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Tino bhojaiyo ka koi jabab nahiभाग 105 कोहबर और ननद भौजाई
मंजू भाभी
२६, ३२, ७५९
लेकिन कहते हैं न टर्म्स एंड कंडीशन अप्लाई तो भौजाई ने शर्ते लगा दी।
पहली बात, 'बिना सोचे, भौजाई क कुल बात माना, सही गलत के चक्कर में नहीं पड़ना और दूसरी न उमर न रिश्ता, कउनो लड़की मेहरारू को देखो तो बस मन में पहली बात आनी चाहिए, स्साली चोदने में कितना मजा देगी। और देखो, एकदम सीधे उसकी चूँची को, कितनी बड़ी, कितनी कड़ी और तुरंत तो तोहरे मन क बात समझ जायेगी वो, देखो आज बुच्चीकी चूँची देख रहे थे तो वो केतना गरमा रही थी,... एकदम स्साली पनिया गयी थी।"
और सुरजू मान गए " सही है भौजी, तोहार बात एकदम सही है, लेकिन, कुल बात मानब लेकिन,..."
"बस देवर ,कल . आज आराम कर लो,... कल से तो तोहार ,"
कह के बिना अपनी बात पूरी किये थाली उठा के चूतड़ मटकाते इमरतिया कमरे से बाहर।
और वहां मंजू भाभी कोहबर के कमरे में मोर्चा सम्हाले थीं।
मंजू भाभी में कई खास बातें थी और उनमे एक ये भी थी की जो पहली बार भी मिलता था उससे घंटे भर में ऐसी दोस्ती हो जाती थी जैसे लगता था की जन्म जिंदगी की दोस्ती, रिस्थ्तेदारी हो, और चाहे काम करने वालियां हो या स्कूल की लड़कियां सबमे दूध पानी की तरह मिल जाती थी। वै
से तो सुरजू के माई की मायके के रिश्ते की थीं।
बताया था न की सुरजू के पिता को अपने ससुराल से नवासा मिला था, उनकी माँ के घर में सगा न भाई था न बहन, लेकिन जमीन जायदाद बहुत ज्यादा, सौ बीघा से ज्यादा तो खाली गन्ना होता था, सुरजू की माई अक्सर बोआई कटाई के समय मायके जाती थीं, वहां की खेत बाड़ी देखने के लिए, और कई बार साथ में सुरजू भी अपने ननिहाल उनके साथ, और इमरतिया उनकी माई की ख़ास थी तो वो भी, साथ साथ।
मंजू भाभी से सुरजू के ननिहाल से ही इमरतिया की मुलाकात हुयी और मंजू भाभी भी सुरुजू की माई की ख़ास थी।
एकदम उसी पट्टी की, समझिये खानदान की ही बहू, लेकिन ऐसी खुशमिजाज, की, और मजाक में तो न रिश्ता देखती थीं न उमर।
वो वैसे तो बंबई रहती थीं, दो दो जवान होती लड़कियां, ....मरद का काम धंधा फैला था, लेकिन और कोई आये न आये, हर त्यौहार में वो गाँव में और कटाई, बुआई के अलावा, जाड़े गर्मी की छुट्टी में भी, साल में दो, तीन महीना का टाइम गाँव में ही बीतता था। उमर ३२ -३३ के आस पास होगी, लम्बी चौड़ी, खूब भरी भरी देह और ताकत भी थी, गाय भैंस दूह लेती थीं, बटुला भर खिचड़ी बिना सँडसी के हाथ से उतार लेती थी, सुरजू की माई तो लगती सास थीं, लेकिन मजाक में दोनों के बीच, ननद भाभी झूठ।
गाँव क कउनो बियाह नहीं जहाँ वो नहीं पहुँचती हो, और गारी सुरु होने पर ढोलक लेकर सबसे टनकदार आवाज में वही, और ऐसी खुली गारी की चमरौटी भरौटी वालिया भी कान में ऊँगली डाल लेती और महतारी को बेटे के नाम से भी गाली देने से नहीं चूकती।
तो वही मंजू भाभी,
हाँ एक बात और कच्ची कलियों का तो उन्हें खास शौक था और पटाने में भी माहिर थी, एक से एक लजाने शरमाने वाली खुद उनके सामने अपनी शलवार का नाडा खोल देती थी।
