लगता है सारे छेद बंद कर दिए हैं.. देवरों ने...ye devar saans hi to nahi lene dete bhauji ko
तभी साँस भी नहीं ले पा रही...
लगता है सारे छेद बंद कर दिए हैं.. देवरों ने...ye devar saans hi to nahi lene dete bhauji ko
मुठिया के...Baaki ne Pichkaari se safed rang se unke saath holi kheli
कबड्डी की तरह बस छू कर नहीं आ जाता है...Kabddi ki bhi pakki khiladi sb nanado ko harya aur is khel ki bhi jabrdst mulkabla mila hai Bittu ko
चमेली चमक गई और गुलाबी गुलाल हो गई...Chameliya Gulabiya ki jodi ne kal Nanadon ki aisi ki taisi ki thi aur aaj Devaron ka mukabla kar rahi hain
कहीं ज्यादा सिखा देने की बात न करने लगे...Chhote devar ko bada karana bhi to Bhabhi ka hi kaam varana devarani aake das baar sunaayegi ki devar ko kuch sikhaya nahi.
फागुन का खुमार .. तन बदन में एक ऐंठन सी ला देता है...एकदम होली में जब भौजाइयां बौराती हैं तो न देवर के कपडे बचते हैं न ननद के और अंदर तक रंग लगता है।
आखिर एक्सपीरिएंस भी कोई चीज है।
ढूंढने में काफी वक्त और मेहनत लगा होगा...
आखिर सुगना के सुग्गा उड़ने का टाइम आ हीं गया...भाग ८२ -सुगना भौजी
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बंटी अलग होकर मेरे बगल में लेटा ही था की एक झाडी के पास से उठ के आती हुयी सुगना दिखी,... आज भौजाइयों में सबसे ज्यादा वही गरमाई थी, कोई सगा देवर था नहीं , मरद क़तर गया था,
गौने के कुछ दिन बाद ही तब से लौटा नहीं। पच्छिम पट्टी की,...
सुगना एकदम रस की जलेबी, वो भी चोटहिया, गुड़ की जलेबी, हरदम रस छलकता रहता, डेढ़ दो साल पहले ही गौने उतरी थी, जोबन कसमसाता रहता, चोली के भीतर जैसे अंगारे दहकते रहते, जैसी टाइट लो कट चोली पहनती सुगना भौजी, सीना उभार के चलतीं, जवान बूढ़ सब का फनफना जाता था, ... गौना उतरने के कुछ दिन बाद ही मरद कमाने चला गया, क़तर, दुबई कहीं, सास थीं नहीं। ननद बियाहिता। घर में खाली सुगना और उसके ससुर।
गौने में दुल्हिन उतारने, परछन करने भी, वही हिना क महतारी, और मेरी सास, पठान टोली एकदम पच्छिम पट्टी से चिपकी, और हिना की महतारी तो सुगना के ससुर की मुंहबोली भौजी, सगी भौजी से बढ़कर,
तो बस वो, मेरी सास और एक दो औरतें और गाँव की गयी थीं दुल्हिन उतारने।
, , गोरी अँजोरिया अस नमक जबरदस्त और जबान में वैसे ही जबरदस्त,... जोबन का तो पूछना नहीं,...सुगना
लोग कहते हैं, लोग क्या हमारी सास खुदे कहती है , ... बाबू सूरजबली सिंह, सुगना के ससुर,... एकदम लहीम सहिम, जबरदस्त मर्द उमर तो पचास पार कर गयी थी लेकिन ताकत में जवान मात,.. सुगना की सास सुगना के गौने उतरने के साल भर पहले ही ऊपर चली गयी थी,.. लेकिन बाबू साहेब का नागा नहीं होता था, ... खेत बाड़ी, पुरानी जमींदारी,...
अरे गुलबिया की चचिया सास ,.. उनके घर की नाउन, कभी तेल लगाने तो कभी गोड़ मींजने, इमरती नाम था,... और सब को मालूम था था की तेल कहाँ कहाँ लगता था,... और वो मुंह खोल के बताती भी थी, एक दिन में मेरी सास ने मजाक में मेरे सामने पूछ भी लिया हँसते हुए ओह बड़का औजार में तेल आज कल लगता है की नहीं, केतना बड़ा है,... तो जिस तरह बित्ता फैला के इमरतिया बोली की मेरा और मेरी सास दोनों का मुंह खुला रहा गया.
