• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Ek number

Well-Known Member
8,409
18,081
173
Update 51


सुमन घर दरवाजा खोलकर - जी?
डिलीवेरी एजेंट - मैडम आपका प्रोडक्ट रिसीव कर लीजिये..
सुमन - मैंने कुछ नहीं मंगवाया.. ग़ुगु.. ग़ुगु.. कुछ मंगवाया था क्या तूने?
गौतम आते हुए - हाँ टीवी आया होगा माँ.. भईया इसे इनस्टॉल भी करना था ना..
डिलीवेरी एजेंट - जी ये लड़का आया है कहा इनस्टॉल करवाना है बता दो..
गौतम - अंदर ले आओ भईया.. इस तरफ..
गौतम लड़के को घर के मुख्य रूम जो सुमन और गौतम का बैडरूम था वहा ले आता है और बेड के ठीक सामने वाली दिवार पर टीवी इनस्टॉल करने को कहता है..
सुमन - इतना बड़ा टीवी क्यों मंगवाया है ग़ुगु?
गौतम - मूवी देखने के लिए..
लड़का - भईया थोड़ा मदद करना..
गौतम - हां..
गौतम - टीवी को बेड के ठीक सामने दिवार ओर लगवा लेता है और लड़का टीवी on करके चला जाता है..
सुमन बाहर दरवाजा बंद करके आती है और कहती है - कितना बड़ा है...
गौतम - 65 इंच का है 4के क्लियर..
सुमन - कितने का है?
गौतम - 80 हज़ार...
सुमन - क्या.. इतना महंगा? तूने बुआ का एटीएम इस्तेमाल किया ना?
गौतम - क्या फर्क पड़ता है माँ.. एटीएम में इतने पैसे पड़े है.. बुआ फिर कहती और चाहिए तो बताना.. और शिकायत करती है तू कुछ खर्च ही नहीं करता..
सुमन - पर ग़ुगु इतने बड़े टीवी का क्या करेंगे?
गौतम टीवी से फ़ोन और 2 इयरबड्स कनेक्ट करके एक सुमन के कानो में लगाता है और दूसरे इयरबड्स को अपने दोनों कानो में लगा लेता है और कहता है - मूवी देखेंगे सुमन.. लाइट ऑफ कर दे..
सुमन कमरे की लाइट्स ऑफ करके बेड पर आ जाती है जहा से टीवी अँधेरे में किसी सिनेमा हॉल के बड़े परदे की तरह दीखता है..
सुमन - ये किसी सिनेमा हॉल जैसा लगता है गौतम..
गौतम सुमन की साड़ी का पल्लू पकड़कर खींचते हुए सुमन की साडी उतारता हुआ - माँ यार घर में साड़ी मत पहना करो..
सुमन - साड़ी क्यों उतार रहा है तू.. मैं अभी नहीं देने वाली समझा.. अभी भी दर्द है मेरी चुत में.. परसो इतना कस कस के किया था तूने अब जब तक वापस पहले जैसी नहीं होती मैं नहीं देने वाली..
गौतम साड़ी उतार कर कमरे में रखे सोफे ओर फेंकते हुए - यार सुमन तू भी नखरे करने लगी..
सुमन - अब नखरे समझ या कुछ और.. मेरे दर्द होता है.. 1-2 दिन और सब्र कर...
गौतम टीवी पर mom son पोर्न मूवी प्ले कर देता है...
सुमन - ये क्या है?
गौतम - मूवी है..
सुमन - इंग्लिश मूवी है?
गौतम सुमन को बाहों में लेकर - हाँ..
सुमन गौतम के साथ मूवी देखने लगती है...
गौतम - आगे देखना बहुत कुछ होगा..
सुमन - ये कौन है?
गौतम - वो माँ है ये बेटा.. बेटा माँ के birthday पर घर आया है और पापा बाहर है..
सुमन - छी... ये तो वो वाली मूवी है...
गौतम - छी तो ऐसे कर रही हो जैसे बड़ी सती सावित्री हो..
सुमन - ये सब देखने के लिए टीवी लिया ना तूने.. बेशर्म..
गौतम लंड निकाल कर - अच्छा... संस्कारी दुनिया के सामने बनना माँ.. मेरे सामने नाटक मत करो.. चलो चुत में नहीं लेना तो मुंह में लेकर खुश करो अपने पतिदेव को..
सुमन गुस्से से लंड पर मुंह लगाती हुई - कमीने तुझे हाँ करनी ही नहीं चाहिए थी मुझे..
गौतम सुमन के बाल पकड़ कर मुंह में लंड घुसते हुए - उसको देखो कैसे चूस रही है तू भी चूस अच्छे से.. Blowjob में मज़ा आना चाहिए..
सुमन लंड चुस्ती हुई - कुसुम पसंद आई तुझे?
गौतम - हाँ.. शादी के लिए परफेक्ट है.. अच्छा है अपनी बहन मिल गई.. वरना कब से दुसरो की माँ बहन चोद रहा था..
सुमन - कमीने होने वाली बीवी है तेरी.. और चचेरी बहन..
गौतम - माँ अलग है तो क्या हुआ.. बाप तो एक ही है... और सास तो गज़ब ही है.. मानसी चाची भी मस्त माल है..
सुमन - दूर रहना.. समझा.. मेरे साथ रहना तो सबसे दूर रहना पड़ेगा.. बोला था याद है ना..
गौतम कल रात का सोचकर हसते हुए - हाँ याद है मेरी माँ.. चूस अब अच्छे से...
सुमन - गले तक तो ले रही हूँ और क्या करू.. तू भी ना..
गौतम पोर्न देखते हुए सुमन से blowjob ले रहा था की उसे बाबाजी की बात याद आ गई..
गौतम - माँ..
सुमन लंड चुस्ती हुई - हम्म...
गौतम - कल मेरे दोस्त टूर पर जा रहे है.. मैं भी चला जाऊ अगर बोलो तो?
सुमन - मुझे अकेला छोड़कर जाएगा ग़ुगु?
गौतम - अरे आप कुछ दिन मामा के यहां चले जाओ ना.. तीन महीने बाद कुसुम आ जायेगी और वो तो ऐसी है की गले में पट्टा डालके रखेगी मेरे.. ना कहीं जाने देगी ना किसी से मिलने बस गले लगा के रखेगी.. आप समझो ना.. मैं कभी गया भी कहीं.. कुछ दिनों की बात है.. इंडिया के कुछ शहर ही है.. 20-25 दिन में आ जाएंगे..
सुमन - और मेरा क्या होगा? मैं कैसे इतने दिन रह पाउंगी तेरे बिना?
गौतम - देखो पति भी हूँ तुम्हारा.. मान जाओ वरना आज चुत से जाओगी..
सुमन जुल्फे कान के पीछे करके मुंह में लंड लेती हुई - ठीक है शहजादे.. चले जाना कल...
गौतम सुमन के मुंह में झड़ते हुए - thanks माँ...

****†***†******


गौतम बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह कहे मुताबिक पहाड़ी के पीछे उसकी कुटीया के करीब आ गया..

बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - आ गए बेटा..
गौतम - जी बाबाजी.. आपका जैसे ही फ़ोन आया मैं तुरंत दौड़ा चला आया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - इतना बड़ा बेग?
गौतम - हाँ आपने कहा था ना कुछ दिनों के लिए कही जाना है जरुरी सामान लेकर आउ.. तो इसमें सब है.. मेरे कपडे जूते टूथपेस्ट ब्रश शैम्पू इत्र कुछ दवाइया लाइटर सिगरेट दो शराब की बोतल भी है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह एक पिस्तौल देते हुए - उस सबसे ज्यादा तुझे इसकी जरुरत पड़ेगी.. 18 राउंड फायर करती है इसके दो और मैगज़ीन है.. लो..
गौतम - इसकी क्या जरुरत? जंग पर थोड़ी भेज रहे हो आप मुझे..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - नहीं.. जंग पर नहीं.. तुम्हारे पिछले जन्म में...
गौतम चौंकते हुए फिर हंसकर - क्या? पिछला जन्म? बाबाजी आपने बहुत मदद की है पर ऐसा मज़ाक़ तो ना करो..
बैरागी जो वीरेंद्र सिंह के पास खड़ा था मगर गौतम को नहीं दिख रहा था वो अपना रूप और अस्तित्व गौतम को दिखाते हुए गौतम के सामने प्रकट होकर कहता है - ये मज़ाक़ लग रहा है तुम्हे?
गौतम इस बार हैरानी अचरज से - बैरागी...
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - हाँ गौतम.. ये वही बैरागी है जिसे तूने सपने में देखा था..
गौतम गौर से बड़े बाबाजी को देखकर - वीरेंद्र सिंह?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - हाँ सही पहचाना..
गौतम - मतलब जो भी मैंने देखा वो सही और सत्य था.. ऐसा असल में हो चूका है...
बैरागी - सही कहा हाक़िम..
गौतम - हाक़िम?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - पिछले जन्म में यही नाम था तुम्हारा बेटा.. तुम एक बंजारा काबिले के सरदार लाखा की बेटी मुन्नी के बेटे थे.. डाकी ने तुम्हारे नाना लाखा की जान लेकर तुम्हारी माँ मुन्नी और मौसी शीला को अपनी रखैल बना लिया था.. और तुम्हे काबिले से बाहर निकाल फेंका था..
गौतम जिज्ञासा से - और मैंने कुछ नहीं किया?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - नहीं..
गौतम गुस्से से - इतना चुतिया था मैं पिछले जन्म में?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - तुम डरपोक और कमजोर थे गौतम..
बैरागी - हाक़िम..जब तुम पिछले जन्म में जाओगे तो मुझसे मिलने महल आ जाना.. और मुझे ये ताबीज़ दिखाकर मुझसे वो जदिबूटी लेकर वापस इस जन्म में आ जाना.. इसके अतिरिक्त और कुछ करोगे तो मुसीबत में पड़ जाओगे..
गौतम - ये क्या ताबीज़ है?
बैरागी - ये वही ताबिज़ है जो मृदुला ने मेरे गले में बाँधा था.. ये तुम्हारे गले में होगा तो तुम्हे चोट पहुंचाने वाला सुरक्षित नहीं रह पायेगा..
गौतम - अच्छा बाबाजी.. एक सवाल है.. पिछले जन्म में जाने के बाद मेरा वापस छोटा तो नहीं होगा ना..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह हसते हुए - पिछले जन्म में तेरा शरीर जैसा था जैसा ही रहेगा.. मगर तू फ़िक्र मत कर.. उसी पेड़ से कुछ जामुन तोड़ कर इस बैग में रखकर साथ लेजा..
गौतम जामुन तोड़कर ले आता है और बेग में रख लेता है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - अब चल..
गौतम चलता हुआ - कहा.. पैदल चलाकर जाना है पिछले जन्म में?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह हसते हुए - नहीं
गौतम - तो कैसे जाऊंगा?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - आगे उस झील को देख रहा है..
गौतम - बहुत बार देख चूका हूँ.. ऊपर बैठकर यही तो देखता था..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - एक ऐसी झील वहा भी होगी.. और एक ऐसा बड़ का पेड़ भी.. तू इस बेग को इस पेड़ के नीचे गाड दे.. ये सामान अपने आप वहा पहुंच जाएगा...
गौतम - और मैं कैसे पहुँचूँगा? मुझे मत गाड देना बाबाजी..
बैरागी - तुमको गड़ना नहीं पड़ेगा हाक़िम.. डूबना पड़ेगा..
गौतम - कहा?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - उस झील में.. जैसे तुम वहा जा रहे हो वैसे ही तुम वापस भी आओगे..
गौतम - झील में डुबकी लगाने से पिछले जन्म में पहुंच जाएगा मेरा शरीर?
बैरागी - शरीर नहीं केवल आत्मा.. इस जन्म की आत्मा पिछले जन्म के शरीर में पहुंच जायेगी और पिछले जन्म के शरीर की आत्मा तुम्हारे इस शरीर में..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - हाँ गौतम..
गौतम - तो मेरे इस शरीर में पुराने जन्म की आत्मा आ जायेगी और पुराने जन्म के शरीर में इस जन्म की आत्मा चली जायेगी... अच्छा है.. अगर ऐसा हो तो आप पिछले जन्म की आत्मा आने पर मेरे गाल पर दो थप्पड़ मार दीजियेगा.. बोलना मैंने ही कहा था मारने को..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - तू चिंता मत मैं उसे कमजोर से ताकतवर और डरपोक से निडर बना दूंगा..
गौतम - थप्पड़ जरुरत मारना.. साला इसी लायक है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - ठीक है अब तुम इस पेड़ के नीचे खड्डा खोद दो और ये सारा सामान उसमे रखकर दफ़न कर दो..
गौतम - ठीक है अभी रख देता हूँ.. पर मैं सबको पहचानुगा कैसे?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - तुमने सबको देखा है सिवाये अपने कबीले के.. वो लोग तुझे अपने आप पहचान लेंगे..
गौतम - और वो जदिबूटी कैसे लानी है?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - जिस तरह ये सामान जारहा है वैसे ही जड़ी बूटी भी यहां आ जायेगी.
गौतम - मतलब पेड़ के नीचे खड्डा खोद कर.
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - हाँ बेटा... तुम जो भी पेड़ के नीचे गाड दोगे वो यहां आ जाएगा.. मगर एक से ज्यादा कुछ नहीं गाड़ना वरना सब बर्बाद हो जाएगा.. और सिर्फ जाडीबूती आना कुछ और मत ले आना..
गौतम - एक आखिरी बात..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - जो कुछ है पूछ..
गौतम - क्या मैं समर और लीलावती को बचा सकता हूँ आपसे?
बैरागी - मैंने कहा ना हाक़िम.. तुम सिर्फ मुझसे वो जड़ी बूटी लेकर वापस आओगे और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है.. वरना सब ख़त्म हो जाएगा.. जल्दी ही मेरे पास आना वरना सब ख़त्म हो जाएगा..
गौतम - ठीक है.. बेचारे के लिए बुरा लगा.. इसलिए पूछ लिया..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - याद रखना गौतम.. यहां तुम्हारा वापस आना कितना जरुरी है और तुम्हारा इंतजार कौन कर रहा है..
गौतम - मैं भी जल्दी से वापस आ जाऊंगा जदिबूटी लेकर.. वहा मुझे मिलेगा ही क्या?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - बेटा.. हर कदम सोचकर उठाना..
गौतम - मतलब?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - मतलब.. मोह बंधन है..
गौतम - तो? मुझे क्यों बता रहे हो बाबाजी.. मैं जानता हूँ ये बात..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - कहीं भूल मत जाना गौतम..
गौतम - मैं नहीं भूलूंगा बाबाजी..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - प्रेम और मोह से दूर रहना..
गौतम - मैं जिनसे प्रेम करता हूँ वो इस जन्म है.. वहा मैं किससे प्रेम करूँगा?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - मन चंचल होता है.. प्रेम अविरल..
गौतम - हिंदी में बताओगे? आप क्या बोल रहे हो?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - मैं ये कहना चाहता हूँ गौतम कि वहा तुम्हे किसी से प्रेम या मोह हो सकता है.. इसलिए तुम्हे अपने मन पर काबू रखना जरुरी है...
गौतम - जैसा आप कहो.. अगर मिलेगी तो घोड़ी बनाऊंगा.. दिल नहीं लगाउँगा..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - यही तुम्हारे और तुम से सम्बंधित लोगों के लिए सही होगा..
गौतम - वैसे तो मैंने खासी, जुखाम, बुखार, सरदर्द, बदन दर्द, और नींद की गोली रख ली है फर्स्ट ऐड किट भी है और तो कोई और दवा रखने की जरुरत तो नहीं है ना
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - अचेत करने की दवा भी रख लेते..
गौतम - अचेत मतलब बेहोश ना? अरे वो भी है.. मेडिकल से सारी दवा लेके आया था.. साला दे नहीं रहा था.. एक्स्ट्रा पैसे देने पड़े..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह हड़ते हुए - मेरी कही एक एक बात याद रखना गौतम.. तुम्हे जदिबूती लेकर शीघ्र से शीघ्र वापस आना होगा..
गौतम - शाम तक आ जाऊंगा बाबाजी.. आप टेंशन मत लो..
बैरागी - कौन से दिन की शाम हाक़िम?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - गौतम ये एक दिन में होने वाला कार्य नहीं है.. तुम्हे महल में घुसना पड़ेगा.. और आसानी से तुम महल में नहीं घुस सकते ना ही बैरागी से मिल सकते हो..
गौतम - अरे मैं कोई ना कोई उपाए ढूंढ़ लूंगा बाबाजी.. बेफिक्र रहो.
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - आज अमावस है और तुम अगली अमावस को ही लौट पाओगे.. सिर्फ उस दिन ही आया जा सकता है जब आसमान पर चाँद नहीं हो.. अब तुम झील में उतर जाओ गौतम..
गौतम - बहुत बार ऊपर से देखा है मैंने इस झील को.. और सोचा था की कभी इसे नजदीक से देखूंगा.
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - आज देख लो..
गौतम - हां बाबाजी.. देखने के बाद उतरना भी है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - बिना कपड़े पहनें उतरना होगा गौतम..
गौतम हैरानी से - नंगा जाऊंगा? कोई देख लिया तो..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - यही नियम है गौतम.. ये झील आम नहीं है.. उल्काओ के विस्फोट से उसका निर्माण हुआ है और आयामों के बीच का मार्ग बनाती है.. वस्त्र पुरे शरीर को बांधता है..
गौतम - ठीक है.. नंगा जाता हूँ..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - अब जाओ..
गौतम - एक मिनट.. मेरा फ़ोन...
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - वहा तुम्हारे इस फ़ोन का क्या काम बेटा?
गौतम - समझा करो बाबाजी.. बहुत काम है... मैं इसे उस खड्डे में गाड के आता हूँ..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - जैसा तुम चाहो..
गौतम फ़ोन गाड़ के आ जाता है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - अब जाओ..
गौतम - जा रहा हूँ..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - क्या सोच रहे हो..
गौतम - कुछ नहीं बाबाजी.. बस भूक लग रही है.. वहा खाने को क्या क्या मिलेगा?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - कुछ नहीं.. जो तुम यहां खाते हुए वो सब वहा नहीं मिलेगा..
गौतम - फिर?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - जो पहले खाया जाता था वही मिलेगा.. उसके अतिरिक्त फल खाने को मिलेंगे..
गौतम - फिर तो वापस जाना पड़ेगा बाबाजी.. बेग में खाने का सामान भी लाना पड़ेगा..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - सूर्यास्त होने से पहले तुमको पिछले जन्म में जाना पड़ेगा गौतम.. आज अमावस है इसके बाद एक माह तक और प्रतीक्षा करनी होगी..
गौतम - अभी सूर्यास्त होने में बहुत टाइम है बाबाजी.. मैं यूँ जाके यूँ आ जाऊंगा.. पेट का सवाल है समझा करो..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - ठीक है शीघ्र करो...
गौतम वापस चला जाता है और 2 घंटे बाद वापस आता है तो एक बड़ी बोरी में सामान भरके लाता है और कहता है - बाबाजी रेडी..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - इसे ले जाना है तो खड्डा खोदकर गाड़ना पड़ेगा..
गौतम - इतना बड़ा खड्डा खोदना पड़ेगा?
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - हाँ..
गौतम खड्डा खोदने लगता है - बाबाजी थोड़ी हेलप करदो..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - तुम्हे जाना है तुमको खोदना पड़ेगा..
गौतम खड्डा खोदते हुए - ठीक है..
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - जल्दी... सूर्यास्त होने वाला है..
गौतम - हो गया बस.. लो गाड दिया.
बड़े बाबाजी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह - अब जाओ.. और जदिबूती लेकर ही आना.. यदि तुम विफल हुए तो तुम जानते हो क्या होगा...
गौतम झील में जाते हुए - हाँ.. आप और बैरागी की मुक्ति नहीं हो पाएगी और आप बाकी बचे 500 सालों तक यूँ ही रहोगे..
ये कहकर गौतम झील में उतर जाता है...




