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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

motaalund

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Me soch raha hu ki just comment karne me itna time lg gya hame. To aap to itna lamba update deto h. Aap kitna hard work krti hongi.
Sochna, words me set karna, pic and gif search karna aur phir itna Sara likhna edit karna. Just for our entertainment. Thank you madam.
इसके पीछे कोमल जी की बहुत सारी मेहनत लगी है...
और इसके बदले वो सिर्फ लाइक.. और कमेंट का आग्रह करती हैं...
honorary work के लिए इतना तो हम पाठकों का फर्ज बनता हीं है...
 

arushi_dayal

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भाग ९२ ननद और आश्रम

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" हम को तो लागत है भौजी हम पहलवे दिन गाभिन हो गए, " शरारत भरी मुस्कान से खुश खुश मेरी ननद बोलीं। जो बात मैं मैं कहना चाहती थी, उन्होंने खुद दी। मेरे मरद का बीज खाली नहीं जानेवाला था।

--

" लगता तो हमको भी यही है, बनायी दिहु अपने भैया के बाप. लेकिन, ... चला कल तो आराम कर लिया पांच में से दो दिन निकल गए, तीन दिन बचे, लेकिन ये तीन दिन नन्दोई जी की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए। पांचवें दिन के बाद भिन्सारे क जून साथे हम लोग होलिका माइ क नाम ले के चेक करेंगे, पक्का नौ महीने में बिटिया आएगी। "

मैंने अब साफ़ साफ़ बोल दिया।


" भौजी, आज तो कोई दिक्क्त नहीं है, भैया आयी रहे होंगे , और नन्दोई तोहार रात में नर्सों के साथ, लेकिन कल दुपहरिया में सांन्झ तक भी आगए तो तोहार ननद कैसे बचे, " अपनी परेशानी ननद ने बता दी।


बात तो उनकी सही थी, अपने साले की तरह उन्हें भी रोज हलवा पूड़ी चाहिए थी। लेकिन मैंने ये जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले ली। ननद का गाल चूम के बोली,


" ओकर चिंता जिन करा, आखिर भौजाई सब काहें को होती हैं. कल रात तोहरे परछाई के पास नहीं फटकेंगे, बस जैसे जैसे हम कही,... और बाकी अपने भइया के साथ गपागप, गपागप,..... और एक बूँद बीज क न कही बाहर जाये, न बच्चेदानी के अलावा कहीं और, उनकर गाँड़ मारे क मन भी करे तो बोल दीजियेगा साफ़ साफ़ , की भैया भौजाई क हमरे गाँड़ मार ला, नहीं तो दो तीन दिन रुक जा। "

मेरी बात सुन के ननद हंसने लगी, बोली,' भौजाई हो तो ऐसी , अब हम सोने जा रहे हैं कल रात भर सहेलियों के साथ सब इतनी बदमाश, किसका मरद कैसे करता है, निहुरा के लेता है , गोद में बैठा के पेलता है और वो भी खाली जुबानी नहीं, सब कर कर के आपस में, एक मिनट नहीं सोने दिन। और रात में आपका मरद नहीं सोने देगा।'



तबतक सास की आवाज आयी की वो बाहर जा रही है, ग्वालिन चाची के साथ दूबे भौजी के यहां हम दोनों दरवाजा बंद कर लें।



दरवाजा बंद करने के बाद ननद मुझे अपने कमरे में ले आयी और उन्ही के बिस्तर पर, ….

अपनी सास के बारे में वो बात बताई की मेरे रोंगटे खड़े हो गए।



सास उनकी महा कंटाइन थी ये तो मैं जानती थी,





लेकिन इतनी छिनार होगी मैं भी नहीं सोच सकती थ। साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थी, बच्चे के लिए,

अब हर सास तो मेरी सास की तरह तो हो नहीं सकती थी, मैं जब गौने उतरी थी तो उसके चौथे दिन ही, उन्होंने साफ़ साफ़ मुझसे बोल दिया,

" बच्चे के बारे में न तो तेरे मरद की सास तय करेगी, न तोहार सास, सिर्फ और सिर्फ मेरी छोटी बहू फैसला करेगी, और कोई बोले तो पलट के गरिया के जवाब देना, पेट में तुझको रखना है फैसला तुम करोगी, और सास मेरी खुद मुझे लेके आसा बहू के पास गयीं और तांबे का ताला लगवा दिया, उसी दिन से आसा बहू से मेरी दोस्ती भी हो गयी और सास ने बोल दिया की जब खुलवाना हो ताला तो खुद चली आना, आसा बहू के पास, मुझे बताने की भी जरूरत नहीं है।



लेकिन मेरी ननद की सास, करीब साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थीं,



" तोहरे बाद क गौने से उतरी दो दो निकाल दी, एक कोरा में एक ऊँगली पकड़ के चल रहा है, यहाँ तो अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी। "

और करीब छह महीने पहले जब मेरी ननद की पड़ोस की चचिया देवरानी गाभिन हुयी तब से तो वो अगिया बैताल हो गयी।

ननद ने गोली खानी करीब साल भर पहले से बंद कर दी थी, मरद तो अपनी बीबी के साथ कंडोम कभी लगाते नही। छह महीने पहले वो ननद के कमरे में घुस के बिस्तर के अंदर , दवा के डिब्बे में हर जगह चेक कर के देखा और कुछ पुरानी एक्सपायर्ड गर्भ निरोधक गोलियां थीं, बस वो देख के आग बबूला सब उठा के उन्होंने फेंक दिया और मेरी ननद को साफ़ साफ बोल दिया,

" अब ये नीचे क खूनखच्चर बंद होना चाहिए, और उलटी शुरू करो, अब अगर अगले महीने आयी की पांच दिन रसोई में नहीं आओगी तो जउने दिन बाल धोओगी न ओहि दिन खुला झोंटा पकड़ के गुरु जी के आश्रम में ले जाउंगी, एक से एक बाँझिन को प्रसाद दे दिए हैं जहाँ डाक्टर वैद ओझा फ़क़ीर सब फेल हो गए। "




लेकिन अगले महीने ननद रानी को फिर रसोई से पांच दिन छुट्टी लेनी पड़ी, और सास एकदम अलफ,

' गौर रंग, सुंदर बदन ले के कोई का करे, बहू कोई काहें लाता है, घर पोती पोते से भर दे, बंस चलाये और ये महरानी जी, अरे हमरे जमाने में और अभी भी गौने दुल्हिन जिस दिन उतरती है, ठीक नौ महीने बाद सोहर होता है घर में बच्चे की आवाज सुनाई देती है और ये, दो साल से ऊपर हो गए, अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी, ऐसी बहू ले के कोई का करेगा, रूप जोबन का का फायदा, कोई चाटेगा ,



