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Adultery जब तक है जान

Sanju@

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#28

“मैं ही हूँ वो ” मैंने कहा और पिताजी के सब्र का बाँध टूट गया.

“देवा को कोड़े मारे जाये ” पिताजी ने आदेश दिया

“ये क्या कह रहे है चौधरी जी , हमारा बेटा है वो ” माँ ने बीच में आते हुए कहा.

पिताजी- न्याय सबके लिए है , अगर आज इसे सजा नहीं दी तो समाज को क्या ही सन्देश जायेगा.

पिस्ता- देवा झूठ बोल रहा है चौधरी साहब,

पिताजी- बेशर्मी में भी कितनी तड़प होती है आज मालूम हुआ हमें. इस लड़की को यही रहने दो, ये भी देखेगी की लोक लाज को डुबोने की क्या सजा होती है .

कोड़े के पहले वार ने ही मेरी टीशर्ट को तार तार कर दिया था और अगले वार ने मुझे वास्तिवकता का अहसास करवा दिया.दर्द बहुत था पर मैं चीखा नहीं . सत सत की आवाज चौपाल में गूंजती रही .

“बस कीजिये चौधरी जी बस कीजिये मर जायेगा वो ”माँ ने अपना आँचल फैला दिया अपने ही पति के सामने

“पंचायत बर्खास्त की जाती है ” पिताजी ने कहा और तमाशा ख़त्म हो गया. माँ दौड़ कर आई और मुझे अपने आगोश में ले लिया . माँ के आंसू मेरे सीने पर गिरने लगे.

“चौधराइन, घर चलो अभी .इस ना लायक के लिए आंसू बहाने की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा और माँ को ना चाहते हुए भी उनके साथ जाना पड़ा.

“क्यों, देव, क्यों. क्यों तुमने मेरी मुसीबत अपने सर ली ” पिस्ता ने रोते हुए कहा .

“दोस्त है मेरी तू, तुझ पर कोई मुसीबत आये और मैं पीछे हट जाऊ काहे की दोस्ती हुई फिर ” मैंने पेड़ का सहारा लेते हुए कहा .

पिस्ता- दोस्ती का ये मतलब नहीं

मैं- थोडा पानी पिला दे यार.

पास के नलके से पानी भर लाइ वो.दो घूँट अन्दर जाते ही खांसी सी उठ आई.

“आराम से , ” उसने कहा

मैं- तू आ गयी आराम भी आ ही जायेगा.

पिस्ता- कमीना है तू पूरा

हम दोनों वहीँ चौपाल पर बैठे रहे , कहने को कुछ नहीं था . सन सन करती हवा पिस्ता के बालो को चूम कर जा रही थी . मौसम कुछ ठंडा सा पड़ गया था .

“क्या देख रहा है इस तरह से ” पिस्ता बोली

मैं- सोहनी बहुत लग रही है तू

पिस्ता- किसी और वक्त ये कहता तो मानती मैं

मैं- मैं तो बस कह देता हूँ , मान या न मान तेरी मर्जी .

पिस्ता ने मेरे गले में झप्पी डाली और अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. उस रात चौपाल में उस चुम्बन को किसी ने देखा या नहीं देखा पर दो दिलो ने धडकनों में उठते चाहत के तूफ़ान को इस शिद्दत से महसूस किया की हम अपने दर्द को भूल गए.

“कब तक चुप रहेगा कुछ तो बोल ” ख़ामोशी को तोडा उसने

मैं- ना जाने कल का दिन कैसा होगा

पिस्ता- मुश्किलों भरा होगा तेरे लिए भी मेरे लिए भी आज जो तमाशा हुआ होना नहीं चाहिए था . तुझे तेरे बापू से पंगा नहीं करना था
.
मैं- तू क्यों फ़िक्र करती है , बहुत दिनों से ये गुबार भरा था मेरे अन्दर, तंग था मैं बाप के रोज रोज के कलेश से आज मन में भरी नफरत निकाल दी मैंने. तू नहीं जानती पिस्ता, उस घर में रहना कितना मुश्किल है जहाँ आदमी को आदमी नहीं समझा जाता ,

पिस्ता- फिर भी तुझे इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था .

