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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग १०६ - रीत रस्म और गाने, पृष्ठ, १०९५

छुटकी - होली दीदी की ससुराल में, अपडेट पोस्टेड,

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Shetan

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शीरा


" अरे बुच्ची के लिए शीरा था न,… जो रसगुल्ला उसके भैया खाये थे "

" अरे बौरही ये ससुरी ननदे ऐसी हैं जिनके चक्कर में सब भुला जाता है, अरे बुच्ची अपने हाथ से अपने भैया को रसगुल्ला खिलाई है और खुदे बोली की रसगुल्ला तू खा,… शीरा मैं खाउंगी। चलने के पहले बोल के भी आयी है कल भैया रसमलाई खिलाऊंगी अपनी "

इमरतिया उठी और मंजू भाभी ने बुच्ची की जाँघों के बीच अपनी हथेली रगड़ते चिढ़ाया ( अब तो चड्ढी का पर्दा भी नहीं था ),

" सही तो कह रही है हमारी बुच्ची, इस रसमलाई से बढ़िया मिठाई कहाँ तोहरे देवर को मिलेगी "

और इमरतिया बाहर से वो कुल्हड़ ले आयी, जिसमे सुरजू का मुट्ठ मार के उसने निकाला था,


कुल्हड़ एकदम ऊपर तक बजबजा रहा था।

मुन्ना बहू जोर से मुस्करायी, वो तो पहले से समझ रही थी। उसी को दिखा के इमरतिया खाली खुल्हड अंदर ले गयी थी और जब बुकवा लगा के निकली तो रबड़ी मलाई भरी, और तो खूब खेली खायी, शादी बियाह में उनसे ज्यादा खुल के नन्दो की रगड़ाई कोई नहीं करता था।

मान गयी इमरतिया को वो, और उसे देख के मुस्करायी।

उन के सामने ही तो किसी ननद ने इमरतिया को चिढ़ाया था,

" भौजी, भैया को बुकवा लगेगा तो तिसरिकी टांग में जरूर लगाइएगा, " और सुरजू की माई हँसते बोली



" अरे वहां तो सबसे ज्यादा, "

इमरतिया क्यों ननद की बात का बिना जवाब कैसे छोड़ती, हंस के बोली " एकदम ननद रानी, तीसरी टांग में तो खूब रगड़ रगड़ के तेल बुकवा लगाउंगी, भौजाई का हक है,… लेकिन शीरा जो निकलेगा, वो ननद को पीना पड़ेगा"

और उसी समय बुच्चिया आ गयी और बिना पूरी बात सुने समझे बोली,

" अरे भौजी, शीरा तो हमको बहुत अच्छा लगता है "

फिर सब भौजाइयां इतना हंसी और इमरतिया के पीछे, आज तो ननद को शीरा जरूर पिलाना,



और कुल्हड़ होंठों से लगा के बुच्ची घुटुर घुटुर डकार गयी और तीनो भौजाइयां उसके पीछे,

" कैसा लग भैया क चाशनी, " मुन्ना बहू बोलीं


" अरे आज ऊपर के छेद से पी रही हो, कल इमरतिया हमरे नन्द के नीचे वाले छेद से पिलाना " मंजू भाभी ने आगे के प्रोग्राम का ऐलान कर दिया।

" अरे आपकी बात हम थोड़ो टाल सकते हैं, अरे अभी बारह दिन है, और छत पे ताला बंद है । कल रात को बुच्ची को उसके भैया की कुठरिया में और बाहर से कुण्डी बंद, रात भर भैया बहिनी की मर्जी, नीचे चाहे आगे के छेद में घोंटे चाहे पीछे के छेद में, काहो बुच्ची मंजूर। "



इमरतिया ने हँसते हुए चिढ़ाया।
यही तो चाहिये था. मान गए री इमरतिया. देवर का शिराह जो कुल्लाड़ मे भर के लाई थी. वो पीला दिया बुचि नांदिया छिनार को. वैसे भी कहे रही थी ना की उसे शिराह बहोत पसंद है. अब अपने भैया का शिराह गट गट पि गई. अब रस मलाई भी खिला दे अपने भैया को.

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Shetan

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रजाई में


लेकिन असली मस्ती शुरू हुयी रजाई में और सिर्फ ननद भौजाई की नहीं, सब की.

