Shetan
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Vada kiya to nibhana pdega chadu seछुटकी की होली
और भौजी चली देवर को
ननद ने सही कहा था, भाभी लौट के आइयेगा सीधे कुप्पी से पीने को मिलेगी,
यहाँ तक की मेरी सास की समधन, मेरी माँ ने अपनी समधन को दस मोटी मोटी गारियाँ सुनाई थीं, बड़ी सीधी हैं सास तेरी नयी बहू को तो सीधे कुप्पी से ,
और वही हो रहा था,... वो भी खड़े खड़े, वो खड़ी थी, मैं बैठी,...
और मैंने कनखियों से देखा तो छुटकी को एक गोयतिन सास, अरे वहीँ नैना की माँ,... मेरी तरह उसको भी , सीधे कुप्पी से,.. और मेरी सास ने मेरा सर भी अपने दो हाथों से जकड़ रखा था,.. तब तक पिछवाड़े मेरी एक नहीं दो उँगलियाँ घुसीं, और कौन मेरी भाइचॉद ननद,... और जब सास ने छोड़ा तो ननद ने पिछवाड़े से निकली ऊँगली मेरे मुंह में,... ज़रा भाभी को मंजन तो करा दूँ,...
लेकिन मुझसे ज्यादा दुर्गत छुटकी की हो रही थी, सब सासें उसी पर ज्यादा मेहरबान, ... कच्चे टिकोरों को देख के सब का मन ललचाता है चाहे मरद हों या औरतें , खास तौर से बड़ी उम्र की औरतें,...
और छुटकी के ऊपर सबसे पहले चढ़ीं मेरी चचिया सास, ऐसी लिबरा रही थीं , मेरी सास की देवरानी भी सहेली भी, और सास ने पहले ही उन्ही से कच्ची अमिया वाली का भोग लगवाया,
छुटकी ने तो होली में अपने यहाँ भी मिसराइन भौजी, ( जो स्कूल में उसकी वाइस प्रिंसिपल भी थीं और इन्ही चचिया सास की उमर की रही होंगी तो होली में अपनी सबसे छोटी ननदिया को क्यों छोड़तीं, और रीतू भौजी, होली में ननदें गिन पाती हैं क्या ? और चूत चूसना तो वो अच्छी तरह सीख गयी थी,...
तो पांच छह मिनट में वो जब मेरी चचिया सास को झाड़ने के करीब ले गयी, तभी खड़े खड़े सास ने बहुओं को और बेटियों को इशारा किया बस क्या जाल में गौरैया जकड़ती है , ..और उस का सर मेरी सगी ननद ने पकड़ के मेरी चचिया सास की बिल में जबरदस्त चिपका रखा था, और हड़का भी रही थीं,...
उधर मेरी सास मेरे ,
और चचिया सास मेरी छुटकी बहिनिया के ,
मुझे सिर्फ ननद की आवाज सुनाई दे रही थी हड़काते , पुचकारते,... मुंह बंद करने की कोशिश भी मत करना,... अरे भौजी की बहिनिया,... हाँ शाबास , दो चार बूँद ,... अब तो देख बस तू खाली मुंह खोल के रख, ... एक बूँद भी बाहर नहीं जाना चाहिए, ... वरना मार मार के तेरे चूतड़,... शाबास,... अरे तेरी बड़की बहिनिया ने तो खाली दो चार गिलास पिया था , तुझे तो आज आधी बाल्टी पिलाऊंगी , सीधे कुप्पी से ,
आधी दर्जन से तो ऊपर सास थीं , फिर ननदें
मुझे याद आ रहा था मेरी जेठानी ने कैसे कजरी को , नउनिया की बिटिया छुटकी के उम्र की ही होगी , पटक के यहीं , घल घल ,... और मैंने भी तो अपनी सगी छोटी ननद के ऊपर चढ़ के, मेरी सब जेठानियाँ ललकार रही थी और मैंने सुनहला शरबत,... वही इनकी छोटी बहन जिसकी मेरे ममेरे भाई ने हचक के फाड़ी थी,...
और जब मुंह में,...
