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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४६ पृष्ठ ४६७

रात बाकी बात बाकी

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फागुन के दिन चार भाग ४६

रात बाकी बात बाकी
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पान
६,१३, ८५५
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“हे क्या हुआ इससे डर गई क्या?” मैंने अपने फिर से पूरी तरह खड़े लिंग की ओर इशारा करके कहा।

वो रुक के लौट आई और झुक के लिंग पकड़कर उसे देखकर कहने लगी-

“इससे क्यों डरूँगी, ये तो मेरे प्यारा सा, सोना सा, मुन्ना :

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और खुले सुपाड़े को गुड्डी ने जीभ निकालकर अच्छी तरह चाट लिया और फिर होंठ के बीच पूरा सुपाड़ा गड़प कर, खूब कसकर चूम लिया और अपने मस्त नितम्ब हिलाती, मटकाती चल दी। उसकी पतली सी कमर पे उसके किशोर नितम्ब भी भारी लगते थे।

मेरा मन किया की,... अगर एक बार मौका मिले तो इसके पिछवाड़े का भी,....

गुड्डी ने एक बार मुड़कर पीछे देखा जैसे उसे मेरे मन की बात का पता चल गया हो और मुश्कुरा दी। अलमारी से एक कागज का वो पाकेट लेकर आ गई और फिर से मेरी गोद में बैठकर उसे खोलने लगी।

“मैं भी न तुम्हारी संगत में पड़ के भुलक्कड़ हो रही हूँ, तुमने बोला था ना पान के लिए…” मुश्कुराकर वो बोली।

“हाँ वो…”

कल के पहले मैंने कभी पहले पान खाया भी नहीं था और वो भी बनारस का स्पेशल।

कल रात इसी ने सबसे पहले अपने होंठों से,...

मैं सोच रहा था की गुड्डी ने चांदी के बर्क में लिपटे महकते गमकते दो जोड़े पान निकालकर साइड टेबल पे रख दिए।

“हे ये तो चार हैं…” मैं चौंक के बोला- “मैंने तो दो मेरा मतलब हम दोनों के लिए। दो…”


अरे बुद्धू चलो कोई बात नहीं। ये पान वैसे भी जोड़े में ही आते हैं…” गुड्डी बोली और एक जोड़ी पान अपने होंठों में लेकर मेरी ओर बढ़ाया।
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कैसे भूल सकता हूँ मैं कल पहली बार गुड्डी के मुख रस से डूबा लिथड़ा, पान का स्वाद और चंदा भाभी गवाह भी हैं,



“भई, अपना मीठा पान तो…”गुड्डी ने मीठे पान का जोड़ा मुझसे दिखाया, अपने रसीले होंठों से दिखा के ललचाया जैसे पान नहीं होंठ दे रही हो और पूछा “क्यों खाना है?” बड़ी अदा से उसने पान पहले अपने होंठों से, फिर उभारों से लगाया और मेरे होठों के पास ले आई और आँख नचाकर पूछा-


“लेना है। लास्ट आफर। फिर मत कहना तुम की मैंने दिया नहीं…”
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जिस अदा से वो कह रही थी। मेरी तो हालत खराब हो गई। ‘वो’ 90° डिग्री का कोण बनाने लगा।

“नहीं। मैंने तो कहा था ना तुमसे की। मैं…”

पर वो दुष्ट मेरी बात अनसुनी करके उसने पान को मेरे होंठों से रगड़ा, और उसकी निगाह मेरे ‘तम्बू’ पे पड़ी थी और फिर उसने अपने रसीले गुलाबी होंठों को धीरे से खोला और पूरा पान मुझे दिखाते हुए गड़ब कर गई। जैसा मेरा ‘वो’ घोंट रही हो।



और थोड़ी देर बाद जब मैं गुड्डी का मीन राशि का राशिफल सुना रहा था तो उसमे आया,



"मीन तो पानी में ही रहती है तो आप प्यासी क्यों तड़प रही हैं। इस फागुन में लण्ड योग है बस थोड़ी सी हिम्मत कीजिये। एक पल का दर्द और जीवन भर का मजा। होली में और होली के पहले भी आप जोबन दान करें, आपके उभार सबसे मस्त हो जायेंगे। देखकर सारे लड़कों का खड़ा हो जाएगा और सारे शहर के लौंडे आप का नाम लेकर मुठ मारेंगे। हाँ उंगली करना बंद करिए और रोज सुबह चौथे पन्ने पे दिए गए लण्ड महिमा का गान अपने वाले के हथियार के बारे में सोच कर करें। जल्द मिलेगा और एक श्योर शोट तरीका।"

आपका वो थोड़ा शर्मीला हो थोड़ा बुद्धू हो तो बस। फागुन का मौसम है। आप खुद उससे एक जबर्दस्त किस्सी ले लें…”




गुड्डी मेरी गोद में मेरी ओर फेस करके बैठी थी। उसने दोनों हाथों से मुझे पकड़ रखा था और मैंने भी। मेरा एक हाथ हाथ उसकी कमर पे और दूसरा उसके किशोर कबूतर पे। बड़ी अदा से उस कातिल ने चन्दा भाभी की ओर मुश्कुराकर देखा और भाभी ने हँसकर ग्रीन सिगनल दे दिया।


जब तक मैं समझूँ, उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को कसकर पकड़कर अपनी ओर खींच लिया था और उसके दहकते मदमाते रसीले होंठ मेरे होंठों पे।


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पीछे से हँसती खिलखिलाती चंदा भाभी ने भी मेरा सिर कसकर पकड़ रखा था।

उसके गुलाबी होंठों के बीच मेरे होंठ फँसे थे। मेरी पूरी होली तो उसी समय हो गई।

साथ-साथ मेरे बेशर्म हाथों की भी चांदी हो गई। वो क्यों पीछे रहते। दोनों उभार मेरी हथेलियों में। पल भरकर लिए होंठ हटे।



“हे भाभी खिला दूं?” पान चुभलाते उस सारंग नयनी ने पूछा।


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“नेकी और पूछ पूछ…” हँसकर भाभी बोली और कसकर मेरा मुँह दबा दिया।
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मेरे होंठ खुल गए और अब किस्सी के साथ-साथ मैं भी कस-कसकर चूम रहा था चूस रहा था। जैसे किसे भूखे नदीदे को मिठाई मिल गई हो। मेरे लिए मिठाई ही तो थी। थोड़ा पान मेरे मुँह में गया लेकिन जब उस रसीली किशोरी ने मेरे मुँह में अपनी जीभ डाली तो साथ में उसका अधखाया, चूसा, उसके रस से लिथड़ा।

मैं अपनी जीभ से उसकी जीभ छू रहा था चूस रहा था, और जब थोड़ी देर में तूफान थोड़ा हल्का हुआ तो वो अचानक शर्मा गई लेकिन हिम्मत करके चिढ़ाते हुए उसने चन्दा भाभी को देखकर कहा-



“कुछ लोग कहते हैं मैं ये नहीं खाता। वो नहीं खाता…”

“एकदम। लेकिन ऐसे लोगों का यही इलाज है। जबरदस्ती…” चन्दा भाभी ने उसकी बात में बात जोड़ी।



मैं मुँह में पान चुभला रहा था।

तो मैं बुद्धू था लेकिन इतना भी नहीं, कल के इस बनारसी बाला के मुंह में घुले,रचे बसे, बनारसी पानी के स्वाद के बाद, अब बनारस का पान क्या कोई भी चीज मना नहीं कर सकता था।

कल की तरह बजाय नखड़ा दिखाने के मैंने मुँह खोल दिया। और गुड्डी ने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़कर आधे से ज्यादा पान मेरे मुँह में डाल दिया और यही नहीं अपनी जुबान मेरे मुँह में डालकर ठेल भी दिया।

थोड़ी देर में पान ने असर दिखलाना शुरू कर दिया।

एक अजब सी मस्ती हम दोनों पे छाने लगी। मैं कसकर गुड्डी के जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से लेने लगा और गुड्डी भी कभी मुझे चूम लेती कभी होंठों को चूस लेती कभी चूस लेती।



