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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग १०० - ननद की बिदाई -

बाँझिन का सोहर

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२३,७६,200


मैं खिड़की के बाहर देख रही थी, चुपचाप, जिस रास्ते से ननद गयी थीं, घर में अकेली । ये तो सबेरे ही निकल गयी थे, थोड़ी देर पहले सासू माँ भी।

पहले तो डोली पालकी से बेटी बिदा होती थी, अभी तो दू चक्की, नन्दोई की फटफटिया पे पीछे बैठ के ननद,

घर खाली लग रहा था, एकदम सूना। मुझे लग रहा था जैसे ननद नहीं बिटिया को बिदा किया है, वही नीम का बड़ा सा पेड़, उसके थोड़ी दूर पर पाकुड़, बरगद और पांच पेड़ आम के, बगल में कूंवा, जब से गौने उतरी थी, कितनी बार देख चुकी थी, पर आज सब एकदम बदला लग रहा था, खाली खाली, सूना,

सासू माँ ने कहा आज ननद को अंचरा भराई, बिदाई मैं करूँ।

मैं समझ सकती थी, उनकी हालत। न ननद ने उनसे कुछ कहा था न मैंने, लेकिन जिस बेटी को माँ ने पेट में नौ महीने रखा हो,… उसका दुःख सुख कहना पड़ता है क्या।

वो दरवाजे पे खड़ी, मुझे,… मेरी ननद को देख रहे थीं, बार बार उनकी पलकें झपक रही थीं, किसी तरह आंसू को भीतर ठेलते, वापस,

ननद से चाहे जितना मजाक करें, गरियाये, लेकिन पैर छूते हैं, और ये तो उमर में भी ज्यादा नहीं, लेकिन बड़ी तो थी हीं। मैं जैसे पैर छूने के लिए झुकी, ननद ने मुझे रोक दिया और हम लोग गले भेंट के, देर तक,

न वो बोलीं, न मैं, बस सावन भादों हम दोनों की आँखों से, झर झर, न मैंने रोकने की कोशिश की आंसुओं को न उन्होंने,

" भौजी, तू न होतु, तो हम कउनो ताल पोखरा में मिलते"



किसी तरह मेरे मुंह से बोल निकले ,

"चुप, अब आगे से सोचिएगा मत, हँसत बिहँसत जा, हँसत बिहँसत आवा। अब तू एक जनी नहीं दो जान हो, ….और हम काहें न होते, ऊपर से लिखवा के लाये थे "
अंचरा में दूब, घर का चावल, हल्दी, पांच बताशा और फिर मांग में सिन्दूर,

लग रहा था मैं बेटी की बिदाई कर रही थी और कान में ननद की बात गूँज रही थी,

"भौजी जिद करके हम होली में आये थे, अबकी तय किये थे खूब मस्ती करेंगे, एक बार तो खुश हो लें, जो हमरी सास तय की थी, हमारे बस का नहीं, …. मुझे पक्का लग रहा था ये आखिरी होली होगी और आप से, माई से, भैया से अब दुबारा मिलना हो की न हो, …..सासु ने तो निकलते निकलते,…. बाँझिन का बोल,"

एक बार हम दोनों फिर अँकवार में, और मैंने फुसफुसाते हुए कहा,

"केहू जोर से भी बोले न तो बस एक दायं फोन घुमा दीजियेगा, कुछ नहीं तो मिस्ड काल, दो घंटे के अंदर तोहार भैया दरवाजे पे होंगे, सोना अस हमार ननद,… तोहार भाई हैं, भौजाई है, माई है "

अब ननद मेरी थोड़ी मुस्काई, बोलीं

"लोग कहते हैं मायका माई से होता है, लेकिन हमार भौजी तो माई से भी बढ़कर, "

तबतक नन्दोई जी भी आये, झुक के, हाथ में आँचल पकड़ के माथे पे लगा के उनका पैर छूने के बाद उन्हें भी दही गुड़ खिला के बिदाई की रस्म पूरी की और अपने को रोकते भी उन्हें समझा दिया
" अबकी आप एक नहीं दो को ले जा रहे हैं तो रस्ते में सम्हाल के, बेटी की भी जिम्मेदारी आपके ऊपर सबसे ज्यादा, और दस दिन बाद हमारी ननद वापस कर दीजियेगा, मैं खुद जाके डाक्टर मीता को, अपनी डाक्टर भौजी को दिखा के लाऊंगी, "


काफी देर हो गयी थी, ननद पहुंच भी गयी थीं, ननद की सास का फोन भी मेरे सास के पास आ गया था, और मैं सूनी आँखों से खिड़की की ओर देख रही थी,…. लग रहा था अभी ननद आ जाएंगी।



मैं एक सोहर गा रही थी, गुनगुना रही थी धीरे धीरे, अक्सर ये सोहर* लोग गाते नहीं,.... लेकिन पता नहीं क्यों मेरे मन में,….


और गाने के साथ एक कागज के टुकड़े टुकड़े कर के आग में डाल रही थी,

*( सोहर -पुत्र जन्म के अवसर पर गायेजाना वाला लोक गीत )
 

komaalrani

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बाँझिन का सोहर



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घर में से निकली तिरियवा, नैहरवा में ठाड़ भई हो।

