Cooldude1986
Supreme
Thanks for support bhaiBahut hi umda update he HalfbludPrince Fauji Bhai,
Aan baan shaan aur jhuthi izzat............ye sab raas nahi aa raha he apne dev ko...........
Gazab ki story chal rahi he bhai
Keep rocking Bro
ThanksNice update
ThanksBahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and awesome update....
ThanksBadhiya update
Nice update....#22
सुबह उठा तो बदन में दर्द सा था हाथ मुह धो ही रहा था की मैंने पिताजी की आवाज सुनी जो किसी बात को लेकर बुआ पर चिल्ला रहे थे मुझे देख कर वो चुप हो गए बुआ अन्दर चली गयी .
“तुझे कितनी बार कहा है की मुनीम जी से काम सीख ले , ” पिताजी ने कहा
मैं- शराब से लोगो की जिन्दगी बर्बाद होती है , मैं ये काम नहीं करूँगा हां खेती की पूरी जिम्मेदारी ले लूँगा
पिताजी- ये जो तमाम सुख सुविधाए तुमको मिलती है न उसी शराब की कमाई से आती है और तुझे क्या परवाह है लोगो की जिन्दगी की ये मत भूल तू किसका बेटा है . पैदा तो मैंने शेर किया था पर तुझे देख कर लगता है की शेर के घर में गीदड़ पैदा हो गया है . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है यहाँ अच्छाई एक लिमिट तक ही रहती है , सरल सहज लोग जल्दी ही बर्बाद हो जाते है . इस बात को समझ लेगा तो जी लेगा दुनिया में वर्ना धिक्कार ही रहेगा तुझ पर .मैंने आगे कुछ नहीं कहा और घर से बाहर निकल गया .
देखा पिस्ता अपने घर के बाहर ही बैठी थी .
“और चौधरी साहब आज इधर किधर ” उसने मुझे देखते हुए कहा .
मैं- और कोई काम नहीं है क्या बाप के ताने सुनकर आया हूँ तू भी ताने मार ले
“आजा बैठ के बात करते है ” पिस्ता ने मुझे घर के अन्दर आने को कहा
मैं उसके पीछे गया .
“क्या हुआ जो सुबह सुबह उदासी चेहरे पर ले आये ” उसने कहा
मैं- वही रोज का किस्से, बाप चाहता है की मैं उसके कारोबार को संभालू. मैं शराब नहीं बनाना चाहता न बेचना चाहता हूँ . मैंने कहा खेती कर लूँगा तो बाप चिढ गया उसकी आन बाण से तंग आ चूका हूँ मैं
पिस्ता- सही कहते है बड़े चौधरी , तू एकलौती औलाद है उनकी और फिर कौन बा चाहेगा की औलाद कामयाब ना हो.
मैं- तू उस घर में रहती न तो तू समझती कितना जहर है उन दीवारों में
पिस्ता- दुनिया तेरी तरह नहीं सोचती देव, जिस जहर की तू बात करता है वो चौधरी ही नहीं इस गाँव के हर घर में फैला है , ये दुनिया इतनी भी आसान नहीं है जितनी तू समझता है और फिर तूने जाना ही क्या है . जिस आन बान शान से तू नफरत करता है तेरे जीवन की सच्चाई है जिस से तू कभी भाग नहीं पायेगा. जात-पात की दीवारे इतनी ऊँची है की इंसानियत बौनी पड़ ही जाती है .
“फिर तो मुझ को इन्सान होना ही नहीं चाहिए पिस्ता, फिर तो इस चौधरी को तेरे घर में पैर ही नहीं रखना चाहिए था . क्या बकवास है ये सब. मैं तेरे साथ इसलिए हूँ क्योंकि तू समझती है मुझे. अपने मन की कह सकता हु तुझसे .मुझे लगता है की कोई है जो मेरे साथ है .और अगर ये सब करने से मुझे मेरा चौधरी होना रोकता है तो मैं खुद को चौधरी मानता ही नहीं ” मैंने कहा
पिस्ता- फिर तो तेरा आने वाला वक्त मुश्किल रहेगा देव .
मैं- देखेंगे वो भी फिलहाल कुछ है तो खिला दे भूख सी लगी है बैसे भी अब घर नहीं जाने वाला मैं जब तक बापू रहेगा .