फिर अचानक उसने मुझे पलंग पे गिरा दिया और इशारे से बोली की मैं बस चुपचाप लेटा रहूँ। उसके होंठ मेरे होंठों से सरक के मेरे सीने पे आ गई और पान चूसते चुभलाते उसने मेरे टिट्स पे अपनी जुबान फ्लिक करनी शुरू कर दी जैसे मैं थोड़ी देर पहले उसके निपलों पे कर रहा था। एक टिट पे उसकी जीभ थी और दूसरे पे उसके नाखून। जोश के मारे मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ रहे थे।



जंगबहादुर तो बहुत पहले ही 90 डिग्री पे थे।



थोड़ी देर वहां छेड़ने के बाद वो नीचे आ गई और उसकी जीभ मेरे लिंग के बेस पे कभी चाटतीकभी फ्लिक चाटती।



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मेरा मन कर रहा था की वो मुँह में ले ले लेकिन वो कभी बेस पे तो कभी चर्म दंड के चारों और जीभ निकालकर टच करके, कभी हल्के से चाटके छोड़ दे रही थी। और उसकी दुष्ट उंगलियां भी, कभी सुपाड़े के छेद पे छेड़ देती कभी मेरे बाल्स को हाथों में लेकर हल्के से दबा देती, कभी रियर होल और बाल्स वाली जगह पे रगड़ देती।



जोश के मारे मैं पागल हो रहा था।



फिर वो लेट गई।

मेरे ऊपर।

मेरा लिंग उसके उभारों के नीचे दबा हुआ था।

और उसी तरह दबाते, रगड़ते, सरकते, वो मेरे ऊपर आ गई उसके होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे, उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी। उसने एक हाथ से दबाकर मेरा मुँह खुलवा दिया, और उसके रसीले होंठ मेरे होंठों पे झुके लगभग सटे, आधे इंच से भी कम दूरी पे।

उसने अपने हाथ से मेरे हाथों को पकड़ लिया और गुड्डी के मुँह से पान का रस उसके मुँह के रस से मिला, मेरे मुँह में। अगले ही पल उसके होंठों ने मेरे होंठों को सील कर दिया था और हम पान के साथ होंठों का, जीभ का, सबका रस।



अगर कोई वीडियो बनाना चाहता।
डीप फ्रेंच किस विद फ्लेवर आफ बनारसी पान।



तो ये सही मौका था।
 
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मुख रस

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मेरी जीभ उसके मुँह में थी और वह कभी अपनी जीभ उससे लड़ाती कभी हल्के-हल्के चूसती, उसका रस लेती। वो जीभ ऐसे चूस रही थी। जैसे वो जीभ ना हो मेरा लिंग हो।


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और जब उसके होंठ हटे तो गुड्डी के रसीले उभार।

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मुझे अभी भी हिलने की हाथ लगाने की इजाजत नहीं थी। कभी वो सिर्फ निपल मेरे होंठों पे छुला देती तो कभी पूरे उभार को मेरे मुँह में और कभी बस गालों से रगड़ देती।

साथ-साथ उसकी उंगलियां लिंग को सहला रही थी मसल रही थी।

वो जानती थी मेरे होंठ किस के स्वाद के लिए ललक रहे हैं लेकिन बस थोड़ा सा चखा के सामने से हटा लेती थी,

तड़पते रह आनंद बाबू , तुमने भी तो बहुत तड़पाया है उसे, वो तो इस सुख के लिए ढाई साल पहले ही तैयार थी, तेरी ही फट गयी थी।

जब मुझे षोडसी के छोटे छोटे निप्स चुभलाने में मजा आने लगा तो बस एक झटके में उसने निकाल लिया, बाहर और सरक कर मछली की तरह, और ऊपर,....

कस के अपने दोनों हाथों से उस शोख ने मेरी कलाई पकड़ रखी थी, अभी उसकी बारी थी, रस देने की, रस लेने की और राशन लगा रखा था, बस इतना सा, जरा सा, गुड्डी के गोरे गोरे चिकने पेट मेरे होंठों से बस इंच भर ऊपर, और मैंने उचक कर चाट लिया और उस बदमाश ने कमर और ऊपर कर दी लेकिन जैसे फलों से लदी कोई डाल खुद नीची हो जाए, दाया आ गयी उस शोख को और

मेरी लपलपाती जीभ सीधे गुड्डी की गहरी नाभी में

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सच में अमृत कलश था वहां, जैसे कोई ताले में चाभी घुमाता है बस उसी तरह मेरी जीभ उस गहरी नाभी में चक्कर काट रही थी, और गुड्डी फिर सरकी और मुझे लगा की मेरी जिह्वा को अबकी योनि कूप में डुबकी लगाने का सुख मिल जाएगा, लेकिन इतनी आसानी से कोई लड़की योनि सुख दे दे तो वो लड़की नहीं

पर गुड्डी इत्ती निष्ठुर भी नहीं है, निचले होंठो का नहीं लेकिन ऊपर वाले होंठों का रस उसने दे दिया और सब कंट्रोल उसने अपने हाथों में ले रखा और क्या कचकचा के होंठ काटे उस दुष्ट दर्जा ११ वाली ने, फिर निचले होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच दबा के देर रक् चूसती रही और होंठ जब हटे, और फिर लौटे तो उनमे मेरे अच्छे बच्चे होने का इनाम था,

बनारस वाला डबल मस्ती वाला पेसल पान,

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और अब मुझे याद आया दो जोड़ी के साथ दो जोड़ी फ्री था, तो दो जोड़ी तो गुड्डी ने भाभी को पकड़ा दिया था और दो जोड़ी हम लोगो के लिए, एक जोड़ी तो हम लोग गप्प कर गए थे और एक जोड़ी पान बचे थे,

मैंने मुंह खोल दिया और अबकी गुड्डी ने जरा भी बेईमानी नहीं की, आधा पान उसके मुंह में और आधा उसके मुंह ने मेरे मुंह को दे दिया , तीसरे बार मैं ताम्बूल का सुख स्वाद ले रहा था लेकिन पहली बार पान बिना कूचे मेरे मुंह में सीधे आया था, पर गुड्डी इत्ती कंजूस भी नहीं थी, उसके पान से रचे रंगे भीगे होंठ मेरे होंठों पर रगड़ रहे थे

पान मेरे मुंह में घुल रहा था और पान के साथ वो डबल पेसल नशा, पूरी देह में बस एक अजब सी मस्ती बस यही मन कर रहा था

अब इस लड़की को पटक के पेल दूँ, खूब हचक हचक के चोदू
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और मैं पक्का श्योर था इस लड़की का भी मन यही कररहा था, खून खच्चर, झिल्ली फटने का काम, पहली बार की झिझक डर सब खतम हो चूका था और अब तो सिर्फ मजा ही लेना था,



गुड्डी ने एक बार बस हलके से मेरे गालों पे हल्का सा दबाव बनाया और मैंने जैसे लड़कियां गोलगप्पे खाने के लिए बड़ा सा मुंह खोल देती हैं बस उसी तरह मैंने मुंह फाड़ दिया, मुझे लगा गुड्डी अपनी जीभ मेरे मुंह में डालेगी पर उसने अपने होंठ मेरे होंठो से भी दो इंच दूर, ऊपर और बस एक पतली सी धागे की तरह, लसदार, गुड्डी के होंठों से



पान की पीक,

मुख रस से लिथड़ा,सजनी के मुख स्वाद से भरा साजन के मुंह में

खूब देर से रच बस रहे पान का नशा गुड्डी के मुंह के नशे से दूना हो गया, पेसल पलंगतोड़ पान से दूना नशा और मस्ती और ये डबल पेसल पान था और अब मेरी वाली के मुंह के रस से ये चौगुना हो गया था, और धीरे मेरे मुंह में घुल रहा था,

लेकिन मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कस के अपने माल को अपनी बाँहों में भर लिया और मेरा माल भी तो यही चाहता था की मैं सब झिझक छोड़ के शर्म लिहाज भूल के सिर्फ मजे ले मस्ती करे,

मेरे माल ने मेरे मुंह में अपनी जीभ डाल दी और मेरी जीभ को छेड़ने लगी, चिढ़ाने लगी, उकसाने लगी और जवाब मेरी उँगलियों ने दिया

कभी गुड्डी रानी के जुबना को दबा के कभी निपल को भींच के कभी चूँची पे चिकोटी काट के

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गुड्डी मेरे ऊपर कस कस के अपनी देह से मेरी देह को रगड़ रही थी, पान के नशे से, चढ़ती जवानी के नशे से, पहली बार जिसको न जाने कब से चाहती थी उसके साथ के नशे से उसकी हालत भी खराब थी

कुछ देर तक तो मजे लेती रही रस लूटती रही,

पर चार पांच मिनट के बाद मेरे माल ने अपने होंठ अलग किया और उसके बाद मेरे माल के होंठों ने और उँगलियों ने क्या जबरदस्त जुगलबंदी की, उँगलियाँ कभी सांप की तरह डोलती मेरे सीने पे, कभी बिच्छू की तरह डंक मार्टिन कभी होंठ चुंबन की बारिश कर देते तो कभी बस छू के सहला कर के निकल जाते

और खिड़की से छन छन कर आती चांदनी भी अब गुड्डी का खुल के साथ दे रही थी, कमरे में तो घुप्प अँधेरा था पर चांदनी स्पॉट लाइट की तरह मेरी देह पे फिसलती धीरे धीरे स्पॉट लाइट की तरह नीचे की ओर बढ़ रही थी और गुड्डी की उँगलियाँ भी और अब मैं सीधे मजा ले रहा था,

चाँदनी अब 'सीधे वहीँ ' पड़ रही थी और गुड्डी की उँगलियाँ भी वहीँ और एक झटके में गुड्डी ने ' उसे ' पकड़ लिया, एकदम टनटनाया, फनफनाता, खड़ा, कड़ा, और गुड्डी की मुट्ठी में

फिर उसने अपने बित्ते से उसे नाप लिया


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और चौंक के बोली-

“हाय राम इत्ता लम्बा,...बित्ते से भी बड़ा । तभी तो इत्ता दर्द हुआ…”




“ये भला मानो की मैंने पूरा नहीं डाला…” मेरे मुँह से निकल गया।
 
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गुड्डी -गुस्सा
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अब तो उसने वो बुरा माना। मुँह फुलाकर बैठ गई। फिर बड़ी मुश्किल से बोली-

“कित्ता नहीं डाला…”

मेरा लिंग अभी भी गुड्डी के ही हाथ में था।
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मैंने इशारे से बताया की करीब ¾ डाला था ¼ नहीं डाला था। मुझे लगा उसे बहुत दर्द हो रहा है इसलिए।

मैं बेचारा, मैं तो उस दर्जा ११ वाली के दर्ज के बारे में सोच के परेशान था, बड़ी मुश्किल से चंदा भाभी ने घोंटा जबकि वो अपनी बेटी गुंजा से भी छोटी थीं, तब से घोंट रही थीं, एक मस्त मेरी साली बिया चुकी थीं, जो अब खुद घोंटने के लिए बेताब थी,

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संध्या भाभी साल भर की ब्याहता कितना चीखी चिल्लाई,

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तो फिर ये टीनेजर, इसलिए मैंने वैसलीन का भी खूब इस्तेमाल किया और जानबूझ के करीब १/३ ( तीन चार इंच नहीं ठेला)

और सच बताऊँ, तो जब मेरी वाली की झिल्ली फटी, खून खच्चर हुआ, मेरे खूंटे में भी खून लग गया तो मैं हदस गया और बस ज्यादा पेलने की हिम्मत नहीं पड़ी,
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और जिसके लिए चोरी की वही कहे चोरवा, गुड्डी मार गुस्से के अल्लफ, और गुस्सा बनावटी नहीं एकदम असली, मारे गुस्से के बोल नहीं पा रही थी किसी तरह बोली
“ये बाकी किस के लिए बचाकर रखा था। अपनी उस माल कम बहना के लिए क्या? तो इस बचे हुए ढाई तीन इंच से उसका क्या भला होगा…” घुड़क कर वो बोली फिर उसने लिंग की ओर इशारा करके पूछा-


“ये है किसका?”

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मैं क्या बोलता- “तुम्हारा…” हिम्मत करके मैं बोला।


“तो। समझ गए ना तुम कौन होते हो तय करने वाले। कहाँ जायेगा। कितना जाएगा…”

उसने फिर हड़काया। गुड्डी पल में रत्ती पल में माशा थी।अब थोड़ी देर में वो थोड़ा गुस्से में थोड़ा मेरी खिंचाई करने के मूड में हो गयी, एकदम बेस पे कस के पकड़ के मुझे डांटते हुयी बोली,
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" गलती की न तुमने ? "

हाँ, मैं धीरे से बोला, और गलती मानने के लिए चारा क्या था। बस एक और गलती करने से बच गया, कान अपना पकड़ने की, एक बार कस के गुड्डी की डांट पड़ी थी उसी लिए। उस के हिसाब से मेरा कान पकड़ने का हक सिर्फ उसका है।

" तो गलती की है तो सजा भी मिलेगी, और जो सजा मिलेगी तुझे मानना पड़ेगा, पहले हाँ बोल " गुड्डी अभी गुस्से में ही थी और ये पहले से तय था हाँ मतलब पांच बार हाँ मुझे बोलनी है बिना ये पूछे वो किस लिए हाँ बुलवा रही, है फिर मेरे जंगबहादुर को कस के दबा के गुस्से से लाल आँखों से मुझे देखती बोली

" ये किसका है ? "


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" तेरा यार " ५०० ग्राम मक्खन लगाता मैं बोला,

"तो कौन तय करेगा आधा जाएगा की पूरा ? " हड़काते हुए उसने पूछा

" तुम " मिमियाते हुए मैं बोला और उसने सजा सुना दी,

" तो पहली सजा ये की ये तेरी बहना के अंदर जाएगा और यहाँ तक जाएगा, एकदम जड़ तक " बेस पे पकड़ के उसने मामला साफ़ किया और फिर समझाया : यहाँ तक घुसेगा, पहली बार में ही और वो भी मेरे सामने और तेरे मायके वाली सब, कोई बचेगी नहीं,.... भले सब स्साली चिल्लाय, चिंचियाय, लेकिन एकदम जड़ तक पेलना

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मैं ध्यान से सुन रहा था
उसका मूड अगले पल बदल गया मेरे कंधे पे अपना सिर रखकर बोली-

“तुम न बुद्धू हो एकदम निरे बुद्धू और सीधे। समझ लो चाहे मुझे जितना भी दर्द हो, मैं चीखूँ, चिल्लाऊं, दर्द से बेहोश जाऊं। चाहे खून निकले या कुछ। ये पूरा ही अन्दर जायेगा, समझे। मुझे मालून है की मेरे बुद्धू को क्या अच्छा लगता है समझे…”

मैंने इस मौके को खोना ठीक नहीं समझा- “एकदम जैसा तुम बोलो। अभी लो। एवमस्तु…”



और उसको धकेल के मैंने नीचे कर दिया और मैं ऊपर। अबकी मेरे होंठ सीधे गुड्डी के नीचे वाले होंठों से चिपक गए। मेरे होंठ गुड्डी की गुलाबी नशीली चूत की फांकों से चिपके थे। पहले मैंने एक-दो छोटी-छोटी किस्सी ली फिर पूरे जोर से चूसना शुरू कर दिया। दोनों हाथों से मैं उसकी जांघें फैलाए हुए था। थोड़ी देर में मेरी जुबान भी मैदान में आ गई। वो चूत की दोनों फांकों के बीच ऊपर-नीचे होती, रगड़ती सहलाती और होंठ कस-कसकर चूसते।



गुड्डी की साँसें लम्बी-लम्बी चलने लगी। थोड़ी देर में ही वो चूतड़ पटकने लगी। लेकिन अब मैं उसको इत्ती आसानी से नहीं छोड़ने वाला था। मेरा अंगूठा उसके क्लिट पे था। मैं कभी दबाता, कभी हल्के से सहलाता और कभी फ्लिक कर देता।



गुड्डी की तो जैसे जान निकल जाती। ओह्हहह हाँ नहीईई क्याअ। वो झड़ने के कगार पे पहुँच गई थी। और में रुक गया।

अब मैने होंठों को आराम दिया, चूसना रोक दिया लेकिन मेरे हाथ बावले हो रहे थे और वो सीधे जोबन के उभार पे, पहले थोड़ा हलके हलके फिर कस के रगड़ने मसले लगे,



गुड्डी का गुस्सा कब का पिघल गया था, वो नीचे पनिया गयी थी, चूँचिया एकदम पथराई और निपल कड़े बस अब न उससे इन्तजार हो रहा था और न मुझसे
 
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मैं साजन की साजन मेरा

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मैंने उसे दुहरा कर दिया ओर उसके नितम्बों को उठाकर कमर के नीचे एक खूब मोटी सी तकिया लगा दी। और दोनों हाथों से मस्त गोल-गोल भरे कसावदार नितम्बों को मसलने सहलाने लगा।



क्या मस्त चूतड़,...
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मैंने दोनों हाथों से उन दोनों गोलार्धों को फैला दिया। एक बहुत छोटा सा सुराख, बल्की दरार, ब्राउन रिन्कल्ड मैंने एक उंगली से मुँह में थूक लगाकर वहां छूया। वो गिनगिना गई।



बिचारी,... ये तो अभी शुरूआत थी।


मेरी जीभ अब चूत से नीचे सरक कर दोनों छेदों के बीच की जगह पे सिर्फ टिप से चाट रही थी। ये जगह भी बहुत सेंसिटिव होती है।



थूक लगी उंगली उसके पिछवाड़े के छेद के चारों और हल्के-हल्के सहला रही थी, मसल रही थी। और फिर वो पहले हल्के से फिर जोर से सीधे छेद के ऊपर प्रेस करने लगी।



टिप भी नहीं घुसी।
उंगली की जगह फिर अंगूठे ने ले ली,... और मैंने जोर बढ़ा दिया। गुड्डी ने सिर उठाकर हल्के से बोला-

“हे वहां नहीं। प्लीज। यहाँ करो ना…”


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“क्यों ये वाला किसका है…” मैंने बिना रुके पूछा।



वो समझ गई उसकी बात उसी के सिर पे। मुश्कुराकर वो बोली-

“और किसका सब तुम्हारा…”

“तो फिर। मैं चाहे जहाँ, जैसे करूँ, तुमसे मतलब…” मैंने जवाब दिया और अंगूठे का दबाव गाण्ड पे बढ़ा दिया। वो भी नहीं घुसा। लेकिन थोड़ा सा खुला.


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अंगूठे की जगह अब जीभ ने ली। उसकी टिप उस उस अनखुले छिद्र के चारों और परिक्रमा करने कगी मानों मान मनुहार कर रही हो।



गुड्डी फिर बोली- “छि: वहां नहीं। गंदे। तुम्हें…”



जवाब मेरे होंठों ने दिया। बिना बोले। मैंने अब दोनों अंगूठो से उसको पूरी ताकत से फैलाया, हल्का सा वो खुला। और मेरी जीभ की टिप अन्दर....
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और होंठों ने चारों और से सील कर लिया कभी वो चाटते कभी जोर से सक करते।

बिन कहे मैंने उसे समझा दिया,.... देह के मंदिर में कुछ भी गन्दा अपवित्र नहीं। प्रिय प्रियतमा के बीच कुछ भी अकरणीय नहीं है। काम का पवन जब तक कोमल मन को पागल न कर दे तक मजा क्या,... यही प्रीत की रीत है।


और एक कारण और भी था।
उसकी योनि मंदिर जो अत्यंत उत्तेजित होकर रस बहा रही थी इसे पल भरकर लिए शांत करने का।

उधर मेरे होंठ पीछे लगे थे, हाथों ने आगे का रास्ता पकड़ा। मेरी हथेली सीधे गुड्डी की जाँघों के बीच। कभी हल्के से दबा देती कभी मसल देती। इस डबल एसाल्ट से गुड्डी की साँसें एक बार फिर लम्बी-लम्बी। जोर-जोर से सिसकियां।


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लेकिन अभी असली खेल तो बाकी था।

मेरी बीच की उंगली ने अन्दर का रुख किया और अगल-बगल की दोनों उसके चूत के पपोटों को कभी सहलाती कभी रगड़ती। घुसी उंगली मैंने थोड़ी सी मोड़ दी थी और उसकी टिप अन्दर से चूत की दीवालों को सहला रही थी। कुछ ढूँढ़ रही थी, और वो जल्द ही मिल गया।

एक छोटी सी जगह जहां पे मसल्स का टेक्सचर बहुत हल्का सा अलग था।

गुड्डी का जी प्वाइंट। उसके चरम आनद का बिंदु। मैंने हल्के से दबाया, वो गनगना गई। जल से बाहर निकली मछली की तरह तडफडाने लगी। बस फिर क्या था। बिना पीछे से होंठ हटाये में उसके चरम बिंदु को रुक-रुक के हल्के से छूता सहलाता।

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और वो फिर चरम आनंद के किनारे पहुँच गई और मैं रुक गया।
 
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बहुत हुई अब आँख मिचौली,... खेलंगे हम रस की होली।



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एक बार फिर गुड्डी की लम्बी-लम्बी टांगें मेरे कंधे पे थी।

और मेरा लिंग उसके चूत के मुहाने पे (वैसलीन गुड्डी ने ही अपने हाथ से पूरी लगा दी थी)



लेकिन मैंने अबकी घुसेड़ने की जल्दी नहीं की।

मैंने लाल पहाड़ी आलू ऐसे मोटे सुपाड़े को पहले तो उसकी चूत के पपोटों पे बहुत देर तक रगड़ा और जब मारे जोश से वो खुद चूतड़ उठाने लगी तो उसे वहां से हटाकर सीधे उसके जोश से फूले क्लिट पे।


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और साथ ही तिहरा हमला मेरे होंठों और उंगलियों का।

बहुत देर से इंतजार कर रहे उसके उरोज मेरे हाथ में थे। निपल को कभी दबाता, कभी जोर से पुल कर देता।

दूसरा कड़ा खड़ा निपल मेरे होंठों के बीच में था। में चूस रहा था, चुभला रहा था और हल्के से बाईट भी कर ली।


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सुपाड़ा क्लिट पे और दूसरे हाथ की मंझली उंगली चूत में उसके जी प्वाइंट पे।



अबकी मैंने जरा जोर से सहला दिया।

गुड्डी की आँखें बंद हो गईं। जोर से उसने मुझे अपनी ओर भींचना शुरू कर दिया। उसके चूत के पपोटे। तूफान में पत्तों की तरह काँप रहे थे। अबकी मैंने रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उसकी योनि के मुहाने को फैलाकर मैंने लण्ड को लगाया और दोनों चूतड़ों को, दोनों हाथों से कसकर पकड़कर पूरी ताकत से एक धक्का मारा।

पहले धक्के में ही पूरा सुपाड़ा अन्दर था।

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गुड्डी जोर-जोर से झड़ रही थी लेकिन में रुका नहीं।

2-3-चार-पाँच-6। एक के बाद एक, मेरा पूरा ध्यान धक्कों पे था, उसके उरोज, नितंब, क्लिट सब कुछ भूल कर, उसकी कसी कच्ची किशोर चूत में मेरा मोटा लण्ड रगड़ता, घिसटता अन्दर घुस रहा था।



गुड्डी का झड़ना रुक गया था लेकिन मेरे धक्के नहीं रुके, 10-12 धक्कों के बाद ही मैंने सांस ली। आधे से ज्यादा लण्ड उसकी बुर में पैबस्त हो चुका था।

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तूफान थोड़ा धीमा हुआ।



हम दोनों ने एक दूसरे को बांहों में भींच लिया।

वो मुझे जोर-जोर से चूम रही थी, मेरे होंठों को चूस रही थी मेरे होंठ भी कभी उसके गालों पे कभी होंठों पे कभी नए आये जोबन पे अपना प्यार छलका रहे थे उड़ेल रहे थे। हमारे हाथ, होंठ, पूरी देह रसमय हो रही थी। सिर्फ मेरे लिंग ने अपनी लगाम रोक राखी थी और थोड़ी देर में उसने भी हौले हौले आगे बढ़ना शुरू किया। सूत-सूत। गुड्डी भी धीरे धरे अपने मस्त नितम्ब उठाकर साथ-साथ ताल दे रही थी। उसके पैर अब मेरी कमर पे, एक लता की तरह लिपटे हुए थे। हम दोनों की देह एक दूसे में गुथी हुई थी।


