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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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Thanks so much, bahoot logo ne kaha to bas maine try kiya ap just kohsish kar rahi hun, aap sabke thanks for such nice encouraging words
सब में ये खूबी नहीं होती....
और आपके गुणों की तारीफ तो हर पढ़ने वाला बरबस हीं कर पड़ता है...
 
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motaalund

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Ekdam sahi kaha aapne aur is kahani men bhi baar baar vahi jhalkata hai
एकदम सही...
पुआल पर, गांज पर, पंप हाउस पर, बगीचे में, गन्ने और अरहर के खेत में... यहाँ तक कि नदियों / तालाब में भी...
कई मौके.. बस ताड़ने वाला चाहिए... और मौके को अवसर में कंवर्ट करने वाला...
 
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motaalund

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Par nikli kaha sharm.... ab bhi geeta ko hi command apne hath leni padi.....


Kya fayda hua chachi bhabhi aur fulwa k sikhane ka???
सगी बहन का मामला है... कुछ तो हिचक होगी...
 

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद,

गाँव के छेड़छाड़ के माहौल को, रिक्रिएट करने के लिए ही मैंने दो पुरानी भोजपुरी फिल्मों के गानों का इस्तेमाल किया, पहला गाना लाल-लाल ओठवा से बरसे ललइया, लागी नाहीं छूटे रामा का

तलत और लता जी की मधुर आवाज, चित्रगुप्त का संगीत और मजरूह की कलम,


त : लाल-लाल ओठवा से बरसे ललइया हो कि रस चुएला
जइसे अमवा के मोँजरा से रस चुएला

ल : लागे वाली बतियाँ न बोल मोरे राजा हो करेजा छुएला
तोरि मीठी-मीठी बोलिया करेजा छुएला हो करेजा छुएला

त : भागेलू त हमका बोलावेला अँचरवा -२
अँखियाँ चुरावेलू त हँसेला कजरवा हो हँसेला कजरवा
ल : जिया के जंजाल भइल हमरी सुरतिया डगर रोकेला
जहाँ जाँ_ई तहाँ लोगवा डगर रोकेला
त : हो कि रस चुएला ...

ल : घूमी-घूमी देख तर काहे मोर चलवा -२
त : तनिक चँहाई ल घमाई जाई गलवा घमाई जाई गलवा
ल : चलीं चाहे घमवा में बैठीं चाहे छँहवा हो काहे मुएला

गोरे गलवा के पीछे केहू काहे मुएला


और गाँव में खेत में , अरविन्द की हिम्मत तो किसी लड़की से सीधे बात करने की पड़ती नहीं तो इस गाने के जरिये फुलवा के बारे में मन की बात और फुलवा गाँव की लड़की, गौना जाने को तैयार, रस बस छलक रहा रहा,


और मिलन न हो पाने का डर बिछोह के लिए कालजयी भोजपुरी फिल्म बिदेशिया के गाने की बस एक लाइन,... मुझे पता है बहुतों के मन में बहुत सी यादें जगा गयी होगी,

सुमन कल्याणपुर की दर्द भरी आवाज,

दिनवा गिनत मोरी घिसी उँगरिया,

रहिया तकत .के नैन,...

कई बार जब भावनाओं को व्यक्त करने के लिए गद्य असहाय हो जाता है तो गाने सहारे आते हैं चाहे वो लोकगीत हों या पुराने फ़िल्मी गाने और कहानी लिखने पढ़ने का मज़ा इन्ही अव्यक्त भावों को ही व्यक्त करने में हैं।
और क्या खूब इस्तेमाल किया है....
यही बातें अन्य कहानियों से आपकी कहानी को जुदा करती है...
और पढ़ने वाले को एक अलग धाराप्रवाह कहानी की अनुभूति होती है....
 
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motaalund

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samjhegaaa dhire dhire , ye aurton vaali baaten aksar mard nahi smajhte ya slow hote hain
हाँ उम्र हीं कुछ ऐसी है...
लेकिन कुछ अनुभवों के बाद एक उच्च कोटि का कलाकार बन जाएगा....
 

motaalund

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एकदम

और फायदा ही फायदा लेकिन अगली पोस्ट तो वहीँ से शुरू होगी, तो बस इन्तजार करिये अगली पोस्ट का कल या परसों

हाँ जिसने किया वो नहीं समझ रहा है,
और क्या जबरदस्त फायदा हुआ...
बिन ब्याहे बाप बनने का सौभाग्य....
और फिर पहलौठी का दूध भी....
 

motaalund

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are vo mamala thoda behan vaala tha

jaise main incest story likhna shuru kar rahi hun, uskaa bhi pahla kadam tha aur phir bahan bhaia maa se darte bhi hain,... lekin ab dono ki gaadi chal niklai hai to bas non-stop chal rahi hai,
हाँ... घर का मामला.... अब घर माँ नहीं तो डर कैसा..
"चले गए थानेदार अब डर काहे का..."
 
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motaalund

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एकदम सही बात कही आपने प्यार और बिरहा यह दोनों चीजें गध के अपेक्षा पद में ज्यादा ही सही तरीके से व्यक्त की जा सकती हैं।
आपने मेरे मन की बात कह डाली....
 
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motaalund

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Bahut caring bhai hai geeta ka, yahi h asli incest. Baki stories me to bus bina mahol banaye ghapaghap shuru kr dete h
भाई-बहन का प्यार केयरिंग वाला हीं होता है....
और माहौल बनाना तो बहुत जरूरी है..
उसके बिना मजा अधूरा है....
 
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motaalund

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एकदम गांव का असली मज़ा,

और ये सब मज़ा फुलवा ने ही सिखाया, अरविन्द को

अब गन्ने के खेत या गाँव की अमराई या नदी के किनारे वाले खेल तमाशे में बेचारी चाची तो सिखा नहीं सकती थी, तो कई गुरुआईने मिलती हैं तो एक किशोर सही मायने में जवान होता है, खेल के हर दांव पेंच सीखता है और उस के बाद तो हर अखाड़े में धोबिया पछाड़, ...
हाँ... कुछ खेल सीखने-सिखाने के लिए अलग गुरु/गुरुआनी की जरूरत पड़ती है...
अलग-अलग स्थान और माहौल को देखकर...
 
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