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Incest छोटी – छोटी कहानियां {Hindi Stories Collection}

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Sirajali

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मेरी प्यारी बहन
भाग – 4 [मुकम्मल इश्क़]

मैं आरोही को आंखें फाड़े देख रहा था और वो मुझे एक कुटिल मुस्कान के साथ। इधर सेल्सगर्ल भी उसकी बात पर मुस्कुराने लगी थी। तभी आरोही ने मेरा हाथ पकड़ा और उन दोनो सेट्स को साथ लेकर ट्रायल रूम की तरफ बढ़ गई। कुछ ही पलों में हम दोनो उस छोटे से ट्रायल रूम के भीतर थे। अब आरोही के चेहरे पर शर्म के भाव आने लगे थे। वो तब तो मुझसे बदला लेने और जोश – जोश के भाव में ये सब कर गई पर अब उसे समझ नही आ रहा था के आगे क्या करना है। मैं भी उसकी मनोदशा को समझ पा रहा था पर पता नही क्यों आज मुझे उसे सताने में बहुत मज़ा आ रहा था।

मैं उसके करीब खिसका और उस से चिपक कर खड़ा हो गया। मैंने अपने एक हाथ की उंगलियों को उसके बाएं गाल पर फेरा, फिर उसके होंठों पर उंगलियों को फिराने लगा। उसकी सांसें बेतहाशा बढ़ चुकी थी और मुझे अपने चेहरे पर वो महसूस भी हो रही थी। फिर मैंने दोनो हाथों से उसकी कमर को थामा और एक झटके के साथ उसे खुद से चिपका सा लिया। वो अपनी मासूम सी आंखों से मुझे देखने लगी। मैंने उसके चेहरे पर झुक कर उसके कान में कहा,

मैं : चल अब जल्दी से इन्हे ट्राई कर ले। साइज ठीक है या नहीं।

वो मेरी बात पर हैरान हो गई और मुंह नीचे करके शर्माने लगी। पर तभी मैंने उसे दीवार से चिपका दिया और उसकी गर्दन पर एक बार हाथ फेरा। उसकी आंखें बंद हो चली थी। मैं उसकी जैकेट की ज़िप को पकड़ा और उसे नीचे खिसका दिया। अगले ही पल उसकी जैकेट को मैं उसके शरीर से अलग करके पास रखे टेबल पर गिर चुका था। नीचे उसने एक टी – शर्ट पहनी हुई थी। तभी,

आरोही : भईयू आप उधर मुंह कर लो ना मैं ट्राई कर लेती हूं इन्हे।

मैंने उसे मुस्कुराकर देखा और उसकी तरफ पीठ करके मुड़ गया। फिर मुझे कपड़े के सरसराने की आवाज आई और कुछ पलों बाद,

आरोही : भईयू ये हुक लगा दो प्लीज़।

मैं उसकी आवाज़ सुनकर मुड़ा तो मेरी आंखें चौंधियां गईं। आरोही की पीठ मेरी तरफ थी। और उसकी पीठ पूरी तरह नग्न थी। केवल ब्रा की दोनो पट्टियां पीछे लटकी हुई थी। मैने अपने कांपते हाथों से उन पट्टियों को थामा और उसके हुक को लगा दिया। पर इस बीच एक दो बार मेरी उंगलियों ने उसकी पीठ को छू लिया था। उसकी त्वचा बेहद ही मुलायम और कोमल थी। जिसके एहसास ने मुझे हिला दिया था। मेरे स्पर्श से उसके बदन में भी हलचल मैने साफ महसूस की थी।

तभी मैं ना जाने किस अदृश्य शक्ति के जाल में फंसकर उसकी पीठ पर उंगलियां घुमाने लगा। उसकी सांसों का शोर मुझे साफ सुनाई दे रहा था। मैने उसकी ब्रा की पट्टी में उंगली फंसाई और उसे धीरे से खींचकर छोड़ दिया।

आरोही : आह्ह्हह... भईयू...

अगले ही पल मैने अपने होंठ उसके नंगे कंधे पर रख दिए। मैं जोंक की तरह उस से चिपक गया और अपने हाथ उसके नंगे पेट पर लपेट दिए। उसने भी अपने हाथ मेरे हाथों के ऊपर रख दिए। मैंने उसके कंधे को कुछ देर चूमा और फिर अपनी जीभ को उसकी गर्दन पर फिरा दिया।

आरोही : ओह्ह्ह्ह... ईशशशशश्श...

मैंने उसके पेट को छोड़ा और एक दम से उसे पलटा दिया। उसके पलटते ही मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। उसके शरीर पर मात्र एक ब्रा और एक जींस थी। मेरा मुंह खुल चुका था और में बेसुध सा उसकी खूबसूरती को निहारने में लगा था। वो मेरी हालत देख कर शरमा सी गई। तभी मैंने उसे दीवार के साथ लगा दिया और एक हाथ से उसकी कमर को सहलाते हुए दूसरे हाथ को उसके गाल पर फेरकर बोला,

मैं : तू तो बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है आरोही। तू इस दुनिया की सबसे सुंदर लड़की है।

वो शर्माकर मुझसे लिपट गई और मैने भी उसकी मखमली पीठ पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। तभी,

आरोही : भईयू प्लीज़ रहने दो ना हमे बहुत देर हो गई है अंदर आए हुए। वो सेल्सगर्ल क्या सोचेगी?