जब इमरतिया सूरजू को खिला के पहुंची , मंजू भाभी ने कोहबर में मोर्चा सम्हाल रखा था, रात के सोने का इंतजाम हो रहा था।
कोहबर का फर्श कच्ची मिटटी का था, मुन्ना बहू और दोनों छोरियों, बुच्ची और शीला के साथ उन्होंने पहले फर्श पर दो गट्ठर पुआल का बिछवाया, और खुद मिल के फर्श पर पहले दरी, चादर और एक पतला सा गद्दा। गरम करने के लिए पुआल ही बहुत था, लेकिन एक बड़ी सी बोरसी में आग सुलगा के जो पहले छत पे रखी गयी थी, जिससे सब धुंआ निकल जाए, उसे भी अंदर कमरे में उन्होंने खुद लाकर रख दिय।
एक बड़ी सी रजाई भी रखी थी, जिसमे घुसर मूसर के चिपक के पांचो जन सो जाते।
खाने के पहले ही, पहल मंजू भाभी ने ही की, "अरे इतना गरमी लग रही है, साडी उतार दो सब जन, वैसे भी सोने में तुड़ मुड़ जायेगी “
और खुद उतार दी, और साथ में इमरतिया और मुन्ना बहू ने और तहिया के एक साइड में रख दी।
कच्चे टिकोरे किसे नहीं पसंद होते लेकिन मंजू भाभी को कुछ ज्यादा ही पसंद थे और उन्हें तरीके भी मालूम थे, कच्ची अमिया वालियों को पटाने के, तो जैसे ही उनकी सास ( सास ही तो लगेंगी ) और सहेली, सुरजू की माई ने बुच्ची को बोला रात में कोहबर में रुकने को, उनकी निगाह सीधे बुच्ची के चूजों पे और तुरंत उन्होंने हाथ उठा दिया, ' मैं भी रहूंगी, कोहबर रखवाई वालियों में ' वो समझ गयी थीं की शायद इमरतिया और मुन्ना बहु के अकेले बस का नहीं है दंद, फंद करके, बुच्चिया की चड्ढी उतरवाना, और इसलिए उनका रहना जरूरी था और एक बार चड्ढी उतर गयी तो सेंध भी लग जायेगी और बियाह के पहले ही उसको नंबरी चूत चटोरी और लंड खोर बना देंगी।
तो जब बुच्ची और इमरतिया दूल्हे के कमरे में थीं, मंजू भाभी ने मुन्ना बहू और शीला के साथ मिल के, प्लान पक्का कर लिया था,
मुन्ना बहू एक बार शीलवा को रंगे हाथ पकड़ चुकी थी गन्ने के खेत में भरौटी के दो लौंडो के साथ, दिन दहाड़े, तब से दोनों में खूब दोस्ती हो गयी थी।
मुन्ना बहू कौन कम छिनार थीं, रोज दो चार मोट मोट घोंटती थी।
इमरतिया, मुन्ना बहू और मंजू भाभी, साड़ी उतार के, जैसे रखीं, इमरतिया, शीला और बुच्ची को देख के मुन्ना बहू से मुस्करा के बोली, " अरे इन दोनों का भी तो उतरवाओ "
बुच्ची बचते हंस के बोली, " अरे भौजी, तू तीनो लोग तो अभी भी दो दो पहने हो, मैं तो खाली फ्राक पहने हूँ "
मंजू भौजी मुस्करा के बुच्ची को चिढ़ाते बोलीं, " तो चेक करूँ, मुन्ना बहू तानी उठाय दो बुच्चिया क फ्राक "
एक ओर से मुन्ना बहू तो दूसरी ओर से इमरतिया जैसे जंगल में हांका करके शिकार पकड़ते हैं, दोनों ओर से बढ़ी, और बुच्चिया बचने के लिए पीछे हटी, लेकिन बेचारी को क्या मालूम था खतरा पीछे ही था, उसकी पक्की सहेली और समौरिया, शीला।
शीला ने पीछे से बुच्ची का फ्राक उठा के झट से चड्ढी पकड़ ली, और नीचे खींचने लगी, और जब तक बुच्ची अपने हाथ से शीला का हाथ रोकती, इमरतिया और मुन्ना बहू ने एक एक हाथ पकड़ लिया और मुन्ना बहू शीला से हँसते हुए उकसाते बोली,
