#40
जोगन की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरे पिता ने इस मंदिर को खंडित किया था. क्या वजह रही होगी जो उन्होंने ये पाप किया होगा. बचपन मैंने पिताजी को हमेशा ही गंभीर देखा था, खून खराबा करते हुए देखा था . वो चाहे कितने ही बाहुबली थे पर हमारे दर से कभी कोई खाली नहीं गया था . गाँव के हर आदमी- औरत के दुःख तकलीफ को उन्होंने अपना समझा था शायद इसलिए गाँव में उनका कद बहुत ऊँचा था .
“किस सोच में डूबा देवा ” पुछा जोगन ने
मैं- अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ ,
जोगन- इसीलिए तो कहा की छोड़ इस बात को , हर कोई अपने नसीब से लड़ता है ये जगह भी अपने नसीब का पा रही है .
मैं- वादा किया है देवा ने अपनी जोगन से , और देव अपनी बात से पलट जाये तो फिर किस मुह से तेरे सामने आएगा. तू तयारी कर , मंदिर आबाद होगा ,जरुर होगा,
जोगन- और उस की कीमत क्या होगी देव, कौन चुकाएगा वो कीमत . मैं अपने अरमान के लिए अगर तेरा नुकसान करवा दू तो फिर क्या ही दोस्ती रहेगी क्या ही तुम रहोगे क्या ही ये जोगन रहेगी.
मैं- कीमते चुकाने के लिए ही होती है , और फिर तेरी मुस्कान के लिए तो ऐसी हजारो कीमते चुका देंगे . फिलहाल एक कप चाय पिला दे और चीनी ज्यादा डालियों .
जोगन मुस्कुराते हुए चूल्हा जलाने बैठ गयी मैं बस उसे देखता रहा. सांझ ढलते ढलते मैं उस से विदा लेकर वापिस गाँव की तरफ मुड गया. कच्चे रस्ते पर सर पर लकडिया उठाये मुझे पिस्ता मिल गयी . ढलते सूरज की रौशनी में उसका चेहरा सुनहरा चमक रहा था .
“मदद करू क्या सरकार ” मैंने कहा
“तू रहने दे खसम, तेरी मदद का मोल चूत देकर चुकाना पड़ेगा.” उसने हँसते हुए कहा
मैं- तेरी चूत अब तेरी कहाँ रही सरकार
पिस्ता- बाते, बनाना तुझसे सीखे, कहाँ था पुरे दिन से , सुबह आलू के परांठे बनाये थे तेरे लिए पर तू आया ही नहीं
मैं- अभी चल के खा लूँगा परांठे भी और तुझे भी
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु
मैं- कोई शक है क्या इस बात में
पिस्ता- तुझे है क्या
मैं- मुझे क्यों होगा भला
पिस्ता- रात को आ जाइयो .
मैं- तेरे लिए लाऊ क्या कुछ
पिस्ता- तेरे सिवा और क्या चाह मेरी
मैं- उफ्फ्फ ये अदा , घायल कर गयी मुझे
पिस्ता- घायल तो रात को करुँगी तुझे , अब बाते ना बना और जल्दी चल, अँधेरा घिर आया.
आपस में हंसी- मजाक करते हुए हम लोग मोहल्ले में पहुँच गया मैंने पाया की माँ दरवाजे पर ही खड़ी थी .
“देव , रुक जरा ” माँ ने टोका और मैं जानता था की क्या कहेंगी वो
“बराबर के बेटे को पीटते हुए मैं अच्छी नहीं लगूंगी, मुझे मजबूर न कर. समझाया था न तुझे की इस लड़की का साथ मत कर पर तू इतना बड़ा हो गया है की अपनी माँ की सुनेगा नहीं ” माँ ने कहा
मैं- मैंने पहले भी बताया माँ, की वो बस दोस्त है मेरी .
माँ- दोस्त होती तो जाने देती ,चौपाल में जो मेरी आँखों ने देखा था उस रात से डरने लगी हु मैं देव. डरती हु की कहीं किसी दिन इस दोस्ती को तू इस दहलीज पर न ले आये. डरती हु मैं उस आने वाले दिन से क्योंकि उस दिन तू तू नहीं रहेगा, तेरा बाप , तेरा बाप नहीं रहेगा और मैं नहीं जानती मेरा क्या होगा.