मैं : वो तो हमें पति – पत्नी समझ रही थी। तो वही सोचेगी जो पति – पत्नी ऐसे मौके पर करते हैं।

आरोही : भईयूयूयू... आप बहुत बदमाशी करने लगे हो आजकल। प्लीज़ छोड़ दो ना। क्यों सता रहे हो अपनी आरोही को।

उसके कहे वो शब्द “अपनी आरोही” सीधे मेरे दिल पर जाकर लगे। मैं उस से अलग हुआ और उसके चेहरे को देखने लगा। मेरी आंखों में नमी सी आ गई थी। उसे लगा में नाराज़ हो गया हूं इसीलिए वो एक बार फिर मुझसे चिपक गई।

आरोही : भईयू नाराज़ मत होइए ना। आप...

मैंने उसे खुद से अलग किया और उसके चेहरे को थामकर बोला,

मैं : मैं नाराज़ नहीं हूं गुडिया और तुझसे नाराज़ होकर मैं जाऊंगा कहां। वो तो तूने कहा ना “अपनी आरोही” तो...

वो मुस्कुराकर बोली,

आरोही : हां तो गलत क्या कहा, आरोही सिर्फ आपकी ही तो है और आपको ही अपनी इस गुड़िया का ध्यान रखना है।

मैं उसकी बात पर मुस्कुराकर रह गया और फिर पलट कर खड़ा हो गया। उसने वो सभी सेट्स को ट्राई किया और फिर हम बाहर आ गए। वो सेल्सगर्ल हमे देख कर मुस्कुरा रही थी और आरोही भी उसकी मुस्कान का मतलब समझ रही थी। खैर, हम इस सबके बाद घर लौट आए।

रात के वक्त आरोही मेरी बाहों में समाई बिस्तर पर लेटी थी। हम कुछ देर तक बातें करते रहे फिर हम नींद आ गई। रात के किसी पहर मैं उसका नाम चिल्लाते हुए उठे। आरोही ने हड़बड़ा कर उठते हुए लाइट जला दी। मैने एक दम से उसे गले लगा लिया।

मैं : प्लीज़ प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाओ आरोही। प्लीज़ मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।

आरोही : क्या हुआ भईयू, क्या हुआ...

मैं : आरोही प्लीज़ कभी मुझे छोड़कर नहीं जाना, मैं मर जाऊंगा आरोही, मैं मर जाऊंगा।

वो समझ गई के मैने कोई बुरा सपना देखा है, उसने मेरे सर को अपनी छाती में दबा लिया और मेरे बालों में उंगलियां फिराने लगी। मैं भी एक छोटे बच्चे के जैसे उससे लिपटा हुआ था। एक सपना ही तो देखा था मैंने अभी के आरोही मुझसे नाराज होकर मुझे छोड़कर मुझसे दूर जा रही थी। कैसी भावना थी वो, मानो कोई मेरे सीने को चीर कर मेरा दिल निकाल रहा हो। अचानक ही आरोही से लिपटे हुए मुझे एहसास हुआ के मेरा सर उसकी नर्म गोलाईयों पर दबा हुआ था। उसके बदन की वो सुगंध, उसके नजदीक होने का एहसास मेरी कैफीयत को एक रूहानी सुकून दे रहा था।

मैं उस से अलग हुआ और उसके चेहरे को निहारने लगा, उसके बाल हल्के से बिखरे हुए थे। मुझे ये उसकी खूबसूरती की तौहीन लगी। मैने हाथ बढ़ाकर उसके बालों को सलीके से उसके कानों के पीछे कर दिया। और उसके सर को अपने सर से मिला लिया। मैं एक टक उसकी आंखों में झांक रहा था।

मैं : आरोही तू मुझसे कितना प्यार करती है?

आरोही : जितना आप मुझसे करते हो उससे भी ज्यादा।

मैं : तू कभी मुझसे दूर तो नही जाएगी ना?

आरोही : कभी नही, कभी भी नही। मेरे सब कुछ आप ही हो, सिर्फ आप।

मैं : आरोही जो कुछ भी हमारे बीच पिछले दिनों हुआ है वो भाई – बहन में नही होता, ये बात मैं जानता हूं पर आरोही जब तू मेरे करीब होती है तो मैं खुद पर काबू नही रख पाता। मेरा मन करता है के तुझे खुद में समा लूं, तुझे बहुत प्यार करूं, बहुत ज्यादा।

मैंने उसके गाल को सहलाते हुए ये सारी बातें कही जिनपर प्रतिक्रिया के तौर पर वो बस मुस्कुराने लगी।

मैं उसके बालों में उंगलियां फिराते हुए आगे बोला,

मैं : और आज से नही आरोही बचपन से ही तेरे नजदीक होने पर ही मुझे वो एहसास होता आया है। जब... जब तेरी शादी हुई तो मुझे लगा के मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। मैं झूठ नही बोलूंगा गुड़िया, मैं जेल में आत्महत्या भी करना चाहता था...

वो मेरे इस खुलासे पर एक दम से तड़प सी गई,

मैं : नही आरोही आज मैंने बहुत हिम्मत जुटाई है ये सब कहने के लिए, बीच में मत रोकना मुझे। जब हम मुंबई आए थे मुझे तभी समझ आ गया था के मैं तुझे एक भाई से अधिक प्यार करता हूं। आरोही मैं शायद बचपन से ही तुझे एक लड़के की नजर से भी चाहता हूं। पर मैं ये कभी मान नही पाया, मैं मान ना ही नही चाहता था। जिसे मैं गुड़िया – गुड़िया कहता फिरता था उसके लिए ये भावनाएं मुझे खुद को धिक्कारने पर मजबूर कर रही थी। मैंने तय किया के कभी तुझे ये सब नहीं बताऊंगा। पर फिर वो हादसा, मेरा जेल जाना, मुझे तेरी चिंता होने लगी थी के कैसे तेरी शादी हो पाएगी जब सबको पता चलेगा के मैं जेल में जा चुका हूं। हालांकि तेरी शादी का खयाल काफी था मुझे हज़ार मौत मारने के लिए, पर फिर मुझे लगता के तेरी ज़िंदगी को खुशियों से भर देने का ही तो संकल्प लिया था मैंने बचपन में और शायद शादी ही उन खुशियों को तेरी जिंदगी में ले आए।