और साथ में हंस के साफ़ भी कर दिया अरे मोटा कड़ियल काला नाग है सब बिल के बस का नहीं है।
तो जब सुगना गौने उतरी, तो एक दो रिश्ते की सूरजबली सिंह की भौजाईयो ने मजाक में पूछा भी,
" ये उजरिया अस बहुरिया केकरे लिए लाये हो अपने लिए की बेटवा के लिए. "
और कौन वही हिना क महतारी, सबसे ज्यादा मजाक वही करती थीं सुगना के ससुर से, वो भी एकदम खुल कर, और ख्याल भी करतीं थी, सुगना के सास के जाने के बाद से तो और
" अरे भौजी तू तो भैया में ही उरझायी रहती हो, अब हमरो उमर हो गयी है,... तो बुढ़ापे के कोई तो ख्याल रखे, लड़का तो कमाए खाये जाएगा ही बाहर अब खेती में का रखा है, फिर पढाई लिखाई क का फायदा अगर,... " बाबू साहेब ने भी उसी तरह जवाब दिया,...
सुगना हाथ भर का घूंघट काढ़े थी, लेकिन डोली उतरती दुल्हिन के दस कान होते हैं, वरना ससुराल में एक दिन न निबट पाए। सुन भी लिया,.. समझ भी लिया ,... पूरा नहीं तो आधा तीहा।
और थोड़ा बहुत जो बचा था सुहाग की सेज चढ़ते उतरते,... कमरे में जाने के पहले सास क्या वही इमरतिया नाउन बोली,
" बहू सास तो हैं नहीं अब जो हैं तोहार ससुर है तो उन्ही क गोड़ छू के,... '
सजी धजी सुगना जब गोड़ छूने गयी तो उसको उठा के, हल्का सा घूंघट उठा के ससुर बोले,...
" बहु कुछ परेशानी हो तो बिना झिझक हमें बताना अब तोहार सास तो है नहीं जो हैं हम है कोई कमी बेस हो, किसी चीज की जरूरत हो बस इशारा कर देना, मैं हूँ न,... "
गौने की रात भी बस वैसी रही,... कुछ खास नहीं।
जो होता है वो हुआ, लेकिन दूल्हे को दुल्हिन से ज्यादा इस बात बताने में दिलचस्पी थी की उसे क़तर में बढ़िया नौकरी मिल गयी है, और कुछ दिन बाद ही उसे बंबई जाना है कागज बनवाने,... "
सुगना जब सबेरे कमरे से निकली, ... सबसे पहले ससुर दिखे और उन्होंने बहुरिया की आँखों में वो थकान नहीं देखी जो गौने के रात के बाद की होती है,... और खुद ही रोक के समझाते बोले,
" बहू कम बेसी होता है, सबके साथ,... लेकिन बस ये याद रखना मैं हूँ न, ... कोई चीज की जरूरत हो, कोई भी,... निसंकोच,.. कहने की भी जरूरत नहीं, बस इशारा काफी है, और ये घूंघट वून्घट हमसे नहीं अब तो तुझे मेरा ख्याल रखना है और मुझे तेरा "
सुगना समझ तो गयी, लेकिन गाँव भर की बड़ी, रिश्ते की सास,... काम वाली, पूरे गाँव में बांटती,... इसलिए ससुर के सामने अभी भी हाथ भर का घूंघट काढती, पर्दा करती, परछाईं तक बेराती। घर में एक काम वालियां रहती हीं, कूटना, पीसना, सबके सामने बहुत सम्हल कर, गांव क रीत रिवाज, तुरंत क गौने उतरी बहुरिया,
लेकिन अब ससुर के सामने वो किसी न किसी बहाने, भले ही परदे में,...
कभी चूड़ी खनकाती, कभी पायल झनकाती, कभी कभी आँचल लहराती।
अंगिया भी उसी डारे पर सूखने के लिए डालती जहाँ ससुर बैठते, और टांगती उतारती भी तभी जब ससुर जी आस पास ही हों.
लेकिन सबसे खतरनाक काम उसने किया अपने मरद के जाते ही इमरतिया का घर में आना जाना बंद कर दिया,...
डांट के हड़का के नहीं,... बल्कि प्यार से समझा के की अगल बगल की सास लोग पता नहीं का का कहती हैं वो भी उसकी सास की तरह ही है, लेकिन,..और एक बात जो कटाई में चार कट्टा, त्यौहार में साल में दो साड़ी, वो सब उसे उसी तरह मिलता रहेगा। बस एक बार लोगो का मुंह बंद हो जाये फिर,... इमरतिया ने ही उसे ससुर के बारे में सब कुछ बताया था, तो सुगना को ये भी लगता था की सब बातें ये घर घर जाके बांटेगी।
और असली चीज ससुर की भूख बढ़ेगी तो खुद ही बहू से मांगेगें, इमरतिया रहती है तो उनका काम चल जाता है. वो नहीं मिलेगी तो फिर फड़फड़ायेंगे और एक दिन सुगना के पास ही,...