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धीमे-धीमे मैंने रफतार फिर बढ़ाई और साथ में नीचे से गुड्डी ने भी। वो काम के पवन के झोंके में अपने जोबन मेरे सीने पे रगड़ रही थी, मसल रही थी और एक बार उसने खुद ऊपर आने की कोशिश की। लेकिन हो नहीं पाया।



मैंने सरका के उसे बिस्तर की एज के पास ले गया और खुद उतर के नीचे खड़ा हो गया।

उसके कुल्हे थोड़े से बिस्तर के बाहर थे और मेरा लिंग उसकी बुर में पैबस्त। मैंने गुड्डी के चेहरे को घुमा के दूसरी और किया और वो शर्मा गई।



“हे देखो ना…” मैंने हल्के से बोला।



बगल में आदम कद शीशा था जिसमें उसकी बुर में धंसा मेरा लण्ड साफ-साफ दिख रहा था।


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पहले तो वो थोड़ा झिझकी। फिर हल्के से देखा और फिर ध्यान से देखा। मेरा ¾ से भी ज्यादा अन्दर घुसा हुआ था। लेकिन करीब दो इंच अभी भी बाहर रहा होगा। लेकिन अब अन्दर ठेलना बहुत मुश्किल लग रहा था जैसे किसी बोतल में कोई डाट फँस जाय।

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गुड्डी ने जिस तरह मुझे घूर के देखा, मैं उसका मतलब समझ गया। लेकिन मैं उसके मुँह से सुनना चाहता था- “बाकी भी डालो न…” वो हल्के से बोली,



“क्या?” मैंने छेड़ा।

“वही…” वो हँसकर बोली।


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“वही क्या? खुलकर बोलो तो…” मैंने उकसाया।

“लण्ड। अब तो डालो ना…”

बोलकर उसने आँखें बंद कर ली जैसे होने वाले दर्द का उसे अंदाज हो।

मैंने उसे मोड़कर लगभग दुहरा कर दिया। अपना लिंग आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाला और फिर एक हाथ से पलंग की पाटी और दूसरे से गुड्डी की कमर पकड़कर जबर्दस्त धक्का मारा। अबकी उसकी कराह निकल गई। जोर से। उसने झट से अपने होंठ भींच लिए।

लेकिन मैं रुका नहीं एक के बाद एक से तेज एक।


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उसने खुद जांघें पूरी फैला रखी थी। और पूरा का पूरा लिंग उसके चूत में समां गया। थोड़ी देर वो इसी तरह देखती रही, दर्द पीती रही, नाचती आँखों में मुश्कुराती रही।



फिर मैंने हल्के-हल्के थोड़ा सा बाहर खींचा और फिर अन्दर।

गुड्डी ने आँखें बंद कर ली थी।



मैं वापस पलंग पर था।

उसकी दोनी फैली टांगों के बीच, कभी मेरे हाथ उसके गदराये जोबन पर होते, तो कभी पतली कमर पे, जैसे कोई धुनिया रूई धुनें उस तरह पूरी तेजी के साथ। मैं उसे चोद रहा और गुड्डी भी उसी तरह साथ दे रही थी।

और कुछ ही देर में गुड्डी फिर कगार पे थी।

लेकिन अब की बजाय धीमे होने के क्लिट पे मेरे अंगूठे ने उसे पार कर दिया।

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बस जब वो चरम आनद के झरने में गोता लगा रही थी तो मेरी गति थोड़ी मंथर हो गई और उसके बाद फिर। बिना रुके, फिर तो कुछ देर में बस बाँध टूट पड़ा, बादल उमड़ घुमड़ कर बरसने लगा, नदी तालाब मैदान सब एक हो गए।



हम दोनों साथ-साथ झड़े।



गुड्डी ने टांगें इस तरह उठा रखी थी जैसे वो अंजलि में एक-एक बूँद रोप रही हो।



देर तक बूँद-बूँद मैं रीतता रहा।



वो सोखती रही।



कब हमारी आँखें लग गई पता नहीं।
 
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सुबह सबेरे
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बस मुझे इतना याद है की हम दोनों एक दूसरे में गूथे बिधे उसी तरह सोये हुए थे और फिर मेरी नीन्द हल्की सी खुली।

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गुड्डी की टांगें मेरे ऊपर थी।

‘वो’ आधा सोया आधा जागा था।


मैंने उसे गुड्डी के सेंटर पे लगाया गुड्डी ने मुझे पकड़कर अपनी ओर खींचा।
गुड्डी बस जरा सा मुस्करायी जैसे कोई बच्चा सोते में मुस्करा रहा हो, अपनी जाँघे फैला ली और अपने को थोड़ा और पीछे कर के सेट कर लिया, मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पर रख लिया, आसमान अभी भी स्लेटी था, बस कहीं हलकी सी लालिमा दिख रहे थी जैसे विभावरी ने धरती के आँगन में पद रखने के पहले महावर लगाना अभी शुरू ही किया हो। , थोड़ा
गप्प थोड़ा सा अंदर और मैंने गुड्डी को अपनी ओर खींच लिया, मुझसे ज्यादा वह मुझसे चिपक गयी
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फिर तो जैसे सावन का झूला पवन के झोंके से अपने आप।
बस उसी तरह मंथर गति से।
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कुछ देर बाद मैं फिर बरस गया और उसी तरह सो गया।गुड्डी के अंदर धंसे धंसे



और जब नींद खुली तो धुप ऊपर तक चढ़ आई।

और गुड्डी मेरे पास खड़ी बेड टी का कप लिए मुझे जगा रही थी- “गुड मार्निंग, उठो न कब तक सोओगे…”



“उनहूँ ऊ उं। सोने दो ना तुम भी आकर सो जाओ…” बिना आँखें खोले उसे मैंने अपनी ओर खींचा।

“पागल हुए क्या? इत्ती देर हो गई है। चलो उठो…”


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डांट तो पड़ी लेकिन मेरे खींचने से वो मेरे बगल में बैठ गई। बहुत प्यारी लग रही थी, बस बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों में रात की थोड़ी सी थकन और यादें तैर रही थी।


“हे चाय में चीनी कम है…” मैं उसकी आँखों में आँखें डालकर इतराया।

“चीनी का डब्बा है तो तुम्हारे सामने…” और झुक के उसने मेरे होंठों पे एक छोटी सी किस्सी ले ली।



उसने तो छोटी सी ली लेकिन मैंने बड़ी। मेरे एक हाथ ने गुड्डी के सिर को पकड़कर मेरी ओर खींच लिया और दूसरा हाथ।

और कहाँ। मिशन 32सी। सीधे उसके फ्राक में छुपे किशोर उभार पे।



“तुम भी ना। अभी कोई आ जाएगा। छोड़ो न लालची सुबह-सुबह। रात भर तो…” बिना अपने को छुड़ाने की कोशिश करती वो हल्के से बोली।



मैं अब अधलेटा बेड के सहारे बैठा था और मेरे दोनों हाथ में उसने चाय का कप पकड़ा दिया था। लेकिन निगाह मेरी उस सुनयना के चेहरे पे टिकी थी। एक लट उड़कर उसके सुर्खरू गालों पे भटक के आ गई थी। मैंने एक उंगली से उसे हटा दिया और उसके गेसुओं को डांटता हुआ बोला- “हे इस जगह पे मैंने पहले ही अपने नाम का बोर्ड लगा लिया है…”



“तुम भी न…” कुछ शर्माती, कुछ लजाती कुछ अदा से वो बोली।



मैंने चाय की एक चुस्की ली। और उसे चिढ़ाता बोला- “हे चाय बहुत अच्छी है। भाभी ने बनायी है क्या?”