इमरतिया ने अब मंजू भाभी को दबोचा, और सीधे ब्लाउज पे हाथ मारते बोली,

" इतना बड़ा बड़ा गुब्बारा, केसे दबवावे शुरू किये थी जो इतना बड़ा बड़ा हो गया, "

" अरे छिनार नजर मत लगावा, ला देखा, "

हँसते हुए मंजू भाभी ने अपने ब्लाउज की बटन खोल दी, गाँव में पहुँच के वो भी एकदम गाँव की तरह न ब्रा न चड्ढी। लेकिन साथ में उन्होंने एक हाथ इमरतिया दूसरे से मुन्ना बहू पे भी झप्पटा मारा और वो दोनों भी बिना ब्लाउज के




और वो दोनों,.... इमरतिया और मुन्ना बहू भी कम गदरायी नहीं थीं, देवरों का खूंटा देख के टाइट हो जाता था, ३६ नंबर था लेकिन मंजू भाभी का ३८ ++ एकदम सुरजू सिंह की माई की तरह।

बड़की ठकुराइन का भी ऐसे ही बड़ा बड़ा था और ऐसे ही टाइट, इमरतिया तो रोज मालिश करती थी, और छेड़ती थी, सुरजू का नाम ले के,

" हमरे देवर को पिया पिया के, उनसे चुसवा चुसवा के ठकुराइन इतना बड़ा हो गया है " और ठकुराइन क्यों छोड़ देतीं, इमरतिया के जोबन पे हाथ मारते बोलतीं,

" अरे छिनार, तो काहें तोहरी बुरिया में आग लगी है, तोहार तो देवर हैं तुम भी चुसवा लो "

सुरजू के माई की बड़ी बड़ी घुंडी रगड़ती इमरतिया बोलती,

" अरे हम तो चुसवाएंगे ही, और सीधे से नहीं तो पटक के मुंह में चूँची पेल देंगे अपनी। लेकिन आप भी, …अरे बचपन में चुसवाने का मजा और जवानी में चुसवाने का मजा अलग है। अब जिन कहियेगा की हमार देवर क नाम सुन के गंडिया फटे लाग"


हंस के सुरजू की माई और उकसातीं, " अरे बुरचोदो, जेकरे बाबू से न डरे, उससे डरूंगी । भेज दे अपने देवर के, लेकिन अभी तनी और कस कस के जोर लगाओ "



और इमरतिया की इसी मालिश का नतीजा था की ठकुराइन उसके बिना रह नहीं सकती थीं, एक दिन नागा हो जाए तो अगले दिन सूरज सिंह , इमरतिया के दरवाजे पे, " भौजी, माई बुलाई है "



अब शीला भी एकदम खुल गयी थी तीनो भौजाइयों से तो वो मंजू भाभी से बोली, " भौजी ये बतावा सबसे पहले केकर हाथ पड़ा और कौन घुसा अंदर "
वाह माझा आ गया. लम्बे वक्त के बाद कन्या रस का खेल. नांदिया ओर भौजी के बिच.

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पर माझा मुजे ज्यादा नारी रस पढ़ने मे आया. सूरजबली की महतारी ओर इमरतिया के किस्से मे. एक से एक डायलॉग.
बचपन मे चूची पिलाने ओर जवानी मे पिलाने मे फर्क होता है.
ओर दूसरा वाला तो ओर ज्यादा जबरदस्त लगा.
जिस के बाप से नहीं दरी तो बेटे से क्या डरूंगी.
जबरदस्त कोमलजी. ऐसे डायलॉग क्रिएट किए है की पढ़ने का माझा दो गुना बढ़ जाता है.

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Premkumar65

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वाह माझा आ गया. लम्बे वक्त के बाद कन्या रस का खेल. नांदिया ओर भौजी के बिच.

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पर माझा मुजे ज्यादा नारी रस पढ़ने मे आया. सूरजबली की महतारी ओर इमरतिया के किस्से मे. एक से एक डायलॉग.
बचपन मे चूची पिलाने ओर जवानी मे पिलाने मे फर्क होता है.
ओर दूसरा वाला तो ओर ज्यादा जबरदस्त लगा.
जिस के बाप से नहीं दरी तो बेटे से क्या डरूंगी.
जबरदस्त कोमलजी. ऐसे डायलॉग क्रिएट किए है की पढ़ने का माझा दो गुना बढ़ जाता है.

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Shetan ji aapke comments padhkar mazaa aa jata hai.
 

Shetan

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Shetan ji aapke comments padhkar mazaa aa jata hai.
बहोत बहोत धन्यवाद. मेरी पूरी कोसिस रहती है की रिडर्स का एंटरटेनमेंट होता रहे.

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komaalrani

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लो ऐसे देखो तो नसीब वाली भी है सुगना. ना सास की कीच कीच ना नांदिया कोई छिनारो की खिट पिट. कोई रोकने वाला नहीं. जो मर्जी खाए पिए पहने ओढ़े.

ऊपर से रसीला जोबन. उसके रूप का तो वर्णन आप बता ही चुके हो. अब ऐसी बहुरिया ढूढ़ के लाओगे तो लोग पूछेंगे ही. बहु अपने लिए लाए हो या बिटवा के लिए.