और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...
" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "
और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता। एक दिन उनके मुंह से निकल गया,
" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".
" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।
ऑल लाइन क्लियर....सुगना और सुगना के ससुर
और ससुर को खाने खिलाते उनका दिल भी टटोलती, आग लगाती, उकसाती,...
" भूखे मत रह जाइयेगा, वरना सोचियेगा की कैसी बहू लाया हूँ ससुर को भूखा रखती है, मेरे रहते आप भूखे रहें मुझे अच्छा नहीं लगेगा। "
और उसके बाद अँजोरिया अस चेहरा और दीये ऐसी बड़ी बड़ी आँखे उठा के देखती तो ससुर जी का टनटना उठता।
एक दिन उनके मुंह से निकल गया,
" अरे बार बार मागूंगा, तो तू इतनी सुकुवार देते देते थक जायेगी ".
" अरे बाऊ जी, आप मांग कर के तो देखिये, ... आप भले थक जाएँ, मैं देते देते कभी नहीं थकूँगी,... सुकुवार हूँ, लेकिन जवान भी हूँ,... आपकी बहू हूँ, ..." हँसते हुए कटोरी में दही डालते वो बोली।
और अपनी ओर से और जड़ दिया,
" मैं भूल नहीं सकती जिस दिन मैं आयी थी उस दिन आपने ही कहा था की बहू घर में तेरी सास नहीं है, जो कुछ मन करे कमी बेसी लगे दिल खोल के मांग लेना,... और मैं इतना खुश हुयी थी तो वही बात मैं आप से कह रही हूँ,... जो कुछ मन करे खुल के मांग लीजियेगा, बल्कि इशारा ही कर दीजिये, ... अब तो घर में हम ही आप है, एक दूसरे का सहारा,... "
और यह कह कर के थाली लेकर रसोई में, .... हिम्मत कर के ससुर के मुंह से निकल गया,
" अगर मैंने कुछ उल्टा सीधा मांग लिया और तुम गुस्सा हो गयी तो... " वो तो हलके से बोले थे लेकिन नहीं दुल्हिन के कान,..दीवाल की उस पार की बात, बिन बोली मन की बात सुन लेती है।
और रसोई से ही खिलखिलाते हुए बहु ने जवाब दिया,
" अरे गुस्सा हो जाउंगी तो मना लीजियेगा, ये मत कहियेगा की मनाना नहीं आता आपको। और मैं झट्ट से मान भी जाउंगी, अगर गुस्सा भी हुयी पक्का "
अब इससे ज्यादा वो क्या लाइन क्लियर देती।
वो आग को खूब भड़काना चाहती थी लेकिन सुगना खुद भी तो सुलग रही थी और ख़ास तौर से जिस दिन माहवारी ख़त्म होती, बाल धोती वो,... और ससुर जी के सामने, वो भी समझ जाते, ...
तो उस दिन वही दिन था, सुगना सुलग रही रही थी सोच रही बहुत हुआ चोर सिपहिया,
और उस दिन ससुर जी की भी हालत ख़राब थी,... बाल धोने के बाद बहू जब आंगन में आयी थी अलग ही रूप छलक रहा था, चेहरे पे कैसी जबरदस्त प्यास थी । उन्हें मालूम नहीं था क्या की जिस दिन औरत की पांच दिन की छुट्टी खतम होती है वो कितना तड़पती है, सुगना की भी वही हालत थी ।
और उनकी भी, हालत कम खराब नहीं थी। साइड से कभी चोली से उसके उभरे जोबन देखते, एकदम कड़े कड़े बड़े बड़े, गौने जब से उतरी थी मरद का हाथ तो ढंग से लगा नहीं था जो मिस मिस के पिसान ( आटा ) कर देता, रोज गूंथता कस के, ... उनका मन करता की बस किसी दिन मिल जाये मुट्ठी में ये कस कस के रगडूंगा, मीसूँगा, एकदम तने हुए
तो कभी पीछे मुड़ती तो बड़े चौड़े कूल्हे, और थिरकते हुए चलती तो बस, अब उनके बस का नहीं हो रहा था अपने को रोकना, उन्हें मालूम था अच्छी तरह, ऐसे कूल्हे वाली औरतें, बिस्तर पे कितनी गरम होती हैं मरद का पूरी तरह साथ देती हैं , हर धक्के के साथ नीचे से धक्का लगाती हैं, मन कर गया तो ऊपर चढ़ के खुद चोदती हैं,
कित्ता मजा आये, बेचारी खुद भी तो प्यासी है, जिस के लिए लाये थे वो मेंहदी का रंग उतरने के पहले ही बंबई और फिर कतर,... और अब तो साफ़ बोलती है बाऊ जी आप लेते लेते थक जाइयेगा, मैं देते देते नहीं थकूँगी, अगर मैंने कुछ नहीं किया और किसी हरवाह, काम करने वाले के साथ, बहू मेरी ऐसी नहीं है फिर भी देह की आग,....