माई दई देतु जहर क पुड़िया, खाई मरी जाइत हो।

माई दई देतु जहर क पुड़िया, खाई मरी जाइत हो।

एतनि बचन माई सुनली तो बेटी से पूछें हों, तो बेटी से पूछें हो।

बेटी कवन संकट तोहरे जियरा मौत हमसे मांगउ हो,

बेटी कवन संकट तोहरे जियरा मौत हमसे मांगउ हो,

सासु मोरी बाँझिन बोलावें, ननद बोलिया बोले हों,

माई जेकर मैं बारी बियाहिया ऊ घर से निकाले हों।


जाऊ न बेटी अपने घर, अपने सजन घर, अपने सजन घर हों।

बेटी तोहरे जे पड़ें परिछाहियाँ , बहुआ हमरी बाँझिन होइहै, हों।

उन्हवा से रुसली तिरियवा जंगल बीच ठाड़ भई हों, जंगल बीचे ठाड़ भई हों।

नगवा डंस लेती हमरा उँगरिया, तो हम मरि जाइत हो, तो हम मरि जाइत हो।


एतनि बचन नगवा सुनले तो रानी से पूछई हों, तो रानी से पूछई हों,

रानी कवन संकट तोहरे जियरा मौत हमसे मांगउ हो, मौत हमसे मांगउ हो,

सासु मोरी बाँझिन बोलावें, ननद बोलिया बोले हों,

नगवा जेकर मैं बारी बियाहिया ऊ घर से निकाले हों।

रानी जाऊ न अपने घर, अपने ससुर घर, अपने ससुर घर हों।

रानी तोहरे जे पड़ें परिछाहियाँ , नगिनिया हमरी बाँझिन होइहै, हों।



उन्हवा से रुसली तिरियवा गंगा तीरे ठाड़ भई हों, गंगा तीरे ठाड़ भई हों।

मैया एक लहर देतिउ तो डूबी मरी जाइत हो, तो डूबी मरी जाइत हो।

एतनि बचन गंगा सुनली, सुनहु नहीं पायी हों ,सुनहु नहीं पायी हों।

बेटी कवन संकट तोहरे जियरा मौत हमसे मांगउ हो, मौत हमसे मांगउ हो,

सासु मोरी बाँझिन बोलावें, ननद बोलिया बोले हों,

मैया जेकर मैं बारी बियाहिया ऊ घर से निकाले हों।



जाऊ न बेटी अपने घर, अपने सजन घर, अपने सजन घर हों।

आजु के नवएँ महिनिवा, ललन तोहरे , ललन तोहरे होइहौं हों।

ललन तोहरे , ललन तोहरे होइहौं हों, अंगनवा में खेलिहें हों।



आठ महिनिवा के बीतल, नवावैं महीना लागल हो।

बहिनी रानी के जन्मे ललनवा, सखी सब गावें सोहर हो।



बहिनी रानी के जन्मे होरिलवा , सखी सब गांवें सोहर हो।

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komaalrani

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खुला लिफाफा, नन्दोई जी और,…
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जिस दिन कबड्डी थी, उस दिन की बात थी। गाँव में कोई मरद तो उस दिन रह नहीं सकता था तो ये और ननदोई जी गांव के बाहर एक दूसरे गाँव में जहाँ हमारे खेत बाग़ थे , एक छावनी सी थी, बस वही।

बस मैं कबड्डी के लिए निकलने वाली ही थी, दिमाग में पचास बात चल रही थी, कबड्डी में आज कुछ भी हो ननदों को हराना था, …तभी कोई आके एक लिफाफा दे गया, खुला था।



खोल के देखा तो एक रिपोर्ट थी और ऊपर ननदोई जी का नाम लिखा था, अब इतना डाक्टरी तो नहीं आती लेकिन यह समझती थी की रिपोर्ट के अंत में फैसला दिया रहता है और मैंने सीधे अंत में लिखा पढ़ा, और उसमें लिखा था, Asthenospermia, Oligospermia, Teratozoospermia.

रिपोर्ट में कुछ आंकड़े दिए रहते हैं और नार्मल भी लिखा रहता है तो उससे भी कुछ अंदाजा लग जाता है और जो गड़बड़ होता है वो कई बार बोल्ड में होता है तो मैंने एक नजर उन आंकड़ों पे भी डाली


Volume 2.0 mL or greater 8 mL
Sperm Count 40,000,000 or more less than 1,00,000
Sperm Concentration 20,000,000 or more/mL less than 40,000 /mL
Total Motility 40% or more 10%
Total Progressive Motility 32 % or more 2%
Morphology (% of normal-appearing sperm) 4% or more normal - .01 %


इतना तो मैं समझ गयी नन्दोई जी के वीर्य में कुछ गड़बड़ है, औजार तो जबरदस्त है, मलाई भी खूब निकलती है ये तो मैं एक बार नहीं कितनी बार देख चुकी थी और रिपोर्ट के शुरू में जो वॉल्यूम लिखा था उससे भी लग रहा था की औसत मर्द के निकलता है उसका चार गुना नन्दोई की मलाई थी,

पर असली खेल तो शुक्राणु का है वहां गड़बड़ नहीं महा गड़बड़ लग रही थी,

इतना तो मैं भी समझ सकती थी की स्पर्म काउंट नार्मल से बहुत कम था, ४ करोड़ की जगह एक लाख, और मोटिलिटी पता नहीं क्या होता है वो भी बहुत कम था और मार्फोलॉजी भी।

इतना समझ में आ गया की परेशानी कहाँ है, लेकिन इलाज क्या होगा, कैसे होगा। मुझे डाक्टर भौजी याद आयीं और बस झट से मैंने रिपोर्ट की फोटो खींची, हाँ नन्दोई जी का नाम और बाकी डिटेल काट दिया, और भौजी को व्हाट्सएप कर दिया।

फिर उनकी हेड नर्स को भी फोन कर दिया की डाक्टर मीता की ननद बोल रही हूँ, उन्हें एक व्हाट्सऐप किया बोलियेगा, देख लेंगी।



वो बोली डाक्टर साहेब ओ टी में हैं, एक आपरेशन के लिए तैयार हो रही हैं , उनका फोन भी मेरे ही पास है, बोल देती हूँ।

थोड़ी देर में भौजी का फोन आ गया और पहला सवाल, किसकी रिपोर्ट है, मैंने थोड़ी सी बात बनायी, गाँव की ही एक ननद है उनके मरद की, बच्चा नहीं हो रहा है उन्हें तो उनके मरद की जांच की,

" यार मुश्किल है बल्कि समझ लो नहीं हो सकता है, …तेरे ननदोई के बस का नहीं है बच्चा पैदा करना "

लम्बी सांस खींच के वो बोली,

मेरे कुछ समझ में नहीं आया,

ये कैसे हो सकता है, मैं बोल पड़ी, "लेकिन नन्दोई, उनका औजार तो ठीक ठाक है बल्कि जबरदस्त है, और मलाई भी निकलती है तो क्या प्रॉब्लम,"

मेरी बात बीच में काट के चिढ़ाती हुयी बोलीं, असली भौजी,
"" तो घोंट लिया है ननदोई का "