Shandaar update
 

Ek number

Well-Known Member
8,409
18,081
173
Update 52


गौतम जब झील में उतरा तो पलक झपकते ही उसकी आत्मा उसके पुराने जन्म के शरीर में पहुंच गई और वह आंख खोल कर अपने आप को देखने लगा..
गौतम ने देखा कि वह एक झील से बाहर पड़ा हुआ है उसके आसपास में बड़े-बड़े पेड़ पौधे थे और छोटे मोटे जानवर इधर-उधर घूम रहे थे..
झील के पानी के अक्स में उसने अपना चेहरा देखा तो मन में सोचते हुए बोला..
गौतम मन में - शकल सूरत कदकाठी तो उस शरीर की तरह इस शरीर की भी बहुत अच्छी है.. मतलब पिछले जन्म में मेरा दिमाग ही चुतिया था..
गौतम ने अपने शरीर पर कपड़े देखे तो वह चौंक गया कि उसकी शरीर पर केवल एक धोती लिपटी हुई थी और ऊपर बनियान जैसी एक चीज.. गौतम ने झील के आसपास देखने शुरू किया और उस पेड़ के पास आ गया जिसके नीचे उसने सारा सामान गाडा था..

झील के आसपास देखने पर उसे थोड़ी देर बाद एक पेड़ दिखाई दिया जो बिल्कुल उसी तरह का था जिस तरह का बड़े बाबा जी उर्फ़ वीरेंद्र सिंह ने उसे बताया था..
गौतम ने उसी पेड़ के नीचे वहीं पर खोदना शुरू किया जहां पर उसने अपना सामान गाड़ा था.. थोड़ी देर खोदने के बाद उसे अपना वह बैग मिल गया जो वह गाड कर इस जन्म में आया था.. गौतम में सबसे पहले झील में कमर तक उतरकर नहाना शुरू किया और फिर बाहर आकर बेग से तोलिया निकाल कर अपना बदन पोंछा फिर कपड़े पहन कर बैक से कुछ चीज अपने पास रख ली और वहां से चला गया..

गौतम जब वहां से चला तो उस जंगल के रास्ते सपने में देखे हुए लग रहे थे और वह उसी रास्ते के आधार पर चला जा रहा था गौतम को अब काबिले का रास्ता भी पता था और वीरेंद्र सिंह की जागीर कुशलगढ़ में जाने का रास्ता भी पता था.. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह कहां पहले जाकर अपना काम करें..

गौतम ने सबसे पहले बंजारा काबिले में जाकर अपनी मां मुन्नी और मौसी शीला को छुड़ाने का निश्चय किया और कबीले की तरफ कदम बढ़ाते हुए चला गया..
कबीले से थोड़ा दूर एक पनघट पर जब उसे प्यास लगी तो वह पानी पीने के लिए रुक गया जहां पर कुछ महिला है और कुछ लड़कियां पानी भर रही थी..

गौतम उनसे - थोड़ा पानी मिलेगा?
पनघट पर पानी भर रही औरतें और लड़कियां गौतम और उसके पहनावे को देखकर हैरान थी और वह गौतम को ऐसे देख रही थी जैसे गौतम इस दुनिया का नहीं कहीं और का हो.. मगर उनमें से एक लड़की पानी का बर्तन हाथ में लिए पनघट से आगे बढ़ गई और गौतम को दे देते हुए बोली.

लड़की - ले पिले.. और तू कहा चला गया था? कब से तुझे ढूंढ रही हूँ.. मगर तू है कि मिलने का नाम ही नहीं लेता.. और ये क्या पहना है.. और ये सुगंध कैसी है तेरे बदन से? अब चुप क्यों खड़ा है बोल ना..
पीछे से दूसरी लड़की - अरे उर्मि.. तू बोलने दे तो कुछ बोले ना हाक़िम.. बेचारे को कब से सुना रही है.. फिर से पहले की तरफ रोकर चला ना जाए.. बहुत नाजुक और भोला है तेरा हाक़िम..
(उर्मि हाक़िम की मौसी शीला की बेटी थी जो 20 साल की थी और हाक़िम इस वक़्त 21 साल का था)
(अब से गौतम को हाक़िम कहा जाएगा)
हाक़िम पानी पी लेता है और बर्तन वापस देकर आगे जाने लगता है कि उर्मि उसका हाथ पकड़ लेती है उससे कहती है..
उर्मि - अरे अब कहा चले.. चुपचाप मेरे साथ चलो.. मौसी से मिलो चुपचाप.. बस्ती में तुम्हारे आने पर मनाही है.. मगर बस्ती के पीछे घाटी के छज्जर में तुम्हारी माँ रोज़ सांझ तक तुम्हारा रास्ता देखती है..
पीछे से लड़की - हाँ लेजा लेजा.. रास्ते में अपने हाक़िम से पिछली गलती की माफ़ी भी मांग लेना..
उर्मि शर्माती हुए - गलती कैसी? अपने हाक़िम को छुआ था मैंने किसी पराये को तो नहीं.. मगर ये लड़कियों जैसे रूठ के चला गया तो इसमें मेरा क्या दोष? कभी ना कभी तो मेरे साथ इसे सबकुछ करना ही पड़ेगा.. विवाह भी..
पीछे की लड़कि - हां हां.. पर हाक़िम माने तब ना.. कब से तुझसे पीछा छुड़वा रहा है.. पर तू है की इसके पीछे ही लगी हुई है..
हकीम सारी बातें सुन रहा था और उसे यह पता चल रहा था कि उसकी मौसी शीला की बेटी उर्मी उसके पीछे पड़ी हुई है और उससे शादी करना चाहती है और हाक़िम उससे दूर भाग रहा है..
उर्मि हाकिम का हाथ पकड़कर ले जाते हुए - मैं इसका पीछा छोडूंगी तब ना..

उर्मि हकीम का हाथ पकड़ कर पनघट से पगडंडी वाला रास्ता ले लेती है और हकीम के साथ चलती हुई उससे इधर-उधर की और जो मन में आता है वही बात करती हुई चलती रहती है हकीम सब सुनता है और उर्मि को देखता रहता है..
हकीम ने अब तक उर्मि को ठीक से नहीं देखा था मगर अब रास्ते पर चलते हुए वो उर्मि के नरमी और प्यार भरे लहज़े में की हुई बातें सुनते हुए उसका बदन की बनावट को आँखों में बसा रहा था..
उर्मि बेहद हसीन और जवा लड़की थी जिसके खूबसूरत चेहरे के नीचे सुराहीदार गर्दन और जवानी में भरे हुए छाती पर आम सामने देखते हुए छोटी सी चोली में क़ैद थे कमर ऐसी चिकनी की पनघट का पत्थर भी शर्मा जाए.. एक घुटने तक आता घाघरा जो उर्मि की कमर के नीचे एक डोरी की मदद से बंधा हुआ था.. हाक़िम ये सब देखकर कामुक हो रहा था और सोच रहा था की वो पिछले जन्म में कितना चुतिया था कि ऐसी दिलकश लड़की जो उसकी मौसी शीला की बेटी भी है उसके पीछे पड़ी हुई है और वो उससे दूर भाग रहा है..

उर्मि रास्ते में एक जगह ठहर कर - अरे.. तू कहा देख रहा है और क्या सोच रहा है? देख मेरा ध्यान भटका कर भाग मत जाना.. वरना अगली बार मिलेगा तो मैं बहुत सताऊंगी तुझे..
उर्मि ने इतनी बात अपने मुंह से कही थी कि हाक़िम ने आगे बढ़कर उसकी नंगी चिकनी कमर में हाथ डाल दिया और उर्मि को अपने सीने से चिपका कर उसके उर्मि के होंठों ओर अपने होंठ रख दिये..
उर्मि जैसे सन्न खड़ी रह गई.. उसे कोई उम्मीद नहीं थी कि हाक़िम ऐसा कर सकता है और हाक़िम मैं इतनी हिम्मत है कि वह आगे बढ़कर कोई पहल कर सकता है.. उर्मी के होठों पर हकीम के होंठ लगे हुए थे और हकीम धीरे-धीरे उर्मी के होठों से काम रस पी रहा था और उर्मि चुपचाप खड़ी हुई यह सब होता देख रही थी.. उसे ये विश्वास कर पाना मुश्किल था कि हकीम में अभी-अभी उसे अपनी बाहों में भर के उसके होठों पर अपने होंठ लगा दिए हैं और उसकी होंठों का रस पी रहा है..

हकीम एक चट्टान का सहारा लेकर उर्मि को उस पर सटा दिया और उसके होंठों को चूमते हुए अपना दूसरा हाथ उसकी छोटी सी चोली के ऊपर रखकर उसके उरोज को दबाने लगा..
उर्मि सोचने लगी थी कि आज तक हकीम शर्मा कर उसे दूर भागता था मगर अब उसे खुद शर्म आने लगी थी जिस तरह हाक़िम उसे चूम रहा था और उसके छाती पर हाथ फिराकर उसकी छतिया दबा रहा था इससे वह खुद शर्माने लगी थी..

हकीम समझ गया था कि उर्मि उसे पसंद करती है और उसे नहीं रोकने वाली.. उसने उर्मि के होंठों पर से अपने होंठ हटा लिए और उर्मि कि गर्दन और चेहरे पर चुम्बन करते हुए अपना सर उर्मि कि छाती पर लगा दिया और चोली के हुक खोलकर उर्मि के नये नये जवा होकर तने हुए चुचे को मुंह में भर लिया और उसके चुचक चूसने लगा...

उर्मि हाक़िम को ऐसा करते देखकर पागल सी हो गई और हाक़िम के बालों को पकड़ कर जोर से अपनी छाती में दबाने लगी और मादक सिस्कारी लेने लगी..
हाक़िम एक पत्थर बैठ गया और उर्मि को अपनी गोद में बैठाकर उसका एक हाथ अपनी गर्दन के पीछे रखकर उर्मि कि चूची मुंह में भरकर चूसने और चाटने लगा.. उर्मि प्यार और काम वासना के हाक़िम को देख रही थी और उसपर अपना प्यार लुटाने को तैयार हो रही थी..

उर्मि अपनी चूची चुसवाते हुए - आह्ह.. हाक़िम आज क्या हो गया है तुम्हे... आह्ह.. हाक़िम.. तुम कितने बदल गए हो.. पहले तो मुझसे कितना दूर भागते थे अब कितने पास आ गए हो.. तुम्हे क्या हो गया है हाक़िम.. अह्ह्ह...
हाक़िम ने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर उर्मि के घाघरे में डाल दिया और उसकी चुत से छेड़खानी करने लगा.. उर्मि कामुकता के शिखर पर पहुंच गई थी और हाक़िम की छेड़खानी से उसकी चुत जो पहले से गीली होकर बह रही थी उसने पानी छोड़ दिया और झड़ गई..

हाक़िम ने उर्मि को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमते हुए चट्टान के पीछे खाली जगह ले जाकर घास में लेटा दिया और उसकी घघरी उठा कर चुत को नंगी करते हुए सहलाकर बोला..
हाक़िम - बहुत चिकनी चुत है तेरी.. उर्मि..
उर्मि - चुत क्या?
हाक़िम - कुछ नहीं..
यह कहते हुए हाक़िम उर्मि की चुत पर आ जाता है और जीभ निकाल कर एक बार जबान से उर्मि की चुत चाट लेता है जिससे उर्मि सिसक कर आह भरती है और कहती है..
उर्मि - छी.. क्या कर रहे हो हाक़िम.. मुख क्यों लगाते हो.. ये कोई मुंह लगाने वाला स्थान है..
हाक़िम - चुप रहो.. देखो मैं क्या करता हूँ.. ये कहते हुए हाक़िम में फिर से उर्मि की चुत पर मुंह लगा दिया और इस बार पूरी कामुकता से उर्मि की चुत चाट कर चुत का दाना सहलाने लगा.. जिससे उर्मि अलग ही दुनिया में पहुंच गई और सिसकियाँ लेते हुए गौतम को देखकर मदहोश होने लगी.. उसे फिर से झड़ने में समय नहीं लगा.. वो हाक़िम के मुंह में ही झड़ गई और फिर कुछ देर यूँ ही रहकर हाक़िम को देखती हुई मुस्कुराने लगी.. उसे अब बहुत शर्म आ रही थी..
हाक़िम ने अब अपनी जीन्स उनहुक करके नीचे सरका दी.. और अपने लंड को देखने लगा जो बिना जामुन खाये ही काफी तगड़ा और मोटा था उसने एक दो बार लंड हिला कर उर्मि के मुंह के पास ले गया और उसे कहा..
हाक़िम - अब तेरी बारी...
उर्मि - नहीं.. मुख में थोड़ी लेते है इसे..
हाक़िम - नहीं लोगी तो मैं जाता हूँ..
उर्मि - रुको.. क्या बालक जैसे करते हो.. लेती हूँ..

हाक़िम ने उर्मि के मुंह में अपना लंड दे दिया और उसे बिना दाँत लगाए चूसने को कहा और उर्मि ने हाक़िम के प्यार में पागल होकर बिलकुल वैसा ही किया..

कुछ देर लंड चूसाने के बाद हाक़िम ने उर्मि के मुंह से लंड निकाला और उर्मि की टांग चौड़ी करते हुए उसकी चुत में लंड सटा के एक झटके में पेल दिया..
उर्मि की चुत से खून और मुंह से चिंख एक साथ निकल गई हाक़िम जानता था की ऐसा होगा इसलिए उसे उर्मि के मुंह पर हाथ रख दिया था.. जिससे वो ज्यादा तेज़ नहीं चिल्ला पाई..
हाक़िम ने दो मिनट लंड को उसी तरह रहने दिया और फिर धीरे धीरे उर्मि को चोदने लगा..
उर्मि - अह्ह्ह.. हाक़िम.. ये क्या किया तुमने?
हाक़िम - प्यार किया है जानेमन..
उर्मि - पीड़ा हो रही है..
हाक़िम - बस.. थोड़ी देर में मज़ा भी आएगा..
उर्मि - मज़ा? वो क्या होता है?
हाक़िम - आनंद.. मेरी जान..
उर्मि - आह्ह.. तुम बहुत पीड़ा देते हो..
हाक़िम - नहीं करना तो बता दे उर्मि.. मैं चला जाता हूँ..
उर्मि हाक़िम को चूमकर - ऐसी बात ना करो हाक़िम.. पहला मिलन है हमारा.. मैं तो बता रही थी.. अह्ह्ह.. बहुत पीड़ा हुई जब तुमने..
हाक़िम - अंदर डाला.. यही ना उर्मि..

उर्मि शर्मा जाती है और धीमी धीमी आहे भरने लगती है वही हाक़िम अब रफ़्तार बढ़ा कर उर्मि की चुत चोदने लगता है और उर्मि की सिस्कारिया भी तेज़ होने लगती है वो हाक़िम के गले में हाथ डालकर उसे अपने आप से चिपका लेती है और चुदवाते हुए हाक़िम को चूमकर आहे भरने लगती है...

हाक़िम उर्मि को पलट देता है और कमर पकड़ कर घोड़ी बनाते हुए उसकी चुत में लंड वापस पेल देता है और ताबड़तोड़ झटके मारता हुआ उसे चोदने लगता है..

हाक़िम को बहुत मज़ा आ रहा था और उर्मि वापस झड़ने लगी थी और साथ में उसका मूत भी निकल गया था मगर हाक़िम उर्मि की चुत में लंड के झटके पर झटके मारता हुआ उसे चोद रहा था..

हाक़िम ने अब उर्मि के बाल पकड़कर उसकी घुड़सवारी शुरु कर दी और उर्मि चुत में लंड लेती हुई अब वापस सिसकने लगी..
हाक़िम ने उर्मि को वापस पीठ के बल लेटा कर मिशनरी में चोदने लगा और और अब उर्मि के साथ साथ वो भी उर्मि की चुत में झड़ गया..

उर्मि हाक़िम को प्यार भरी निगाहो से देखती हुई - हाक़िम.. तुम तो बड़े ही बुरे हो.. ऐसा कोई करता है किसी के साथ.. अब विवाह भी कर लो मुझसे..
हाक़िम जीन्स से एक गर्भ निरोधक गोली निकालकर उर्मि को देता हुआ..
हाक़िम - इसे खा ले उर्मि..
उर्मि - ये क्या है?
हाक़िम - ये नहीं खाएगी तो तेरा पेट फूल जाएगा और नो महीने बाद तू मेरे बच्चे की माँ बन जायेगी....
उर्मि - तो क्यों खाऊ? मैं चाहती हूँ तेरे बच्चे की माँ बनना..
हाक़िम - बिना विवाह के?
उर्मि - विवाह नहीं करोगे?
हाकीम - नहीं.. पहले उस डाकी की माँ चोदनी है.. साला मेरी माँ को रखैल बनाके रखेगा..
उर्मि - तुम क्या क्या बोल रहे हो कुछ समझ नहीं आता.
हाकीम - 300 साल बाद इस्तेमाल होने वाले शब्द है.. तु नहीं समझेगी.. चल खा ले चुपचाप..
उर्मि मुस्कुराते हुए गोली खा लेती है और कहती है - अब ऐसे ही रहोगे मेरे अंदर?
हाक़िम का लंड अब भी उर्मि की चुत में घुसा हुआ था..
हाक़िम - थोड़ी देर रहने दे उर्मि.. आराम करने दे बेचारे को..
उर्मि - कोई देखा हाक़िम.. यहां आगे से काबिले की कई लड़किया पानी लेकर गुजरती है..

उर्मि इतना बोल ही पाई थी की किसी ने पीछे से कहा..
और तेरी माँ भी इसी रास्ते जाती है कलमुही..

हाक़िम और उर्मि ने एक साथ आवाज की दिशा में देखा तो पाया की एक 40 साल की औरत जो उर्मि की तरह ही छोटा ब्लाउज पहनकर कमर से नीचे घुटनो तक लम्बा घाघरा पहना था.. सर पर एक छोटी से ओढ़ानी लिये बगल में पानी का घड़ा लेकर खड़ी थी.. बहुत खूबसूरत लग रही थी..

उर्मि ने औरत को देखकर कहा - माँ...
हाक़िम समझ गया कि ये उर्मि की माँ और उसकी मौसी शीला ही है..
वो उर्मि के ऊपर से खड़ा हुआ और उर्मि भी लड़खड़ा कर खड़ी होती हुई शीला की तरफ देखती हुई वहा से लचके खाकर जाने लगी.. तभी शीला बोली..
शीला - विवाह तक तो रुक जाती कलमुही.. कब से हाक़िम के पीछे पड़ी थी आज कर लिया तूने मुंह काला हाक़िम के साथ.. ये बेचारा भोलाभाला आ गया तेरे चक्कर में..
उर्मि जाते हुए - अरे माँ.. आज मैंने कुछ नहीं किया आज तो यही मुझे सता रहा है.. अब भोला नहीं रहा हाक़िम.. बदल गया है..
शीला - हाँ हाँ जानती हूँ दोनों को.. जा अब..
हाक़िम तो उर्मि के बाद शीला को देखे जा रहा था शीला भी देखने में कम सुन्दर नहीं थी.. शीला को देखकर हाक़िम को वापस कामुकता ने घेरना शुरु कर दिया.. उसका लंड जो अभी अभी उर्मि की चुत से निकला था वीर्य से सना हुआ था..

शीला की नज़र गौतम के लंड पर गई तो उसने घड़ा एक जगह रख दिया और हाक़िम के लंड को बिना किसी शर्म लिहाज और झिझक के मुस्कुराते हुए पकड़ते हुए अपना घाघरा हाथ में लेकर साफ करने लगी..

शीला का हाथ लगते ही लंड में वापस तनाव आने लगा और हाक़िम का लंड वापस पूरी औकात में अकड़कर आसमान की तरफ देखता हुआ खड़ा हो गया.. शीला ने जब ऐसा होता देखा तो वो मुस्कुराते हुए हाक़िम के चेहरे की तरफ देखी और लंड का पूरा साफ कर दिया..

शीला और हकीम एक दूसरे को देख रहे थे और दोनों के होठों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर रही थी दोनों की आंखों ही आंखों में बातें हो रही थी जिसका अर्थ वह दोनों जानते थे कि क्या हो सकता है दोनों की बातें बिना होठों से कह भी एक दूसरे को समझ में आ रही थी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित होते जा रहे थे..