इमरतिया आती थी कभी एक दो दिन नागा कर के ही सही, उनका काम हो जाता था, और उम्र होने से क्या होता है न उनका शरीर बूढ़ा हो रहा था न मन, बल्कि जब से सुगना आयी थी मन और पागल हो रहा था।
आखिर उन्होंने कह ही दिया बिना सुगना से बोले,
" आज पैर में बहुत दर्द हो रहा है,... ससुरी इमरतिया भी बहुत दिन से आयी नहीं, मालिश कर देती तो,... " अपना दुःख खुद से कह रहे थे, तो सुगना बोल पड़ी
" तो मैं कर देती हूँ न मालिश, इमरतिया से ज्यादा ताकत है मेरी देह में"
सुगना ने लाइफ टाइम ऑफर दे दिया।
" लेकिन बहू तू तो पर्दा करती है,... ससुर ने दुःख बताया।
" अरे आप भी न पर्दा इसलिए करती हूँ की आप को नहीं देखना चाहिए,... तो बस आप आँखे बंद कर लीजिये हो गया पर्दा,... अब तेल तो मैं साड़ी पहिन के लगाउंगी नहीं , कहीं तेल लग गया तो छूटेगा नहीं,.. हाँ बस आँख बंद किये रहिएगा "
वो आँखे बंद करके, तख़्त पर लेट गए, हो जाये जो होना हो,... बहू तेल कटोरी में गुनगुना करने गयी,... और लौटी तो देखा उसके पायल की झंकार सुनकर ससुर जी कनखियों से झाँक रहे हैं
वो जोर से खिलखिलाई,
" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... "
सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे
" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,
" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "
जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन मस्ताया जोबन,
आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी, सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,... और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ... और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...
" कितनी ऊँगली "
" सात " वो बोले,...
जवानी के चुदास की आग दोनों तरफ बराबर लगी है...तेल मालिश
वो जोर से खिलखिलाई
" बाऊ जी बदमासी, बेईमानी नहीं चलेगी,... लेकिन मैं भी छोडूंगी नहीं, अब आपकी आँख में पट्टी बाँध देती हूँ, आप वैसे नहीं मानेगें,... किस चीज से बाँधू,... किस चीज से बांधू ,... हाँ ये ठीक रहेगा,... " सुगना बोली और डारे पर टंगी अपनी सूखती अंगिया उतारी और ससुर की आँखों पे
" बहू इतना जोर मत लगा, इत्ता कस के नहीं " ससुर बोले, बहु की अंगिया का स्पर्श, मूसल चंद फनफना रहे थे ,
" देखिये में तो पूरा जोर लगाउंगी, आप इतनी बेईमानी करते हैं। और जब आप का नंबर आएगा तो आप भी पूरा जोर लगा दीजियेगा, कंजूसी मत करियेगा। मैं एकदम मना नहीं करुँगी हिसाब बराबर हो जाएगा। "
जाली वाली अंगिया, सब कुछ दिख रहा था छन छन कर के गोरा तन, मस्ताया जोबन,
आराम से जैसे उनको दिखाते ललचाते सुगना ने साड़ी उतारी,
सिर्फ छोटा सा लाल लाल खूब नुकीला, लो कट चोली,...
और साड़ी मोड़ के गठरी जैसे बना के ससुर के सर के नीचे लगा दिया, उन्हें न भी दिखा हो तो पता चल जाये साड़ी उतर गयी है,... सर सर करती, ...
और अपनी दो ऊँगली उनकी आँखों के सामने दिखा के बोली,...
" कितनी ऊँगली "
" सात " वो बोले,...