मैं क्यों मौका छोड़ती, मैं हँसते हुए बोली,

" वो सलहज कौन जो ननदोई का बिना घोंटे छोड़ दे "

" अबे, तू किसी सलहज से ही बात कर रही है, अगली बार आएगी न तो तुझे नन्दोई के पास फटकने नहीं दूंगी, एकदम निचोड़ के रख दूंगी " पक्की मेरी भौजी और इनकी सलहज

और फिर वो डाक्टर मीता में तब्दील हो गयीं।

Asthenospermia का मतलब हुआ , की पुअर स्पर्म मोटिलिटी, असली बात ये समझ ले की लौंडे ही तो आते हैं लौंडियों के पास, तो अंडा तो बच्चेदानी में, तो शुक्राणु को ही चल के आना पड़ेगा, और बहुत तेज दौड़ते हैं साले, महक सूंघ के, लेकिन इस मामले में सब के सब महा आलसी हैं उनकी मोबिलिटी बहुत कम है इसलिए अंडे और बीज के मिलान का चांस बहुत ही कम है, दूसरी चीज उसने लिखी है,



मैंने खुद रिपोर्ट पढ़ के बोला, Oligospermia. एकदम मतलब स्पर्म बहुत कम हैं, मैंने इतनी रिपोर्टे देखी है लेकिन इतना कम स्पर्म काउंट पहली बार देख रही हूँ, इसलिए कह रही हूँ की न के बारे चांस है।



लेकिन मैं भी डाक्टर मीता की ननद, मैं इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाली थी। मैंने भौजी को चढ़ाया,

" लेकिन भौजी आप वो क्लिनिक चलती है न जिसमें अंडे और बीज को बच्चेदानी के बाहर "



लेकिन मेरी बात काट के सीरियस हो के एकदम डाक्टर मीता के रूप में वो बोलीं, मैंने सोचा था, लो स्पर्म मोटिलिटी हो तो कर सकते हैं, या यूटेरस में कोई परेशानी हो, एम्ब्र्यो और स्पर्म को बाहर फर्टिलाइज करा के फिर वापस बच्चेदानी में, लेकिन ये देख न की स्पर्म हैं कितने कम "


ये बात भौजी की एकदम सही थी, एक बार फिर मैंने रिपोर्ट पढ़ी और फिर वो बोलीं,


" चलो एक बार ट्राई कर लेते, लेकिन जो भी थोड़े बहुत हैं उनमे काम लायक बहुत कम हैं, ४ % क्या २ % भी काम लायक होते तो मैं काम चला लेती, लेकिन १ से भी कम हैं ०१ % तो इसलिए एकदम उम्मीद नहीं है।

फिर वो डाक्टर मीता से भौजी हो गयीं और दुलार से समझाया, देख कितनी भी अच्छी जमीन क्यों न हो, खूब उपजाऊ, दो तीन फसल दे दे, बिना खाद पानी के, हल भी तगड़ा हो, जम के खेत जोता जाए, लेकिन अगर बीज में ताकत नहीं होगी तो फसल होगी क्या, …नहीं न तो बस वही बात है।

मैं धीरे से बोली, भौजी कुछ तो रास्ता होगा, मेरे सामने बार बार ननद का चेहरा घूम रहा था, उदास, डरा हुआ।


वो चुप रहीं, फिर बोलीं,

" यार कोमलिया रस्ता तो है लेकिन वो जो तेरी गाँव वाली ननद है, वो तो चलो, लेकिन उसका मरद, बहुत मुश्किल है



फिर उन्होंने रास्ता बताया, आर्टिफिशयल इनसेमिनेशन, और बोला की उनका कोई परिचित है लखनऊ में उसकी क्लिनिक में स्पर्म बैंक है पर दिक्कत ये है की पति के साथ जाना पड़ता है।

फिर पति का स्पर्म उसी के यहाँ से एक्जामिन होना होगा। रिपोर्ट तो यही आएगी , लेकिन फिर तेरे उस ननदोई को लिख के देना पडेगा, की उसके बीज में बच्चा पैदा करने की ताकत नहीं है इसलिए वो परमिट कर रहा है , और फिर उसके सामने ही, और सब की वीडियोग्राफी, विटनेस, आधार कार्ड, इसलिए की कई बार मरद मुकर जाता है ,डी एन ए टेस्ट कराता है और कह देता है बच्चा मेरा नहीं है, औरत बदचलन है और तलाक लेकिन कौन मरद ये सब काम कागज पत्तर में करेगा।



वो खुद श्योर नहीं थी और मैंने मना कर दिया,

एक बार नन्दोई जी मान भी जाएँ लेकिन उनकी माँ,…

और कौन मरद मानेगा की उसका बच्चा पैदा करने लायक नहीं है, खासकर जब औजार इतना जबरदस्त हो. अगर मान लिया तो उसी दिन से पति पत्नी के रिश्ते में जो कड़वाहट आएगी, और फिर सीने पे पत्थर रख के, कहीं, लेकिन जब जब फूला पेट देखेगा तो यही सोचेगा मेरा नहीं है, और बच्चे के पैदा होने के बाद भी जिंदगी भर मन में एक फांस तो रहेगी ही, और फिर नन्दोई जी मेरे अपनी माँ के एकदम गुलाम, तो बिना उनको बताये कैसे, और किसी तरह मान भी लिया और बाद में बात निकल गयी तो, इसलिए ये तो हो ही नहीं सकता और अगर ननद गाभिन नहीं हुयी तो सास उनकी झोंटा पकड़ के सीधे आश्रम जहाँ गिद्ध सब दिन रात नोचेंगे



पति पत्नी के रिश्ते में भी कभी कभी थोड़ा झूठ, रिश्ता बचाने के लिए जरूरी होता है।
 
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komaalrani

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रास्ता

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और अब वह पूरी तरह डाक्टर मीता से मेरी भौजी हो गयी,

" यार स्साली, एक रास्ता है, "


" क्या भौजी " बड़ी उम्मीद से मैं बोली, जैसे प्यासे को रेगिस्तान में झरना दिख जाए,



" मेरा ननदोई, तेरा मरद, तेरे गाँव की लड़की है, तेरी ननद, तो ननदोई जी की तो बहन ही लगेगी " हँसते हुए वो बोलीं,