ननद से तो नहीं लेकिन कोई पड़ोसन आती तो अब उससे साफ़ साफ़ बोलती,

" पता नहीं कहाँ से ये बाँझिन घर आ गयी है, हमरे बेटा क, एक तो बेटा और उसकी बहू, पुराना जमाना होता तो साल भर में बहू कुछ नहीं निकालती तो दूसरी ला के बेटे के सेज पर चढाती, "

और पड़ोसन अगर कहती की साधु बाबा के आश्रम में, तो सास बात काट के कहतीं, मैं तो साल भर से कह रही हूँ, गाँव भर की बहुये जाती है लेकिन यही पाँव में महावर लगा के बैठी हैं, लेकिन महीने दो महीने में बात नहीं बनी तो जबरदस्ती ले जाउंगी , गुरु जी का तो बड़ा , और श्रद्धा से मेरी ननद की सास की आंखे बंद हो जाती,



और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,



" लौट आयो मायके से, भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ, लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी गुरु जी के भाग ९२ बाँझिन और आश्रम, और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"

Komal ji

Some days back I started a new poem on Ashram . But somehow i stopped in between as i was not sure whether I should write it or not. After reading this update..it just flashed in my mind how similar someone can be our thinking process. I am giving below few lines which i have pen down so far. Please let me know if I should continue this or not. I am sure it won’t stand anywhere in front of your update. It was just a try. One more thing which i am not sure if its a coincidence. Many pics which you have given with this update are similar to what i was planning to post. So i am not posting any pics this time. Waiting for your review comments 🙏🙏🙏

