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Sheera hiii cसब जिम्मेदारी इमरतिया की- तोहार देवर तोहरे हवाले
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तिलक चढ़ गयी थी उनकी, तिलकहरुओं ने पूरा आँगन भर दिया था, इतना सामान, और परजा पौनी को भी ,
शादी १२ दिन बाद थी पूरा घर रिश्तेदारों से भरा, अगले दिन उड़द छूने के बाद ही रीत रिवाज चालु हो गए थे और नाउन होने के नाते सब जिम्मेदारी इमरतिया की फिर भउजी भी थी बड़ी।
नई दुल्हन के लिए कमरा ऊपर था और कोहबर भी ऊपर ही बना था। उन कमरों के आगे बड़ी सी खुली छत, और एक ;लंबा सा बरामदा, जिसमे से दोनों कमरों के, कोहबर के और सूरजु सिंह के दरवाजे खुलते थे, और सीढ़ी भी उसी बरामदे में खुलती थी।
नीचे मेहमान सब भरे
तिलक के दो दिन पहले से ही हलवाई बैठ गए थे, एकलौते लड़के की शादी, खूब चहल पहल।
तिलक के अगले दिन से सब रीत रिवाज, और सबसे ज्यादा जोश में सूरजबली सिंह की माई, सबेरे सबेरे मांगर आया, ढोल की पूजा, कोहबर ऊपर था और लड़के का कमरा भी, उस जमाने में गाँव में पक्के घर दो चार ही थे और दुमंजिला तो उस पट्टी में खाली उन का ही, इसलिए पूरे बाईसपुरवा में बड़का घर बोला जाता था।
तिलक के अगले दिन सांझ की जून, छत पर औरतों का घमकच, और उन के बीच दबे सहमे सिकुड़े बैठे, सुरजू। सामने उन की माई और उन के बगल में इमरतिया, नाउन भी, भौजाई भी।
" आज से मुन्ना बरात निकले तक एहि कोठरी में रहना है, बाहर कदम नहीं निकालना है , और कुछ भी हो, तो तोहार भौजी तोहरे साथ रहिए, अब दस बारह दिन उन्ही क राज, बिना सोचे कुल बात माननी होगी, अइसन मीठ मिठाई ऐसे थोड़ी मिलेगी "
सुरजू की माई ने इमरतिया की ओर इशारा करते हुए कहा।
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रिवाज भी यही था, कोहबर के बगल के ही एक कमरे में दूल्हे को रखा जाता था और वही कपडे पहने, और कोहबर में मांडव में कोई भी रीतरिवाज के लिए, माटी खोदने, ताल पोखर जाना हो तो सब साथ में नाउन और भौजी, जिसके ऊपर दूल्हे की जिम्मेदारी होती थी , किसी की नजर न पड़े।और यहाँ तो नाउन भी इमरतिया और भौजी भी इमरतिया और सुरजू की माई की सहेली कहें राजदार कहें, वो भी इमरतिया और सुरजू सिंह जिसे देख थोड़ा बहुत लुभाते थे, वो भी इमरतिया, और ये बात इमरतिया को भी मालूम थी और सुरजू की माई, बड़की ठकुराइन को भी।
" एकदम, भौजाई क बात नहीं मानोगे तो बियाह के मिठाई ले आओगे तो भी नहीं मिलेगी, ...हफ्ता भर बाद कंगन खुलवाउंगी" एक गाँव क भौजाई बोलीं।
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लेकिन इमरतिया अपने देवर की ओर से बोली,
" अरे नाही, हमर देवर को ऐसे घबड़ाय रहु हो , ...बेचारे इतने दिन से भूखे हैं मिठाई के लिए, ...अरे ओहि दिन मिले, ....खाया मन भर मजा ले ले के "
और सब औरतों की खिलखिलाहट से छत गूँज गयी।
वैसे तो औरतें जहाँ इकट्ठा होती थीं, खुल के मजाक, न उम्र का लिहाज, न रिश्ते का, हाँ लेकिन ये सब मर्दो के सामने नहीं होता था, गारी भी गयी जाती थी कोठरी में से, पर शादी बियाह में औरतें एकदम बउरा जाती हैं। और मर्दो वाली शर्म लिहाज में दूल्हा नहीं जोड़ा जाता, उसी के सामने उसकी भौजाइयां, बुआ सब उसकी महतारी, बहन सब खुल के गरियाती हैं। सब रस्म में दुलहा तो रहता ही है तो उसका कोई लिहाज नहीं होता, जैसे वो वहां हो ही नहीं,...और उसके साथ सिर्फ नाउन या कोई भावज ख़ास बस।
उस जमघट में औरतों के साथ गाँव की लड़कियां, बच्चिया भी और उसी में एक शीला, सूरजबली सिंह की फुफेरी बहन बुच्ची की सहेली, उसी की समौरिया, बोल पड़ी
" अरे हमरे भैया को समझती का हो सब लोग,.... रोज हजार डंड पेलते हैं "
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" अरे अब लंड पेलेंगे, ....और जब तक तोहार भौजाई नहीं आती हैं,... तो तोहरे साथ "
एक गाँव क भौजाई बोलीं
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और अबकी जब ठहाके गूंजे सबसे तेज सूरजबली सिंह की महतारी की आवाज थी, अब वो इमरतिया से बोलीं,
" और बुकवा ( उबटन ) आज से ही लगना चाहिए और दूनो जून, अब तोहार देवर तोहरे हवाले "
" एकदम अभी से दो कटोरा पीस के रखी हूँ, बस थोड़ी देर में, खाने से पहले ही "
इमरतिया सूरज सिंह की ओर मुस्करा के देखते बोली।
" भौजी, तिसरकी टांग में जरूर लगाइएगा " गाँव की एक बियाहिता लड़की इमरतिया को छेड़ते बोल पड़ी।
इमरतिया क्यों किसी ननद को रगड़ने का मौका छोड़ती, बोली
" एकदम खूब रगड़ रगड़ के, ...लेकिन जो शीरा निकलेगा, वो ननद को पीना पड़ेगा "
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Le to gyi Imratia dulhe ko kamre meinबुच्ची
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और तबतक बुच्ची आ गयी,
वही सूरजु की बूआ की लड़की, कच्चे टिकोरे वाली, जो जरा सा चिढ़ाने पे मुंह बना लेती थी और पैर पटकने लगती थी और ऐसी नंदों की तो भौजाइयां ऐसी की तैसी कर के रख देती थीं और शादी ब्याह का मौका हो तो और, लेकिन अभी कोई भौजाई बोलती बेचारी बुच्ची, खुद बोल पड़ी, बिना समझे
" शीरा तो मुझे बहुत अच्छा लगता है, एक एक बूँद चाट जाउंगी "
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अब सब भौजाइयां मुस्कराने लगीं और इमरतिया की एक सहेली, कहारिन,मुन्ना बहू जो उससे भी ज्यादा मुंहफट थी हंस के बोली
" ननद हो तो ऐसी, ….इमरतिया अब तोहार बारी,... आज ही शीरा पीयाय देना "
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सबसे ज्यादा सुरजू सिंह की माँ मुस्करा रही थीं, अब लग रहा था शादी बियाह का घर।
और इमरतिया क्यों पीछे रहती वो बुच्ची से बोली
" अरे ये भी एक रस्म है, दूल्हे की बहन को रोज जो दूल्हा मिठाई खायेगा, .खाना होता है ..तो तो तोहार भैया क रसगुल्ला क शीरा "
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बड़ी मुश्किल से औरतें अपनी मुस्कान रोक पा रही थीं, और ऊपर से सूरज सिंह की महतारी वो भी मैदान में आ गयीं
" और क्या बिना रस्म रिवाज के, इतनी आसानी से भौजाई मिले और बुच्ची तू और शीला दुनो जनी यहीं रात में कोहबर रखावे, और साथ में तोहार भौजाई लोग "
