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भाग ४१ इन्सेस्ट कथा - मामला वल्दियत का उर्फ़ किस्से माँ के
रोपनी
हम दोनों साथ साथ झड़ रहे थे और बड़ी देर तक ऐसे ही पड़े रहे, ... अबकी खुद उसने जैसे बाहर किया मैंने प्यारे से चमचम को मुंह में ले लिया,
और उस रात तीन बार,...पहली बार को जोड़ के तो चार बार हचक के भैया ने मेरी गाँड़ मारी।
लग रहा था जैसे किसी ने पाव भर मिर्चा डाल के कूट दिया हो,...
गनीमत था ठीक चार बजे माँ को याद आ गया, आज रोपनी होनी है और भैया को जाना है , गाँव में सुबह बहुत जल्दी होती है , तो माँ ने भाई को वहां भेज दिया वरना वो तो और,...
माँ रसोई में भाई के लिए कुछ बनाने चली गयी और गीता ने एक बार फिर से भाई की खिंचाई शुरू कर दी , उठा उससे नहीं जा रहा था, लेकिन जुबान तो,... वो अपने भाई अरविंद से बोली,
" क्यों वहां फुलवा की छोटकी बहिनिया मिलेगी न, उसकी रोपनी जरूर करना,.. कर तो चुके हो पहले भी भी कई बार, ..आज फिर,.. अगवाड़े की करोगे की पिछवाड़े की,... "
भाई बोला,... " क्या बोलती है तू, तुझे सब बता दिया तो,... माँ सुन लेगी,... और मैं अब कुछ नहीं,... "
गीता भाई के सोते नाग को मुंह में लेकर चुभलाने लगी,.. और हाथ से भी मुठिया रही थी,... लेकिन मुंह से निकाल के, मुंह फुला के , भाई से बोली,...
" भैया, कित्ती बार तुझे समझाया है, जब दो समझदार लोग आपस में बात कर रहे हों तो बीच में नहीं बोलते , लेकिन तुम तो,... तुझसे कौन सुबह सुबह बात करेगा। मैं तो इससे बात कर रही हूँ, इसे समझा रही हूँ "
फिर उसे मुठियाते बोली,...
" छोड़ना मत, रोपनी करने आएगी तो बिना मलाई रोपवाये कैसे जायेगी। और इस बुद्धू की बात मत मानना, मेरी बात मानोगे तो दिन में फिर खीर खाने को मिलेगी। "
( गाँव में सब लोग जानते थे जो रोपनी करने आती हैं, उनमें से शायद ही कोई बचती हो, बाबू लोगों से,... और वो सब बुरा भी नहीं मानती थी, बल्कि,... जान के आती थी, और जिसकी बिल में रोपाई हो जाती थी उसे एक कट्टा ज्यादा मिलता था. और और दस बारह दिन तो कम से कम रोपनी चलती थी।
और इन लोगों का तो गाँव में सबसे ज्यादा खेत था. दूसरे फुलवा की माँ भी ये सब बात समझती थी बल्कि सबसे ज्यादा समझती थी,...
उसे अच्छी तरह मालूम था की फुलवा गाभिन हो के गौने गयी और उसको गाभिन किसने किया है ,
और इससे वो और ज्यादा इससे खुश थी. अरे, ससुरारी में पहुँच के मरद कैसा,..मिलेगा पता नहीं , कहीं एकदमे ढीला केंचुआ अस मिल गया तो . तो लड़कियां यहाँ जो मजे ले लेती हैं ,.. और फुलवा तो बाबू के अलावा,...
फिर कहीं मरद ढील निकल गया तो सास अपने बेटे को नहीं खाली बहू के पीछे , बाँझ है,... कुलच्छनी है,...
और ससुराल में पहुँच के महीने दो महीने में गाभिन होने की खबर सुन के, पोते की ख़ुशी और बेटा तगड़ा है इस की भी ख़ुशी, फिर बहू को कोई नहीं बोलता,... और मरद वैसे ही महीना पंद्रह दिन में,... फिर बबुआने में कुल,... खाली यही सीधा कम से सोझे मुंह आदर से बात भी करता है और देह का भी तगड़ा है,...
तो फुलवा ने साफ़ साफ़ डील कर ली थी. और अरविन्द ने भी फुलवा से साफ़ साफ़ कहा था ,
एकदम करारी , कड़ी देह वाली,...