मैं- चुप हो जा वर्ना पिटेगी मुझसे. जरा सहारा दे, कब तक यहाँ बैठे रहेंगे चलते है .वैसे भी दर्द बहुत हो रहा है मुझे . मरहम पट्टी करवानी पड़ेगी. साला, कोड़े की मार तो बहुत ही भयंकर पड़ती है
.
पिस्ता- एक दिन आयेगा , इसका बदला लिया जाएगा बेशक चौधरी साहब का आदमी है राजू पर एक दिन आएगा जब उसे इन कोड़ो का ब्याज समेत हिसाब लिया जायेगा. आज की रात कभी नहीं भूली जाएगी.


मैं- शांत हो जा मेरी झांसी की रानी. चल वैध के घर ले चल मुझे.

मरहम पट्टी करवाते टाइम गांड ऐसी फटी की पूछो ही मत . वैध ने न जाने कैसा लेप लगाया की लगा पूरी पीठ जैसे जल ही गयी हो. कस कर पट्टी बाँधी वैध ने कुछ गोली दी और हम वहां से आ गये.

“तेरा घर आ गया जा अन्दर ” मैंने कहा

पिस्ता- नहीं

मैं- जा न

पिस्ता- माँ नाराज है

मैं उसे लेकर अन्दर गया . काकी जागी हुई थी .

“क्यों आये हो तुम यहाँ , इतनी बदनामी करवा के बी चैन नहीं आया क्या तुम लोगो को ” काकी गुस्से से बोली

मैं- शांत हो जा काकी, मेरा तेरी लड़की से कोई भी ऐसा वैसा नाता नहीं जिसकी वजह से इसे या तुझे शर्मिंदगी हो. पंचायत में मैंने सिर्फ इसे बचाने के लिए वो सब कहा था .

काकी- झूठ बोलते हो तुम

मैं- मेरा नहीं कमसे कम अपनी बेटी का तो विश्वास रख . मैं नहीं जानता की वो घर से क्यों भागी थी पर इतना जरुर है की वो तेरा मान बहुत करती है . तेरी अमानत तुझे लौटा कर जा रहा हूँ .

एक नजर पिस्ता को देखा और फिर मैं वहां से निकल गया . घर जाने की बिलकुल इच्छा नहीं थी मैं सोचने लगा की कहाँ जाऊ, देखा नाज का दरवाजा खुला था मैं अन्दर गया और सोफे पर जाकर सो गया.


अगले दिन आँख खुली तो खुद को चौबारे में ना पाकर अजीब सा लगा कुछ देर लगी मुझे समझने में की मैं हु कहाँ पर . रात की बात याद आई तो सर का दर्द और बढ़ गया .

“उठ गए देव ” नाज ने मेरी तरफ आते हुए कहा. मैंने उसे देखा. आज उसने थोडा मेकअप किया हुआ था होंठो पर गुलाबी लिपस्टिक,गालो पर लाली . नाज थी तो गदराई औरत . ठोड़ी देर के लिए मैं ब्लाउज से झांकती चुचियो की गहराई में खो ही तो गया था .

“चाय मिलेगी क्या मासी ” मैंने कहा तो वो उठ कर रसोई में जाने लगी. मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी जो ज्यादा ही लचक रही थी .

“कुछ खाने का लोगे क्या ” नाज ने रसोई से ही आवाज दी तो मैं उठ कर रसोई में चला गया.