“तुम भी न लाओ। वापस कर दो मुझे। सुबह-सुबह किसी के लिए चाय बाना के लाओ और बजाय तारीफ करने के…” उसने मुँह बनाया।



“ठीक है चलो तुम भी ट्राई करो…” मैंने प्याला उसकी ओर बढ़ाया।



उसने वहीं से कप होंठों से लगाया जहाँ से मैंने लगाया था। गुनगुनाती धुप का एक शरारती टुकड़ा उसके गुलाबी गालों पे आकर बैठ गया था।




तुम सामने भी हो,... करीब हो


तुम्हें देखूं की तुमसे बात करूँ।

मेरे मुँह से निकल गया।

“बड़े रूमानी हो रहे हो…” अदा से वो शोख बोली और चाय का प्याला मेरे हाथ में पकड़ाते हुए मेरी नाक पकड़कर मुश्कुरा दी।

तभी मुझे कुछ याद आया। और मैं पूछा बैठा- “हे रात में तुम वो,... मेरे समझ में नहीं आया…”



“मेरी भी समझ में नहीं आया। तुम क्या कह रहे हो…” मुश्कुराकर आँखें नचाकर वो सारंग नयनी बोली।



समझ वो सब रही थी। खुद ही बोली- “मेरे कमरे के बारे में पूछ रहे हो ना की मैं कैसे गायब हो गई थी।



चाय खतम करके प्याला उसे देते मैं बोला- “हाँ…”



वो पहले खिलखिलाई फिर बोली- “बुद्धू। तेरे भलेकर लिए। मुझे मालूम था की जब तुम घुसोगे तो कोशिश करोगे की मुझे उठाकर ले आओ, फिर कुछ ना कुछ आवाजें होती।



उधर वो शीला भाभी उन्हें पूरा शक था हम दोनों पे। पहले तो मुझे पकड़कर उन्होंने आधे घंटे बोर किया। उनके कमरे से तुम्हारे कमरे की लाईट दिखती है। इसलिए मैं तुमसे बोली थी की लाईट तुरंत बंद कर देना। बात वो मुझसे कर रही थी। लेकिन निगाहें तुम्हारे कमरे पे चिपकी थी। जब आधे घंटे तक उन्होंने देख लिया की बत्ती बंद है कोई हलचल नहीं हो रही है तो उन्होंने मुझे बख्शा और चलते चलते मुझे ये भी बोल दिया की उन्हें रात में देर में नींद आती है। मुझे लग रहा था की वो आकर खिड़की से जरूर चेक करेंगी इसलिए वो तकिये वाला इंतजाम किया…”


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“और वो तुम मेरे कमरे में कैसे आई?”


“देखो मुझे अंदाज था की तुम मुझे कुछ अपनी बाहों में उठाकर ले जाने की कोशिश करोगे। जरा ज्यादा रोमांटिक होने की कोशिश करोगे…”

(प्लान तो मेरा यही था।)

और अगर कहीं कुछ खरड़ भरड़ हुआ और उस समय शीला भाभी बरामदे में हुई कान लगाये तो सब गड़बड़। इसीलिए मैं दरवाजे के पीछे दीवाल से चिपक के खड़ी थी। तो जो तुम घुसे तो मैं दबे पावं तुम्हारे बिस्तर में। और कपड़े भी मैंने इसीलिए उतार दिए थे की इस लड़के को बहुत इंतजार वैसे ही करना पड़ा और दूसरे उसमें भी तुम कुछ आवाज करते। तो…”



गुड्डी ने सब बात साफ की।

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और मुश्कुराकर और मेरे पास सट गई। मैंने एक हाथ से उसे अपने पास खींच लिया।

और एक छोटी सी किस्सी उसके गालों से चुरा ली।



“चोर। सुबह-सुबह जूठा कर दिया…” मुँह बनाते वो बोली, लेकिन उसका हाथ चादर में अन्दर मेरे पाजामे के ऊपर ठीक ‘उसी’ के पास। और वो कुनमुनाने लगा।

“उठो ना सब लोग उठ गए हैं…” वो फिर बोली।



“मैंने नहा धो भी लिया…”



“नहाना तक तो ठीक था लेकिन धो भी लिया…” मैंने चिढ़ाया।



सुबह की धुप सी वो खिलखिलाई- “और क्या तुमने इतना, हर जगह…” और साथ में अब गुड्डी की उंगलियां पाजामे के अन्दर। और वो उसकी मुट्ठी में


“उठो ना मंजन कर लो…” गुड्डी फिर बोली। लट फिर उसके गाल पे आ गई थी।
 
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नया दिन

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“उठो ना सब लोग उठ गए हैं…” वो फिर बोली।

“मैंने नहा धो भी लिया…”

“नहाना तक तो ठीक था लेकिन धो भी लिया…” मैंने चिढ़ाया।



सुबह की धुप सी वो खिलखिलाई- “और क्या तुमने इतना, हर जगह…” और साथ में अब गुड्डी की उंगलियां पाजामे के अन्दर। और वो उसकी मुट्ठी में।

“उठो ना मंजन कर लो…” गुड्डी फिर बोली। लट फिर उसके गाल पे आ गई थी।


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“कल की तरह जैसा तुमने कराया था…” हँसकर मैंने याद दिलाया।



“करा दूंगी, डरती हूँ क्या? चलो ना…” वो मुश्कुराकर शोख अदा से बोली। अन्दर ‘उसके’ साथ गुड्डी की उंगलियां खेल तमाशा कर रही थी। गिनती चालू थी 11-12,... 17-18-19,...61-62-63-64,...80-81-82,... आगे-पीछे।

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“हे एक दे दो न। गुड मार्निग कर दो…” मैंने विनती की।


“दिया तो…” मेरे होंठों की ओर इशारा करके वो बोली और फिर पास आकर एक छोटी दी किस्सी ले ली।

मैंने भी उसी तरह जवाब दिया लेकिन अपना इरादा साफ किया- “वहां नीचे…” मैंने चद्दर की ओर इशारा किया जो अब तम्बू की तरह तन गया था।

“धत्त सुबह-सुबह…” वो इतराई।

“प्लीज बस एक बहुत छोटी सी। सुबह-सुबह कोई चीज मिलने से दिन भर मिलती है…” मैंने फिर अर्जी लगाई।

“ऊं उं। तुम ना रात भर मन नहीं भरा…” गुड्डी इठला के बोली और आलमोस्ट मेरी गोद में आ गई।



“मन तो मेरा यार जिंदगी भर नहीं भरेगा…” मैंने उसके दोनों किशोर उभारों को हल्के से सहलाते हुए कहा।



“तो मैं कौन सा तुम्हें। लेकिन अभी सुबह-सुबह। सब लोग जग रहे हैं…” वो दुलराते मेरे गालों को हल्के से सहलाकर बोली।



“अच्छा भाभी कहां हैं…” मैंने साफ-साफ सवाल किया।

“वो ऊपर हैं कमरा ठीक कर रही हैं। शीला भाभी नहाने गई हैं अभी, कह रही थी की सिर धोएंगी। मंजू नाश्ते की तैयारी कर रही है और मैं तुम्हारे पास हूँ…” उसने सब की पोजीशन साफ कर दी।मतलब मैदान साफ़ है , कम से कम दस पंद्रह मिनट तो कोई इस कमरे में नहीं आ सकता


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“दे दो न प्लीज। बहुत मन कर रहा है। एकदम छोटी सी। जस्ट उससे गुड मार्निंग कर दो…”मैं रिरिया रहा था, निहोरा कर रहा था,


“चलो तुम भी क्या याद करोगे…”

गुड्डी मुश्कुरायी और झट से उसका मुँह चद्दर में और पजामा खोलकर पहले तो जीभ की टिप से उसने सुपाड़े के पी-होल पे हल्के से छेड़ा और फिर वहीं पे एक किस्सी ले ली।


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झंडा एकदम फहरा रहा था।

उसने दोनों होंठों के बीच सुपाड़े को गपक लिया और हल्के-हल्के चूसने लगी।

उसने दोनों होंठों के बीच सुपाड़े को गपक लिया और हल्के-हल्के चूसने लगी। साथ में उसकी रसीली जुबान, नीचे से सुपाड़े को चाट रही थी। थोड़ी देर में चूसने का जोर भी बढ़ गया और आधा लण्ड भी उस शोख, कमसिन के मुँह में और जब उसने मुँह हटाया तो उसके पहले तन्नाये हुए लण्ड पे नीचे से ऊपर तक। बीसों छोटी-छोटी किस्सी और छोड़ने के पहले एक बार फिर से कसकर बड़ी सी किस्सी।


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मेरे जोश में पागल सुपाड़े पे। और मुँह निकालकर फिर मेरे होंठों पे एक छोटी सी किस्सी।


“क्यों हो गई ना गुड मार्निंग…”


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वो मुश्कुराकर बोली और मुझे खींचकर पलंग से खड़ा कर दिया।