मेरी शादी की गाड़ी को ऐसा मिला है चालक

पांच साल की शादी में हुआ नहीं कोई बालक

जड़ी बूटी टोना टोट का सब हथकंडे अपनाएं

लेकिन ये फिसड्डी निकले कोई काम ना आये

बड़े जोश से रात बिस्तर पर पतिदेव तो आते

मेरी चूत की गर्मी के आगे झट से वो ढह जाते

लाख करो मेहनत खेत में कितना चलाओ हल

जब तक बीज न बोया जाए मिलेगा कैसे फल

सुन के सास के तानो को मैं रहने लगी परेशान

मैं भी जल्दी माँ बन जाउ बस एक यही अरमान

फिर एक दिन सासु माँ भागी सी आई मेरे पास

सुन बहू आज मिली थी रास्ते में पद्मा की सास

यहां पास ही आश्रम में रहते हैं एक बड़े फकीर

सुना बहुत से लोगो की उन होने दूर करी है पीड़

पद्मा ने साधु महाराज की करी एक महीने सेवा

पुत्र रूप में उसे मिला है अब उस सेवा का मेवा

कल तुझको ले जाऊंगी मैं वहां पर अपने साथ

उन्हें मिल के दिलवाऊंगी वहां से उनका प्रसाद

साधु जी कैसे पुत्र देंगे मुझे मन मेरे लिए विचार

अगले दिन उनके दर्शन को मैं होने लगी त्यार

अगले दिन मैं जा पाहुंची अपनी सासुमाँ के संग

बन जाऊँगी जल्दी ही अम्मा दिल में लिये उमंग

पल्लू के अंदर से दिखती थी मेरे चूचो की घाटी

अपनी चूत की झांटे थी मैनेआज सुबह ही काटी

थोड़ी हीदेर में साधु महाराज चेलो के संग पधारे

उनके जयघोष में वहां फ़िर लगाने लगे जयकारे

ऊंचा लंबा कद था उनका चेहरे पर तेज था भारी

बैठे जब वोआसन के ऊपर तकरायी नज़र हमारी

घूर के मुझको महाराज ने भरपुर नज़र इक डाली

देख के उन नज़रों को मैंने अपनी नज़र झुका ली

कुछ समय बाद आई जब हम सास बहू की बारी

पुछे साधुमहाराज बताओ क्या तकलीफ तुम्हारी

पांच साल की शादी में भी बहू को नहीं हुई संतान

मैं पोते का मुँह देखु मैं जल्दी है दिल में ये अरमान

अपनी कृपा से आप महाराज कुछ तो करें उपाय

मेरी लाड़ली बहू की गोद अब जल्दी से भर जाये


ऊपर से नीचे तक देखा मुझको अपनी नज़र उठाकर

बोले फ़िर मेरे कानो में मुझको अपना पास बुलाकर

उपाय तनिक कठिन है तुमको होगी थोड़ी सी दुश्वारी

लेकिन वादा करते हैं जल्दी भर जायेंगे गोद तुम्हारी

आपके पास आये हैं बाबा जी लेकर मन में विश्वास

आपकी सेवा करने से होगी पूरी मेरे मन की हर आस

हमें बताओ बहू कब आई थी पिछली बार महावारी

उस हिसाब से करनी होगी हम को पूजा की त्यारी

पिछले हफ्ते ही ख़तम हुई है महाराज मेरी महावारी

अब कहेंगे जैसा बाबा जी मैं आउंगी करके पूरी त्यारी

पंद्रह दिन तक यहां रहना होगा और करनी होगी सेवा

प्रसन्न हुए हम तुम्हारी सेवा से तो अवश्य मिलेगा मेवा

छोड़ सारी मोह माया को यहां रहना होगा बनके दासी

तन मन से अगर करोगी सेवा तो होगी सब दूर उदासी

अब ये अगले चार दिन अपने पति से संबंध नहीं बनाना

एक जड़ी बूटी हम देंगे तुमको वो रोज़ रात को खाना

आज से ठीक पांचवे दिन आश्रम में आना होगा अकेले

सब कपड़ा गहना नकदी और फोन छोड़ के सारे झमेले

पहले तोयहां आश्रम आते ही तेरा शुद्धिकरण करवाएंगे

फ़िर यहां कैसे रहना होगा वो सब नियम बताये जायेंगे

हाथ जोड़ कर साधु को सासु माँ संग आ गई वापस घर

लेकिन अकेले आश्रम जाने से मुझे लगने लगा था डर

मुझे देख उसकीआँखों में एक अजब चमक जो आई थी

कुछ अनहोनी न हो जाए में ये सोच के मैं धबरायी थी


घर आ बाबा की दी हुई बूटी जब भी सुबह मैं खाती थी

बस खाते ही उसको मेरे बदन में आग सी लग जाती थी

घंटो बैठ के अपने कमरे में उंगली से चूत खूब खुजलाती

जितना उसे खुजाती आग चूत की और भी बढ़ती जाती

दिल चाहता कोई रगड़ के मुझको निचोड़ दे मेरी जवानी

मेरी चूत की आग को ठंडा कर देकर अपने लंड का पानी

आख़िर आश्रम जाने का दिन भी जल्दी ही आया

सासु माँ ने मुझे बड़े प्यार से अपना पास बिठाया

देखो बहु रानी वो साधुमहाराज बहुत बड़े है ज्ञानी

वहां गलती से भी हो ना जाए तुमसे कोई नादानी

उनका कृपा दृष्टि है बस आखिरी उम्मीद हमारी

उनके आशीर्वाद सेही गूँजेगी इस घर में किलकारी

पुरे तन मन से वहां करूंगी सेवा रखे आप विश्वास

ऐसी कोई भी नहीं गलती होगी आप नहीं हो निराश

जीवन में जो लाए खुशियां उस बालक की चाह में

निकल पड़ी थी अपने घर से मैं इक अंजानी राह पे
 

vakharia

Supreme
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Komal ji

Some days back I started a new poem on Ashram . But somehow i stopped in between as i was not sure whether I should write it or not. After reading this update..it just flashed in my mind how similar someone can be our thinking process. I am giving below few lines which i have pen down so far. Please let me know if I should continue this or not. I am sure it won’t stand anywhere in front of your update. It was just a try. One more thing which i am not sure if its a coincidence. Many pics which you have given with this update are similar to what i was planning to post. So i am not posting any pics this time. Waiting for your review comments 🙏🙏🙏

