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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

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भाग ९९
ननद की रात -ननदोई के संग
२३,२४,८२५'

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ननदोई के चहेरे पे मुस्कान आ गयी।


मैं भी मुस्करायी और बोली,

“ ननदोई बाबू, जैसे खेत तैयार करते हैं न बीज डालने के पहले, तो जो आप लड्डू खाये हैं वो खेत तैयार करने के लिए,

और जब ननद हमार मूत के आएँगी न तो वो एक लड्डू और दी हैं, मैं यही रख दे रही हूँ, वो मेरी ननद अपने हाथ से आपको खिलाएंगी, और उसके दो फायदे हैं। एक तो पहले वाले का सफाई वाला असर ख़त्म हो जाएगा, दूसरे बीज का असर जबरदस्त होगा । उन्होंने कुछ और बतया है लेकिन वो सब तब बताना है, जब इन दोनों लड्डुओं का असर हो जाएगा। आज कल चेक करने वाली पट्टी आती हैं न,...


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मेरी बात काट के नन्दोई जी बोले, " हमे मालूम है, केतना हम लाये थे। जब जब डाक्टर के यहां से आते थे, रोज सबेरे मूतवा के चेक करवाते थे, लेकिन वही एक लाइन। दो लाइन देखने को तरस गए। "

" अरे तो अबकी सलहज हैं न आपके साथ, कल दिखाउंगी दो लाइन आपको, अभी भेजती हूँ ननद रानी को , आज ज़रा उन्हें गौने की रात याद दिलाइएगा, हचक हचक के, कल दो लाइन होगी तो नेग तो लूंगी ही मेरी दो शर्त है, "

मैं बोल ही रही थी की नन्दोई जी काट के बोले

" एडवांस में मंजूर "

" और भी कुछ बात है लेकिन वो सब दो लाइन दिखने के बाद " और मैं बाहर निकल गयी।

--

ननद को मैंने आज खूब ढंग से तैयार किया कोहनी तक चूड़ी, पैर में रच रच के महावर, हजार घुंघरू वाली पायल



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और सबसे अंत में जो नन्दोई जी से बात हुयी थी उसमे से दो बात बतायी,

एक तो पहले राउंड के बाद मूतने के लिए जरूर निकले,

दो लोटा पानी पी के जाएँ सेज पे और दूसरी जब मूत के आएं तो मैंने एक लड्डू रखा है वो खिला दें अपने साजन को, और उन्हें उकसा उकसा के चुदवाये। हाँ सुबह मैं आउंगी आज की तरह, एकदम भोरे और फिर वही चेक करुँगी ननदोई के सामने स्ट्रिप दिखा के, बाकी का मेरे जिम्मे "

और रात भर खूब घमकच, घमकच, हुमच हुमच के ननद की, उनकी चीखें, सिसकियाँ, पायल के छनकने की, कंगना के खनकने की आवाज, बगल के कमरे में बहन हचक हचक के चुद रही हो तो कोई भी भाई जोश में आ जाएगा, और मैं भी उनसे पांच दिन से दूर तो मैं तो उनसे भी ज्यादा बौराई थी, हाँ पहले राउंड के बाद करीब, एक डेढ़ घंटे के बाद, ननद के कमरे से आवाजें आना बंद हुयी, बस दरवाजा खुलने की हलकी सी आवाज हुयी और मैं भी बाहर।





यहाँ भी इंटरवल चल रहा था, कच्चे आंगन में नाली के पास बैठी ननद, मैं समझ गयी तीर चल गया।



वो एक लड्डू, दूबे भाभी के दिए शिलाजीत से बना, उसने लौंडो को इतना पागल कर दिया था की सब ने ढूंढ ढूंढ कर के अपनी सगी चचेरी बहनो को चोदा, दिन भर चोदा ऐसी ताकत थी उस लड्डू में, और ननदोई जी ने तो दो दो खाये थे।