और फुलवा ने बोल दिया था ठीक है बाबू , तोहार काम बढ़िया से न होय तो हमसे बोलना, हमें खुदे ले के आयेगीं,... लेकिन दो कट्टा हमार अलग से रोज क,... और जैसे ही उसने फुलवा को बोल दिया की माँ ने कहा है की अब किसको का देना है , वो सब उसी के जिम्मे है माँ देखेगी भी नहीं, उसके बाद कटनी भी होगी और भी सब काम धाम खेत में रहते है ,...
समझ गए हम , फुलवा की माई बोली और गाँव में से चुन चुन के ये सब बातें उसने न माँ से बतायीं थी न गीता से )
पर गीता चिढ़ाते बोली, ...
" भैया, कच्ची कुँवारी कितनी है उसमें, ... "
" पांच " बिन बोले उसने ऊँगली से इशारा किया।
" और जो आ रही हैं उसमें से कित्ते पर चढ़ाई कर चुके हो "
दोनों हाथ की उँगलियों से उसने इशारा किया,... पूरे दस।
गीता ने जोड़ा मन ही मन,... २४ रोपनी वालियों में ५-६ तो बड़ी उमर की होंगी, इत्ती बड़ी भी नहीं, फुलवा की माँ की उम्र की या आसपास, और वो सब अभी भी, ....उन्ही के बीच काम बंटता होगा और एक के साथ पांच छह नयी उमर वालियों की टोली, गाना भी सब इतना मस्त गाती हैं, ...
फुलवा की माँ से कितनी छोटी होगी,
ग्वालिन भौजी किसी से बतिया रही थी वो अभी भी, पंडितों के पुरवे में,.... तभी तो उसकी दोनों बेटियां इतनी गोरी गोरी है.
एक बार फिर उसने भैया के मूसल को ललकारा,
"कउनो नहीं बचनी चाहिए, समझ "
फिर थोड़ी देर और पुचकारा,..
तबतक रसोई से माँ की आवाज आयी और भैया जल्द तैयार हो के बाहर
लेकिन माँ ने वहीँ से हड़काया, ये क्या पहन के जा रहे हो बाबू बन के अरे रोपनी में खुद साथ में खेत में धंसना पड़ता है,
भैया ने पैंट शर्ट पहन रखी थी,...
उसे फिर से अपने कमरे में खींच के बोली,... चल उतार इसे,...
वो थोड़ा हिचकिचाया, फिर धीमे से बोला क्या पजामा,...
" अरे मुझसे लजा रहे हो की गितवा से अभी तो थोड़ी देर पहले, उतार जल्दी "
माँ ने चिढ़ाया,... और जब तक भैया शर्ट पैंट उतार रहे थे,.. माँ ने फिर छेड़ा,...
" अरे पाजामा पहिंन के जाओगे तो उहे रोपनी वाली कउनो नाड़ा पकड़ के खींच देंगी, अरे रोपनी में सब कुछ, मज़ाक, खेल तमाशा चलता है सब मजा लेते हैं और आधी तो तोहार भौजाई लगेंगी। "
तब तक गीता ने उन्हें वही शार्ट जो थोड़ी देर पहले पहने थे, घुटने से दो बित्ते ऊपर वाला, सूती, वो पकड़ा दिया पहनने को।
" हाँ ये ठीक है , घुटने तक तो पानी रहता ही है, अरे उ सब तो जांघी से ऊपर तक साड़ी पेटीकोट मोड़ के घुसती हैं,.... "
निकलने के पहले माँ ने फिर टोका,
' अरे बनियाइन ठीक है,... ऊपर से कुछ पहनने की जरूरत नहीं '
गीता भाई को देख रही थी, उसकी हाथों की तगड़ी मसल्स, चौड़ी छाती पतली कमर,..और सबसे मजे की बात है, शार्ट का कपड़ा तो पतला था ही, अंदर का मूसल दिख तो नहीं रहा था, लेकिन झलक दिख रही थी और अगर कहि ज़रा भी भीग गया,...
" और हाँ "
माँ ने निकलते हुए उसको फिर समझाया,"
" रोपनी वाली बहुत मज़ाक वजाक करती हैं , तोहार केतना तो उसमे भौजाई लगेंगी,... और फुलवा की माई तो उ नाता रिश्ता कुछ नाहीं केहू का ना छोड़ती। गाने के साथ , बिना बहिन महतारी क नाम लगाय के गारी दिए,... तो उसमें बुरा मानने क कोई बात नहीं है , न गुस्सा होना। साल भर क काम है,... रोपनी में ये सब सुभ माना जाता है ,...
और तुम भी,.. मुंह बंद कर के बैठने की कउनो जरूरत नहीं है , अरे कउनो भौजाई कुछ बोली तो थोड़ी बहुत मज़ाक, और रोपनी में तो बहुत कुछ,... आपस में तो उ सब, जो औरत साडी पेटीकोट उठाये , तो कउनो पीछे से ऊँगली कर देती तो कउनो पूरा ही उठाय देगी,.. तो तुंहु ,..
बस बुरा मत मानना और रोपनी में सब कुछ चलता है , बाकी फुलवा क माई सब सम्हाल लेगी , लेकिन जाओ जल्दी, सूरज की पहली किरण के पहले आधा पौन घंटा रोपनी हो जाती है,... और कम से कम सात आठ घंटा काम कराने के बाद ही दोपहर बाद लौटना,... "
उनके जाते ही माँ ने दरवाजा बंद किया और गीता को लपेट के सो गयीं , दो ढाई घंटे बाद जब गीता की नींद खुली तो माँ उसे जगा रही थीं , झकझोर के।
" हे उठ न कब तक सोयेगी। धूप चढ़ आयी है ,... "
सोने दे न माँ, गीता ने फिर चद्दर ओढ़ लिया और चद्दर के अंदर से कुनमुनाती बोली,
" रात भर तो आपका बेटा चढ़ा रहा, हिला नहीं जा रहा है, बहुत दुःख रहा है। सोने दो न "
माँ ने चद्दर खींच दी और गुदगुदी लगाते, चिढ़ाते बोलीं, " अच्छा मेरा बेटा है और तेरा जैसे कुछ नहीं है, क्या है तेरा बोल "
" सोने दो न माँ, अरे मेरा प्यारा दुलारा, अच्छा अच्छा मीठा मीठा भैया है और क्या,... "
रोपनी
हम दोनों साथ साथ झड़ रहे थे और बड़ी देर तक ऐसे ही पड़े रहे, ... अबकी खुद उसने जैसे बाहर किया मैंने प्यारे से चमचम को मुंह में ले लिया,
और उस रात तीन बार,...पहली बार को जोड़ के तो चार बार हचक के भैया ने मेरी गाँड़ मारी।
लग रहा था जैसे किसी ने पाव भर मिर्चा डाल के कूट दिया हो,...
गनीमत था ठीक चार बजे माँ को याद आ गया, आज रोपनी होनी है और भैया को जाना है , गाँव में सुबह बहुत जल्दी होती है , तो माँ ने भाई को वहां भेज दिया वरना वो तो और,...
माँ रसोई में भाई के लिए कुछ बनाने चली गयी और गीता ने एक बार फिर से भाई की खिंचाई शुरू कर दी , उठा उससे नहीं जा रहा था, लेकिन जुबान तो,... वो अपने भाई अरविंद से बोली,
" क्यों वहां फुलवा की छोटकी बहिनिया मिलेगी न, उसकी रोपनी जरूर करना,.. कर तो चुके हो पहले भी भी कई बार, ..आज फिर,.. अगवाड़े की करोगे की पिछवाड़े की,... "
भाई बोला,... " क्या बोलती है तू, तुझे सब बता दिया तो,... माँ सुन लेगी,... और मैं अब कुछ नहीं,... "
गीता भाई के सोते नाग को मुंह में लेकर चुभलाने लगी,.. और हाथ से भी मुठिया रही थी,... लेकिन मुंह से निकाल के, मुंह फुला के , भाई से बोली,...
" भैया, कित्ती बार तुझे समझाया है, जब दो समझदार लोग आपस में बात कर रहे हों तो बीच में नहीं बोलते , लेकिन तुम तो,... तुझसे कौन सुबह सुबह बात करेगा। मैं तो इससे बात कर रही हूँ, इसे समझा रही हूँ "
फिर उसे मुठियाते बोली,...
" छोड़ना मत, रोपनी करने आएगी तो बिना मलाई रोपवाये कैसे जायेगी। और इस बुद्धू की बात मत मानना, मेरी बात मानोगे तो दिन में फिर खीर खाने को मिलेगी। "
( गाँव में सब लोग जानते थे जो रोपनी करने आती हैं, उनमें से शायद ही कोई बचती हो, बाबू लोगों से,... और वो सब बुरा भी नहीं मानती थी, बल्कि,... जान के आती थी, और जिसकी बिल में रोपाई हो जाती थी उसे एक कट्टा ज्यादा मिलता था. और और दस बारह दिन तो कम से कम रोपनी चलती थी।
और इन लोगों का तो गाँव में सबसे ज्यादा खेत था. दूसरे फुलवा की माँ भी ये सब बात समझती थी बल्कि सबसे ज्यादा समझती थी,...
उसे अच्छी तरह मालूम था की फुलवा गाभिन हो के गौने गयी और उसको गाभिन किसने किया है ,
और इससे वो और ज्यादा इससे खुश थी. अरे, ससुरारी में पहुँच के मरद कैसा,..मिलेगा पता नहीं , कहीं एकदमे ढीला केंचुआ अस मिल गया तो . तो लड़कियां यहाँ जो मजे ले लेती हैं ,.. और फुलवा तो बाबू के अलावा,...
फिर कहीं मरद ढील निकल गया तो सास अपने बेटे को नहीं खाली बहू के पीछे , बाँझ है,... कुलच्छनी है,...
और ससुराल में पहुँच के महीने दो महीने में गाभिन होने की खबर सुन के, पोते की ख़ुशी और बेटा तगड़ा है इस की भी ख़ुशी, फिर बहू को कोई नहीं बोलता,... और मरद वैसे ही महीना पंद्रह दिन में,... फिर बबुआने में कुल,... खाली यही सीधा कम से सोझे मुंह आदर से बात भी करता है और देह का भी तगड़ा है,...
तो फुलवा ने साफ़ साफ़ डील कर ली थी. और अरविन्द ने भी फुलवा से साफ़ साफ़ कहा था ,
एकदम करारी , कड़ी देह वाली,...
और फुलवा ने बोल दिया था ठीक है बाबू , तोहार काम बढ़िया से न होय तो हमसे बोलना, हमें खुदे ले के आयेगीं,... लेकिन दो कट्टा हमार अलग से रोज क,... और जैसे ही उसने फुलवा को बोल दिया की माँ ने कहा है की अब किसको का देना है , वो सब उसी के जिम्मे है माँ देखेगी भी नहीं, उसके बाद कटनी भी होगी और भी सब काम धाम खेत में रहते है ,...
समझ गए हम , फुलवा की माई बोली और गाँव में से चुन चुन के ये सब बातें उसने न माँ से बतायीं थी न गीता से )
पर गीता चिढ़ाते बोली, ...
" भैया, कच्ची कुँवारी कितनी है उसमें, ... "
" पांच " बिन बोले उसने ऊँगली से इशारा किया।
" और जो आ रही हैं उसमें से कित्ते पर चढ़ाई कर चुके हो "
दोनों हाथ की उँगलियों से उसने इशारा किया,... पूरे दस।
गीता ने जोड़ा मन ही मन,... २४ रोपनी वालियों में ५-६ तो बड़ी उमर की होंगी, इत्ती बड़ी भी नहीं, फुलवा की माँ की उम्र की या आसपास, और वो सब अभी भी, ....उन्ही के बीच काम बंटता होगा और एक के साथ पांच छह नयी उमर वालियों की टोली, गाना भी सब इतना मस्त गाती हैं, ...
फुलवा की माँ से कितनी छोटी होगी,
ग्वालिन भौजी किसी से बतिया रही थी वो अभी भी, पंडितों के पुरवे में,.... तभी तो उसकी दोनों बेटियां इतनी गोरी गोरी है.
एक बार फिर उसने भैया के मूसल को ललकारा,
"कउनो नहीं बचनी चाहिए, समझ "
फिर थोड़ी देर और पुचकारा,..
तबतक रसोई से माँ की आवाज आयी और भैया जल्द तैयार हो के बाहर
लेकिन माँ ने वहीँ से हड़काया, ये क्या पहन के जा रहे हो बाबू बन के अरे रोपनी में खुद साथ में खेत में धंसना पड़ता है,
भैया ने पैंट शर्ट पहन रखी थी,...
उसे फिर से अपने कमरे में खींच के बोली,... चल उतार इसे,...
वो थोड़ा हिचकिचाया, फिर धीमे से बोला क्या पजामा,...
" अरे मुझसे लजा रहे हो की गितवा से अभी तो थोड़ी देर पहले, उतार जल्दी "
माँ ने चिढ़ाया,... और जब तक भैया शर्ट पैंट उतार रहे थे,.. माँ ने फिर छेड़ा,...
" अरे पाजामा पहिंन के जाओगे तो उहे रोपनी वाली कउनो नाड़ा पकड़ के खींच देंगी, अरे रोपनी में सब कुछ, मज़ाक, खेल तमाशा चलता है सब मजा लेते हैं और आधी तो तोहार भौजाई लगेंगी। "
तब तक गीता ने उन्हें वही शार्ट जो थोड़ी देर पहले पहने थे, घुटने से दो बित्ते ऊपर वाला, सूती, वो पकड़ा दिया पहनने को।
" हाँ ये ठीक है , घुटने तक तो पानी रहता ही है, अरे उ सब तो जांघी से ऊपर तक साड़ी पेटीकोट मोड़ के घुसती हैं,.... "
निकलने के पहले माँ ने फिर टोका,
' अरे बनियाइन ठीक है,... ऊपर से कुछ पहनने की जरूरत नहीं '
गीता भाई को देख रही थी, उसकी हाथों की तगड़ी मसल्स, चौड़ी छाती पतली कमर,..और सबसे मजे की बात है, शार्ट का कपड़ा तो पतला था ही, अंदर का मूसल दिख तो नहीं रहा था, लेकिन झलक दिख रही थी और अगर कहि ज़रा भी भीग गया,...
" और हाँ "
माँ ने निकलते हुए उसको फिर समझाया,"
" रोपनी वाली बहुत मज़ाक वजाक करती हैं , तोहार केतना तो उसमे भौजाई लगेंगी,... और फुलवा की माई तो उ नाता रिश्ता कुछ नाहीं केहू का ना छोड़ती। गाने के साथ , बिना बहिन महतारी क नाम लगाय के गारी दिए,... तो उसमें बुरा मानने क कोई बात नहीं है , न गुस्सा होना। साल भर क काम है,... रोपनी में ये सब सुभ माना जाता है ,...
और तुम भी,.. मुंह बंद कर के बैठने की कउनो जरूरत नहीं है , अरे कउनो भौजाई कुछ बोली तो थोड़ी बहुत मज़ाक, और रोपनी में तो बहुत कुछ,... आपस में तो उ सब, जो औरत साडी पेटीकोट उठाये , तो कउनो पीछे से ऊँगली कर देती तो कउनो पूरा ही उठाय देगी,.. तो तुंहु ,..
बस बुरा मत मानना और रोपनी में सब कुछ चलता है , बाकी फुलवा क माई सब सम्हाल लेगी , लेकिन जाओ जल्दी, सूरज की पहली किरण के पहले आधा पौन घंटा रोपनी हो जाती है,... और कम से कम सात आठ घंटा काम कराने के बाद ही दोपहर बाद लौटना,... "
उनके जाते ही माँ ने दरवाजा बंद किया और गीता को लपेट के सो गयीं , दो ढाई घंटे बाद जब गीता की नींद खुली तो माँ उसे जगा रही थीं , झकझोर के।
" हे उठ न कब तक सोयेगी। धूप चढ़ आयी है ,... "
सोने दे न माँ, गीता ने फिर चद्दर ओढ़ लिया और चद्दर के अंदर से कुनमुनाती बोली,
" रात भर तो आपका बेटा चढ़ा रहा, हिला नहीं जा रहा है, बहुत दुःख रहा है। सोने दो न "
माँ ने चद्दर खींच दी और गुदगुदी लगाते, चिढ़ाते बोलीं, " अच्छा मेरा बेटा है और तेरा जैसे कुछ नहीं है, क्या है तेरा बोल "
" सोने दो न माँ, अरे मेरा प्यारा दुलारा, अच्छा अच्छा मीठा मीठा भैया है और क्या,... "
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