• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery जब तक है जान

Napster

Well-Known Member
5,100
13,989
188
#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
20,805
54,501
259
Foji bhai kab tak jhola taange rakhoge? Hath me dard ho jayega :D Waiting for next update bhai:waiting:
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
12,542
88,074
259
#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
 
Last edited:

parkas

Well-Known Member
27,917
61,790
303
#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and beautiful update....
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
20,805
54,501
259
#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
Bohot khoob foji bhaiya, santra aur mosammi dono choos liye ek hi din me :D Badhiya hai, waise jab dev ne munee. Ki gadi dekhi to use tahkikaat to kuch karni hi chahiye thi, or Chaudhary fool singh ke signature kiye hue stamp pepper to utha leta aur Chaudhary ko dikhana chahiye tha, sayad kuch baat aage badhti, waise pista dene ko redy hai:declare: Awesome update again 👌🏻 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥💥✨✨✨👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻:claps::claps::claps:
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,218
22,570
173
Foji bhai kab tak jhola taange rakhoge? Hath me dard ho jayega :D Waiting for next update bhai:waiting:
#35

कच्ची पगडण्डी से मैं चले जा रहा था की मैंने मुनीम की गाड़ी को खड़े पाया. इसे यहाँ नहीं होना चाहिए था , पर अगर गाडी जंगल में थी तो यकीनन मुनीम के साथ जो भी हुआ इधर ही हुआ होगा. मैंने पाया की गाड़ी के दरवाजे खुले थे , सीट पर खून था जो सूख गया था . देखने से ही लग रहा था की संघर्ष गाडी के अन्दर हुआ था .यानि हमला करने वाला और मुनीम एक दुसरे से परिचित थे. अनजान आदमी को कोई क्यों ही गाड़ी के अन्दर आने देगा. कोई तो खिचड़ी जरुर पक रही थी . पर सूत्रधार कौन था ये कैसे मालुम हो. गाडी में कोई खास सामान नहीं था पर एक लिफाफे ने मेरा ध्यान जरुर खींचा. लिफाफे में एक स्टाम्प पेपर था ,जिस पर कुछ भी नहीं लिखा था सिवाय चौधरी फूल सिंह के हस्ताक्षरों के .

खैर, मैं वापिस मुड गया माँ चुदाये मुनीम ये सोचते हुवे. नाज के घर के पास ही मुझे पिस्ता मिल गयी.

मैं- क्या कर रही है खाली रस्ते पर

पिस्ता- तेरी ही राह देख रही थी .

मैं- क्यों भला.

वो- दिल जो नहीं लगता मेरा तेरे बिना, खसम . रोक नहीं पाती मैं खुद को तेरे दीदार बिना .

मैं- तो किसने रोका है सरकार यही मैं हु यही तुम हो भर ले मुझे अपने आगोश में और गांड जला दे मोहल्ले की
पिस्ता आगे बढ़ी और तुरंत ही अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ बैठी, मैंने उसे अपने से चिपका लिया और मैं अपने हाथो को उसकी गांड को सहलाने से रोक नहीं पाया. अँधेरी रात में रस्ते के बीचोबीच अपनी सरकार संग चुम्बन गुस्ताखी की हद गाँव के ईमान की चौखट पर ठोकर मारने लगी थी .

“होंठ सुजा कर मानेगा क्या ” पिस्ता ने मुझे धक्का देते हुए कहा

मैं- अभी तो ठीक से पिए भी नहीं मैंने

पिस्ता- चूतिये, होंठ है मेरे कोई रूह अह्फ्ज़ा का शरबत नहीं.

मैं- बहन की लौड़ी, इतना मत इतरा जिस दिन तेरी चूत का रस पियूँगा उस दिन नंगी ना भागी तू तो कहना.

“हाय रे बेशरम,” उसने मेरे सीने में मुक्का मारा

मैं- बता क्या कर रही थी इधर . इतना भी ना हुआ हु मैं की तू इस तरह राह देखे मेरी

पिस्ता- समझ गया तू , अरे कुछ ना, माँ नाज चाची के यहाँ गयी थी मुनीम का हाल पूछने उसे ही बुलाने जा रही थी

मैं- मैं भी वही जा रहा था आजा साथ चलते है

पिस्ता- मेरे साथ चलेगा , कितनो की गांड जलेगी

मैं- गांड जला सकती है पर मुझे नहीं देनी

पिस्ता- मैं तो कबसे हूँ तैयार, पर तू लेता ही नहीं

मैं- देखो कौन बोल रहा है . आज तक दिखाई नहीं देगी क्या ख़ाक तू

पिस्ता- देखो नया नया आशिक लेने-देने की बात कर रहा है जिसे लेनी होती है न वो देखने की बात नहीं करते . जब लेगा तो देख तो लेगा ही न


मैं- रहने दे तेरे नाटक जानता हु

पिस्ता- अच्छा जी , हमें ही देनी और हमारे ही नाटक

चुहलबाजी करते हुए हम नाज के घर आ गए. पिस्ता अन्दर चली गयी मैं हाथ-मुह धोने लगा. अन्दर जाके मैंने नाज से मेरी पीठ पर दवाई लगाने को कहा .