" हाँ एकदम " अभी भी मेरे समझ में नहीं आया था लेकिन बात तो भौजी की सही थी,

" तो सिम्पल, बना दे उस को बहनचोद, अरे मरद को बहनचोद बनाने से ज्यादा अच्छी बात क्या होगी तेरे लिए " हँसते हुए उन्होंने साफ़ किया



मैं भी खुल के हंसी, लेकिन फिर सीरियस हो गयी, और बोली, " लेकिन लोग कहते हैं की,… "



मेरी बात उन्होंने काट दीं और बोलीं, " देख यार अगर कोई रोग दोष होगा भी बच्चे को तो मैं हूँ न,… दूसरे क्या गारंटी है की कृत्रिम गर्भाधान कराओ या उसके अपने मर्द के जींस में क्या क्या है,

शादी के पहले कोई चेक करता है क्या और जो असली चीज है वही गायब है और दोष पक्का तेरी ननद को उसकी सास देंगी तो ट्राई कर के देख ले, अगर मेरे ननदोई तेरी बात न माने तो किसी और के साथ, लेकिन प्रक्टिकल रास्ता यही है।

अपने ननदोई की बात मैं इस लिए कर रही हूँ की वो चाक चौबंद हैं, हैंडसम तो बच्चा या बच्ची भी खूब सुन्दर होगा और उनके एक बार करने से ही गाभिन होने का चांस रहेगा, और किसी से कराएगी तो कही वो भी गड़बड़ निकला तो, …"

बात भौजी की सोलहो आना सही थी, शादी के बाद मरद के अंदर क्या खराबी है, पहले से कौन बता सकता है, और इनके बीज की ताकत, मुझसे ज्यादा कौन जानता है,

तबतक वही हेड नर्स, भौजी की मुंहलगी बोली, " वो एनेस्थीसिया वाली वेट कर रही हैं, पेशेंट भी तैयार है "



" बस एक मिनट " डाक्टर मीता उससे बोली और भौजी मुझसे समझा के बोली,



" देख कोमलिया, ज्यादा सोचना नहीं चाहिए। दही जमाना है और अपना जामन खराब हो गया है, तो क्या करेगा, जामन मांगेगा न, और किससे मांगेगा किसी जान पहचान वाले से पास पडोसी से, और दही तो उसीकी होगी जिसका दूध होगा, कहतरी होगी, जरा सा जामन के लिए क्या सोचना, तो बस अपनी ननद को समझा, दही जमा ले "



और उन्होंने फोन रख दिया और मुझे आइडिया मिल गया।



मैंने पहला काम किया उस कागज को ऐसे छिपा के रख दिया की कहीं किसी को न मिले, भौजी को भेजे मेसेज को फोन से मिटाया और कबड्डी के लिए निकल गयी, लेकिन सोच मैं यही रही थी, ननद के पास ज्यादा टाइम नहीं है। ये पक्का है की उसकी सास होली के बाद जैसे ही ननद लौटेंगी तो जबरदस्ती आश्रम भेज के मानेंगी और ननदोई भी अपनी माँ के आगे मुंह नहीं खोल पाएंगे। ननद की जो कनटाइन छिनार ननद है वो तो वैसे ही अब खुलेआम कहती है की जो भाभी बूआ नहीं बना सकती तो उसे छोड़ दूसरी भौजी लाएं।



कौन समझायेगा, एक नहीं दस लाएं नतीजा वही निकलेगा।



काम वाली तक तो बाँझिन बोलने लगी हैं और सास उनकी सीधे से नहीं तो इशारे से बोलती हैं की एक से एक बाँझिन का गुरु जी इलाज कर देते हैं, और ननद को मालूम है की वो गुरु जी क्या करते हैं और वहां क्या होता है।


लेकिन अंत भला तो सब भला तो, औरत के लिए बाँझिन से बड़ी गाली नहीं होती, श्राप नहीं होता, तो मैंने तय कर लिया,


उस रिपोर्ट का आखिरी टुकड़ा मैं आग में डाल रही थी और एक सोहर गा रही थी, उस रिपोर्ट की कानो कान खबर इनको और नन्दोई को छोड़िये मैंने ननद को नहीं लगने दीं।

जिस दिन इस घर की चौखट मैंने डाकी थी उसी दिन सोच लिया था, अब इस घर की चौखट मैं हूँ। कोई अलाय बलाय, दुःख परेशनी इस घर में घुसने नहीं दूंगी, और कुछ बिपत आएगी तो पहले उसे मुझे डाँकना होगा, मैं रोकूंगी उसे, और बियाह हो गया तो का, ननद तो इस घर की बिटिया है रहेगी, मेरी ननद को कुछ नहीं हो सकता।



मैं सोहर गुनगुना रही थी,... और रिपोर्ट का आखिरी टुकड़ा सुलग रहा था,बिना रुके आंसू की धार उन जले, जलते टुकड़ों को गीला कर रही थी।
सासु मोरी कहेली बाँझिन, ननद बिरजवासिन हो

बाघिन जिनके हम बारी बियाहीन उहे घर से निकसलिनी हो।

बाघिन हमरा के जो खाई लेहतु, बिपत्तिया से छूटते हों।

जहँवाँ से चली अईलू तहवाँ लौट जावौ हो।

बाँझिन तोहरा के जो हम खाइब हमहू बाँझिन होई जाइब हो,

धरती तुंही सरन अब देहु तो बाँझिनिया नाम छुटत हो।
जहँव से तू आइलु, उलटी चल जाऊ हो ,

बाँझिन तोहरा के रखले हमहुँ ऊसर होई जाईब हो।

( मेरी सास बाँझिन कहती है, ननद गारी देती है और जिनसे मैं बियाही, जो मुझे अपने साथ घर ले आये उन्होंने ही घर से निकाल दिया। हे बाघिन तुम मुझे खा लो तो मैं इस परेशानी से बच जाऊं। लेकिन बाघिन यह कह कर मना कर देती है की अगर उसने बाँझिन को खाया तो वो भी बाँझ हो जायेगी, उसके भी बच्चे नहीं होंगे। धरती जो सबको धारण करती है, उस सबकी माँ से जगह मांगने पर वह भी मन कर देती है की अगर मैंने तुम्हे अपने अंदर जगह दे दी तो मैं भी ऊसर हो जाउंगी )
 
