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Adultery जब तक है जान

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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पिस्ता का किरदार बेहद ही लाजवाब गढ़ा है आपने फौजी भाई । देव के साथ उसकी हर बात हमेशा कुछ नई नई एहसास लाती है । उन बातों मे कभी प्रेम झलकता है तो कभी स्नेह तो कभी दोस्ती तो कभी कामुकता ।
राजु का खून शायद जोगन ने किया हो सकता है । यह लड़की शुरू से मिस्ट्रीयस लग रही है । देव के साथ हुए अत्याचार का बदला वह ली होगी ।
लेकिन मुनीम के साथ मारपीट और चौधरी साहब के शरीर पर लगभग रोजाना पाए जाने वाले खून के धब्बों की कहानी किसी एक ही घटनाक्रम का निष्कर्ष होगा ।
लेकिन इस देव साहब का कुछ तो कल्याण करिए । बार-बार उसके मुंह से निवाला क्यों छिन ले रहे है ?

खुबसूरत अपडेट फौजी भाई ।
Aapko kya lagta hai, foji dev ko sookha rehne denge😀😀
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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उसका रहना भी जरूरी है भाई. नसीब देखो अपनो से ही छुप कर मिलना पड़ता है
Ab kya hi kahe bhai, kabhi kabhi lagta hai aapki kismat bhi aapki story ke heroes ki tarah hi hai, per wo foji hi kya jo haar man le, sangharsh ka naam hi jeevan hai manish bhai 😊
 

Raj_sharma

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मुझे क्या मालूम प्रेम क्या होता है भाई
Aisa na bolo yar, agar apko nahi maloom yo fir kisi ko na pata :idk1:
 

Ajju Landwalia

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#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................

Bahut hi shandar update HalfbludPrince Fauji Bhai,

Chaudhary Ful Singh ne jo bate dev aur pista se kahi vo 100% sahi he............abhi to khair inhone duniya hi kaha dekhi he..............

Dev ki duty ab Naaz ke ghar par sone ki lagi he............isbar uske sath KLPD na ho............

Jogan ka character thoda sa kholo bhai aap

Keep Rocking Bro
 

Sanju@

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#32

सामने जो देखा तो तमाम नजाकत की बातो पर हकीकत का ऐसा तमाचा पड़ा की लेने-देने की तमाम बताए झट से गायब हो गयी, जो चाँद खूबसूरत बड़ा लग रहा था उसी चाँद की रौशनी अब जैसे काटने को लगी थी, सामने पिताजी के उस आदमी राजू की लाश पड़ी थी जिसने मुझे कोड़े मारे थे .सच कहूँ तो मेरी गांड फट गयी थी वो नजारा देख कर , बड़ी बेदर्दी से मारा गया था उसे, उसकी पीठ की खाल उधेडी हुई थी .बदन पर जहाँ तहां चाक़ू के वार थे .

“नहीं होना था ये ” मैंने कहा

पिस्ता कांपती रही डर के मारे .

मैंने उसका हाथ पकड़ा और जितनी तेजी से दौड़ सकते थे दौड़ लिए .

“चाहे कुछ भी हो जाये पिस्ता, किसी को भी ये मालूम नहीं होना चाहिए की हम लोग इसकी लाश के पास थे वर्ना पंगा बहुत बड़ा हो जायेगा और देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा.समझ रही है न मेरी बात ” मैंने उसे कहा

पिस्ता-पर मारा किसने

मैं- जिसने भी मारा अपना कोई लेना देना नहीं है चाहे कुछ भी हो. अपना दूर रहना है इस सब से

पिस्ता- पर अपन ने तो कुछ किया ही नहीं

मैं- चुतियो की सरदार,पंचायत में चीख चीख कर तू ही कह रही थी ना की राजू की खाल उतार लुंगी

पिस्ता- अरे वो तो मौके की नजाकत ......

मैं- माँ चुदा गयी नजाकत लोडे लगने वाले है , जैसे ही गाँव में मालूम होगा सब यही सोचेंगे की हो न हो बदले की कार्यवाही हुई है .