हाक़िम शीला को देखकर इतना कामुक हो गया था कि उसने अपना हाथ कब शीला के छाती पर रख कर उसके चुचे को पकड़ लिया था उसे खुद पता नहीं चला
शीला को भी इस बात की खबर तब तक नहीं लगी जब तक हकीम ने उसकी चूची को जोर से मसाला नहीं दिया..
शीला - अह्ह्ह.. हाक़िम..
हाक़िम शीला की कमर मे हाथ डालकर उसी जगह लेटा देता है जहा थोड़ी देर पहले उसकी बेटी उर्मि लेटी हुई थी..
शीला - हाक़िम छोड़.. क्या करता है... पहले तो बिन बताये कहीं भाग गया और आते ही पहले अपनी होने वाली घरवाली उर्मि के साथ और अब मेरे साथ ये सब करने लगा.. तेरी माँ सुनेगी तो गुस्सा करेंगी तेरे ऊपर..
हाक़िम अपना हाथ शीला की घाघरी में डालकर उसकी चुत मसलते हुए - छोडो ना मासी.. माँ से भी बात कर लूंगा..
शीला सिसकियाँ लेते हुए - अह्ह्ह..हाक़िम.. तू कितना बदल गया है रे.. अह्ह्ह्ह. छोडो.. मैं तेरी होने वाली घरवाली की माँ हूँ... तेरी माँ की बहन भी..
हाक़िम चुत में ऊँगली घुसा देता है और ऊँगली करते हुए कहता है..
हाक़िम - इसलिए कह रहा हूँ मासी.. चुप रहो.. थोड़ी देर की बात है सिर्फ.. क्यों इतने संकोच करती हूँ..
शीला अह्ह्ह करती हुई - तू तो बिलकुल ही बदल गया है हाक़िम.. पहले कितना शांत और भोला था.. छोटी बातों पर नाराज़ होता था हमसे रूठकर चला जाता था.. अब तो बिलकुल बदल गया है तू..
हाक़िम अपना लंड चुत पर रगढ़ते हुए - मासी भूल जाओ उस हाक़िम को.. अब नया हाक़िम आया है..
शीला - हाक़िम.. छोड़ जाने दे.. वरना कोई आ जाएगा.. वो डाकी बहुत बुरा है..
हाक़िम - डाकी की माँ तो मैं चोदुँगा मासी..
शीला - क्या..
हाक़िम चुत पर लंड सेट करते हुए - कुछ नहीं.. बड़ी मस्त है तुम्हारी मौसी..
ये कहते हुए बिना किसी संकोच के हाक़िम शीला की चुत में लंड पेल देता है और चुदाई का कार्यकर्म शुरु कर देता है..
शिला चुदवाते हुए - अह्ह्ह.. हाक़िम.. तेरी माँ लड़ेगी मुझसे..
हाकिम चोदता हुआ - पता चलेगा तब लड़ेगी ना मौसी.. वैसे भी डाकी की रखैल हो तुम दोनों बहने... रात को वो साला चोदता होगा तुम दोनों को..
शीला - क्या? चोदता..?
हाक़िम - अरे जो मैं अब कर रहा हूँ वो रात में करता होगा ना डाकी तेरे और माँ के साथ में..
शीला - अब क्या करें हाक़िम.. जो सरदर बनता है उसे हक़ होता है रखैल रखने का.. और नए सरदार को पुराने सरदार की रखैल मिल जाती है...
हाक़िम शीला का बोबा निकाल कर चूसते हुए - यानी मैं सरदार बन जाऊ तो तू और माँ मेरी रखैल बन जाओगी..
शीला - अह्ह्ह.. हाँ पर वो तो मुमकिम नहीं हाक़िम.. डाकी बहुत शक्ति शाली है..
हाक़िम पलटकर नीचे आ जाता है और शीला को अपने ऊपर ले लेता है और नीचे से झटके मारता हुआ कहता है - कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो मौसी.. मैं उसे हरा दूंगा और काबिले का नया सरदार बनुगा.. और तुझे और माँ को अपने साथ रखूँगा..
शीला - अह्ह्ह हाक़िम ऐसा सोचना भी मत डाकी तुझे मार डालेगा..
हाक़िम हसते हुए - मुझे तो बस तेरे जैसी कोई औरत ही मार सकती है मौसी अपनी चुत में घुसा के..
शीला झड़ती हुई - हाक़िम अब छोड़.. जाने दे वरना डाकी किसी को भेज देगा बुलाने...
हाक़िम शीला को वापस पतट देता है और चोदते हुए कहता है - भेजनें दे मौसी.. अब तू मेरी बनकर रहेंगी..
शीला - हाक़िम.. तुझे क्या हो गया है. तू पहले तो ऐसा नहीं था..
हाक़िम - सही कह रही हो.. मुझे पहले ही ऐसा हो जाना चाहिए था.. मैं तब कमजोर और डरपोक था मौसी.. अब नहीं.. उस डाकी को अब मैं बताऊंगा..
शीला - अब जाने दे हाक़िम.. नहीं वो डाकी मेरी जान ले लेगा..
हाक़िम शीला को घोड़ी बनाते हुए चोदने लगता है..
हाक़िम - तेरी गांड तो मस्त है मौसी.. सेक्सी बिलकुल..
शीला - अह्ह्ह्ह...
हाक़िम शीला के मुंह में लोडा डाल देता है और फिर थोड़ी देर में मुंह में ही झड़ जाता है..
शीला माल थूकती हुई - ये क्या कर डाला तूने हाक़िम.. कितना बुरा है ये..
हाक़िम - पहली बार मुंह में लिया है ना मौसी.. धीरे धीरे आदत पड़ जायेगी..

शीला अपने कपड़े ठीक करके घड़ा उठाते हुए - तेरी माँ छप्पर में तेरी राह देख रही है हाक़िम... जब से तू गया है वो तेरे बारे में पूछती है.. जाकर मिल ले.. और पता नहीं कैसे वस्त्र पहने है तूने.. अब जा..
गौतम जीन्स पहनकर - ठीक है मौसी.. पर कल इसी वक़्त यही आ जाना मिलने..
शीला मुस्कुराते हुए - उर्मि को भेज दूंगी.. कर लेना जो करना है उसके साथ.. तेरी होने वाली घरवाली है वो.. उसे सुखी रख हाक़िम.. मैं तो अब किस काम की...
हाक़िम शीला की कमर पकड़कर होंठ चूमते हुए - तू भी आना उर्मि के साथ मौसी.. कुछ पूछना है मुझे..
शीला मुस्कुराते हुए - ठीक है हाक़िम. अब जाने दे..
शीला लचकती हुई वहा से चली जाती है और वापस झील के पास उस पेड़ के नीचे आ जाता है.. खाना निकाल कर खाने लगता है साथ वो जामुन भी खा लेता है जो बाबा के कहने पर साथ लाया था.. उसके बाद सामान से सिगरेट का पैकेट लाइटर लेकर और शराब की बोतल से 3-4 पेग पीकर वापस चला जाता है..

हाक़िम.. तू कहा था.. पता है कितना ढूंढा तुझे?
सब कह रहे थे मंगरू हाक़िम कहीं चला गया है तुझे नहीं मिलेगा पर मैंने मेरे मित्र और मेरी बहन उर्मि के होने वाले पति को ढूंढ ही लिया..
हाक़िम नशे में - मंगरू..
मंगरू - हाक़िम ये क्या पहना हुआ है तूने और इस तरह क्यों मुझे देख रहा है..
हाक़िम नशे में भी समझ गया था कि ये मंगरू उसका दोस्त होगा और काबिले में रहता होगा..
हाक़िम - मंगरू.. अब क्या बताऊ.. तू मुझे छप्पर तक ले चल..
मंगरू - हाँ चल.. तेरी माँ सबसे तेरे बारे में पूछती रहती है..
हाक़िम नशे में मंगरू के साथ चल पड़ता है और मंगरू से काबिले के बारे में बहुत सी बातें पूछने लगता है..
मंगरू - हाक़िम.. डाकी ने सबको दुखी किया हुआ है.. काबिले के बहुत से लोग उसे मारना चाहते है मगर उसकी ताक़त इतनी है कि कोई उसे लड़ने की चुनौती नहीं दे सकता.. और उसके साथी भी बहुत है..
हाक़िम - तू चिंता ना कर मंगरू.. मैं डाकी को जल्द हरा कर सरदार बन जाऊँगा..
मंगरू - हाक़िम.. तू? तू कैसे हरायेगा डाकी को?
हाक़िम - मंगरू.. वो सब मुझ पर छोड़ दे.. मैं कल उसे लड़ने की चुनौती दूंगा.. और उसे हरा दूंगा.. फिर सब ठीक हो जाएगा..
मंगरू - नहीं हाक़िम.. वो बहुत ताक़तवर है.. उसने हमारे नाना लाखा को आसानी से हरा कर मार डाला था.. और तेरी मेरी माँ के साथ..
हाक़िम - जानता हूँ मंगरू.. मगर अब उसे सबका उत्तर देना होगा.. मैं माँ को उसकी रखैल नहीं बने रहने दूंगा..
मंगरू - तू क्या कह रहा है हाक़िम.. ऐसा करना असंभव है वो इतना लम्बा चौड़ा और बाहुबली है..
हाक़िम - तू मुझे नहीं जानता मंगरू.. मैं अब पहले वाला डरपोक और कमजोर हाक़िम नहीं हूँ.. मैं कल उसे ललकार कर लड़ने के लिए बुलाऊंगा..
मंगरू - एक बार फिर विचार कर हाक़िम.. ये साधारण काम नहीं है.. ले छप्पर आ गया.. तू रुक यही.. मैं काबिले में जाकर तेरी माँ मम्मी मुन्नी मौसी को बताता हूँ..
मंगरू हाक़िम को काबिले से कुछ दूर जंगल में एक घाटी के पास समतल जगह पर बने छप्पर जहा जागीरदार की सेना गुजरते हुए विश्राम करती है वहा छोड़कर काबिले की तरफ चला जाता है..
हाक़िम छप्पर के नीचे एक बड़े से पत्थर पर बैठकर नशे में अपनी गर्दन इधर उधर हिलाकर आस पास के माहौल और वातावरण को देखता है फिर कुछ देर बाद एक सिगरेट जलाकर कश लेने लगता है..

हाक़िम सिगरेट के एक दो कश लेता है की उसे सामने एक बेहद खूबसूरत हसीन और मदमस्त जोबन से भरी हुई औरत भागते हुए उसकी और आती हुई दिखाई देती है जिसके भागने से उसके चुचे ऊपर नीचे ऐसे हिल रहे थे जैसे तेज़ हवा में घर की छत पर सुखाये हुए कपड़े हिलते है.. औरत की कमर दूधिया गोरी और पतली थी मगर कमर के ऊपर और नीचे भरीपन था जो उसकी छाती पर और गांड पर साथ दिख रहा था.. औरत का चेहरा अभी साफ साफ नहीं दिखा था और हाक़िम सिगरेट के कश लेते हुए अपने लंड में आ रही अकड़न को महसूस करता हुआ पत्थर से खड़ा हो गया था..
भागने से औरत के सर की ओढ़ानी जमीन पर गिर गई थी और उसके बदन पर एक छोटा सा ब्लाउज जिसमे उसके आधे चुचे उछल कर बाहर आ रहे थे और कमर से घुटनो तक लम्बा घाघरा था.. औरत को देखकर ऐसा लगता था जैसे कामदेवी दे अवतार लिया हो..
हाक़िम का लंड अब खड़ा हो चूका था जिसे जीन्स ने क़ैद किया हुआ था..

हाक़िम सिगरेट पीते हुए उस औरत की कमर देखकर तय कर लिया था कि इसे मन भरके चोदे बिना वो वापस नहीं जाएगा..

औरत जब उसके करीब आई तो हाक़िम ने सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट फेंक दी और औरत के चेहरे को देखा जो चन्द्रमा कि तरह प्रकाशित और सुन्दर था..
औरत भागती हुई आकर सीधे हाकिम के गले से लग गई और बोली..
औरत - कहा चला गया था हाक़िम अपनी माँ को छोड़कर.. मैं जानती हूँ तू नहीं चाहता कि मैं डाकी की दासी बनकर रहू पर मैं कर भी क्या सकती हूँ.. कहा जा सकती हूँ.. कोई और ठोर ठिकाना भी तो नहीं है मेरे पास.. तेरे नाना को मार कर वो डाकी सरदार बन बैठा है और अब काबिले पर मनमानी कर रहा है..
हाक़िम अपनी माँ मुन्नी के बदन को बाहों में भरके उसके बदन का मुआयना कर रहा था और उसके कानो में मुन्नी की बाते कम ही जा रही थी.. हाक़िम ने अपनी माँ की चिकनी कमर को ऐसे थाम रखा था जैसे वो उसे अपने अंदर समा लेना चाहता हो..
मुन्नी उसी तरह गले लगी हुई वापस बोली - तू वापस काबिले में आजा हाक़िम मैं डाकी से किसी तरह तुझे काबिले में रहने की स्वीकृति दिला दूंगी..
हाक़िम नशे में था और उसके बाहों में बेहद हसीन औरत थी जो उसकी माँ थी मगर फिर भी हाक़िम से रहा ना गया और उसने मुन्नी के चेहरे को एक हाथ से थामकर उसके गुलाब सुर्ख होंठों को बिना मुन्नी की इज़ाज़त के अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया और बड़े प्यार से चूमने लगा..

हाक़िम को ऐसा लग रहा था जैसे कोई जन्नत की हूर उसे मिल गई है और हाक़िम अपनी माँ मुन्नी के लबों का रस पिने लगा जिसमे मुन्नी के मुंह की लार हाक़िम के मुंह की लार से मिलकर नया एक स्वाद दोनों के मुख में घोल रही थी.. हाक़िम बार बार मुन्नी के होंठों को खींचता हुआ चुम रहा था और निचले होंठ को दांतो से खींचते हुए ऐसे चुम रहा था जैसे आमरस पी रहा हो..
हाक़िम का हाथ मुन्नी की गर्दन पर से नीचे आ गया और मुन्नी की चोली में क़ैद उसके उन्नत विकसित सुडोल और उठे हुए उरोजो पर चला गया.. हाक़िम में मुन्नी की छाती के उभार को मसलते हुए उसके चुचक को पकड़ लिया ऊँगली से छेड़खानी करते मरोड़ने लगा..
मुन्नी जब भागते हुए आई थी उसकी आँखों में आंसू थे मगर हाक़िम जो अभी अभी उसके साथ छेड़खानी कर रहा था उससे उसके मन की पीड़ा और आँखों को आंसू विलुप्त हो गए और मुन्नी आश्चर्य और संकोच में पड़ गई.. उसके बेटा हाक़िम उसे बाहों में लिए चुम रहा था और बिना किसी शर्म लिहाज़ और हिचक के उसके छाती के मादक उभार को अपने हाथ से मथ रहा था..

मुन्नी आश्चर्य के साथ भ्रम में थी की उसे इस वक़्त क्या करना चाहिए और क्या नहीं.. वो इतने दिनों से अपने बेटे हाक़िम के जाने से अफ़सोस और पीड़ा में थी और जब उससे मिली तो हाक़िम की हरकतो से आश्चर्यचकित..
हाक़िम ने बिना चुंबन तोड़े अपना हाथ मुन्नी के चूची के दाने से नीचे लेजाकर मुन्नी के घाघरे में डाल दिया और उसकी चुत पर उगे हुए लम्बे लम्बे बालों से होते हुए उसकी चुत पर आ पंहुचा.. चुत पर जैसे ही हाक़िम ने हाथ लगाया मुन्नी ने चुम्बन तोड़कर हाक़िम को थोड़ा पीछे धकेला और एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया.

मुन्नी - ये क्या कर रहा है तू.. माँ हूँ मैं तेरी और तू मेरे ही साथ.... मैं जानती हूँ तू मुझसे रूठा है ओर ऐसा करेगा अपनी माँ के साथ.. मदिरा का नशा है ना तेरे ऊपर? तू सही गलत नहीं समझ पा रहा इस समय.. कैसे वस्त्र पहनें है तूने.. बहरूपिया सा लगता है.. चल मेरे साथ..
हाक़िम अपना गाल पकड़ कर पत्थर पर बैठता हुआ - मुझे कहीं नहीं जाना..
मुन्नी हाक़िम का हाथ पकड़ कर - मैं कहती हूँ हाक़िम चल मेरे साथ.. मैं डाकी से क्षमा मागकर तुझे काबिले में रहने की अभी स्वीकृति दिला दूंगी..
हाक़िम मुन्नी से हाथ छुड़वाते हुए - वहा जाकर क्या करूँगा मैं माँ.. तुझे उस डाकी के साथ देखूंगा? जब वो तेरे इस बदन को छुएगा, निर्वस्त्र करेगा मैं कैसे खुदको वहा रोक पाऊंगा?
मुन्नी हाक़िम को समझाते हुए - मैं उसकी दासी हूँ हाक़िम.. वो काबिले का सरदार.. मुझे उसकी हर बात माननी पड़ेगी वरना वो कुछ भी कर सकता है..
हाक़िम मुन्नी की कमर में हाथ डालकर उसे सीने से लगता हुआ - अगर ऐसी बात है तो कल मैं उस डाकी को लड़ने के लिए ललकारूँगा और उसे हराकर मैं काबिले का सरदार बनुगा.. फिर माँ.. तुझे मेरी हर बात माननी पड़ेगी.. जैसे तू डाकी को खुश रखती है तुझे मुझे भी खुश रखना पड़ेगा..
मुन्नी हाक़िम का हाथ अपनी चुत पर रखकर - अगर तू मुझे पाना चाहता है हाक़िम.. तो यही पर जो करना है कर ले.. मगर डाकी से लड़ने की बात भूल जा.. वो बहुत ख़तरनाक है.. हाक़िम तू उसे नहीं हरा पायेगा.. मैं तुझे नहीं खोना चाहती..
हाक़िम मुन्नी की चुत मुट्ठी में पकड़कर मसलते हुए - अब तो इसका स्वाद सरदार बनने के बाद ही लूंगा माँ.. अपनी जेब से एक गोली निकालकर.. माँ कल जब वो मुझसे लड़ने आये तब तू ये किसी चीज में मिलाकर डाकी को खिला देना.. बस..
मुन्नी अपनी चुत से हाक़िम का हाथ हटाते हुए - ये क्या है?
हाकीम - अचेत होने की चीज़ है.. जब वो इसे खा लेगा तो पूरा नशे में हो जाएगा और अपने होश गवाकर अचेत होकर मुझसे लड़ेगा.. फिर मैं उसे आसानी से हरा दूंगा.
मुन्नी - मैंने कहा ना हाक़िम तू डाकी को नहीं ललकारेगा.. उसके साथ और भी लोग है जो बहुत खतरनाक है.. अपना इरादा बदल दे.. मैं तुझे ऐसा नहीं करने दूंगी..
मंगरू आते हुए - मौसी ओढ़नी..
मुन्नी ओढ़नी लेकर सर पर रखती हुई - मंगरू समझा हाक़िम को.. कैसे उल्टी सीधी बात कर रहा है.. अचानक से वीर योद्धा बनने चला है..
मंगरू - मौसी मुझसे भी ऐसी ही बात कर रहा था.. आप जाओ काबिले में.. मैं हाक़िम को अपने साथ ले जाता हूँ.. कल तक इसका मन बदल जाएगा..
मुन्नी जाते हुए - हाक़िम.. तू डाकी से नहीं लड़ेगा..
मंगरू - चल हाक़िम..
हाक़िम - कहा ले जाएगा मंगरू?
मंगरू - हाक़िम काबिले में हमारी तरफ पहरा नहीं होता.. तू मेरे साथ चल.. रात को मेरे साथ ठहर जाना.. वहा और कोई नहीं होगा तो किसी को ये भी खबर नहीं लगेगी कि तू मेरे साथ है..
हाक़िम - ठीक है मंगरू.. आज रात तेरे झपडे में रहता हूँ पर तुझे मेरा एक काम करना होगा..
मंगरू - क्या हाक़िम?
हाक़िम - उर्मि को जाकर बता दे की आज रात मैं तेरे साथ हूँ..
मंगरू - पहले तो तू उससे कितना दूर दूर और बचके रहता था अब खुद से बुला रहा है..
हाक़िम - पिछले जन्म में चुतिया था ना..
मंगरू - क्या?
हाक़िम - कुछ नहीं.. चल.. बता.. कहाँ है तेरा झोपड़ा..
मंगरू - पर हाक़िम.. अगर तू उर्मि के साथ झोपड़े में रहेगा तो मैं कहा जाऊंगा?
हाक़िम - इतना छोटा झोपड़ा है तेरा?
मंगरू - नहीं.. पर उर्मि मेरी बहन है हाक़िम..
हाक़िम - मंगरू.. आज रात की बात है.. और उर्मि से मेरा विवाह भी होने वाला तो इसमें गलत क्या है..
मंगरू - ठीक है हाक़िम.. मैं आज झोपड़े के बाहर रह लूंगा..
हाक़िम - मंगरू तेरी माँ और मेरी माँ दोनों को उस डाकी से कल मैं आजाद करवा दूंगा..
मंगरू - ऐसा सच में हो सकता है हाक़िम?
हाक़िम - हाँ.. मंगरू..
मंगरू - हाक़िम यहाँ से थोड़ा छुपके चल.. मेरा झोपड़ा आने वाला है..