मेरी शादी की गाड़ी को ऐसा मिला है चालक

पांच साल की शादी में हुआ नहीं कोई बालक

जड़ी बूटी टोना टोट का सब हथकंडे अपनाएं

लेकिन ये फिसड्डी निकले कोई काम ना आये

बड़े जोश से रात बिस्तर पर पतिदेव तो आते

मेरी चूत की गर्मी के आगे झट से वो ढह जाते

लाख करो मेहनत खेत में कितना चलाओ हल

जब तक बीज न बोया जाए मिलेगा कैसे फल

सुन के सास के तानो को मैं रहने लगी परेशान

मैं भी जल्दी माँ बन जाउ बस एक यही अरमान

फिर एक दिन सासु माँ भागी सी आई मेरे पास

सुन बहू आज मिली थी रास्ते में पद्मा की सास

यहां पास ही आश्रम में रहते हैं एक बड़े फकीर

सुना बहुत से लोगो की उन होने दूर करी है पीड़

पद्मा ने साधु महाराज की करी एक महीने सेवा

पुत्र रूप में उसे मिला है अब उस सेवा का मेवा

कल तुझको ले जाऊंगी मैं वहां पर अपने साथ

उन्हें मिल के दिलवाऊंगी वहां से उनका प्रसाद

साधु जी कैसे पुत्र देंगे मुझे मन मेरे लिए विचार

अगले दिन उनके दर्शन को मैं होने लगी त्यार

अगले दिन मैं जा पाहुंची अपनी सासुमाँ के संग

बन जाऊँगी जल्दी ही अम्मा दिल में लिये उमंग

पल्लू के अंदर से दिखती थी मेरे चूचो की घाटी

अपनी चूत की झांटे थी मैनेआज सुबह ही काटी

थोड़ी हीदेर में साधु महाराज चेलो के संग पधारे

उनके जयघोष में वहां फ़िर लगाने लगे जयकारे

ऊंचा लंबा कद था उनका चेहरे पर तेज था भारी

बैठे जब वोआसन के ऊपर तकरायी नज़र हमारी

घूर के मुझको महाराज ने भरपुर नज़र इक डाली

देख के उन नज़रों को मैंने अपनी नज़र झुका ली

कुछ समय बाद आई जब हम सास बहू की बारी

पुछे साधुमहाराज बताओ क्या तकलीफ तुम्हारी

पांच साल की शादी में भी बहू को नहीं हुई संतान

मैं पोते का मुँह देखु मैं जल्दी है दिल में ये अरमान

अपनी कृपा से आप महाराज कुछ तो करें उपाय

मेरी लाड़ली बहू की गोद अब जल्दी से भर जाये


ऊपर से नीचे तक देखा मुझको अपनी नज़र उठाकर

बोले फ़िर मेरे कानो में मुझको अपना पास बुलाकर

उपाय तनिक कठिन है तुमको होगी थोड़ी सी दुश्वारी

लेकिन वादा करते हैं जल्दी भर जायेंगे गोद तुम्हारी

आपके पास आये हैं बाबा जी लेकर मन में विश्वास

आपकी सेवा करने से होगी पूरी मेरे मन की हर आस

हमें बताओ बहू कब आई थी पिछली बार महावारी

उस हिसाब से करनी होगी हम को पूजा की त्यारी

पिछले हफ्ते ही ख़तम हुई है महाराज मेरी महावारी

अब कहेंगे जैसा बाबा जी मैं आउंगी करके पूरी त्यारी

पंद्रह दिन तक यहां रहना होगा और करनी होगी सेवा

प्रसन्न हुए हम तुम्हारी सेवा से तो अवश्य मिलेगा मेवा

छोड़ सारी मोह माया को यहां रहना होगा बनके दासी

तन मन से अगर करोगी सेवा तो होगी सब दूर उदासी

अब ये अगले चार दिन अपने पति से संबंध नहीं बनाना

एक जड़ी बूटी हम देंगे तुमको वो रोज़ रात को खाना

आज से ठीक पांचवे दिन आश्रम में आना होगा अकेले

सब कपड़ा गहना नकदी और फोन छोड़ के सारे झमेले

पहले तोयहां आश्रम आते ही तेरा शुद्धिकरण करवाएंगे

फ़िर यहां कैसे रहना होगा वो सब नियम बताये जायेंगे

हाथ जोड़ कर साधु को सासु माँ संग आ गई वापस घर

लेकिन अकेले आश्रम जाने से मुझे लगने लगा था डर

मुझे देख उसकीआँखों में एक अजब चमक जो आई थी

कुछ अनहोनी न हो जाए में ये सोच के मैं धबरायी थी


घर आ बाबा की दी हुई बूटी जब भी सुबह मैं खाती थी

बस खाते ही उसको मेरे बदन में आग सी लग जाती थी

घंटो बैठ के अपने कमरे में उंगली से चूत खूब खुजलाती

जितना उसे खुजाती आग चूत की और भी बढ़ती जाती

दिल चाहता कोई रगड़ के मुझको निचोड़ दे मेरी जवानी

मेरी चूत की आग को ठंडा कर देकर अपने लंड का पानी

आख़िर आश्रम जाने का दिन भी जल्दी ही आया

सासु माँ ने मुझे बड़े प्यार से अपना पास बिठाया

देखो बहु रानी वो साधुमहाराज बहुत बड़े है ज्ञानी

वहां गलती से भी हो ना जाए तुमसे कोई नादानी

उनका कृपा दृष्टि है बस आखिरी उम्मीद हमारी

उनके आशीर्वाद सेही गूँजेगी इस घर में किलकारी

पुरे तन मन से वहां करूंगी सेवा रखे आप विश्वास

ऐसी कोई भी नहीं गलती होगी आप नहीं हो निराश

जीवन में जो लाए खुशियां उस बालक की चाह में

निकल पड़ी थी अपने घर से मैं इक अंजानी राह पे
arushi_dayal जी,

आपकी कविता ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। आपके द्वारा लिखी गई यह काव्यात्मक गद्य वास्तव में एक अप्रतिम सृजन है। शब्दों की ऐसी सटीकता और खूबसूरती मैंने बहुत कम देखी है। हर एक पंक्ति में छुपा हुआ सौंदर्य और हर शब्द की गूँज दिल को छू लेने वाली है।

जिस तरह से आपने इस काव्य को गद्य में पिरोया है, वह न केवल अद्वितीय है बल्कि गहराई से जुड़ने वाला भी है। शब्दों का चयन, भावनाओं की अभिव्यक्ति, और कथा को प्रस्तुत करने की शैली इतनी आकर्षक है कि पढ़ने वाला स्वयं को उस संसार का हिस्सा महसूस करता है।

आपकी कविता की लय और तुकबंदी इतनी स्वाभाविक है कि वह पाठक को अपने भीतर बहा ले जाती है। यह काव्यात्मक गद्य नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो शब्दों से परे जाकर आत्मा तक पहुंचता है।

आपकी लेखनी की सराहना के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। आपने सच में कला के एक उच्चतम स्तर को छुआ है।

सस्नेह..
वखारिया
 

arushi_dayal

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arushi_dayal जी,
आपकी कविता ने मुझे गहराई से प्रभावित किया। आपके द्वारा लिखी गई यह काव्यात्मक गद्य वास्तव में एक अप्रतिम सृजन है। शब्दों की ऐसी सटीकता और खूबसूरती मैंने बहुत कम देखी है। हर एक पंक्ति में छुपा हुआ सौंदर्य और हर शब्द की गूँज दिल को छू लेने वाली है।
जिस तरह से आपने इस काव्य को गद्य में पिरोया है, वह न केवल अद्वितीय है बल्कि गहराई से जुड़ने वाला भी है। शब्दों का चयन, भावनाओं की अभिव्यक्ति, और कथा को प्रस्तुत करने की शैली इतनी आकर्षक है कि पढ़ने वाला स्वयं को उस संसार का हिस्सा महसूस करता है।
आपकी कविता की लय और तुकबंदी इतनी स्वाभाविक है कि वह पाठक को अपने भीतर बहा ले जाती है। यह काव्यात्मक गद्य नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो शब्दों से परे जाकर आत्मा तक पहुंचता है।
आपकी लेखनी की सराहना के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं। आपने सच में कला के एक उच्चतम स्तर को छुआ है।
सस्नेह..
वखारिया
 

arushi_dayal

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Dear Vakharia ji
आपकी सराहना के शब्दों ने वास्तव में मुझे इसी तरह की कविता लिखने के लिए प्रेरित किया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आपने अपनी टिप्पणियाँ लिखने के लिए जो शब्द चुने हैं वे बहुत प्रेरक हैं। आपके, कोमल जी और बहुत कम अन्य लोगों जैसे बहुत कम लोग इतने चयनात्मक होते हैं और अपने शब्दों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं।

आपकी सरहाना के लिए कोटि कोटि धन्यवाद। और कृपया आपकी कहानी शीला की लीला पर कोई समीक्षा टिप्पणी न लिखने के लिए मेरी क्षमायाचना स्वीकार करें। यह इस मंच पर सर्वश्रेष्ठ कामुक कहानियों में से एक है।
 

vakharia

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Dear Vakharia ji
आपकी सराहना के शब्दों ने वास्तव में मुझे इसी तरह की कविता लिखने के लिए प्रेरित किया है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि आपने अपनी टिप्पणियाँ लिखने के लिए जो शब्द चुने हैं वे बहुत प्रेरक हैं। आपके, कोमल जी और बहुत कम अन्य लोगों जैसे बहुत कम लोग इतने चयनात्मक होते हैं और अपने शब्दों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं।

आपकी सरहाना के लिए कोटि कोटि धन्यवाद। और कृपया आपकी कहानी शीला की लीला पर कोई समीक्षा टिप्पणी न लिखने के लिए मेरी क्षमायाचना स्वीकार करें। यह इस मंच पर सर्वश्रेष्ठ कामुक कहानियों में से एक है।
आपका संदेश पढ़कर मुझे बहुत खुशी हुई। इस बात का बिल्कुल तकल्लुफ न करें की आप मेरी कहानी पर टिप्पणी नहीं कर पाईं। समझ सकता हूँ कि कभी-कभी समय या परिस्थितियां अनुकूल नहीं होतीं। लेकिन जिस तरह से आपने कहानी की सराहना की है, वही मेरे लिए बहुत मायने रखता है। आपकी तारीफ ही मेरे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है। आपके समर्थन के लिए दिल से धन्यवाद। उम्मीद है, आप कभी समय निकालकर विवेचना और प्रतिक्रिया अवश्य लिखने का प्रयास करें..
 

Random2022

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चंदरवा


अब सास खुश और एक बार फिर से मेरी बुर की चुसाई में लग गयी लेकिन थोड़ी देर में पूछी और बिटटुवा के बाद कौन हमरी बहुरिया चोदा ?