' अरे शीलवा आराम आराम से बहुत दिन बाद आज बुलबुल को हवा पानी मिलेगा , हम दुनो हाथ पकडे हैं, फड़फड़ाने दो। अभी कउनो देवर, इसका भाई होता तो खुदे उतार के बुरिया फैलाय के खड़ी हो जाती, भौजाई लोगन के सामने नखड़ा चोद रही है "
बुच्ची ने खूब गरियाया, शीला को, दोनों टांगों को चिपकाया, लेकिन शीला कौन कम थी। हँसते हँसते, कभी चिकोटी काट के, कभी गुदगुदी लगा के अपनी सहेली की चड्ढी निकाल के हवा में उछाल दी और मंजू भाभी ने कैच कर लिया।
" बोरसी में डाल देई, छिनरो " इमरतिया बुच्ची से बोली लेकिन मंजू भाभी ने वीटो कर दिया।
" अरे नहीं, मिठाई क ढक्क्न, एकरे भैया के ले जा के सुंघाना, चटवाना सबेरे सबेरे। पूछना दूल्हे से उनके किस बहिनिया का स्वाद है , सही पहचनाने में रसमलाई मिलेगी चाटने को, बोल बुचिया चटवायेगी न अपने भैया से "
और फिर मंजू भौजी ने शीला और बुच्ची के जरिये सारे ननदो के लिए फरमान जारी कर दिया,
" सुन ले, जउन जउन छेद खोल के सुनना हो, कउनो ननद हो, लड़की, मेहरारू, अगर ऊपर नीचे, कहीं ढक्कन लगाए के बियाहे तक आयी तो ओकर बिल और हमार मुट्ठी, ….अरे शादी बियाह क घर, लौंडों क भीड़, जब देखो तब स्कर्ट साड़ी उठावा, सटवावा, और गपाक से अंदर घोंट ला, और और वैसे भी कल से रात में गाना, रस्म रिवाज होगा तो कुल ननदो का तो खोल के देखा ही जाएगा, "
बुच्ची मुस्करा रही थी।
शीला हंस के बोली,
" भौजी की बात एकदम सही है, देखा हम तो पहले से ही,.. "
और झट से उसने अपनी घेरेदार स्कर्ट उठा दी। काली काली झांटो के झुरमुट में दोनों फांके साफ़ दिख रही थीं, बस हलकी सी दरार, लेकिन देखने वाला समझ सकता है, ज्यादा तो नहीं चली है, लेकिन खेत की जुताई हो चुकी है।
अच्छा चलो खाना खाओ, मुन्ना बहू बोली,
एक बड़ी सी थाली में फिर सब ननद भौजाई एक साथ और उसी तरह से हंसी मजाक, लेकिन अब बुच्ची भी मजाक का मजा ले रही थी। तब तक मुन्ना बहू को कुछ याद आया, वो इमरतिया से आँख मार के बोली,
Sharahniye......koi jabab nahi.शीरा
" अरे बुच्ची के लिए शीरा था न,… जो रसगुल्ला उसके भैया खाये थे "
" अरे बौरही ये ससुरी ननदे ऐसी हैं जिनके चक्कर में सब भुला जाता है, अरे बुच्ची अपने हाथ से अपने भैया को रसगुल्ला खिलाई है और खुदे बोली की रसगुल्ला तू खा,… शीरा मैं खाउंगी। चलने के पहले बोल के भी आयी है कल भैया रसमलाई खिलाऊंगी अपनी "
इमरतिया उठी और मंजू भाभी ने बुच्ची की जाँघों के बीच अपनी हथेली रगड़ते चिढ़ाया ( अब तो चड्ढी का पर्दा भी नहीं था ),
" सही तो कह रही है हमारी बुच्ची, इस रसमलाई से बढ़िया मिठाई कहाँ तोहरे देवर को मिलेगी "
और इमरतिया बाहर से वो कुल्हड़ ले आयी, जिसमे सुरजू का मुट्ठ मार के उसने निकाला था,
कुल्हड़ एकदम ऊपर तक बजबजा रहा था।
मुन्ना बहू जोर से मुस्करायी, वो तो पहले से समझ रही थी। उसी को दिखा के इमरतिया खाली खुल्हड अंदर ले गयी थी और जब बुकवा लगा के निकली तो रबड़ी मलाई भरी, और तो खूब खेली खायी, शादी बियाह में उनसे ज्यादा खुल के नन्दो की रगड़ाई कोई नहीं करता था।