“मैं लगा देती हु , ” पिस्ता ने नाज से दवाई ले ली और मेरी पीठ पर लगाने लगी. मैंने पाया की नाज की नजरे मुआयना कर रही थी मेरी . खैर पिस्ता और उसकी माँ के जाने के बाद मैं बिस्तर लगा रहा था की नाज दूध ले आई.

“आजकल चर्चे हो रहे है तुम्हारे ” उसने कहा

मैं- किसलिए भला

नाज- लड़का इश्क जो करते फिर रहा है गलियों में

मैं- बढ़िया है फिर तो . वैसे भी वो इश्क ही क्या जिसमे चर्चे ना हो

नाज- आग से खेल रहे हो तुम. वैसे भी जिसके चक्करों में पड़े हो वो लड़की अच्छी नहीं

मैं- क्या अच्छा क्या बुआ मासी . तुम, मेरे मा बाप. ये गाँव- मोहल्ला ये दुनिया कोई भी नहीं समझ पायेगा ना उसे ना मुझे. हम लोग बस दोस्त है , समझते है एक दुसरे को बात करते है एकदूसरे से. इसके सिवाय कोई पाप नहीं हमारा. हाँ गलती तो हुई है , पर गलती ये नहीं की हमने एक दुसरे का साथ किया. गलती ये है की उसने एक लड़की होकर एक लड़के से दोस्ती की है वो भी समाज को जुती की नोक पर रख कर. गाँव- बसती को हमारी दोस्ती से दिक्कत नहीं है दिक्कत है की हमने समाज की शान में गुस्ताखी की है , और फिर हम अकेले ही तो गलत नहीं . ऐसी गलतिया तो गाँव में बहुत लोग कर रहे है , माना मैं गलत हूँ पिस्ता गलत है तो तुम भी तो गलत हो न मासी .


नाज- काश मैं इतनी दिलेर होती की बेशर्मी से अपनी गलतिया यु कबूल पाती .

मैं- बेशर्मी , किस बेशर्मी की बात करती हो मासी. मैं तुम्हे गलत नहीं ठहरा रहा खास कर उस बात के लिए जब मैंने तुम्हे चुदते देखा था . वो तुम्हारी जिन्दगी है और सबको अपनी जिन्दगी जीने का पूरा अधिकार है . तुम्हारी चूत किसे देनी किसे नहीं देनी ये तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए

मैंने चूत शब्द पर कुछ ज्यादा जोर दिया इतना की नाज के गाल सुर्ख हो गए.

“ मासी के सामने सीधे बोलता है ऐसे शब्द ” नाज ने कहा

मैं- मासी है ही इतनी प्यारी की मैं सोचता हु मासी की चूत कितनी प्यारी होगी .

नाज- चुप कर जा मारूंगी नहीं तो

मैं- मार लो पर मार लेने दो

नाज मेरी इस बात पर हंस पड़ी .

“बदमाश है तू बहुत ” उसने मेरे सर पर चपत मारी और मैंने उसका हाथ पकड़ अपनी गोद में खींच लिया

“मत करो देव ” उसने हौले से कहा

मैं- इतना तो हक़ दो मुझे .

“मासी हु तेरी ” उसने कहा

मैं- तभी तो हक माँगा, कोई और होती न जाने क्या कर देता

मैंने नाज के चेहरे को अपने हाथो में लिया और उसके सुर्ख होंठो पर अपने लब चिपका दिए. कुछ देर पहले ही मैंने पिस्ता को चूमा था और एक लम्हा नहीं लगा मुझे ये समझने में की नाज में कुछ अलग ही बात थी . मेरी गोदी में बैठी नाज ने मुझे पूरी शिद्दत से आजादी दी उसके लबो को चूमने में . लिपस्टिक का हल्का स्वाद मुझे अपनी सांसो में घुलते हुए महसूस हो रहा था . मैंने नाज की मांसल जांघ को घाघरे के ऊपर से ही दबाया की उसने मेरा हाथ पकड़ लिया......................
Lazwaab superb update
 
Top