-- " असल में, ...आपकी बहुरिया को बड़ी जोर से मूतवास लगी थी, "....मैंने सास के सवाल का जवाब दिया, और सास ने भी मेरी बात में हामी भरी

" सही कह रही हो, जब रगड़ के चुदाई होती है न ओकरे बाद मूतवास लगती है लेकिन मूत लेना चाहिए तुरंत नहीं तो तो दुबारा चुदवाने में मजा नहीं आता "


" वही तो और आस पास बगिया में कउनो जगह नहीं थी, आम क बगिया में जहाँ देखो तहँ कउनो ननद निहुरी, कउनो टांग उठाये अपने भैया से चुदवाय रही थी तो थोड़ा और निकल के जहाँ खूब गझिन, पाकुड़ महुआ, बरगद और खूब झाड़ झंखाड़ है वहीँ, ... वहां कोई नहीं था तो वहीँ बैठ के ,... बड़ी जोर से मुतवास लगी थी,.... खूब देर तक,... छुलछुल छुलछुल,... फिर जब उठी तो आराम मिला, फिर जब दस कदम ही चली थी की बरगद के पेड़ के पास एक लौंडा खड़ा मूत रहा था आपन पकडे, ... पीछे से पहचान तो नहीं पायी, लेकिन खूब कसरती देह चौड़ा कन्धा पतली कमर और पीठ के मांस तो एकदम टाइट और वही हालत चूतड़ के, मन तो किया पकड़ के सहला दूँ लेकिन,;;;

--


पर बात बीच में सास ने काट दी,

"पतली कमर, टाइट चूतड़ और पीठ जैसे बता रही हो, मतलब बहुत जांगर होगा उसमे, और बहुत ताकत होगी उसके धक्के में" ,

और मैंने अपनी बात जारी रखी,...

" मैं एकदम दबे पांव उसके पीछे गयी और कस के पीछे से दबोच लिया, साडी मेरी वैसे ही छल्ले की तरह खाली कमर में लिपटी, अपने जोबन क बरछी उसके पीठ में रगड़ते एकदम चिपक के मैंने देखा, ... चेहरा तो अभी भी नहीं दिखा था लेकिन उसकी देह देख के,... मेरी देह में फिर से अगन लग गयी थी, ये दिख रहा था की स्साला अपना खूंटा बाएं हाथ से पकड़े, मूत रहा था,... और ऐसे पकडे था जैसे मुठिया रहा हो, बस जैसे मैंने उसकी बहिनिया को लेके एक जब्बर गारी दी, खूब मोटा तगड़ा खूंटा था,..

" साले बहिन क नाम लेके मुट्ठ मार रहे हो यहां, ... "





उसी समय वो मुड़ा और उसका चेहरा देख के मैं पहचान गयी चन्दरवा है, और मैंने फिर बहिनिया को लेके उसको गरियाया,

" ई धक्का बहिनिया के बुर में पेलते तो,... " लेकिन बात पूरी नहीं हुयी की मैं समझ गयी गलती हो गयी, उसका चेहरा मुरझा गया था और खूंटा भी ,



अब सास ने मामला साफ़ किया


" हाँ ओकर बड़की बहिनिया सुनितवा, मेला में कउनो चुड़िहारे के साथ भाग गयी थी दो चार साल पहले, अरे तर ऊपर की तो नहीं थी लेकिन चदंरवा से दो तीन साल ही बड़ी थी। लेकिन कुछ दोस तो चंदरवा का भी तो था, साल भर से ऊपर से छनछनाती फिरती थी, और घर में रोज,...

ओकर महतारी सुनितावा के चाचा से, फूफा से,... किससे नहीं फंसी थी। सुनितवा क बाबू तो सूरत गए थे कमाने वही दिवाली छठ पे आते थे हफता भर के लिए। सुनितवा क महतारी क यारन से चुदवावे से फुरसत नहीं, पता नहीं था की घर में लड़की जवान हो रही है सब देख रही है, ओकरे भी बिल में आग फूट रही है। अरे तुहि बतावा अगर बछिया सांड़ के लिए हुड़क रही है , दो दिन चार दिन दस दिन, कउनो इंतजाम नहीं होगा तो का होगा "



सास ने बात मेरी ओर ठेल दी,

" खूंटा तोड़ाय देगी और का " हँसते हुए मैं बोली लेकिन चंदर वाला मामला अभी मुझे साफ़ नहीं हो रहा था मैंने सास से पूछ लिया लेकिन चंदरवा,

" अरे बुरबक ससुर, घरे में माल, बहिन गरमाय के सिवान, खेताड़ी क चक्कर काट रही है और वो,... असल में चंदरवा बचपन से ही अखाड़े और दंगल के , ... पहले १०० दंड लगाता था फिर कोई बोला नहीं २००,... तो बस दंड पेलने के चक्कर में,... देह तो खूब बनाया था,... माना सुनितवा उससे दो तीन साल बड़ी थी तो का हुआ, ... " सास बोलीं

और मैंने भी बात जोड़ी,...

" एकदम अरे आज बिट्टू लीना की झिल्ली फाड़ा की नहीं, पूरे आठ साल बड़ा है , तो बड़ा भाई छोटी बहन की ले सकता है बुर फाड़ सकता है तो छोटा भाई काहें नहीं चोद सकता, ...वो स्साला बुरबक रह गया दंड पेलने में,... उसकी बहिनी को कोई और लंड पेल दिया , "




" एकदम यही बात, एकदम सही सोचती हो बहू तुम। और जो सुनीता मेले में सहेलियों के साथ गयी,... तो एक चुड़िहार ताक में था ही , चूड़ी पहनाने के बहाने हाथ पकड़ा , बांह सहराई, जोबन दबाया, फिर एक दिन खेत में ले जाके पेल दिया। और तुम तो जानती हो गरमाई लौंडिया को एक बार लंड का स्वाद लग जाये बस ,
.... रात दिन घर में महतारी को कभी चाचा से कभी फूफा से कभी मौसा से चुदवाती देख रही थी तो और,... फिर तो चूड़िहरवा को मुफ़्त का जवान होता माल मिल गया, कभी दो बार कभी तीन बार कभी रात में लौटती भी नहीं थी, तो बस मेला खतम हुआ और वो भी चुड़िहारे के साथ,...