पिस्ता- ये भी कोई कहने की बात है
पिस्ता ने मुझे खाना परोसा .
“क्या सोचने लगा देवा ” लस्सी का गिलास भरते हुए बोली वो
मैं- इस रोटी और मेरे घर की रोटी में फर्क है , वो रोटी अपनी सी नहीं लगती और ये रोटी रोज नहीं मिल सकती .
पिस्ता- चुपचाप खा ले, किसी को मालूम हुआ की तू मेरे घर खाना खाया है तो गाँव में बवाल हो जाये
मैं- वो भी देखेंगे ,वैसे तेरे घर वाले गए कहाँ कोई दिख नहीं रहा
पिस्ता- वो होते तो क्या तू अन्दर होता
हम दोनों हंस पड़े. मैं सोचने लगा की बुआ वाली बात पिस्ता को बतानी चाहिए या नहीं . कुछ देर उसके साथ रहने के बाद मैं गाँव में निकल गया .मालूम हुआ की रागनी प्रोग्राम वाले अपना सामान समेट कर चले गए जबकि प्रोग्राम कम से कम हफ्ते भर तो चलना ही था . कब तक भटकता , घर पहुंचा तो देखा की माँ कपडे धो रही थी पिताजी के कुरते पर खून के दाग थे .आज मैंने हिम्मत करके माँ से सवाल कर ही लिया
मैं- माँ, ये दाग मैं अक्सर ही देखता हूँ इस कुरते पर .
“तू जानता है न इस घर में सवाल करने की इजाजत नहीं है देवा. ” माँ ने कहा
मैं- मैं नहीं तुम तो सवाल कर सकती हो न माँ. मुझसे ना सही पर तुमसे तो कुछ नहीं छिपा ना माँ
“इस घर में औरतो को भी इजाजत नहीं है ” माँ ने कहा
मैं- पिताजी ऐसा क्या करते है . कहने को तो हमारी शराब की फक्ट्री है दान पुन्य भी करते है जमीने है फिर भी ये सब
माँ- बाहुबली है तेरे बापू , और फिर तुझे अगर इतना ही जानने की ललक है तो फिर धंधा संभाल क्यों नहीं लेता तू
“कुछ बाते घर के बेटे को घर में ही मालूम हो जाये तो बेहतर होगा माँ, कल किसी और से मैं जानूंगा तो कहीं इस घर की आन बान शान पर असर ना हो ”मैंने कहा . माँ कुछ नहीं बोली.
“भाभी मैं कुछ देर घर से बहार जाना चाहती हूँ ” बुआ ने आते हुए कहा
माँ- चौधरी सहाब को मालूम हुआ तो जानती हो न क्या होगा.
मैं- बुआ पर इतनी बंदिशे क्यों है माँ
माँ- तू चुप कर , आजकल जुबान बहुत चलने लगी है तेरी अन्दर जा और तुम ,मैं कुछ कहना नहीं चाहती. कम से कम मुझे तो चैन से जीने दो .
पैर पटकते हुए मैं कमरे में जाने की जगह एक बार फिर से निकल गया घर से. पर कहते हैं न की जब मन में व्यथा हो तो मन कही भी नहीं लगता खेतो पर भी करार नहीं आया तो मैं जंगल में भटकने लगा और भटकते भटकते मैंने एक बार फिर जंगल में कुछ ऐसा देखा की साला समझ में आया ही नहीं की ये सब आखिर है क्या......................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है#18
देव उठो देव
पिघले शीशे की तरह वो चीख मेरे कानो के पर्दों को झुलसा रही थी . आँखों में उसकी तस्वीर तो थी पर वो नहीं थी , नहीं थी वो. मैंने तलवार उठाई और गुस्से में क्या किया कोई परवाह नहीं थी . जब मैंने अपना मुह पोंछा तो चारो तरफ अगर कुछ था तो सिर्फ लाशे और कांपता हुआ लाला.
“तू वजह जानना चाहता था न की क्यों मैंने तेरे बेटे का वो हाल किया . बताता हु तुझे ” मैंने लाला पर वार किया और उसके हाथ की उंगलिया धरती पर गिर गयी . लाला की चीख गूंजने लगी.