( उन्होंने इमरतिया और मुन्ना बहू, वही इमरतिया की सहेली कहारिन को इशारा किया, कोहबर में पांच औरतें रात में रहती थीं, जिसमे कुछ सुहागिन और कुछ कुँवारी लड़कियां रहती थीं। वो रात में कोहबर वाले कमरे में ही जबतक दुल्हन घर में नहीं आ जाती थी वहीं सोती थी। वो कमरा जिस कमरे में दुलहा रहता था उसके बगल में ही )
और पांचवीं औरत को वो ढूंढ ही रही थी की सूरज सिंह के ननिहाल की, रिश्ते की एक भौजाई, मंजू भाभी बोलीं, मैं रहूंगी ऐसी मस्त कच्ची कलियाँ साथ में रहेगी और बुच्ची का गाल नोच लिया।
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अब तो सब भौजाइयां एकदम ननदों के पीछे,
" लेकिन ठंड, " बुच्ची ने बचने की कोशिश की तो गाँव की कोई नयी ब्याहता लड़की, दुलारी उसे चिढ़ाते बोली,
" अरे ठंड क इलाज,... लंड है :"
और फिर भौजाइयां, सब एक साथ चालू हो गयीं। मुन्ना बहू सीधे बुच्ची से बोली
" और शादी बियाह के घर में तोहरे अस मस्त माल के लंड क कौन कमी, सब तो तोहरे भाई लगेंगे, करवा ला घपाघप, घपाघप ।
दूसरी बोली, ' जितना गर्मी चुदाई में है उतना रजाई में नहीं , एक बार करवाय के देख लो, फिर खुदे खोल के टहरोगी। "
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बुच्ची से ज्यादा हालत सरजू सिंह कीखराब हो रही थी, उनकी माँ ठीक सामने बैठीं थी, और ये सब बात सुन के खूब रस ले ले के मुस्करा रही थीं पर वो सुरजू की हालत समझ रही थीं, इमरतिया से बोलीं
" ले जा आपने देवर के उनकी कोठरी में, "
और इमरतिया ने उनका हाथ पकड़ के उठाया और कमरे की ओर लेकिन वो लोग कमरे में घुसे ही थे की सूरज सिंह की माँ ने अपने पूत को आवाज लगा के रोक लिया
" और सुनो, अपने भौजाई क कुल बात माना, अब तू उनके हवाले, ....सोच लो तभी मिठाई खाने को मिलेगी जो जो वो कहें " मुस्करा के वो बोलीं
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Super dupr erotic updateदूल्हे की कोठरी
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और कोठरी में घुसते ही इमरतिया ने दरवाजा बंद कर के कुण्डी लगा दी, और आँख नचा के बोली
" नई दुल्हन इतना नहीं लजाती, जितना तू लजा रहे हो। अरे कउनो परेशनी नहीं होगी, तोहार भौजी हैं न साथ में, बस जउन बात तोहार महतारी कहें है वही, और सीधे से नहीं मानोगे तो जबरदस्ती, बस अभी हम थोड़ी देर में बुकवा ले के आ रहे हैं."
. इमरतिया ने एक बार ध्यान से कमरे को देखा, इसी कमरे में उसका देवर अपनी नयकी दुलहिनिया की, उस हाईस्कूल पास की, चूत फाड़ेगा, अभी चौदह दिन बाद होगी चुदाई जबरदस्त, ११-१२ दिन बाद तो बरात जायेगी, दो दिन की बरात, चौदह दिन बाद उतरेगी दुल्हिन, और ये बात तो बियाह के पहले से लड़के लड़की दोनों को मालूम रहती है, खाली दुल्हिन के बियाह के लाने से कुछ नहीं होगा, जब तक नाउन और भौजी लोग कंगन नहीं खुलवाएंगी, मौरी नहीं सेरवाई जायेगी, ललचाते रो एक दूसरे को देख के मिठाई खाने को नहीं मिलेगी।
लेकिन इमरतिया ने इसलिए सुरजू देवर को समझा दिया था, पहले दिन ही कुश्ती होगी, बेचारे इतने सोझ, भौजाई चिढ़ा रही थीं और वो सच मान गए चेहरा कुम्हला गया, कैसा भुकुस गया,
कमरा खूब बड़ा था, आठ दस पलंग आ जाएँ ऐसा लेकिन अभी कोई पलंग क्या कुछ भी नहीं था, सिर्फ जमीन पर एक बिस्तर था, और दरी बिछी थी, हाँ जब बारात जायेगी तो बड़की ठकुराइन ने खुद इमरतिया को बताया था,
इमरतिया ने ही छेड़ कर ठकुराइन से पुछा था गोड़ दबाते समय,
सुरजू की माई को तेल लगाते समय बस पांच मिनट के अंदर साडी पेटीकोट सब इमरतिया कमर तक उलट देती थी, बोलती, अरे तेल लग जाएगा, और चला हमहुँ आपन उघाड़ ले रहे हैं कमरा तो बंद है"
तो बस तेल लगाते हाथ सरक के जांघ पे, फिर तेल की कटोरी सीधे, वहीँ , तो बस उसी समय इमरतिया ने सुरजू का जिक्र करते हुए छेड़ा था,
" हमार देवर तो पहलवान है, बड़की ठकुराइन तो कहीं पहली रात ही पलंग न टूट जाए, बड़ी बेइजजती होगी "
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" अपने देवर को बोल देना, ओह हाईस्कूल वाली पे जितना जोर लगाना हो लगा लेगा, पलंग नहीं टूटने वाली है, तोहरे देवर और ओकर दुलहिनिया के लिए अबकी सहर से नयी मसहरी बनवाये हैं, अइसन मजबूत लकड़ी है की हाथी चढ़ जाए तो न टूटे, और चौड़ी इतनी की तोहरे देवर क दुल्हिन के साथे ओकर दो चार बहिन महतारी हों तो वो भी लेट के मजा मार लें। और साथ में कुर्सी वुरसी सब, बरात जायेगी तो बस उसी दिन सब आ जायेगा, "
बस इमरतिया ने दोनों फांक फैला के तेल चुआना शुरू कर दिया, बस इन्ही सब बदमाशियों से तो बड़की ठकुराइन सुरजू क माई इमरतिया को मानती थीं, पर वो इमरतिया से बोलीं,
" तोहरे देवर को ताकत चाहे जितनी हो, लेकिन पलंग क कुश्ती क दांव पेंच में एकदम अनाड़ी है,...अभी तक खाली कुश्ती, अखाडा और लंगोट का सच्चा, "
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इमरतिया, सुरजू का माई क मतलब समझ गयी, अपनी हथेली से बड़की ठकुराइन की प्यासी चुनमुनिया पे मसलती बोली,
" अरे देवर क भौजाई काहें लिए है, लगन एक बार लगने दीजिये, कुल गुन सिखा दूंगी, गाँव का नंबरी चोदू मात, पहले दिन ही वो हाईस्कूल वाली अस चोकरेगी की ओकर महतारी क भी मालूम हो जाएगा, बिटिया अच्छे से चुद रही है "
बड़की ठकुराइन सिसकी लेते बोलीं,
" एकदम दस बार बोलीं,ओकर महतारी की हमार बिटिया हाईस्कूल पास है, मन में आया की बोल दूँ की आखिर भेज तो चुदवाने के लिए रही हो लेकिन सोचा की कहीं नया नया रिश्ता है बुरा न मान जाए, शहर के लोग "
" अरे बुरा मानने से कहीं बुरिया बचती है, " हँसते हुए मलते हुए इमरतिया बोली।
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तब तक सुरुजू बोले, और इमरतिया का ध्यान टुटा,
" भौजी, का सोच रही हो "
इमरतिया मुस्करा के छेड़ते बोली
" यही सोच रही हूँ देवर जी की चौदह दिन के बाद का होगा रात में यह कुठरिया में जब नयकी दुलहिनिया आएगी "
और सुरजू झेंप गए, उनका गाल मींजते हुए भौजी ने चिढ़ाया,
" इतना तो तोहार दुहिनिया न लजाये, अरे चुदवाये आएगी, तो चोदी जायेगी, न चोदबा का, अरे भौजाई और महतारी क नाक जिन कटवाया "
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और ऊँगली से चुदाई का इंटरनेशल सिंबल बना के अपने देवर को दिखाया,
" धत्त, भौजी "