फिर कहाँ पता चलता है, किसी से फंसी हो , पेलवा रही हो तो चलता है लेकिन किसी के साथ भाग गयी तो,... बाद में चंदरवा को भी लगा की उसकी बहिन कितनी बार उसको इशारा की , कई बार खुल के भी, लेकिन वो दंड पेलने के चक्कर में,... लेकिन ये बताओ बहू की चंदरवा उदास हो गया तो तू का की? "

और मैंने हाल खुलासा बयान किया।

मुझे भी लगा बड़ी गलती हो गयी, सुनीता का किस्सा तो मुझे भी मालूम ही था, लेकिन मुंह से ंनिकली बात और लंड से निकला बीज वापस तो हो नहीं सकता।


बस पीछे से ही पकड़ के मैंने कस के एक चुम्मा चंदर के होंठ पे ले लिया और बैठ के उसका और जैसे उसका लंड पकड़ के होंठों के पास ले गयी चंदरवा बिचक गया,


" अरे भौजी, अभी तो,... "

सच में धार अभी पूरी तरह रुकी नहीं थी,... लेकिन मैंने उसकी आँखों में आँखे डालकर, जोर से गरियाया,


" स्साले गांडू, तेरी महतारी की गाँड़ अपने मायके के गदहों से मरवाऊँ, ये मोट बांस अस लौंड़ा केकर हौ, तोहार की तोहरे भौजी क ? "




" भौजी क, भौजी तोहार " मुश्किल से वो बोल पाया।

बस जीभ निकाल के जीभ की टिप से उसका छेद जहाँ पल भर पहले,... मैंने जोर से चाट लिया और वो गनगना गया। चेहरे पर मस्ती छा गयी थी।





जीभ मेरी सुपाडे के छेद को छेड़ रही थी, लेकिन आंखे उसकी आँखों को ललचा रही थीं और मेरे दोनों खुले जोबन उसे और उकसा रहे थे।

मैंने होंठों को जोड़ के एक कुप्पी सी बनाई और सुपाड़े के उस छेद के ऊपर रखकर पहले तो कुछ देर चुसूर चुसूर चूसा फिर जीभ की टिप से जैसे सुपाडे को जीभ से चोद रही होंऊ।

जैसे बिजली की बटन दबाने से पंखा चलने लगता है, बल्ब जलने लगता है बस वही असर हुआ चंदरवा के खूंटे पर। खड़ाक, एकदम खट्ट से खड़ा हो गया।

फिर क्या था मैंने डबल अटैक कर दिया, ... मेरे मन में भी लग रहा था उसे बहन का नाम लेके नहीं बोलना चाहिए था पर अब जो कर सकती थी वो कर रही थी।


बाएं हाथ से लंड के बेस पे पकड़ के, बहुत मोटा था। सिर्फ अंगूठे और तर्जनी से बेस को दबा रही थी और अब पूरा सुपाड़ा मेरे मुंह में गप्प हो गया था और जैसे स्कूल की लड़कियां बर्फ के गोले को ले कर जोर जोर से चुस्से मारती हैं मैं भी उसी तरह,



चंदरवा पर मस्ती चढ़ रही थी, लंड एकदम लोहे का रॉड हो रहा था,

लेकिन मेरी बदमाशियां अभी शुरू ही हुयी थीं, हाथ से लेकर अब मैं उसके दोनों रसगुल्लों को कभी सहलाती, कभी तौलती तो कभी हलके से दबा देती तो कभी नाख़ून से बॉल्स और गाँड़ के बीच की जगह खुरच देती, लेकिन देवर मेरा भी तो मरद था . उसने कस के मेरा सर दबाया और बांस उसका धीरे धीरे मेरे मुंह के अंदर, ठेलने लगा,


मैंने कस के अपने गुलाबी रसभरे होंठों से लंड दबोच रखा था, जब चमड़ी होंठों को रगड़ते जाती इत्ता अच्छा लग रहा था, मेरी जीभ खूंटे के नीचे से चाट रही थी और कस कस के मैं चूस रही थी, वो पूरी ताकत से पेल रहा था, ठेल रहा था, और मैं घोंट रही थी,




एकदम हलक तक चंदरवा ने पेल दिया। आँखे उबली पड़ रही थीं, गाल फूले हुए थे थके फटे पड़ रहे थे लेकिन मैं पूरी ताकत से चूस रही थी, जीभ उसके सुपाड़े पे रगड़ रही थी। कुछ देर बाद जब चन्दर ने बाहर मूसल निकाला तो मैंने उसे जाने नहीं दिया हाथ से पकड़ लिया और साइड से चाटने लगी।

सपड़ सपड़ सपड़ सपड़



" भौजी, ओह्ह, उफ्फ्फ, ओह्ह्ह " मस्ती से बार बार चन्दर की आँखे बंद हो रही थीं। और वो चौंक गया, वो सोच भी नहीं सकता था,

मैं उसके एक रसगुल्ले को लेकर चूस रही थी और हाथ से उसके तने खड़े पागल मूसल को मुठिया रही थी बहुत हलके हलके। मेरे थूक से लग लग के लंड गीला हो गया था। जीभ मेरी कभी दोनों रसगुल्ले पर तो कभी बॉल्स से लेकर बेस तक पर मेरी आँखे चुदवाने के लिए जगह ढूंढ रही थी लेकिन चारो ओर झाड़ झंखाड़ , और खूब गझिन पाकुड़, महुवा, बरगद के पेड़, ....

और मैंने स्टाइल बदल दी।

अब बजाय होंठ के मेरी चूँचिंया उसके लंड को चोदने लगीं, अब मैं उसके ऊपर चढ़ के चोदू इत्ती जगह तो थी नहीं तो बस चूँची चोदन, और जिस ललचायी नजर से वो मेरी चूँची देखे रहा था कुछ इनाम तो बनता था बेचारे को।

बहन भी नहीं थी उसके घर में।

दोनों हाथों से चूँची पकड़ के उसके लोहे के रॉड पर रगड़ रही थी, बहुत मजा आ रहा था , कभी अपने मोटे मोटे निपल से उसके पेशाब के छेद को चोद देती




तो कभी मेरी मोटी मोटी चूँची के बीच दबे कुचले रगड़े जा रहे चंदरवा के लंड के सुपाडे को कभी जीभ से चाट लेती तो कभी हलके से चूस लेती।

लेकिन चाहती तो मैं थी चुदवाना।

मेरी बुर मेरे होंठ और चूँची को गरिया रही थी की तुम दोनों मजा ले लिए और मैं ही प्यासी हूँ,

और वो भी चाहता था चोदना

मैंने हल्का सा इशारा ही किया बस बहुत जांगर था चंदरवा में। बस गोदी में उठाय के महुवा के पेड़ के सहारे खड़ा किया, खड़ा किया समझिये आधा हवा में और एक झटके में सुपाड़ा बिल में गच्चाक से अंदर, एक हाथ के सहारे हमारा चूतड़ पकड़ के टांग फैलाय के दूसरा धक्का अस करारा मारा की आधा बांस अंदर।