मैंने एक नजर मंत्री पर डाली . जिसके चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी.
“मेले में तेजा ने उस पाक दामन को गन्दा करने की सोची थी जिस आँचल को मैंने थामा हुआ था . तेरे बेटे को गुरुर था की कोई उसका झांट भी नहीं उखाड़ सकता और देख आज एक भी झांट नहीं बचा उसके पास . मैंने तेजा से कहा था माफ़ी मांग ले पर साले को चुल थी, तेरी नाकाम परवरिश की, उसको लगता था की तू बहुत बड़ी तोप है . तेरा बेटा है तो जो चाहे करेगा पर देख मैं खड़ा हूँ आज यहाँ और सात साल पहले भी खड़ा था हक़ के लिए, इंसाफ के लिए पर अफ़सोस तू नहीं रहेगा , क्या कहा था तूने एक सौदा करते है ये रात मेहरबान है , बेशक ये रात मेहरबान है ” मैंने कहा और अगले वार के साथ लाला का दायाँ हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया
“तू तो अभी से घबरा गया लाला, अभी तो कसाईपना देखना है तुझे ” बोटी बोटी काटते हुए गरज रहा था मैं उस रात. लाला का काम तमाम करने के बाद मैं मंत्री की तरफ मुखातिब हुआ .
“बहन के लंड मंत्री, आ तू भी बदला लेले रोकी की गांड तोड़ने का . ” इस से पह्ले की मैं मंत्री का नंबर लगाता पिस्ता ने मुझे रोक लिया
“नहीं देव नहीं , तुझे मेरी कसम ”
“कोई और हैं इस गाँव में जिसके अन्दर बदला लेने की चुल मची हो ” मैंने चिल्ला कर पुछा पर कोई आवाज नहीं आई.
“पानी ले आ जरा पिस्ता ” मैंने कहा और दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ घूँट पिए कुछ थूक दिया .
“मंत्री , तेरे बेटे की हालत का जिम्मेदार मैं नहीं हु, न मेरी उस से पहले कोई दुश्मनी थी न आज है . मैं अपने आप से परेशान हु मुझे और तंग न करो . होंगे तुम शहर के मालिक मुझे मेरे गाँव में रहने दो ना तुम मेरे रस्ते आओ न मैं कभी तुम्हे परेशान करूँगा. समझ आये तो ठीक बाकी मर्जी तुम्हारी ” मैंने मंत्री से कहा
“बहु चलो ” मंत्री मरी सी आवाज में बोला
पर पिस्ता टस से मस नहीं हुई.
“सुना नहीं तुमने बहु ” मंत्री से सख्ती से कहा
पिस्ता- मैं यही रहूंगी पिताजी
मंत्री- जानती हो क्या कह रही हो इसका नतीजा क्या होगा
पिस्ता -कल क्या हो किसने सोचा पर आज के लिए मैंने अपना फैसला ले लिया है
मंत्री- तुम्हे पछताना न पड़े
पिस्ता- पछताई तो मैं कभी भी नहीं
मंत्री पैर पटकते हुए चला गया रह गए हम दोनों और वहां पड़ी लाशे.
“खून खराबा बहुत हो गया देव, इसे संभालना मुश्किल होगा ” पिस्ता ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .
“हो तो गया ” मैंने कहा
हमारी आँखे एक दुसरे से मिली, कुछ इशारे हुए और मैंने गाड़ी से तेल की पीपी निकालना शुरू किया, पिस्ता ने लाशो को इकठ्ठा करना शुरू किया . सबूत मिटाने की बचकानी कोशिश .
“आने वाला समय मुश्किल होगा ” पिस्ता ने गाडी में बैठते हुए कहा
मैं- वो भी देखेंगे
कुछ देर बाद गाड़ी वहां पहुँच गयी जो रास्ता गाँव की तरफ जाता था पर मैंने उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया.
“गाँव नहीं तो कहाँ ” पिस्ता ने अपनी जुल्फों को बांधते हुए कहा
मैं- जान जाएगी
मैंने गाडी जंगल की तरफ मोड़ दी. रात अँधेरे को चीर कर सुबह में मिल जाना चाहती थी और मैं यादो को चीर कर अतीत में पहुंचना चाहता था . आँखों में भर आये पानी के कतरों को आस्तीन से साफ़ किया मैंने आसमान में बदल गरजने लगे थे . जंगल के तक़रीबन हिस्से को पार करने के बाद आख़िरकार मैं उस जगह पर पहुच ही गया जो न जाने कब से बाट देख रही थी की कोई तो आएगा उसके सूनेपन को बाँटने .
