बिना लॉजिक के जिंदगी नहीं चलती...Komal ji you are expert on justifying every act of kinky sex.
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तभी एक साथ इतने बच्चों को जनम देती है...komalrani ! आप अपनी कहानियों में अक्सर एक फ्रेज का उपयोग करती हैं 'कातिक कै कुतिया' लेकिन इस समय जो मै देख रहा हूं उससे लग रहा है कातिक की कुतिया में गर्माहट होती है लेकिन भादों की कुतिया में ज्वाला होती है ।
लोग गाँवों पे बेस्ड कहानी पढ़ने को उत्सुक रहते हैं..सास बेटी बहू के चले जाने से इतनी दुखी थीं तो उनका मन बहलाने के लिए कुछ ऐसी ही बातें कह के मन को डाइवर्ट किया जा सकता था वरना ये गाँवों और छोटे शहरों से पलायन का दुःख तो घर घर का है पर नौकरी भी चाहिए, और इस भाग में फोकस उसी पर था।
एकदम असली कंटाइन सास निकली...भाग ९२ ननद और आश्रम
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" हम को तो लागत है भौजी हम पहलवे दिन गाभिन हो गए, " शरारत भरी मुस्कान से खुश खुश मेरी ननद बोलीं। जो बात मैं मैं कहना चाहती थी, उन्होंने खुद दी। मेरे मरद का बीज खाली नहीं जानेवाला था।
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" लगता तो हमको भी यही है, बनायी दिहु अपने भैया के बाप. लेकिन, ... चला कल तो आराम कर लिया पांच में से दो दिन निकल गए, तीन दिन बचे, लेकिन ये तीन दिन नन्दोई जी की परछाई भी नहीं पड़नी चाहिए। पांचवें दिन के बाद भिन्सारे क जून साथे हम लोग होलिका माइ क नाम ले के चेक करेंगे, पक्का नौ महीने में बिटिया आएगी। "
मैंने अब साफ़ साफ़ बोल दिया।
" भौजी, आज तो कोई दिक्क्त नहीं है, भैया आयी रहे होंगे , और नन्दोई तोहार रात में नर्सों के साथ, लेकिन कल दुपहरिया में सांन्झ तक भी आगए तो तोहार ननद कैसे बचे, " अपनी परेशानी ननद ने बता दी।
बात तो उनकी सही थी, अपने साले की तरह उन्हें भी रोज हलवा पूड़ी चाहिए थी। लेकिन मैंने ये जिम्मेदारी भी अपने कंधे पर ले ली। ननद का गाल चूम के बोली,
" ओकर चिंता जिन करा, आखिर भौजाई सब काहें को होती हैं. कल रात तोहरे परछाई के पास नहीं फटकेंगे, बस जैसे जैसे हम कही,... और बाकी अपने भइया के साथ गपागप, गपागप,..... और एक बूँद बीज क न कही बाहर जाये, न बच्चेदानी के अलावा कहीं और, उनकर गाँड़ मारे क मन भी करे तो बोल दीजियेगा साफ़ साफ़ , की भैया भौजाई क हमरे गाँड़ मार ला, नहीं तो दो तीन दिन रुक जा। "
मेरी बात सुन के ननद हंसने लगी, बोली,' भौजाई हो तो ऐसी , अब हम सोने जा रहे हैं कल रात भर सहेलियों के साथ सब इतनी बदमाश, किसका मरद कैसे करता है, निहुरा के लेता है , गोद में बैठा के पेलता है और वो भी खाली जुबानी नहीं, सब कर कर के आपस में, एक मिनट नहीं सोने दिन। और रात में आपका मरद नहीं सोने देगा।'
तबतक सास की आवाज आयी की वो बाहर जा रही है, ग्वालिन चाची के साथ दूबे भौजी के यहां हम दोनों दरवाजा बंद कर लें।
दरवाजा बंद करने के बाद ननद मुझे अपने कमरे में ले आयी और उन्ही के बिस्तर पर, ….
अपनी सास के बारे में वो बात बताई की मेरे रोंगटे खड़े हो गए।
सास उनकी महा कंटाइन थी ये तो मैं जानती थी,
लेकिन इतनी छिनार होगी मैं भी नहीं सोच सकती थ। साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थी, बच्चे के लिए,
अब हर सास तो मेरी सास की तरह तो हो नहीं सकती थी, मैं जब गौने उतरी थी तो उसके चौथे दिन ही, उन्होंने साफ़ साफ़ मुझसे बोल दिया,
" बच्चे के बारे में न तो तेरे मरद की सास तय करेगी, न तोहार सास, सिर्फ और सिर्फ मेरी छोटी बहू फैसला करेगी, और कोई बोले तो पलट के गरिया के जवाब देना, पेट में तुझको रखना है फैसला तुम करोगी, और सास मेरी खुद मुझे लेके आसा बहू के पास गयीं और तांबे का ताला लगवा दिया, उसी दिन से आसा बहू से मेरी दोस्ती भी हो गयी और सास ने बोल दिया की जब खुलवाना हो ताला तो खुद चली आना, आसा बहू के पास, मुझे बताने की भी जरूरत नहीं है।
लेकिन मेरी ननद की सास, करीब साल भर से मेरी ननद के पीछे पड़ी थीं,
" तोहरे बाद क गौने से उतरी दो दो निकाल दी, एक कोरा में एक ऊँगली पकड़ के चल रहा है, यहाँ तो अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी। "
और करीब छह महीने पहले जब मेरी ननद की पड़ोस की चचिया देवरानी गाभिन हुयी तब से तो वो अगिया बैताल हो गयी।