“एकदम अब आज दिन अच्छा गुजरेगा…” मैंने मुश्कुराते हुए बोला।



हम दोनों साथ-साथ निकल रहे थे। वो रुक के बोली-

“एकदम सही कह रहे हो और आज तो तुम्हें उससे मिलने चलना भी है…” वो थम के मुड़कर मेरी ओर देखकर आँखें नचाते बोली।

“किससे…” मुझे कुछ याद नहीं पड़ रहा था।

“अरे और किससे। भूल गए कल यहाँ शाम फोन पे मेरी क्या बात हुई थी। किसके यहाँ आज चलना है। ये देखो…”



गुड्डी ने अपना मोबाइल का मेसेज बाक्स खोलकर दिखाया। इन बाक्स में आज के दो मेसेज थे, सुबह हुई नहीं। दो मेसेज आ गए। कब आओगी। बहुत जोर से चींटियां काट रही हैं उसे, वही तुम्हारी एलवल वाली जानेजाना…”

मुश्कुराते हुए फोन बंद करके वो किचेन में चली गई और मैं वाशबेसिन पे ब्रश करने। (एलवल। मेरी कजिन के मुहल्ले का नाम था)

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मेरा हाथ जेब में अपने दोनों फोन पे पड़ा। सिक्योर और नान सिक्योर। दोनों मेसेज से भरे थे। रीत, डी॰बी॰, कार्लोस और। मेरे हैकिंग फ्रेंड्स। फ्रेश होकर मैं किचेन में पहुँचा। वहां मेरी भाभी चाय बना रही थी। गुड्डी पास में खड़ी थी। शीला भाभी और मंजू भी किचेन के काम में लगी थी।



“भाभी चाय। लेकिन दूध थोड़ा कम…” मैंने फरमाइश पेश कर दी।

“अरे लाला दूध कम क्यों, दूध नहीं पियोगे तो मलाई गाढ़ी गाढ़ी कैसे निकालोगे…” मंजू मुझे छेड़ते हुए बोली।


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सभी मुश्कुराने लगे शीला भाभी ने हँसते हुए मेरी भाभी से कहा-

“अरी बिन्नो, तुम देवरानी काहे नहीं लाती लल्ला के लिए। वो दूध भी पिला देगी और मलाई भी निकाल देगी। पढ़ाई पूरी हो गई। अच्छी नौकरी भी लग गई, कमाने लग गए अब काहे की कसर…”


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“अरे मैं तो खुदी इससे कह रही हूँ। मार्च चल रहा है मई में अच्छी लगन है बोलो। करूँ बात…” भाभी भी उसी गैंग में जवाइन हो गई।

“धत्त भाभी। आप भी ना। मैं चलता हूँ। आप चाय भिजवा दीजियेगा…” मैं झेंपता हुआ बोला।


“अरे क्या लौंडिया की तरह शर्मा रहे हो लाला हमका मालूम नहीं है का। जिस दिन आएगी ना उसी दिन से दोनों और चक्की चलेगी बिना नागा। झंडा तो इत्ता जबर्दस्त खड़ा किये हो। सबेरे सबेरे केहू का सपना देखो हो का…”

और मंजू ने मेरा कुरता उठा दिया। नीचे पाजामे में जबर्दस्त तम्बू तना था, कर्टसी गुड्डी ने जो अभी वहां गुड मार्निंग किस दी थी।


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मेरी भाभी और शीला भाभी मुश्कुराने लगी-

“और किसका सपना देखे होंगे। उसी का देखे होंगे। जिसका कल चार बार फोन आया था…” भाभी ने चिढ़ाया।


“सुबह से दो बार मेरे पास मेसेज आ गया है। कब आ रही हो, कब आ रही हो…” गुड्डी ने आग में पेट्रोल डाला।


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मैंने उसे घूर कर देखा तो वो खिस्स से हँस दी।

“अरे देवरानी आने में तो,.... पता नहीं कब तक आएगी। तब तक इ ऐस्से रहेगा क्या?” मंजू ने अब तने पाजामे को हल्के से छू दिया और फिर भाभी से बोली,....

“अरे उसको भी आग लगी है। काहे नहीं ओही को टेम्परेरी देवरानी बना लेती। वहां नौकरी का ट्रेनिंग करें और यहाँ ओकरे साथ। घर का माल घर में…”


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चौतरफे हमले से मेरी हालत खाराब हो गई ऊपर से भाभी भी- “मुझे कोई ऐतराज नहीं है। अरे पुराना माल है इनका बचपन का…”



मैंने गुड्डी से कहा की वो चाय मेरे कमरे में ले आये और बाहर निकल आया। सिक्योर फोन बार-बार वाइब्रेट कर रहा था।



भाभी ने गुड्डी से बोला की वो चाय छान ले और वो भी मेरे साथ आ गईं हँसती हुई-

“दुपहर को तुम बाजार जाओगे ना तो मैं लिस्ट दे दूंगी होली के सामान की लेते आना। और ये मजाक का बुरा तो नहीं माना तुमने…” वो बोली।



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“अरे नहीं भाभी। मैं मंजू को जानता नहीं क्या?” मैं हँसने लगा।



लेकिन भाभी मुश्कुराकर बोली-

“और क्या? और वैसे भी मैं मजाक थोड़ी कर रही थी। सही बोल रही थी। सेट कर लो उसको…” और हँसते हए वो ऊपर चली गईं और मैं अपने रूम में।



फोन खोलकर सबके मेसेज मैंने डेस्क टाप के सिक्योर्ड सर्वर पे ट्रांसफर किया, फिर एक फोल्डर में कापी करके देखने लगा।



तब तक गुड्डी एक मग में चाय लेकर आ गई। मैंने उसकी कलाई पकड़ ली तो वो बहुत धीमे से फुसफुसाते हुए बोली-

“अभी नहीं। शीला भाभी बाहर खड़ी हैं…” और हाथ छुड़ा कर चली गई।
 
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Shetan

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बात ही दिल की है और आप ऐसी सुगढ़ लेखिका ही इसे अच्छी तरह समझ सकती है

आभार
सब कुछ आप ही से सीखा है कोमलजी.

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Chalakmanus

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फागुन के दिन चार भाग ४६

रात बाकी बात बाकी
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पान
६,१३, ८५५
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“हे क्या हुआ इससे डर गई क्या?” मैंने अपने फिर से पूरी तरह खड़े लिंग की ओर इशारा करके कहा।

वो रुक के लौट आई और झुक के लिंग पकड़कर उसे देखकर कहने लगी-

“इससे क्यों डरूँगी, ये तो मेरे प्यारा सा, सोना सा, मुन्ना :

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और खुले सुपाड़े को गुड्डी ने जीभ निकालकर अच्छी तरह चाट लिया और फिर होंठ के बीच पूरा सुपाड़ा गड़प कर, खूब कसकर चूम लिया और अपने मस्त नितम्ब हिलाती, मटकाती चल दी। उसकी पतली सी कमर पे उसके किशोर नितम्ब भी भारी लगते थे।

मेरा मन किया की,... अगर एक बार मौका मिले तो इसके पिछवाड़े का भी,....

गुड्डी ने एक बार मुड़कर पीछे देखा जैसे उसे मेरे मन की बात का पता चल गया हो और मुश्कुरा दी। अलमारी से एक कागज का वो पाकेट लेकर आ गई और फिर से मेरी गोद में बैठकर उसे खोलने लगी।

“मैं भी न तुम्हारी संगत में पड़ के भुलक्कड़ हो रही हूँ, तुमने बोला था ना पान के लिए…” मुश्कुराकर वो बोली।

“हाँ वो…”

कल के पहले मैंने कभी पहले पान खाया भी नहीं था और वो भी बनारस का स्पेशल।

कल रात इसी ने सबसे पहले अपने होंठों से,...