“जो भी दोगी ले लूँगा ” मैंने कहा तो उसने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोली- कल रात तगड़ा तमाशा किया तुमने उस लड़की के लिए इतना बवाल काटने की क्या ही जरुरत थी और मालूम नहीं था की इतने बड़े छुपे रुस्तम निकलोगे तुम

अब उस चुतिया की बच्ची से क्या कहते की क्या रिश्ता है मेरा और पिस्ता का तो बात को घुमा दिया

“मैंने भी नहीं सोचा था तुम भी छुपी रुस्तम निकलोगी ” मैंने चाय का कप पकड़ते हुए कहा .

नाज-तूने सब कुछ देखा न पेड़ के निचे

मैं- हाँ

नाज- तेरे पास मौका था फायदा उठाने का

मैं- फायदा क्यों उठाना , तुम मेरी ही तो हो. बदन में दर्द होने के बावजूद मैंने नाज की कमर में हाथ डाला और उसे अपने से चिपका लिया वो मेरे इतने पास थी की उसकी सांसो की महक को मैं महसूस कर पा रहा था .

“देवा” धीरे से बोली वो और अगले ही पल मैंने अपने होंठ नाज के होंठो से जोड़ दिए................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है देव दोस्ती के लिए एक मिशाल है जिसने पिस्ता को बचाने के लिए अपने बाप से पंगा ले लिया जिसको ये भी नहीं पता कि आखिर पिस्ता किसके साथ भागी थी
देव और पिस्ता पहले गले मिले अब उनके होठ मिल गए वाह क्या बात है
देव की हालत खराब है फिर भी नाज को देखते ही ठरक बढ़ गई लगता है जल्दी ही नाज में मिलन होगा
 

parkas

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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and awesome update.....
 

Sanju@

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#29

नाज के होंठ चुमते हुए मैं अपने हाथ को उसकी कमर से होते हुए उसके नितम्बो पर ले गया और कस कर उन ठोस मांस के गोलों को दबाया . बदन में उठी उत्तेजना की लहर इतनी ज्यादा थी की नाज ने अपनी चूत पर मेरे लंड की कठोरता को महसूस किया पर अगले ही पल वो मुझसे अलग हो गयी और बोली- औरत को जोर से हासिल नहीं किया जाता उसके मन को जीता जाता है देवा.

मैं- तुमने ही कहा था न कोई औरत ढूंढ लो मैंने तलाश ली

नाज- मुझे लगता है ये सब तुम्हे पिस्ता के साथ करना चाहिए

मैं- वो बस मेरी दोस्त है पर तुम्हारे साथ मैं इस रिश्ते को और आगे ले जाना चाहता हूँ

नाज- बड़ा मुश्किल सफ़र रहेगा फिर तो तुम्हारा , मैं किसी और की अमानत हूँ

मैं- अमानत में खयानत तो पेड़ के निचे हो ही रही थी

नाज- उस रात तुमने कहा था मासी तुम समझ नहीं पाओगी मैं समझा नहीं पाउँगा, आज मैं कहती हूँ तुम समझ नहीं पाओगे मैं समझा नहीं पाउंगी पर मैं परख जरुर लुंगी तुम्हारी मुझे लगेगा की तुम तैयार हो तो मैं तुम्हारी मनचाही जरुर करुँगी .

मैं - ये भी ठीक है मासी

नाज- तुम्हारा अहसान है की तुमने जबरदस्ती नहीं की , वर्ना इतना होने के बाद कोई भी मौका नहीं छोड़ता है

मैं- मौका क्या तलाशना जब तुम हो ही मेरी .

वो मुस्कुरा पड़ी मैंने उसे गले से लगा लिया. शरारत करते हुए मैंने एक बार फिर से उसकी गांड को मसल दिया , इस बार उसने पूरी आजादी दी मुझे और हम बैठक में आ गए.


