अभी से मैं कुछ बता के अगले पार्ट का मज़ा कम नहीं करना चाहती
लेकिन दो क्ल्यु दे देती हूँ
एक तो इस बात का अंत कुछ उस तरह से होगा जैसे बर्तोल्त ब्रेख्त के मशहूर नाटक काकेशियन चाक सर्कील में था , भावना वहीँ से अनुप्राणित है
दूसरी बात लॉजिक मैंने एक भोजपुरी के पुरोधा, भिखारी ठाकुर के मशहूर नाटक से जस की तस चुराई है ,
इरोटिक किस्से के साथ साथ बीच बीच में मैं अपनी बात भी किसी न किसी पात्र के जरिये कान में फुसफुसा देती हूँ लेकिन उसपर ज्यादा बात करने से रस वाला पार्ट थोड़ा कम हो जाता है
बस दो चार दिन और अगला पार्ट सस्पेंस ख़त्म हो जाएगा।