“मैंने उस दिन भी कहा था मुझ पर नहीं तो अपनी परवरिश पर तो यकीन रख माँ ” मैंने कहा
माँ- इसीलिए तो डरती हु, ठीक है तू कर अपने मन की पर मुझसे वादा कर की ये लडकी कलेश की जड नहीं बनेगी
मैं- फ़िक्र ना कर माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा
अन्दर जाकर मैंने हाथ मुह धोये और घर के छोटे-मोटे काम किये और नाज के घर की तरफ चल पड़ा. नाज के चेहरे पर आज अलग ही नूर था , इतनी खूबसूरत वो पहले कभी नहीं लगी थी . नीले घाघरे और सफ़ेद ब्लाउज में ओढनी ओढ़े कितनी ही प्यारी लग रही थी .
“खाना परोस दू, अभी बनाया ही है ” उसने कहा
मैं- नहीं, भूख नहीं मुझे मासी
नाज- जो कर्म कर रहे हो आजकल भूख तो ज्यादा लगनी चाहिए तुम्हे
मैं- नंगा आदमी दुसरे नंगे को अगर नंगा कहे तो ये नंगेपन की तौहीन है ना
नाज- औलादों को बिगड़ते हुए भी तो नहीं देख सकती क्या करू
मैं- अजीब है ये तमाम दुनियादारी . सबके अलग फ़साने है
नाज- तुम जो भी कहो पर सच बदल नहीं जायेगा.
मैं- और क्या होता है ये सच . कुछ नही होता सच मासी. तुम चाहे पिस्ता को किसी भी नजर से देखो, मुझे कुछ भी समझो पर मासी फर्क नहीं पड़ता.
नाज- जानती हु फर्क नहीं पड़ता. खासकर उम्र के इस नाजुक दौर में
मैं- क्या करे मासी, मैं समझा नहीं सकता तुम समझ नहीं पाओगी.
नाज- मैं चाहू तो बहुत कुछ कर सकती हूँ उस लड़की के साथ , चुटकियो में कहाँ गायब हो गयी , थी या नहीं थी कौन जाने फिर .
मैं- धमकी दे रही हो मासी तुम.
“आइना दिखा रही हूँ तुम्हे ” बोली वो
मैं- कोशिश कर के देख लो मासी .
नाज- मैं नहीं चाहती वो लड़की तुम्हारी जिन्दगी में आये, तुम्हारी माँ नहीं चाहती वो तुम्हारी जिन्दगी में आये ये परिवार नहीं चाहता की तुम बर्बाद हो जाओ उसकी सोहबत में
मैं- कुछ देर के लिए ही सही, उसकी पनाह में जी लेता हु मैं, मुझे समझती है वो . वो मेरे साथ इसलिए नहीं की कोई लालच है उसे, अपना दोस्त समझती है वो मुझे . जिस आन बाण शान की झूठी बातो में ये परिवार जी रहा है न मासी ,वो नींव कमजोर पड़ चुकी है . देख लो, तुम्हारे पकवानों को ना कह कर मैं उसके घर की रोटी खाने जा रहा हु.
“ऐसा क्या है उस लड़की में जो परिवार तक को ये जवाब दे रहे हो तुम ” नाज ने थोड़ी तल्खी से कहा
मैं- मेरे हिस्से का सकून है उसके पास
नाज- पिस्ता का साथ छोड़ दे देव, बदले में तुझे जो चाहिए , जो भी तू कहेगा ,तेरी हर ख्वाहिश ,सब तुझे मिलेगा मेरा वादा है तुझसे
“क्या कीमत चुकओगी मासी, क्या मोल लगाओगी तुम ” मैंने कहा
“जो तू उससे ले रहा है उस से बहुत बेहतर, बहुत कुछ ” नाज ने कहा और अपने घाघरे का नाडा खोल दिया.................................