“चौधरी साहब बड़े नाराज है तुमसे ” नाज ने कहा

मैं- किसे परवाह है

नाज- पिता है वो तुम्हारे

मैं- मैंने कहा न किसे परवाह है मुझे अपनी जिन्दगी जिनी है मैने सोच लिया कैसे जीनी है

नाज- और कैसे जी जाएगी ये जिन्दगी, एक बात बता दू तुम्हे , तुम जानते ही नहीं जिन्दगी क्या होती है कैसी होती है . चौधरी साहब के वजूद के बिना तुम इस काबिल भी नहीं की एक समय की रोटी खा सको . तुम्हे बुरा जरुर लगेगा पर कडवी हकीकत समझने की कोशिश करना

मैं- बात वो नहीं है मासी,मैं तंग आ गया हूँ उनके नियम कायदों से . ये मत करो वो मत करो आन बाण सान के आगे मेरी इंसानियत शर्मिंदा हो जाती है
.
मासी- आज मेरी कही बात को नहीं समझोगे तुम पर एक दिन आएगा जब तुम जान जाओगे ये दुनिया वैसी तो बिलकुल नहीं है जैसा तुमने सोचा है .

मैं- देखी जाएगी, और पिताजी भला कितना नाराज रहेंगे दो चार दिन में गुस्सा ठंडा हो ही जायेगा न फिलहाल मुझे जाना होगा और हाँ कुछ दिन मैं घर नहीं जाने वाला यही रहूँगा

नाज- तुम्हारा ही घर है पर मेरी सलाह मानो तो पिस्ता से दूर रहना कुछ दिन गाँव में तनाव है और बढ़ जायेगा.

मैं- उसी से मिलने जा रहा हूँ

“ये लड़का भी ना ” नाज ने मुस्कुराते हुए अपने माथे पर हाथ मारा और मैं बाहर गली में आ गया. पिस्ता के घर गया तो वो नहीं थी वहां पर . मैं जंगल की तरफ निकल गया . कुछ नहीं सूझा तो मैं जोगन की तरफ चला गया बेशक वो नहीं थी पर फिर भी क्यों मुझे तलब थी . मैंने दरवाजा खोला उसकी झोपडी का और बिस्तर पर औंधा पसर गया. आँख खुली तो शाम ढल रही थी , बदन में दर्द पसरा हुआ था हाथ मुह धोकर मैंने दिया जलाया और ठोड़ी देर वहीँ बैठ गया. दिल में ख्याल आया की उसी काले पत्थरों वाले घर में चला जाये पर फिर नहीं गया. वहां से चुराए पैसे अभी तक खर्च भी तो नहीं किये थे . वापसी में मुझे खेतो की तरफ पिस्ता बैठी मिल गयी.

मैं- सब कही देख आया और तू यहाँ बैठी है

पिस्ता- मन नहीं लग रहा था तो आ गयी इस तरफ

मैं-मन तो मेरा भी नहीं लग रहा था तेरे बिना

पिस्ता- लाइन मारना बंद कर

मैं- फिर बोल जरा

पिस्ता- तू कभी सीरियस होगा के नहीं

मैं- अच्छा ठीक है . क्यों परेशां है

पिस्ता- सबको लगता है की मैंने दी है तुझे

मैं- क्या दी है

पिस्ता- समझता नहीं क्या

मैं- समझा फिर

पिस्ता-चूतिये, सबको लगता है की मैंने चूत दी है तुझे

चूत सुन कर मेरे कान खड़े हो गए .

मैं- पर तूने नहीं दी . कल तेरी माँ को समझाया तो था मैंने

पिस्ता- तुझे क्या जरुरत थी क्रांति का झंडा उठाने की , क्यों गाँव के सामने पुकार रहा था की तू आशिक है मेरा.

मैं- क्या हुआ फिर, नहीं हु तो हो जाऊंगा तू अगर चाहेगी तो .