इमरतिया जान रही थी की गाँव में १०० में ९५ लड़के तो घास वाली को काम वाली को चोद चोद के पक्के हो जाते है, बियाह के पहले दर्जनों को निपटा देते हैं बाकी पांच में दो चार को डर रहता है की मुट्ठ मार मार के कहीं कमजोर तो नहीं हो गया, ऐन मौके पे खड़ा होगा की नहीं और एकाध ही सुरजू की तरह सोझ होते हैं लेकिन सोचते वो भी हैं की हो पायेगा की नहीं, कभी किया तो है नहीं। "
लेकिन इमरतिया को अपने देवर के औजार पे पूरा भरोसा था हाँ वो चाला कैसा पायेगा, ये तो उसे ट्रेन करने पे था, फिर से छेड़ते सीधे सुरजू के खूंटे को घूरते बोली,
" लजा जिन, और अब तू भले लजा लो, मैं नहीं लजाने वाली, आज से ही तोहार कुल लाज बुकवा के साथे रगड़ रगड़ के छुड़ा दूंगी "
बाहर से भौजाइयां जिस तरह से नंदों को छेड़ रही थीं, सब आवाज साफ़ साफ़ आ रही थीं, सबसे ज्यादा बुच्ची की रगड़ाई हो रही थी और सबसे ज्यादा आवाज साफ़ सुनाई पड़ रही थी, सुरजू की माई की और वो भौजाइयों को खूब चढ़ा रही थीं ,
इमरतिया ने देखा, कमरे में तीन ओर बड़ी बड़ी खिड़कियां थीं, एक तो बरामदे में ही खुलती थीं, जहां औरतें बैठी थीं और जहाँ गाना होना था। लगता है बंद खिड़की में भी कुछ फोफर होगा, जिससे आवाज साफ़ साफ़ आ रही थी।
एक खिड़की सीढ़ी की ओर और एक पीछे आम के बगीचे में खुलती थी, शायद ठकुराइन ने सोचा होगा की दूल्हा दुल्हिन खिड़की खोल के पुरवाई का मजा लेते हुए चुदवाने का सुख लेंगे, खुद उन्होंने इमरतिया से बोला था
" एक बार दुल्हिन को ननद कुल पहुंचा देंगी तो रात में सीढ़ी का दरवाजा भी बंद, बारह घंटे बाद ही खुलेगा। कम से कम महीने भर सुरजू क खेत वेत जाना बंद, पोते का मुंह देखना है तो ये सब करना पड़ेगा "
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" और क्या नया खेत जोते न, डारे पानी मन भर " हँसते हुए इमरतिया बोली सुरजू क माई से बोलीं ,
तो एक बार सीढ़ी बंद हो जाती तो जहाँ चाहें छत पे वहां मजा लें और खिड़की खोल के तो एकदम ही , गाँव में किसी और का दुतल्ला उस समय तो था नहीं।
आती हूँ अभी बुकवा ले के और ये सब कपडा उतार के एक तौलिया पहन के तैयार रहना, हर जगह लगेगा " इमरतिया ने अपना इरादा साफ़ कर दिय और बाहर।
और बाहर सूरजु सिंह क महतारी सब औरतो को आगे क काम बता रही थी, और सबसे पहले बुच्ची और उसकी सहेली दखिन पट्टी वाली शीला को,
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" अभी जाके नीचे से बिछौना, बड़की रजाई, और अपने भैया के लिए खाना, ….जउन इमरतिया भौजी कहें, वो सब नीचे से और कउनो चीज्ज चाहे तो हलवाई से बोल के, …..बड़ी जिम्मेदारी है कोहबर रखावे की, अइसन मीठ मीठ भौजाई ऐसे न मिली और जैसे जैसे भौजी लोग कहें, …..पहले तोहार भैया खाय ले ओकरे बाद,"
और फिर भरौटी से आयी दो औरतों को उन्होंने काम पकड़ाया,
" कल से गाना शुरू हुयी, तो तोहनन क जिम्मेदारी आज से जाके बबुआने के साथ साथ भरौटी, चमरौटी , अहिरौटी, बाइस पुरवा क कउनो पुरवा बचना नहीं चाहिए। बोल देना की बड़के घरे में इतने दिन बाद बियाह पड़ा है, कउनो मेहरारू बिटिया, और ननदों को तो जरूर, नाच गाना, और कुल नंदों का पेटीकोट का नाडा खुलना चाहिए,
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Bilkul the best trainer lagti hai Imratiaननद भौजाई- बुच्ची और इमरतिया
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" और जो शलवार वाली हैं ? " उनके मायके से आयी, मंजू भाभी ने ललचायी निगाह से कच्ची कलियों को देखते पुछा।
बुच्ची और शीला को देख के मुस्करा के सुरजू की माई बोलीं, " उनका तो सबसे पहले,....दूल्हा क बहिन हैं "
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बुच्ची का गाल सहलाते वो कहाईन मुन्ना बहू बोली,
" अरे नीचे क घास फूस साफ़ कर लीजिएगा, कल बिलुक्का ( बिल ) देखायेगा। "
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तबतक इमरतिया सूरजु को पहुंचा के बाहर निकल आयी थी और बुच्ची को पकड़ के बोली,
" अरे काहें हमारी बारी सुकुवाँरी ननद को तंग कर रही हो, वो काहें साफ़ करेंगी ? आखिर नाउन भौजी काहें हैं ? अरे नाऊ लोग जैसे मर्दन का दाढ़ी मूंछ बनाते हैं न ओहि से चिक्क्न, तोहार भौजी, नीचे वाले मुंह क बाल साफ़ करेंगी। जउन तोहार मक्खन अस चिक्कन गाल है न उससे भी चिक्कन नीचे वाला मुंह हो जाएगा , महीना भर तक झांट का रोआं भी नहीं जामेगा। जउन मरद देखेगा, चाहे तोहार भाई , चाहे भौजाई क भाई, बस गपागप, गपागप, घोंटना रोज टांग उठाय के "
उसका गाल सहलाते हुए इमरतिया ने समझा दिया।
" और आज रात को ही, अब कोहबर में तो हम ही पांच जने रहेंगे, बस हम हाथ गौड़ पकड़ लेंगे और इमरतिया आराम आराम से एकदम चिक्क्न "
"
मुन्ना बहू बोली,
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शीला, बुच्ची की सहेली तो नहीं घबड़ायी, खिलखलाती रही
लेकिन बुच्ची के मन में धकधक हो रहा था कहीं सच में तो नहीं, और सच में मुन्ना बहू की पकड़ एकदम सँडसी ऐसी है, एक अबार होली में पकड़ ली थी, बाएं हाथ से अपने दोनों हाथ की कलाई और लाख कोशिश कर के भी नहीं छूट रहा था। और कोहबर में रात में तो बस वही पांच जन रहेंगे, उसने मंजू भाभी की ओर देखा लेकिन मंजू भाभी जोर से मुस्करायी, और घबड़ायी बुच्ची को और चिढ़ाते इमरतिया को हड़काया,
" अरे खाली झँटिया साफ़ करने से का होगा, चुनमुनिया में अच्छी तरह से तेल चुपड़ चुपड़ के लगाना, अपनी ननदों क। बियाह शादी क घर है, कल कउनो तोहरे देवर क मन डोल जाये, पैंट टाइट हो जाए, तो लौंडे तेल वेल नहीं देखते, सीधे,
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और आगे की बात पूरी की, सुरजू की माई ने हँसते हुए,
" सीधे पेल देते हैं, सही कह रही हो, अपनी सुरक्षा खुद। इसलिए हम अभी कल ही पीली सरसों क अपने खेत क २० सेर कडुआ तेल पेरवाय क मंगाए हैं, कुछ तोहरे नयी देवरानी आएँगी उनके लिए और बाकी "
" हम लोगों की ननद के लिए " हँसते हुए मंजू भाभी ने बात पूरी की। मंजू भाभी, लगती तो बहू थीं लेकिन थीं एकदम सहेली की तरह खुले मजाक अपनी सास से।
" अरे हम लोगन को ननद को कउनो परेशानी नहीं होगी, आप देख लीजियेगा, हमरे और इमरतिया अस भौजाई के रहते, तोहरे सामने आज से कोहबर में ये दोनों क बुरिया हम फैलाइब और इमरतिया, बूँद बूँद कर के पूरे पाव भर कडुआ तेल पियाय देगी, बुर रानी के। चाहे हमरे देवर चढ़े चाहे हमरे भाई, चाहे टांग उठाय के लें चाहे निहुरा के, थूक लगाने की भी जरूरत नहीं, सटासट जाएगा। "मुन्ना बहू बोली,