पिस्ता ने अपना माथा पीट लिया

“आगे से सोच समझ कर ही बोलूंगी मैं तो ” उसने कहा
मैं- पानी पी थोडा और सो जा , सुबह कोई भी पूछे तो यही कहना है की घर पे ही थी.

उसे समझा कर मैं आगे तो बढ़ गया पर मेरे पैर कांप रहे थे ,कोई तो था जो इस खेल में अपनी रोटी सेंक रहा था . पर क्या मकसद था उसका अपना था पराया था कौन था कौन जाने. पर जो भी था उसे जानने की कोशिश करनी बहुत जरुरी थी , बाप की फैक्ट्री पर हमला होना, उसके आदमियों पर मारामारी और अब ये हत्या . दिल तो किया की बाप की मुसीबते बाप को ही सुलझाने दी जाये पर फिर वो बात याद आई की वो खून खून ही क्या जिसमे उबाल ना हो.

आँख खुली तो मैंने खुद को चौपाल के चबूतरे पर सोये हुए पाया. हाथ मुह धोकर मैं सीधा अपने घर गया . पिताजी सोये हुए थे पर मैंने उन्हें उठाया

“कल रात राजू की हत्या कर दी किसी ने ” मैंने बताया उनको .

“मेरा आदमी था मैं देखूंगा इस मामले को , तेरा काम नहीं है इन सब में पड़ना आराम कर ” पिताजी ने कहा

मैं- कौन है वो दुश्मन

पिताजी ने गहरी नजरो से मुझे देखा और बोले- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं अभी मैं जिन्दा हु

पिताजी ने कुरता पहना और जीप लेकर बाहर चले गए.

“तो नवाब साहब घर लौट आये , मिट गयी अकड़ दो दिन में ही होश आ गए ठिकाने , इस घर बिना कोई नहीं तुम्हे पूछने वाला समझ आ गयी हो तो नाश्ता कर लो ” माँ ने मुझे देख कर कहा

मैं कुछ नहीं बोला . माँ ने मुझे खाने की थाली दी

“वैसे तो औलाद बड़ी हो जाये तो माँ का उसे कुछ कहना उचित नहीं और ये जानते हुए भी की तुझे माननी नहीं मेरी बात फिर भी कहती हु की उस छोरी से दूर रह. तेरे लिए भी ठीक रहेगी और इस घर के लिए भी ” माँ ने कहा

मैं- रोटी खा लेने दो न, उसका जिक्र कहा से आया अब
माँ- उसका जिक्र तो अब रोज ही होगा. हमारा लड़का जिसकी जुबान नहीं खुलती थी गाँव में आशिकी करते घूमेगा तो जिक्र होगा ही न, बाप दुनिया को सलीका सिखाते फिर रहा बेटा क्रांति का झंडा उठा लिया. बीच में माँ आ गयी . आदमी की न सुने तो परेशानी औलाद का पक्ष न ले तो आदमी के ताने सुने .

मैं- माँ , अपनी औलाद पर तुझे भरोसा नहीं क्या, तेरी परवरिश हूँ मैं , तू ही बता तेरी परवरिश क्या इतनी कमजोर है जो कुछ भी गलत करेगी.

माँ- इसीलिए तो कहती हूँ उस छोरी का साथ छोड़ दे .

परवरिश तो कमजोर ही रही की मालूम ही न हुआ कब तू उसके चक्कर में आ गया.

मैं- माँ, मेरा उस से कुछ भी ऐसा वैसा रिश्ता नहीं है जिससे की कोई भी शर्मिंदा हो , पिस्ता बस दोस्त है मेरी .

माँ- गाँव में ऐसी दोस्ती नहीं होती , ऐसी दोस्ती को बस बदनामी मिलती है .

मैं- तो बदनामी ही सही माँ .

माँ- तरस आता है मुझे

मैं- तरस ही सही

माँ- तुझ पर नहीं अपने आप पर तरस आता है मुझे, आज तू मेरी बात नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब तुझे ये दिन जरुर याद आएगा की तेरी माँ को कितनी परवाह थी तेरी, खैर तेरी अगर यही इच्छा है तो मैं आज के बाद तुझे कभी नहीं टोकुंगी पर तू इतना जरुर करना की हमेशा आँखों से आँखे मिला सके.