पिस्ता- तू समझता नहीं क्यों देवा

मैं- भोसड़ी वाली मैं नहीं समझता , पगली दोस्त समझा है तुझे, और दोस्ती निभानी आती है , अगर वहां पर खड़ा ना होता तो तेरी मखमली पीठ उधेड़ देनी थी मेरे बाप ने. और फिर गलती तो तेरी हैं ही , क्यों भागी थी तू घर से बहन की लोडी . एक मिनट रुक कही सच में तेरा कोई आशिक तो नहीं

पिस्ता- कोई आशिक नहीं है मेरा और घर से भागी नहीं थी मैं ,

मैं- तो कहा गयी थी फिर तू

पिस्ता- अरे वो मैं हेरोइन बनना चाहती थी तो सोचा इस गाँव में अपना कुछ होना नहीं है निकल ले बम्बई पर तेरे बाप ने सपना तोड़ दिया, धर लिया रस्ते में ही .

मैं- कमीनी, कम से कम मुझे तो बता सकती थी न बड़ी आई माधुरी बनने वाली . जानती है तेरे बिना मेरा क्या हाल हुआ था . ऐसा कोई पल नहीं बीता जब मुझे तेरी फ़िक्र न हुई हो.

पिस्ता- गलती हु माफ़ी दे यार

मैं- माफ़ी तो दे दूंगा पर ये बता देगी कब, वैसे भी गाँव में बदनामी तो हो ही गयी है तो दे ही दे.

पिस्ता के गाल गुलाबी हो गए बोली- अच्छा जी, बड़ी हसरत हो रही है लेने की . ले भी लेगा कहीं ऐसा न हो की कच्छा उतरते ही सब गीला हो जाये तेरा

मैं- वो क्यों होगा भला

पिस्ता- तूने ली है कभी किसी की पहले

मैं- तूने दी है किसी को पहले

पिस्ता- तू बनेगा पहला मेरी लेने वाला.

मैं- वो ही तो बोल रहा हूँ देगी तो ले लूँगा.

पिस्ता- तूने देखी है कैसी होती है

मैं- तू दिखा दे

पिस्ता- सची में

मैं- और नहीं तो क्या .

“ठीक हो जा पहले कही जोश जोश में और दर्द न बढ़ जाए तेरा ” हस्ते हुए बोली वो

मैं भी मुस्कुरा दिया. बहुत देर तक हम दोनों वहां बैठे बाते करते रहे और फिर गाँव में आ गये. पिस्ता खुद के घर चली गयी मैं नाज के घर आ गया. मुनीम जी बैठक में ही थे तो मैं उनके पास चला गया .

“कुछ मालूम हुआ की फक्ट्री में हमला किसने किया ” मैंने पुछा

मुनीम- नहीं, अभी कोई सुराग नहीं मिला पर जल्दी ही तलाश लेंगे हम

मैं- किसी पे शक

मुनीम- भाई जी, किसी की कोई मजाल नहीं जो चौधरी साहब की तरफ आँख उठा सके

मैं- पिताजी ऐसे काम करते ही क्यों है की ये सब हो साफ़ सुथरे धंधे क्यों नहीं करते हम

मुनीम- भाई जी, जब आप कारोबार संभालेंगे तो समझ जायेंगे

फ़िलहाल खाने का समय हो रहा है खाना खाते है फिर मुझे जाना है .

मैं- रात तो घर पर रहने की होती है न

मुनीम- कई काम रात को ही होते है


खाना खाने के बाद मुनीम चला गया रह गए मैं और मासी.
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है नाज और देव के बीच कुछ भी नही हुआ लेकिन नाज ने कहा है कि वह परख करके खुद समय आने पे दे देगी
देव और पिस्ता के बीच नोक झोंक बहुत ही मजेदार थी
 