मैं कस के अपने उठे हुए पैर से चंदरवा का चूतड़ चाप के दाबे थी, अपनी ओर कस के भींच रही थी. मेरी उसकी लम्बाई करीब करीब बराबर थी , कुछ में उसे अपनी ओर खींच रही थी और कुछ वो ताकत से ठेल रहा था, चमड़ी से चमड़ी रगड़ते हुए, उसके चौड़े सीने से मेरी चूँची, जैसे चक्की गेंहू पीस पीस के पिसान कर देती है उसी तरह से, जब आधा से ज्यादा अड़स गया, तो वो रुक गया और हम दोनों चुदाई का मजा लेने लगे।



चुम्मा चाटी, उसके मुंह में मैंने जीभ डाल दी, और गोल गोल, ... मैं कभी अपनी चूत कस कस के उसके बांस पर सिकोड़ती, उसे दबोचती, लंड को निचोड़ती, और जब मैं रुक जाती तो वो हलके हलके धक्के

लेकिन थोड़ी देर में जब हम लोग सेट हो गए फिर जांगर दिखाया चन्दर ने और एक झटके में जैसे गोद में दोनों चूतड़ पकड़ के हवा में, मेरे दोनों पैर हवा में दोनों हाथों से चन्दर ने मेरे दोनों चूतड़ पकड़ के, का जबरदस्त धक्के खड़े खड़े मार रहा था और पूरा वजन भी सम्हाले था. हर धक्के में बच्चेदानी हिल रही थी. दूर दूर तक कोई नहीं था, खाली ऊँचे ऊँचे पेड़ पाकड़ के महुआ के, ननदों की चीख पुकार भी बहुत हलकी कभी किसी की गाँड़ फट रही हो, झिल्ली फटे उस समय भी बहुत हलकी सी चीख सुनाई देती थी वरना लग रहा था हम लोगों से एकदम अलग थलग चुदाई का मस्ती से मजा ले रहे थे,




दस मिनट तक मेरे दोनों चूतड़ अपने हाथ से पकडे, मेरी पूरी देह का वजन उसके ऊपर, और उसके लंड का जोर मेरे अंदर, कभी जोर जोर से पेलता, कभी दरेररता, लंड के बेस से बुर को रगड़ता, बदमाश इतना की जैसे उसे लगता मैं झड़ने के करीब हूँ कच कच्चा के कभी गाल काट लेता कभी चूँची पे दांत गड़ा देता, लेकिन थोड़ी देर में फिर उसने लंड एकदम बाहर निकाला और पलट के मुझे पेड़ के सहारे, अब मेरा मुंह पेड़ की ओर

--- और गाँड़ चंदरवा की ओर, वो पीछे से हमें दबोचे, मैं टांग भी खूब फैला ली और पीछे की ओर चूतड़ उचका के खड़े खड़े गप्प से उसका लंड घोंट ली। इतना मजा आया खड़े खड़े चुदवाने में, एक हाथ से हमारी कमर पकड़े थे दूसरे से चूतड़ पे, और दे धक्के पे धक्का,.. मजा तो हम दोनों का आ रहा था , लेकिन मैं जानती थी की मरद को असली मजा किस्मे आता है बस वही पाकड़ के पेड़ को पकड़ के थोड़ी देर बाद मैं निहुर गयी चूतड़ ऊपर
Chandar ne de diya komal bhabhi ke andar
 

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बूआ जी


सास की ये बात भी एकदम सही थी, मेरा मतलब उनकी समधन की बिटियों वाली बात। लेकिन सास ने जो अगली बात कही इनके बारे में तो में चौंक गयी,

" जउन अपनी दादी क बिटिया को नहीं छोड़ा, वो नानी क बिटिया को काहें छोड़ेगा "

दादी की बिटिया मतलब इनकी बूआ, मैं सकते में, क्या सच में मेरे मुंह मुंह से निकल गया और मेरी सास खिलखिलाने लगीं।

" क्यों क्या मेरा बेटा अपनी बूआ नहीं चोद सकता, अरे खाली तोहार ननद छिनार थोड़े ही हैं, हमार ननद कउनो तोहरे ननद से कम थोड़े हैं, सावन से भादों दूबर"
जोर से ठहाका लगाते वो बोलीं।


और मेरी आँख के सामने इनकी बूआ की शक्ल घूम गयी, दुबली पतली, छरहरी, लेकिन असली जगहों पर जरूरत से ज्यादा गदरायी, एकदम टनाटन, और अपनी सास और उनके बीच जो मजाक और खुलापन पहले दिन ही मैंने देखा, मेरा और मेरी ननद के बीच तो कुछ भी नहीं, ....और वो दोनों लोग बोलने से ज्यादा सीधे हाथ पे उतर आती थीं,



सुहाग रात के लिए मेरी ननदे मुझे ले जा रही थीं, कमरे में और पहले मैं सास का पैर छूने के लिए झुकी तो उनके बगल में मेरी मेरा बूआ सास, मुझसे बोलीं,

" अरे बहुत पैर नहीं पैर के बीच में छुओ जहां से तोहार मरद निकला है, उठाय लो लहंगा "

और मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी, हाथ भर का घूंघट काढ़े




लेकिन दिख सब रहा था, और खुद बूआ ने अपनी भौजी का मेरी सास का लहंगा एकदम ऊपर तक,

और मैं समझ गयी की इस घर में फ़ालतू में चड्ढी पहनने का रिवाज नहीं है,... सब दिख गया।


लेकिन मेरी सास कौन कम, उन्होंने अपनी ननद का, लहंगा और ऊपर तक और मुझसे बोलीं

" देख लो, एही कुंए में तोहार ससुर गोता लगाते थे "
मेरी सास की कोई गाँव की जेठानी लगती थीं शायद हिना की माँ, वो अपने देवर की ओर से बोलीं,

" काहें हमरे देवर को दोष धरती हो, यह गाँव क का, पूरे बाईसपुरवा क कुल मरद साले बहनचोद होते हैं और लड़कियां भाइचॉद तो इहो गाँव क रिवाज, "

और जब मैं चलने लगी तो बूआ बोलीं,

" अरे दुल्हन खूब लम्बा मोटा कड़ा मिलेगा, ....रात भर रगड़ के रख देगा, सबेरे दो दो ननदे जाएंगी टांग के लाने के लिए "





फिर मेरी जेठानी से पूछा ,

" तेल पानी कर दिया है न अच्छी तरह से "



बूआ जी की बात पूरी तरह सही हुयी, सुबह सच में दो ननदें टांग के ही ले आयीं, जमीन पे पैर रखते ही वो जोर की चिलख उठती थी। लेकिन अगर पहला दिन नहीं होता तो मैं शायद बूआ जी से पूछ ही लेती

" क्यों बूआ जी, अपने देखा परखा है, ....खाली पकड़ा है की घोंटा भी है।"


बुआ जी से उसी दिन से मेरी खूब अच्छी वाली दोस्ती हो गयी,



पर मैंने सोचा, मामला साफ़ कर लेना चाहिए और मैंने सास से साफ़ पूछ लिया "तो क्या बूआ जी सच में,..."