ननद ने गोली खानी करीब साल भर पहले से बंद कर दी थी, मरद तो अपनी बीबी के साथ कंडोम कभी लगाते नही। छह महीने पहले वो ननद के कमरे में घुस के बिस्तर के अंदर , दवा के डिब्बे में हर जगह चेक कर के देखा और कुछ पुरानी एक्सपायर्ड गर्भ निरोधक गोलियां थीं, बस वो देख के आग बबूला सब उठा के उन्होंने फेंक दिया और मेरी ननद को साफ़ साफ बोल दिया,
" अब ये नीचे क खूनखच्चर बंद होना चाहिए, और उलटी शुरू करो, अब अगर अगले महीने आयी की पांच दिन रसोई में नहीं आओगी तो जउने दिन बाल धोओगी न ओहि दिन खुला झोंटा पकड़ के गुरु जी के आश्रम में ले जाउंगी, एक से एक बाँझिन को प्रसाद दे दिए हैं जहाँ डाक्टर वैद ओझा फ़क़ीर सब फेल हो गए। "
लेकिन अगले महीने ननद रानी को फिर रसोई से पांच दिन छुट्टी लेनी पड़ी, और सास एकदम अलफ,
' गौर रंग, सुंदर बदन ले के कोई का करे, बहू कोई काहें लाता है, घर पोती पोते से भर दे, बंस चलाये और ये महरानी जी, अरे हमरे जमाने में और अभी भी गौने दुल्हिन जिस दिन उतरती है, ठीक नौ महीने बाद सोहर होता है घर में बच्चे की आवाज सुनाई देती है और ये, दो साल से ऊपर हो गए, अभी उलटी भी नहीं शुरू हुयी, ऐसी बहू ले के कोई का करेगा, रूप जोबन का का फायदा, कोई चाटेगा ,
ननद से तो नहीं लेकिन कोई पड़ोसन आती तो अब उससे साफ़ साफ़ बोलती,
" पता नहीं कहाँ से ये बाँझिन घर आ गयी है, हमरे बेटा क, एक तो बेटा और उसकी बहू, पुराना जमाना होता तो साल भर में बहू कुछ नहीं निकालती तो दूसरी ला के बेटे के सेज पर चढाती, "
और पड़ोसन अगर कहती की साधु बाबा के आश्रम में, तो सास बात काट के कहतीं, मैं तो साल भर से कह रही हूँ, गाँव भर की बहुये जाती है लेकिन यही पाँव में महावर लगा के बैठी हैं, लेकिन महीने दो महीने में बात नहीं बनी तो जबरदस्ती ले जाउंगी , गुरु जी का तो बड़ा , और श्रद्धा से मेरी ननद की सास की आंखे बंद हो जाती,
और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,
" लौट आयो मायके से, भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ, लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी गुरु जी के भाग ९२ बाँझिन और आश्रम, और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"
ई बबवा तो अपने आश्रम का गुफा के दर्शन कराय दिहिस....आश्रम
और अबकी जब मेरी ननद होली में मायके आयीं तो सास ने साफ़ साफ अल्टीमेटम दे दिया,
" लौट आयो मायके से, ....भौजाई की पहली होली है, इसलिए जाने दे रही हूँ,... लेकिन होली के बाद झोंटा पकड़ के ले चलूंगी और गुरु जी के पैरों में पटक दूंगी, बड़ी कृपा है उनकी। बोल दूंगी जब तक आपकी कृपा नहीं बरसेगी, ये यही रहेगी आपका गोड़ दबाएगी, मेरी एकलौती बहू है।"
इसलिए ननद की हालत खराब थी, लेकिन ननद हो चिढायी न जाए छेड़ी न जाए, गरियाई न जाये तो ननद कैसी और वो भी मेरी ऐसी भौजाई,
" अरे अच्छा तो है साधु बाबा क हाथ भर क होगा, आपका तो मजा हो हो जाएगा, ....करियेगा सेवा मन भर के और उनके चेले होंगे वो अलग "
लेकिन ननद अलफ, चमक के बोली,
" अरे भौजी, तोहरे मरद अस किसी का न होगा, मिल गया है न हाथ भर का, इसलिए, अरे सात जनम बरत की होंगी तो मेरे भाई जैसा दूल्हा मिला। "
" तो साधुवा क केतना बड़ा है अरे ठीक ठाक होगा, बिना चोदे थोड़े छोड़ता होगा, अरे गाभिन तो करता होगा। " मैंने पूछ लिया।
ननद कुछ देर चुप रही, फिर देर तक हंसती रही, खिलखिलाती रही, फिर अपनी सबसे छोटी ऊँगली, कानी ऊँगली दिखाई, और हसंते हुए बोली, इसकी भी आधी, केचुआ अस।
मेरी ननद को पास के गाँव की उसकी एक सहेली ने सब असली किस्सा सुनाया था।
वैसे तो ननद के गाँव में ही छह सात औरतें जिनके बच्चा नहीं हो रहा था, आश्रम में गयी थीं, महीने दो महीने में सब के पाँव भारी हो गए, लेकिन सब गुरु जी का नाम लेने पर खाली श्रद्धा से हाथ जोड़ लेती। और एक बात ये भी था की ननद की सास भी गुरु जी की साल दो साल से चेली थीं और अब प्रमुख सेविका में थीं, गुरु जी तक उनकी सीधी पहुँच थी। तो शायद इसलिए भी किसी का मुंह नहीं खुला।
लेकिन ननद की सहेली ने सब बात बतायी,
पहली बात तो आश्रम का एक ड्रेस कोड है, एक ही रंग का और एक ही वस्त्र, महिलायें सिर्फ एक साडी पहनती हैं कमर के नीचे लिपटी रहती है और सीना भी उसी से ढंका रहता है ,
