठीक है मैं कल जाऊँगा.. लेकिन आज तुमको वो सब करना होगा जो मैं कहूंगा..
सुमन अपनी साडी का पल्लू गिराते हुए - मैं तैयार हूँ गौतम..
गौतम सुमन साडी खोलने से रोकता हुआ - यहां नहीं सुमन..
सुमन - तो?
गौतम सुमन को अपने साथ घर से लेकर कहीं बाहर चला जाता है...

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