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komaalrani

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कुमुद

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कुमुदनी से भरा था ताल, एकदम सफ़ेद, बीच बीच में हरे पत्ते, फैले छितराये, उसी कुमुदनी के पोखर में मिली थीं कुमुद भाभी, हरी हरी साड़ी, मांग में भरभरा के सिन्दूर, और खूब गोरी, कुमुदनी ही लग रही थीं,



मैं नौवीं में पढ़ती थी,

अभी तक याद है , छितरायी हुयी देह, ….टक टक देखती खुली बड़ी बड़ी आँखे,

मौसी का गाँव, हम लोगो के शहर से बहुत दूर नहीं था, और कोई दो चार दिन की भी छुट्टी हुयी तो बस हम सब मौसी के गाँव, कई बार माँ नहीं भी जाती थी, लेकिन मैं तो जरूर, मौसी की दो लड़कियां थी एक तो मेरे ही बराबर और दूसरी दो साल बड़ी, बहुत दोस्ती थी हम लोगों के बीच।

गरमी में शादी हुयी थी, कुमुद भाभी की, और जब आयीं तो अपने मौसेरी बहनो के साथ मैं भी,...

ऐसा गोरा रंग कभी देखा नहीं था, जो कहते हैं न हाथ लगाओ तो मैला हो जाये, धूप पड़े तो कुम्हलाय जाए एकदम वैसे, और बात बात पर खिस्स खिस्स हंसी, जैसे दूध खील कोई बिखेर दे, बड़ी लड़कियां, गाँव की ननदें एकदम खुल के मजाक,

"काहो भौजी मजा आया, खूब रगड़ाई हुयी न, ….बहुत दर्द हुआ का, "......

और उन बड़ी लड़कियों के बीच में धंसती, घुसती मैं भी,

और पता नहीं कैसे कुमुद भाभी की हंसती गाती आँखों से मेरी आँखों की दोस्ती हो गयी। उस भीड़ में मुझे वो ढूंढ लेती, ….फिर तो जब तक रही मैं मौसी के यहाँ, हर दूसरे तीसरे,

छह महीने के बाद मैं फिर मौसी के यहाँ गयी।

मुझमें और कुमुद भाभी में हफ्ते दस दिन में इतनी दोस्ती हो गयी की गाँव की लड़कियां, औरतें हम दोनों को चंपा चमेली की जोड़ी कह के चिढ़ाते थे।






पहली बात मैंने कुमुद भाभी के बारे में पूछी लेकिन मेरी बहन चुप।

जब मैंने अगले दिन कई बार कहा तो बड़ी मुश्किल से वो तैयार हुयी और जब मैंने कुमुद भाभी को देखा तो बस, पहचान नहीं पायी कहना बहुत कम होगा।

बड़ी बड़ी दिये ऐसे आँखे जो बिना काजर के भी कजरारी रहती थीं हरदम हंसती, गाती, नाचती, नंदों को चिढ़ाती, छेड़ती, अब एकदम कोटर में धंसी, तेजहीन। बाल एकदम सूखे, दुबली तो इतनी हो गयी थीं, हड्डी गिन ले, लेकिन उनकी हंसी नहीं बदली थी।

वही जैसे फर्श पर कोई दर्जनों कंचे एक साथ बिखरा दे,

मुझसे तो कुछ न बोला जा रहा था, न कुछ पूछा जा रहा था, लेकिन भाभी की हंसी, मीठी आवाज और थोड़ी देर में हम दोनों फिर चंपा चमेली की जोड़ी हो गए।

चलते समय बोलीं, हो सके तो जाने के पहले आना,



और दो चार दिन बाद एक बार फिर मैं कुमुद भाभी के यहाँ गयी, उस दिन वो सिकुड़ी मुकुड़ी, और एक चद्दर सा ओढ़े, मुस्करायी तो लेकिन लग रहा था जबरदस्ती मुस्करा रही हैं, वो बड़ी बड़ी आँखे, एक आँख सूजी हुयी थी, हलका सा काला दाग, बिना मेरे पूछे बोलीं हंसने की कोशिश करती,

" भहरा गयी थी, तुम बताओ, कैसा चल रहा है "

मेरा तो मन न जाने कैसा कैसा हो रहा था, फिर भी थोड़ी देर बैठी रही। तभी वो चद्दर सरक गया, और पीठ पर खूब गाढ़े गाढ़े नीले नीले निशान,

और मैं पूछ बैठी, भौजी ये,

चद्दर के साथ जैसे बहुत सम्हाल के भाभी का पहना हुआ ख़ुशी वाला मुखौटा भी गिर गया और उनके मुंह से निकल पड़ा,

" प्यार के निशान हैं ,…. शादी के बाद तुझे भी पता चल जाएगा "

लेकिन फिर उन्होंने चद्दर और वो ख़ुशी वाला मुखौटा दोनों ओढ़ लिया और मुझे दुलराते बोलीं ,

" अरे हमरे ननद जी को बहुत अच्छा लड़का मिलेगा, खूब प्यार करेगा, रोज रात को रगड़ेगा, अरे वो तो एक बड़ी सी अलमारी है घर में, लड़ गयी थी, ….लड़ने भिड़ने पे तो चोट लगेगी ही। "



अबकी उन्होंने नहीं कहा, " फिर आना "



और उसी के चार पांच दिन बाद, पोखर में,


पोखर गाँव के ठीक बाहर ही था, सफ़ेद सफ़ेद कुमुदनी से भरा, हरे हरे हरे पत्तों के बीच सफ़ेद कुमुदनी बहुत सुन्दर लगती,


और मैं और मेरी मौसी की लड़कियां अक्सर घुमक्का मारते, उधर भी,
और पोखर के किनारे बैठ के गपियाते, सफ़ेद बगुलों की कतारें देखते और कभी छिछली फेंकते, पानी के ऊपर से सरकते, फिसलते किसकी कितनी दूर जाती है, तो उस दिन भी हम तीनो बहने, और पोखर के पास भीड़ थी, भीड़ क्या आठ दस लोग रहे होंगे।