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सुगना के लिए चित्र आपने बहुत अच्छे दिए, एकदम असली सुगना ऐसे, उसका प्रसंग आएगा तो जरूर इस्तेमाल करुँगी, इतने बढ़िया कमेंट्स और चित्रों के लिए आभार

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thank_you: :thank_you: :thank_you: :thank_you: :thank_you:
 

komaalrani

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वाह तो सूरज बली सिंह के चर्चे एक गांव मे नहीं कई गांव तक थे. खास कर उनकी लाठी के चर्चे. ब्याह से पहले खूब लाठी चली है. ऊपर से हिना के लिए दूसरे गांव वालों से भीड़ गए. चेले चपाटे भी बहोत थे. तब तो गांव की भउजीयो से भी खूब लाठी चलवाई होंगी.

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एकदम सही कहा अपने सूरजबली सिंह की इज्जत भी बहुत थी, लाठी उनकी उठती थी तो गरीब के लिए और सही के लिए, गरीब पर कभी नहीं उठती थी, जब तक कुश्ती लड़े, हर दंगल जीते, और भौजाइयां तो तगड़े लाठी वाले देवर से हरदम खुश रहती है

एक बार फिर धन्यवाद, आपके सहयोग से कहानी के व्यूज भी बढ़ रहे हैं
 

komaalrani

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देवरो की और ननंद छिनारो की नथ उतरना भोजाईयो का सिर्फ काम ही नहीं. धर्म है. कर्तव्य है. तभि तो तूने अपने देवर चुन्नू की ली थी. मतलब नथ उतरी. जम के हिलाया उसका खुटा.

तो वैसा ही हाल सूरजबली का भी है. भले ही लंगोट पहने सरीफ थे. किसी भौजी लड़की को देखते नहीं थे. पर मन होता था. लंगोट मे मलाई गिरी तो उनकी महतारी ब्याह करवाने के चक्कर मे लग गई.


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और दंगल लड़ते थे तो गुरु ने लंगोट की कसम धरायी थी और अखाड़े का नियम, लेकिन जब शादी तय हुयी तो उसी दिन अखाडा और दंगल दोनों छूट गया और गुरु ने शर्त से आजाद कर दिया और भौजाइयों को भी आजादी मिल गयी
 

komaalrani

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लो तो यहाँ भी वही किस्से है. अरे जमाना बदलता है. रिश्ते तो वही रहते है. यहाँ भी ममेरी बहन. फूलवा. पर वो बहनचोद नहीं बन पाए. नहीं तो तो फूलवा का पेट ना फुला देते.
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लेकिन गांव की सारी भौजीयो ने सूरजबली को चिढ़ाया बहोत. क्या मज़ेदार किस्सा था.

कोमल भी ऐसे फूस के किस्सा सुन रही है. आखिर रहा नहीं गया की सूरज बली की लंगोट उतरी किसने. अरे नाऊन. गुलाबीय की सास इमरती.


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एकदम सही कहा आपने,

इमरतिया, रिश्ते में भौजाई, तो देवर को सिखाय पढाय के देवरानी से कुश्ती के लिए कौन तैयार करेगा, भौजाई न

और बहिनिया पे उसे कौन चढ़ाएगा, भौजाई न ,

उसकी शर्म, लिहाज झिझक क लंगोट कौन खोलेगा, भौजाई न

फिर सूरज बली सिंह के माँ ने ये काम भी तो इमरतिया को सौंपा था, दस दिन के अंदर अपने सूरजु को पक्का करने का

इस कहानी में इमरतिया बार बार आएगी,

लेकिन सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन आपका है, जब से आप लौट के आयी है , हर पोस्ट पर इतने मस्त कमेंट की कहानी के व्यूज बढ़ते जा रहे हैं कोई भी तरफ कम है, कोशिश करुँगी, अगला अपडेट कल और बाकी दोनों कहानियों पे भी इस हफ्ते अपडेट
 

komaalrani

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क्या बात है. वक्त बदल जाए. किरदार बदल जाए. पर खेल वही रहता है. उस वक्त गुबिया की बहुरिया मतलब गांव की नईकी भौजी इमरती थी. और ऊपर से उसका मरद गया पंजाब. फसल काटने. कमाई करने.

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सूरजबली की महतारी बिलकुल सही तो कह रही है. गांव मे क्या देवरो की कमी है. पर उस वक्त वो शर्माती थी. और सूरजबली की हसीं देख कर वो भी समझ गई.

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komaalrani

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क्या बात है. वक्त बदल जाए. किरदार बदल जाए. पर खेल वही रहता है. उस वक्त गुबिया की बहुरिया मतलब गांव की नईकी भौजी इमरती थी. और ऊपर से उसका मरद गया पंजाब. फसल काटने. कमाई करने.

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सूरजबली की महतारी बिलकुल सही तो कह रही है. गांव मे क्या देवरो की कमी है. पर उस वक्त वो शर्माती थी. और सूरजबली की हसीं देख कर वो भी समझ गई.

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