छत पर अब सुरजू की माई के आल्वा सिर्फ वही पांच औरतें लड़कियां बची थी जिनके जिम्मे कोहबर रखाना था, बुच्ची,शीला, इमरतिया , मुन्ना बहू और मंजू भाभी।
इस छेड़छाड़ में अब सुरजू की माई भी शामिल थी हाँ वो थोड़ा कभी लड़कियों की ओर हो जाती तो बुच्ची का हौसला बढ़ातीं,
बुच्ची का गाल सहलातीं, वो दुलार से बोलीं, " हमरे बुच्ची का तू लोग का समझत हो " फिर बुच्ची से कहा " अरे बर्फी पेड़ा अस मीठ मीठ भाभी चाही, भौजी क दुआर छेंकने क नेग चाही तो बस १०-१२ दिन एकदम कोहबर क रखवारी में भौजी लोगो की बात चुपचाप, बिना दिमाग लगाये मानना चाहिए फिर फायदा ही फायदा "
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मुन्ना बहू, इमरतिया से भी एक हाथ आगे थी, बोली बुच्ची से, " और पहली बात भौजी लोगन की, कोहबर रखवाई में दूल्हा से चुदवाय ला, हमार देवर पक्का पहलवान है, "
" और पहले अपने भैया से चुदवावा फिर हम लोगन क भैया से " मंजू भाभी बोली और उस समय मंजू और बुच्ची दोनों के मन में रामपुर वाली भाभी के भाई गप्पू की शकल थी, जिस तरह से नैन मटक्का कर रहा था, बुच्ची ने उसके पैंट पे सीधे ' वहीँ' पानी गिराया, और गप्पू की बहन , बुच्ची की सहेली और रामपुर वाली भाभी की बहन चुनिया ने अपने भाई को बुच्ची का दुप्पटा छीन के पकड़ा दिया,
पर फाइनल फैसला सुरजू की माई ने सुना दिया,
" हमरे बुच्ची को समझती क्या हो, अरे यह गाँव का कुल लड़की भाई चोद हैं तो यह कैसे अलग होगी "
और मंजू भाभी ने बात और साफ़ की, " लड़कियां सब भाई चोद और लड़के सब बहनचोद "
" एकदम तो तोहार देवर भी तो इसी गाँव क पानी पिए हैं और बुच्ची क माई ( बुच्ची उनके बुआ की लड़की थी तो बुच्ची की माई उनकी बुआ , सुरजू के माई की ननद लगी, तो गरियाने का जबरदस्त रिश्ता ) तो हमरे आने के पहले से गाँव में कोई से पूछ लो, झांट आने के पहले से दो चार लंड रोज, और बुच्ची की उमर तक आने तक तो जबतक दो चार घोंट न लें तो नाश्ता नहीं करती थीं , मुझसे खुद कहती थीं , भौजी वो भी तो मुंह है भले बिना दांत का हो , तो बुच्ची सबका मन रखेगी लेकिन चलो अब रात हो गयी है, काम शरू करो, कल से गाना शुरू।"
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और थोड़ी देर में छत खाली हो गयी, शीला और बुच्ची बिस्तर लाने और मंजू भाभी को इमरतिया ने कुछ काम बता दिया।
थोड़ी देर में जब इमरतिया दो बड़े कटोरे में जब बुकवा ले के लौटी तो ऊपर छत पे खाली मुन्ना बहू थी , इमरतिया के हाथ में कटोरे भर बुकवा के साथ एक खाली कुल्हड़ भी था, उसे मुन्ना बहू को दिखा के मुस्कराती वो सूरजु की कोठरी में घुसी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
मुन्ना बहू मुस्करा के अपना आँचल संभालते बोली, " बुच्ची'
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" हाँ, शीरा" इमरतिया दरवाजे बंद करने के पहले आंख मार के मुस्कराती बोली।
बुकवा ले के आती इमरतिया के आँख के सामने सिर्फ एक नजारा बार बार घूम रहा था,
अखाड़े में जब सूरजु के लंगोट बांधते समय उसने बँसवाड़ी के पीछे से एकदम भोर भिन्सारे, देखा था, नाग नहीं नाग राज, जैसे संपेरा पुचकार के नाग को पिटारी में बंद कर रहा हो, एकदम वैसे ही लंगोट में, लम्बा मोटा और सबसे बड़ी खूब कड़ा, जितना और मर्दों का चूस चास के खड़ा करने पे नहीं होता, उससे बहुत ज्यादा, बित्ते भर का तो होगा।
उससे पहले ऐसा नहीं इमरतिया ने नहीं देखा था न हीं घोंटा था, एक से एक, अपने मरद के अलावा भी, लेकिन ये तो बहुत ही जबरदंग, जिस स्साली को मिलेगा, किस्मत बन जायेगी। एक बार भी मिल जाए न तो दूध पिला पिला के अपनी कटोरी का इस सांप को पक्का पालतू बना लेंगी।
लेकिन, लेकिन जरूरी है इस स्साले की सोच बदलना, पता नहीं कहाँ से अखाड़े और ब्रम्हचारी, अरे अब तो, दस दिन में इतनी सुंदर मिठाई मिलने वाली है। दस दिन में इसे न सिर्फ सब गुन ढंग सिखाना होगा, बल्कि पक्का चूत का भूत बना देना होगा, नंबरी चुदक्क्ड़, जो भी औरत को देखो सीधे उसकी चूँची देखे, उसकी चूत के बारे में सोचे, ये मन में आये की स्साली चोदने में कितना मजा देगी, बहन महतारी इसकी लाज झिझक, सब इसके, आखिर कुछ सोच के इनकी महतारी ने इमरतिया के हवाले किया होगा अपने बबुआ को।
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The best, super dupr gazab updates didi,gili karne waliछुटकी - होली दीदी की ससुराल में भाग १०३ इमरतिया पृष्ठ १०७६
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें।
Dhamakedaar suruaat....भाग १०३ इमरतिया
२५,६२,२०३
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इमरतिया इस कहानी में कई बार आयी और फिर कई बार आएगी तो शुरू से कुछ बातें और फिर कहानी जहाँ छोड़ी थीं वहीं से धागे पकडूंगीं, यानी जब सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर की शादी की तैयारी चल रही थी, लेकिन पहले इस कहानी में मतलब, हमारे गाँव में जब गौने के बाद सुगना आयी थी लेकिन उसके साथ ही सबसे पहले मेरे गाँव के नाऊ ठाकुर लोगों के बारे में।
दस बारह घर थे, और पूरे बाईसपुरवा में सब की जजमानी, जो बड़े काश्तकार थे उन लोगो ने कुछ कुछ जमीन दे रखी थी, और कुछ फसल काटने पर, बाकी सब काम काज, प्रयोजन में मिलता ही था। गुलबिया का परिवार हम लोगों की पट्टी का काम देखता था और सुगना वाली पट्टी का इमरतिया का खानदान, वैसे ही बाकी दस बारह परिवारों में बटा था सब काम धाम। नाउन तो घर का एकदम हिस्सा होती थी, कोई काम उसके बिना हो ही नहीं सकता था।
तो बात इमरतिया की।
बात करीब साल भर पहले की थी, सूरज बली सिंह की शादी से करीब साल भर पहले। और जब उतरी तो परछन करने वालियों में सबसे आगे, सूरज बली सिंह की माँ, आखिर उनके नाउन की बहू थी , और उसका रूप जोबन आँख में उतर गया सबके।
सींक सलाई नहीं, भरी भरी देह, खूब गदराता जोबन, गोरा रंग, उमर में सूरज बली सिंह से साल दो साल छोटी ही होगी या समौरिया, लेकिन गाँव के रिश्ते से भौजी तो रिश्ता पहले दिन से ही भौजी का हो गया।
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मरद भी उसका कड़क जवान था लेकिन जैसा गाँव की और गाँव की नयी नई दुल्हनों की किस्मत, महीना भर नहीं गुजरा था, पंजाब में कटाई का काम चालू हो गया और वो ट्रेन पकड़ के, ….