पूरी बात बोलते – बोलते मेरी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे वहीं आरोही आंखों में हैरानगी और दर्द लिए मुझे देख रही थी। मैने उसे अपनी बाहों के कस लिया और,

मैं : पर अब... अब फिर मेरा दिल गुस्ताखी कर रहा है आरोही, मैं ऐसे नही जी पाऊंगा। मैं मर जाऊंगा आरोही, मैं मर जाऊंगा।

मैं आरोही के गले लगे हुए ही फूट – फुट कर रोने लगा। मेरे दिल में भर सारा गुबार मैं आज बाहर निकाला देना चाहता था। सच ही तो था, आरोही को खुदसे दूर करना मेरे लिए कितना दर्दनाक था सिर्फ मैं ही जानता था और अब उसका वापिस मेरी जिंदगी में लौटना और वो भी इस तरह, मेरे दिल में फिर वही सब एहसास हरे होने लगे थे। पर मैं इस बार ये बातें उस से छुपा पाने के काबिल नही था। मैं असल में अब तक बहुत ज्यादा टूट चुका था। कहां तो मैंने एक खुशहाल ज़िंदगी जिसमें सिर्फ आरोही और मैं हों, बस यही सपने देखे थे और किस्मत ने क्या – क्या दिन दिखाए थे हमे। मेरी बर्दाश्त अब खत्म हो चुकी थी। मैं आरोही को अब पा लेना चाहता था, मैं उसका हो जाना चाहता था।

रोते – रोते मेरे मुंह से घुटी हुई आवाजें निकलने लगी। आरोही मेरी हालत देखकर बहुत डर गई थी। उसने मुझे खुद से अलग किया और मेरे चेहरे को थामकर बोली,

आरोही : क्यों किया आपने ऐसा। हम्म्म, क्यों किया, सारी खुशियां मेरे हिस्से में डालकर हमेशा दुख में जीते रहे। क्यों नहीं कहा मुझसे ये सब, क्या इतना भी भरोसा नहीं था आपको अपनी आरोही पर, मैं भी आपसे ही प्यार करती हूं भईयू, सिर्फ आपसे। मैने सिर्फ इसलिए उस शादी के लिए हां कहा था क्योंकि आप ऐसा चाहते थे, मैं आपके अलावा किसी और के बारे में सोच भी नही सकती, कभी नहीं। जब आप मेरे करीब आते हो तो कभी मैने आपको मना किया?? नही ना, आप इतना भी नही समझते क्या? एक बार, बस एक बार मुझसे बोला होता मैं कभी आपको दुखी नहीं होने देती पर आप, क्यों किया आपने ऐसा, क्यों... क्यों...

आरोही की बातों से जहां मेरा मुंह खुल चुका था और चेहरा हैरानगी से भर गया था वही मेरे दिल में इतनी ज्यादा खुशी उत्पन्न हो रही थी के मुझे संभाले नहीं संभल रही थी। मैंने खुद को दो थप्पड़ मारे जांचने को के कहीं ये सपना तो नहीं। फिर आरोही के चेहरे को छूकर देखा। मैं पागल सा हो गया था, बस इधर – उधर देख कर खुद को समझा रहा था के ये सब सच है, मेरी जिंदगी की इकलौती ख्वाहिश पूरी हो चुकी थी। तभी आरोही ने मेरी हालत समझते हुए मुझे अपने आगोश में ले लिया। मैने भी अपनी आंखें बंद कर ली और उसे अपनी आत्मा तक महसूस करने लगा और खुद को यकीन दिलाने लगा के अब वो मेरी हो गई थी और मैं उसका। अब हम एक – दूसरे के थे, सिर्फ एक – दूसरे के!!!
evil spirit bhai...... kahan chale gaye bhai itni acchi kahani ko beech me mat chhodo bhai is kahani ko aage badhao ...... please
 
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Evil Spirit Bhai

Kahani khatam ho gayi hai ya abhi aur updates ane hai ??

Kripya confirm karein...

Thanks !!
 

kum@01

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jo bhi ankahi bhawnaaye in dono ne ek doosre se chhipa rakhhi thee,,, aaj shab keh dala,,, ek baar tut chuka hain aarohi ko kho ke doobara wahee galati nahin dohrana chahta hain,,, akhir jeene ka sahara hi wahee hain aur jo gupchup ishare aarohi kar rahi thee jo khel khel mein hi inhone seemaye laanghi wo kaafi tha batane ko inhe kee ab inka rishta badal raha hain...

***
na hi wo bas guriya rahi apne bhaiya kee na hi yeh bas ek bhai raha apni guriya ka,, ab yeh dil kuchh aur bhi rishta chahta hain jiske sapne sanjoye kab se jee rahe the ab wo haqeeqat mein pana chahta hain... bhawnaaye ek saman lekin dono ne ek doosre ke liye balidan kiya apne prem ka,, akhir tyaag hi toh sabse bara shuboot hota hain nischhal prem ka...