पुरुष उसी रंग की एक धोती पहनते है और ऊपर कुछ नही।
जो महिला ' प्रसाद' के लिए जाती है उसे दो दिन रहना रहता है, वो भी दो दिन रही। उसकी सास उसे छोड़ने गयी थी, और सास बहू को ढेर सारे कागजों पर साइन भी करना पड़ता है, और उसके बाद सास को वहीँ से विदा का दिया गया और तीन दिन बाद उन्हें आने को बोला गया।
उसको, ननद की सहेली के पास दो सेविकाएं आयी और उन्होंने उसे, ननद की सहेली को खुद अपने सारे वस्त्र उतारने को कह। वह जगह एक एक आम के घने बाग़ में थीं, एक प्रकोष्ठ था जहाँ एक हवन कुंड था, वो थोड़ा झिझकी, फिर उसे लगा की ये दोनों भी स्त्रियां है और उस इ भी आश्रम का वस्त्र शायद मिले इसलिए, साडी ब्लाउज पेटीकोट तक तो ठीक था, लेकिन ब्रा, पर वो भी उसने उतार दिया। अब वो पूरी तरह निर्वस्त्र थी।
उन दोनों सेविकाओं ने फिर हवन कुंड जलाया और खुद भी अपनी साडी उतार दी और ननद की सहेली को बैठना सिखाया, घुटनों के लेकिन जाँघे पूरी तरह खुली, योनि साफ़ साफ़ दिखनी चाहिए, दोनों स्तन बाहर की ओर उभार कर, सर सीधा लेकिन आँखे झुकी हुईं, कभी भी किसी की आँखों में आँखे डाल कर नहीं देखना है, आँख कंधे से नीचे और गुरु जी या उनके मुख्य शिष्यों के कमर के ऊपर नहीं , और जब बोलने को कहा जाय तभी बोलना है, हाँ वो दोनों उसकी सखियाँ है अगले दो दिन साये की तरह उसके साथ रहेंगी तो उन्हें वो देख भी सकती है बात भी कर सकती है।
और फिर उन दोनों सखियों ने हवन कुंड में कुछ समाग्री डाल कर उसे अग्नि प्रज्वलित करने को कहा, धीरे धीरे ननद की सहेली भी उस माहौल में ढलती जा रही थी, उसने अग्नि जलाई, लेकिन उसके बाद उन दोनों सखियों ने कुछ मंत्र पढ़कर एक नीले रंग का कोई चूर्ण उस हवन कुंड में छोड़ा और तेजी से एक धूम्र रेख निकली, जो बहुत ही मादक, नशीली थी । ननद की सहेली के देह में एकदम वासना की लहर सी दौड़ने लगी,
" अपनी साडी को हवन कुण्ड में डाल दो "
पहली सखी बोली और दूसरी कुछ मंत्र पढ़ रही थी, यंत्रवत ननद की सहेली संजना से अपनी साडी उठाकर हवन कुंड में डाल दी और हवन कुंड भभक उठा।
" पेटीकोट" दूसरी सखी बोली
और संजना ने वो भी अग्नि के हवाले कर दिया।
और पेटीकोट के साथ ही उस दूसरी सखी ने लाल रंग का एक चूर्ण हवन कुंड में डाला, और अबकी जो धुंआ उठा वो पहले से भी ज्यादा नशीला था। वह छोटा सा प्रकोष्ठ पूरी तरह बंद था और सारा धुंआ धीरे धीरे कमरे में फ़ैल रहा था था, लेकिन संजना को बहुत अच्छा लग रहा, खास तौर पर वह धुंआ जब उसकी जाँघों के बीच छू रहा था उसके उरोजों को सहला रहा था,।
और उसके बाद ब्लाउज और ब्रा भी हवन कुंड में दहन हो गए,
अब इन वस्त्रों के साथ ही तुम्हारा अतीत भी दहन हो गया, अब तुम आश्रम की हो, जब तक आश्रम में हो और आश्रम के बाहर भी आश्रम की ही हो "
दोनों सखियाँ साथ बोलीं।
और एक कटोरे ऐसा पात्र निकाल कर, एक चषक से आसव उस पात्र में भर के संजना को दिया। संजना ने जब आधा से ज्यादा उस कटोरे को खाली कर दिया तो दायीं ओर बैठी पहली सखी ने संजना से कटोरे को ले कर बचे हुए आसव का थोड़ा सा पान किया फिर दूसरी सखी को और उसने उस कटोरे को खाली कर दिया।
संजना की आँखे मूंदने लगी जोबन भारी पड़ने लगे, योनि की पंखुड़ियां अपने आप खुलने बंद होने लगीं।
उत्तेजना के मारे उसकी बुरी हालत थी। उसके बाद दो बार और उसी कटोरे से अलग अलग तरह के आसव, और दोनों सखियाँ उसी की तरह निर्वस्त्र और पास में एक तालाब था उसी आम के बगीचे के बीच में वहीँ संजना को रगड़ रगड़ के नहलाया, फिर उस तालाब के पास एक और कमरा था वहां उसे अच्छी तरह तैयार किया। एक कोई लेप दोनों ने संजना के जोबन पे लगाया और पांच मिनट में ही संजना को लगा की बस कोई उसकी चूँची मसल दे रगड़ दे, उसी तरह का लेप जाँघों पे और योनि पे लगाया और संजना की हालत खराब, लेकिन तैयारी अभी पूरी नहीं हुयी थी।
एक कोई जड़ी सी उसे उन्होंने ननद की सहेली संजना की बुर की फांको को फैला के उसके बीच ठूंस दिया और बोला की इसे कस के भींचो और बोलो क्या मन कर रहा है,
मन तो संजना का चुदवाने का कर रहा था संजना का चूत में आग लगी थी, लेकिन अभी भी वो बस बोल पायी,... मन कर रहा है