अब एक की जगह दो परानी, खेती किसानी से इतना तो मिलता नहीं और नाउन के बिना तो अभी कुछ नहीं होता लेकिन नाऊ का रोज का काम तो रेजर और सैलून ने ले लिया।
इमरतिया को उसके मर्द के जाने के हफ्ते दस दिन बाद सूरजबली सिंह की माई ने बुलाया। उदास, पहले की परछाई सी आके जमीन पे बैठ गयी , बिन बोले टपटपाती आँखे सब कह रही थीं।
माथे पे हाथ फेर के सूरजबली सिंह की माई बोलीं, " अरे आय जाया करो, तनो हमार हाथ गोड़ मीज दिया करो, कउनो बात हो तो बोलो।
बारिश की धूप की तरह वो बहुत दिन बाद इमरतिया मुस्काई और सूरजबली सिंह की माई भी और हंस के बोलीं,
" अब लग रही हो नई बहुरिया की तरह, "
फिर आंगन में दाना चुगती दो चार गौरेया की ओर इशारा करके बोलीं,
" देखो हम गाँव क औरतों क जिन्नगी एही तरह, सुख के दो चार दाने इधर उधर बिखरे रहते हैं, बस वही चुग के काम चलाना पड़ता है। आय जाय करो, हमार तोहार दोनों क मन बहल जाएगा, कोई बात हो बताना जरूर। "
फिर धीमे से उसकी ठुड्डी उठा के बोली,
" समझ रही हूँ, भूख यह उमर में पेट से ज्यादा पेट से बित्ते भर नीचे वाले गड्ढे में लगती है , तो मरद तो किसके घर के नहीं चले जाते, और ससुरे लौट के भी नहीं जल्दी आते, बहुत हुआ तो चिट्ठी, मनीआर्डर लेकिन मरद न हो, देवर की कमी है क्या । जब तक देवरानी नहीं आती भौजी का जिम्मेदारी, "
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तबतक सुरजबली सिंह अखाड़े से लौटे लेकिन इमरतिया को देख के हलके से ठिठके पर उनकी माँ ने हड़काया,
" अरे तोहार भौजी हैं हैं नयकी भउजी, "
इमरतिया ने हड़बड़ा के उठने की कोशिश की, बड़के घर क लड़का, लेकिन सूरजबली सिंह की माई ने हड़का लिया
" अरे बैठों, छोट देवर हैं,… उनसे कौन "
सूरजबली सिंह एक पल के लिए रुके मुस्कराये, लेकिन फिर तुरंत ही अपने कमरे की ओर, पर वो मुस्कराहट न उनकी माई से छुपी न इमरतिया से।
Jawaab nahi in nok jhok ka...सब जिम्मेदारी इमरतिया की- तोहार देवर तोहरे हवाले
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तिलक चढ़ गयी थी उनकी, तिलकहरुओं ने पूरा आँगन भर दिया था, इतना सामान, और परजा पौनी को भी ,
शादी १२ दिन बाद थी पूरा घर रिश्तेदारों से भरा, अगले दिन उड़द छूने के बाद ही रीत रिवाज चालु हो गए थे और नाउन होने के नाते सब जिम्मेदारी इमरतिया की फिर भउजी भी थी बड़ी।
नई दुल्हन के लिए कमरा ऊपर था और कोहबर भी ऊपर ही बना था। उन कमरों के आगे बड़ी सी खुली छत, और एक ;लंबा सा बरामदा, जिसमे से दोनों कमरों के, कोहबर के और सूरजु सिंह के दरवाजे खुलते थे, और सीढ़ी भी उसी बरामदे में खुलती थी।
नीचे मेहमान सब भरे
तिलक के दो दिन पहले से ही हलवाई बैठ गए थे, एकलौते लड़के की शादी, खूब चहल पहल।
तिलक के अगले दिन से सब रीत रिवाज, और सबसे ज्यादा जोश में सूरजबली सिंह की माई, सबेरे सबेरे मांगर आया, ढोल की पूजा, कोहबर ऊपर था और लड़के का कमरा भी, उस जमाने में गाँव में पक्के घर दो चार ही थे और दुमंजिला तो उस पट्टी में खाली उन का ही, इसलिए पूरे बाईसपुरवा में बड़का घर बोला जाता था।
तिलक के अगले दिन सांझ की जून, छत पर औरतों का घमकच, और उन के बीच दबे सहमे सिकुड़े बैठे, सुरजू। सामने उन की माई और उन के बगल में इमरतिया, नाउन भी, भौजाई भी।
" आज से मुन्ना बरात निकले तक एहि कोठरी में रहना है, बाहर कदम नहीं निकालना है , और कुछ भी हो, तो तोहार भौजी तोहरे साथ रहिए, अब दस बारह दिन उन्ही क राज, बिना सोचे कुल बात माननी होगी, अइसन मीठ मिठाई ऐसे थोड़ी मिलेगी "
सुरजू की माई ने इमरतिया की ओर इशारा करते हुए कहा।
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रिवाज भी यही था, कोहबर के बगल के ही एक कमरे में दूल्हे को रखा जाता था और वही कपडे पहने, और कोहबर में मांडव में कोई भी रीतरिवाज के लिए, माटी खोदने, ताल पोखर जाना हो तो सब साथ में नाउन और भौजी, जिसके ऊपर दूल्हे की जिम्मेदारी होती थी , किसी की नजर न पड़े।और यहाँ तो नाउन भी इमरतिया और भौजी भी इमरतिया और सुरजू की माई की सहेली कहें राजदार कहें, वो भी इमरतिया और सुरजू सिंह जिसे देख थोड़ा बहुत लुभाते थे, वो भी इमरतिया, और ये बात इमरतिया को भी मालूम थी और सुरजू की माई, बड़की ठकुराइन को भी।
" एकदम, भौजाई क बात नहीं मानोगे तो बियाह के मिठाई ले आओगे तो भी नहीं मिलेगी, ...हफ्ता भर बाद कंगन खुलवाउंगी" एक गाँव क भौजाई बोलीं।
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लेकिन इमरतिया अपने देवर की ओर से बोली,
" अरे नाही, हमर देवर को ऐसे घबड़ाय रहु हो , ...बेचारे इतने दिन से भूखे हैं मिठाई के लिए, ...अरे ओहि दिन मिले, ....खाया मन भर मजा ले ले के "
और सब औरतों की खिलखिलाहट से छत गूँज गयी।
वैसे तो औरतें जहाँ इकट्ठा होती थीं, खुल के मजाक, न उम्र का लिहाज, न रिश्ते का, हाँ लेकिन ये सब मर्दो के सामने नहीं होता था, गारी भी गयी जाती थी कोठरी में से, पर शादी बियाह में औरतें एकदम बउरा जाती हैं। और मर्दो वाली शर्म लिहाज में दूल्हा नहीं जोड़ा जाता, उसी के सामने उसकी भौजाइयां, बुआ सब उसकी महतारी, बहन सब खुल के गरियाती हैं। सब रस्म में दुलहा तो रहता ही है तो उसका कोई लिहाज नहीं होता, जैसे वो वहां हो ही नहीं,...और उसके साथ सिर्फ नाउन या कोई भावज ख़ास बस।
उस जमघट में औरतों के साथ गाँव की लड़कियां, बच्चिया भी और उसी में एक शीला, सूरजबली सिंह की फुफेरी बहन बुच्ची की सहेली, उसी की समौरिया, बोल पड़ी