इन्हे आज फिर गेंहू के खेतो पे जाना था, एकदम मुंह अँधेरे, भोर अभी हुयी भी नहीं थी ठीक से। और आज दिन भर बाहर ही रहना था उन्हें, पहले गेंहूं की कटाई का इंतजाम करना था, फिर मंडी समिति, कुछ शहर में काम था।

बल्कि बहुत रात बाकी थी, लेकिन खेती किसानी का काम, कई बार तो हाड़ कंपाने वाले जाड़े में माघ पूस में रजाई में से निकल के गेंहू में पानी पटाने, कभी जब भी लाइट आये तब भी, लेकिन मुझे अब आदत पड़ गयी थी। और उधार न ये रखते थे न मैं , बचा खुचा राउंड दिन दहाड़े तो आज भी मैं जानती थी कल जब एक बार मेरी ननद विदा हो जाएंगी तो मेरी खैर नहीं,

खैर अभी तो मैं ननद रानी की खैर देखने उनके कमरे के बाहर झाँकने पहुंची। चीख पुकार की आवाज तो मेरे कमरे में भी आ रही थी लेकिन सामने से देखने का मजा और ही है, और अगर नन्द हचक के चोदी जा रही है, रगड़ी जा रही है और उसमे कुल हाथ भौजाई का हो तो देखने का तो बनता है न , और अभी जो हो रहा था वो तो सिर्फ ट्रेलर था। जो दो लड्डू मैंने उन्हें दिए थे उस का असर था, पहला वाला तो तब भी गनीमत था, और उसी में मेरी ननद थेथर हो रही थी।

असल सवाल ये था की नन्दोई को कुछ तो लगना चाहिए था की कुछ अलग हो रहा है जिससे वो मेरी ननद को गाभिन करने में सफल हो रहे हैं ,

चोदू तो वो थे ही औजार भी जबरदस्त था और चोदने का तरीका भी उन्हें मालूम था।

आज सुबह से मेरी सास की गांड चिल्ख रही थी, और उन्हें देख के मैं और नन्दोई मुस्करा रहे थे ।

तो वो जो दोनों लड्डू थे, बस जो दूबे भाभी ने शिलाजीत के लड्डू देवरों के लिए तो बस उसी की डबल डोज और साथ में वीर्य वर्धक भी, लेकिन उस के साथ मैंने कुछ कामोत्तेजक द्रव की बूंदे भी मिला दी थी की

और असर साफ़ था, खुली खड़की से मैं खुला खेल देख रही थी, मरद तो मेरा खेती किसानी के चक्कर में और मैं अपने ननद नन्दोई का हाल,



ननद ने मुझे देखते हुए देख लिया और मुस्करा के ऊँगली से इशारा किया दो राउंड

लेकिन दो राउंड में ही वो थेथर हो गयी थीं और यही मैं चाहती भी थी, लेकिन नन्दोई जी पे थकान का कोई असर नहीं था, उनका मूसल वैसे ही तना खड़ा था और खिलाड़ी तो वो पक्के थे ये मैं कई बार देख चुकी थी।

जानबूझ के वो ननद को गरमा रहे थे,

कभी अपना खुला सुपाड़ा ननद के दोनों निचले होंठो पे रगड़ते, ऊपर दाने पे मसलते तो कभी कस कस के ननद के जोबन को चूसते, कुछ देर में ही वो तड़पने लगीं,
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" करो न " चूतड़ उठा के वो बोलीं

" क्या करूँ बोल न मेरी छम्कछल्लो " उन्हें छेड़ते नन्दोई जी बोले और कस कस के मेरी ननद की दोनों चूँची मसल दी,

उईईईईई ओह्ह्ह्ह जोर से वो चीखीं और अपने पति की चूम के बोलीं

" मेरे राजा, पेल न अंदर, काहें बाहर से रगड़ रहे हो "

" कहाँ पेलू , क्या पेलू साफ साफ़ बोल न " मुस्करा के बोले और झुक के मेरी ननद की क्लिट कस कस के चूस ली। बस ननद ने क्या चूतड़ उछाले उनका बस चलता तो खुद पकड़ के घोंट लेती अपने अंदर और लगी गरियाने