मान गयी इमरतिया को वो, और उसे देख के मुस्करायी।
उन के सामने ही तो किसी ननद ने इमरतिया को चिढ़ाया था,
" भौजी, भैया को बुकवा लगेगा तो तिसरिकी टांग में जरूर लगाइएगा, " और सुरजू की माई हँसते बोली
" अरे वहां तो सबसे ज्यादा, "
इमरतिया क्यों ननद की बात का बिना जवाब कैसे छोड़ती, हंस के बोली " एकदम ननद रानी, तीसरी टांग में तो खूब रगड़ रगड़ के तेल बुकवा लगाउंगी, भौजाई का हक है,… लेकिन शीरा जो निकलेगा, वो ननद को पीना पड़ेगा"
और उसी समय बुच्चिया आ गयी और बिना पूरी बात सुने समझे बोली,
" अरे भौजी, शीरा तो हमको बहुत अच्छा लगता है "
फिर सब भौजाइयां इतना हंसी और इमरतिया के पीछे, आज तो ननद को शीरा जरूर पिलाना,
और कुल्हड़ होंठों से लगा के बुच्ची घुटुर घुटुर डकार गयी और तीनो भौजाइयां उसके पीछे,
" कैसा लग भैया क चाशनी, " मुन्ना बहू बोलीं
" अरे आज ऊपर के छेद से पी रही हो, कल इमरतिया हमरे नन्द के नीचे वाले छेद से पिलाना " मंजू भाभी ने आगे के प्रोग्राम का ऐलान कर दिया।
" अरे आपकी बात हम थोड़ो टाल सकते हैं, अरे अभी बारह दिन है, और छत पे ताला बंद है । कल रात को बुच्ची को उसके भैया की कुठरिया में और बाहर से कुण्डी बंद, रात भर भैया बहिनी की मर्जी, नीचे चाहे आगे के छेद में घोंटे चाहे पीछे के छेद में, काहो बुच्ची मंजूर। "
इमरतिया ने हँसते हुए चिढ़ाया।
Gajab ki planing ho rakhi hai.dekhiye malai kya rang dikhata hai buchi parमुन्ना बहू
और अब मुन्ना बहू का नंबर था, बुच्चीको गरमाने का और रगड़ाई करने का,
और कुछ मामलों में मुन्ना बहू, इमरतिया से भी चार हाथ आगे थी,
नंबरी लंड खोर, नमक भी जबरदस्त था, थोड़ी सांवली सलोनी, उम्र में भी इमरतिया से दो चार साल बड़ी ही होगी, बबुआने का तो जिस लौंडे की अभी रेख भी नहीं आनी शुरू हुयी से लेकर, बियाहता मरद तक, शायद ही कोई बचा होगा, जिसके खूंटे को मुन्ना बहू ने मजा न दिया हो,
पर उसकी असली खासियत थी, रेडियो झूठ था उसके आगे, ....गाँव में कौन लौंडिया किससे फंसी है, आज किसके गन्ने के खेत में कौन चुदी,
कौन बबुआने वाली अपने हरवाह से हल जुतवाती है जांघ के बीच तो कौन अपने ग्वाले से दूध दुहवाती है, उसकी मलाई खाती है सब मुन्ना बहू को मालूम था।
दर्जनों को तो वो खुद गन्ने के खेत में कभी निहुरे, कभी टांग उठाये, अहिरौटी भरौटी के लौंडो के साथ पकड़ चुकी है।
और लड़कियों की तरह लौंडों का भी सब हाल मुन्ना बहू मालूम था। ख़ास तौर से १०-१२ जो अहिरोटी, भरौटी के, पासी के लौंडे, पक्के चोदू, न सिर्फ बित्ते भर के लम्बे, मोटे हथियार वाले, बल्कि रगड़ रगड़ के चोदने वाले, पहले धक्के में ही लड़की रोने लगे, चूतड़ पे, पीठ पे मार मार के लाल कर देने वाले, गाल पे, चूँची पे ऐसे कस कस के काटेंगे की चार दिन तक निशान न जाए, नाख़ून से नोचेंगे, और कहीं चीख रुकी तो बस झोंटा पकड़ के, घोड़ी की लगाम की तरह पकड़ के निहुराय के ऐसे खींचेंगे की बस, उसको अंदाज नहीं लगेगा की चुदवाने में ज्यादा दर्द हो रहा है की नोचवाने में
और मलाई कुल देह के भीतर,