" अरे हमरे भैया को समझती का हो सब लोग,.... रोज हजार डंड पेलते हैं "
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" अरे अब लंड पेलेंगे, ....और जब तक तोहार भौजाई नहीं आती हैं,... तो तोहरे साथ "
एक गाँव क भौजाई बोलीं
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और अबकी जब ठहाके गूंजे सबसे तेज सूरजबली सिंह की महतारी की आवाज थी, अब वो इमरतिया से बोलीं,
" और बुकवा ( उबटन ) आज से ही लगना चाहिए और दूनो जून, अब तोहार देवर तोहरे हवाले "
" एकदम अभी से दो कटोरा पीस के रखी हूँ, बस थोड़ी देर में, खाने से पहले ही "
इमरतिया सूरज सिंह की ओर मुस्करा के देखते बोली।
" भौजी, तिसरकी टांग में जरूर लगाइएगा " गाँव की एक बियाहिता लड़की इमरतिया को छेड़ते बोल पड़ी।
इमरतिया क्यों किसी ननद को रगड़ने का मौका छोड़ती, बोली
" एकदम खूब रगड़ रगड़ के, ...लेकिन जो शीरा निकलेगा, वो ननद को पीना पड़ेगा "
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Lagta hai shira pila hi degi apni nando koननद भौजाई- बुच्ची और इमरतिया
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" और जो शलवार वाली हैं ? " उनके मायके से आयी, मंजू भाभी ने ललचायी निगाह से कच्ची कलियों को देखते पुछा।
बुच्ची और शीला को देख के मुस्करा के सुरजू की माई बोलीं, " उनका तो सबसे पहले,....दूल्हा क बहिन हैं "
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बुच्ची का गाल सहलाते वो कहाईन मुन्ना बहू बोली,
" अरे नीचे क घास फूस साफ़ कर लीजिएगा, कल बिलुक्का ( बिल ) देखायेगा। "
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तबतक इमरतिया सूरजु को पहुंचा के बाहर निकल आयी थी और बुच्ची को पकड़ के बोली,
" अरे काहें हमारी बारी सुकुवाँरी ननद को तंग कर रही हो, वो काहें साफ़ करेंगी ? आखिर नाउन भौजी काहें हैं ? अरे नाऊ लोग जैसे मर्दन का दाढ़ी मूंछ बनाते हैं न ओहि से चिक्क्न, तोहार भौजी, नीचे वाले मुंह क बाल साफ़ करेंगी। जउन तोहार मक्खन अस चिक्कन गाल है न उससे भी चिक्कन नीचे वाला मुंह हो जाएगा , महीना भर तक झांट का रोआं भी नहीं जामेगा। जउन मरद देखेगा, चाहे तोहार भाई , चाहे भौजाई क भाई, बस गपागप, गपागप, घोंटना रोज टांग उठाय के "
उसका गाल सहलाते हुए इमरतिया ने समझा दिया।
" और आज रात को ही, अब कोहबर में तो हम ही पांच जने रहेंगे, बस हम हाथ गौड़ पकड़ लेंगे और इमरतिया आराम आराम से एकदम चिक्क्न "
"
मुन्ना बहू बोली,
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शीला, बुच्ची की सहेली तो नहीं घबड़ायी, खिलखलाती रही
लेकिन बुच्ची के मन में धकधक हो रहा था कहीं सच में तो नहीं, और सच में मुन्ना बहू की पकड़ एकदम सँडसी ऐसी है, एक अबार होली में पकड़ ली थी, बाएं हाथ से अपने दोनों हाथ की कलाई और लाख कोशिश कर के भी नहीं छूट रहा था। और कोहबर में रात में तो बस वही पांच जन रहेंगे, उसने मंजू भाभी की ओर देखा लेकिन मंजू भाभी जोर से मुस्करायी, और घबड़ायी बुच्ची को और चिढ़ाते इमरतिया को हड़काया,
" अरे खाली झँटिया साफ़ करने से का होगा, चुनमुनिया में अच्छी तरह से तेल चुपड़ चुपड़ के लगाना, अपनी ननदों क। बियाह शादी क घर है, कल कउनो तोहरे देवर क मन डोल जाये, पैंट टाइट हो जाए, तो लौंडे तेल वेल नहीं देखते, सीधे,
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और आगे की बात पूरी की, सुरजू की माई ने हँसते हुए,
" सीधे पेल देते हैं, सही कह रही हो, अपनी सुरक्षा खुद। इसलिए हम अभी कल ही पीली सरसों क अपने खेत क २० सेर कडुआ तेल पेरवाय क मंगाए हैं, कुछ तोहरे नयी देवरानी आएँगी उनके लिए और बाकी "
" हम लोगों की ननद के लिए " हँसते हुए मंजू भाभी ने बात पूरी की। मंजू भाभी, लगती तो बहू थीं लेकिन थीं एकदम सहेली की तरह खुले मजाक अपनी सास से।
" अरे हम लोगन को ननद को कउनो परेशानी नहीं होगी, आप देख लीजियेगा, हमरे और इमरतिया अस भौजाई के रहते, तोहरे सामने आज से कोहबर में ये दोनों क बुरिया हम फैलाइब और इमरतिया, बूँद बूँद कर के पूरे पाव भर कडुआ तेल पियाय देगी, बुर रानी के। चाहे हमरे देवर चढ़े चाहे हमरे भाई, चाहे टांग उठाय के लें चाहे निहुरा के, थूक लगाने की भी जरूरत नहीं, सटासट जाएगा। "मुन्ना बहू बोली,
छत पर अब सुरजू की माई के आल्वा सिर्फ वही पांच औरतें लड़कियां बची थी जिनके जिम्मे कोहबर रखाना था, बुच्ची,शीला, इमरतिया , मुन्ना बहू और मंजू भाभी।
इस छेड़छाड़ में अब सुरजू की माई भी शामिल थी हाँ वो थोड़ा कभी लड़कियों की ओर हो जाती तो बुच्ची का हौसला बढ़ातीं,
बुच्ची का गाल सहलातीं, वो दुलार से बोलीं, " हमरे बुच्ची का तू लोग का समझत हो " फिर बुच्ची से कहा " अरे बर्फी पेड़ा अस मीठ मीठ भाभी चाही, भौजी क दुआर छेंकने क नेग चाही तो बस १०-१२ दिन एकदम कोहबर क रखवारी में भौजी लोगो की बात चुपचाप, बिना दिमाग लगाये मानना चाहिए फिर फायदा ही फायदा "
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मुन्ना बहू, इमरतिया से भी एक हाथ आगे थी, बोली बुच्ची से, " और पहली बात भौजी लोगन की, कोहबर रखवाई में दूल्हा से चुदवाय ला, हमार देवर पक्का पहलवान है, "