" अरे साफ़ साफ़ बोल न हम तो तेरी सखियाँ है यहाँ पर इसके बारे में बोलने में कोई रोक नहीं है और लंड चाहिए, चुदवाने का मन कर रहा है तो साफ़ साफ बोलना पड़ता है, अगर कोई गुरु शिष्य तुम्हारे पास आएगा तो तुझे खुद उससे बोलना पड़ेगा, मुझे आपका लंड चाहिए, मुझे आपसे चुदना है, मैं चुदवासी हूँ , चुदने आयी हूँ तेरा लंड मेरी बुर को चाहिए तभी वो चोदेगा, और चुदवाती हुए भी बार बार बोलती रहना वरना वो लंड निकाल लेगा और तेरी ये जलन बिना चुदे शांत नहीं होगी,"
और यह कहकर उन्होंने उसकी क्लिट पर भी कोई महलम लगा दिया, श्रृंगार भी पूरा किया था, काजल, देह पर चंदन का लेप,
गुरु जी के पास पहंचने के पहले वो जड़ी संजना की बुर से सखियों ने निकाल दी। संजना को लगा अब उसकी चूत कुंवारियों जैसी हो गयी है । वो शादी के पहले से चुदवा रही थी और एक दो ऊँगली तो आराम से घुसती थी, लेकिन अब एक ऊँगली भी घुसना मुश्किल लग रहा था।
दोपहर के बाद वो गुरूजी के पास गयी, उसी तरह दोनों जाँघे फैला के बैठी और सर झुका के गुरु जी के चरणों में सर रख दिया।
लेकिन मेरी ननद ने संजना से मुद्दे की बात पूछी,
"बड़ा कितना था"
और संजना ने बोला कानी ऊँगली जैसा या उससे भी छोटा, लेकिन वो इतनी चुदवासी थी की उस समय तो सींक भी मूसल जैसी लगती । और बुर उसकी टाइट भी बहुत हो गयी थी। हाँ गुरु जी झड़े नहीं जल्दी लेकिन कोई ज्यादा भी नहीं बस ठीक ठाक सब की तरह पांच सात मिनट।
और शाम को गुरु जी के शिष्यों ने नंबर लगाया, चार एक साथ आये शाम को और रात में फिर चार बारी बारी से , दो दो घण्टे के लिए। उन सबों की साइज ठीक ठाक थी और ताकत भी। अगले दिन फिर उसी तरह से।
लेकिन हर बार संजना को बोलना होता,
"मुझे चोदो , अपनी संजना को चोदो, "और अगर दो तीन मिनट के अंदर वो नहीं बोलती थी तो वो चुदाई रोक देते, संजना खुद मस्ती में पागल थी।
"हे स्साली ये बोल, मजा आया की नहीं, "मेरी ननद ने अपनी उदास सहेली संजना का मन ठीक करने के लिए चिढ़ाते हुए उसकी ठुड्डी उठा के पूछा,
संजना हँसते हुए बोली, ' स्साली छिनार, अरे कोई लड्डू जबरदस्ती भी खिलायेगा तो लगेगा तो मीठा ही न। फिर तोहरे बहनोई छह महीना साल भर में सूरत से आके सूरत दिखाते हैं, और उसपर भी आने के बाद उनकी बहिन महतारी आगे पीछे, और उसमे भी रात को आधे टाइम तो बाहर ही पिचकारी का पानी निकल जाता है, और कभी बड़ी मुश्किल से घुसा भी तो तो, और उन सबों का भी कोई गदहा घोडा अस नहीं, बस ठीक ठाक, लेकिन एक उतरता था तो दूसरा तैयार रहता था चढ़ने को, तो लड्डू तो मीठा था ही, और ऊपर से वो सब छिनार जो पिलाई थीं उसका असर, एकदम गर्मायी थी
]
मेरी ननद ने संजना से पुछा की तुझे ये नहीं पता चलेगा की तेरे बच्चे के बाप गुरु जी है या उनके चेले,
तो संजना हंस के बोली, अरे वो भी नहीं
फिर उस ने असली खेल बताया की जैसे आजकल सांड नहीं है तो कृत्रिम गर्भधान केंद्र में वीर्य गाय में डाल देते है एकदम उसी तरह मैं पलंग पर थी और एक स्टैंड टाइप थी उसी में दोनों सखियों ने मेरी टाँगे फैला के फंसा दिया, उसके बाद एक मोटा सा इंजेक्शन जैसा उसमे बीज भर के मेरी बुर में डाल के और करीब आधे घण्टे तक मेरी दोनों टाँगे ऐसी हवा में लटकी रही, तो दो दिन में तीन बार वो भी हुआ।
लेकिन ननद जिस चीज से घबड़ायी थीं वो उनकी सहेली ने सबसे अंत में बताई।
मेरी ननद की सहेली संजना गाभिन भी हुयी और नौ महीने बाद बियाई भी, लेकिन,
ब्लैकमेल चालू...आश्रम का सच
तीसरे दिन सुबह जब उसकी सास लेने आने वाली थीं, और वो सिर्फ एक आश्रम की साडी में इन्तजार कर रही थीं, दोनों सखियाँ उसे छोड़ गयी थीं, उसे उन दोनों ने बोला की वो टीवी तब तक लगा के देखे, अभी उसकी सास को आने में एक दो घंटे का टाइम है,
टीवी खोलते ही उसे जोर का झटका, जोर से लगा।
टीवी में वो खुद थी, एकदम निर्वस्त्र उस तालाब में नहा रही थी , दर्जनों उसकी उसी तरह के चित्र, फिर सेक्स वाले, गुरु जी के साथ का नहीं था, लेकिन जितने गुरु शिष्यों के साथ था सब, हाँ मर्दों का चेहरा किसी में बहुत साफ़ नहीं था, लेकिन उसका चेहरा एकदम साफ़ साफ़ और उस से बढ़ कर उसकी आवाज,
'हाँ चोदो न, अरे पूरा लंड डाल के पेल, प्लीज चोदो, बहुत मजा आ रहा है चुदाने में' और बीच बीच में वो अपना नाम लेकर भी, 'अरे संजना को चोदो न ऐसी चुदवासी तुझे कहीं नहीं मिलेगी, 'करीब घंटे भर .कई में तो दो दो मरद एक साथ उसके ऊपर चढ़े है और वो सब को उकसा रही है,...