मेरे पास कहने को कुछ नहीं था , घर से निकल गया और जंगल में पहुँच गया . आजकल घर से जायदा घर तो ये जंगल लगने लगा था . भटकते भटकते मैं जोगन की झोपडी तक पहुँच गया मालूम हुआ की वो लौट आई है.

“कब आई तुम ” मैंने उस से कहा

जोगन- बसकुछ देर पहले ही ,आजा अन्दर बैठते है

मेरे अन्दर आते ही उसने झोले से कुछ मिठाई निकाली और मुझे दी.

मैं- ये बढ़िया किया , भूख भी लगी है

वो- खाले, तेरे लिए ही है ये सब

मैं- तू भी खाले,

जोगन- मुझे भूख नहीं थोड़ी थकान है आराम करुँगी
उसने चादर ओढ़ी और बिस्तर में घुस गयी मैं मिठाई का आनंद लेता रहा. बाहर देखा रुत मस्ताने को बेताब भी मैंने भी एक गुदड़ी निचे बिछाई और आँखों को मूँद लिया. जागा तो बदन में बहुत दर्द हो रहा था . चीस मार रही थी , बाहर अँधेरा हुआ पड़ा था मतलब की बहुत सोया था मैं .बाहर आकर देखा जोगन चूल्हे पर रोटी सेक रही थी .

मैं- उठाया क्यों नहीं मुझे

वो- गहरी नींद में थे तुम

मैं- फिर भी, कितनी रात हुई मुझे चले जाना था
जोगन- रात का क्या गिनना, कितनी गयी कितनी बाकी . खाना खाकर ही जाना अब तेरे हिस्से की रोटी भी बना ली है .

जलते चूल्हे के पास बैठ कर मैंने खाना खाया , जोगन के हाथ में कोई तो बात थी . एक रोटी फ़ालतू खा ली मैंने.

“कुछ परेशान सा लगता है ” उसने कहा

मैं- पीठ में दर्द हो रहा है

वो- देखू जरा

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- पूरी शर्ट खून से भीगी हुई है तेरी तो क्या हुआ है ये

उसने मेरी पीठ देखी और बोली- किसने किया ये

मैं- जाने दे, कहानी ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगी और मैं बता नहीं पाऊंगा.

“फिर भी गलत किया चाहे जो भी कारन रहा हो.तू रुक मैं आभी आती हु ” उसने कहा और जंगल की तरफ दौड़ पड़ी .
मैं आवाज देता रह गया. कुछ देर बाद वो हाथ में कुछ जड़ी लेकर आई

“इसके लेप से तुझे आराम मिलेगा ” उसने लेप मेरी पीठ पर लगाया . राहत सी मिली

जोगन- शहर में किसी बड़े डाक्टर को दिखा ले इसे, जख्म जल्दी ठीक नहीं होने वाले.

मैं- वैध से पट्ठी करवाई थी

जोगन- कहा न शहर जा

मैं- नाराज क्यों होती है , चला जाऊँगा. वैसे तू बता इतने दिन कहाँ गयी थी

जोगन- बताया तो था कुछ काम से बाहर थी

मैं- वही तो पूछ रहा हु बाहर कहा

जोगन- अगली बार जाउंगी तो तुझे साथ ले जाउंगी . चलेगा न

मैं- अरे ये भी कोई कहने की बात है

वो मुस्कुरा दी . मैं वहां से चल दिया. गुनगुनाते हुए मैं मस्ती में अपने रस्ते बढे जा रहा था .हालाँकि मुझे अँधेरे में थोडा डर भी लग रहा था पर मैं गाँव में पहुँच ही गया , आँगन में जीप खड़ी थी मतलब पिताजी घर पर ही थे , दबे पाँव मैं चोबारे के दरवाजे पर पहुंचा और जैसे ही मैंने दरवाजे को खोला..............................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
पिस्ता राजू की लाश देखकर चीखी थी किसी ने बहुत ही बेहरमी से मारा था जोगन का किरदार अभी तक रहस्यमई है
 

Sanju@

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#३३
मेरी निगाह बुआ पर बुआ की निगाह मुझ पर पड़ी, पर नजरो से जायदा मेरा ध्यान उस नजारे पर था .अफरातफरी में बुआ को समझ नहीं आया की वो क्या करे, सलवार को ऊपर करे तो चूची ढकने से रह जाये और ऊपर संभाले तो निचे का नजारा सामने आ जाये. बड़ी ही अजीब सी उलझन हो गयी थी हम दोनों के लिए. कायदे से मुझे नजरे नीची करके वहां से चले जाना चाहिए था पर मेरे मन के चोर ने ऐसा हरगिज नहीं किया. बुआ के हुस्न का नजारा लेते हुए मैं आगे बढ़ा और बुआ को अपने आगोश में भर लिया. वो कुछ नहीं कह पायी और मैंने बुआ के प्यासे होंठो को अपने तपते लबो से जोड़ लिया.


बेशक ये नीचता पूर्ण कार्य था पर फिर भी मुझे मजा बहुत आ रहा था बुआ के लबो को चूसने में . मेरे हाथ निचे गए और बुआ की नंगी गांड को मैंने कस कर दबाया. तड़पती जवानी की उफनती हसरते लिए बुआ का गर्म बदन मेरे आगोश में मचलने लगा था . नितम्बो के कपाट को हाथो से फैलाते हुए मैंने बुआ की गांड के छेद पर ऊँगली फिराई तो बुआ के मादक बदन ने झुरझुरी ली और वो भी लाज छोड़ कर मुझे चूमने लगी. पर इस से पहले की मामला कुछ आगे बढ़ पाता मेरे हाथ बुआ की चूत के बालो पर पहुंचे ही थे की तभी बाहर से कुछ आवाजे आने लगी तो हमारे उड़ते पर एक झटके में कतर कर धरती पर आ गिरे. मैंने आँगन में नजर मारी तो पाया लहू लुहान मुनीम बहनचोद पिताजी को पुकार रहा था .

दौड़ते हुए मैंने सीढिया उतरी और आँगन में पंहुचा .

“भाई जी, भाई जी ” कमजोर आवाज में बोला मुनीम

मैं- क्या हुआ मुनीम जी

“हमला ” इतना कहते ही मुनीम मेरी बाँहों में झूल गया . बहनचोद क्या ही चुतिया किस्मत थी कुछ देर पहले इन बाँहों में बुआ का गर्म बदन झूल रहा था और अब ये चुतिया मुनीम पर सोचने वाली बात थी की इसकी ये हालत कैसे हुई तभी पिताजी भी अपने कमरे से बाहर आ गए और मामले को तुरंत ही समझते हुए बोले - देव, गाडी निकाल


कुछ ही देर में जीप शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी . मैंने जिन्दगी में पहली बार पिताजी के चेहरे पर चिंता की लकीरों को साफ़ साफ देखा. हॉस्पिटल पहुँचते ही मुनीम को भरती करवाया और मैं कुर्सी पर बैठ गया . पिताजी डॉक्टर लोगो से गहन चर्चा में दुबे थे . मालूम हुआ की मुनीम पर कई गहरे वार किये गए थे. हाल काफी ख़राब था मुनीम का . कुछ बोतल खून की चढ़ाई गयी , इलाज के लिए पिताजी ने आसमान एक कर दिया बहुत परेशां हो गए थे वो उस रात में , और साली रात भी बहुत लम्बी हो गयी . सुबह न जाने कितने बजे थे मेरी आँखों में नींद चढ़ी थी की डॉक्टर ने आकर बताया की जान तो बच गयी है पर हालात सुधरने में समय लगेगा.