मैं सोच रहा था की गुड्डी ने चांदी के बर्क में लिपटे महकते गमकते दो जोड़े पान निकालकर साइड टेबल पे रख दिए।

“हे ये तो चार हैं…” मैं चौंक के बोला- “मैंने तो दो मेरा मतलब हम दोनों के लिए। दो…”


अरे बुद्धू चलो कोई बात नहीं। ये पान वैसे भी जोड़े में ही आते हैं…” गुड्डी बोली और एक जोड़ी पान अपने होंठों में लेकर मेरी ओर बढ़ाया।
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कैसे भूल सकता हूँ मैं कल पहली बार गुड्डी के मुख रस से डूबा लिथड़ा, पान का स्वाद और चंदा भाभी गवाह भी हैं,



“भई, अपना मीठा पान तो…”गुड्डी ने मीठे पान का जोड़ा मुझसे दिखाया, अपने रसीले होंठों से दिखा के ललचाया जैसे पान नहीं होंठ दे रही हो और पूछा “क्यों खाना है?” बड़ी अदा से उसने पान पहले अपने होंठों से, फिर उभारों से लगाया और मेरे होठों के पास ले आई और आँख नचाकर पूछा-


“लेना है। लास्ट आफर। फिर मत कहना तुम की मैंने दिया नहीं…”
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जिस अदा से वो कह रही थी। मेरी तो हालत खराब हो गई। ‘वो’ 90° डिग्री का कोण बनाने लगा।

“नहीं। मैंने तो कहा था ना तुमसे की। मैं…”

पर वो दुष्ट मेरी बात अनसुनी करके उसने पान को मेरे होंठों से रगड़ा, और उसकी निगाह मेरे ‘तम्बू’ पे पड़ी थी और फिर उसने अपने रसीले गुलाबी होंठों को धीरे से खोला और पूरा पान मुझे दिखाते हुए गड़ब कर गई। जैसा मेरा ‘वो’ घोंट रही हो।



और थोड़ी देर बाद जब मैं गुड्डी का मीन राशि का राशिफल सुना रहा था तो उसमे आया,



"मीन तो पानी में ही रहती है तो आप प्यासी क्यों तड़प रही हैं। इस फागुन में लण्ड योग है बस थोड़ी सी हिम्मत कीजिये। एक पल का दर्द और जीवन भर का मजा। होली में और होली के पहले भी आप जोबन दान करें, आपके उभार सबसे मस्त हो जायेंगे। देखकर सारे लड़कों का खड़ा हो जाएगा और सारे शहर के लौंडे आप का नाम लेकर मुठ मारेंगे। हाँ उंगली करना बंद करिए और रोज सुबह चौथे पन्ने पे दिए गए लण्ड महिमा का गान अपने वाले के हथियार के बारे में सोच कर करें। जल्द मिलेगा और एक श्योर शोट तरीका।"

आपका वो थोड़ा शर्मीला हो थोड़ा बुद्धू हो तो बस। फागुन का मौसम है। आप खुद उससे एक जबर्दस्त किस्सी ले लें…”




गुड्डी मेरी गोद में मेरी ओर फेस करके बैठी थी। उसने दोनों हाथों से मुझे पकड़ रखा था और मैंने भी। मेरा एक हाथ हाथ उसकी कमर पे और दूसरा उसके किशोर कबूतर पे। बड़ी अदा से उस कातिल ने चन्दा भाभी की ओर मुश्कुराकर देखा और भाभी ने हँसकर ग्रीन सिगनल दे दिया।


जब तक मैं समझूँ, उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को कसकर पकड़कर अपनी ओर खींच लिया था और उसके दहकते मदमाते रसीले होंठ मेरे होंठों पे।


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पीछे से हँसती खिलखिलाती चंदा भाभी ने भी मेरा सिर कसकर पकड़ रखा था।

उसके गुलाबी होंठों के बीच मेरे होंठ फँसे थे। मेरी पूरी होली तो उसी समय हो गई।

साथ-साथ मेरे बेशर्म हाथों की भी चांदी हो गई। वो क्यों पीछे रहते। दोनों उभार मेरी हथेलियों में। पल भरकर लिए होंठ हटे।



“हे भाभी खिला दूं?” पान चुभलाते उस सारंग नयनी ने पूछा।


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“नेकी और पूछ पूछ…” हँसकर भाभी बोली और कसकर मेरा मुँह दबा दिया।
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मेरे होंठ खुल गए और अब किस्सी के साथ-साथ मैं भी कस-कसकर चूम रहा था चूस रहा था। जैसे किसे भूखे नदीदे को मिठाई मिल गई हो। मेरे लिए मिठाई ही तो थी। थोड़ा पान मेरे मुँह में गया लेकिन जब उस रसीली किशोरी ने मेरे मुँह में अपनी जीभ डाली तो साथ में उसका अधखाया, चूसा, उसके रस से लिथड़ा।

मैं अपनी जीभ से उसकी जीभ छू रहा था चूस रहा था, और जब थोड़ी देर में तूफान थोड़ा हल्का हुआ तो वो अचानक शर्मा गई लेकिन हिम्मत करके चिढ़ाते हुए उसने चन्दा भाभी को देखकर कहा-



“कुछ लोग कहते हैं मैं ये नहीं खाता। वो नहीं खाता…”

“एकदम। लेकिन ऐसे लोगों का यही इलाज है। जबरदस्ती…” चन्दा भाभी ने उसकी बात में बात जोड़ी।



मैं मुँह में पान चुभला रहा था।

तो मैं बुद्धू था लेकिन इतना भी नहीं, कल के इस बनारसी बाला के मुंह में घुले,रचे बसे, बनारसी पानी के स्वाद के बाद, अब बनारस का पान क्या कोई भी चीज मना नहीं कर सकता था।

कल की तरह बजाय नखड़ा दिखाने के मैंने मुँह खोल दिया। और गुड्डी ने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़कर आधे से ज्यादा पान मेरे मुँह में डाल दिया और यही नहीं अपनी जुबान मेरे मुँह में डालकर ठेल भी दिया।

थोड़ी देर में पान ने असर दिखलाना शुरू कर दिया।

एक अजब सी मस्ती हम दोनों पे छाने लगी। मैं कसकर गुड्डी के जोबन का रस कभी हाथों से कभी होंठों से लेने लगा और गुड्डी भी कभी मुझे चूम लेती कभी होंठों को चूस लेती कभी चूस लेती।



फिर अचानक उसने मुझे पलंग पे गिरा दिया और इशारे से बोली की मैं बस चुपचाप लेटा रहूँ। उसके होंठ मेरे होंठों से सरक के मेरे सीने पे आ गई और पान चूसते चुभलाते उसने मेरे टिट्स पे अपनी जुबान फ्लिक करनी शुरू कर दी जैसे मैं थोड़ी देर पहले उसके निपलों पे कर रहा था। एक टिट पे उसकी जीभ थी और दूसरे पे उसके नाखून। जोश के मारे मेरे नितम्ब अपने आप ऊपर उठ रहे थे।



जंगबहादुर तो बहुत पहले ही 90 डिग्री पे थे।



थोड़ी देर वहां छेड़ने के बाद वो नीचे आ गई और उसकी जीभ मेरे लिंग के बेस पे कभी चाटतीकभी फ्लिक चाटती।



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मेरा मन कर रहा था की वो मुँह में ले ले लेकिन वो कभी बेस पे तो कभी चर्म दंड के चारों और जीभ निकालकर टच करके, कभी हल्के से चाटके छोड़ दे रही थी। और उसकी दुष्ट उंगलियां भी, कभी सुपाड़े के छेद पे छेड़ देती कभी मेरे बाल्स को हाथों में लेकर हल्के से दबा देती, कभी रियर होल और बाल्स वाली जगह पे रगड़ देती।



जोश के मारे मैं पागल हो रहा था।



फिर वो लेट गई।

मेरे ऊपर।

मेरा लिंग उसके उभारों के नीचे दबा हुआ था।

और उसी तरह दबाते, रगड़ते, सरकते, वो मेरे ऊपर आ गई उसके होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे, उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी। उसने एक हाथ से दबाकर मेरा मुँह खुलवा दिया, और उसके रसीले होंठ मेरे होंठों पे झुके लगभग सटे, आधे इंच से भी कम दूरी पे।

उसने अपने हाथ से मेरे हाथों को पकड़ लिया और गुड्डी के मुँह से पान का रस उसके मुँह के रस से मिला, मेरे मुँह में। अगले ही पल उसके होंठों ने मेरे होंठों को सील कर दिया था और हम पान के साथ होंठों का, जीभ का, सबका रस।



अगर कोई वीडियो बनाना चाहता।
डीप फ्रेंच किस विद फ्लेवर आफ बनारसी पान।



तो ये सही मौका था।
Do premi jode.
erotic..

Kahani jo flash back main le jati hai na wo rashi faal wala maza aa jata hai tab
 
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