बेचारी संजना की ऐसी की तैसी हो गयी । गोरा चेहरा एकदम काला, उस समय तो एकम होश ही नहीं था, सास ने बोला था, जो जो गुरु जी कहें, उनके आश्रम में कहा जाए, तो वो, और फिर ऊपर से वो जो पेय पिलाया था, जानती तो वो भी थी की चोदी जायेगी, लेकिन इस तरह से फोटो बना के, और कहीं उसके मरद, गाँव में कोई, उसके मायके में, फिर तो बस पोखरा ताल भी नहीं मिलेगा,
संजना की बोलती बंद थी
तब तक दरवाजा खुला और एक मुख्य सेविका, थोड़ी भारी बदन की, दो दिन में ही संजना ने समझ लिया था इनसे सब डरते है, अगर वो घूर के भी देखती है तो गुरु शिष्यों के चेहरे पे पसीना आ जाता था।
संजना भी जैसे उसे सिखाया गया था घुटने के बल बैठ गयी। आँखे नीची।
" फिल्म अच्छी लगी न नंबरी चुदककड़ लग रही हो। मुंह में भी कितना मस्त चूसा है। फिल्म तो बहुत लम्बी है लेकिन एडिट कर के छोटा कर दिया है तुहारे देखने के लिए, चाहोगी तो पूरा मिल जाएग। और हाँ रोज रोज भी देखना चाहो तो ये तेरा मोबाइल हमने रखवा लिया था,...बस उसी में है,... संजना नाम का फोल्डर है खोल के देख लो,"
करीब डेढ़ सौ फोटुएं, उसकी हर हालत में चूसते हुए,
खुद मरद के ऊपर चढ़ के चोदते हुए,
कहीं गांड मरवाते,
लेकिन इस में मर्दो को भी चेहरा एकदम साफ़ था,
ज्यादातर में तो उसके मायके के मर्द थे, बीसों तो उसके अपने सगे छोटे भाई के साथ, भाई उससे चार पांच साल छोटा, अभी रेख आ ही रही थी, इंटर में गया था,
और कई उसके ससुराल के, कोई देवर , कोई घर में काम करने वाला, उनके साथ
संजना से न रोया जा रहा था, न आवाज निकल रही थी, बस चेहरा पथराया सा, अगर कहीं ये सब, बस सोच सोच के सर फटा जा रहा था, उसका तो जो होना था, लेकिन कहीं उसको भाई के साथ तो उसके मायके में उस बेचारे की भी ऐसी की तैसी,
फिर वो मुख्य सेविका मुस्करायी, बोली,
' अरे इन मर्दो की फोटो तेरी मोबाइल में ही मिली, तेरे छोटे भाई की तो बहुत थीं, मुझे तो लगा की अभी छोटा है, लेकिन वो तेरी सखी बोली नहीं उसका चेहरा अच्छा जंचेगा, वो एक्सपर्ट है किसी का चेहरा कहीं का कहीं लगाने में, कोई माई का लाल पता नहीं कर सकता, वो तो जिद कर रही थी वो तेरी भाई के साथ वाली, उसके पास भेजने के लिए,... लेकिन मैंने मना किया। "
फिर रुक के वो मुख्य सेविका बोली,
" मैंने बोला, अरे ये माल बहुत मस्त है, हम लोगों की सब बात मानेगी, जब बुलाएँगे दौड़ी आएयेगी, कल एक रात में बारह बारह मरद चढ़े उसके ऊपर, कैसे मस्त होके सबसे चुदवाया, और स्साली जरा भी चूं चपड़ करने की सोचेगी भी तो उसका स्साला वो जो चिकना भाई है,... बुला लेंगे उसको भी पूजा के नाम पे, अभी तो सिर्फ चेहरा उसका है, फिर सच में इसके भाई से चुदवायेंगे, ...और वो स्साला नमकीन, लौण्डेबाज भी बहुत हैं, तो इसके सामने उसकी गाँड़ मरवाएँगे। क्यों अभी कोरा है न, फटेगी तो बहुत चिल्लायेगा, ....लेकिन जरूरत पड़ेगी नहीं "
और एक मोबाइल दिखाते बोलीं
तेरे मोबाइल का सिम और पूरा डाटा हमने क्लोन कर लिया है तो भेज तो अभी भी सकते है,... और जिसको भेजेंगे लगेगा तेरे मोबाइल से ही गया है। एक और वीडियों वाला भी है संजना २ के नाम से, तेरी आवाज बड़ी मस्त और एकदम साफ आयी है।"
संजना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बस सुनाई पड़ रही थी उस मुख्य सेविका की आवाज, उस का चेहरा देख के ही उस आश्रम वालियों की मूत निकल जाती थी, तो संजना तो, कभी उसे अपने भाई का भोला भाला चेहरा दिखाई पड़ता तो कभी ताल पोखर,
संजना ने वो भी खोला, उसमे भी १८ गिफ और ६ चार मिनट के वीडियो थे।
मुख्य सेविका समझ रही थी, उसके बात का असर जैसा वो चाह रही थी वैसे ही हो रहा था। चिड़िया जाल में फंस गयी थी, थोड़ा तो फड़फड़ाएगी ही , और इसी फड़फड़ाने को देखने में ही तो बहेलिया को असली मजा मिलता है। वो बोली,
" हमने किसी को भेजा नहीं है, क्यों भेजेंगे,... हां अगर तेरा मन करे तो भेज भी सकते है तेरे ही नंबर से। दोनों तेरी सखियाँ रोज बात करेंगी तुझसे , तुझे ही उन्हें काल करना हो, अगर किसी दिन तेरी काल न आयी तो हम समझ जायेंगे की तो चाहती है की हम भेज दे। और वो फ़ार्म में हमने पहले ही तुझसे और तेरी सास से साइन करा लिया था, की हर पूर्णिमा और अमावस को दो दो के मेडिकल चेकअप के लिए आना होगा । तो बस पांच दिन बाद ही पूर्णिमा है आ जाना। अभी तेरी सास को भी बता दूंगी।
मेरी ननद का भी चेहरा एकदम बुझ गया था, बता वो अपनी सहेली संजना की बात रही थीं, लेकिन वो जानती थीं अगर वो आश्रम गयी तो उनके साथ भी यही सब, बड़ी मुश्किल से बोलीं
संजना बोली बस समझो रंडी बना के,
लेकिन संजना की सास बहुत खुश , जब उन्हें बताया गया की पूजा बहुत सफल रही, गुरु जी बहुत खुश थे उनकी बहू की भक्ति से। डिलीवरी का भी सारा खर्चा आश्रम उठाएगा, हाँ उस के गर्भ पर एक दुष्ट छाया थी जो अब करीब करीब हट गयी है लेकिन पूर्णिञा और अमावस्या को वो प्रबल हो उठती है, इसलिए बहू और उसके गर्भ की रक्षा के लिए बहू को अगले पांच महीने तक पूर्णिमा और अमावस्या को दो दो दिन के लिए, लेकिन ये पूरी तरह से बहू और सास की मर्जी है, हाँ उसके बाद बहू और होने वाले बच्चे को कुछ हुआ तो गरू जी की जिम्मेदारी नहीं होगी, क्योंकि आश्रम की पुण्य भूमि में तो बुरी शक्तियां नहीं घुस सकती लेकिन आश्रम के बाहर की वो जिम्मेदारी हम नहीं ले सकते।