“किसने किया हमला ” मैंने पिताजी से पुछा

पिताजी- तुझे फ़िक्र करने की जरुरत नहीं हम देख लेंगे इस मामले को

मैं आगे कुछ नहीं कह सका. पिताजी ने हमेशा के जैसे इस बार भी बात टाल दी पर ये साफ़ था की कोई तो दुश्मन पीछे पड़ा था . दोपहर होते होते मैं घर के लिए चल पड़ा जीप मैंने पिताजी के लिए छोड़ दी और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चौराहे की तरफ चल दिया. पर आज शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था. मुझे मेरी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था सामने से पिस्ता चली आ रही थी , इस समय पिस्ता शहर में .कहीं मेरी आँखों का धोखा तो नहीं था पर नहीं वो ही थी . मैंने उसे आवाज दी , वो भी मुझे देख कर हैरान हो गयी .

“तू यहाँ क्या कर रहा है ” आँखे चढाते हुए वो बोली

मैं- तू बता तू यहाँ क्या कर रही है वो

वो- मैं तो मुसाफिर हु यारा, कभी इधर कभी उधर . खैर, मूझे न कुछ सूट लेने थे थे तो आज शहर का रुख कर लिया. तू बता

मैं- आया था किसी काम से अब तू मिल गयी करार आ गया.

पिस्ता- उफ़ तेरी ये नशीली बाते, रुक जा खसम कही यही नाडा न खोल दू मैं

मैं- कमीनी कहीं की

पिस्ता - सोमसे खायेगा

मैं- नहीं तुझे खाऊंगा

पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु राजा , आ समोसे खाते है

उसने मेरा हाथ पकड़ा और हम सामने दूकान की तरफ बढ़ गए. समोसा खाते हुए मैंने देखा की पिस्ता की नजर सामने दिवार पर लगे पोस्टर पर पड़ी सलमान और रवीना की फिल्म लगी थी मोहिनी थिएटर में .

“देखेगी क्या फिल्म छोरी ” मैंने छेड़ा उसे

पिस्ता- रहने दे यारा, वैसे ही बदनाम हु, किसी को मालूम हुआ तो गाँव में और हवा बनेगी.

मैं- बदनाम जिसके लिए हुई उसके साथ थोड़ी और बदनाम हो ले फिर

पिस्ता- सच में

मैं- और नहीं तो क्या

पिस्ता- चल फिर , ढाई वाला शो ही देखेंगे .

मैं- जो हुकुम मेरी सरकार .

जिन्दगी में पहला अनुभव था ये सिनेमा देखने का इस से पहले गाँव में विडिओ ही देखा था पर इतने बड़े परदे पर फिलम देखने का जो मजा आया और उस मजे से जायदा मजे की बात ये की पिस्ता का हाथ थामे हुए बैठा था , मेरी नजरे रवीना की तरफ कम था और पिस्ता की तरफ जायदा

“अब यूँ भी न देख मुझे यार, की तेरे सिवा और कुछ दिखे ही न मुझे फिर ” उसने मुझे कहा
मैं बस मुस्कुरा दिया. पर हम कहाँ जानते थे की ये ख़ुशी ठोड़ी देर की ही थी . सिनेमाहाल से निकल कर हम दोनों बस पकड़ने के लिए चलते जा रहे थे की तभी मेरी नजर सामने से आती जीप पर पड़ी और सारी ख़ुशी, सारी मस्ती गांड में घुस गयी ..............
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है देव अपनी बुआ के साथ कुछ आगे बढ़ता लेकिन उससे पहले मुनीम ए धमका और रंग में भंग पड़ गया चौधरी के रोज एक आदमी मर रहा है पहले राजू आज मुनीम लगता दुश्मनी बहुत ही गहरी है देव को पिस्ता शहर में मिल गई है दोनो के बीच की बाते बहुत ही मजेदार थी लगता है चौधरी मिल गया है
 

Tiger 786

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#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
Kahani har update ke sath or bi dilchasp hoti ja rahi hai
Lazwaab superb update
 

Sanju@

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#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
चौधरी ने जो बाते देव और पिस्ता को कही है वो बाते 100%सही है फिल्मी दुनिया और असल लाइफ में बहुत फर्क होता है जिंदगी बहुत ही बेहरम है
बुआ अभी तक देव के लिए एक पहेली है जो उसकी समझ में नहीं आ रही है लगता है अब नाज और देव के बीच कुछ नया होने वाला है
 
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