“तो तुम सच ही कहते थे इस बारे में ” पिस्ता ने लगभग चहकते हुए कहा
मैं- तुमने कभी माना भी तो नहीं था
पिस्ता- दीवानों की बातो का भला माना भी है किसीने
मैं- दीवानगी का वो एक दौर था जो तेरी ना के साथ बीत गया था तू चली गयी रह गए हम और ये घर .
“तेरा हर इल्जाम कबूल है सर्कार ” पिस्ता ने कहा
काले पत्थरों से बना वो घर जंगल में इस तरह से छिपा था की पहली नजर में कोई देख ही नहीं पाए. चारो तरफ सफेदे के पेड़ो से घिरा हुआ पत्थरों का ढेर ही लगता था जब तक की कोई गहरी नजरो से समझ न सके,थोडा जोर लगाना पड़ा दरवाजा खोलने के लिए .बरसो बाद रौशनी हुई थी यहाँ पर चिमनी की लौ मेरी तन्हाई को जला देने को बेताब सी थी .
बर्तनों पर धुल जमी थी, बिस्तर रुसवा था पानी का मटका सूखा पड़ा था . वक्त ने मेरी तरह इसे भी भुला दिया था .
“तुम आ गए हो वो भी आ जाएगी ” पिस्ता ने मेरा हाथ थामते हुए कहा
“सोना चाहता हु कुछ देर ” मैंने इतना कहा और पिस्ता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .
“दुःख के दिन बीते देव, हमें भी अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर ” मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा पिस्ता ने .
“सुख , ” मैंने हौले से कहा और उस दिन की याद में खो गया जब से ये कहानी, ये फ़साना शुरू हुआ .
आँख खुली तो घर में चीख-पुकार मची थी . कुछ नहीं सुझा तो चोबारे से निचे आया जिन्दगी में मैंने पहली बार अपनी माँ को रोते हुए देखा था . दिल इतनी जोरो से धडकने लगा था ,एक लड़के के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो होता है जब उसकी माँ की आँखों में आंसू हो.
“क्या हुआ माँ . ” बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया.
पर इस से पहले की माँ जवाब देती आँगन में जीप आकर रुकी और .................................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है#19
आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .
पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.
“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .
“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .
कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.
भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा
मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में
“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे
मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .
“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा
मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो
मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .
“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो
मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .
“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा
मैं- आधी रोटी और लूँगा
वो मुस्कुरा पड़ी .
“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा
वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ
मैं- कल आएगी क्या
वो- क्यों भला
मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के
वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी
“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा
वो- जानती हु
मैं- तो फिर देव ही कह न
वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक
मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो
“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा
मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना
वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ
मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .
“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा
“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है
दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.
“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा
“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.
“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .
“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने
मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है
पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है
मैं- बुआ तो ठीक नहीं है
पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है
मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
बहुत ही शानदार लाजवाब और रमणीय अपडेट है देव पिस्ता के साथ समय बिताना चाहता है लेकिन बिता नही पाता है#20
ताज़ी हवा में साँस जो ली , कसम से दिल किया की इस घर को छोड़ कर कहीं भाग जाऊ. बाप आन बाण शान के आगे बढ़ नहीं पा रहा था बेटा घर की चार दिवारी को तोड़ देना चाहता था . अपने आप में गुम कब मैं बनिए की दूकान तक पहुच गया पता ही नहीं चला काफी लोग इकट्ठे थे वहां पर तो मैं उनकी बाते सुनने लगा. मालूम हुआ की गाँव में रागनी प्रोग्राम होगा , मन तो मेरा बहुत था पर बाप के आगे कैसे जुगत लगायी जाये सोच का विषय था.
सोच ही रहा था की मैंने सामने से पिस्ता को आते देखा जो सर पर गेहूं का कट्टा लिए थी , हमारी आँखे आँखों से मिली और दिल में अजीब सी हुक सी उठ गयी . कट्टा थोडा सा भारी था तो मैंने उसकी मदद की चक्की पे तुलवाने में .