***
prem kee beech inki shararate bhi shamil rahi,, miya bewi ban ke shopping karna ya phir majak mein hi ek had se jyada kareeb hona,,, ab dil ne dil ko dil ka haal suna diya... ab yeh do insan kaise aage badhte hain iss najuk rishte ke saath...
Mast update bhai
 
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मेरी प्यारी बहन

भाग – 5 [नया बंधन]

रात को आरोही को गले लगाए ना जाने कब मेरी आंख लग गई। सुबह मेरी नींद मेरे चेहरे पर कुछ गीले एहसास से टूटी। जब मैंने आंखें खोली तो पाया के आरोही मेरे सर के पास खड़ी थी। वो शायद नहाकर आई थी, क्योंकि इस वक्त उसके बाल गीले थे। उसने अपने बालों को मेरे चेहरे पर डाला हुआ था और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। पर जैसे ही उसे एहसास हुआ के मैं उठ चुका हूं और उसे ही अपलक निहार रहा हूं तो उसकी मुस्कान लज्जा में बदल गई। उसने अपनी नज़रें झुका ली और पलट कर जाने लगी पर मैंने तभी उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींचकर अपने ऊपर गिरा लिया।

गीले बालों में वो कुछ अधिक ही हसीन लग रही थी और उसे देख कर मेरे दिल में नया सा एहसास उबाल मार रहा था। वो मेरे ऊपर गिरी हुई थी और शर्म से अपना सर मेरे सीने में दबाए हुए थी। मैंने उसके चेहरे पर आ रहे बालों को उसके कान के पीछे किया और फिर अपने दोनो हाथों से उसकी कमर को थाम लिया। वहां सहलाते हुए मैने कहा,

मैं : आज तो बड़ी ही अच्छी सुबह हुई है। काश ऐसे ही मुझे रोज़ सुबह इस परी का चेहरा देखने को मिले।

मेरे द्वारा अपनी तारीफ पर वो हल्की सी शर्मा गई पर फिर मेरे गाल पर किस करके बोली,

आरोही : मैं रोज़ ऐसे ही जगाऊंगी अपने राजकुमार को।

मैं : तो हम मैडम के राजकुमार हैं!

आरोही : हम्म्म... मेरे सपनों के राजकुमार।

उसकी नादानी भरी बात पर मैं मुस्कुराने लगा और वो मेरे सीने पर सहलाते हुए मुझे देखने लगी। पर तभी मैंने उसकी कमर को हल्का सा झटका देकर उसे ऊपर की तरफ खींच लिया। अब हम दोनो के चेहरे एक दूसरे के सामने थे और मैं उसकी गर्म सांसें अपने चेहरे पर महसूस कर पा रहा था। मैने अपनी एक उंगली से उसके गाल को सहलाया और फिर उसके होंठों पर उसे फिराने लगा। मेरी इस हरकत से उसका शरीर कांपने लगा था। तभी मैने उसके चेहरे को नीचे की तरफ झुकाया, आगे क्या होने वाला था शायद वो समझ गई थी और उसके होंठ फड़फड़ाने लगे थे।

मैने हल्के से अपने होंठों को उसके होंठों पर स्पर्श कर दिया। ये एक पल का मिलन काफी था मुझे एक अलग ही दुनिया में पहुंचाने के लिए। बस तभी मैंने उसके उपरी होंठ को अपने होंठों में भर लिया और हल्के से चूस लिया। उसकी आंखें मदहोशी से बंद हो चली थी। मैंने उसकी कुर्ती के अंदर हाथ डाले और उसकी नग्न कमर पर फिराने लगा। इधर मैं लगातार उसके लबों का रसपान कर रहा था। उसका निचला होंठ कुछ अधिक स्वादिष्ट सा लग रहा था मुझे, तभी मैंने उसकी ज़ुबान को अपने होंठों में कैद कर लिया और उसे चूसने लगा। अचानक ही शायद उसे अपनी हालत को अंदाज़ा हुआ और वो एक झटके में बिस्तर से उठ खड़ी हुई।

उसकी सांसें किसी रेलगाड़ी की तरह चल रही थी और वो पलटकर कमरे से बाहर जाने लगी। पर आज मेरा मन उसे खुद के करीब रखने का था, बेहद करीब। मैं उठा और भागकर उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया।

मैं : नही आरोही आज नही, आज तू मेरे पास रहेगी।

मैने इतना कहकर उसके कान की लौ को अपने होंठों में भर लिया और चूसने लगा। तभी उसकी एक घुटी सी सिसकी निकली – “आह्ह्ह”। मैने अगला हमला उसकी गर्दन पर किया और एक बार नीचे से ऊपर तक उसके गले पर ज़ुबान फेर दी। मैं उसके शरीर के बढ़ते तापमान को अच्छे से महसूस कर पा रहा था। तभी मुझे चौंकाते हुए वो पलटी और मेरे चेहरे को दोनो हाथों में थामकर मेरे होंठों पर हमला कर दिया। उसने मेरे ऊपर वाले होंठ को काट लिया। बस फिर तो वो बेकाबू सी हो गई थी और लगभग मेरे होंठों को चबाने लगी। मुझे दर्द तो हो रहा था पर मैं उसे रोकना नहीं चाहता था।

तभी मेरे होंठों से खून रिसने लगा जिसके कारण वो मुझसे अलग हुई। मेरे होंठ थोड़े सूज गए थे और कटे हुए लग रहे थे। वो ये देख कर डर सी गई और अपने मुंह पर दोनो हाथ रख लिए। अगले ही पल उसने अपने कान पकड़ लिए और आंखों में पानी के कतरे लिए मुझे देख कर बोली,

आरोही : भईयू, सॉरी... मैने जान बूझ के नही... गलती से। प्लीज़ मुझसे नाराज़ मत होना...

मैने उसे गले लगा लिया और बोला,

मैं : मैं तुझसे कभी नाराज़ नही हो सकता मेरी जंगली बिल्ली, तेरा दिया हर दर्द मुझे कुबूल है।

मेरी इस बात का शायद बहुत गहरा असर हुआ था उसपर। वो मुझे एक टक देखने लगी और फिर मेरे होंठों पर हल्के से उंगली फेरी। जलन से मेरी आंखें बंद हो गई। फिर मुझे हैरान करते हुए उसने अपनी जीभ निकाली और उसे मेरे होंठों पर घुमाने लगी जैसे मलहम लगा रही हो। वो प्यार से मेरे बालों को सहलाते हुए ये कर रही थी। मैने उसे खुद से अलग किया तो वो मुझे सवालिया नजरों से देखने लगी। पर तभी मैं नीचे बैठ गया और उसकी कुर्ती को हल्का सा ऊपर उठा दिया। उसकी आंखें मेरी इस हरकत से चौड़ी हो गई थी।

मैने एक बार उसकी आंखों में देखा और फिर उसके पेट पर एक चुम्बन जड़ दिया। बिल्कुल मक्खन सी मुलायम त्वचा थी उसकी। मेरी नजर जब उसकी गहरी नाभि पर पड़ी तो मेरा दिमाग मदहोश होने लगा। मैं उसके मोह पाश में बंधा एक दम से उसकी नाभि को चूमने लगा।

आरोही : भईयूयूयूयूयू...

तभी मैंने अपनी जीभ उसकी नाभि में डाल दी और उसकी लगभग एक चीख ही निकल गई। उसने मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया और मेरा मुंह अपने पेट पर दबाने लगी। काफी देर बाद मैं अलग हुआ और उसे देख कर बोला,

मैं : तू तो बहुत मीठी है मेरी गुड़िया।

वो एक दम शर्माती हुई कमरे से भाग गई। मैं बस उसे जाते देख कर मुस्कुराने लगा। पर मैंने अपने मन में एक विचार को लेकर निश्चय कर लिया था। मैने किसी को फोन लगाया और कुछ देर तक एक बारे में बात की। उसके बाद मैं नित्य क्रिया में लग गया। खैर, नहा धोकर जब मैं तैयार हो चुका था, तब मैं बाहर आरोही के पास पहुंचा। वो रसोई में खड़ी थी और नाश्ता बनाने में लगी थी। उसके बालों की एक लट उसके चेहरे पर आ रही थी और वो परेशान होकर बार – बार उसे सही करने की कोशिश कर रही थी। पर उसके हाथ आटा गूथने के कारण साफ नही थे इसीलिए वो ठीक तरह से नही कर पा रही थी।

मैं मुस्कुराकर उसके पास जाकर खड़ा हो गया और शेल्फ से टेक लगाकर उसे निहारने लगा। उसने एक नजर मुझपर डाली और स्वयं ही एक बेहद ही प्यारी स्माइल उसके होंठों पर आ गई। फिर वो दोबारा से अपने काम में लग गई। पर अबकी बार जैसे ही उसके बाल उसके चेहरे पर आए मैने दोनो हाथों से उसके बालों को पीछे करके जूड़ा बना दिया। अकसर बचपन में मैं ही उसके बाल बनाया करता था और शायद वही याद करके मेरे दिल में गुदगुदी होने लगी।

मैं : आरोही चल जल्दी से नाश्ता करते हैं फिर हमे कहीं जाना है।

आरोही : कहां भईयू?

मैं : जब चलेंगे तब पता चल जाएगा मेरी गुड़िया। अब तैयार हो जा फटाफट और हां लहंगा पहन लियो।

आरोही : लहंगा! कुछ खास है क्या आज?

मैं : खास... बहुत खास। तू बस सवाल मत कर और तैयार होने चल।

खैर, इसके बाद हमने नाश्ता किया और मैने आरोही को तैयार होने का बोल दिया और खुद बाहर चला गया किसी से मिलने। जब मैं कुछ दो घंटे बाद घर लौटा तो पाया आरोही हॉल में सोफे पर बैठी थी। मैं उसे देख कर अपनी ही जगह पर जम सा गया। बिना पलक झपकाए मैं उसे देखे जा रहा था। और ये लाजमी भी था, आरोही ने इस वक्त एक हल्के गुलाबी रंग का लहंगा पहना हुआ था। उसे मेक–अप वगेरह का तो शुरू से ही कोई शौक नही था और मेरे मुताबिक तो उसे जरूरत भी नहीं थी। आखिर वो पहले से ही एक परी जो थी। खैर, उसने लहंगे से मेल खाता हुआ ही हार, बालियां और बाकी जेवर पहने हुए थे। सबसे खास मुझे लग रही थी उसके नाम में पहनी वो नथ। वो भी मुझे देख कर अपनी जगह से खड़ी हो चुकी थी और जैसे मैं मूर्खों की तरह उसे देख रहा था, वो भी मुझे ही देखे जा रही थी।

मैं बाहर से ही तैयार होकर आया था और मैने फिल्हाल एक शेरवानी टाइप परिधान पहना हुआ था। मैं मंत्रमुग्ध सा होकर उसके पास पहुंच गया और उसके दोनो गालों को थामकर एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित कर दिया। ये चुम्बन मेरे उसके लिए प्रेम से सराबोर था, जिसे वो भी भली भांति समझ रही थी। नतीजतन उसके होंठों पर एक मुस्कान आ गई। खैर, उसने मुझसे पूछा भी के हम कहां जा रहे हैं पर मैने उसे इंतजार करने को कहा। जब हम बाहर आए तो एक टैक्सी मैने पहले ही मंगवा ली थी। हम उसमें बैठे और एक तरफ निकल पड़े। टैक्सी ड्राइवर एक काफी उम्र के बुज़ुर्ग से व्यक्ति थे और हम देख कर मुस्कुरा रहे थे। उनका ऐसा करना भी लाज़मी था क्योंकि मैं और आरोही वहां बस एक दूसरे का हाथ थामे अपने प्रेमी को निहार रहे थे।