मंगरू हाक़िम को अपने झोपड़े में ले आता है जहा कुछ भी नहीं था एक तार पर कुछ कपड़े थे और एक तरफ कुछ बिछा के सोने का सामान..
मंगरू हाक़िम को झोपड़े में छोड़कर उर्मि के पास चला जाता है और उसे हाक़िम के बारे में बात करता है उर्मि अपने साथ कुछ लेकर मंगरू के साथ लचकते हुए उसके झोपड़े में आ जाती है और हाक़िम के गले लग जाती है..

उर्मि - पहले इतना पीछे पड़ी रहती थी तब पलट के भी नहीं देखा और अब मेरे बिना रह भी नहीं पा रहे..
हाक़िम - काबिले की सरदारनी होने वाली है तू.. बस यही बताने बुलाया था..
उर्मि - छोडो इस बात को.. एक दम से सरदार बनने का भुत आ गया है तुम पर.. चलो में भोजन लाई हूँ..
हाक़िम - अपने हाथों से खिलाओगी तो खाऊंगा..
उर्मि जैसे तुम बोलो...
मंगरू झोपड़े से बाहर चला जाता है..

उर्मि झोपड़े में कुछ बिछा कर उसके हाक़िम के साथ बैठ जाती है और उसे अपने हाथ से भोजन बनाकर खिलाने लगती है और उसीके साथ खुद भी भोजन करती है..
हाक़िम और उर्मि भोजन करने के पश्चात् उसी जगह एक दूसरे से लिपटकर लेट जाते है..
हाक़िम उर्मि को अपने ऊपर खींचकर चूमने लगता है..
उर्मि - अरे अरे मुख से मुख मिलाकर ऐसे चुम्बन करते हो जैसे मैं कहीं भाग जाउंगी.. मुझे दम तो लेने दो..
हाक़िम उर्मि की चोली खोलते हुए - तू है इतनी मस्त यार क्या करू..
उर्मि - तुम ना क्या क्या बोल जाते हो समझ आता ही नहीं है..
हाक़िम - उस डाकी ने तेरे साथ तो कुछ नहीं किया ना उर्मि..
उर्मि - मैं तो केवल तेरी हूँ हाक़िम.. तेरे अलावा कोई और छुएगा तो उसकी जान ले लुंगी.
हाक़िम घाघरा खोलते हुए उसे नीचे ले लेता है और जीन्स खोलकर उसकी चुत में लंड घुसा देता है..
उर्मि - अह्ह्ह.. हाक़िम तुम्हारा पहले से बड़ा लग रहा है..
हाक़िम - आंनद आ रहा है ना तुम्हे मेरी उर्मि..
उर्मि - हाँ.. हाक़िम बहुत आंनद आ रहा है.. पर बहुत दर्द भी होने लगा है.. आह्ह
हाक़िम उर्मि को घोड़ी बना लेता है चोदने लगता है..
सारी रात उर्मि और हाक़िम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते है और सुबह तक साथ ही बिना कपड़ो के लिपटे रहते है..

हकीम सुबह मंगरु के झोपड़े से निकलकर बाहर आ जाता है और जंगल की तरफ चला जाता है वहां पर वह सोचने लगता है कि कैसे सरदार डकी को हराकर वह कबीले का सरदार बन सकता है उसने अपने मन में तय कर लिया था कि वह किसी भी तरह डकी को हराकर कबीले का सरदार बनेगा और अपनी मां और मौसी को उसके चंगुल से आजाद करवा कर अपने साथ रखेंगी और कबीर का सरदार बनकर दोनों को अपने पास रखेगी उसके बाद वह उर्मि से विवाह करेगा और उर्मी को कबीले की सरदारनी बनाएगा..

हातिम जानता था कि उसके पास एक महीने का समय है और एक महीने में उसे दिया गया काम करके वापस भी जाना है लेकिन वह इतना जल्दी वीरेंद्र सिंह की जागीर में जाकर बैरागी से नहीं मिलना चाहता था और वह चाहता था कि जब अगली अमावस्या आने का समय हो उससे पहले ही वह बैरागी से मिलकर जड़ी बूटी ले ले और वहां से चला जाए..

मगर उससे पहले वह चाहता था कि काबिले की दशा बदल दे और डाकी को हराकर नया शासन स्थापित करें जिससे कबीले के सभी लोग फिर से सुख शांति से अपना जीवन यापन करें और कबीले में सुख शांति और संपन्निता बनी रहे वह अपने नाना लक्खा की तरह काबिले को फिर से इस संपन्नता और सुख से भरा हुआ देखना चाहता था जैसे पहले था..

हाकीम रातभर उर्मी के साथ रहने से उसके लिए भी मन में प्रेम जागने लगा था और वह चाहता था की उर्मी के साथ हो विवाह करके प्रेम से रह सके और साथ ही अपनी मां मुन्नी और मौसी शीला को भी अपने साथ रख सके.. आज उसने निश्चय कर लिया था कि वह डाकी को ललकार देगा और उसे लड़कर किसी भी तरह से हरा देगा चाहे उसके लिए उसे बंदूक का सहारा लेना पड़े या फिर कोई और पेत्तरा इस्तेमाल करना पड़े उसने सोच लिया था कि डॉगी को आज हराकर उसे जान से मार देगा और उसको उसके किए की सारी सजा देगा..

मगर यह सब करने से पहले उसने आज जागीर जाकर जागीर में हो रही गतिविधियों को जाने का और यह भी तय करेगा कि उसे कब और कैसे बैरागी से मिलना है और कब उस जड़ी बूटी हासिल करनी है जिससे वह अपना दिया गया काम आसानी से पूरा कर सकेगा और वापस जब अपनी दुनिया में जाएगा या अगले जन्म में जाएगा तो वह जड़ी बूटी लेकर ही जाएगा.. हकीम जंगल के मुहाने पर था और अब वह जागीर की तरफ चल रहा था जहां उसे महल में प्रवेश करने से पहले ही दरबारों ने रोक दिया और महल के भीतर प्रवेश करने नहीं दिया जिससे हकीम बिन महल की गतिविधियां जाने ही वहां से लौट आया मगर उसने रास्ते में किसी सैनिक से इस बारे में बात करके यह जान लिया था कि अभी बैरागी मैं कोई भी इस प्रकार की जड़ी बूटी नहीं बनाई है पर वीरेंद्र सिंह ने सिपाही पश्चिम की तरफ भेजे है जिससे जड़ी बूटी का निर्माण हो सके इसलिए हाक़िम बेफिक्र होकर वापस आ गया और पहले कबीले का सरदार बनने का निश्चय किया..

जंगल के मुहाने पर नदी के किनारे बसी हुई बस्ती जो बंजारा उसे भरी हुई थी और उनके झोपड़ी और बीच में सरदार के बड़े से आलीशान तंबू से सजी हुई थी वहां पर कई लोग अपने-अपने काम में लगे हुए थे और डाकी जो भोगविलास में व्यस्त था उसने अपने सामने नाच रही महिलाओं को देखते हुए मदिरापान करना शुरू कर दिया था.. डाकी के कई विश्वसनीय साथी उसके साथ थे जो डाकी को संभालते थे और सुरक्षित रखते थे इसी के साथ में वह लोग कबीले के दूसरे लोगों पर अत्याचार भी करते थे जिससे पूरा कबीला परेशान था और बस्ती के सभी लोग अपनी अपनी तरफ से डाकी से डर कर छुपाते रहते थे और सोचते थे कि वह कभी डकी से ना मिले और डाकी की नजर से बचे रहे..

जहां पर कल हकीम ने शीला और उर्मी से बात की थी वहीं पर आज फिर से शीला उपस्थित होकर हकीम के सामने खड़ी थी और हकीम उसके सामने बैठा हुआ उसे देखे जा रहा था और कबीले की रीति और नीति जानने के लिए आतुर था.. वह शीला से नए सरदार बनने के लिए उसे क्या करना होगा और किस तरह उसे सरदार को ललकार ना होगा और इसी के साथ में उसे किस तरह द्वंद युद्ध किया जाएगा और उसमें क्या-क्या हो सकता है और क्या-क्या कार्य किए जाएंगे इससे अवगत होने के लिए शीला से बात कर रहा था..

शीला बड़ी सी चट्टान के पीछे घास में पीठ के बल लेटी थी और हाक़िम उसकी चुत में लंड घुसाये उसके ऊपर लेटा हुआ उसे धीरे धीरे चोदता हुए बात कर रहा था.

हाक़िम - और बता मौसी.. मेरे ललकारने के बाद डाकी क्या करेगा?
शीला - हाक़िम तू डाकी को ललकारेगा तो उसके कुछ देर बाद काबिले के मध्य में तेरा और उसका द्वन्द युद्ध होगा जिसमे तुम दोनों एक दूसरे के साथ कोई एक हथियार लेकर लड़ोगे.. और एक दूसरे को हारने के लिए प्रयास करोगे. डाकी को तलवार बाजी बहुत अच्छी तरह अति है और उसके साथीयों को भी..
हाक़िम शीला के बोबे मसलकर उसे चोदते हुए - मैं उसे हरा दूंगा तो फिर क्या होगा मौसी?
शीला - अह्ह्ह.. उसके बाद तू काबिले का नया सरदार बन जाएगा और काबिले को तेरा हर हुकुम मानना पड़ेगा.. डाकी की सभी दासी तेरी दासी बन जायेगी. मैं और मुन्नी भी.. तू जिसके साथ चाहे जो कर सकेगा.. तू चाहे तो उर्मि के साथ तय हुआ तेरा विवाह भी तोड़ सकता है.. उसे तेरी बात माननी होगी..
हाक़िम - मौसी तेरी तेरी बेटी और तूने मेरी इतनी सेवा की है कि तुम दोनों पर मेरा दिल आ गया है और अब मैं तुम दोनों को बिल्कुल भी नहीं छोड़ने वाला मैं सरदार बन जाऊंगा तो तुम दोनों मेरे साथ रहोगी..
शीला - हाक़िम तूने फिर से मेरे अंदर ही निकाल दिया.. ऐसा बार बार करेगा तो जानता है क्या होगा?
हाक़िम शीला कि चुत से लंड निकालते हुए - तू माँ बन जायेगी मौसी.. और क्या होगा? उर्मि और मंगरू के बाद तीसरा बच्चा पैदा होगा तेरी योनि से...
शीला अपने घाघरे से चुत साफ करती हुई - कल से पता नहीं क्या हो गया है तुझे जब भी मिलता है ऐसे बात करता है जैसे मैं तेरी मौसी नहीं कोई दासी हूं..
हाक़िम शीला के होंठ चूमते हुए - मौसी अब जा.. जाकर बोल दे मां से कि मैं डाकी को ललकार ने आ रहा हूं और वह मेरा इंतजार करें अब मैं उसे हराकर सरदार बन जाऊंगा और आज ही इस काबिले के नियम को बदलकर वापस उसी तरह चलाऊंगा जैसे नाना जी चला रहे थे.. अब किसी को डरने की जरूरत नहीं है..
मौसी - एक बार फिर सोच ले हाक़िम...
हाक़िम शीला को घुमा जे उसकी गांड पर थप्पड़ मारता हुआ - सोच लिया शीला.. अब अपने ये मोटे मोटे चुत्तड़ हिलाती हुई चली जा और बता दे सबको कि मैं आ रहा हूँ... और माँ से भी कह देना..
शीला - जाती हूँ हाक़िम..

शीला लचक्ति हुई कबीले की तरफ चली जाती है और दूसरी तरफ हाकीम इस पेड़ के नीचे आकर अपने सामान में से पिस्तौल निकाल लेता है जो बड़े बाबा जी ने उसे दी थी इसी के साथ वह वापस आ जाता है और कबीले में घुसता हुआ सभी को ललकार डाकी से मिलने की बात करता है..

सरदार.. सरदार..
क्या हुआ बाला? क्यों हाँफ्ता हुआ आ रहा है? क्या करण है जो तू मेरे एकान्त के पल में दखल दे रहा है..
बाला - सरदार.. हाक़िम..
डाकी - हाक़िम क्या?
बाला - हाक़िम ने आपको द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा है..
डाकी अपने आगे घोड़ी बनी हुई काबिले की नई नई जवाँ हुई लड़की के बाल खींचकर उसकी गांड पर थप्पड़ मारते हुए कहा - इतनी हिम्मत उस हाक़िम कि? आज तो उसे जीवन से हाथ धोना पड़ेगा..
मुन्नी तम्बू में आकर हाथ जोड़ते हुए - नहीं सरदार.. माफ़ कर दो हाक़िम को..
डाकी लड़की कि चुत में से लंड निकालता हुआ - माफ़ नहीं मुन्नी आज साफ करूंगा तेरे हाक़िम को तेरे बाप लाखा की तरह..
मुन्नी डाकी के पैर पकड़ लेती है और क्षमा की भीख मागती हुई हाक़िम को समझाने की बात करती है मगर डाकी नहीं मानता और मुन्नी को एक जोरदार थप्पड़ के साथ एक तरफ कर देता है और रोती हुई मुन्नी को छोड़ कर बाहर जाने लगता है कि मुन्नी को हकीम की दी हुई गोली याद आ जाती है और वह उसे एक प्याली में मिलाकर मदिरा के साथ डाकी को परोसती हुई कहती है - सरदार हाक़िम बच्चा है आप उसे माफ़ कर दो..
डाकी मदिरा का प्याला पीकर मुन्नी का बोबा पकड़ कर अपने आगे से हटा देता है और बाहर आ जाता है और द्वन्द युद्ध कि जगह हाक़िम को खड़ा देखकर उसके सामने आ जाता है..

डाकी हल्का सा नशे में - गलती कि जो तेरी माँ के कहने पर तुझे पिछली बार जीवित छोड़ दिया.. किन्तु इस बार तू जीवित नहीं बच्चेगा.. मैं आज तेरे प्राण लेकर तेरी माँ मुन्नी को तेरा मरा हुआ मुंह दिखाऊंगा.. उठा ले तलवार.. और कर मेरा सामना.. मैं भी देखु तेरा जैसा डरपोक कितने समय मेरे आगे खड़ा रहता है..
हाक़िम पिस्तौल निकालकर - साले तूने मेरी माँ को मेरा मरा हुआ मुंह दिखायेगा.. पहले तो सोचा था तुझे हरा कर यहां से जीवित जाने दूंगा पर अब नहीं.. हाक़िम चिल्लाते हुए जो भी इस डाकी कि तरफ है वो सब मेरे सामने आ जाओ.. मैं अभी तुम्हारा खात्मा किये देता हूँ..
डाकी और उसके साथ उसके कई साथी हसते हुए - अरे ये खिलौना क्या है.. लगता है..
सरदार ये वस्त्र भी बहुत अतरंगी पहनें हुए है..
लगता है कोई साया है इसके ऊपर..
सरदार इसे ख़त्म कर दो.. और बता दो आपके जैसा ताक़तवर इस काबिले में कोई और नहीं..
डाकी तलवार लेकर - आज तेरा अंतिम दिन है हाक़िम.. तेरे नाना लाखा जैसे तू भी आज मेरे हाथों मरेगा..

शीला और उर्मि दोनों एक दूसरे से संवाद करते हुए हाक़िम को देख रहे थे और हाक़िम और डाकी एक दूसरे को मारने की नीयत से एक दूसरे के सामने अपने हथियार लेकर खड़े थे वही उर्मी और शीला एक किनारे खड़ी होकर हकीम को देख रही थी जो अपने हाथ में पिस्टल लिए हुए डाकी के सामने खड़ा था शीला और उर्मी बहुत चिंतित थी और डरते हुए सोच रही थी कि हाकीम आप भी अगर भाग जाए तो उसकी जान बच सकती है मगर हाकीम भागने वाला नहीं था उधर मुन्नी भी उसे तंबू से बाहर निकाल कर आ चुकी थी और आखरी बार डाकी से अपने बेटे हकीम को छोड़ देने और जान देने की बात कर रही थी उसके साथ शीला और उर्मि भी आ गई थी... मगर डाकी ने किसकी एक बात नहीं सुनी और सबको धक्का देते हुए किनारे पर गिरा दिया जिससे हकीम गुस्सा हो गया और चिल्लाते हुए अपनी पिस्तौल का निशान डाकी के सर पर करते हुए पिस्तौल चला दी..

काबिले के सभी लोग घेरा लगाकर यह सब होता देख रहे थे और जैसे ही हकीम में पिस्टल चलाई बंदूक की निकली गोली से डाकी का सर फट गया और वह जमीन पर गिर गया.. कबीले के सारे लोग हकीम को आश्चर्य की नजर से देखने लगे और सोचने लगे कि उसके पास ऐसा क्या है जिसके चलने से इतनी दूर से डाकी का सर इतना तेज फट गया और वह मर के जमीन पर गिर गया.. काबिले के सभी लोगो के मन में उत्साह जाग उठा और डाकी के मरने पर वह लोग मुस्कुराते हुए खुशी से झूमने लगे मगर डाकी के साथियों ने हकीम पर हमला कर दिया और उसे मारने के नियत से अपनी अपनी तलवार उठाकर उसके पास बढ़ने लगे मगर हकीम ने एक-एक करके सबको गोली मार दी और कल 13 लोगों को जो डाकी के विश्वसनीय थे सबको मौत के घाट उतार दिया..

मुन्नी शीला और उर्मि ऐसा होते देखकर आश्चर्यचकित थी और उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे हकीम ने एक ही झटके में द्वन्द युद्ध की ललकार देकर अपने छोटे से हथियार से डाकी और उसके सभी साथियों को इतनी जल्दी मार डाला और अपनेआपको कबीले का नया सरदार बना दिया.. मुन्नी बहुत खुश थी और उसे अब हातिम पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था.. कबीले के सभी लोगों ने हकीम को अपने कंधे पर उठा लिया और उसकी जय जयकार करते हुए सरदार की गद्दी पर बैठा दिया सरदार की गद्दी पर बैठकर हकीम ने सभी को फिर से खुलकर जीने का कहते हुए फिर डाकी के बनाये हुए सभी कठोर नियम बदल दिए.. और पहले जैसे लाखा की सरदारी में काबिला चल रहा था वैसे ही काबिले को चलाने की बात कही जिससे काबिले के सभी लोग खुशी से झूम उठे और सभी हकीम के पैरों में गिरते हुए उसकी धूल को माथे से लगाकर झूमते नाचते गाते हुए रात के जश्न का आयोजन करने लगे..

रात को जश्न के आयोजन में काबिले के सभी लोग नए सरदार के बनने की खुशी का इजहार कर रहे थे और चारों तरफ कबीले के लोग खुशी से हंसते मुस्कुराते हुए ढोल मंजीरे की ताल पर नाच गा रहे थे वहीं महिलाएं भी उसी खुशी में शामिल होती हुई मर्दों के साथ नाच गा रही थी और एक जलती हुई आग के आसपास सभी लोग घेरा बांधकर बैठे हुए यह सब कार्यक्रम कर रहे थे.
गौतम के कहने पर सभी ने उन लोगों की लाशों को पास के ही जंगल में दफना दिया और अब गौतम मुन्नी के पास आ गया..

