फागुन के दिन चार भाग ४६ पृष्ठ ४६७
रात बाकी बात बाकी
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Do premi jode.फागुन के दिन चार भाग ४६
रात बाकी बात बाकी
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पान
६,१३, ८५५
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“हे क्या हुआ इससे डर गई क्या?” मैंने अपने फिर से पूरी तरह खड़े लिंग की ओर इशारा करके कहा।
वो रुक के लौट आई और झुक के लिंग पकड़कर उसे देखकर कहने लगी-
“इससे क्यों डरूँगी, ये तो मेरे प्यारा सा, सोना सा, मुन्ना :
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और खुले सुपाड़े को गुड्डी ने जीभ निकालकर अच्छी तरह चाट लिया और फिर होंठ के बीच पूरा सुपाड़ा गड़प कर, खूब कसकर चूम लिया और अपने मस्त नितम्ब हिलाती, मटकाती चल दी। उसकी पतली सी कमर पे उसके किशोर नितम्ब भी भारी लगते थे।
मेरा मन किया की,... अगर एक बार मौका मिले तो इसके पिछवाड़े का भी,....
गुड्डी ने एक बार मुड़कर पीछे देखा जैसे उसे मेरे मन की बात का पता चल गया हो और मुश्कुरा दी। अलमारी से एक कागज का वो पाकेट लेकर आ गई और फिर से मेरी गोद में बैठकर उसे खोलने लगी।
“मैं भी न तुम्हारी संगत में पड़ के भुलक्कड़ हो रही हूँ, तुमने बोला था ना पान के लिए…” मुश्कुराकर वो बोली।
“हाँ वो…”
कल के पहले मैंने कभी पहले पान खाया भी नहीं था और वो भी बनारस का स्पेशल।
कल रात इसी ने सबसे पहले अपने होंठों से,...
मैं सोच रहा था की गुड्डी ने चांदी के बर्क में लिपटे महकते गमकते दो जोड़े पान निकालकर साइड टेबल पे रख दिए।
“हे ये तो चार हैं…” मैं चौंक के बोला- “मैंने तो दो मेरा मतलब हम दोनों के लिए। दो…”
अरे बुद्धू चलो कोई बात नहीं। ये पान वैसे भी जोड़े में ही आते हैं…” गुड्डी बोली और एक जोड़ी पान अपने होंठों में लेकर मेरी ओर बढ़ाया।
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कैसे भूल सकता हूँ मैं कल पहली बार गुड्डी के मुख रस से डूबा लिथड़ा, पान का स्वाद और चंदा भाभी गवाह भी हैं,
“भई, अपना मीठा पान तो…”गुड्डी ने मीठे पान का जोड़ा मुझसे दिखाया, अपने रसीले होंठों से दिखा के ललचाया जैसे पान नहीं होंठ दे रही हो और पूछा “क्यों खाना है?” बड़ी अदा से उसने पान पहले अपने होंठों से, फिर उभारों से लगाया और मेरे होठों के पास ले आई और आँख नचाकर पूछा-
“लेना है। लास्ट आफर। फिर मत कहना तुम की मैंने दिया नहीं…”
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जिस अदा से वो कह रही थी। मेरी तो हालत खराब हो गई। ‘वो’ 90° डिग्री का कोण बनाने लगा।
“नहीं। मैंने तो कहा था ना तुमसे की। मैं…”
पर वो दुष्ट मेरी बात अनसुनी करके उसने पान को मेरे होंठों से रगड़ा, और उसकी निगाह मेरे ‘तम्बू’ पे पड़ी थी और फिर उसने अपने रसीले गुलाबी होंठों को धीरे से खोला और पूरा पान मुझे दिखाते हुए गड़ब कर गई। जैसा मेरा ‘वो’ घोंट रही हो।
और थोड़ी देर बाद जब मैं गुड्डी का मीन राशि का राशिफल सुना रहा था तो उसमे आया,
"मीन तो पानी में ही रहती है तो आप प्यासी क्यों तड़प रही हैं। इस फागुन में लण्ड योग है बस थोड़ी सी हिम्मत कीजिये। एक पल का दर्द और जीवन भर का मजा। होली में और होली के पहले भी आप जोबन दान करें, आपके उभार सबसे मस्त हो जायेंगे। देखकर सारे लड़कों का खड़ा हो जाएगा और सारे शहर के लौंडे आप का नाम लेकर मुठ मारेंगे। हाँ उंगली करना बंद करिए और रोज सुबह चौथे पन्ने पे दिए गए लण्ड महिमा का गान अपने वाले के हथियार के बारे में सोच कर करें। जल्द मिलेगा और एक श्योर शोट तरीका।"
आपका वो थोड़ा शर्मीला हो थोड़ा बुद्धू हो तो बस। फागुन का मौसम है। आप खुद उससे एक जबर्दस्त किस्सी ले लें…”
गुड्डी मेरी गोद में मेरी ओर फेस करके बैठी थी। उसने दोनों हाथों से मुझे पकड़ रखा था और मैंने भी। मेरा एक हाथ हाथ उसकी कमर पे और दूसरा उसके किशोर कबूतर पे। बड़ी अदा से उस कातिल ने चन्दा भाभी की ओर मुश्कुराकर देखा और भाभी ने हँसकर ग्रीन सिगनल दे दिया।