" स्साले तेरी छिनार माँ तो यहाँ है नहीं न वो कटखनी मेरी ननद है, किसके अंदर पेलोगे, अरे पेलो अपना लंड आग लगी है मेरी बुर में :
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और ननदोई ने दुहरा कर के ननद को क्या जबरदस्त पेला, बंद कमरे में भी उन्हें तारे नजर आ गए होंगे। एक धक्के में ही आधा मूसल अंदर था

" उययी ओह्ह्ह नहीं अरे ऐसे नहीं ओह्ह रुक स्साले तेरी माँ की, ओह्ह्ह "

ननद चीख रही थीं चिल्ला रही थीं अपनी सास ननद को गरिया रही थीं लेकिन गाली सुन के तो सब मरद और जोस में आ जाते हैं और जब पूरा लंड अंदर घुस गया तो बस लंड के बेस से उनकी क्लिट रगड़ते हुए कभी कचकचा के उनके गाल काटते तो कभी चूँची पे दांत गड़ाते


ब्याहता मरद औरत की चुदाई का यही तो फायदा है, बुर में पानी डालने के पहले मरद कभी नहीं सोचता कहाँ गिराऊं और मन आने पर कस के गाल, और जोबन दोनों को काटता भी है और नोचता भी है। और औरत भी न लजाती है न शर्माती है न उन निशानों को छिपाती है ,

मैं खुद गौने की रात के अगले दिन सबेरे बड़ी कोशिश की उन निशानों को छुपाने की लेकिन दो तीन दिन में समझ गयी,



फिर मेरी सास ने भी मुझे समझाया, और मैं खूब लो कट चोली पहन के जिससे उनके दांत के नीचाँ साफ़ साफ़ मेरे जोबना पे, होंठ एकदम सूजे सूजे, दोनों गालों पे दांतो के निशान,

मैं समझ गयी थी यह सब तो नयी सुहागन के निशान है,

दिन में ठीक से चला न जाए, जाँघों में बार चिलख हो, बार बार जम्हाई आये, आँखे बारे बारे चोरी छुपे दरवाजे तक दौड़ी दौड़ी जाए की कहीं देवरों नन्दोईयों के झुरमुट में ये दिख जाएँ, बार बार सिकोड़ने पर भी रात की मलाई का कतरा सरक के नीचे,

यही सब तो निशान है रात को मरद ने नयी दुल्हन को कचकचा के प्यार किया है,

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और थोड़ी देर में ननद भी अपने मरद का साथ दे रही थी, खुद अपने जोबन उभार के उनकी छाती में रगड़ रही थीं चूतड़ उछाल रही थीं

लेकिन एक चीज मैं देख रही थी, जो बात मैं अपने मरद से बार बार कहती थी,

जो मुझे दूबे भाभी और आशा बहू ने बार बार सिखाई थी की अगर औरत को पक्का गाभिन करना है चूतड़ उठे रहने चाहिए, जिससे लंड का टोपा सीधे बच्चेदानी के सीध में रहे और गिरे भी तो सब बच्चेदानी में जाए।

चूतड़ उठे रहने पे जैसे नाली में लुढ़कते पुढ़कते पानी जाता है, उसी तरह मरद का पानी भी औरत की बच्चेदानी में जाए और झड़ने के बाद भी कम से कम पांच दस मिनट तक इसी तरह एकदम चिपका के रखो, एक बूँद बीज भी बाहर न आये

और बीस पच्चीस मिनट की चुदाई के बाद जब ननदोई झड़े तो एकदम उसी तरह जैसे कुत्ते की गाँठ अटक जाती है

एकदम उसी तरह से अपनी मेहरारू को चिपकाए रहे

मतलब उन्हें बिस्वास था की आज वो मेरी ननद को गाभिन कर के ही छोड़ेंगे

और अगर छिनारों का कोई कम्टीशन हो तो मेरी ननद दस पांच जिले में टॉप करेंगी।

वैसे तो सब ननदें छिनार होती है लेकिन मेरी ये ननद खानदानी, और ऊपर से मैंने जो सिखा पढ़ा के अपने नन्दोई के पास भेजा था, एकदम वैसे ही, पक्की छिनार की तरह,