सरदार के तंबू के अंदर मुन्नी एक तरफ कोने में अपने घुटनों को मोड़कर हाथों से बंधे हुए बैठी हुई थी..
हाक़िम तम्बू में आते हुए - पूरा कबिला देख लिया.. और तुम यहां बैठी हो..
मुन्नी उठकर हाक़िम को गले लगाते हुए - तुमने आखिरकार अपने नाना जी का बदला ले लिया हाक़िम.. तु उस डाकी हो हरा कर सरदार बन ही गया.. तेरी माँ आज बहुत खुश है..
हाक़िम मुन्नी कि कमर थामकर उसके गर्दन पर अपने होंठ रखकर चूमता हुआ - ये सब मैंने नानाजी का बदला लेने के लिए नहीं किया मां.. नहीं इस कबीले का सरदार बनने के लिए मैंने डाकी को मारा है.. मैंने तो बस तुझे पाने के लिए यह सब किया है.. मैं तुझे कबीले की सरदारनी बनाता हुआ देखना चाहता हूँ..
मुन्नी हाक़िम से अलग होते हुए - यह कैसे मुमकिन है हकीम... मैं तेरी मां हूं और तू मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकता.. उर्मी के साथ तेरी शादी से हुई है और उसी के साथ होगी..
हाक़िम फिर मुन्नी को बाहों में भरता हुआ - मैंने कब उर्मि से विवाह के लिए मना किया है मां.. मगर उर्मी के साथ में तेरे और मौसी के साथ भी विवाह करूंगा.. तुम तीनो से विवाह करके मैं इस काबिले को नए वारिस दूंगा..
मुन्नी हाक़िम को देखते हुए - ऐसा नहीं हो सकता हाक़िम..
हाक़िम मुन्नी के घाघरे में हाथ डालता हुआ - सब होगा माँ.. मैंने कहा था ना सरदार बनने के बाद तेरी चुत मारूंगा..
मुन्नी - हाक़िम छोड़ मुझे.. मैं तेरी माँ हूँ..
हाक़िम छोड़ते हुए - और मैं इस काबिले का सरदार.. मौसी ने बताया है की जश्न में मुझे अपनी पसंदीदा औरत चुनने का पूरा अधीकार है.. जश्न के बाद मैं अपनी पसंद की औरत चुन लूंगा.. फिर देखता हूँ तू अपने सरदार का हुकुम कैसे नहीं मानती..
मुन्नी हाक़िम का हाथ पकड़ कर - हाक़िम.. क्या हो गया है तुझे? मैं तेरी माँ हूँ.. कुछ तो लिहाज़ कर..
हाक़िम - किस बात का? मौसी ने बताया है कि मेरे ऊपर किसी का दबाव नहीं होगा मैं जिसे भी चाहु अपना बना सकता हूँ.. आज जश्न के बाद मैं तुझे अपना बना लूंगा.. तैयार रहना माँ..
मुन्नी गुस्से के साथ हाक़िम को देखकर - अगर तू ऐसा करेगा तो मैं तुझे ललकार दूंगी और कल तेरा मेरा द्वन्द युद्ध होगा.. और तुझे मुझे भी मारना होगा..
हाक़िम प्यार से करीब जाकर मुन्नी को गले लगाते हुए - ललकार कर तो देख.. पुरे काबिले के सामने नंगा करके ऐसा चोदुँगा कि याद रखेगी..
मुन्नी - हाक़िम तू गलत कर रहा है अपनी माँ के साथ..
हाक़िम मुन्नी के होंठ चूमते हुए - मर्ज़ी तेरी है माँ.. मेरी दासी बनकर एक कोने में पड़े रहकर मुझसे प्रेम करना है या काबिले कि सरदारनी बनकर सबपर हुकुम चलाते हुए मुझसे प्रेम करना है..
मुन्नी - अगर मैं तेरी सारी बात मान लूं तो तूझे भी मेरे साथ एक वादा करना पड़ेगा..
हाक़िम मुन्नी के होंठों का रस पीता हुआ - बोल ना माँ..
मुन्नी गंभीरता से - तुझे मेरी हर बात माननी होगी.. और जो भी मैं कहु करना होगा..
हाक़िम मुस्कुराते हुए - मैं तेरा गुलाम बनकर रहूँगा माँ.. बस बिस्तर में तुझे मेरा गुलाम बनना पड़ेगा..
मुन्नी हाक़िम को दूर करते हुए - जा अपनी सरदारनी को जश्न के बाद अपनाकर मिलना..

काबिले मैं जलती हुई एक बड़ी सी आग के इर्द-गिर्द सभी कबीले के लोग जश्न बनाते हुए ढोल मंजीरे बजाते हुए नाचते गाते हुए झूम रहे थे गा रहे थे और खुशियां मना रहे थे वही जश्न में अब खाना भी लगने लगा था और सभी खुशी से खाते हुए नए सरदार को बधाइयां दे रहे थे और अपनी अपनी तरफ से तोहफे दे रहे थे.. हकीम सरदार की गाद्दी पर बैठा हुआ अपने सामने चल रहे जश्न को देखा हुआ खुशी से झूम रहा था उसके आसपास में कई दासियां और कई बांदीया थी.. जो डाकी के मरने के बाद अब उसकी दासियां बन चुकी थी.

जश्न के बाद जब काबिले के एक बुजुर्ग आदमी ने हकीम से अपने मनपसंद की औरतो को चुनकर अपने साथ रखने के लिए और सरदारनी बनाने के लिए कहा तो हकीम अपनी गाद्दी पर से उठ गया और सामने खड़े हुए कबीले के सभी लोगों को देखा हुआ बोला..
हाक़िम - मैं मेरे आस-पास में जितनी भी मेरी दासियां हैं उन सभी को आजाद करता हूं और उन्हें आजादी देता हूं कि वह काबिले में अपनी मनमर्जी से रह सकेंगी और अब उन्हें किसी के भी गुलाम बने रहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी..
बुजुर्ग - आपने ये नेक कार्य किया है अब काबिले से अपनी सरदारनी भी चुनो सरदार..
हाक़िम - मैं मुन्नी और शीला दोनों बहनो को जो मेरी माँ और मौसी भी है उन्हें सरदारनी बनाता हु.. और इसके साथ जैसा कि पहले तय था उर्मि को भी विवाह करके अपनी सरदानी बनाता हूँ..

कभी लेकर सभी लोग चकित थे कि कैसे हाक़िम ने बिना किसी लाज शरम और परवाह के अपनी बात कह दी थी और कबीले के सभी लोगों को अब उसकी बात माननी होगी.. काबिले के किसी भी व्यक्ति ने उसकी बात का निरादर नहीं किया और सहर्ष उसकी बात स्वीकार कर ली और अब काबिले के सरदार के रूप में हाकीम गाड़ी पर बैठा हुआ था और उसी के साथ में कुछ सेविकाओं ने मुन्नी शीला और उर्मी को साथ में तैयार करके हकीम की गद्दी के आसपास बैठा दिया..
हकीम ने एक साथ तीनों से विवाह किया और यह ऐलान कर दिया कि अब से उर्मि, मुन्नी और शीला इस कबीले की सरदारनी है और उनकी कोख से जो पहला बच्चा जन्मेगा वह आने वाला कबीले का वारिश होगा..

काबिले के सभी लोगों ने हकीम की बात को स्वीकार कर लिया और नाचते गाते हुए उसके नाम के जय-जय कार लगाते हुए जश्न के बाद अपने-अपने तंबू की ओर चले गए और सोने लगे..


जश्न समाप्त होने के बाद रात का समय हो चुका था जहां पर अंधेरी अमावस के काले प्रकाश ने धरती को अपने आगोश में ले लिया था और हर तरफ अधकार ही अंधकार था.. जंगल के मुहाने पर नदी के किनारे बसी हुई इस बस्ती को देखकर ऐसा लगता था जैसे संतकर में इस बस्ती में चलती हुई मसाले और लालटेन इस अंधकार को दूर कर रही है और जीवन का नया स्रोत बताती हुई रोशनी का प्रकाश फैल रही है..
हकीम नशे में चूर अपने सरदार की गद्दी से उठा और लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ अपने तंबू की ओर जाने लगा मगर रास्ते में ही उसने अपने तंबू से लगाते हुए दूसरे तंबू जहां दासी और बाँदिया दिया रहा करती थी उसमें जा घुसा..
हातिम ने देखा कि अब वहां कोई नहीं था और सिर्फ उर्मी और उसकी मां शीला वहा उपस्थित थी.. जो तंबू में लगे हुए बिस्तर पर अगल-बगल लेटी हुई सो रही थी..
हकीम लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ बिस्तर के ऊपर चला गया और गिरते हुए शीला के ऊपर आ गया..
गौतम के गिरने से उर्मी और शीला दोनों को पता लग गया है कि हकीम यहां आ गया है और उनके बिस्तर में आ लेटा है..
शीला हाक़िम को देखकर - सरदार...
हाक़िम शीला के होंठपर अपने होंठ रखते हुए - सरदार नहीं मौसी.. हाक़िम.. तुम्हारा हाक़िम..
उर्मि अपने बगल में लेटी हुई अपनी माँ के ऊपर हाक़िम को लटा देखकर गुस्से से भर गई और बिस्तर से उठने लगी तो हाक़िम ने शीला से चुम्बन तोड़कर उर्मि का हाथ पकड़ लिया और उसे वापस अपने पास खींचते हुए बोला मदिरा के नशे में - तू कहाँ जा रही है?
उर्मि अपनी माँ शीला के ऊपर लेटे हुए हाक़िम को गुस्से से देखकर बोली - तुमने अच्छा नहीं किया हाक़िम.. तूने मुझे सरदारनी बनाने का वादा किया था..
हाक़िम - बना तो दिया तुझे सरदारनी.. फिर क्यों रूठी हुई है..
उर्मि - मेरे साथ माँ और मौसी को क्यों बनाया.. तूमने अपनी माँ और मौसी से विवाह क्यों किया?
हाक़िम शीला के ऊपर से उठकर उर्मि को शीला के बगल लटाता हुए उर्मि के ऊपर आकर उसे चूमते हुए कहता है - इतना क्रोध अपने हकीम पर? किसी पराई से तो विवाह नहीं कीया ना.. देख तेरी मां को ऊपर से नीचे तक.. मौसी अब भी कितनी योवन से भरपूर है..
अगर मैं मौसी को नहीं अपनाऊगा तो कौन अपनायेगा उर्मि? डाकी ने दासी बना के रखा था मौसी और माँ को.. उनका क्या होता?
शीला करवट लेकर उर्मि और हाक़िम के पास आते हुए - उर्मि छोड़ दे अपना क्रोध.. हाक़िम ने कुछ गलत नहीं किया.. ये तो केवल हम तीनो को सुखी रखना चाहता है..
उर्मि - माँ आप बीच में मत बोलो.. और हाक़िम का पक्ष लेना बंद करो.. ये मेरे और मेरे पति के बीच की बात है..
शीला हाक़िम का गाल चूमती हुई - उर्मि अब हाक़िम मेरा भी पति है.. और हाक़िम पर मेरा भी उतना अधिकारी है जितना तेरा..
उर्मि - होगा.. किन्तु हाक़िम मुझे ज्यादा प्रेम करता है..
शीला - वो तो हाक़िम ही बता देगा..
हाक़िम शीला का बोबा पकड़कर मसलते हुए - तुम दोनों माँ बेटी हो या दुशमन? कैसे कुत्ते बिलियो जैसे लड़ती हो..
उर्मि हाक़िम का हाथ शीला के बोबे पर से हटाते हुए - लड़ाया भी तो तूमने है.. हम माँ बेटी को एकदूसरे सौतन बना दिया..
शीला हाक़िम का हाथ पकड़ कर अपने बोबे पर वापस रखवाती हुई - उर्मि हाक़िम हमारे पति के साथ साथ काबिले का सरदार भी है.. हाक़िम को खुश रखना हमारी पहली प्राथमिकता है..
हाक़िम नशे में - छोडो ना अब ये बातें.. तुम दोनों दासी के तम्बू में क्या कर रही हो...
उर्मि क्रोध से - जाकर अपनी माँ से पूछो.. जिसने हम दोनों को सरदार के तम्बू से निकाल कर यहां रहने को कहा है..
शीला - उर्मि.. मुन्नी का अधिकार हमसे पहले है हाक़िम पर.. और मुन्नी ने सिर्फ आज रात के लिए हमें यहां रहने के लिए कहा है..
उर्मि - कहा नहीं है माँ.. हुकुम सुनाया है मुन्नी मौसी ने.. हम दोनों को..
सरदार... सरदार.... बाहर से कोई आवाज डेता है हाक़िम - कौन?
मैं मंगरू सरदार...
हाक़िम हसते हुए शीला और उर्मि के बीच में पीठ के बल लेट जाता है और उनसे कहता है..
हाक़िम - लगता है मंगरू नहीं चाहता आज उसकी माँ और बहन एक साथ मुझसे चुदे..
उर्मि जोर से - क्या बात है मंगरू?
मंगरू - सरदार को मुन्नी मौसी ने सरदार के तम्बू में बुलवाया है..
हाक़िम खड़ा होने लगता है कहता है - जाकर बोल मैं आ रहा हूँ...
उर्मि हाक़िम का हाथ पकड़ कर - और हम? हाक़िम तुम आज रात हमें छोड़कर जाओगे?
शीला - उर्मि मत रोक हाकिम को.. जाने दे...
हाक़िम बारी बारी से शीला और उर्मि के होंठ चूमते हुए - आज रात की बात है.. कल से हर रात तुम्हारे नाम होगी..
हाक़िम खड़ा होकर तम्बू से बाहर निकल जाता है और अपने तम्बू में घुस जाता है..

हाक़िम जब तम्बू के अंदर घुसा तो उसने देखा कि मुन्नी बिस्तर पर बैठी हुई थी मैंने आज अपने आप को इस तरह तैयार किया था कि वह किसी दुल्हन की तरह लग रही थी और उसे देखकर कोई नहीं कर सकता था कि वह एक 38-40 साल की महिला है.. आज उसका रूप खुलकर सामने आया था और उसकी आभा इस अंधकार में रात को प्रकाश दे रही थी..
हाक़िम नशे में लड़खड़ाते हुए कदमों के साथ करने के पास आ गया और उसके पास बिस्तर पर बैठ गया..

हाक़िम प्यार से - बहुत सुन्दर लग रही हो माँ..
मुन्नी हाक़िम को देखकर मुस्कुराते हुए - तू भी तो चाँद का टुकड़ा लग रहा है..
हाक़िम अपनी टीशर्ट उतारते हुए - क्यों बुलवाया मुझे?
मुन्नी अपने हाथ से मदिरा का प्याला हाक़िम को देती हुई - एक पत्नी अपने पति को रात में अपने पास क्यों बुलाती है.. समझा नहीं आता तुम्हे? तुम्हे जो चाहिए वो देने बुलाया है..
हाक़िम प्याला लेकर एक तरफ रखते हुए - मदिरा पिने से ज्यादा आंनद तो तुम्हारे होंठ चूमने से आता है माँ..
मुन्नी हाक़िम को अपने ऊपर खींचती हुई - तो चुम ले अपनी माँ के होंठ हाक़िम.. तेरी माँ अब तेरी है..
हाक़िम मुन्नी के होंठ पर अपने होंठ रखते हुए - बहुत मीठे होंठ है माँ तेरे..
मुन्नी चूमते हुए - हाक़िम... तूने अपने होंठो से मेरे होंठ मिलाकर मेरे होंठों को अपना गुलाम बना लिया है.. तेरा इतना प्यार से चूमना मेरे अंग अंग में नई उमंग भर रहा है.. आज मेरी देह के साथ मेरा मन भी तुझे अपनाने को आतुर है.. मैं अपनेआप को तेरे कदमो में समर्पित करती हूँ हाक़िम..
हाक़िम ने टीशर्ट उतार दी थी और अब कमर से ऊपर नंगा था उसने मुन्नी की चोली खोलकर उसपर तने हुए चुचक छेड़ते हुए कहा - माँ तेरे मन की सारी व्यथा तेरी छाती पर तनकर खड़े हुए स्तन के ये दाने बता रहे है.. मैं जानता हूँ जितना मैं तुझे पाने को आतुर हूँ उतना ही तू भी मुझे अपनाने के लिए उत्सुक है.. मेरे सीने में तीर की तरह चुभते तेरे दोनों चुचक इस बात का प्रमाण है कि हमारा मिलन वासना नहीं प्रेम है.. माँ मैं आज भी बचपन की तरह तेरे इन दोनों स्तन से दूध पीना चाहता हूँ.. क्या तुम मुझे दूध पीलाओगी?
मुन्नी हाक़िम का सर पकड़कर उसके मुंह में अपना एक बोबा देती हुई - हाक़िम.. तू कबसे मुझसे पूछने लगा.. बचपन में तो भागता हुआ आकर मेरी चोली सरकाता हुआ अपना ये प्यारा मुंह मेरे स्तन से लगा देता था और मन भरके दूध पी लेता था.. आज तू अपनी माँ का दूध पिने से पहले पूछ रहा है.. हाक़िम मैं तेरी माँ हूँ मेरा दूध पिने के लिए तुझे मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता?
हाक़िम बोबा चूसते हुए - माँ तेरे स्तन से अब अमृत की धार नहीं बहती.. लगता है तेरे छाती में दूध जम गया है..
मुन्नी हाक़िम का सर सहलाती हुई - कुछ महीनों बाद फिर से निकल आएगा मेरे बच्चे... फिर जी भरके पी लेना अपनी माँ का दूध.. तुझे कोई नहीं रोकने वाला..
हाक़िम अपने दोनों हाथों से मुन्नी के छाती के सुडोल और उन्नत उभार का मर्दन करता हुआ चूसता हुआ कहता है - माँ उस के लिए तो हमें कुछ करना पड़ेगा.. जिसमे तुम्हे दर्द झेलना पड़ेगा..
मुन्नी मुस्कुराते हुए हाक़िम के मुंह से होना बोबा निकालकर उसके होंठो पर चुम्बन करती हुई - मैं हर पीड़ा झेलने को तैयार हूँ हाक़िम.. तूने तो अपनी माँ की छाती से मुंह लगा लिया मुझे भी तेरे सीने से मुंह लगाने दे हाक़िम..
हाक़िम बिस्तर पर पीठ के बल लेट जाता और मुन्नी उसके सीने पर आकर अपनी जीभ से हाक़िम के निप्पल्स चाटने लगती है फिर अपने दोनों होंठो लगाकर ऐसे चुस्ती है जैसे हाक़िम के निप्पल्स में से दूध निकाल देगी.. हाक़िम आहे भरते हुए कामुकता से सिसकियाँ भरने लगता है और अपनी माँ मुन्नी की चुदाई कला और ज्ञान से प्रभावित होकर मुन्नी को अपने सीने के दोनों निप्पल्स चुसवाने लगता है..
हाक़िम - अह्ह्ह.. माँ खा जाओगी क्या मेरे निप्पल्स को..
मुन्नी हाक़िम के निप्पल्स चूसना छोड़कर होठो पर आते हुए - हाक़िम.. पता है जब बचपन में तुझे अपने अलग सुलाती थी तब तू हर रात वापस मेरे पास आकर मेरे ऊपर चढ़कर सो जाता था.. मुझे कितना सुख मिलता था तेरे मेरे ऊपर सोने से.. तू तब मुझे प्राण से प्रिय था और अब भी मुझे प्राण से प्रिये है...
हाक़िम मुन्नी के होंठो को चूमकर अपने पेंट खोलकर नीचे सरकाते हुए - माँ.. पुरे काबिले में तुझसे सुन्दर कोई और औरत नहीं है.. मैं बहुत पहले से तुझे पाने के स्वप्न देखता आया हूँ आज मेरा स्वप्न पूरा होगा...
मुन्नी अपना घाघरा खोलते हुए - हाक़िम.. तू मेरा पुत्र और सरदार दोनों है तेरा हर हुकुम मानना मेरा काम.. ले आज तेरी माँ तेरे आगे अपना सबकुछ हार जाना चाहती है.. आ मेरे हाक़िम.. कर ले अपनी हठ पूरी..
हाक़िम अपनी माँ मुन्नी कि चुत पर आकर उसकी चुत को करीब से देखकर सहलाता है और फिर एक नज़र अपनी माँ मुन्नी को देखकर अपने होंठ झट से मुन्नी कि गुलाबी चुत पर लगा कर चुत चाटना शुरु कर देता है..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम ये क्या कर रहा है तू.. ऐसा मत कर.. ये बुरा है.. अह्ह्ह्ह... हाक़िम... नहीं...
मुन्नी को अब से पहले चुत चटवाने का सुख नहीं मिल पाया था और अब हाक़िम उसकी चुत चाटकर उसे सुखी कर रहा था जिसे मुन्नी ऊपरी तौर से नकारते हुए अंदर ही अंदर काम सुख कि तृप्ति से भरी जा रही थी उसकी कामुकता चरम ओर थी और हाक़िम के चुत चाटने के कुछ ही मिनटों में वो किसी सुनामी कि तरह बह गई और अकड़ते हुए झड़ गई..
मुन्नी शर्म से पानी पानी होकर अपना मुंह उतरी हुई चोली से ढक्कर छिपाने लगी और हाक़िम से शर्माने लगी..
हाक़िम मुन्नी के चेहरे से चोली हटाकर उसके मुखड़े को देखता हुआ कहता है - इतनी लाज करने कि क्या आवश्यकता माँ.. अब मैं तेरा पति भी हूँ..
मुन्नी - हाक़िम तूने ये क्या किया.. वहा होंठ नहीं लगाते मगर तू लगा रहा है और मैं अपने आपे से बाहर हो रही हूँ..
हाक़िम - मैं जानता हूँ माँ तुम बहुत प्यासी हो और काम सुख से वंचित भी.. मैं तुम्हे आज पूरा तृप्त कर दूंगा..
मुन्नी - हाक़िम अब वहा होंठों से मत छूना.. मुझे लाज आएगी..
हाक़िम - छूना तो पड़ेगा माँ.. तू मेरी छुलो... मैं तुम्हारी छू लेता हूँ..
मुन्नी हैरानी से - क्या?
हाक़िम मुन्नी के ऊपर आकर 69 कि पोजीशन में आता हुआ - माँ आरम्भ करो..
मुन्नी - क्या? अह्ह्ह्ह..
हाक़िम फिर से अपनी माँ मुन्नी कि चुत को मुंह में लेकर चूसना चाटना शुरु कर देता है और मुन्नी सिसकियाँ लेते हुए हाक़िम के अपने मुंह पर लटक रहे लंड को देखने लगती है जो उसके मुंह पर खड़ा हुआ पड़ा हुआ था... मुन्नी ने चुत चटाई का मज़ा लेते हुए हाक़िम का लंड पकड़ कर बिना कुछ सोचे समझें मुंह में भर लिया और वो भी चूसने लगी..
69 में दोनों माँ बेटे एक दूसरे के गुपतांग को मुंह से मज़ा दे रहे थे.इस बार भी मुन्नी से रहा ना गया और वो झड़ते हुए हाक़िम के मुंह पर ही फारीक हो गई और उसके मुंह से हाक़िम का लंड निकल गया..
हाक़िम अपना चेहरा मुन्नी के घाघरे से साफ करके बिस्तर पर घुटनो के बल खड़ा हो जाता है और अपने सामने शर्म से लाल होकर चेहरा छुपाती अपनी माँ मुन्नी को देखता है जो किसी नई नवेली दुल्हन सी शर्म से हाक़िम के सामने नग्न होकर बैठी थी..
हाक़िम ने मुन्नी का हाथ पकड़ के अपनी तरफ खींचा और उसके बाल पकड़ कर अपने लंड पर झुकाते हुए अपनी माँ मुन्नी के मुंह में वापस अपना लंड घुसा दिया और उसे लंड चूसा दिया.. मुन्नी शर्म से हाक़िम का लंड मुंह में भरकर चूसे जा रही थी..
हाक़िम काम के सुख से अभीबूत होकर आँख बंद करके अपनी माँ से मुखमैथुन का सुख ले रहा था और उसका दिल मुन्नी पर आता जा रहा था...
हाक़िम ने थोड़ी देर अपनी माँ मुन्नी को अपना लंड चूसाने के बाद उसे लेटा दिया और उसकी चुत पर अपना लंड रगढ़ते हुए छेद पर लगा कर दबाव ड़ालते हुए अपनी माँ मुन्नी कि चुत में लंड पेल दिया..
मुन्नी दर्द और सुकून के मिश्ररित भाव से - अह्ह्ह्ह... हाक़िम... अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह...
हाक़िम अपना आधा लंड अंदर करके - उफ्फ्फ माँ.. कितनी टाइट है तेरी चुत..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम.. धीरे करना..
हाक़िम - डाकी कि रखैल बनने के बाद भी इतनी सिकुड़ी हुई चुत..
मुन्नी - हाक़िम.. डाकी बहुत कम हाथ लगाता था मुझे.. उसे नई नई जवाँ हुई औरत ही पसंद थी..
हाकिम - तू चिंता मत कर माँ अब मैं हाथ लगाऊंगा ना तुझे..
मुन्नी ने सिसकियाँ लेते हुए हाक़िम का पूरा लंड चुत में ले लिया और हाक़िम मुन्नी के चेहरे पर दर्द और सुकून के घुले हुए भाव देखकर कामुकता से उसे मिशनरी पोज़ में चोदने लगा..
मुन्नी - अह्ह्ह.. हाक़िम आराम से.. तेरी माँ हूँ..
हाक़िम मिशनरी पोज़ अपनी माँ मुन्नी की चुत मार रहा था और मुन्नी कामुकता और मादकता के मिश्रित भाव अपने चेहरे पर लाकर सिसकियां लेते हुए अपने बेटे हाकिम से चुदवा रही थी.. दोनों के संभोग की खबर तंबू के आसपास तैनात पहरेदार को भी हो रही थी..