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“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
बहुत ही खुबसुरत और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
ये नाज और देव की बातें काफी कुछ कह जाती हैं खास कर नाज कुछ बातें रहस्यमयी करती हैं
देव और पिस्ता के बीच का संवाद बहुत ही सुंदर हैं
जैसे चुद देखने की साथ में उजाले में देने की बडी मजेदार हैं
ये मुतते हुए पिस्ता ने क्या देख लिया की वो घबरा कर जोर से चीख पडी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई
मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Nice update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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जबरदस्ती किसी के साथ की तो क्या ही मजा है असली मजा तो तब है जब आग दोनों तरफ बराबर लगी हो नाज को देनी तो पड़ेगी मगर इंतजार का भी अलग ही मजा है पिस्ता के साथ जो हसी मजाक हुआ उसका भी अलग ही मजा है जो बो ही समझ सकता है जिसने कभी किसी ना ली हो
बेहतरीन अपडेट 👌
धीरे-धीरे काम बन ही जाएगा
 

park

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#30

“तो तुम्हारा और पिस्ता का चक्कर कैसे शुरू हुआ ” नाज ने दूध का गिलास देते हुए पुछा

मैं- मेरा और उसका कोई चक्कर नहीं मासी, वो बस मेरी दोस्त है

नाज- पंचायत में जो हुआ उसे देखने के बाद कोई भी नहीं मानेगा तेरी बात को

मैं- फर्क नहीं पड़ता , दोस्ती की है उस से बस यही मेरा सच है .

नाज- एक लड़की और लड़का कभी दोस्त नहीं होते.

मैं-तो क्या होते है

नाज- या तो प्रेमी हो सकते है या फिर बस कुछ समय का आकर्षण

मैं- तुम जानती ही क्या हो प्रेम के बारे में मासी

नाज- कुछ नहीं जानती पर तुझसे ज्यादा दुनिया देखी है जिस चीज के लिए तू उस लड़की के पीछे है मिल जाएगी तो तेरा वहम भी मिट जायेगा

मैं- उस से दोस्ती की है और ये मेरा वहम नहीं है .

नाज शायद कुछ और भी कहना चाहती थी पर उसने अपनी बात को रोका और बोली- आराम करो .

नाज अपने कमरे में चली गयी , उम्मीद थी की वो कुछ करने देगी पर ऐसा नहीं हुआ नींद नहीं आ रही थी तो मैं गली में आ गया . चाँद को देखा बादलो के बीच से निकलते हुए तो दिल में हुक सी उठी, गानों में सुना था गायकों को गाते हुए चाँद की खूबसरती के किस्से पर आज गौर किया तो मालूम हुआ की कोई तो बात थी . निगाहे बार बार पिस्ता के घर की तरफ जा रही थी और मैं अपने कदमो को रोक नहीं पाया.


और किस्मत देखो, घर के चबूतरे पर बैठी मिल गयी वो .

“तू इस वक्त यहाँ ”उसने सवाल किया

मैं- आसमान में चाँद को देखा तो रहा नहीं गया अपने चाँद से मिलने आ गया . और किस्मत देख तेरा दीदार भी हो गया.

पिस्ता- क्या दीदार, अन्दर मन ही नहीं लग रहा था तो सोचा कुछ डॉ इधर ही बैठ जाऊ , आजकल नींद भी दुश्मन हुई पड़ी है कमबख्त आती ही नहीं .

मैं- मेरा हाल भी कुछ ऐसा ही है

पिस्ता- अब तुझे क्या हुआ

मैं- मत पूछ मुझसे की हाल क्या है मेरा

पिस्ता- आ कुछ दूर चलते है इधर कोई देखेगा तो फिर वही कीच कीच

मैं- रात को कहाँ और फिर तेरी माँ को मालूम हुआ तो

पिस्ता- फर्क नहीं पड़ता वैसे भी सोयी है वो .

चलते चलते हम लोग बसती से थोडा सा आगे आ गए उस कच्चे रस्ते पर जो खेतो की तरफ जाता था . पिस्ता एक डोले पर बैठ गयी मैं खड़ा रहा .

पिस्ता- साली कैसी दुनिया में जी रहे है , किताबो में पढ़ाते है की हमें अपने मन की करनी चाहिए प्रगति की सोचनी चाहिए और दुनिया है की साली आगे बढ़ने नहीं देती . सोचती हु की दोष किसका है किताबो का या फिर चुतिया गाँव वालो का

मैं-दोष लोगो की सोच का है, लोगो की सोच में दीमक लगी हुई है .