सही है अब पता चला की नहीं दिख रहा, सुगना हंस के बोली,... और अपनी तर्जनी और मंझली ऊँगली जोड़ के लम्बे छेद का निशान दिखा दिया ,
दिख तो उन्हें सब रहा था, और टेंसन उनके चेहरे से लग रहा था, पर सुगना तो आज बदमाशी पे आमादा थी, उसने एक शर्त और बता दी, ...
" हाँ एक बात और आप को मुझे छूना भी नहीं चाहिए, ... तो आप मुझे हाथ नहीं लगा सकते,... " वो खिलखिलाते बोली।
" लेकिन बिना छुए कैसे, होगा, ... तू कैसे मालिश करेगी " ससुर बिचारे चौके, उन्हें अपनी सब उम्मीदों पर पानी फिरता दिख रहा था।
" अरे रोक आपके ऊपर है मेरे ऊपर नहीं, ... मैं हाथ क्या जो मेरी मर्जी होगी वो सब लगाउंगी,... और मेरी सास नहीं है तो उनकी जगह घर की मालकिन मैं ही हूँ,... और बहू के होते हुए आप अपना हाथ इस्तेमाल करें,... अच्छा लगता है क्या। "
सुगना की हंसी खिलखिला के मोतियों की तरह फर्श पर बिखर गयी।
पहले पैरों पर बहू ने तेल लगाया, फिर हाथ पैरों की ओर बढ़ गया,... लेकिन थोड़ी देर आगे बढ़ के ही ठिठक गया, और सुगना अपने को कोसती बोली,
" मैं भी न बुरबक, तेल धोती में लग गया तो सुगना तुझे ही धोना पड़ेगा, "
और धोती की गाँठ खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, जैसी कोई लौंडा किसी माल के शलवार के नाड़े पर हाथ डाले और अपने आप उस माल का हाथ उसे रोकने, अपनी नाड़े की गाँठ बचाने,... बस एकदम उसी तरह सूरजबली सिंह का हाथ अपने आप,... सुगना के हाथ की ओर बढ़ा लेकिन बहुत जोर की डांट पड़ गयी, बहू की।
" मना किया था न, एक बार में समझते नहीं हाँ. मैंने क्या कहा था, अपना हाथ अपने पास रखिये, फिर भी, चुपचाप हाथ बाँध के रखिये"
फिर प्यार से सुगना समझाते बोली,
" काहें परेशांन है , अरे और कुछ नहीं करुँगी। सिर्फ धोती खोल रहूं जिससे तेल न लगे, जैसे अपनी साड़ी उतार दी। और नीचे कच्छा तो आप पहने ही हैं। चलिए वादा उसका, नाडा अपने से मैं नहीं खोलूंगी अभी,... फिर ब्याहता हूँ चार महीने हो गए गौने आये, मुझे भी मालूम है कच्छे के अंदर क्या होता है। न डरती हूँ न लजाती हूँ,... चुपचाप हाथ दूर रखिये, वरना जैसे अपनी अंगिया से आँख बांध दी है न वैसे पेटीकोट का नाड़ा खोल के हाथ दोनों भी बाँध दूंगी कस के. "
हाथ हटाने के अलावा कोई चारा था भी क्या, उनके पास, ..आराम आराम से धोती खोल के तहिया के बगल में सुगना ने रख दिया और तेल लगाना शुरू कर दिया और थोड़ी देर में हाथ घुटने के ऊपर पहुँच रहा था, और लगा भी बहुत ढंग से ताकत से,...
जवान औरत की देह बहुत दिन बाद छू रही थी, देह उसके ससुर की गिनगीना रही थी, अब सुगना को तो कुछ बोल नहीं सकते थे अपनी समधिन का नाम लेकर सुगना की महतारी को इशारा करके छेड़ा,..
" हमार समधिन लगता है कौन नाऊ के साथ सोई थीं जब गाभिन हुयी, तू पेट में आयी, तब ही इतनी बढ़िया मालिश सीखी हो "
सुगना काहें चुप रहती उसने भी अपनी महतारी के कंधे पर रख कर बंदूक चला दी,...
" अरे आपकी समधन होतीं तो जवाब देतीं, अपने दामाद की दादी और बुआ दोनों का हाल सुना देतीं की वो लोग किसके किसके साथ टांग उठाये हैं, की कहीं आपके समधिन के समधी के साथ ही तो नहीं,... "
और साथ ही में हाथ सरक के जाँघों के ऊपर कच्छे के अंदर