जो लड़की उन सबों से चुद के आती, पूरे गाँव को मालूम हो जाता, चार दिन उस की चाल देखके, गाल और चूँची क निशान देख के की किसीसे चुद के आ रही है,
लेकिन सबसे बड़ी बात ये की वो सब मुन्ना बहू के इशारे पे थे, जउने लौंडिया की ओर मुन्ना बहू इशारा कर दें,उसे चोद चोद के के सब चूत क भोसंडा बना देते थे, लेकिन एक बात और थी, की जो स्साली उनसे चुदती थी, वो खुद सहारा लेके, लंगड़ाते फिर खुद ही आ जाती थी उनसे चुदने।
और बुच्ची जब से आयी, मुन्ना बहू की निगाह उस पे थी,
एकदम असली कोरी कच्ची कली, चेहरे से देखने से तो लगता था दूध के दांत भी अभी नहीं टूटे होंगे, लेकिन जोबन पे नजर आये तो कच्ची अमिया अच्छी खासी गदरा रही थीं, गाल भी खूब फूले फूले, एकदम से काटने लायक, लेकिन जिस तरह से लंड का नाम लेने, जरा भी मजाक करने से वो छटकती थी, मुन्ना बहू इन्तजार ही कर रही थीं, मौके का।
और जब कोहबर रखवारी का मौका आया, तो मुन्ना बहू ने बड़की ठकुराइन से बुच्ची की ओर बिना बोले इशारा कर दिया और एक बार बुच्ची का तय होगया
तो कच्चे टिकोरे के लालच में मंजू भाभी भी, मुन्ना बहू और इमरतिया का तो पहले से ही तय था और शीलवा, बुच्ची की पक्की सहेली थी, लेकिन उसको चुदवाती मुन्ना बहू ने पकड़ लिया था तो उसकी भी दबती थी,
और फिर जब शीरे वाला मजाक हुआ, और इमरतिया मुन्ना बहू को दिखा के खाली कुल्हड़ ले के अंदर गयी, सूरजु बाबू के पास और लौटी तो सूरजु का बीज बजबजा रहा था,
गाँव में तो ये माना जाता था की कउनो कुँवार लड़की को किसी मरद के बीज का दो बूँद भी खाली चटा दो तो ऐसी चुदवासी होगी की खुद ही उसके लंड पे चढ़ के बैठ जायेगी, और यहाँ तो कुल्हड़ भर मरद की मलाई,
इमरतिया ने मुस्करा के मुन्ना बहू की ओर देखा, और वो भी मुस्करा दी, दोनों ने बिना बोले सोच लिया था, बुच्ची न सिर्फ अपने भैया से चोदी जायेगी, बल्कि दस पंद्रह दिन के अंदर जबरदस्त छिनार, बन के खुद लंड खोजेगी, कम से कम दस पन्दरह लौंडन क घोंट के अपने ननिहाल से वापस जायेगी,
लेकिन मुन्ना बहू ने मंजू भाभी से कहा, मुस्करा कर,
" हे तू सोचत हो, की खाली तुंही भाई चोद हो, हमारी बुच्ची ननद तोहरो नंबर डकाएगीं, देखिये चौबीस घंटे के अंदर अपने भैया का, हमरे सूरजु देवर क लंड घोंटेंगीं, क्यों बुच्ची, अच्छा चल तोहे बतायी, तोहरे भैया कैसे अपने बहिनिया क पेलेंगे ,
और मुन्ना बहू ने हलके से बुच्ची को धक्का दिया और बुच्ची फर्श पे, बस दोनों टाँगे मुन्ना बहू के हाथ में, आराम से फैलाया और फिर अपने दोनों कंधो पे रख के बोली, " देख स्साली, तोहार भाई, ऐसे पहले दोनों टांग अपने कंधे पे रखेंगे, जांघिया बुरिया फैलाएंगे, जितना बुरिया फैलाओगी उतना आसानी से तोहरे भैया क जाएगा सटासट, "
और क्या कस के धक्का मारा अपनी चुदी चुदाई झांटो वाली बुर से, बुच्ची की कच्ची, बिन चुदी बुर पे
उईईई उईईई बेचारी बुच्ची जोर से सिसक पड़ी
लेकिन अभी तो चुदाई शुरू हुयी थी, मुन्ना बहू का एक हाथ बुच्ची की कच्ची अमिया पे और दुसरा पतली कटीली कमरिया पे, और धक्को का जोर बढ़ने लगा