संजना की सास तो उस प्रधान सेविका के आगे दंडवत हो गयी और गर्दन पकड़ के बहू को भी, और बोलीं
" गुरु जी के लिए जिंदगी हाजिर है। अरे दो दिन का जितना दिन चाहे,.... पांच दिन बाद पूर्णिमा है,... मैं खुद चौथे दिन उसको ला के छोड़ जाउंगी।
" तो क्या ब्लैकमेल का डर दिखा के वो लोग, संजना बीबी को,.... "
मेरी बात पूरी नहीं हुयी थी की मेरी ननद ने काट दी और बोली,
" अरे नहीं भौजी चार आने का खेल तो अभी बाकी था, असली जो परेशानी हुयी बेचारी को। "
हुआ ये की पूर्णिमा के दिन एक महा उत्सव होता था जिसमे बाहर के शहरों से भी गुरु जी के शिष्य आते थे,
और बस उन के साथ, वो जो सखियाँ थी वो ही संजना को बताती थी, किसके साथ,
और हर दिन चार पांच मरदों के साथ,
उसी तरह अमावस्या को भी दिन , लेकिन अगली पूर्णिमा को संजना के पाँव से ज़मीन खिसक गयी।
उस दिन सखी ने उसे जिस मर्द के साथ भेजा था उसके साथ उसे पूरे दिन और रात को रहना था, यंग लड़का था खूब पैसेवाला, पेलने में भी मस्त, बात करने में भी, कमरे के अलावा रात में आम की बाग़ में भी दो बार चुदवाया उससे संजना ने,
लेकिन जब उसने बोला की संजना को उसने कैसे पसंद किया तो,
वो कोई गुरु जी का शिष्य नहीं था, एक एन आर आयी था जो तीन महीने के लिए हिन्दुस्तान आया था, वहीँ महीने भर पहले उसने एक एस्कॉर्ट साइट पर संजना की फोटो देखी, लिखा था , पूर्णिमा की रात को इंडियन विलेज वोमेन इन इंडियन विलेज, बस उसने बुक कर लिया,
और हर बार पूर्णिमा और अमावस को भी आयी हुयी लड़कियों की पूरी रिकार्डिंग होती और वो उनके मोबाइल में, यहाँ तक की ब्ल्यू फिल्म भी कुछ बनाने वालों को, ऐसी लड़कियां जो खुल के हिंदी में देसी जुबान में बोल सके, ....और कोई देसी बैंग करके साइट है वहां पे चार फिल्मे भी,
हाँ संजना ने बोला, की शुरू में तो ताल पोखर सोचती थी, लेकिन उसकी सास छाया की तरह और जब महीना नहीं हुआ, उसके बाद एक बार वो गयी भी, पर उसे लगा अब वो एक नहीं दो जन है और बच्चे की जान लेने का, बस वो वापस आ गयी और उसकी सास खुश मरद खुश तो लेकिन उसके पति भी कुछ ख़ास नहीं थे और एक बार जब उसकी माहवारी रुक गयी तो वो भी काम पर सूरत चले गए,
नंदोई का भी पूरा इंतजाम हो गया और कंटाइन सास का मुँह भी बंद...ननद
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लेकिन मेरी ननद की हालत खराब थी,
उनकी सास ने बोला था, की होली के बाद तेरी एक न सुनूंगी, तुझे झोंटा पकड़ के खिंच के ले जाउंगी गुरु जी के पास, जरूर कोई दोष है तेरी बच्चेदानी में, जबतक पूजा कर के वो ठीक नहीं कर देते मैं गुरु जी का पैर पकड़ लूंगी, इत्ते लोगों की कोख हरी किये तो मेरी बहू को,
ननद कुछ ज्यादा सीरियस हो गयी थी, और एकदम उदास भी। कोई भी हो जाता।
बात बदलने के लिए मैंने पूछा तोहार सास,.... बेटी होने पे कहीं,
हँसते हुए ननद बोली,
" इस मामले में वो भली है, हर बार कहती है, पोता होय या पोती हमके तो आंगन में किलकारी सुनने से मतलब ये महतारी के हाथ में थोड़े है की पेट में कौन आता है, ये तो भगवान जी सोच समझ के भेजते है , जॉन दिन खुशखबरी सुनियबो , सोने के पायल गढवाईब, भले हमें तोहरी महतारी के अपने समधिन के सोनार के यहां गिरवी रखना पड़े।
अब तुही बतावा घरे से बाहर निकलना मुष्किल है तोहार चचिया सास, हमार देवरान निकलते टोकतीं है, कउनो ख़ुशख़बरी, का बोली, फिर झट्ट से बोल पड़ती है अरे हमार बहुरुया नयको, ,,,,रोज खट्टा मांग मांग के, दो महीना के बाद का दिन निकला है, चैत का, जेठ में गौना हुआ था, साल भर के पहले,..अरे मनई बहू लाता है तो खाली रूप जोबन देख के थोड़े, अइसन चांदनी अस रुप कौन काम क अगर बाँझिन निकल जाए, बंस न चले "
" अब आप लौटिएगा ससुरे न तो पहुँचते खट्टा माँगिएगा, पक्का, सास एकदम खुश हो जाएंगी "
मैंने ननद से कहा और वो खिलखिलाने लगीं ।
ननद भौजाई हों और छेड़खानी न हो, फिर ननद ने अपनी इतनी बड़ी परेशानी का राज खोला, और अब उनका मन खुश था,
जैसे बच्चों को छेड़ते हैं, चींटी चींटी गयी, कहते हुए मेरी उँगलियाँ, ननद के साडी साये के अंदर, और मेरे पंजे में वो खजाना जिसके लिए मेरा साजन बचपन में बेचैन रहता होगा दोनों रेशमी फांके मुट्ठी में, मैं मसल रही थी, रगड़ रही थी, और ननद सिसक रही थी, और छेड़ते हुए बोल रही थी,
" रात भर इनका मरद टाँगे फैलाये रहेगा,... और दिन में ये, "
" एकदम ननद रानी " और घचाक से दो ऊँगली सीधे बुर में पेलते हुए बुर फैला के बोली,
" अरे एही बिलिया से नौ महीने बाद अँजोरिया अस गोर, मखमल अस मुलायम,... हमरे मरद के बीज क जनमल बिटिया निकलेगी, तब ननद रानी टांग फैलाना पडेगा,.... और फिर पूछूँगी, "