मेरी सास खिलखिलाने लगी,

" तू भी न पागल, अब ये सब चीज कोई देखता है, अगर तू कहे की मैंने तेरे मरद को उसकी बूआ की टांग उठाते,... घुसाते, पेलते देखा है.... तो नहीं, लेकिन ये सब अंदाज लग जाता है, और उसकी बूआ बचपन की लटपटिया, मुन्ना को ( मेरी सास इन्हे मुन्ना ही कहती थीं ) देख देख के, ....और ५-६ साल का ही तो फरक होगा,"

और सास मेरी घडी की सूई पीछे घुमा के इनके बचपन में पहुँच गयीं,


" जब मैं इसकी नूनी खोल के तेल लगाती थी,"


और मैं सोचने लगी ये कौन बड़ी बात है हर माँ करती हैं, जिससे सुपाड़े की चमड़ी चिपके नहीं

लेकिन जो मेरी सास ने बात बताई तो मैं समझ गयी बूआ जी को, वो बोली

तो उसी समय कहीं भी हों वो, उछल के आ जाती थीं, , और उछलता भी था बहुत वो उस समय, लेकिन थोड़ा बड़ा भी हो गया था, और मैं खूब चिढ़ाती थी,
"अरे बूआ भतीजे में तो चलता है, देख लो बड़े होने पे,..."

और वो मुन्ना को छेड़ती भी खूब थीं और वो चिढ़ता भी बहुत था, वो नौवे या दसवे में था, बूआ उसकी स्कूल से आयीं, मुन्ना नेकर पहनता था बस ऊपर से पकड़ के, चिढ़ाते हुए बोलीं,



" क्यों फड़फड़ाता है बहुत जोर से, ....सफ़ेद सफ़ेद निकलता है की नहीं "





उस समय, अरे वही गुलबिया की सास, बड़की नउनिया, मुन्ना की बूआ की तो भौजी ही लगी, ....जबरदस्त मुंहफट, बिना ननदो को गरियाये , तो वो बोली तोहरे मरद से,

" अरे भैया छोड़ा मत, बहुत तोहार बूआ छौंछियान हई, सफेदा उनके अंदर निकाला, ....अरे जेकर भाई तोहरे महतारी पे चढ़त है, ओकरी बहिन को तो जरूर पेलना चाहिए "


और ओहि साल, बूआ क बियाह हो गया। दो साल बाद, मुन्ना इंटर में था, गरमी क छुट्टी, तो यही बूआ का फोन आया की फूफा कहीं महीने भर के लिए जा रहे हैं वो अकेले रहेंगी, तो मुन्ना को भेज दूँ ।


मैंने चिढ़ाया भी उन्हें की, "ननदोई जी वाला काम करवाना है का" तो वो नंबरी छिनार बोलीं,

" हमार भतीजा,... चाहे जो करवाई। "

और गरमी क छुट्टी में कौन लड़का घर रहना चाहता है तो मैंने भेज दिया। जब वो लौट के आया तो मैंने भी चिढ़ा के पूछा, बूआ के साथ मजा आया, ख्याल रखा बूआ ने, ....तो जो शरमाया वो, "

सास की बात काट के मैं बोली,

"जैसे बिल्ली ने छींके का दही खा लिया हो."




सास मेरी मुस्करायीं बोलीं " एकदम " तो बस मैं समझ गयी।

"अच्छा चलो बहुत रात हो गयी है सो जाओ।" वो बोलीं और दुबका के मुझे कस के सो गयी और थोड़ी देर में मैं भी, ...

उसके पहले मैं सोच रही थी,

मन तो मेरा बहुत था आज ये अपनी महतारी पे, लेकिन चलिए आज नहीं तो पांच छह दिन बाद, और मेरी सास भी खुदे गर्मायी हैं हमरे भतार का लंड खाने के लिए तो इनको तो मैं मादरचोद बना के रहूंगी आज नहीं तो पांच छह दिन बाद,

असल में एक बात और थी।

होलिका माई बोलीं थीं, ... ननद हमर पांच दिन के अंदर गाभिन होंगी और हमको तो लग रहा था कल उनके भैया जस हचक के पेले हैं छह बार आपन बीज अपनी बहन की बुरिया में, ...लेकिन बात तो पांच दिन की थी, तो क्या पता कौन दिन ? अब दो दिन तो निकल गया। पहले दिन तो ननद हमर अपने सगे भैया की सेज पे और और आज तो चलिए सहेलियों के साथ तो कउनो खतरा नहीं है। लेकिन बाकी के तीन दिन भी मैं यही सोचती हूँ , कुछ भी कर के,... एक चीज तो ये जरूरी है मेरी ननद रोज अपने भैया क बीज घोंटे, तो जिस दिन भी गाभिन होने का संयोग हो, हमरे मरद के बीज से गाभिन हों,

दूसरे ये तीन दिन उन्हें ननदोई की परछाई से भी दूर रखना होगा। बस तीन दिन और खाली हमार मरद और उनकी बहिनिया, और कुल बीज बच्चेदानी में ,



जेठानी तो जिस तरह से गयीं है छुटकी ननद को लेकर ये पक्का है अब वो बम्बई वाली हो गयीं, साल दो साल में कभी दिवाली, कभी होली और ये ननद भी गाभिन हो गयी तो इनका आना जाना भी तो,... बस मैं, मेरा मरद और मेरी सास, और एक बार मेरी सास को मेरे मरद के खूंटे क स्वाद लग गया न तो,

बस पांच छह दिन और,...उसजे बाद तो फिर न य बच सकते हैं अपनी महतारी पे चढ़े बिना और इनकी महतारी तो खुदे गर्मायी हैं ।



और सास को पकड़ के मैं भी सो गयी


एक दूसरे को पकड़ के क्या माँ बेटी सोती होंगी, जिस तरह हम दोनों सोये।
Bua ki kua me bhi dubki laga rakhi h
 
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