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तो एक दो सासें कच्चे टिकोरों का मजा ले रही थींतो कोई सास अगवाड़े ऊँगली कर रही थी दूसरी गाँड़ की गहराई नाप रही थी ,
ननदें भी छुटकी के साथ ही,
और उसे गरिया भी रही थीं
" अरे ऊँगली से उचक रही हो , कल से गाँव भर के हमारे भाई सब एही तोहरी गाँड़ि में गोता लगाएंगे, एक निकालेगा दूसरा डालेगा, दीदी के गाँव आयी हो न सही मौसम में लंड का कोई कमी न होगी , न अगवाड़े , न पिछवाड़े,...
तो कोई मेरी गाँव की सासों को ललकार रही थीं , " हाँ चाची तनी ठीक से नाप जोख कर लीजिये,... कल से आपके बेटवा लोग, अरे इनकी बहिनिया को हमरे गाँव का मोट मस्त लंड पसंद आ गया तो अपनी छुटकी बहिनिया को भी ले आयीं। "
और बस थोड़ी देर बाद उस मौके का फायदा उठा के बस अपनी साड़ी मैंने लपेटी और निकल ली,... किसी से मैंने वायदा किया था,...
……..
चंदू से मैंने वायदा किया था,मेरा रिश्ते से देवर,... गाँव की सब औरतें, ननदें, जेठानियाँ, कामवालियां,... सब उसे सांड़ कहती थीं और ब्रम्हचारी भी,
एक दिन मिश्राइन भाभी ने उसका पूरा किस्सा बताया, गाँव में लौंडो को,.. रेख आयी, टनटनाना शुरू हुआ, दूध मलाई बहनी शुरू हुयी,
सबसे पहले तो कोई कामवाली, घर में खेत में, नेवान कर लेती
उसके बाद भौजाइयां, कितनों के तो मरद परदेस कमाने जाते थे तो आधे समय छूंछियाई रहती थीं, तो कच्ची उमर का देवर,... और एक बार मूसल राज को भोग मिल गया, प्रेम गली में आना जाना शुरू होगया तो, मेरे ससुराल की लड़कियां, ननदें , सब की सब मायके की छटी छिनार,...
मैं तो कहती थी ननद और छिनार पर्यायवाची हैं,... झांटे आने के पहले ही लंड ढूँढ़ना शुरू कर देती थी,...
लेकिन चंदू मेरा देवर सच में सांड़ था, मिश्राइन भौजी बोलीं की जो चार चार बच्चो की माँ, गाँव जवार में जिससे कोई मर्द बचा न हो, ... जब रेख आ रही थी, उस उमर में भी, वो सब भोंसड़ी वाली भी, जितना गौने की रात में न चीखी होंगी उससे ज्यादा,..
कुछ दिन में सब उससे कतराने लगीं, सिर्फ वही कामवालियां , .. उसमें से भी कोई एक नयी लड़की थी, ... कुँवारी तो नहीं,.. लेकिन शादी हो गयी थी, गौना नहीं हुआ था गाँव के दो चार बाबू साहेब चढ़ चुके थे और थी भी शौक़ीन,... बहुत चिल्लाई वो और क्या नहीं कहा, ... चंदू को,...
बस उसी के बाद,...
सिर्फ रमजानिया जो उसके यहाँ काम करती थी उसी से उसकी पटती थी,... उसने बहुत समझाया भी की भैया , चुदवाने से आज तक कोई लौंडियाँ नहीं मरी, स्साली छिनरपना कर रही थी,...
डेढ़ साल से ऊपर हो गए, तब से चंदू लंगोट का पक्का, एकदम ब्रम्हचारी,... लड़कियों औरतों के देख के आँखे नीची कर लेता, कोई भौजाई कुछ बोलती भी , तो बस रास्ता काट के निकल जाता,...
हाँ मेरी बात अलग थी, मुझे देख के खुद साइकिल से उतर के नमस्ते करता, लेकिन मैं भी क्या करती, रिश्ते से भौजाई थी, बिना मज़ाक किये देवर से छोड़ दूँ,... और मज़ाक भी एकदम खुल्ल्म खुल्ला,... वो जवाब तो नहीं देता था,... लेकिन उसके गाल इतने शरम से लाल हो जाते थे की बस यही मन करता था की कचकचा के काट लूँ , सच्ची इतनी तो इस गाँव की कोई लड़की भी नहीं शरमाती,...