" हटो न " उन्हें धक्का देते हुए वो बोलीं,

" क्यों क्या हो गया " और कस के बाहों में भींचते मेरे ननदोई बोले।

" आ रही है " वो छिनार की तरह लजाते शर्माते बोलीं " जाने दो न बस आती हूँ "

और सिखाया पढ़ाया तो मैंने नन्दोई को भी था,

मेरी ननद के बच्चेदानी में सुई धंसी है, सचमुच की नहीं टोना टोटका वाली, इसलिए बच्चा रुकता नहीं बच्चेदानी में, बनने से पहले सुई काट देती है। और इलाज भी मैंने बताया था, ये पहला लड्डू, खा के हचक हचक के चोदिये, आपके बीज में ऐसी ताकत आएगी जो बच्चेदानी में जा के उस सुई को पिघला देगी, फिर ननद को कस के मूतवास लगेगी। अगर दो तीन बार चुदने के बाद उन्हें जोर की मुतवास लगे तो समझिये काम हो गया। और घलघल मूतने के साथ ही वो सुई एकदम पिघल के बाहर आ जाएगी, थोड़ा मूतने में जलन होगी, लेकिन थोड़ी देर बाद ठीक हो जायेगी और उनके लौटने के पहले दूसरा लड्डू खा लीजियेगा, उसमे आशीरबाद है, बस उसके बाद हचक के पेलिएगा और बीज सीधे बच्चेदानी में, सुबह तक पक्की गाभिन।

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तो वो भी सोच रहे थे की उनके पेलने का और उस लड्डू का असर हो गया लेकिन आज वो भी चिढ़ा रहे थे, उनका मन भी खुश था की क्या पता बाप बन ही जाएँ



" अरे का आ रही है हमरे सास की बिटिया को " कस के गाल काट के वो बोले,

" हटो न बहुत मोहा रहे हो, अरे मूतवास आ रही है, ओह्ह बहुत जोर से लगी है "



"अरे तो जाके मूतो न, पूछ का रही हो " उठते हुए वो बोले, लेकिन उनके चेहरे से ख़ुशी साफ़ साफ़ लग रही थी

थोड़ी देर में हम ननद भौजाई साथ साथ आँगन में बैठे छुल छुल
Komal ji, nanad ki itni ragdai hui jabardast, lekin short me kyun nipta diya do round, hame bhi janna hai ki kese kese kya kya hua
 
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ननद नन्दोई की जोड़ी
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और लौट के, जैसा मैंने ननद को सिखाया था एकदम वही छिनरपन, मैं खुली खिड़की से नजारा देख रही थी

" उई एक तो इतना ढेर सारा हुआ और फिर जलन हो रही है कस के " ननद ने मुंह बना के कहा,

और नन्दोई के चेहरे की ख़ुशी देखते बनते थी, मतलब टोना टोटका वाली बात एकदम सही थी, और प्रसाद के लड्डू का असर भी हुआ।

स्साली सुई घुल के निकल गयी और अब उनको बाप बनने से कोई रोक नहीं सकता, इसलिए तेज़ाब का असर,… जलन इसी से हो रही है।

बस ख़ुशी से ननद को धक्का देके पलंग पे गिराते बोले,

" अरे चल अभी फूंक देता हूँ, सब जलन ठंडी हो जायेगी " और दोनों जाँघों को कस के फैला के



और कुछ देर में ही वो कस के सपड़ सपड़ अपनी बीबी की बुर चाट रहे थे

" हे हटो न, अभी वो कर के आ रही हूँ, सब लगा होगा, "