" अरे भौजी, तोहरे मुंहे में घी गुड़, तोहरे ननदोई क छिनार महतारी, जाइके बताउंगी,.... हे हे भौजी, बिटिया निकरेगी तो चौड़ा हो ही जाएगा अभी से काहें चौड़ा कर रही हो "ननद हलके से चीखती बोलीं, अब मैंने एक साथ तीन ऊँगली पेल दी थी जड़ तक अपने मर्द की बहिनिया की बुर में
" जिससे हमरे बेटीचोद मरद के बिटिया क निकरे का रास्ता आसान हो जाये "तीनों जड़ तक धंसी ऊँगली गोल गोल घुमाते मैं बोली
ननद मेरी खिलखिलाने लगी, बार बार मेरी बात दुहरा रही थीं,
बेटीचोद मरद, अरे बेटीचोद मरद, ....अरे भौजी हो तो ऐसी अपने मरद का आगे का भी रास्ता साफ़ कर लिया, ...वैसे भी बाप बेटी के बीच मैं नहीं पड़ने ,वाली। "
लेकिन लगता है ननद को एक बार फिर वो साधू वाला चक्कर याद आ गया और वो फिर घबड़ा गयी, एकदम उदास, सोने ऐसा चेहरा झांवा हो गया।
" मोर भौजी, कैसे भी, भौजी, हमें ससुरे जाय के पहले, ...हो जाय, पक्का सबूत के साथ नहीं तो हमार सास कनटाइन , जन्म क छिनार, बिना ओह साधू के यहाँ ले जाए,...."
मैंने ऊँगली करनी तेज कर दी और अंगूठे से क्लिट को छेड़ते हुए, समझाया,
" अरे ननद रानी हम इस घर में कैसे आये, कौन लाया, देखने आप गयीं थीं, गौने क तारीख तुहि तय करवाऊ, तो ये तो, ये देखो होलिका माई क आशिर्बाद कभी गलत नहीं हुआ, पांच दिन के अंदर बोलीं थीं, तो मेरा तो बिस्वास है की पहले दिन ही गाभिन हो गयी लेकिन होलिका माई पांच दिन बोलीं थी तो पांच दिन के बाद ही जांच करेंगे। दूसरी बात हमरे मरद क बीज क असर हमसे ज्यादा कौन जाने , साल भर क ठूठ पे वो मुट्ठ मार के गिरा दें तो पेड़ हरिया जाए और तू तो उनकी सगी बहन हो। एकदम मजा ला लेकिन दो बात हमार सुन ला,
" का भौजी, " कान पार के मेरी ननद बोली
" देख लीजिये, पांच दिन में दो दिन तो बीत गया अब तीन दिन बचा है तो तीन दिन आप और आपके भाई एकदम मरद औरत की तरह , ...जैसे रोज गौने की रात हो, और आज से मैं भी नहीं, ....इसलिए की आप दोनों के बीच एकदम वही वाली बात,
देखिये गाभिन होते समय और गाभिन होने के पांच छह दिन तक मरद मेहरारू एकदम मस्त हो के अगर खुल के चुदवाती हैं तो गर्भ पे अच्छा असर पड़ता है, अरे बिटिया रानी भी तो सीखेंगी, पेट से सीख के आएगी,
लेकिन बस दो बात एक तो गांड मत मरवाइयेगा, मैं उनको भी बोल दूंगी, दूसरे चुसम चुसाई तो ठीक है लेकिन पानी हर बार बच्चेदानी में इसलिए आप कभी ऊपर हो के मत करियेगा, करने दीजिये उन्ही को मेहनत, ऐसे ही बिना मेहनत के बेटी t मिलेगी क्या, " मैंने समझाया।
" लेकिन भौजी, तोहार ननदोई कल, " एक अपनी परेशानी और मेरी ननद ने बतायी,
" ये बतावा ये भौजाई देख सुन के ले आयी थी तो खाली अपने भाई से चुदवाने के लिए, मैं हूँ न आज से लेके तीन दिन तक ननदोई जी क छाया भी नहीं पड़ने दूंगी, बस आप और ये बिटिया क बाप, " पेट पे हाथ सहलाते हुए मैं बोली और साथ में ऊँगली करना तेज कर दिय।
" भैया तो बाद में झाड़ेंगे लेकिन लगता है भौजी पहले ही झाड़ देंगी " लेकिन नाम उनके भाई का ही लिखा था। उनकी बाइक की आवाज मैं पहचानती थी, हम दोनों दौड़े साथ साथ दरवाजा खोलने।
लगता है नंदोई जी ने नर्स के रूप में अपने रात का इंतजाम कर लिया है....भैया बहिनी
और मेरी ननद ने अपने भतार को, पेट में बढ़ रही बेटी के बाप को पकड़ कर गले से लगा लिय।
ये मुझे देख के मुस्करा रहे थे और इन्होने कस के मुझे आँख मारी, मैं समझ गयी की ये कोई शरारत करने वाले हैं।बड़े सीरियस हो के इन्होने अपनी बहन, मेरी ननद को ढांढस बंधाते हुए कहा,
" जीजा ठीक हैं परेशानी की कोई बात नहीं है। मैंने हस्पताल में भर्ती करा दिया है, डाक्टर नर्स सब देख रहे हैं,... कल तक देखो, "
अब तो मेरी ननद की हालात देखने लायक थी, एकदम सूरत उतर गयी ।
" क्या हो गया उनको, बताओ न अभी सुबह तो उनसे बात हुयी थी, एकदम खुश थे, कुछ नहीं बताया उन्होंने और अब भर्ती करना पड़ा,... कुछ तो बताया होगा डाक्टर ने "
ननद एकदम परेशान,...मरद कितना भी छिनरा क्यों न हो, है तो मरद ही
मैंने उनसे इशारे से कहा बेचारी को और परेशान न करें,
लेकिन उनको चिढ़ाने में मजा आ रहा था अपनी बहन को, बोले
"घबड़ा मत, सब ऊपर वाला करता है, ठीक हो जाएंगे, डाक्टर ने अभी आब्जरवेशन में रखा है। वहां मुझे भी जाने की इजाजत नहीं है सिर्फ नर्स और डाक्टर, शाम को बताएंगे, डाक्टर लेकिन अपने मरद की बड़ी चिंता है और भाई की कुछ नहीं, सुबह से एक प्याला चाय भी नहीं गयी है , पहले चाय पिलाओ कुछ खिलाओ तब बोली निकलेगी।"
मैं जाती हूँ चाय बनाने, मैं बोली लेकिन ननद ने मुझे रोक लिया और बोलीं,
" अरे नहीं भौजी, मैं बना के लाती हूँ चाय " वो ननदोई जी की हाल सुनने के लिए बेताब थीं।
और उनके किचेन में घुसने के पहले ही ननद के भैया ने मेरे होंठों से अपनी प्यास बुझा ली, मैं कुछ बोल पाती, कुछ पूछ पाती, उनकी जीभ मेरे मुंह में घुस गयी थी और एक हाथ मोटे मोटे चूतड़ों पे मेरे और दूसरा सीधे जोबन पे, क्या कस के दबाया उन्होंने मेरी जाँघों के बीच वाली चिड़िया उछलने लगी।
उन्हें देख के मैं गीली हो जाती थी और बाँहों में आने के बाद तो,...