जब टैक्सी अपने गंतव्य पर पहुंचने वाली थी तो मैंने आरोही को आंखों पर एक पट्टी बांध दी। उसने एक बार फिर से सवाल किया पर मैने उसे बस कुछ देर सब्र करने को कह दिया। अब तक वो काफी अधीर हो चुकी थी जान ने के लिए की मैं उसे लेकर कहां जा रहा था। टैक्सी ड्राइवर भी अब तक सब समझ चुका था। खैर, टैक्सी एक मंदिर के बाहर रुकी और मैं आरोही को लेकर अंदर चला गया। जब रास्ते में सीढियां आई तो मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया था। अंदर पहुंचकर मैने पुजारी जी को प्रणाम किया और फिर आरोही की आंखों से पट्टी हटा दी। जैसे ही उसने आस पास के हालात का जायज़ा लिया वो सारा मामला समझ गई और भीगी आंखों से मेरी तरफ देखने लगी। मैं बस उसे देख कर मुस्कुरा रहा था। वो एक झटके से मुझसे लिपट गई और अश्रु बहाने लगी। मैं उसके सर पर हाथ फेरकर उसे शांत कर रहा था।

आरोही : आप मुझसे सचमें शादी करोगे?

मैं : तुझे अभी भी कोई शक है!

अचानक ही वो मुझसे अलग हुई और मेरे हाथों को पकड़कर बोली,

आरोही : थैंक यू... थैंक यू... थैंक यू... आज आपने मुझे मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी दी है। थैंक यू।

पंडित जी : चलो बेटा अब जल्दी करो, मुहूर्त निकला जा रहा है।

हम दोनों ने एक बार एक – दूसरे की तरफ देखा और फिर अपनी जगह पर बैठ गए। जब बारी कन्यादान की आती तो मुझे वो पल याद आ गया जब हर्षित के साथ आरोही की शादी हुई थी। कितना दर्द, कितनी पीड़ा मेरे कलेजे में हुई थी, मैं ही जानता था। मेरी आंखें उस पल को याद करके डबडबा गई। आरोही भी शायद समझ रही थी, उसने मेरा हाथ थामकर मुझे एक मूक दिलासा दिया के अब वो हमेशा के लिए मेरी ही है। खैर, फिर मंगलसूत्र, सिन्दूर और सात फेरे... हम दोनों आज एक पुराने रिश्ते से ऊपर उठकर एक नए बंधन में बंध चुके थे। ये बंधन मेरे लिए बहुत खास था। मैं तय कर चुका था के अब आरोही की जिंदगी में मैं हर खुशी भर दूंगा। उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होने दूंगा। उसे इतना प्यार दूंगा के वो पिछले सारे दर्द भूल जाएगी। हमने पंडित जी का आशीर्वाद लिया,

पंडित जी : सदा सुहागन रहो बेटी, तुम दोनो की जोड़ी सदा बनी रहे।

आरोही के माथे पर आज फिर सिंदूर लग चुका था, आज फिर उसके गले में मंगलसूत्र था, आज फिर वो एक सुहागन लग रही थी। उसका ये रूप जो मैने जेल से आकर देखा था, इस रूप में वो मुझे अप्सरा समान ही लग रही थी। पर आज उसका ये सिन्दूर, मंगलसूत्र और सब कुछ मेरे नाम का था, सिर्फ मेरे नाम का। आज से हम शायद एक नए और पवित्र बंधन में बंध गए थे और एक आशियाना जिसका ख्वाब मैने देखा था वो आज सचमुच पूरा होने जा रहा था।
 
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Evil Spirit

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Waiting for the next update

agle update ka shiddat se intezaar hai


evil spirit bhai...... kahan chale gaye bhai itni acchi kahani ko beech me mat chhodo bhai is kahani ko aage badhao ...... please

Waiting bhai

Evil Spirit Bhai

Kahani khatam ho gayi hai ya abhi aur updates ane hai ??

Kripya confirm karein...

Thanks !!

Mast update bhai
Update Posted Guyzzz...

Darasal mera ek chhota sa accident ho gaya tha. Chit to zyada nahi lagi par haath mein kaafi dard tha jiss wajah se likh nahi paaya. Deri ke liye maafi chahunga.
 

NEHAVERMA

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मेरी प्यारी बहन

भाग – 1 [बीती बातें]

मुंबई, यानी मायानगरी, कुछ लोग इसे सपनों की नगरी भी कहते हैं। मैं भी कुछ इसी सोच के साथ यहां इस शहर में आया था। मेरी मां की मृत्यु तो तभी हो गई थी जब मैं कुछ 5–6 साल का था। असल में मेरी छोटी बहन को जन्म देते वक्त आई कुछ परेशानियों की वजह से उन्होंने अपना देह त्याग दिया था और उनकी मृत्य के बाद ही मेरे जीवन में असली परेशानियों ने दस्तक देना आरंभ किया। मां के जाने के बाद मेरी जिंदगी मेरी बहन में ही सिमट कर रह गई थी। मैं उसकी ज़िंदगी को खुशियों से भर देना चाहता था। पर मेरे बाप को कुछ और ही मंज़ूर था।