मुन्नी कि चुत का जादू हाक़िम पर चल गया था और वो अपनी सिसकियाँ भरती हुई माँ को देखते हुए उसकी चुत में उसीके साथ झड़ गया..
मुन्नी शर्माते हुए - और कोई हुकुम मेरे सरदार.. जो आपकी ये दासी पूरा कर सके..
हाक़िम अपनी माँ का बोबा मसलते हुए - हाँ...
मुन्नी - क्या सरदार..
हाक़िम मुन्नी को पकड़कर घोड़ी बनाते हुए - तेरी सवारी करनी है माँ..
मुन्नी अपने दोनों हाथ पीछे करके हाक़िम को देती हुई - कर लो सरदार अपनी घोड़ी की सवारी..
गौतम चुत में लंड पेलकर अपनी माँ के दोनों हाथ पकड़ लेता है और पीछे से झटके पर झटके मारने लगता है जिसकी आवाज तम्बू से बाहर जा रही थी और पहरेदार के कान में साफ साफ सुनाई पड़ रही थी..
हाक़िम ने अपनी माँ मुन्नी को इस तरह कुछ देर तक चोदा और फिर उसके हाथ छोड़ कर बाल पकड़ लिए और जोर जोर से झटके मारते हुए मुन्नी की चीखे निकाल दी जिससे बाहर खड़े पहरदार भी चीखे सुनकर कामुक हो उठे और लंड पकड़ कर हिलाने लगे...
हकीम ने इतनी जोर से झटके मारे की मुन्नी रोते हुए हाथ छोड़कर उससे विनती की कि उसे छोड़ दे और छोड़कर उसे आराम करने दे..
हाक़िम अपनी माँ को पीछे से घोड़ी बनाकर बाल पकड़ के चोद रहा था और उसकी माँ मुन्नी रोते हुए आगे हाथ जोड़कर हाक़िम से उसे छोड़ देने को कह रही थी.. मुन्नी की हालत खराब होने लगी थी और वो चुत में झटके खाते हुए आह्ह.. उह्ह्ह... करती हुई हाक़िम के सामने गिड़गिड़ा रही थी..
हाक़िम को अपनी माँ पर तरस आ गया और उसने चुत से लंड निकाल दिया और अपनी माँ को पलट दिया फिर कमर में हाथ डालकर उठा लिए और खड़ा होकर उसे लंड पर उछाल उछाल कर चोदने लगा जिसमे मुन्नी को पहले की तुलना में कम दर्द हो रहा था और वो हाक़िम के गले में हाथ डालकर उसके लंड से झटके खा रही थी...
मुन्नी शर्म के मारे आंख बंद करके सिसक रही थी और हाक़िम उसे चोदे जा रहा था..
हाक़िम तम्बू के अंदर बीच में नंगा खड़ा होकर अपनी नंगी माँ को ऐसे चोदे जा रहा था जैसे वो कोई सस्ती रंडी हो..
हाक़िम को अपनी माँ मुन्नी की चुत का नशा हो गया था उसने मुन्नी को चोदते हुए मदिरा का प्याला पी लोया औरक पल के लिए मुन्नी को बिस्तर ओर पटक दिया और प्याले में और मदिरा डालकर पिने लगा..
मुन्नी रोरही थी और सोच रही थी की उसका बेटा हाक़िम कितना बड़ा चोदू राजा है.. मुन्नी ने अपने आंसू पोंछ लिए और अपनी चुत को देखा जो पानी से गीली थी और गुलाबी से लाल होकर हलकी सूज चुकी थी...
मुन्नी समझ चुकी थी कि अगर वो यहां रहेंगी तो हाक़िम उसके रातभर चैन से नहीं सोने देगा ना ही प्यार चोदेगा.. हाक़िम पर नशा हो चूका था..
मुन्नी ने मौका देखा और अपने कपड़े हाथ में लेकर तम्बू के पीछे से चुपचाप निकल के लंगड़ाकर लचकती हुई भागने लगी.. हाक़िम ने जब अपनी माँ को तम्बू के पीछे से भागते देखा तो मुस्कुराते हुए अपनी जीन्स से सिगरेट और लाइटर लेकर चलता हुआ नंगा ही तंबू के पीछे मुन्नी के पीछे चल दिया..
मुन्नी लचकती हुई और लंगड़ाती हुई तंबू के पीछे से भागकर जंगल की तरफ भाग गई.. कुछ दूर जाने के बाद वो उसी छप्पर पर आकर एक पत्थर पर बैठ गई और कपड़े पहनने ही वाली थी हाक़िम ने मुन्नी के कपड़े छीन लिए और दूर फेक दिए..
मुन्नी - हाक़िम मैं और नहीं झेल पाउंगी तुझे.
हाक़िम सिगरेट जलाता हुआ - माँ आज रात तो मुझे झेलना ही होगा..
मुन्नी - तू मदिरा पी कर धुत है हाक़िम.. इतना जोर से करेगा तो मैं कैसे तुझे संभाल पाउंगी..
हाक़िम - अब प्यार से करूँगा माँ.. आजा..
मुन्नी ना चाहते हुए भी हाक़िम के करीब आकर खड़ी हो गई और हाक़िम ने मुन्नी के होंठो को चूमना शुरू कर दिया और इस बार उसी जगह घास में लिटा कर झटके मारने शुरू कर दिया..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह... हाक़िम.. प्रेम से..
हाक़िम - हां माँ..
हाक़िम पीठ के बल घास में लेट गया और मुन्नी को अपने ऊपर खींचकर झटके मारने लगा..
मुन्नी हाक़िम को चूमते हुए - अह्ह्ह तू कब और कैसे इतना बड़ा बन गया रे.. मुझे तो पता ही नहीं चला..
हाक़िम चुत में झटके मारता हुआ - जामुन खाके माँ..
मुन्नी - इसी प्रेम से मुझे अपना बनाके रखेगा ना हाक़िम..
हाक़िम - हां माँ... हमेशा तुझे अपना बनाके रखूँगा..
मुन्नी - वापस चल ना हाक़िम.. यहां कोई जानवर आ जाएगा..
हाक़िम मुन्नी को लंड पर ही बैठाके वापस तम्बू की तरफ चल देता है और रास्ते में लंड पर उछाल उछाल के अपनी माँ मुन्नी को छेड़ता हुआ मज़े लेता है जीपर मुन्नी शर्म से पानी पानी होकर मुस्कुराते हुए हाक़िम के सीने में अपने मुंह छिपा लेती है..
हाक़िम मुन्नी तम्बू के पीछे से ही वापस तम्बू के अंदर ले आता है और बिस्तर में पटक के वापस मिशनरी में धीरे धीरे अपनी माँ को अपना प्रेम बताते हुए चोदने लगता है..
हाक़िम - अब तो नहीं भागेगी ना माँ..
मुन्नी - अह्ह्ह हाक़िम... इतना प्रेम से मुझे भोगेगा तो क्यों भागने लगी मैं...
हाक़िम - गलती हो गई माँ जो थोड़ा जोर लगा दिया मैं..
मुन्नी - अह्ह्ह्ह.. थोड़ा जोर.. हाक़िम तूने तो मेरे प्राण ही निकाल दिए थे.. अब वैसा मत करना..
हाक़िम - अकड़ क्यों रही है.. होने वाला है क्या माँ तेरा..
मुन्नी - हाँ हाक़िम.. अह्ह्ह्ह...
हाक़िम - मैं भी झड़ने वाला हूँ माँ...
हाक़िम और मुन्नी एकसाथ झड़ जाते है और दोनों एक दुसरे के बदन से लिपटे हुए एक दूसरे जो देखने लगते है..
हाक़िम - क्या देख रही हो माँ..
मुन्नी हाक़िम को चूमकर - तुम्हे मेरे सरदार...
हाक़िम मुन्नी को अपने ऊपर खींचकर उसके होंठो के करीब अपने होंठ लाकर उसकी साँसे अपनी साँसों से मिलाते हुए - हाक़िम.. मुन्नी का हाक़िम..
मुन्नी चूमते हुए - तूने तो खड़े होने लायक़ नहीं छोड़ा मेरे हाक़िम..
हाक़िम हसते हुए - खड़े होकर क्या करेगी माँ.. अब तो तेरे लेटने का समय है..
मुन्नी शर्म हसते हुए - धत...

सुबह सुबह की पहली किरण निकलते ही हकीम तंबू से बाहर आ गया और अंगड़ाइयां लेते हुए इधर-उधर देखने लगा उसने कबीले में सब तरफ देखा और इस मनोहर सुबह को महसूस करता हुआ टहलने लगा.. उसके सिपाही ढोला गोला बासा मंगरू मुंडा जागा पौखा सब उसे सालामी दे रहे थे..
और तुम कुछ देर घूम कर वापस अपने तंबू में आ गया और उसने देखा की मुन्नी अब भी उसी तरह प्यार से सो रही है.. उसने प्यार से मुन्नी को जगाया..
हाक़िम - सुजार चढ़ आया है माँ..
मुन्नी मुस्कुराते हुए हाक़िम को अपनी तरफ खींचकर चूमती हुई - रात को सोने नहीं दिया और अब भी सोने से मना करहा है.. बड़ा जालिम है रे तू..
हाक़िम पेंट खोलकर मुन्नी के ऊपर से चादर हटाकर उसकी चुत में लंड पेलता हुआ - सरदार को जालिम कहती हो.. सजा तो मिलेगी माँ..
मुन्नी हसते हुए - आराम से.. बहुत दर्द हो रहा है..
हाक़िम धीरे धीरे चोदते हुए - ये तो मुझे जालिम बोलने से पहले सोचना चाहिए था..
उर्मि और शीला तम्बू में आते हुए - हम भी तुम्हारी पत्नी है सरदार.. सिर्फ तुम्हारी माँ का अधिकार नहीं तुमपर..
हाक़िम दोनों को बिस्तर में आने का इशारा और मुन्नी की चुत से लंड निकालकर बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया उसका लंड खड़ा था जिसे शीला ने आगे बढ़ कर अपने मुंह में ले लिया और मुन्नी भी शीला के साथ हाक़िम के लंड को चूसने लगी..
दोनों बहने हाक़िम के लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे बच्चे लॉलीपॉप को..
हाक़िम ने उर्मि को अपने पास खींचते हुए उर्मि के होंठो को चुम लिया..
शीला और मुन्नी हाक़िम के दोनों आण्डों को मुंह में लेकर प्यार से चूस रही थी और अब उर्मि मुन्नी और शीला के बीच बैठकर उसके लंड को चूसने लगी..
हाक़िम मुन्नी शीला और उर्मि तीनो को अपने लंड और आंड चूसते चाटते देखकर काम के सुख से ओत प्रोत हो गया था..
और अब उसने तीनो की चुदाई एक साथ करनी शुरू कर दी..

हाक़िम अपनी माँ मौसी और बहन की चुत में ऐसा खोया कि उसे पता ही नहीं चला कब एक महीना उसे होने का आ गया..



Mast update
 

Ek number

Well-Known Member
8,409
18,081
173
Update 53

सरदार... सरदार..

क्या हुआ ढोला.. सुबह सुबह क्यों आये हो? क्या बात है?

सरदार.. नदी का प्रवाह बढ़ने लगा है.. इस बार बारिश में नदी के आसपास की सारी जगह डूबने की सम्भावना है.. आस पास के काबिले अपना पड़ाव यहां से उठाकर कहीं और डालने की बात कर रहे है.. हमें भी कोई कदम उठाना होगा..

हाक़िम - ठीक है ढोला.. तुम आज काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए कोई और जगह देखो और रात को मुझे बताओ... कल हम यहां से अपना पड़ाव उठा लेंगे और नदी के बहाव क्षेत्र से दूर चले जाएंगे.. मंगरू को भी अपने साथ ले जाना..

ढोला - सरदार... कल पढ़ाव उठाना अशुभ होगा.. कल अमावस्या है.. और नदी का प्रवाह कभी भी असामान्य रूप से बढ़ सकता है..

हाक़िम चौंकते हुए - कल अमावस्या है?

ढोला - हाँ सरदार.. कल अमावस्या है.. और मैंने काबिले का अगला पड़ाव डालने के लिए जगह भी देख ली है जो यहां से 12 मिल दूर पूर्बमें है.. हमें आज ही यहां से अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम गहरी सोच में खो जाता है जिसे उस सोच से बाहर निकालते हुए ढोला आगे कहता है - क्या हुआ सरदार? किस स्वप्न में चले गए.. हमें आज ही अगले पढ़ाव के लिए निकलना होगा..

हाक़िम - ठीक है.. तुम मंगरू के साथ पुरे काबिले को कह दो कि हम अगले पढ़ाव के लिए सूरज चढ़ते ही निकलेंगे..

ढोला - ठीक है सरदार..

हाक़िम - ढोला..

ढोला - जी सरदार...

हाक़िम - मैं जागीरदार से मिलने जा रहा हूँ तुम मंगरू के साथ मिलकर पुरे काबिले को अगले पढ़ाव तक ले जाओ.. मगर ध्यान रहे.. अगले पढ़ाव पर पानी कि उचित व्यवस्था हो..

ढोला - मैं सब देख चूका हूँ सरदार.. वहा एक छोटा पानी का स्रोत है जो नदी से निकलता है और अविरल बहता है.. आप निश्चित होकर जागीरदार से मिल आइये मगर सरदार पौखा बता रहा था आज जागीरदार किसी पर हमले के लिए सेना लेकर निकल चूका है.. सरदार.. जागीरदार वीरेंद्र सिंह ने आस पास की सारी रियासत तो पहले ही जीत ली अब पता नहीं किसपर हमले के लिए सेना लेकर जा रहा है...

हाक़िम - ढोला क्या कह रहा है? ये कब हुआ?

ढोला - सरदार आप पिछले एक महीने से आपकी पत्नियों के साथ थे.. मंगरू ने आपको बताना भी चाहा मगर आपने उसे जाने को कह दिया.. मैंने भी इन गतिविधियों से आपको सचेत करने का प्रयास किया किन्तु ऐसा करने में नाकाम रहा..

हाक़िम - मतलब बैरागी...

ढोला - बैरागी की मृत्यु हो चुकी है सरदार.. अफवाह है की जागीरदार ने उसकी हत्या कर दी.. रानी सुजाता भी मारी गई..

हाक़िम सर पकड़ के बैठता हुआ - इसका मतलब.. अब मैं बैरागी से नहीं मिल पाऊंगा..

ढोला - सरदार ये आप क्या कर रहे है.. हमें अभीकुछ देर में निकलना होगा..

हाक़िम - वीरेंद्र सिंह.. उसके पास जदिबूती की सारी जानकारी होगी.. इससे पहले की जोगी उससे नर्क दिखाए.. मुझे अब उससे ही मिलकर मुझे वो जदिबूती हासिल करनी पड़ेगी..

ढोला - कोनसी जदिबूती.. और कौन जोगी सरदार..

हाक़िम - कुछ नहीं ढोला.. तुम पुरे काबिले को कह दो की पढ़ाव की जगह बदलने वाली है सब अपना सामान बाँध ले..

ढोला जाते हुए - जी सरदार..



मंगरू - आपने बुलाया सरदार..

हाक़िम - मंगरू मैं जागीरदार के पास जा रहा हूँ.. ढोला ने एक नई जगह देखी है जहाँ अगला पढ़ाव डाला जाएगा.. उर्मि के साथ माँ और मौसी सकुशल अगले पड़ाव तक पहुंच जाए ये तुम्हारा काम है..

मंगरू - जी सरदार.. मैं समझा गया.. मगर आपका जागीर जाना उचित नहीं होगा.. पौखा ने कहा है जागीरदार बदल गया है अब वो काबिले के सरदारो से नहीं मिलता..

हाक़िम - वो सब तू मुझपर छोड़ दे मंगरू.. तू बस वही कर जो मैं कहता हूँ..

मंगरू - जी सरदार..



हाक़िम काबिले से चल देता है और जागीरदार के महल के पास पहुंचते पहुंचते सूरज चढ़ आया था और महल के आस पास हाक़िम लोगों को भागता हुआ देखता है.. हर तरफ अफरा तफरी मची हुई थी.. ऐसा लगता था की लोग अपनी जान बचा के वहा से भाग रहे है..



हाक़िम जब तक महल के दरवाजे पर पंहुचा उसने देखा की वहा कोई नहीं था और हर तरफ उजाड़ और ताबही का मंजर था.. वीरेंद्र सिंह को उसने महल के हर कोने में और आस पास की हर जगह देखा मगर उसे कहीं नहीं पाया.. हाक़िम सोच रहा था की अब वो क्या करेगा? कैसे जड़ी बूटी हासिल करेगा?