" और पहले अपने भैया से चुदवावा फिर हम लोगन क भैया से " मंजू भाभी बोली और उस समय मंजू और बुच्ची दोनों के मन में रामपुर वाली भाभी के भाई गप्पू की शकल थी, जिस तरह से नैन मटक्का कर रहा था, बुच्ची ने उसके पैंट पे सीधे ' वहीँ' पानी गिराया, और गप्पू की बहन , बुच्ची की सहेली और रामपुर वाली भाभी की बहन चुनिया ने अपने भाई को बुच्ची का दुप्पटा छीन के पकड़ा दिया,
पर फाइनल फैसला सुरजू की माई ने सुना दिया,
" हमरे बुच्ची को समझती क्या हो, अरे यह गाँव का कुल लड़की भाई चोद हैं तो यह कैसे अलग होगी "
और मंजू भाभी ने बात और साफ़ की, " लड़कियां सब भाई चोद और लड़के सब बहनचोद "
" एकदम तो तोहार देवर भी तो इसी गाँव क पानी पिए हैं और बुच्ची क माई ( बुच्ची उनके बुआ की लड़की थी तो बुच्ची की माई उनकी बुआ , सुरजू के माई की ननद लगी, तो गरियाने का जबरदस्त रिश्ता ) तो हमरे आने के पहले से गाँव में कोई से पूछ लो, झांट आने के पहले से दो चार लंड रोज, और बुच्ची की उमर तक आने तक तो जबतक दो चार घोंट न लें तो नाश्ता नहीं करती थीं , मुझसे खुद कहती थीं , भौजी वो भी तो मुंह है भले बिना दांत का हो , तो बुच्ची सबका मन रखेगी लेकिन चलो अब रात हो गयी है, काम शरू करो, कल से गाना शुरू।"
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और थोड़ी देर में छत खाली हो गयी, शीला और बुच्ची बिस्तर लाने और मंजू भाभी को इमरतिया ने कुछ काम बता दिया।
थोड़ी देर में जब इमरतिया दो बड़े कटोरे में जब बुकवा ले के लौटी तो ऊपर छत पे खाली मुन्ना बहू थी , इमरतिया के हाथ में कटोरे भर बुकवा के साथ एक खाली कुल्हड़ भी था, उसे मुन्ना बहू को दिखा के मुस्कराती वो सूरजु की कोठरी में घुसी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
मुन्ना बहू मुस्करा के अपना आँचल संभालते बोली, " बुच्ची'
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" हाँ, शीरा" इमरतिया दरवाजे बंद करने के पहले आंख मार के मुस्कराती बोली।
बुकवा ले के आती इमरतिया के आँख के सामने सिर्फ एक नजारा बार बार घूम रहा था,
अखाड़े में जब सूरजु के लंगोट बांधते समय उसने बँसवाड़ी के पीछे से एकदम भोर भिन्सारे, देखा था, नाग नहीं नाग राज, जैसे संपेरा पुचकार के नाग को पिटारी में बंद कर रहा हो, एकदम वैसे ही लंगोट में, लम्बा मोटा और सबसे बड़ी खूब कड़ा, जितना और मर्दों का चूस चास के खड़ा करने पे नहीं होता, उससे बहुत ज्यादा, बित्ते भर का तो होगा।
उससे पहले ऐसा नहीं इमरतिया ने नहीं देखा था न हीं घोंटा था, एक से एक, अपने मरद के अलावा भी, लेकिन ये तो बहुत ही जबरदंग, जिस स्साली को मिलेगा, किस्मत बन जायेगी। एक बार भी मिल जाए न तो दूध पिला पिला के अपनी कटोरी का इस सांप को पक्का पालतू बना लेंगी।
लेकिन, लेकिन जरूरी है इस स्साले की सोच बदलना, पता नहीं कहाँ से अखाड़े और ब्रम्हचारी, अरे अब तो, दस दिन में इतनी सुंदर मिठाई मिलने वाली है। दस दिन में इसे न सिर्फ सब गुन ढंग सिखाना होगा, बल्कि पक्का चूत का भूत बना देना होगा, नंबरी चुदक्क्ड़, जो भी औरत को देखो सीधे उसकी चूँची देखे, उसकी चूत के बारे में सोचे, ये मन में आये की स्साली चोदने में कितना मजा देगी, बहन महतारी इसकी लाज झिझक, सब इसके, आखिर कुछ सोच के इनकी महतारी ने इमरतिया के हवाले किया होगा अपने बबुआ को।
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ननद भौजाई- बुच्ची और इमरतिया
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" और जो शलवार वाली हैं ? " उनके मायके से आयी, मंजू भाभी ने ललचायी निगाह से कच्ची कलियों को देखते पुछा।
बुच्ची और शीला को देख के मुस्करा के सुरजू की माई बोलीं, " उनका तो सबसे पहले,....दूल्हा क बहिन हैं "
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बुच्ची का गाल सहलाते वो कहाईन मुन्ना बहू बोली,
" अरे नीचे क घास फूस साफ़ कर लीजिएगा, कल बिलुक्का ( बिल ) देखायेगा। "
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तबतक इमरतिया सूरजु को पहुंचा के बाहर निकल आयी थी और बुच्ची को पकड़ के बोली,
" अरे काहें हमारी बारी सुकुवाँरी ननद को तंग कर रही हो, वो काहें साफ़ करेंगी ? आखिर नाउन भौजी काहें हैं ? अरे नाऊ लोग जैसे मर्दन का दाढ़ी मूंछ बनाते हैं न ओहि से चिक्क्न, तोहार भौजी, नीचे वाले मुंह क बाल साफ़ करेंगी। जउन तोहार मक्खन अस चिक्कन गाल है न उससे भी चिक्कन नीचे वाला मुंह हो जाएगा , महीना भर तक झांट का रोआं भी नहीं जामेगा। जउन मरद देखेगा, चाहे तोहार भाई , चाहे भौजाई क भाई, बस गपागप, गपागप, घोंटना रोज टांग उठाय के "
उसका गाल सहलाते हुए इमरतिया ने समझा दिया।
" और आज रात को ही, अब कोहबर में तो हम ही पांच जने रहेंगे, बस हम हाथ गौड़ पकड़ लेंगे और इमरतिया आराम आराम से एकदम चिक्क्न "
"
मुन्ना बहू बोली,
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शीला, बुच्ची की सहेली तो नहीं घबड़ायी, खिलखलाती रही
लेकिन बुच्ची के मन में धकधक हो रहा था कहीं सच में तो नहीं, और सच में मुन्ना बहू की पकड़ एकदम सँडसी ऐसी है, एक अबार होली में पकड़ ली थी, बाएं हाथ से अपने दोनों हाथ की कलाई और लाख कोशिश कर के भी नहीं छूट रहा था। और कोहबर में रात में तो बस वही पांच जन रहेंगे, उसने मंजू भाभी की ओर देखा लेकिन मंजू भाभी जोर से मुस्करायी, और घबड़ायी बुच्ची को और चिढ़ाते इमरतिया को हड़काया,