हम तीनो बहने भी धंस गए और जब मेरी नजर पड़ी तो,... बस मैं दहल गयी।

कस के अपनी बड़ी बहन का हाथ पकड़ लिया,


कुमुदनी से भरा ताल , एकदम सफ़ेद, बीच बीच में हरे पत्ते, फैले छितराये, उसी के बीच कुमुद भाभी, हरी हरी साड़ी, मांग में भरभरा के सिन्दूर, और खूब गोरी, एकदम कुमुदनी लग रही थीं

छितरायी हुयी देह, टक टक देखती खुली बड़ी बड़ी आँखे, ....लग रहा था कुमुद भाभी मुझसे ही कुछ कहना चाह रही हों


लेकिन तब तक उन लोगों ने हम तीनो को देख लिया और बड़ी जोर से डांट पड़ी,

" बच्चे लोग यहाँ क्या कर रहे हैं, ....घर जाओ "


और हम तीनो एक दूसरे का हाथ पकड़े सरपट घर, ....दिन भर हम लोगों के मुंह से न एक बोल निकला, न एक घूँट पानी पिया गया। बस हम तीनो एक दूसरे का हाथ पकडे दीवाल को देखते रहते,

रात को मैंने सुना मौसा, मौसी को बता रहे थे,

अरे सांझ के पहले फूंक ताप के, ….उनके यहाँ काम करने वाली दो औरतों ने बताया की उनके साथ वो सुबह सुबह पोखर पे आयी थी, पैर फिसला और, …. उन दोनों ने शोर भी किया कई लोग इकठ्ठा भी हुए लेकिन, ….बस उसी बात को लिख के प्रधान पति ने मरने का कागज भी बना दिया है, पंचनामा भी, …कल परसों कोई खबर कर देगा मायके में,



हम तीनो बहने साथ सोते थे, एक बिस्तर एक रजाई, खूब झगड़ा, चुहुल, मजाक, लेकिन उस दिन हम तीनो, एकदम चुपचाप,…



नाउन की एक बहू थी, कुमुद भाभी के साथ ही वो भी गौने उतरी थी, उनके यहाँ तेल बुकवा, और हम लोगो के घर भी, और हम तीनो बहनों की भौजी लगती थी तो मजाक भी खूब अच्छे वाले,



मरद उसका सूरत गया था गौने के दस दिन बाद ही,



उसी ने सब बताया, एक दिन मुझे तेल लगा रही थी उसी समय,

रोज तो जैसे तेल लगाते समय उसका हाथ घुटने पे पहुंचता हम सब कस के अपनी जाँघे सिकोड़ लेते और उछलने लगते, लेकिन कभी झट्ट से फिसल के कभी चिकोटी काट के तो कभी गुदगुदी लगा के पल भर में उसका हाथ,



" हे पकड़ी गयी, पकड़ी गयी, मछली पकड़ी गयी " खिलखिलाते हुए वो बोलती और चुनमुनिया उसकी मुट्ठी में। फिर तो वो रगड़ाई,
 
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कुमुद भौजी -कुमुदनी का ताल
Kumudani-pond-Crested-Floating-Heart.jpg


लेकिन आज नाउन भौजी भी एकदम चुप, मेरे चेहरे की ओर देखते हुए, और फिर उसने बोलना शुरू किया,

" एक दिन की बात नहीं थी, पहले दिन से ही, …समझदार माँ. बेटी को समझा के बोलती हैं,

’ बेटी मुंह बंद रखना, पहली रात में कुछ हो, न हो, …मरद दारु पी के आये, करवट कर के सो जाए,.. लेकिन अगले दिन ननदें जो चिढ़ायें, छेड़े तो मुस्करा के, लजा के,…”



तो बस वही हुआ,… तोहरी भौजी के साथ, " पैर दबाती हुयी नाउन भौजी बोलीं। फिर कुछ रुक के आगे की बात बतायी,

" लेकिन सास ननद, ....दो महीने के बाद ही पीछे पड़गयी, पोता चाहिए, भतीजा चाहिए। वो अपनी ओर से पूरा साथ देती,.... कभी हाथ से छू के पकड़ के यहाँ तक की मुंह से भी, …लेकिन, …कभी थोड़ा बहुत होता, कभी नहीं होता. अक्सर तो बाहर ही, घुसने से पहले ही, …पर वो कुछ नहीं बोलती थीं, खुश रहती थी। लेकिन एक दिन बस तोहरे भौजी क किस्मत ख़राब थी.सांझ से ही, …"


और अब नाउन भौजी की आँखे डबडबा आयीं, वो भी चुप हो गयी। तेल की कटोरी एक ओर रख दी और सब किस्सा बताने लगी ,

'उस दिन सांझ से ही जो कहारिन, अरे उनकी सास की मुंहलगी, वही,,,,

" लागत है मायके में खूब गुल्ली डंडा खेली हैं, दो चार बार पेट गिराए होंगी तो बच्चेदानी पे असर पड़ गया,” और उनकी सास ने और जोड़ा,

“अरे ये बाँझिन हमरे बेटवा क किस्मत में, ...रूप रंग लई के का चाटब, … दूसर जमाना होत तो चूतड़ पे लात मार के मायके भेज देते,... दूसरी ले आते, "

भौजी तोहार चूल्हा में भीगी लकड़ी सुलगा रही थी। एक एक बात सुन रही थी,किससे बोलतीं की,… दोस तो कही, ....लेकिन,…



रात में जब तोहरे भौजी क मरद,… उँगरी, होंठ कुल जोर लगा दी तोहार भौजी, कउनु तरह से, एक बार,… फिर भीतर घुसने से पहले ही लूज लूज

और ऊपर से वो जोर से डांटा, " तुमको बोले थे न ठीक से टांग फैलाओ, फिर, …"

और उनकी किस्मत खराब धीरे से मुंह से निकल गया, ‘हम का करी, तोही से, …’



चटाक जोर से एक चांटा मुंह पे पड़ा, वो पहला चांटा था और उससे ज्यादा किस्मत खराब थी उनकी सास जो हरदम दीवाल से कान चिपकाए रहती थीं, उन्होंने भी तोहरी भौजी क ये बात सुन ली

" हम का करी, तोही से,… "



और अगले दिन से ही मुझे याद आया,.... भाभी के पीठ पर नील का निशान, और मैंने नाउन भौजी को बताया। किसी तरह आंसू रोकती वो बोलीं,

"अगले ही दिन, उनकी सास, बेल्ट से , और उनकी ननद और जो कहाईन बर्तन साफ़ करती है न, उनकी सास की मुंहलगी, उसके सामने ही .

और ये गालियां .


तोहरी भौजी की महतारी को, उनकी छोट बहिनिया को, ....एक बेल्ट मारती थीं फिर गारी,

" तोहार महतारी इहो न सिखाई की मरद के आगे मुंह नहीं खोलते,… छिनार, इतना तोहरी बुर में आग लगी है की हमरे बेटवा से जबान लड़ाती है, बाँझिन "

और फिर बेल्ट और जोर से पीठ पे,

"और वो कहिनिया बुरचोदी, मुँहझौंसी," नाउन भौजी बहुत गुस्से में लग रही थी, रुक के बोलीं,

" वो और, बोलने लगी,तोहरे कुमुद भौजी से

'अरे तोहार सास एकदम सीधी गाय हैं, कोई और होता तो जलता लुआठा ले के,…"

"एकदम," सास बोली और तिबारा सटाक से बेल्ट, फिर सास चालु हो गयी,

"अइसन चुदवास लगी हो तो जाय के चमरौटी, भरौटी में मुंह करिया करा,… हमार जान छोड़ दा, "



और एक बेल्ट और, फिर ननद भी मैदान में आ गयी,

" रात भर तो भैया चढ़े रहते हैं तो भी मन नहीं भरता, तो… "

और आगे की बात पूरी की उसी कहाईन ने,

“हरवहवा से पेलवाय ला,… जाती, तो हो खरमिटाव देने, ….बाँझिन को तो गाभिन भी होने क डर नहीं"



और ननद ने तुरंत हाँ में हाँ मिलाई, " एकदम खेत तो जोतता है तोहरो खेत जोत देगा, सही तो कह रही हैं "



मैं दहल गयी, सोच के ही, नाउन भी चुप फिर आगे की बात, उस रात की बात , जिसके अगले दिन कुमुद भाभी,

मैं चुपचाप बैठी सुन रही थी, लग रहा था जैसे कान में कोई पिघला शीशा घोल रहा हो।



कुमुद भौजी रात में खाना बना रही थी, उन्ही के सामने, सास उनकी बोल रही थी, पहले की बात होती तो एक बोतल किरासिन तेल काफी था, कह देते खाना बना रही थी जल गयी,

तबतक उनका बेटा, भौजी का पति आ गया और चुप का इशारा करते हुए माँ को बाहर बुलाया,



" अरे माँ, ....ये सब सोचना भी मत आज कल क़ानून,... "

लेकिन उनकी बात काटते हुए सास बोलीं

" कौन करेगा थाना कचहरी, …महतारी तो उसकी भिखमंगी है, और छुटकी बहिनिया भी है,.. उसका बियाह, "

" हाँ माँ, उसी को ले आएंगे, और छोटी है तो क्या, गाँव में कौन, …अभी आठ में पढ़ती है लेकिन हमरे भैया हुमच के, …तो एक बार में छोटी से बड़ी हो जायेगी " ननद चहकती हुयी बोली।



कुमुद एक एक बात सुन रही थी और रोटी सेंकती जा रही थी, उसी की शादी में घर गिरवी हो गया था, और,... छोटी बहन,



जब वो अपने कमरे में चली गयी, तो एक बार फिर, सास, सास का बेटा, ननद भी मौजूद थी।

उन लोगो ने अपने हरवाह का बुलाया, २४-२५ साल का, और उसको बोला की उसको पंचायत बुलानी है और कहना है की उसका संबंध कुमुद से है, वो नहीं चाहता था लेकिन कुमुद ने जबरदस्ती करके, …

और सास ने समझा भी दिया, चार बिस्सा पोखरा के बगल वाली जमीन अधिया पे, और बीस कट्टा धान, और पंचायत में तो सब अपने ही हैं तोहें कुछ नहीं होगा।

जिंदगी में एक इंच ज़मीन जिसकी न हो चार बिस्सा मिल जाए, भले ही अधिया हो लेकिन हरवाह ने एक सही सवाल उठाया,

" कौन मानेगा हमारी बात, बड़मनई क मेहरारू, …हरवाह के साथ "



और अब ननद मैदान में आ गयी, " अरे तो कोई निशान बता देना न जो और कोई न देखा हो, भैया बता देंगे न, ओकरे बाद तो पंचायत तोहरे ओर, "

भैया ने बता दिया,’ बायीं जांघ पे एकदम ऊपर, एक बड़ा सा तिल है, और दायीं और चूतड़ के बीचोबीच, एक बड़ा सा दाग है पैदाइश का।



और एक बार मर्दों वाली पंचायत में हरवाह ये सब बोल देता तो तोहार भौजी को औरतों की पंचायत वहीँ तुरंत, नाउन भौजी बोलीं



" उसमें का होता है " मैंने जानना चाहा।



" खाली औरतें, …कुँवारी लड़कियां भी नहीं। सास उसकी बोलीं, अपनी कहिनिया को बोल देंगी, वही बरतन वाली, अपने पुरवा के दो तीन औरतों के साथ झोंटा पकड़ के ले जायेगी। पंचायत में सब औरतें ही है,… तो सबके सामने साड़ी ब्लाउज पेटीकोट, ….एकदम नीसूति



फिर जो जो निशान हरवाहा बताया था, वही कहिनिया और दो चार औरतें जांचती,

और निशान अगर मिल गया तो उसकी बात पक्की ।

लेकिन इतना ही नहीं एक कड़ाही में दो सेर तेल साथ में खौलाया जाता और तोहार भौजी क बात सही है की गलत जानने के लिए उनका हाथ उसी खौलते तेल में दस मिनट तक,…. अगर हाथ नहीं जला, तो मतलब औरत बेदाग़ है लांछन गलत है और एक फफोला भी पड़ गया तो लांछन सही है, फिर पंचायत सजा सुनाएगी। " नाउन भौजी बतायी और जोड़ी,



" तोहरे भौजी क सास बोलीं, अरे कहिनिया रही न आपन, उसीको लगाउंगी, बहुत जोर है, कस के हाथ पकड़ के डालेगीऔर दस मिनट हो या आधा घंटा जब अच्छी तरह हथवा झुलस नहीं जाएगा तब तक,…. "

अब मुझसे नहीं रहा गया, " भौजी लेकिन उ हरवहवा क ना हाथ कड़ाही में, …ओकर कउनो जांच ना '



नाउन भौजी चुप थीं, बड़ी देर तक मुझे देखती रहीं। फिर मेरी ठुड्डी पकड़ के ठंडी सांस ले के बोलीं,


" बबुनी तू ता पढ़ल लिखल हो, …अगिन परिच्छा आज तक खाली औरत की हुयी ना,… "



मैंने भी ठंडी सांस ली और हम दोनों चुप रहे, लांछन लगाने वाले से कौन पूछता है , सही कह रही थी भौजी।


" और एक बार हाथ झुलस गया तो सजा पंचायत के हाथ, ….बाल मुड़ाय के , मुहे पे करिखा पोत के गदहा पे बैठा के,…. गाँव के बाहर”

भौजी बस रो नहीं रही थीं,... करेजा काट के बता रही थी,

फिर बोलीं, "हम खुद अपने काने से एक एक बात सुने, ....लेकिन बाद में जब सब होय गया,... तो हमें अंदाज है की तोहार भौजी, ….उहो कुल बात सुन ली होंगी,"



हम दोनों चुप थे . लेकिन मैं सोच रही थी कुमुद भाभी ने क्या सोचा होगा, बदनामी से तो अच्छा, ....फिर जो छोटी बहन बैठी है उससे भी कोई शादी नहीं करेगा, माँ की बेइज्जती अलग, ....और सुबह सुबह,…



वही कहिनिया, बर्तन वाली, और उसके पुरवा वाली बोलीं की पोखर के किनारे बैठीं थी,…. 'हाथ धो रही थीं, फिसल गयी, हम लोग बहुत हल्ला किये लेकिन,…'


वो हरवाह भी बोला, अंगूठा भी लगाया,… की खेत में जा रहा था तो वो देखा की पोखर के किनारे बैठ के हाथ गोड़ धो रही हैं, फिसल गयीं,



कुमुदिनी के फूलों के बीच छितरायी कुमुद भाभी की देह, जैसे कुमुदिनी का बड़ा सा फूल हो,



जब मेरी ननद ने मुझसे कहा, " भौजी, कहीं ताल पोखर में मिलूंगी। मैं अगर मेरी सास ने जबरदस्ती आश्रम भेजा,… "


मेरे सामने कुमुद भाभी की सीन, ....पोखर में कुमुदनी के बीच



कुछ भी हो जाए, कोई पाप करना पड़ें, कुछ भी लेकिन मैं अपनी ननद को उस तरह नहीं देख सकती थी और आश्रम में गिद्ध की तरह नोची जाती वो,



मैं खिड़की से बाहर देख रही थी, कभी आँख के सामने कुमुद भाभी का चेहरा,.... कभी अपनी ननद का,
 
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मेरी ननद

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मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बस सूनी आँखों से उस रास्ते को देख रही थी जिधर से मेरी ननद गयी थीं, कभी उनकी उदास सूरत नजर आती आँखों के सामने,

“ भौजी, अगर वो साधुवा के पास जाना पड़ा तो बस ये आखीरी मुलाकात, इसलिए मैं अबकी इतना रह गयी, घर क आँगन डेहरी देख लूँ, जहाँ गुड्डा गुड़िया खेली, माई से तो बता नहीं सकती थी, इतना दुःख का बोझ, नहीं बर्दास्त कर पाती वो, एक तो बड़की भाभी चली गयीं तोहार छुटकी ननदिया को लेके, और बड़े भैया तो अब बम्बइये के, उनका बस चले तो सब खेत खलिहान बेच के बंबई ही, और फिर हमार ये, “

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जिस तरह से ननद भभक के रोई थीं,

मैंने तय कर लिया था कुछ भी हो आपन ननद को,

ओह्ह साधुवा, उनकी सास और ननद के बीच दीवार की तरह खड़ी होना पड़े,



इसलिए छुटकी को इतने दिन मैंने घर से दूर रखा, अरविन्द गीता के यहाँ फिर नैना ननदिया के साथ,…

है तो बच्ची ही, कहीं गलती से ही कुछ सुन लेती, कुछ मायके में मेरे जाके मुंह से निकल जाता उसके,

ये बात सिर्फ मेरी ननद और हमारे बीच की थी, इनको बताने का तो सवाल ही नहीं था। गुस्से से पागल हो जाते, अपने बहनोई के साथ, ननद की ससुरार में,

अब चाहे जो पाप दोख लगे, बरम बाबा, सत्ती माई, भाई का बीज बहिन के कोख में,

लेकिन हमको कुछ और नहीं सूझा, जो पाप दोख लगे, बस हमको लगे, भले हमरी कोख पे लगे, हमरे ननद को कुछ न हो उनकी कोख हरदम हरी रहे, नौवें महीना सोहर हो, उनकी मुंहझौसी सास ननद क मुंह बंद हो, हमार सोना अस ननद,



मेरी सास, अब जब खुश खबरी उनकी समधन की ओर से आ गयी थी तो पूजा मनौती, तिझरिया तक तो उनको आना नहीं था, लेकिन दो चीजे आ गयी और मेरा मन एकदम बदल गया,

एक तो मायके से फोन मेरी माँ का, और उसके बाद मेरी सास का पूत, मेरी सास और ननद का भतार ये




बताती हूँ , बताती हूँ अगली पोस्ट में
 
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ये सौवां भाग जैसा बन पड़ा आप लोगों की सेवा में हाजिर है और इन पोस्टों के लिखने के बाद कम से कम मैं ज्यादा कुछ कहने, बोलने की हालत में नहीं हूँ। हाँ बस कह सकती हूँ, जैसा कुछ आप लोगों को लगे, मन में महसूस हो तो हो सके तो दो चार लाइन लिख जरूर दीजियेगा।
 
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