मेरी ननदें मुझे चिढ़ाती भीं, चढाती भी ,
एक बोलती की कउनो उर्वशी मेनका आएगी तभी चंदू भैया का ब्रम्हचर्य भंग होगा,... तो दूसरी बोलती, हमार नयकी भौजी कउन उर्वशी मेनका से कम है, भउजी अबकी फागुन में देवर क,...
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Asli holi to ab shuru hogi" भौजी"
फागुन के सब रंग मेरे हाथों में उतर आये थे और रस मेरे देवर के गालो में,
आज कली भौंरा बन गयी थी, रस लुटाने वाला रस लूट रहा था, ...
एकदम मीठे पूवे जैसा, वो भी ऐसा वैसा पूआ नहीं, दूध में महुआ डाल के जो पूवा बनता है वो वाला, मुलायम भी रसीला भी नशीला भी, दोनों गाल उसके, मेरे हाथों के नीले काही रंग, और इतना रगड़ रगड़ कर,... मेरे हाथों की सारी लकीरें मेरे देवर के गालों पर जैसे उस कुंवारे लजीले देवर के गालों पर उतर जाएँ,... और उस के बाद आँचल में खोंसी कड़ाही से उतारी कालिख की पुड़िया, रच रच कर उन गोरे गोरे गालों पर, इत्ते चिकने, गोरे मुलायम मक्खन ऐसे गाल तो मेरी किसी ननद के भी नहीं थे,...
" भौजी"
अब उसके बोल फूटे और मुंह खुलते ही, मेरी उँगलियों में लीपी पुती कालिख, देवर के मुंह और और उसके बत्तीसों दूध से चमकते दांत अच्छी तरह काले ,... उसने मुंह बंद करने की कोशिश की पर मेरे देवर की हालत उसकी उन बहनों की तरह जो ख़ुशी ख़ुशी , चूत में सुपाड़ा घुसवा लें और उसके बाद जांघ सिकोड़ने की कोशिश करें चूतड़ पटकें, न बिना चोदे उनकी चूत कोई लंड निकलता है न देवर के दांतों को कई कोट रंग लगाए मेरी उँगलियाँ निकलने वाली थीं.
रंगों कालिख के बाद पेण्ट की ट्यूब की बारी थी, उसने मेरे हाथ रोकने की भी कोशिश की, पर जब मेरे हाथ उसके गाल से चिपक गए थे, और नीला, काही कालिख के बाद वार्निश का पेण्ट, हाथों के पकड़ने से देवर कभी बचता है, जो वो बचे,...
और वो तो सीधा इतना जो कहते हैं न लड़कियों औरतों पर हाथ नहीं उठाना चाहिए , मानती हूँ। लेकिन टांग उठाने की तो मनाही नहीं हैं न।
चार पांच कोट के बाद मेरे हाथ चिकने गालों से सरक कर चौड़े ५६ इंच वाले सीने पर और वहां भी उसके मेल टिट्स ( आखिर सारे देवर ननदोई भी चोली के अंदर के फूलों के लिए ही ललचाते रहते हैं )
रंग का बाकी खजाना मैंने पास के चबूतरे पर रख दिया था, ... लेकिन मेरा मन उसे रंग से नहलाने का भी हो रहा था, एक बाल्टी दिखी, पानी भी था,... बस चार पुड़िया लाल रंग उसमें घोलने के लिए ,...
मेरे देवर की निगाहें बार बार उन्ही रंगों की ओर पड़ रही थीं,..सच में होली में रंग लगाने से ज्यादा मजा लगवाने में है और अगर लगाने वाला ऐसा लजीला नशीला देवर हो तो , मेरी आँखों ने उसे उन रंगो की ओर इशारा भी कर दिया , उकसा दिया,.. और इजाजत भी दे दी,... बस जब तक मैं रंग घोल रही थी वो दोनों हाथों में मेरे ही लाये गाढ़े लाल रंग को पोत के तैयार,...