हुआ यूं की मां के जाने के कुछ पंद्रह दिन बाद ही मेरे बाप ने दूसरी शादी कर ली। मैं काफी छोटा था पर समझदार था। दूसरी शादी का मतलब मैं भली – भांति समझता था और उस दिन मेरे दिल में पहली बार मेरे बाप के खिलाफ कोई विचार पनपा। पर असली खेल तो तब शुरू हुआ जब उनकी नई बीवी हमारे घर में प्रवेश कर गई। उसने पहले ही दिन से मेरे बाप को खुद के पीछे कुत्ते जैसा बना दिया और उन्हें तो वैसे भी बस यौन सुख चाहिए था जो वो औरत उन्हें दे सकती थी। अब क्या ही मतलब रह गया था उन्हें हमसे।

धीरे – धीरे वक्त का पहिया चलता गया और मेरी बहन बड़ी होने लगी। उसे भी हमारे घर का सारा माहौल समझ आने लगा था। कहीं ना कहीं उसने भी इस सबसे एक समझौता सा कर ही लिया था। पर अभी भी उसके पास “मैं” था। जिसे वो अपना भाई, अपना पिता सब कुछ मानती थी। हम दोनो का कमरा एक ही था। वो रात को मुझसे लिपट कर ही सोया करती थी। अब मेरे बाप की नई बीवी को तो हमसे क्या ही मतलब था। हम मरे या जिएं उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। पर मेरी बहन को मुझे एक सुखद जीवन प्रदान करना था।

मैंने पड़ोस की एक अम्मा से खाना बनाना सीख लिया था और रोज नए – नए व्यंजन बनाकर अपनी जान को खिलाया करता था। में उसे “गुड़िया” कहकर पुकारता था। वह भी सब कुछ समझती थी और मेरे मन में जो प्रेम उसके लिए भरा था वो उस से भी अंजान ना थी। फिर जब उसके स्कूल जाने की बारी आई। मेरी पढ़ाई भी उस औरत के राज में कबकी बंद हो गई होती परंतु मैं पढ़ाई में शुरू से ही अच्छा था इस कारण मेरे स्कूल की फीस माफ हो चुकी थी। पर मेरी बहन तो अभी स्कूल जाना शुरू करने वाली थी। उस औरत ने मेरे बाप या कहूं के चूत के भूखे बाप के कान भर दिए थे और उस आदमी ने साफ कह दिया के लड़की है पढ़कर क्या करेगी। एक दिन तो चूल्हा – चौका ही करना है। उस दिन पहली बार मेरे मन के एक कोने से मेरे बाप के लिए बद्दुआ निकली।

उस दिन गुडिया बहुत दुखी थी। वो अपनी से ज्यादा उम्र के बच्चों को स्कूल जाता देख, खासकर मुझे, हमेशा से स्कूल जाना चाहती थी। पर वो सब बातें उसने भी सुन ली थी। वो हमारे कमरे में बिस्तर पर लेटी रो रही थी जब मैं उसके पास पहुँचा। उसे यूं रोता देख कर बहुत ज्यादा दर्द मेरे सीने में हुआ। मैंने उसे उठाया और अपने गले से लगा लिया। वो भी मुझसे बेल की तरह लिपट गई। मैने उसके फूले – फूले गालों को प्यार से चूमा और फिर एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित कर दिया। मैंने एक बार फिर उसे अपने आगोश में लिया और उसके कान में कहा,

में : रोते नही मेरी परी। मैं हूं ना, आपका भाई आपको स्कूल भेजेगा।

ना जाने कैसे मैं वो बोल गया। मेरी उम्र अभी बहुत कम थी पर उसके लिए मेरा प्रेम समुंदर जैसा ही था। यही कारण था इन शब्दों को जो मेरे मुख से फूटे थे। उसके चेहरे पर भी रौनक लौट आई थी। वो खिलखिलाती हुई बोली,

गुड़िया : सच्ची भईयू मुझको स्कूल भेजेगो आप?

मैंने बस हां में सर हिला दिया। और एक बार फिर उसकी जगमग आंखों में खुशी लौट आई। बस फिर क्या था मैंने हमारे पड़ोस में रहने वाले एक रहीम चाचा जोकि मेरी मां को अपनी बहन माना करते थे, उनसे बात की। वो भी खुशी से पैसे देने को तैयार थे। पर मुझे ये गवारा ना था। मेरी गुड़िया की खुशी मैं खुद जुटाना चाहता था। मुझसे प्रभावित होकर उन्होंने भी मेरी बात मान ली और हमारे गांव से कुछ दूर बनी एक कपड़ा फैक्ट्री में मुझे लगवा दिया। वहां खतरा भी कम था, केमिकल फैक्ट्री के मुकाबले और पैसे भी ठीक थे।

बस फिर मैने गुड़िया का दाखिला अपने ही स्कूल में करवा दिया। हेडमास्टर साहब मेरे पढ़ाई और खेल – कूद में अव्वल होने के कारण मुझसे बेहद अच्छा व्यवहार करते थे। तो वो भी खुश थे और कुछ फीस में रियायत भी कर दी थी उन्होंने। बस इस घटना ने कहीं ना कहीं गुड़िया के मन मंदिर में मुझे काफी ऊंचा स्थान दे दिया था। वो मुझसे और भी अधिक प्रेम पूर्वक बर्ताव करने लगी थी और मुझे बस यही चाहिए था, उसकी खुशी।