मैंने फिर कुछ पूछना चाहा तो उन्होंने मुस्कराकर मेरे होंठो पर ऊँगली रख के चुप करा दिया।
नन्द रानी जल्द ही चाय और हलवा बना के अपने भैया के लिए,
वो बेचारी ननदोई जी का हाल सुनने के लिए बेताब थी लेकिन ये भी आज बदमाशी पे उसी तरह सीरियस हो के बोलो,
" हमको मालूम है जीजा जी आप से बात किये थे, तब तक सब ठीक था, लेकिन जब हस्पताल लौटे उसी के बाद, ....लेकिन कउनो चिंता की बात नहीं है, जिस वार्ड में जीजा के दोस्त है प्राइवेट वार्ड है उसी के बगल में डीलक्स वार्ड है, उसी में। एक नर्स २४ घंटे उन्ही के साथ हालचाल उनका देखने के लिए, एक और साथ में है कउनो वो नर्स को कहीं बाथरूम वाथरूम जाना हो तो, एकदम अकेले नहीं रहेंगे, पूरी जांच होगी,"
मैंने नीचे से जोर से इनकी टांग में पैर से मारा , बहुत हो गया बेचारी मेरी ननद का चेहरा उतरा गया, और वो मेरी ओर देख के मुस्कराने लगे
ननद समझ गयी और वो भी मुस्कराते बोली,
"तोहरे जीजा भी हमके एक नर्स के बारे में बताये थे, उससे पूछे थे की वो खाली सुई लगाती हो की लगवाती हो"
अब वो हंसने लगे ,
"एकदम वही, चम्पाकली नाम है लेकिन जीजा का दोष नहीं है उस के हैं भी डबल डबल,... किसी का भी मन मचल जाएगा।
और पूरा हस्पिटल उनको बहनोई मान के, खास तौर से सब नर्से जीजा जी जीजा कह के,... तो उसी की डयूटी लगी है उनके कमरे में, एक उसी की तरह की और है भरी भरी उसका पिछवाड़ा देख के जीजा मोहाये, थे और वो भी जीजा को बहुत लाइन मार रही थी, तो अब आराम करेंगे। अब जिस कमरे में जीजा के दोस्त हैं उस कमरे में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए बगल का एक डीलक्स वार्ड था उसी में जीजा को भर्ती करा दिया, चेक अप और आब्जरवेशन के नाम पे
मैं और ननद जी मुस्करा रहे थे लेकिन फिर ननद के भैया ने असली बात बताई
लेकिन असली पेच एक और था, उस अस्पताल में विजिटंग के टाइम के अलावा कोई नहीं रह सकता था। वैसे तो इनके दोस्त का था तो कोई बात नहीं लेकिन दो दिन के लिए एक टीम आयी थी आज ही वो चेक करने वाली थी सब नियम फॉलो हो रहे हैं की नहीं, इसलिए ननदोई जी को एक एडमिट कर दिया गया, अब अपने दोस्त के बगल वाले रूम में रह भी लेंगे और बाकी सब भी इंतजाम का फायदा उठा लेंगे।
ननद बहुत जोर से मुस्करायीं और इन्हे खूब रसीली निगाह से देख के बोली, " बेटीचोद "।
मैं और मेरी ननद रसोई में,.... और ये रात भर के जगे थके, सोने चले गए, आज रात फिर रतजगा करना था बहन के साथ ।
मैंने इन्हे साफ़ साफ समझा दिया था की अगले तीन दिन तक मैं दूर ही रहूंगी, सिर्फ ये और इनकी बहन, और सब बीज बच्चेदानी में जाना चाहिए।
रात में मैं अपनी सास के साथ सोई और ये, अपनी बहन के साथ ।
लेकिन इस लड्डू से ननद का दाढ़ भी गीला न होगा...Superb update
Kani ungli jesa. Ab laddu koi apni marzi se khaye ya kisi aur ki marzi se , hoga to meetha hi. Wow
सास अपनी बेटी का दुःख पहचानती हैं...Kya update diya hai ma'am. Maza aa gya. Nanad rani ki Masti aur ashram ki kartoot. Isiliye nanad rani in sabke liye turant maan gayi. Abhi to teen din bache h, dekho kaise kaise hota hai.
Sasu ne nahi pucha ki tum mere sath to tere pati ke sath kaun aur kyu ?
Well, I m you Jabra fan.