बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा
बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की
“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा
मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.
पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.
“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा
मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है
पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .
मैं- मैं क्या करू इसमें
पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .
मैं - कोई दिक्कत नहीं है
पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .
मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.
मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.
“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .
“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया
वो- माँ, माँ को देखती हु मैं
मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.
जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .
मैं- थोडा और देख ले फिर
वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा
“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा
मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा
वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का
मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .
वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए
मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा
थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा