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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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जिम्मेदारियां कई बार वक्त से पहले बड़ा कर देती हैं

और कई बार बूढा भी।


पर शायद इस फोरम /कथा शैली की परम्परा से अलग मैं वो बातें कर रही हूँ जिसे सुनने सुनाने न कोई आता है न करनी चाहिए पर क्या करूँ मेरी कहानियां शरारती बच्चों की तरह है एक अलग दिशा में मुड़ जाती है और बाते भी।


इसी तरह के पार्ट थे जब जिंदगी फंतासी पर भारी पड़ गयी। भाग ५५ और ५६ इसी तरह के पार्ट थे।
जीवंत कहानी ऐसी हीं होती है....
और ऐसा क्यों कहा आपने कि सुनने कोई नहीं आता...
आते बहुत सारे लोग हैं ...
लेकिन पहले जैसे नानी कहानी सुनाती थी तो हम हुंकारी भरते थे...
अब कहानी में हुंकारी नहीं भरते बल्कि कुछेक लोग हीं ओरिजिनल कहानी पढ़ते हुए दो शब्द कह पाते हैं...
 

motaalund

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बेड़ई में पीठी या भराई उड़द की होती है और मसाले हैं, ...

दलभरी में चने की दाल पहले मसाले के साथ बना कर, फिर उसे पीस कर, एक पेस्ट सा बना लेते हैं और पराठे के अंदर भर के ज्यादा घी में सेंक के बनाते हैं

कहीं कहीं उसे पूड़ी की तरह डीप फ्राई की तरह भी बनाते हैं और उसे खीर के साथ या बखीर, गन्ने के रस में बनी या गुड़ में ( अगर गन्ने सा समय नहीं है )

और कई जगहों पर रसम होती है जब दुल्हन नयी नयी आती है तो कोहबर में ननदों के साथ, यही दलभरी बासी, ( एक दिन पहले रात की बनी ) और बखीर खाती है बल्कि ननदें खिलाती हैं. यह कंगन छुड़ाने के पहले होता है।

दूल्हा दुल्हन अकेले कंगन छुड़ाने के बाद ही मिल सकते हैं,

कंगन छुड़ाने की रस्म का एक मैं वीडियो भी संलग्न कर रही हूँ

अलग अलग जगह पर अलग तरीके से ये रस्म होती है लेकिन दुलहन के आने के बाद की ये एक जरूरी रस्मों में हैं।



It forces us down the memory lane and splashes and pokes many neurons...
 

motaalund

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मौरी की रसम अभी भी बहुत सी जगहों पर दुल्हन के आने के बाद,... और कर्टसी मोबाइल और यू ट्यूब कई जगहों पर रिकार्ड भी हो जाती है,

दूल्हे के अलावा तो सिर्फ औरतें लड़कियां ही होती हैं इसलिए मजाक भी खुल के

हाँ एक बात मैंने देखी है, जब ज्यादा खुल के अच्छे वाले गाने होते हैं तो रिकार्डिंग बंद जो जाती है पर कुछ तो इन रस्मों का अंदाज लगता है और ये सिर्फ पूर्वांचल में ही नहीं,

अवध के एक
मौरी सेरवाने का मैं यू ट्यूब से वीडियों लिंक कर रही हूँ , शायद हम में से कुछ एक बार फिर अपने गाँव इसी बहाने लौट सकें

टाइम ट्रेवेल कर सकें हाँ ये वीडियो हाल का ही है

ये रस्में लोकगीत ही हमारी परम्पराओं की असली संवाहिका हैं,... और मैं कोशिश करती हूँ की एक बार से कुछ उनकी यादें ताजा कर सकू, अपनी भी आप सब की भी।


अब ये सब छिटपुट हीं देखने को मिलता है...
आपने पोस्ट कर यादें ताजा कर दी...
 

motaalund

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बहुत - बहुत धन्यवाद कोमल जी, इतना विस्तृत विवरण देने के लिए।

बखीर के बारे में सुना बहुत है पर खायी नही है, जड़ों से कटने पर यही होता है। आपके माध्यम से ननिहाल की पुरानी यादें ताजा हो जाती है। वो नाऊ, नाइन, बुल्लवा, बुल्लवा में ढोलक बजाती और नाचती लड़कियां और उसी ढोलक बजाने और नाचने पर तय होती शादियां।

कंगन छुड़ाई की रस्म का तो अनुभव है।

और भी क्या - क्या याद दिला देती हैं आप।

आपकी कहानियां मेरे लिए पहली बारिश में मिट्टी की सुगंध की तरह अनुभव देती हैं।

पुनः आपकी समृद्ध लेखनी को प्रणाम।

सादर
सचमुच कोमल जी की कहानियों ने xforum नाम के उपवन महका दिया है....
 

motaalund

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I am adding another video, of Mauri

two things were important in the previous song, ... andromorphic description of village pond, which has been raised to the status of deity, after Gauri Ganesh, it is the Pokhara or village Pond, which is being worshipped, and secondly lingo of the song has more khadi boli rather than Awadhi, showing change and continuity of the tradition.

Now in some places esp. in cities, there is no pond nearby so a small ditch is dug and one can see that how traditions metamorphose, but remain the same, change and continuity.

secondly mostly bawdy songs in village are sung when males are not there or male of other side ( bride or groom) but in this case women never bother about the presence of groom and tease the sis in law. Girls irrespective of the age are present. and more importantly bride never feels alone. Right in front of her and even groom daughters of the house are teased ( of course when songs reach beyond a point camera does close or gets edited).

and to me these rituals are very important rite de passage, help in understanding of our milieu, mores and traditions. my sole purpose of writing erotic was to pen stories which are based in our soil and should not look imported, with only change of name.

so please do look at the video and, it is a distraction, but story will continue from tomorrow pakka.

This is an explanatory Vlog from you tube which will throw some light on this custom.

आप सचमुच कोमल नहीं कमाल हैं...
 

motaalund

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इस सूची में ही मैंने कहानियों के आगे लिख दिया है कौन कौन सी इस फोरम में है, कोमल के किस्से में दो कहानियां है, उसके अलावा, होली के रंग, सोलहवां सावन, मजा लूटा पहली होली का ससुराल में पहले की कहानियां हैं जो इस फोरम में है। मोहे रंग दे, छुटकी पहली बार इस फोरम में पोस्ट हुयी हैं और जोरू का गुलाम अब इतने उसमें परिमार्जन भी आ गए हैं तो संशोधित संकरण की तरह इस फोरम में है। फिर जैसे आपने शीला भाभी के प्रसंग के बारे में अनुरोध किया तो मैं उसे फिर से पोस्ट कर रही हूँ।


तो इनमे से अगर किसी कहानी की आप को इच्छा हो और मेरे पास उपलबध होगी तो मैं पोस्ट कर सकती हूँ

इसके अतिरिक्त जब आप पी डी ऍफ़ सेक्शन में जाएंगे तो वहां भी मेरी कई कहानियां इस फोरम में मिल जाएंगी।
I partly lost "PKDC" as the Pen Drive on which full story was stored becomes inaccessible.
Backup copy is not complete.
 
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