“रात को रागनी में आएगा क्या देवा ” उसने हौले से कहा
मैं- मन तो है पर ...........
पिस्ता- मैं तो जरुर आयुंगी , बड़े दिनों बाद गाँव में रागनी आई है . सुना है इस बार जो कलाकार आई है गजब ही है .
मैं-तू आएगी तो मैं भी आऊंगा चाहे कुछ भी हो जाये
घर आने के बाद मैं जुगत में था की कैसे जाऊ. जब कुछ न सूझा तो माँ ही सहारा था .
“माई, गाँव में रागनी आई है तू कहे तो मैं भी देख आऊ ”मैंने हिम्मत जुटा कर कहा
माँ- ये कोई पूछने की बात है देवा, जो तेरे जी में आये वो कर
मैं- पिताजी कहीं गुस्सा करेंगे तो
माँ- शाम को ही वो तुझसे कह रहे थे न की जिन्दगी को जीनी सीख
जैसे ही स्पीकर चालु हुआ मैं चौपाल में पहुँच गया. भीड़ काफी हो गयी थी जो पहले आया वो आगे बैठ गए थे ताकि नजदीक से मजा ले सके. गाना बजाना मस्त हो रहा था गाँव के लोग झूमने लगे थे की तभी बिजली ने अपनी माँ चुदवा ली, चारो तरफ अँधेरा छा गया बीडी पीते हुए कुछ लोग बिजली वालो को कोस रहे थे , काफी देर तक इंतज़ार करने के बाद भी जब लाइट नहीं आई तो लोग अपने अपने घरो की तरफ सरकने लगे की अँधेरे में किसी ने मेरी बांह पकड़ ली.
“प्रोग्राम की तो लग गयी ” पिस्ता ने हौले से कहा
मैं- कहाँ थी तू
पिस्ता- न पूछ कहाँ थी मैं , मुझे देखने की इच्छा होती तो तू तलाश ही लेता
मैं- तुझसे वादा किया था मैं तो आ गया ही
पिस्ता- अच्छा जी, बोल तो ऐसे रहा है जैसे मेरे सारे कहने मानेगा
मैं- ये ही समझ ले. मजा आ रहा था प्रोग्राम में पर अब क्या कर सकते है वापिस घर जाना ही होगा.
पिस्ता- इतने बोझ से क्यों कहता है . घर तो जाना ही है
मैं- काश तू समझ पाती, वो घर काटने को दौड़ता है मुझे . उस घर में इन्सान कम रहते है पुरखो की आन बाण शान के किस्से ज्यादा है .घर नहीं कैद है वो .
पिस्ता- ये बात तो हैं , चौधरी साहब ज्यादा ही तवज्जो देते है इन विचारो को
बाते करते हुए हम गली की तरफ बढ़ने लगे थे और फिर पिस्ता अपनी दहलीज पर रुक गयी .
“कल मिल सकते है क्या ” मैंने कहा
वो- कल की बात करता है मैं तो अभी भी तेरे साथ ही हूँ
चाह कर भी मैं आगे कुछ न कह सका उससे और अपने घर की तरफ बढ़ गया . एक नजर बुआ पर डाली जो सोयी हुई थी मैंने भी अपनी चादर ली और सो गया . सुबह जागा तो देखा मौसम बहुत खुशगवार था लगता था की बारिश होगी ही होगी बुआ कमरे ने नहीं थी मैं बिस्तर सही कर ही रहा था की तकिये के निचे मुझे कुछ दिखा . वो एक किताब थी जिसके कवर पर एक नंगी लड़की थी कुशगवार मौसम होने के बावजूद मैंने अपने माथे पर पसीने को महसूस किया. दो पन्ने, सिर्फ दो पन्ने ही पढ़ पाया था मैं और शरीर में बहता खून दौड़ने लगा था .तभी निचे से माँ की आवाज आई तो मैंने वो किताब छिपा ली और निचे गया .
“हाँ माँ ” मैंने कहा .
माँ - देवा, नाज के साथ खेतो में चले जा जरा .