उईईई भौजी नहीं ओह्ह्ह हाँ, लग रहा है, हाँ बहुत अच्छा, नहीं नहीं
बुच्ची कभी चीख रही थी, कभी सिसक रही थी, कुँवारी ननद की मस्ती भरी चीख से बढ़िया और कौन आवाज हो सकती है, मंजू भाभी और इमरतिया भी गरमा रही थीं लेकिन एक ननद और थी न, भले ही खेली खायी थी, बस मंजू भाभी ने बुच्ची की सहेली, शीला को धार दबोचा और उस पे चढ़ गयी, और अपनी बुर उसकी चूत पे रगड़ने लगी।
"जब झिल्ली फटेगी न तोहार तो तोहरे भैया ऐसे तोहार मुंह दबा देंगे, "
मुन्ना बहू बोली और पहले तो हाथ से कस के मुंह दबाया, फिर चुम्मा ले के अपनी जीभ उस कच्ची कली के मुंह में ठेल दी, अब बुच्ची चाह के भी नहीं चीख सकती, और दोनों जोबन बुच्ची के कस कस के रगड़े मसाले जाने लगे और चूत की रगड़ाई भी भर गयी,
और मुन्ना बहू की गालियां भी बढ़ गयीं,
" स्साली, नीचे से धक्का मार, खाली हमरे देवर ऊपर से पेलेंगे, तेरे सारे खानदान की गांड मारु"
और हलके से बुच्ची नीचे से कमर हिलाने लगी, वो देख रही थी की उसकी सहेली शीला कैसे चुद रही औरत की तरह कैसे चूतड़ उठा के, कमर हिला के मंजू भाभी के साथ मजे ले रही थी, तो वो भी थोड़ा वैसे ही,
" चल बोल, दस बार और जोर जोर से, मैं अपने भाई क लंड लूंगी, सूरजु भैया क लंड घोटूँगी "
बुच्ची धीरे से बोली, तो जोर का एक चांटा उसके चूतड़ पे और मुन्ना बहू जोर से बोली, " स्साली रंडी क बेटी, अइसन बोल क दुवारे तक सुनाई पड़े, बोल कस के "
" ,मैं अपने भैया क लंड लूंगी, मैं सूरजु भैया क लंड घोंटूंगी " अब बुच्ची क लाज कम होती जा रही थी, वो न सिर्फ बोल रही थी सोच भी रही थी
और उधर इमरतिया भी गरमा गयी थी तो दोनों जांघ फैला के शीला के ऊपर चढ़ गयी और शीला ने खुद अपना काम समझ के अपनी भौजी की बुर चाटना शुरू कर दिया,
एक साथ दो दो भौजाई शीला से मजे ले रही थीं, और मुन्ना बहू बुच्ची के साथ, लेकिन फरक ये था की उसने मंजू भाभी के साथ ये तय किया था की बुच्ची को झड़ने नहीं देना है, बस बार बार गरम करके छोड़ देना है तो दिन में लाँडो केसामने जब जायेगी, उसकी चूत में छींटे ककाटेँगे
और ऊँगली भी नहीं करनी है, उसकी फाड़ेंगे, उसके भाई और बाकी लौंडे, बस मस्ती और गरमाने का काम
और बुच्ची की हालत खराब हो रही थी, वो देख रही थी की शीला उसकी सहेली कैसे मस्ती से झड़ रही है , चूस के उसने इमरतिया भुआजी को झाड़ दिया और मंजू भाभी का पानी भी निकल गया, लेकिन बस वही, और जब वो झड़ने के करीब होती, तो मुन्ना बहू कभी उसकी चूँची पे चिकोटी काट लेती तो कभी इमरतिया गाल नोच लेती, कभी मुन्ना बहू रगड़ना रोक देती
" भौजी झाड़ दा न , मोर भौजी, जो जो कहियेगा करुँगी, मोर भौजी बस एक पानी " लेकिन मुन्ना बहू उसे बस गरमा रही थी और फिर जब दो चार बार झड़ते झड़ते बुच्ची रुक गयी, तो मुन्ना बहू उसके ऊपर से उठती बोली,
" अरे भोर हो रही है, अब जा तोहरे भैया जग गए होंगे, उन्ही से झड़वा लो "
सच में आसमन की कालिख कम हो गयी थी, भोर की चिड़िया बोल रही थी, और इमरतिया ने अपने कपड़े ठीक किये और बुच्ची को लेकर निकल दी।