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Adultery जब तक है जान

Sanju@

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आई#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट है नाज देव को भी औरों जैसा समझ रही है लेकिन दोस्ती के मायने देव ही जानता है
देव और पिस्ता के बीच चटपटी बातें बहुत ही मजेदार थी अब देव और पिस्ता को क्या दिख गया
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Shandar jabardast romanchak update 💓
Lagta hai koi tapak gaya 😏
 

Raj_sharma

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मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

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Bohot badhiya update tha foji bhai 👌🏻👌🏻👌🏻 Naaz ko kis baat pe naaj hai? Dev ki baat bhi nahi samajh rahi or use de bhi nahi rahi?😀 pista ne hami bhar di per kab degi pata nahi? Khair dev ki jindgi bachpan se hi chutiyape jhel rahi hai, dekhna ye hai ki kab tak?? Ant me fir suspense, kya dekh liya pista ne? Kahi koi siyar to nahi?? Awesome update again 👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥🔥🔥🔥
 

Raj_sharma

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“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.


पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .


“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
क्या हुआ?

देखते ही मारने वाली दोनों चीजें एक साथ ही दिख गई और क्या.....सांप और चूत? :hehe:
पहले किसे मारा जाये
:lol:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है देव दोस्ती के लिए एक मिशाल है जिसने पिस्ता को बचाने के लिए अपने बाप से पंगा ले लिया जिसको ये भी नहीं पता कि आखिर पिस्ता किसके साथ भागी थी
देव और पिस्ता पहले गले मिले अब उनके होठ मिल गए वाह क्या बात है
देव की हालत खराब है फिर भी नाज को देखते ही ठरक बढ़ गई लगता है जल्दी ही नाज में मिलन होगा
धीरे-धीरे प्यार को बढ़ाना है
 
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हिरोइन का भूत उतरने के बाद पिस्ता और देवा मे बहुत मीठी - मीठी , प्यारी- प्यारी , खुल्लम - खुला बातें होने लगी है । वैसे ये लोग सिर्फ बातें वातें ही करते रहेंगे या कुछ काम धाम भी करेंगे ?
वैसे यह कैसा इत्तफाक है कि पिस्ता के सामने देवा और एक कोबरा - जैसा कि कामदेव भाई ने कहा - दोनो ही कुंडली तान खड़े हो गए हैं । कहीं पिस्ता की इज्ज़त खतरे मे तो नही आन पड़ी है ? :D

चौधरी साहब के आन बाण और शान का जिक्र देवा बार-बार करता है । ये लक्षण कोई बुरी नही होती । बुरा होता है दिखावे और झूठ की आन बाण शान । महाराणा प्रताप के आन बाण और शान के बारे मे हर कोई जानता है । घांस की रोटी मंजूर थी पर अपने आन बाण और शान को गिरवी रखना मंजूर नही ।
लेकिन हमारे चौधरी साहब की यह आन बाण शान और कुछ नही झूठ का पुलिंदा नाममात्र है ।

खुबसूरत अपडेट फौजी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 
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