हाक़िम वीरेंद्र सिंह को ढूंढ़ते हुए दुपहर की शाम कर चूका था मगर उसका कहीं पता नहीं था और अब हाक़िम यही सोच रहा था की वो वापस जाकर वीरेंद्र सिंह और बैरागी को क्या जवाब देगा?



हाक़िम अपने आप को इस सब का दोष देने लगा की वो भोग विलास में इतना डूब गया की उसे अपने लक्ष्य की याद ही नहीं रही..



हाक़िम काबिले के अगले पड़ाव की और चल दिया था की रास्ते में उसे जोगी की याद आई और वो सोचने लगा की जोगी को वीरेंद्र का पता होगा और वो वीरेंद्र सिंह को जरुर ढूंढ़कर उसे बता सकता है मगर अब जोगी उसे कहा मिलेगा? हाक़िम को उसी जगह की याद आई जागा जोगी की कुटीया थी.. हाक़िम तेज़ी से अपने कदम बढ़ाता हुआ जोगी की उस कुटिया के पास आ गया जहाँ उसने देखा की जोगी घोर विलाप के आंसू अपनी आँखों से बहा रहा है और वो जहाँ बैठा है वो मृदुला की क़ब्र थी..



हाक़िम - एक्सक्यूज़ मी अंकल...

जोगी अपनी रूआसी आँखों मी गुस्सा भरके हाक़िम की तरफ देखकर - कौन है तू और यहां क्या कर रहा है?

हाक़िम - अंकल मैं फ्यूचर.. मतलब भविष्य से आया हूँ और आपकी मदद चाहता हूँ..

जोगी - मैं तेरी कोई मदद नहीं कर सकता लड़के चला जा यहां नहीं तो मेरा क्रोध मुझे तेरे प्राण लेने पर विवश कर देगा.. चला जा अपने प्राण बचाके यहां से..

हाक़िम - देखो अंकल.. मैं चला जाऊँगा तो बहुत गलत हो जाएगा.. जिन लोगों ने मुझे यहां भेजा है उन्होंने कुछ काम देकर भेजा था मगर मैं वो काम नहीं कर पाया.. अगर वापस जाऊँगा तो मुझसे मेरा बड़ा लंड... मतलब मेरी शक्तियां छीन लेंगे और मुझे वापस दुख दर्द तकलीफ के साथ जीने को मजबूर कर देंगे.. आप प्लीज मेरी मदद करिये..

जोगी - लड़के तू मेरी बात मान और चला जा यहां से नहीं तो तेरे लिए ये घड़ी जीवन की अंतिम घड़ी हो जायेगी..

हाक़िम - मैं बिना आपसे मदद लिए नहीं जाऊँगा अंकल..

जोगी अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए - तू ऐसे नहीं मानेगी.. बता तुझे क्या चाहिए..

हाक़िम - अंकल.. वीरेंद्र सिंह का पता चाहिए..

जोगी क्रोध से - तू वीरेंद्र सिंह के साथ है? मैं तुझे जीवित नहीं छोडूंगा..

ये कहते हुए जोगी ने अपने सुला हाक़िम की तरफ फेंका मगर जोगी का सुला हाक़िम के ऊपर आकर बेअसर हो गया और जोगी हाक़िम को रहस्य की निगाहो से देखने लगा.. जोगी ने हाक़िम के गले में वही ताबिज़ देखा जो उसने बैरागी के गले में देखा था जब उसने बैरागी की क़ब्र के पास पड़ा हुआ देखा था.. और जोगी समझा चूका था की ये ताबिज़ वही है और इसके करण ही हाक़िम की रक्षा हुई है..

जोगी गुस्से में - तू वीरेंद्र सिंह को क्यों पूछ रहा है?

हाक़िम - जदिबूती के लिए..

जोगी - कोनसी जदिबूती?

हाक़िम - अरे वही जिसे खाकर वो अगले 800 सालों के लिए अमर हो गया.. मगर आपने उससे सारा भौतिक सुख छीनकर उसे धरती पर नर्क भोगने के लिए आजाद के दिया.. मैं उस जदिबूती के बारे में वीरेंद्र सिंह से पूछना चाहता हूँ जिससे मे वापस भविष्य में जा सकूँ.. और वापस भविष्य में जाकर वीरेंद्र सिंह को वही जड़ीबूटी खिला सकूँ जिससे वीरेंद्र सिंह मर कर मुक्त हो सके और बैरागी आगे आयाम पर जा सके..

जोगी - तू कैसे जानता है आज बैरागी को मैंने वीरेंद्र सिंह के सर पर बाँध दिया है..

हाक़िम आगे आते हुए - देखो अंकल... मैंने कहा मैं भविष्य से आया हूँ..

जोगी का शेर दहाड़ने लगता है..

हाक़िम - अंकल संभालो इस शेर को.. कहीं काट वात लेगा तो मैं जान और जहान दोनों से चला जाऊँगा..

जोगी - मैं तेरी मदद नहीं करूँगा लड़के.. तू जा यहां से वरना मैं तेरे गले से ये ताबिज़ निकालकर तेरी जान ले लूंगा..

हाक़िम पास आकर बैठते हुए - अंकल.. मैं जानता हूँ आपको दुख है तकलीफ है और मृदुला के जाने की बहुत पीड़ा है.. पर आपने वीरेंद्र सिंह के साथ बैरागी को भी सजा दे दी.. जो उन्होंने 300 सालों तक भोगा है.. अब और नहीं अंकल.. आप अपना गुस्सा शांत करके मेरी मदद करो अंकल...

जोगी - तू मुझसे झूठ कहता है.. तू भविष्य से कैसे आ सकता है.. भूतकाल और भविष्य पर किसका जोर चलता है..

हाक़िम - आज नहीं चलता मगर हो सकता है आगे चलकर चले.. देखो.. मैं झूठ नहीं बोल रहा है.. मेरा विश्वास करो... वीरेंद्र सिंह अब हर साधू सन्यासी और तांत्रिक के पास जाकर आपके बंधन को काटने की विद्या सीखेगा मगर उसे सफलता नहीं मिलेगी और आखिर में वो मुझे भविष्य से यहां अपने पिछले जन्म में भेजेगा..

जोगी हाक़िम के सर पर हाथ रखकर उसकी सारी यादे देखता है... और जब वापस आता है उसके मुंह से आवाज आती है - मृदुला..

जोगी - मृदुला??

हाक़िम - क्या हुआ? मृदुला... अंकल ओ अंकल.. प्लीज मुझे वीरेंद्रसिंह के पास वापस वो जदिबूती लेकर जाने में मेरी मदद करें..

जोगी - मुझे ले चल बेटा... अगले जन्म में मुझे ले चल..

हाक़िम - मुझे जड़ी बूटी लेकर जाना है अंकल... आपको लेजाकर क्या करूँगा...

जोगी - अगर तू मुझे नहीं ले जाएगा तो मैं तुझे यही समाप्त कर दूंगा.. मुझे मेरी मृदुला से मिलना है.. मैंने जाते हुए उससे वादा किया था..

हाक़िम - पर मृदुला तो आपको छोडके जा चुकी है.. आप कैसे उसे मिलोगे?

जोगी - मृदुला ने कुसुम बनकर जन्म लिया है.. और अगर तू मुझे अपने साथ लेकर नहीं गया और मुझे मेरी मृदुला से नहीं मिलवाया तो मैं तेरा काबिला समाप्त कर दूंगा...

हाक़िम - ठीक है ठीक है.. पर वीरेंद्र सिंह का क्या? बैरागी? वो कैसे मुक्त होंगे?

जोगी - तू मुझे उनके पास ले जा मैं उसका बंधन खुद ही काट दूंगा और वो मेरे बंधन से आजाद हो जाएंगे..

हाक़िम - पर मेरी शर्त है..

जोगी - क्या?

हाक़िम - मुझे ये पावर चाहिए जैसे आप सर पर हाथ रखकर सब देख लेते हो मुझे भी सीखना है..

जोगी - ये एक सिद्धि है बेटा.. अगर तू मुझे वापस ले गया तो मैं तुझे ये सिद्धि दे दूंगा..

हाक़िम - ठीक है.. कल सुबह मुझे जंगल पूर्व वाली झील पर मिलना..

जोगी - और एक बात सिर्फ मृदुला का ही नहीं मुन्नी का भी अगला जन्म हुआ है तेरे ही समकालीन..

हाक़िम - कौन?

जोगी - प्रमिला..

हाक़िम - मेरी माँ मुन्नी अगले जन्म में मेरी बुआ पिंकी है...

जोगी - हाँ... अब जा कल मैं तुझे झील के पास मिलूंगा सुबह समय से आ जाना...



*************



इतना समय क्यों लग गया तुम्हे..

हाक़िम रोते हुए - कुछ नहीं अंकल... बस ऐसे ही.. चलो उस पेड़ के नीचे आपको गाड़ना होगा फिर मैं इस झील में उतर जाऊँगा और हम दोनों अगले जन्म में पहुंच जाएंगे...

जोगी - रुको मैं खड्डा का निर्माण करता हूँ..

हाक़िम - ठीक है.. फ़ालतू मेहनत नहीं करनी पड़ेगी..

जोगी खड्डा बना देता है और उसमे बैठ जाता वही हाक़िम जोगी के ऊपर मिट्टी डालकर उसके दबा देता है और नंगा होकर रोते हुए झील में उतर जाता है..



वीरेंद्र सिंह गौतम को होश में आते देखकर - बैरागी ये देखो.. गौतम वापस आ गया है.. लगता है इसने हमारा कार्य सफल कर दिया है..

बैरागी - हुकुम पहले इसे पूरी तरफ होश में आने दो और पूछो कि क्या ये जदिबूती लाने में सफल हो भी पाया है या नहीं..

वीरेंद्र सिंह - गौतम... गौतम..

गौतम होश में आते हुए - बड़े बाबाजी.. प्रणाम..

वीरेंद्र सिंह उत्सुकता से - बोल बेटा.. क्या तुम वो जड़ी बूटी लाये हो.. क्या मेरा कार्य सफल हुआ है?

बोलो बेटा..

गौतम - जदिबूती तो नहीं ला पाया बाबाजी.. मैं जब तक महल पंहुचा सब बर्बाद हो चूका था..

वीरेंद्र सिंह क्रोध से - क्या?

बैरागी - तुमसे जो कहा गया था तुमने जरुरत उससे विपरीत कुछ किया होगा तभी ये कार्य सफल नहीं हुआ.. अब हमने हमेशा ऐसे ही रहना पड़ेगा..

गौतम - नहीं.. नहीं रहना पड़ेगा.. मैं कुछ ऐसा लाया हूँ जो बाबाजी के समस्या का समाधान करके मुक्ति दे देगा.. और तुमको भी आजाद कर देगा..

वीरेंद्र सिंह क्रोध को भूलकर ख़ुशी से - क्या? क्या लाया है जो मुझे मृत्यु दे देगा.. और मुक्त कर देगा उस अभिश्राप से..

गौतम - वो आप खुद ही पेड़ के नीचे खोद कर देख लो..

वीरेंद्र सिंह - नहीं वो तुम्हे खोदना पड़ेगा.. तभी तुम्हारी गाडी हुई चीज यहां आ पाएगी..

गौतम - ठीक चलते है.. मगर मेरी एक शर्त है..

वीरेंद्र सिंह - क्या?

गौतम - आपको मुक्ति मिलने मेरे पास जो है वो तो नहीं छीन जायेगा ना..

बैरागी - नहीं गौतम.. ऐसा कुछ नहीं होगा..

गौतम पेड़ के नीचे आते हुए - आप सच कह रहे है?

वीरेंद्र सिंह - हाँ.. सच है गौतम.. यकीन आ ये तो मैं तुझे अपनी सारी सिद्धिया और ज्ञान देकर मुक्ति लूंगा..

गौतम खड्डा खोदते हुए - ठीक है कोई पुराना मिलने वाला है आपका जिसमे में लाया हूँ..

वीरेंद्र सिंह - ऐसा कौन मेरा पुराना मिलने वाला हो सकता है जो मेरी मुक्ति कर सके..

गौतम खड्डे खोड़कर - खुद देख लो..

वीरेंद्र सिंह जोगी को देखकर उसके पैरों में गिरता हुआ - माफ़ी... माफ़ी... माफ़ी... दे दो मुझे.. मेरी गलती की माफ़ी दे दो महाराज...

जोगी - मैं तुझे मुक्ति देने ही आया हूँ वीरेंद्र सिंह..

बैरागी - मुझे भी माफ़ी चाहिए बाबा..

जोगी - तुझे नहीं मुझे तुझसे माफ़ी मांगनी चाहिए रागी... मैं इतना क्रोध में था कि मृदुला के मरने का क्रोध तेरे ऊपर भी उतार दिया.. और तुझे वीरेंद्र सिंह के साथ बाँध दिया.. लेकिन अब मैं तुम्हे इस बंधन से मुक्त करने आ गया हूँ...

गौतम - अंकल बाबाजी को मुक्त करने से पहले बाबाजी मुझे अपनी सिद्धिया देना चाहते है..

जोगी - बेटा तू प्रकृति से खिलवाड़ मत कर.. वीरेंद्र सिंह ने जो हासिल किया है वो आम विद्या नहीं है.. और ना ही तू इसे संभाल पायेगा..

गौतम - तो क्या अब आप वो सर ओर हाथ रखकर यादे देखने वाला मंतर भी नहीं सिखाओगे मुझे? मतलब आपने मुझे चुतिया बना दिया..

जोगी - मैं तुझे वो दूंगा जिसकी तुझे जरुरत है.. मगर उसकी मांग मत कर जो तेरे किसी काम का नहीं..

गौतम उदासी से - ठीक है.. अब जल्दी मुक्ति दो बाबाजी और बैरागी को.. बेचारे 300साल से लटके हुए है..

जोगी बीरेंद्र सिंह और बैरागी पर से अपने बंधन को वापस ले लेता है जिसके कारण बैरागी कि आत्मा अपने नए आयाम में चली जाती है और पुनर्जन्म के लिए आगे बढ़ जाती है वही वीरेंद्र सिंह के ऊपर से बामधन हटते ही वो फिर से एक आम इंसान बन जाता है जो 73 वर्ष का वृद्ध होता है.. मगर अब वो अपनी मर्ज़ी का खा सकता था पहन सकता था और सो भी सकता था..



वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़ कर - मुझे माफ़ कर दो..

जोगी - अब जो हुआ उसे भूल जाओ वीरेंद्र सिंह.. तुम्हारे करण बहुत लोगों का कल्याण भी हुआ जिसका फल तुम्हे मिलेगा.. तुम चाहो तो मृत्यु को गले लगा सकते हो या कुछ और साल जीवित रहकर मन मुताबित जीवन जी सकते हो..

वीरेंद्र सिंह हाथ जोड़कर - मुंहे तो मृत्यु ही चाहिए.. बहुत तरसा हूँ मैं मृत्यु के लिए अब जीने की लालसा ख़त्म हो गई है.. मगर एक बार में विरम से मिलना चाहता हूँ और उसे अपने जाने की बात बतलाना चाहता हूँ...

जोगी - जैसा तुम चाहो वीरेंद्र सिंह.. आज तुम्हरे प्राण स्वाहा हो जायेगे...



गौतम - देखो अंकल अब चलो.. और ये भेस नहीं चलेगा.. बाबाजी आश्रम में कुछ अच्छे कपड़े होंगे?

वीरेंद्र सिंह - विरम सबकी व्यवस्था कर देगा..



गौतम जोगी को आश्रम में ले आता है और जोगी नहा कर वर्तमान के कपड़े पहन लेता है गौतम भी नहा कर नये कपड़े पहन लेता है..



गौतम - आज रात यही रहो अंकल.. कल सुबह में कुसुम से मिलवाने ले जाऊँगा आपको..

जोगी - ठीक है बेटा..





***********





तू नहीं आता वही अच्छा था.. दोपहर से मेरी चुत में घुसा हुआ है मन नहीं भरता क्या तेरा? मैं कितना झेल पाउंगी तुझे.. मेरी चुत फिर पहले जैसी कर दी तूने.. कमीने तेरी माँ हूँ थोड़ी तो शर्म कर.. जिस चुत से निकला है उसीको चोद चोद के सुजा दिया है.. पहले तेरी शकल देखकर प्यार आता था अब शर्म आती है..

गौतम मिशनरी में पेलते हुए - शर्म तो औरत का गहना होता है माँ.. तू शरमाते हुए इतनी प्यारी लगती है कि क्या कहु.. माँ जब तू चुदवाते हुए मुंह बनाती है ना दिल कि धड़कन बढ़ जाती है.. मन करता है तुझे ऐसे ही चोदता रहू..

सुमन - हां.. तू तो मुझे चोदता रहेगा मगर मेरा क्या? मुश्किल से चाल सही हुई थी तूने आते ही वापस मुझे लंगड़ी घोड़ी बना दिया.. दोपहर से बस नंगा करके लिटा रखा है.. ना खाना खाया है ना कुछ और..

गौतम चुत में झाड़ता हुआ - मतलब भूक लगी है मेरी माँ को? अभी तो रात के 10 बजे कोई ना कोई रेस्टोरेंट खुला होगा.. बाहर चलके खाते है..

सुमन गुस्से से आँख दिखाती हुई - लंगड़ी करके बाहर ले जाएगा खाना खिलाने? तूझे बिलकुल शर्म नहीं है ना.. और अब निकाल अपने लंड को मेरी चुत से बाहर.. कैसी लाल कर दी है..

गौतम लंड निकालता हुआ - ठीक है माँ.. अच्छा यही आर्डर कर लेते है रुको.. बताओ क्या खाओगी?

सुमन अपनी चुत से निकलता वीर्य साफ करते हुए - कुछ मगा ले..

गौतम - ठीक है हांडी मटन और नान मगा लेता हूँ.. रायते के साथ..

सुमन ब्रा पेंटी पहनते हुए - नहीं.. आज मंगलवार है.. तू कुछ वेज मंगा..

गौतम - मिक्स वेज कर देता हूँ चपाती के साथ.. और कुछ?

सुमन बेड से खड़ी होती हुई - नहीं..

और लचकती हुई बाथरूम चली जाती है..



हेलो बुआ?

हां मेरे बाबू..

कैसी हो?

मैं अच्छी.. तू तो टूर ओर क्या गया गायब ही हो गया.. पता नहीं कैसे निकला है ये महीना तुझसे बात किये बिना..

अब नहीं जाऊँगा बुआ.. I love you.. पता है किसी ने मुझे बताया है कि पिछले जन्म में आप मेरी माँ थी..

काश इस जन्म में भी होती मेरे बाबू..

मेरी नहीं तो क्या हुआ मेरे बच्चे ही तो हो बुआ..

कल आ रही हूँ मैं तेरे पास.. अब मिले भी ना रहा जाता मेरे बाबू..

बुआ गाँव आना.. कल गाँव जा रहा हूँ मैं..

क्यों?

बुआ कल कुसुम को बंधन में लेने वाला हूँ..

अरे पर तीन महीने बोला था ना अभी तो एक ही हुआ है..

बुआ वो नाराज़ है एक महीने उससे भी बात नहीं कि थी तो मेरा फ़ोन तक नहीं उठा रही.. लगता है मेरी शामत आने वाली है..

अरे अरे.. इतना भी क्या अपनी होने वाली पत्नी से डरना..

डरना तो पड़ेगा बुआ वो कोई आम लड़की थोड़ी है.. शैतान है उसके अंदर अगर उसे खुश नहीं रखूँगा तो मेरा पता नहीं क्या हाल करेगी वो..

ठीक है.. वो तो खुश हो जायेगी..

फ़ोन तो उठाये मेरा..

अरे तू चिंता मत कर मैं बोल देती हूँ उठा लेगी फ़ोन..

थैंक्स बुआ.. यू आर बेस्ट..

सुमन - किसका फ़ोन है?

गौतम - बुआ का.. बात करोगी..

सुमन - मैं क्या बात करूंगी.. तू कर ले..

गौतम सुमन का हाथ पकड़ कर खींचते हुए - अरे बुआ माँ बनने वाली है..

सुमन - पता है.. बताया था जगमोहन ने..

गौतम - मेरे बच्चे की...

सुमन हैरात से - क्या?

पिंकी - ग़ुगु..

गौतम फ़ोन स्पीकर पर डाल कर - बुआ माँ को सब पता है हमारे बारे में..

पिंकी - क्या कह रहा है तू.. पागल हो गया है क्या..

गौतम - लगता है खाना आ गया.. बुआ माँ से बात करो..

सुमन - पिंकी..

पिंकी - भाभी ग़ुगु की बात को सीरियस मत लेना वो मज़ाक़ कर रहा है..

सुमन - मैं सब जानती हूँ पिंकी.. अब मुझसे छिपाने की जरुरत नहीं है तुम्हे.. मुझे तेरे और गौतम के रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है..

पिंकी - भाभी क्या आप भी..

सुमन - अब मैं कुछ छिपाना नहीं चाहती तुझसे पिंकी.. मैं भी गौतम के साथ वैसे ही रिश्ते में हूँ जैसे कि तू..

पिंकी - भाभी ग़ुगु आपका बेटा है.. उसके साथ आप.. ये सही नहीं है..

सुमन - ये बात तुम कर रही हो पिंकी.. हवस में अंधी होकर अपने भतीजे के साथ सोने में तुम्हे शर्म नहीं आई और मुझे सही गलत समझा रही हो.. पिंकी मैं जानती हूँ तुम भी गौतम से बहुत प्यार करती हो.. मैं तुम्हे कुछ नहीं कहूँगी..

पिंकी - भाभी.. ग़ुगु के साथ आपका वो रिश्ता समाज के लिए पाप है.. आपने मुझे अपने बारे में बता दिया है पर आप और किसीसे इस बात का जिक्र तक नहीं करना.. कुसुम से तो बिलकुल नहीं..

सुमन - मैं अच्छे से जानती हूँ पिंकी.. मुझे किसके साथ क्या बात करनी है.. तूम उसकी चिंता मत करो..



गौतम - खाना तैयार है माँ.. आ जाओ..

सुमन - लो बात करो अपनी बुआ से..

गौतम - हाँ बुआ..

पिंकी - कमीने कुत्ते अपनी माँ के साथ ही सो गया तू.. भाभी ने सब बता दिया कैसे तूने भाभी के साथ अपना रिश्ता बनाया..

गौतम हसते हुए - बुआ अब मैं क्या करू.. आपकी तरफ माँ से भी बहुत प्यार करता हूँ..

पिंकी - अच्छा.. तो क्या भाभी को नंगा ही रखेगा घर में.. बेचारी तुझे इतना प्यार करती है और तू उनके साथ पता नहीं क्या क्या करता है.

गौतम खाना खाते हुए - आप आ जाओ ना.. बचा लो अपनी भाभी को मुझसे..

पिंकी - जल्दी आउंगी.. अब खाना खा..

गौतम - अच्छा किस्सी तो दे दो गीली वाली..

पिंकी - उम्महां... अब मिलूंगी ना भाभी के साथ मिलकर तेरा चीरहरण करूंगी.. चल बाय..

गौतम - love you बुआ..

पिंकी - love you too बाबू..

सुमन - बाय पिंकी..

पिंकी - बाय भाभी.. ज्यादा तंग करें तो एक थप्पड़ रख देना इस शैतान के..

सुमन हसते हुए - अच्छा ठीक है.. बाय...



सुमन और गौतम खाना ख़ाकर वापस बेड ओर आ जाते है..

सोने दे ना ग़ुगु..

मैं कहा रोक रहा हूँ सोने से माँ..

ऐसे छेड़खानी करेगा तो कैसे सो पाउंगी.. तू वापस शुरू हो गया.. देख सोने वरना सच में एक थप्पड़ मार दूंगी..

अच्छा ठीक है मेरी माँ.. सो जाओ..

तू कहा जा रहा है?

कहीं नहीं.. छत पर..

क्यों?

बस ऐसे ही..

नहीं जाना.. यहां आ.. मेरे पास.. सो जा तू भी..

गौतम सुमन को बाहों में भरकर लेट जाता है..

अरे अब किसका फ़ोन आ गया तेरे फ़ोन पर?

कुसुम का है माँ..

बात कर क्या कहती है..

कहेगी क्या.. मुझे ताने मारेगी..

बात तो कर..

हेलो...

बोलो?

क्या बोलू?

बुआ ने कहा तुम कुछ बोलना चाहते हो तो बोलो..

इतना गुस्से में क्यों है तू? एक महीने बात नहीं कि तो इतनी नाराज़गी?

एक महीना... तुम्हारे लिए सिर्फ एक महीना है.. पता है मेरा कितना बुरा हाल हुआ है.. रोज़ तुम्हे याद करके.. मन तो कररहा है फ़ोन में घुसकर तुम्हारा वो हाल करू कि याद रखो तुम..

अच्छा सॉरी ना कुसुम..

सॉरी.. सोरी से सब ठीक नहीं होता.. कितने फ़ोन और massage किये पर तुम हो कि.. छोडो.. जो कहना है कहो मुझे सोना है..

अकेले सोना है? मेरे साथ नहीं सोना चाहती?

मसखरी करने के लिए फ़ोन किया है? कितने बुरे तो तुम.. जरा भी अंदाजा नहीं है तुम्हे मेरे मन का.. क्या बीत रही है मेरे ऊपर.. और तुम्हे इस रात में मसखारी करनी है..

ठीक है मेरी प्यारी कुसुम.. कल आ रहा हूँ मैं तुझे लेने.. मैं भी तेरे बिना नहीं रह पाऊंगा अब...

फिर से मसखरी.. देखो ऐसा करोगे ना तो याद रखना मैं भी बहुत सताऊंगी तुम्हे..

मज़ाक़ नहीं कर रहा पागल.. सच में कल आ रहा हूँ मैं माँ को लेकर.. यक़ीन ना हो तो बात कर लो..

सुमन - हेलो कुसुम...

कुसुम - हाँ बड़ी माँ..

सुमन - गौतम मज़ाक़ नहीं कर रहा बेटा.. कल वो सच में आ रहा है.. और कल ही तेरे साथ बंधन करके तुझे अपने साथ ले आएगा..

कुसुम ख़ुशी से - सच..

गौतम सुमन से फ़ोन लेकर - और क्या मज़ाक़ कर रहा हूँ?

कुसुम - हाय.. मुझे तो लाज आ रही है..

गौतम - अभी से.. अभी तो कुछ हुआ भी नहीं..

कुसुम फ़ोन काटते हुए - छी...



सुमन मुस्कुराते हुए - बेचारी...

गौतम बिन बताये सुमन कि पेंटी सरकाकर लंड अंदर घुसाते हुए - माँ गलती से चला गया..

सुमन सिसकते हुए - अह्ह्ह.. बार बार यही गलती करता है ना तू..

गौतम - माँ गलती से अंदर फिसल गया सच्ची..

सुमन - अह्ह्ह.. बेशर्म.. अब चोद भी गलती से रहा है क्या?

गौतम - माँ.. पता नहीं.. अपने आप लंड अंदर बाहर हो रहा है..

सुमन - झूठे मक्कार.. बहाने बहाने से चुत में घुसा देता है.. कहता है गलती से हो गया. अह्ह्ह.. आराम से मदरचोद..

गौतम चोदते हुए - गाली कितनी प्यारी लगती है तुम्हारे मुहसे माँ...

सुमन - कमीने मेरा बेटा नहीं होता ना.. बहुत मार खाता तू..

गौतम - घोड़ी बनो ना..

सुमन - बाल नहीं खींचेगा..

गौतम - ठीक है..

सुमन घोड़ी बनती हुई - प्यार से कर..

गौतम चुत में ड़ालते हुए - आराम से करूँगा माँ तुझे भी मज़ा आएगा..

सुमन चुदवाते हुए - अह्ह्ह... अह्ह्ह... अह्ह्ह...

गौतम टीवी पर एक ब्लू फ़िल्म चला देता है और अपनी माँ को घोड़ी वाले पोज़ में चोदता रहता है..

सुमन - अब झड़ भी जा.. मैं कितना झेलू तुझे.. तू तो बस चोदना ही जानता है.. झड़ने का नाम ही नहीं लेता..

गौतम - माँ यार मैं क्या करू? आप जल्दी झड़ जाती हो तो.. मेरा होने में टाइम लगता है..

सुमन मिशनरी में चुदवाती हुई - एक घंटा हो गया.. जलन सूजन और अब दर्द भी होने लगा है मुझे.. और तू है कि बस..

गौतम चुत में झड़ते हुए - अच्छा बस हो गया माँ...

सुमन - अह्ह्ह... महीने भर से दूर तो बहुत याद आता था अब आ गया है तो ऐसा लगता है दूर ही अच्छा था.. कितना गन्दा चोदता है तू.. कुसुम का तो पता नहीं क्या हाल होगा.. देख... कितना सूज गई है फिर से..

गौतम - चाटकर सूजन कम करदु.. आप कहो तो?

सुमन - अब सो जा शहजादे.. कल जाना भी है गाँव...

गौतम - ठीक है माँ..





अह्ह्ह...

क्या हुआ? ठीक तो हो माँ...

कल इतना बुरा किया और पूछ रहा है ठीक हूँ या नहीं.. वापस लंगड़ी कर दिया तूने..

अच्छा सॉरी माँ.. लो आओ मैं गोद में उठाके ले चलता हूँ..

नहीं रहने दे मैं चलकर ही गाडी में बैठ जाउंगी..

गौतम सुमन को उठाते हुए - ज्यादा नखरे मत किया करो... समझी..

सुमन - अरे दरवाजा तो बंद कर दे.. और लॉक भी कर दे..

गौतम - ठीक है..

गौतम रास्ते में उसी पहाड़ी के नीचे आजाता है..

सुमन - बाबाजी के पास क्यों लाया है? गाँव जाना था ना..

गौतम किसीको फ़ोन करता हुआ - एक और आदमी है जो गाँव चलेगा..

हेलो... हाँ.. नीचे बरगद के पास.. ठीक आ जाओ...

सुमन - कौन आदमी गौतम?

गौतम - है कोई बाबाजी चाहते है बंधन के समय वो उपस्थित रहे...

सुमन - मुझसे तो कुछ नहीं कहा बाबाजी ने..

गौतम - पर मुझसे कहा था... लो वो आ गया.. कैसे हो अंकल...

किशोर जोगी को गाडी में बैठाते हुए - गौतम बड़े बाबाजी और बैरागी...

गौतम - जानता हूँ...

जोगी - बहुत तरक्की कर ली है दुनिया ने..

गौतम गाडी चलाता हुआ - हाँ अंकल..

जोगी - ये तुम्हारी माँ है..

गौतम - हाँ... आप तो सब जानते हो..

सुमन - ये कौन है गौतम?

गौतम - माँ ये बाबाजी के पापा जी है.. जो बाबाजी नहीं कर सकते वो सब ये कर सकते है.. उन्होंने बताया है कि बुआ पिछले जन्म में मेरी माँ थी.. अंकल माँ के बारे में बताओ ना कुछ.. अगले पिछले जन्म में माँ कौन थी..

जोगी - क्या करेगा ये जानकार बेटा...

सुमन - नहीं नहीं.. मुझे कुछ ऐसी पहेली बुझा दो कि ये मुझसे झूठ ना कह पाए कभी..

जोगी - तेरा बेटा जब भी झूठ बोलेगा तुझे पता चल जाएगा बेटी...

सुमन - कैसे?

जोगी - तेरा मन तुझे बता देगा..

गौतम - अंकल ऐसा मत करो... यार..

सुमन - अब बोल बच्चू...

गौतम - अंकल ठीक नहीं किया आपने.. अब आपको मृदुला से नहीं मिलवा सकता..

सुमन - कौन मृदुला?

गौतम - कुसुम पिछले जन्म में इनकी बेटी मृदुला थी.. और ये 300 साल पहले से यहां आये है..

सुमन हसते हुए - चल झूठा..

गौतम - अंकल आप ही समझा दो..

जोगी - बेटी ये सच कह रहा है...

सुमन - अच्छा..

गौतम - हाँ.. और मैं कोई टूर पर नहीं गया था.. पिछले जन्म में गया था बड़े बाबाजी के काम से..

सुमन - बड़े बाबाजी तुझसे मिले थे?

गौतम - सिर्फ मिले नहीं थे.. उन्होंने ही मुझे पिछले जन्म में भेजा था.. ताकि मैं जदिबूती लाकर उनको दे सकूँ और वो मर सके.. बड़े बाबाजी को अंकल ने ही जागीरदार से एक फ़कीर बना दिया था.. और 300 साल से बड़े बाबाजी अपनी सजा काटरहे थे..

सुमन - क्या कह रहा है ग़ुगु...

गौतम - सच कह रहा हूँ माँ.. मैं जदिबूती कि जगह अंकल को ले आया और अंकल ने बड़े बाबाजी और उनके ऊपर जो बैरागी की आत्मा थी दोनों को मुक्ति दे दी..

जोगी - और कितना समय है बेटा..

गौतम - बस आधे घंटे में पहुंच जायेंगे अंकल.. वैसे कुसुम तो आपको पहचानेगी नहीं फिर आप क्या करोगे?

जोगी - मैंने मृदुला से वादा किया था बेटा.. मैं उसे मिलने जरुर आऊंगा.. वो जैसे ही मुझे देखेगी उसे सब याद आ जाएगा..

गौतम - बैरागी भी?

जोगी - इस जन्म में उसके लिए अब तू ही बैरागी है बेटा..

सुमन - क्या बात हो रही मेरी तो कुछ समझ नहीं आता..

गौतम - आप मत समझो.. लो अंकल आ गया गाँव भी.. मिल लो आपकी मृदुला से...

हेमा - आओ बेटा... ये बहुत अच्छा फैसला किया तुमने जो बंधन जल्दी करने की हामी भर ली.. आज रात बहुत धूमधाम से सब होगा..

मानसी - आओ जमाई राजा.. बड़ा इंतजार हो रहा है तुम्हारा.. आओ सुमन..

गौतम - कुसुम कहा है?

मानसी - थोड़ा सब्र रखो जमाई राजा.. कुसुम अपने कमरे में है.. शाम को बंधन के बाद आराम से मिल लेना और ले जाना अपने साथ..



शाम को पंचायत के सामने बंधन की सारी रस्मे हो जाती है और गौतम कुसुम को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेता है..



कुसुम - छत ओर क्या कर रहे हो?

गौतम - किसीको मिलना है तुमसे..

कुसुम - कौन?

गौतम - तुम्हारे बाबा..

कुसुम - बाबा?

गौतम - हाँ.. देखो..

कुसुम जोगी को देखकर आंसू बहती हुई - बाबा...

जोगी - रोते हुए - मृदुला..

सुमन नीचे से ऊपर छत पर आती हुई - गौतम??

जोगी - मैंने वादा किया था ना मृदुला.. मैं तुमसे मिलने जरुर आऊंगा..

कुसुम - बाबा... आप कहा चले गए थे..

जोगी - मृदुला.. तूने व्यर्थ ही हठ करके जान गवा दी.. अगर बैरागी की बात मानकर जंगल से बाहर चली जाती तो शायद मुझे और तुझे मिलने के लिए इतना इंतेज़ार नहीं करना होता..

कुसुम - बाबा.. आप अब कहीं नहीं जाएंगे ना..

जोगी - जाना तो पड़ेगा मृदुला.. प्रकृति के नियम तोड़कर मैं यहां नहीं रह सकता मुझे वापस उस दुनिया में जाना होगा...

कुसुम - मैं भी आपके साथ चलूंगी बाबा...

जोगी कुसुम के सर ओर हाथ रखकर - नहीं मृदुला.. मैं तुझे तेरी सारी विद्या जो पिछले जन्म में तेरे पास थी उसे तुझे स्मरण करवा रहा हूँ.. अब तू साधारण नहीं है..

गौतम - ओ अंकल ये सब मत करो.. ये पहले ही मुझे बहुत तंग करती है इतना ताक़त और शक्ति पाने के बाद तो ये पागल हो जायेगी..

कुसुम हस्ती हुई - बाबा... ये बहुत मनमौजी है..

जोगी - इसका उपचार तो तू ही कर सकती है मृदुला... अब मुझे जाने दे.. अब मैं सुख से रह पाऊंगा वहा..

कुसुम गले लगते हुए - बाबा..

सुमन हैरात से - मतलब... सच में..

गौतम सुमन - और क्या मैं मज़ाक़ कर रहा था..

जोगी - अपना ख्याल रखना मेरी बच्ची...

जोगी ये कहकर जने लगता है..

गौतम - वापस जाओगे कैसे ससुर जी?

जोगी - मरने से पहले वीरेंद्र सिंह से मैंने आयामों के मध्य का रहस्य जान लिया था.. मेरे लिए वापस जाना कठिन नहीं.. लेकिन अब मेरी मृदुला की रक्षा और सुख तेरे ऊपर है बेटा..

गौतम - टेंशन मत लो.. ससुर जी..

कुसुम - बाबा.. मेरी चिंता मत करो..

जोगी जाते हुए - सुखी रह मेरी बच्ची..



जोगी के जाने के बाद..

सुमन - कुसुम सँभालना अपने गौतम को.. मुंह मारने की आदत है इसे...

कुसुम गौतम को पकड़कर उसके लंड ओर हाथ लगती हुई - आप फ़िक्र मर करो बड़ी माँ.. घर के अलावा अगर ये किसी और के साथ मुंह काला करना भी चाहेगा तो इसका सामान खड़ा नहीं होगा..

गौतम - ऐ जादूगरनी... ये फालतू का जादूगर टोना मुझे ओर मत करना समझी ना..

कुसुम मुस्कुराते हुए - जादू तो हो चूका है..

सुमन - घर की मतलब?

कुसुम - मैं आपका मन पढ़ सकती हूँ बड़ी माँ.. मैं गौतम का मन भी पढ़ सकती हूँ.. घर की मतलब घर की..

सुमन - कुसुम.. तू?

कुसुम - हाँ बड़ी माँ.. आप और बुआ सब..

गौतम - और भाभी..

कुसुम - हम्म भाभी भी घर की है..

गौतम कुसुम और सुमन को बाहों में भरकर - मतलब दोनों दुल्हन आज मेरे साथ.....



एक जोर का थप्पड़ सो रहे गौतम के गाल पर पड़ता है....

गीतम नींद से जागता हुआ - हा.... क्या.. क्या हुआ..

सुमन गुस्से में - खड़ा हो जा.. कब तक सोता रहेगा.. ऊपर से नींद में अनाप शनाप बोले जा रहा है... जल्दी से तैयार हो जा... आज बाबाजी के जाना है.. तेरे पापा भी आज जल्दी थाने चले गए..

गौतम. - ये पुलिस क्वाटर?

सुमन - तो और क्या महल में रहता है तू... उठा जा.. और ये सपने देखना बंद कर...

गौतम - मतलब ये सब सपना था...

सुमन गुस्से से - ओ सपनो के सौदागर... उठता है या और एक जमाउ तेरे गाल पर... बस सपने ही देखता रहता है दिन रात...

गौतम सोच रहा था की कितना हसीन सपना था.. जिसमे उसकी सारी ख्वाहिश और इच्छाएं पूरी हो रही थी.. वो उठकर बाथरूम में चला जाता है और आम दिनों की तरह मुट्ठी मारके नहाता है और फिर अपना कीपेड फ़ोन उठाकर अपनी माँ सुमन को उसी पुरानी और बाबा आदम के जामने की बाइक जिसे उसके बाप जगमोहन ने दिलवाया था उसपर बैठाकर बाबाजी के चल पड़ता है..

गौतम उदासी से - पेट्रोल नहीं है..

सुमन - 500 का नोट देती हुई.. डलवा ले..

गौतम 200 का पेट्रोल डलवा कर 300 जेब में डाल लेता है और सुमन को बाबाजी के पास उसी पहाड़ी के नीचे बरगद के पास ले आता है..

सुमन - चल ऊपर..

गौतम - नहीं जाना आप जाओ..

सुमन - सुबह से देख रही हूँ जब से जागा है अजीब बर्ताव कर रहा है.. क्या बात है..

गौतम कुछ नहीं... आप जाओ मैं यही इंतेज़ार कर लूंगा..

सुमन - ठीक है तेरी मर्ज़ी पर यही मिलना.. समझा..

सुमन चली जाती है और गौतम के फ़ोन ओर आदिल का फ़ोन आता है..

आदिल - क्या कर रहा था रंडी?

गौतम - नींद में तेरी अम्मी शबाना को चोद रहा था..

आदिल - अबे लोड़ू.. फालतू बात मत कर..

गौतम - तो बोल ना रंडी के क्या बात है..

आदिल - रांड चोदने चलेगा रात को..

गौतम - पैसे तू दे तो चल...

आदिल - आज तक कौन तेरा बाप ठुल्ला दे रहा था.. रात को 7 बजे घर आ जाना..

गौतम - ठीक है गांडू...


गौतम - कितना हसीन सपना था यार....
Awesome update
 
Top