" अरे खाली झँटिया साफ़ करने से का होगा, चुनमुनिया में अच्छी तरह से तेल चुपड़ चुपड़ के लगाना, अपनी ननदों क। बियाह शादी क घर है, कल कउनो तोहरे देवर क मन डोल जाये, पैंट टाइट हो जाए, तो लौंडे तेल वेल नहीं देखते, सीधे,
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और आगे की बात पूरी की, सुरजू की माई ने हँसते हुए,
" सीधे पेल देते हैं, सही कह रही हो, अपनी सुरक्षा खुद। इसलिए हम अभी कल ही पीली सरसों क अपने खेत क २० सेर कडुआ तेल पेरवाय क मंगाए हैं, कुछ तोहरे नयी देवरानी आएँगी उनके लिए और बाकी "
" हम लोगों की ननद के लिए " हँसते हुए मंजू भाभी ने बात पूरी की। मंजू भाभी, लगती तो बहू थीं लेकिन थीं एकदम सहेली की तरह खुले मजाक अपनी सास से।
" अरे हम लोगन को ननद को कउनो परेशानी नहीं होगी, आप देख लीजियेगा, हमरे और इमरतिया अस भौजाई के रहते, तोहरे सामने आज से कोहबर में ये दोनों क बुरिया हम फैलाइब और इमरतिया, बूँद बूँद कर के पूरे पाव भर कडुआ तेल पियाय देगी, बुर रानी के। चाहे हमरे देवर चढ़े चाहे हमरे भाई, चाहे टांग उठाय के लें चाहे निहुरा के, थूक लगाने की भी जरूरत नहीं, सटासट जाएगा। "मुन्ना बहू बोली,
छत पर अब सुरजू की माई के आल्वा सिर्फ वही पांच औरतें लड़कियां बची थी जिनके जिम्मे कोहबर रखाना था, बुच्ची,शीला, इमरतिया , मुन्ना बहू और मंजू भाभी।
इस छेड़छाड़ में अब सुरजू की माई भी शामिल थी हाँ वो थोड़ा कभी लड़कियों की ओर हो जाती तो बुच्ची का हौसला बढ़ातीं,
बुच्ची का गाल सहलातीं, वो दुलार से बोलीं, " हमरे बुच्ची का तू लोग का समझत हो " फिर बुच्ची से कहा " अरे बर्फी पेड़ा अस मीठ मीठ भाभी चाही, भौजी क दुआर छेंकने क नेग चाही तो बस १०-१२ दिन एकदम कोहबर क रखवारी में भौजी लोगो की बात चुपचाप, बिना दिमाग लगाये मानना चाहिए फिर फायदा ही फायदा "
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मुन्ना बहू, इमरतिया से भी एक हाथ आगे थी, बोली बुच्ची से, " और पहली बात भौजी लोगन की, कोहबर रखवाई में दूल्हा से चुदवाय ला, हमार देवर पक्का पहलवान है, "
" और पहले अपने भैया से चुदवावा फिर हम लोगन क भैया से " मंजू भाभी बोली और उस समय मंजू और बुच्ची दोनों के मन में रामपुर वाली भाभी के भाई गप्पू की शकल थी, जिस तरह से नैन मटक्का कर रहा था, बुच्ची ने उसके पैंट पे सीधे ' वहीँ' पानी गिराया, और गप्पू की बहन , बुच्ची की सहेली और रामपुर वाली भाभी की बहन चुनिया ने अपने भाई को बुच्ची का दुप्पटा छीन के पकड़ा दिया,
पर फाइनल फैसला सुरजू की माई ने सुना दिया,
" हमरे बुच्ची को समझती क्या हो, अरे यह गाँव का कुल लड़की भाई चोद हैं तो यह कैसे अलग होगी "
और मंजू भाभी ने बात और साफ़ की, " लड़कियां सब भाई चोद और लड़के सब बहनचोद "
" एकदम तो तोहार देवर भी तो इसी गाँव क पानी पिए हैं और बुच्ची क माई ( बुच्ची उनके बुआ की लड़की थी तो बुच्ची की माई उनकी बुआ , सुरजू के माई की ननद लगी, तो गरियाने का जबरदस्त रिश्ता ) तो हमरे आने के पहले से गाँव में कोई से पूछ लो, झांट आने के पहले से दो चार लंड रोज, और बुच्ची की उमर तक आने तक तो जबतक दो चार घोंट न लें तो नाश्ता नहीं करती थीं , मुझसे खुद कहती थीं , भौजी वो भी तो मुंह है भले बिना दांत का हो , तो बुच्ची सबका मन रखेगी लेकिन चलो अब रात हो गयी है, काम शरू करो, कल से गाना शुरू।"
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और थोड़ी देर में छत खाली हो गयी, शीला और बुच्ची बिस्तर लाने और मंजू भाभी को इमरतिया ने कुछ काम बता दिया।
थोड़ी देर में जब इमरतिया दो बड़े कटोरे में जब बुकवा ले के लौटी तो ऊपर छत पे खाली मुन्ना बहू थी , इमरतिया के हाथ में कटोरे भर बुकवा के साथ एक खाली कुल्हड़ भी था, उसे मुन्ना बहू को दिखा के मुस्कराती वो सूरजु की कोठरी में घुसी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
मुन्ना बहू मुस्करा के अपना आँचल संभालते बोली, " बुच्ची'
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" हाँ, शीरा" इमरतिया दरवाजे बंद करने के पहले आंख मार के मुस्कराती बोली।
बुकवा ले के आती इमरतिया के आँख के सामने सिर्फ एक नजारा बार बार घूम रहा था,
अखाड़े में जब सूरजु के लंगोट बांधते समय उसने बँसवाड़ी के पीछे से एकदम भोर भिन्सारे, देखा था, नाग नहीं नाग राज, जैसे संपेरा पुचकार के नाग को पिटारी में बंद कर रहा हो, एकदम वैसे ही लंगोट में, लम्बा मोटा और सबसे बड़ी खूब कड़ा, जितना और मर्दों का चूस चास के खड़ा करने पे नहीं होता, उससे बहुत ज्यादा, बित्ते भर का तो होगा।
उससे पहले ऐसा नहीं इमरतिया ने नहीं देखा था न हीं घोंटा था, एक से एक, अपने मरद के अलावा भी, लेकिन ये तो बहुत ही जबरदंग, जिस स्साली को मिलेगा, किस्मत बन जायेगी। एक बार भी मिल जाए न तो दूध पिला पिला के अपनी कटोरी का इस सांप को पक्का पालतू बना लेंगी।
लेकिन, लेकिन जरूरी है इस स्साले की सोच बदलना, पता नहीं कहाँ से अखाड़े और ब्रम्हचारी, अरे अब तो, दस दिन में इतनी सुंदर मिठाई मिलने वाली है। दस दिन में इसे न सिर्फ सब गुन ढंग सिखाना होगा, बल्कि पक्का चूत का भूत बना देना होगा, नंबरी चुदक्क्ड़, जो भी औरत को देखो सीधे उसकी चूँची देखे, उसकी चूत के बारे में सोचे, ये मन में आये की स्साली चोदने में कितना मजा देगी, बहन महतारी इसकी लाज झिझक, सब इसके, आखिर कुछ सोच के इनकी महतारी ने इमरतिया के हवाले किया होगा अपने बबुआ को।
वाह क्या झन्नाटेदार अपडेट है कोमल मैम, मजा आ गया![]()