ननद ने झूठ मूठ हटाते हुए कहा

" तभी तो बड़ा खारा खारा स्वाद आ रहा है, अरे अच्छा लग रहा है चाटने दे न " और कस के अपने मुंह को मेरी ननद की बुर पे रगड़ते वो बोले और जीभ अंदर धकेल दी।



मैं भी देख के मुस्करा रही थी, खारे के साथ ननदोई की मलाई भी तो भरी थी उसमे सच में मजेदार स्वाद लग रहा होगा।

और उसी समय मैंने तय कर लिया, लौट के आने दो मेरी ननद को अपनी ससुरार से, ननदोई भी तो पीछे पीछे आएंगे।

बस ननद की इसी बिलिया में अपने मरद की मलाई दो तीन बार भर के, बजबजाती छलछलाती रहे,....


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तब उसके मर्द से,... अपने नन्दोई से जरूर चटवाउंगी,

बहन की बुर से भाई की मलाई, क्या मस्त स्वाद होगा। चाटे मेरा ननदोई,

अरे अपनी मलाई तो सबकी बीबी कुछ न कुछ जतन कर के अपने मरद को चटा देती हैं, लेकिन कुप्पी में अपने सगे भाई की मलाई भर के अपने मरद से सपड़ सपड़ उसके सगे साले की मलाई चटवाये, तब तो असली बात, आने दो ननद को अगली बार मायके पक्का


मेरी निगाह लड्डू वाले डिब्बे पे पड़ी, दूसरा लड्डू उन्होंने खा लिया था और उसका असर भी दिख रहा था। उसमें तो पहले से ज्यादा कामोत्तेजक औषधि थी और असर भी पड़ गया था

नन्दोई का खूंटा खड़ा हो रहा था और बुर चुसाई से ननद भी गीली हो गयी थीं , बस अगला राउंड शुरू हो गया था, चौथी बार और अबकी ननद को कुतिया बना के पहले से भी जोर से नन्दोई जी चोद रहे थे।

और इस बार तो नन्दोई जी एकदम तूफ़ान मेल हो गए थे,

मैंने भी बहुत तूफानी चुदाई झेली थी। चंदू, जिससे सहमकर चार बच्चों की माँ भी पगडण्डी बदल देती थी,

कमल जिसके खूंटे से सहमकर उसकी बहन ने शलवार का नाडा न खोलने की कसम खा ली थी

और उन सबसे २० मेरा अपना मरद, और ननदोई जी खुद मेरे ऊपर कितनी बार, कल ही,

मैंने तो गिनना ही छोड़ दिया था, सगा देवर तो कोई था नहीं, बहनों में भी सबसे बड़ी मैं तो कोई जीजा भी नहीं, तो ले दे के सगे के नाम यही नन्दोई तो, और सलहज अगर नन्दोई के आगे कितनी बार टाँगे फैलाई ये गिनना शुरू कर दे तो सलहज नन्दोई का रिश्ता न बदनाम हो जाए,



और मैं जानती असली खेल दूबे भाभी का था, वो भी तो सलहज ही लगेंगी।

अपनी बैदकी का ज्ञान और जादू टोने का गुन ढंग सब उन्होंने लगा दिया था, शिलाजीत, शतावर, अश्वगंधा और न जाने क्या क्या डालने के साथ पता नहीं कहाँ के सीखे मंतर और जड़ी बूटी भी, इस लड्डू में थे। मुझे उन्होंने समझाया भी,

" सुन कोमलिया, मर्द के चोदू होने के लिए मूसल तो तगड़ा होना चाहिए ही, लम्बा मोटा कड़क होने के साथ कितनी देर टिकता है लेकिन उतना ही जरुरी है उसके चूतड़ और कमर में ताकत की धक्के पे धक्के मारता जाए, और सांस न ले, और इन दोनों के साथ उसका मन दिमाग, एकदम पागल हो जाए, औरत रोये चिल्लाये हाथ गोड़ जोड़े लेकिन जैसे इंजन का पिस्टन बिना रुके अंदर बाहर, अंदर बाहर,



और सच में नन्दोई जी का मोटा पिस्टन ननद की बुर में ऐसे ही बार बार लगातार, न उनके धक्को की ताकत कम हो रही थी न स्पीड धीमी हो रही थी। ननद मेरी झुकी हुयी, निहुरी, दोनों मोटे मोटे चूतड़ जिसे देख के मेरा मरद ललचाता था, हवा में उठे , दोनों पैरों को नन्द ने खूब फैला के जाँघों को खोल के रखा था। साफ़ था इसी गाँव के गन्ने के, अरहर केखेत में ऐसी ही निहुर के घोंट के जवान हुयी थीं, लेकिन आज



एक मिनट बस एक मिनट रुक जाओ, का हो गया है तुमको, कोई, ओह्ह्ह नहीं नहीं बार बार ननद चीख रही थी,

और ननदोई कभी दोनों चूची निचोड़ते हुए, कभी ननद की कमर पकडे हचक के चोद रहे थे, कभी झुक के ननद की पीठ चाट लेते कभी गाल काट लेते और दस पांच धक्के के बाद ननद के रोने चीखने पे रुकते भी तो खूंटा अंदर घुसा



और मैंने जानबूझ के ये वाला लड्डू ऐसे, नन्दोई आज ऐसी चुदाई करें जैसे कभी न की हो और उन्हें पक्का विश्वास जो जाएगा की ननद गाभिन उन्ही के बीज से हुयी हैं



और दर्द के बावजूद ननद पूरी कोशिश करके उनका साथ दे रही थी , मौका मिलते ही उन्हें बहन की महतारी की गारी दे रही थीं, चूतड़ मटका के धक्के का जवाब धक्के से दे रही थीं,



ननद आज सुबह से ही, ख़ुशी के मारे पागल थी जैसे ही हम दोनों ने टेस्ट स्ट्रिप पे दो लाइन देखीं तभी से, बस पक्का हो गया की अब वो गाभिन हो गयी हैं


औरत सब से ज्यादा दो बार खुश होती है,

एक तो गौने की रात को नहीं,…


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गौने की रात को जब उसके मना करने पर सौ नखड़ा दिखाने पे भी,… मरद पेटीकोट का नाडा खोलता नहीं,… तोड़ देता है,

और रात भर कचरता है, जैसे आटा गुंथा जाता है वैसे ही उस नयी नयी दुल्हन की देह गूंथता है, रात भर टाँगे उठी रहती हैं, जाँघे फैली रहती हैं, ....

और अगले दिन ननदें सहारा देके पलंग से उठाती हैं, तो अगले दिन, गौने की रात के बारे में सोच सोच के, जितना ननदें चिढ़ाती हैं, रात का हाल पूछती हैं , सास और जेठानी अपने दिन सोच सोच के मुस्कराती हैं, वो दिन दुल्हन के लिए सबसे ख़ुशी का दिन होता है



और दूसरा ख़ुशी का दिन होता है जब उसे पता चलता है की वो पेट से है,



तो आज ननद के पाँव सुबह से जमीन पर नहीं पड़ रहे थे और ऊपर से ये ताबतोड़ चुदाई,

पूरे आधे घंटे के बाद, कम से कम तीन चार बार ननद मेरी झड़ी होंगी, उसके बाद नन्दोई जी और दूबे भाभी की बूटी जबरदस्त वीर्यवर्धक, सच में कटोरे भर माल उगला होगा और एक बार नहीं एकदम मरद की तरह, असली दुनाली।

नन्दोई के चेहरे से लग रहा था की अब उन्हें पक्का विश्वास हो गया की अपने साले की बहिनिया को उन्होंने पेट से कर दिया है

और यही तो मैं चाहती थी , ननद मेरी एक बार नहीं,.... बार बार गाभिन अपने सगे भैया से,...हर बार बिटिया जने, जिसपर मेरा मरद चढ़े, उसकी महतारी के सामने और उसका मर्द सोचे की उसके माल की निशानी है।
Yeh hui tufani tabadtod ladai
 
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चरित्रं विचित्रं..
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Xohashem

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