मैं- ठीक है
कुछ देर बाद मैं और नाज खेतो के रस्ते पर पैदल पैदल जा रहे थे
“किस सोच में डूबा है देव ” नाज ने पुछा
मैं- बस यूँ ही
नाज- लगता है में बरसेगा
मैं- कितनी देर का काम है खेतो पर
नाज- ज्यादा समय नहीं लगेगा तुझे जल्दी है क्या
मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं मुझे जाना था कही
नाज- इस ख़राब मौसम में कहाँ जायेगा तू
मैं- पता नहीं
मैंने कंधे उचकाए . खेतो पर पिताजी और मुनीम जी पहले से ही मोजूद थे . हमें देख कर पिताजी मुस्कुराये नाज ने घूँघट निकाल लिया
“मुनीम जी कहते है की हमें गेहू,बाजरे को पीछे छोड़ कर किसी और चीज की खेती करनी चाहिए तुम्हारा क्या ख्याल है ” पिताजी ने कहा
मैं- जो आपको ठीक लगे
पिताजी- संतरे का बाग़ लगाया जाये , फल के फल हो जायेंगे और शराब के लिए माल भी यही से उपलब्ध हो जायेगा.
मैंने हां में सर हिला दिया . पिताजी की नजरे मुझ पर ही जमी थी मुझे डर था की कहीं शर्ट के निचे छिपी उस किताब को न ताड़ ले वो पर कुछ देर बाद वो दोनों चले गए.
“मैं ठोड़ी घास काट लेती हूँ फिर चलेंगे ” नाज ने कहा
मैं वहीँ पर बैठ गया . नाज निचे बैठ कर घास काट रही थी उसने अपने लहंगे को घुटनों तक ऊपर किया हुआ था गोरी पिंडलिया मुझे दिख रही थी . चूँकि उसकी पीठ थी मेरी तरफ तो उसके बैठने की वजह से उसके कुलहो की गोलाई साफ़ दिख रही थी मुझे, नाज की मैं बहुत इज्जत करता था पर आज ना जाने क्या हो रहा था मेरे साथ .
“पोटली उठवा दे देवा,” उसने मुझे पुकारा तो मैं नाज के पास गया . खेतो की उमस के कारन नाज का ब्लाउज गीला हो गया था और गहरी सांसे लेने के कारन उसकी बड़ी बड़ी चुचिया ऊपर निचे होने लगी थी . उसके बदन से आती पसीने की महक का नशा सा चढ़ने लगा था और मैंने अपनी पेंट के अन्दर कुछ तनाव सा भी महसूस किया खैर मैंने घास की पोटली नाज के सर पर रखी और वो जाने लगी . मेरी नजर उसकी गांड पर ही जमी रही जब तक की वो नजरो से ओझल ना हो गयी.
वो कहते हैं न की कोई न कोई दिन ऐसा आता है जिन्दगी जो जिन्दगी को जीना सिखा देता है या जिन्दगी कैसे जीनी है उस दिशा में आपको ले जाता है , शायद वो दिन ये ही था मेरी जिन्दगी का . पिस्ता से मिलने के लिए जब तक मैं बड के पेड़ तक पंहुचा तो बारिश अच्छी खासी गिरने लगी थी . वो अभी तक आई नहीं थी वहां पर काफी देर इंतज़ार किया पर वो आती भी कैसे भरी बरसात में . मोर बोल रहे थे , कोयल कूक रही थी जंगल कभी इतना प्यारा नहीं लगा था . बारिश में नहाते हुए मैं जंगल में भटकने लगा . भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .......................
जोगन से पहली मुलाकात हो गई#21
भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.
“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा
“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा
केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .
“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी
“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा
मैं- कुछ समझा नहीं
वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो
मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था
“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा
मैं- समझा नहीं
तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .
“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा
“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .
“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया
“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया
मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है
“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली
मैं- आसान भी तो नहीं
वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब
मैं- तुम नहीं जाओगी
वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा
मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा
उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी
मैं- यहाँ रहती हो तुम
वो- हाँ
मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती
वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे
“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से
वो- क्या हुआ
मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप
वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है
मैं- कोई बात नहीं फिर तो
“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .
चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी
मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो
बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी
बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं
मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .
रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .
बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा