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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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भाग ९८

अगली परेशानी - ननदोई जी, पृष्ठ १०१६

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, मजे ले, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 
Last edited:

motaalund

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एकदम सही कहा आपने,

और प्राचीन भारतीय परम्परा की कहानियों में भी, एक कहानी के अंदर दूसरी कहानी,. जैसे यह सारे प्रसंग गीता छुटकी को सुना रही है,... तो यह मूल कहानी के अंदर एक दूसरी कहानी,...

और यह एक लिटरेरी डिवाइस के तौर पर भी, कहानी मूल रूप से फर्स्ट परसन में हैं तो जहाँ नैरेटर नहीं है वहां के के लिए यह सब,

और मूल कहानी में इन्सेस्ट सम्भव नहीं है छुटकी के लिए क्योंकि छुटकी का कोई सगा भाई नहीं है,... कजिन्स के साथ सेक्स, इस कहानी की मूल कहानी में, मज़ा लूटा होली का ससुराल में है लेकिन वो वैधिक ढंग से इन्सेस्ट नहीं है क्योंकि इन्सेस्ट की एक पंक्ति की परिभाषा है जिसके अनुसार 'उन लोगों में दैहिक संबध जिनके मध्य विवाह नहीं हो सकता,' और हिन्दू मैरिज ऐक्ट धारा पांच के अनुसार वर्ज्य संबध उस विशेष क्षेत्र के कस्टम और यूसेज पर निर्भर करेंगे। हमारे देश के कई हिस्सों में कजिन मैरिज की मान्यता है विशेष रूप से मातृ संबधी कजिन्स के साथ और उस की पुरानी मान्यता भी है ( अर्जुन -सुभद्रा ), इसलिए गीता के जरिये यह हिस्सा जो एक पूरी कहानी की तरह ही है,

कहानी के अंदर कहानी के उदाहरण तो भरे पड़े हैं लेकिन सबसे प्रसिद्ध उदाहरण जिससे सभी पाठक /पाठिकाएं परिचित होंगे,... सोमदेव का कथा सरित्सागर है, ...

आप के गर्भित कमेंट्स एक बतकही को जन्म देते हैं जो मेरे लिए अपनी कहानी के शिल्प के बारे में बात करने का उसे साझा करने का मौका दे देते है

बार बार आभार, धन्यवाद ,
इस तरह के संदर्भ का उल्लेख हमें गागर में सागर की तरह प्रतीत होता है...
इससे ज्यादा मेरा कुछ कहने का सामर्थ्य नहीं है....
 

Shetan

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इस तरह के संदर्भ का उल्लेख हमें गागर में सागर की तरह प्रतीत होता है...
इससे ज्यादा मेरा कुछ कहने का सामर्थ्य नहीं है....
एक से बढ़ कर एक ... तीन तिलंगे....
ये तो मुझे भी जानने की इच्छा है...
Are ye kuchh komaljo ke update ke lie he. Kripya vo kisi me add kare use padh kar fir photo ka maza lijiye. Ese sirf photo dekhne me koi maza nahi aaega
 

motaalund

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ग्वालिन भौजी का तो बड़ा रोल है , अरविन्द के ' विकास' में, रास्ता तो उन्होंने ही साफ़ किया,.. पहले चाची के साथ जाने के लिए,...


फिर वो फुलवा को देख के ललचाता रह जाता अगर ग्वालिन भौजी ने उकसाया न होता और ' मिंलन स्थल ' अमराई का जिक्र न किया होता और दुबारा वही आयीं सहायता के लिए उन्ही के कहने पर तो माँ ने उसे इजाज़त दी रात अमराई में बिताने के लिए... और अगले दिन से तो पूरे पंद्रह दिन के लिए फुलवा के गौने तक हर रात,... अमराई में जो गुजरी वो सिर्फ इसलिए की सांझ ढलने के पहले ग्वालिन भौजी माँ के पास और अब माँ खुद ग्वालिन भौजी के साथ, .. तो पहले से ही पूड़ी सब्जी हलवा बाँध के उसे भेजने के चक्कर में रहती थीं, ...

तो अभी फ़ुटबाल का मौसम चल रहा था तो ' असिस्ट ' वाला काम ग्वालिन भौजी निभाती थी और स्ट्राइकर का काम अरविन्द बाबू, ...

हाँ, ग्वालिन भौजी और माँ के बारे में कुछ ' सूक्ष्म संकेत ' भी हैं, ... आखिर कुछ तो है उनमे की माँ उनकी बात टाल नहीं पातीं, ... और जैसे ही वो ये' ऑफर ' देती हैं की रात मैं आपका पैर वैर दबा के, तो बस तुरंत वो लड़के को बाहर खदेड़ देती हैं और चाची की बारी तो गीता भी मौसी के यहाँ गयी थी,...

बहुत कुछ बातें मेरी कहानी में ' सुधी और रसिक ' पाठक /पाठिकाओं के समझने के लिए छोड़ देती हूँ, ... हर बात अभिधा में कहने का क्या मज़ा, कुछ लक्षणा में भी,

दूसरे मुख्य पात्रों पर से ध्यान हटाने और घटना क्रम में डाइवर्जन से बचने के लिए भी,...
असिस्ट का भी अपना महत्व है...
बिना असिस्ट के स्ट्राइकर भी गोल नहीं कर पाएगा....
यहाँ ग्वालिन भौजी का काम काबिले-तारीफ है...

और हाँ.. कई जगह बिना कुछ कहे भी बहुत कह जाती हैं...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने काव्य का उद्देश्य ही रस का सृजन करना है और रौद्र रस जिससे भय उत्पन होता है वो भी साहित्य कर्म का ही अंग है , मेरी, हम सब की मित्र, ' चुड़ैल ' ( निश्चित रूप से पेन नेम ) इस में दक्ष है और मैं उनकी नियमित पाठिका भी हूँ और इस जाड़े के मौसम में भी पंखी हूँ।
सच कहा आपने....
 

motaalund

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भरत ने अपने नाट्य शास्त्र में रसिक लोगों के महत्व पर प्रकाश डाला है, अगर काव्य, संगीत या नाट्य रस का सृजन करता करता है तो उस रस का अवगाहन करने वाला भी तो चाहिए,... और किसी क्लासिकल म्यूजिक के कंसर्ट में या हम ऐसे रसिक श्रोताओं को देख सकते हैं हो एक एक मुरकी, मींड, तान और आलाप का आनंद लेते है,... तो आप उन्ही रसिक, रस सिद्ध पाठको में हैं जिन्हे पा कर कोई भी कलम धन्य हो जाए,... मेरा मानना लिखना कठिन है लेकिन उसके मनोभावों को समझना, उसकी गहराई में डूबना और जीवन की इस आपाधापी में भी समय निकाल के नियमित रूप से कमेंट देना और दुष्कर,

और इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं,...
संगीत भी आपके ज्ञान से अछूता नहीं है...
 
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