जब तक मैं समझूँ, उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को कसकर पकड़कर अपनी ओर खींच लिया था और उसके दहकते मदमाते रसीले होंठ मेरे होंठों पे।
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पीछे से हँसती खिलखिलाती चंदा भाभी ने भी मेरा सिर कसकर पकड़ रखा था।
उसके गुलाबी होंठों के बीच मेरे होंठ फँसे थे। मेरी पूरी होली तो उसी समय हो गई।
साथ-साथ मेरे बेशर्म हाथों की भी चांदी हो गई। वो क्यों पीछे रहते। दोनों उभार मेरी हथेलियों में। पल भरकर लिए होंठ हटे।
“हे भाभी खिला दूं?” पान चुभलाते उस सारंग नयनी ने पूछा।
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“नेकी और पूछ पूछ…” हँसकर भाभी बोली और कसकर मेरा मुँह दबा दिया।
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मेरे होंठ खुल गए और अब किस्सी के साथ-साथ मैं भी कस-कसकर चूम रहा था चूस रहा था। जैसे किसे भूखे नदीदे को मिठाई मिल गई हो। मेरे लिए मिठाई ही तो थी। थोड़ा पान मेरे मुँह में गया लेकिन जब उस रसीली किशोरी ने मेरे मुँह में अपनी जीभ डाली तो साथ में उसका अधखाया, चूसा, उसके रस से लिथड़ा।
मैं अपनी जीभ से उसकी जीभ छू रहा था चूस रहा था, और जब थोड़ी देर में तूफान थोड़ा हल्का हुआ तो वो अचानक शर्मा गई लेकिन हिम्मत करके चिढ़ाते हुए उसने चन्दा भाभी को देखकर कहा-
“कुछ लोग कहते हैं मैं ये नहीं खाता। वो नहीं खाता…”
“एकदम। लेकिन ऐसे लोगों का यही इलाज है। जबरदस्ती…” चन्दा भाभी ने उसकी बात में बात जोड़ी।
मैं मुँह में पान चुभला रहा था।
तो मैं बुद्धू था लेकिन इतना भी नहीं, कल के इस बनारसी बाला के मुंह में घुले,रचे बसे, बनारसी पानी के स्वाद के बाद, अब बनारस का पान क्या कोई भी चीज मना नहीं कर सकता था।
कल की तरह बजाय नखड़ा दिखाने के मैंने मुँह खोल दिया। और गुड्डी ने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़कर आधे से ज्यादा पान मेरे मुँह में डाल दिया और यही नहीं अपनी जुबान मेरे मुँह में डालकर ठेल भी दिया।
थोड़ी देर में पान ने असर दिखलाना शुरू कर दिया।
एक अजब सी मस्ती हम दोनों पे छाने लगी। मैं कसकर गुड्डी के जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से लेने लगा और गुड्डी भी कभी मुझे चूम लेती कभी होंठों को चूस लेती कभी चूस लेती।
फिर अचानक उसने मुझे पलंग पे गिरा दिया और इशारे से बोली की मैं बस चुपचाप लेटा रहूँ। उसके होंठ मेरे होंठों से सरक के मेरे सीने पे आ गई और पान चूसते चुभलाते उसने मेरे टिट्स पे अपनी जुबान फ्लिक करनी शुरू कर दी जैसे मैं थोड़ी देर पहले उसके निपलों पे कर रहा था। एक टिट पे उसकी जीभ थी और दूसरे पे उसके नाखून। जोश के मारे मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ रहे थे।
जंगबहादुर तो बहुत पहले ही 90 डिग्री पे थे।
थोड़ी देर वहां छेड़ने के बाद वो नीचे आ गई और उसकी जीभ मेरे लिंग के बेस पे कभी चाटतीकभी फ्लिक चाटती।
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मेरा मन कर रहा था की वो मुँह में ले ले लेकिन वो कभी बेस पे तो कभी चर्म दंड के चारों और जीभ निकालकर टच करके, कभी हल्के से चाटके छोड़ दे रही थी। और उसकी दुष्ट उंगलियां भी, कभी सुपाड़े के छेद पे छेड़ देती कभी मेरे बाल्स को हाथों में लेकर हल्के से दबा देती, कभी रियर होल और बाल्स वाली जगह पे रगड़ देती।
जोश के मारे मैं पागल हो रहा था।
फिर वो लेट गई।
मेरे ऊपर।
मेरा लिंग उसके उभारों के नीचे दबा हुआ था।
और उसी तरह दबाते, रगड़ते, सरकते, वो मेरे ऊपर आ गई उसके होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे, उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी। उसने एक हाथ से दबाकर मेरा मुँह खुलवा दिया, और उसके रसीले होंठ मेरे होंठों पे झुके लगभग सटे, आधे इंच से भी कम दूरी पे।
उसने अपने हाथ से मेरे हाथों को पकड़ लिया और गुड्डी के मुँह से पान का रस उसके मुँह के रस से मिला, मेरे मुँह में। अगले ही पल उसके होंठों ने मेरे होंठों को सील कर दिया था और हम पान के साथ होंठों का, जीभ का, सबका रस।
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तो ये सही मौका था।