इस तरह समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता गया। गुड़िया ने 12वीं की परीक्षा बेहद अच्छे अंकों से पास कर ली थी। वो 18 वर्ष की हो चुकी थी। वहीं मैं 24 का हो चला था और मैंने पास के ही शहर के एक कॉलेज से एम.बी.ए की डिग्री हासिल कर ली थी। पर इन बीते सालों में गुड़िया के मन में मेरे लिए प्रेम बहुत बढ़ चुका था। वो सदैव मेरे साथ ही रहती थी, खाना – पीना, सोना – जागना या पढ़ना हर काम वो मेरे सानिध्य में रहकर ही करती थी। पर इन सालों में एक चीज नही बदली, मेरे बाप और उनकी बीवी का हम दोनो के प्रति बर्ताव। अब तो उनका खुद का एक बेटा और एक बेटी भी थे। दोनो का ही दाखिला मेरे बाप ने शहर के उच्चतम स्कूल में करवाया था।

जब मैंने 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी तब रहीम चाचा की मदद से में एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी पर लग गया था। तनख्वाह भी अच्छी थी। इस बीच गुड़िया भी अपनी पढ़ाई में अव्वल ही आती रही और उसकी फीस भी माफ हो गई थी। मैं अब वो सारे पैसे उसके लिए सभी सुख – सुविधा की चीजें लाने में लगा दिया करता था। जब मैं पहली दफा उसके लिए एक ड्रेस खरीदकर लाया तब उसकी खुशी देखते ही बनती थी। अब मैं अक्सर उसके लिए नए कपड़े, मेक – अप का सामान, अच्छी – अच्छी मिठाइयां और भी पता नहीं क्या – क्या ले जाया करता था। जब वो 9वीं कक्षा में थी तब एक दिन मैं कमरे में बैठा पढ़ रहा था। तभी मुझे कमरे से ही जुड़े बाथरूम से उसके चीखने की आवाज आई। में डरकर अंदर भागा तो पाया वो कमोड पर बैठी रो रही थी। उसका लोवर उसके पैरों में था। अर्थात उसके शरीर पर मात्र एक कमीज़ थी।

मैंने उसके नजदीक जाकर उसे गले लगा लिया। और उसके सर पर हाथ फेरने लगा।

में : क्या हुआ मेरी गुड़िया। क्यों रो रहे हो आप?

गुड़िया : भईयू मे... मेरी ना सूसू में से खून आ रहा है।

में समझ गया के उसका मेंस्ट्रुअल साइकिल आरंभ हो गया था। और अचानक ही मेरी आंखों में पानी के कतरे उभर आए। कल की ही तो बात थी, जब मां उसे मुझ अबोध बालक की गोद में छोड़ गई थी। और आज वो जवानी की दहलीज पर क़दम रख चुकी थी। सचमें लड़कियां बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं। मैने उसे प्यार से चुप करवाया और इस सबकी पूरी जानकारी दी। मेरे मुंह से ये सब सुनकर वो काफी शर्मा रही थी पर वो जानती थी कि उसका भाई ही उसकी पिता था और उसकी मां भी।

बस उस दिन के बाद वो सचमें मुझसे काफी खुल सी गई। वो मुझे अपने स्कूल की, अपनी सहेलियों के साथ हुई बातें, शाम को खेल के वक्त की बातें, सब बता दिया करती थी। उसे कोई भी परेशानी होती तो बेझिझक मुझे बोला करती थी। ख़ैर, अब मैं 24 का हो गया था और वो 18 की। जिस दिन हम उसका 12वीं का नतीजा लेकर घर पहुंचे उस दिन ही हमारा जीवन एक नए मोड़ पर पहुंच गया था। हमारे घर पर गांव का सेठ बैठा हुआ था। वो एक 35 – 36 वर्ष का भद्दा सा आदमी था। उसकी शादी कई साल पहले हो गई थी फिर एक दिन सुनने में आया के गैस स्टोव फटने से उसकी बीवी की मौत हो गई। पर कहने वाले तो ये भी कहते थे के वो अपनी बीवी को अपने फायदे के लिए दूसरों के नीचे लेटा देता था और उसने ही अपनी बीवी की हत्या भी की थी। खैर, उसका एक बेटा भी था जो फिलहाल स्कूल जाया करता था। जब मैं और गुड़िया वहां पहुंचे तब जो मैने सुना वो सुनकर मेरे क्रोध की ज्वाला धधक पड़ी। वो कमीना गुड़िया का हाथ मांगने आए था अपने लिए और मेरे बाप ने सहमति भी दे दी थी क्योंकि वो मेरे बाप को कुछ जमीन दे रहा था।

मैने गुड़िया की तरफ देखा तो पाया के उसकी आंखें भीगी हुई थी, उस दिन पहली बार मैंने अपने बाप को खींच के एक थप्पड़ मारा। बस अब वहां एक पल भी रुकना मेरे ज़मीर को गवारा ना था। मैने गुड़िया का हाथ पकड़ा और अपने और उसके जरूरी कागजात लेकर वो घर छोड़कर निकल गया। मुझे नहीं पता था के मैं उसे कहां ले जा रहा था पर इतना पता था के उसे मैं दुनिया की सारी खुशियां जरूर दूंगा। खैर, मैंने मुंबई जाने का निश्चय किया और गुड़िया के साथ ही ट्रेन में बैठ गया। वो मुझे बेहद हैरत भरी नज़रों से ताकती रही। पहले उस आदमी को थप्पड़ मारना जो हमारा बाप था, उस सेठ की धुलाई करना, और फिर उसे यूं घर से ले आना। असल में मैं समझ रहा था के वो मुझपर वारी – वारी जा रही थी। खैर, यहीं से शुरू हुआ उसका और मेरा नया सफर जिसकी गवाह ये मायानगरी मुंबई बनने वाली थी।


अरे हां मैंने अपना नाम तो बताया ही नहीं। मैं – अरमान और मेरी गुड़िया – आरोही।
Good one
 
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