पिस्ता- अपनी मर्जी से कोई जी भी न सके तो क्या ही फायदा इस समाज का

मैं- माँ चोद इस समाज की , इस दुनिया की तुझे जो करना है कर . कोई साला रोक टोक करे तो साले के मुह पर चप्पल मार . क्यों परवाह करनी किसी की

पिस्ता- कहता तो सही है देवा पर शायद अभी वो समय नहीं आया की ये बेडिया तोड़ी जाये. खैर, अपनी बता तुझे नींद क्यों नहीं आ रही थी
मैं- घर नहीं गया , कोई आया ही नहीं पूछने की क्यों नहीं आ रहा घर में

पिस्ता- तेरा भी अजीब है

मैं-बाप चाहता है की मैं उसका धंधा संभालू,

पिस्ता- सही तो कहते है वो . इतनी बड़ी जागीर का तू अकेला मालिक है . उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला.

मैं- मैं शराब का धंधा नहीं करूँगा कभी भी

पिस्ता- तो कोई और काम कर ले, तुम्हारे तो कई धंधे है

मैं- मेरा बाप जब घर लौटता है तो अक्सर उसके कुरते पर खून के धब्बे होते है. मुझे याद भी नहीं कब उसने मेरे सर पर हाथ रख कर पुचकारा था . मैं उस इन्सान में चौधरी को देखता हूँ पर अपने बाप को नहीं . मेरे घर का ये सच मैं तुझे बताता हूँ .


पिस्ता-भाग भी तो नहीं पायेगा तू अपने सच से , रहेगा तो तू चौधरी का ही बेटा ना.

मैं- समझ नहीं आती की गर्व करू या शर्म करू.

पिस्ता- आ बैठ पास मेरे

पिस्ता ने मेरे हाथ को थाम लिया और बोली- ये रात देख कितनी खूबसूरत है पर सुबह की पहली किरण इसे खत्म कर देगी ऐसे ही कोई किरण आयेगी जीवन में जो मन के अंधियारे को ख़त्म कर देगी.

मैं मुस्कुरा दिया और हाथ ने हाथ को थाम लिया, बहुत देर तक हम बिना कुछ कहे बस बैठे रहे, चाँद को देखते रहे. रात कितनी बीती कितनी बाकी कौन जाने पर मेरे लिए समय जैसे रुक सा गया था ,अगर पिस्ता बोल नहीं पड़ती.

“देर बहुत हुई , चलना चाहिए ” उसने कहा

मैं- मन नहीं है

वो- जाना तो होगा ना . मैं मूत के आती हु फिर चलते है

उसने कहा और पेड़ो की तरफ जाने लगी .

मैं- उधर कहाँ जा रही है , इधर ही मूत लेना वैसे भी कौन है यहाँ

पिस्ता- तू तो है

मैं- मेरा क्या है

पिस्ता- सब तेरा ही है

मैं- तो फिर यही मूत ले .

पिस्ता- मेरी चूत देखना चाहता है क्या तू

मैं- अँधेरे में क्या ही दिखेगा मेरी सरकार

पिस्ता- क्यों फ़िक्र करता है तुझे उजाले में दूंगी मेरे राजा . देख भी लियो और ले भी लियो पर अभी मूतने जाने दे .दो पल और रुकी तो फिर रोक नहीं पाउंगी.

पिस्ता पेड़ो की तरफ जाने लगी तो मैंने सोचा की मैं भी मूत लेता हु . पेंट की चेन खोली ही थी की मेरा मूत वापिस चढ़ गया , इतना जोर से चीखी पिस्ता की मेरी गांड फट गयी मैं दौड़ा उसकी तरफ .

“क्या हुआ पिस्ता ”

“देव, वो देव वो ” उसने ऊँगली सामने की तरफ की और ..........................
Nice and superb update...
 
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