मैंने भी देवर को पूरा मौका दिया और जब वो खड़ा हुआ, तो मैंने पूरी बाल्टी का रंग सीधे, एकदम वहीँ , जो लंगोटे के अंदर बंद, पूरी ताकत से,... इरादा मेरा अगर देवर को अब तक नहीं मालूम हुआ होगा तो अब मालूम हो गया होगा, ...
और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..
मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,
और मैं अकेली थोड़ी थी,
अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...
अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,... और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,
अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था , मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,
रिश्तों में हसीन बदलाव
और गीता जान बूझ के अपने भाई अरविन्द को चढ़ा रही थी, उसे भौजी की सीख याद आ रही थी,...
" ये स्साले लौंडे, घासवालियों के पीछे, खूब चुदी चुदाई काम करनेवालियों के चक्कर में कुत्ते की तरह दुम हिलाते जीभ लपलपाते घुमते हैं एक बार चोदने को मिल जाए, और घर में बिन चुदी कसी कोरी चूत है, मस्त माल है एकदम जिल्ला टॉप, गोरी चिकनी, उस की चूत में आग लगी है, स्साले उस बहन को चोदने के नाम पे स्सालों की गाँड़ फटती है,...
अरे उनकी बहन क्या बिना चुदे बचती है , जिस जिस को वो चोदते हैं, वो भी तो किसी की बहनिया ही हैं,... अरे ये सोच , दुनिया में शुरू में अगर दो ही थे एक आदमी एक औरत,... तो वो स्साला अगर अपनी बहन नहीं चोदता तो दुनिया आगे कैसे बढ़ती लेकिन नहीं , अरे हम सब उसी बहनचोद की औलाद हैं, लेकिन नहीं कहीं पढ़ लिया इन्सेस्ट , इंसेक्ट क्या कहते हैं खराब है, बहनचोद,...
अरे बहन चोदने से बढ़ कर समझदारी कुछ नहीं है , लेकिन क्या करेगी, पहल तुझे ही करनी पड़ेगी, संगीता रानी। तेरा भाई स्साला अरविंदवा नंबरी चोदू है , उसकी शकल देख के लगता है एक बार अगर वो चोदने पे उतर आया न तो ऐसा चोदू तुझे कहीं मिलेगा नहीं , लेकिन उसे चढ़ाना तुझे ही पड़ेगा। "
और गीता वही कर रही थी और उसका भाई अरविन्द अब एकदम से,...
अरविन्द के मुट्ठी में दुनिया का सबसे बड़ा धन, छुटकी बहिनिया के जोबन थे और उन्हें पकड़ के वो कस कस के रगड़ मसल रहा था, अब वो भूल चूका था की उसकी बहिनिया की बारी उमरिया क्या है, ये रुई के फाहे ऐसे २८ नंबर वाले उभार बस अभी उभर ही रहे हैं, कभी हथेली से कस कस के दबाता, तो कभी मूंगफली के दाने के तरह के छोटे छोटे निपल को अंगूठे और तर्जनी के बीच पकड़ के मसल देता,...
और अरविन्द की सगी छोटी बहन गीता सिसक उठती मचल जाती, ... कभी कभी उसे दर्द भी हो रहा था, भैया उसकी चूँची इतनी जोर से रगड़ रहे थे, लेकिन वो मस्ता रही थी, सिसक रही थी ,जाँघों के बीच जोर जोर से लसलसी हो रही थी, थकी थकी जाँघे भी अपने आप फ़ैल रही थीं, चूत में जोर के कीड़े काट रहे थे , ... और उसे सबसे बड़ी ख़ुशी इस बात की हो रही थी कि,
रिश्तों में हसीन बदलाव अब हो चुका था,
उसका सगा भाई अब उसे एक मस्त माल समझ रहा था, चुदवाने के लिए तैयार, चोदने के लिए गर्मागर्म लौंडिया,...
और सहेली की भाभी ने यही बात बार बार सिखाई थी, उसे सिखाया पढ़ाया था की तेरे घर में ही इत्ता मस्त मूसल है, तेरा सगा भाई अरविन्द, और तेरी ओखली अभी तक कोरी है,...
उन्होंने ही बोला था की देखो गरमी में आके कोई भी मरद एक बार तो चोद देगा, पानी भी झाड़ देगा , लेकिन थोड़ी देर बाद ठंडा होने पे भी , उसके मन में कोई बदलाव न हो और उसी समय कुछ देर बाद अगर उसका फिर से तन्ना जाए ,... और वो दुबारा चोद दे तो समझो रिश्ते में बदलाव पूरा ,
अब तुम उसकी माल हो, उसकी सजनी, वो तेरा साजन , अब सिर्फ मरद औरत का रिश्ता , सबसे मस्त रिश्ता,.... और फिर तेरी रोज चुदाई का इंतजाम पक्का ,
इसलिए गीता ने पक्का कर लिया था की कुछ भी करके अपने भाई अरविन्द से उसे दुबारा चुदवाना है,... और उसका भाई खुद चोदने के लिए पागल हो रहा था , यही तो वो चाहती थी , रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा हो चुका था।
Ghar k Maal to shudh hota hai....uski barbari kaha koi bahar ka Maal kar sakta hai.....दुबारा
इसलिए गीता ने पक्का कर लिया था की कुछ भी करके अपने भाई अरविन्द से उसे दुबारा चुदवाना है,... और उसका भाई खुद चोदने के लिए पागल हो रहा था , यही तो वो चाहती थी
, रिश्तों में हसीन बदलाव अब पूरा हो चुका था।
और अरविन्द, काम कला में पक्का, लौंडिया को गरम करके पहले आलमोस्ट झड़ने के करीब लाके तब पेलने की कला में माहिर , जिससे पहले धक्के में ही वो पानी फेंक दे,... और फिर हर धक्का सीधे बच्चेदानी तक,...
बस अब उसे जल्दी नहीं थी , एक जोबन अभी भी भाई के मुट्ठी में था पर अब वो बस हलके हलके सहला रहा था और होंठ दूसरे उभार की परिक्रमा कर रहे थे कभी जीभ से चाट लेता, तो कभी बस छोटी छोटी चुम्मी, ... तो कभी जीभ की टिप से कुरेद देता ,... और छोटे छोटे चुंबन के पग धरते,होंठ निप्स के पास, लेकिन उसने निप नहीं छुए अपनी बहिनिया के, बस जीभ की टिप से निप के चारो ओर,
और उसका दूसरा हाथ अपनी बहिनिया गीता की गोरी गोरी मांसल जाँघों पे सहला रहा था, नहीं योनि महल के पास नहीं बस थोड़ी दूर , कभी उँगलियों से सहलाता तो कभी हलके हलके हलके हाथों के जोर से जाँघों को फैलाता,... गीता खुद ही जाँघे फैला रही थी की उसका भाई चढ़ के , लेकिन अब उसका भाई अपनी बहिन को गरमाने में लगा था,... अब एक बार चोद के वो झिल्ली फाड् चुका था, खून खच्चर हो चुका था, अब सिर्फ मज़ा ले ले के आराम से चोदने का टाइम था और उसकी बहिन ऐसा मस्त माल आसपास के गाँव में भी नहीं था, ...
गीता गरमा रही थी बस उसका मन कर रहा था उसका भाई अरविन्द,...
एक हाथ से वो उसके लंड को सहला रही थी , खूब फनफना रहा था एकदम लोहे के राड ऐसा कड़ा,... सुपाड़ा मोटा खुला,
और अचानक जैसे बाज झपट्टा मार के किसी गौरया को झप्पट ले बस उसी तरह से उसके भैया के होंठों ने उसके एक निप को होंठों के बीच दबोच लिया, ... और लगा कस के चूसने, बीच बीच में भैया की जीभ होंठों के किले के बीच से निकल के सीधे निप्स पे छू के उसे पागल कर देती,... और साथ में हो हथेली जाँघों पर सरकती हुयी, जाँघों के बीच की दरार की तरफ बढ़ रही थी, बस एक झटके में और अपनी हथेली से बार बार हलके हलके उसकी चूत सहलाने लगाए , कभी अंगूठे से उसकी क्लिट सहला देता तो कभी एक ऊँगली बुर में डाल के अंदर बाहर,
अब गीता से नहीं रहा गया, उसने खुद अपनी दोनों टाँगे उठा दी,
थोड़ी देर में ही वो पीठ के बल लेटी थी, उसकी दोनों टाँगे उठी, भैया के कंधे पर जाँघे खुलीं,... पूरी तरह फैली,... हाँ अबकी शर्मा तो रही थी , लेकिन डर बहुत कम रही थी और उसने सायास आँखे अपनी खोल रखी थीं ,
चाँद भी खिड़की के रास्ते से उतर के उसकी पलंग के बगल में बैठ गया था ,...
अबकी उसके सामने ही, भैया ने फिर से सरसों के तेल बोतल खोली, अपने मोटे मूसल में जम के लगाया , और फिर उसकी दोनों फांको को फैला के सीधे बोतल से बूँद बूँद,... दो ढक्कन से भी ज्यादा, २० ग्राम कडुवा तेल तो कम से, उसकी बिल से छलक के बाहर आ रहा था तब भी, और पहली बार भैया की मलाई भी अंदर थी कटोरी भर,... और फिर अरविन्द भैया ने दोनों फांकों को बंद कर के थोड़ी देर मसला, जिससे सरसों का तेल बजाय बाहर आने के बहिनिया की बुर में अच्छी तरह सोख ले,... और थोड़ा सा ऊपर दोनों फांको पर लगा के ,...
फिर मार दिया करारा धक्का,...
उईईई उईईईईई वो जोर से चीखी ,... दर्द से पूरी देह भर गयी ,... लेकिन भैया ने उसके होंठ बंद नहीं किये बल्कि पतली सी कमरिया पकड़ के दूसरा धक्का पहले से भी करारा मारा,
उईईई ओह्ह्ह्हह उफ्फ्फ्फ़ नहीं नहीं ,... ओह्ह्ह्ह , उफ्फ्फ्फ़ उईईईईई ,...
वो चीखे जा रही थी , और भैया धक्के पर धक्के मारे जा रहा था , दूसरा तीसरा चौथा , सुपाड़ा पूरा अंदर धंस गया था , फिर और जोर से ,...
उईईई उईईईईई
बहना भले ही अनाड़ी थी पर भैया पक्का खिलाड़ी था , यही चीखें ही तो कुँवारी कच्ची कलियों के साथ मजे लेने का असली मजा है,... चिल्लायेंगी, चूतड़ पटकेंगी , उछलेंगी ,... पर धीरे धीरे कर के लंड पूरा घोंटेंगी,...
गीता ने दोनों हाथों से चादर को कस के पकड़ रखा था,... हलके हलके चीख रही थी लेकिन अच्छा भी लग रहा था अब पहली बार इतना दर्द भी नहीं हो रहा था , जब रगड़ते दरेरते अंदर घुसता तो बहुत अच्छा लगता और अंदर कैसा तो,... मजे से उसकी आँखे बार बार आँखे बंद हो जा रही थी , आधे से ज्यादा अबकी उसने अंदर ले लिया था,...
और अब भाई ने भी पैंतरा बदला , धक्के रुके लेकिन हाथ होठ चालू हो गए , अब उसके होंठ कभी बहना के गालों को चूमता, कभी उसके जुबना का रस लूटता, तो कभी बस आ रहे निपल को पकड़ के चूसते ,
मजे से बहन की हालत खराब हो गयी , एक हथेली एक उभार को कस के रगड़ रही थी , दबा रही थी मसल रही थी और दूसरा उभार होंठ के कब्जे में , ... भाई ने २८ से ३८ तक हर साइज के मजे लुटे थे
लेकिन जो मज़ा सगी छोटी बहन के जोबन लूटने में आ रहा था , उसका कोई जवाब नहीं था,...
Lajawab milan hua hai dono bhai bahan ka pahli hi raat m..... ab ye to kohram maca denge ghar k har kone m.....
भैया बहिनी
जमीन पर बिखरे दोनों के कपड़ों की तरह शरम भी अब कहीं फर्श पर बिखरी थी, खुली खिड़की से ठंडी ठंडी हवा आ रही थी, थोड़े बहुत बादल कभी चाँद को घेर कर अँधेरा कर देते तो कभी चांदनी उन्हें बिखरा के गीता और उसके भाई अरविन्द की काम क्रीड़ा देखने कमरे में घुस के पसर जाती।
बात गीता ने ही शुरू की, ... बिन बोले, कभी छोटे छोटे चुम्मी से तो कभी अपनी उँगलियों से भाई अरविन्द के चौड़े सीने पे कुछ लिख के,... और फिर फुसफुसाहटों में, ...
" भैया तेरा मन बहुत दिन से कर रहा था न "
हाँ "
बहुत हलके से बोला अरविन्द लेकिन कस के अपने चौड़े सीने से बहन के छोटे छोटे जोबन को दबा देकर और जोर से बहन की बात में हामी भरी। बहन ज्यादा बोल्ड थी, वो खुल के बोली,...
" भैया, मेरा मन भी बहुत दिन से कर रहा था,... तेरे साथ करवाने को,... तेरा मन कर रहा था तो किया कयों नहीं ?"
" अब करूँगा अपनी बहना से प्यार रोज करूंगा, बिना नागा, दिन रात,... " और अरविन्द ने कस के अपनी बहन को चूम लिया
और जैसे उसके इरादे की हामी भरते, उसका खूंटा भी अब खड़ा होने लगा था।
गीता ने भी अपने सगे भाई को कस के चूम लिया,... और उसका एक हाथ खींच के अपने उत्तेजना से पथराये जोबन पे रख दिया , मन तो उसका यही कर रहा था, भैया कस के दबाएं मसलें कुचले,... मीज मीज के इसे, ... और जैसे बिन उसके बोले भैया ने इरादा समझ लिया और अब वो कस कस के अपनी छोटी बहन की चूँचियाँ मसल रगड़ रहे थे,
गीता और कस के भैया से चिपक गयी, बस मन कर रहा था ये रात कभी ख़तम न हो। अपनी देह वो भैया की देह से रगड़ने लगी, मन तो उसका बस यही मन कर रहा था की भैया कस के पेल दें, लेकिन उनकी बाहों से वो अलग भी नहीं होना चाहती थी, और अब चांदनी पूरी तरह दोनों की देह को नहला रही थी , गीता खुल के सब देख रही थी,
बात गीता के मन की ही हुयी , वो भले ही अनाड़ी थी पर भैया उसका पूरा खिलाडी था,
हाँ भाई बहन के रिश्ते के नाते कुछ बहन की कच्ची कोरी उमर के नाते लेकिन अब दो बार कस कस के चोद लेने के बाद, ...
खूंटा अब पूरा खड़ा हो चुका था,, उसने साइड में लेटे लेटे ही,...
साइड में बहन की जाँघों को पूरा फैलाया, एक हाथ से पकड़ के अपनी टांग के ऊपर, अब खूंटा सीधे बिल के पास, ... एक हाथ में तेल लेके एक बार फिर से कस के अपने लंड को मुठियाते हुए उसे तेल से चुपड़ दिया,... दो बार की हचक की चुदाई के बाद चूत का मुंह थोड़ा खुल गया था पर फिर भी एक हाथ की ऊँगली से दोनों फांको को फैला के , सुपाड़ा सटा दिया,...
और बस एक करारा धक्का और आधे से ज्यादा मोटा सुपाड़ा बहन की बुर के अंदर,... और बहन की बुर ने उसे भींच लिया कस के .
दो बार की मलाई और कडुआ तेल से गीता की बुर चप चप कर रही थी।
इसलिए सुपाड़े को घुसने में उत्ती दिक्क्त नहीं हुयी, दो तीन धक्के और पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया, गीता की बिल में लेकिन एक बार फिर से तेजी से दर्द की लहर उठी और वो उसे पी गयी लेकिन उसे इसका इलाज मालूम था और उसने अपने होंठ भैया के होंठों पे रख दिए , अरविन्द को और इशारा करने की जरूरत नहीं थी , जीभ की नोक से उसने बहिना के रसीले गुलाबी होंठों को खोल दिया और अपनी जीभ बहन के मुंह में पूरी अंदर तक घुसेड़ दिया।
यही स्वाद तो हर बहन चाहती ,है नीचे वाले मुंह में भैया का खूंटा धंसा हो और ऊपर वाले मुंह में भैया की जीभ। अरविन्द ने अपने होंठों से उसके होंठों को एकदम सील करदिया था , कभी बहन के होंठों को चूस चूस के उसका रस लूटता तो कभी हलके से दांत गड़ा देता,
बेचारी गीता सिसक भी नहीं पाती पर इसी बेबसी के लिए तो हर बहन तरसती है, और वो चाहती भी यही थी की भैया के जीभ का रस उसे मुंह के अंदर मिले।
उसे कस के दबोच के उसके भाई अरविंद ने चार खूब करारे धक्के लगाए , अब तो बहन चाह के भी चीख नहीं सकती थी , लंड आधे से ज्यादा घुस गया, और उसने धक्का लगाना रोक दिया , एक हाथ कस के बहन के जोबन का रस ले रहा था तो दूसरा क्लिट की हाल चाल,
गीता गरमा रही थी, और वो समझ गयी थी उसे क्या करना है , भैया क्या चाहता है उससे,
वो भी भाई को कस के पकडे थी, और गाँव की लड़की ताकत में किसी से कम नहीं , बस कस के उसने भी भाई पर अपनी बाँहों की पकड़ बढ़ाई और कस के धक्का मारा, पहली बार तो कुछ नहीं हुआ लेकिन दो चार धक्के के बाद लंड इंच इंच कर के उसकी बुर में सरक सरक के अंदर जाने लगा,... बुर उसकी दर्द से फटी जा रही थी लेकिन पहली बार वो खुद धक्के मार मार के इस बदमाश मोटू को घोंट रही थी।
लेकिन आठ दस धक्के के बाद उसकी कमर थकने लगी,...
कुछ देर दोनों रुके रहे पर अब भाई ने नंबर लगाया लेकिन बजाय अंदर पेलने के वो धीरे धीरे सरका के बाहर निकाल रहा था , गीता से नहीं रहा गया,... और अब एक बार उसने धक्को की जिम्मेदारी सम्हाल लिया और जितना बाहर निकला था वो एक बार फिर से अंदर,...
बारिश तेज हो गयी थी , और हवा का रुख बदल गया था।
खुली खिड़की से तेज बौछार अब पलंग पे आ रही थी और दोनों भाई बहन भीग रहे थे, लेकिन जोश में कोई कमी नहीं थी। जैसे बारिश में भी सहेलियां , ननद भौजाई , सावन में भीगते हुए भी झूले का मजा लेती रहती हैं, ... उसी तरह दोनों बारी बारी से झूले की पेंग की तरह धक्के लगा रहे थे, जल्दी किसी को नहीं थी , भाई दो बार बहन की बुर में झड़ चुका था वैसे भी वो लम्बी रेस का घोडा था , बीस पच्चीस मिनट के पहले और अबकी तो तीसरा राउंड था,...
और बहन भी अब दर्द की दरिया पार कर सिर्फ खुल के मजे ले रही थी और समझ रही थी की नयी नयी आयी भौजाइयों को क्यों रात होते ही नींद आने लगती है , जम्हाई भरने लगती हैं पिया के पास जाने को।
आठ दस मिनट के बाद ही अबकी पूरा मोटू गीता के अंदर घुसा , लेकिन एक बार जैसे ही बच्चेदानी पे धक्का लगा , गीता कापने लगी, झड़ने लगी , पर भाई अबकी रुका नहीं , दोनों हाथों से उसने कस के बहन की चूँची पकड़ के , पहले तो कुछ देर तक मसला और जैसे ही बहन का कांपना रुका , एकदम तूफानी धक्के ,...
हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे , आलमोस्ट पूरा लंड बाहर और फिर रगड़ते दरेरते चूत फाड़ते पूरी ताकत से बहन की बच्चेदानी पे जबरदस्त चोट मारता और बहन काँप जाती, कुछ दर्द से लेकिन ज्यादा मजे से,... दस पंद्रह मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद जब गीता झड़ी तो साथ साथ उसका भाई अरविन्द भी उसकी चूत में
दोनों थोड़ी देर में ही नींद में गोते लगा रहा थे, देस दुनिया से बेखबर। भाई बहन तीन बार के मिलन के बाद खूब गहरी नींद,..
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