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Adultery जब तक है जान

Ben Tennyson

Its Hero Time !!
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बहुत ही शानदार अपडेट भाई पिस्ता तो एक दम ख़ुश ही कर देती है संभोग क्रिया की बेहतरीन अदाकारा और उसका वो 'खसम' कहना हाय जान ही ले लेती है.... जोगन की प्रीत भी जैसे अतीत के उन स्याह पन्नों को दबाये बैठे हैं जहां चौधरी के किसी काले वासना भरे काम अपने चरम पर रहें हो शायद... वो जोगन ही जाने या वो टूटा हुआ मंदिर..... बाक़ी नाज़ नाम की ये चिड़िया सीधी नहीं लग रही किसी बाज़ की कठपुतली लग रही है जो बस चुद कर जाल बुन रही है शिकार के लिए..... गाड़ी में धमाका हो ना हो नाज़ या..... पिस्ता की (शायद) कारस्तानियां लग रही है
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बाकी देखते हैं इतने चाहने वालों को वो कौन इनका दुश्मन है.... ज़रा सामने तो आये ... बाकी वक्त बड़ा बलवान
नियति
 

Ajju Landwalia

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#40

जोगन की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरे पिता ने इस मंदिर को खंडित किया था. क्या वजह रही होगी जो उन्होंने ये पाप किया होगा. बचपन मैंने पिताजी को हमेशा ही गंभीर देखा था, खून खराबा करते हुए देखा था . वो चाहे कितने ही बाहुबली थे पर हमारे दर से कभी कोई खाली नहीं गया था . गाँव के हर आदमी- औरत के दुःख तकलीफ को उन्होंने अपना समझा था शायद इसलिए गाँव में उनका कद बहुत ऊँचा था .

“किस सोच में डूबा देवा ” पुछा जोगन ने


मैं- अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ ,

जोगन- इसीलिए तो कहा की छोड़ इस बात को , हर कोई अपने नसीब से लड़ता है ये जगह भी अपने नसीब का पा रही है .

मैं- वादा किया है देवा ने अपनी जोगन से , और देव अपनी बात से पलट जाये तो फिर किस मुह से तेरे सामने आएगा. तू तयारी कर , मंदिर आबाद होगा ,जरुर होगा,


जोगन- और उस की कीमत क्या होगी देव, कौन चुकाएगा वो कीमत . मैं अपने अरमान के लिए अगर तेरा नुकसान करवा दू तो फिर क्या ही दोस्ती रहेगी क्या ही तुम रहोगे क्या ही ये जोगन रहेगी.

मैं- कीमते चुकाने के लिए ही होती है , और फिर तेरी मुस्कान के लिए तो ऐसी हजारो कीमते चुका देंगे . फिलहाल एक कप चाय पिला दे और चीनी ज्यादा डालियों .

जोगन मुस्कुराते हुए चूल्हा जलाने बैठ गयी मैं बस उसे देखता रहा. सांझ ढलते ढलते मैं उस से विदा लेकर वापिस गाँव की तरफ मुड गया. कच्चे रस्ते पर सर पर लकडिया उठाये मुझे पिस्ता मिल गयी . ढलते सूरज की रौशनी में उसका चेहरा सुनहरा चमक रहा था .

“मदद करू क्या सरकार ” मैंने कहा

“तू रहने दे खसम, तेरी मदद का मोल चूत देकर चुकाना पड़ेगा.” उसने हँसते हुए कहा

मैं- तेरी चूत अब तेरी कहाँ रही सरकार


पिस्ता- बाते, बनाना तुझसे सीखे, कहाँ था पुरे दिन से , सुबह आलू के परांठे बनाये थे तेरे लिए पर तू आया ही नहीं

मैं- अभी चल के खा लूँगा परांठे भी और तुझे भी


पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु

मैं- कोई शक है क्या इस बात में


पिस्ता- तुझे है क्या

मैं- मुझे क्यों होगा भला


पिस्ता- रात को आ जाइयो .

मैं- तेरे लिए लाऊ क्या कुछ

पिस्ता- तेरे सिवा और क्या चाह मेरी

मैं- उफ्फ्फ ये अदा , घायल कर गयी मुझे


पिस्ता- घायल तो रात को करुँगी तुझे , अब बाते ना बना और जल्दी चल, अँधेरा घिर आया.

आपस में हंसी- मजाक करते हुए हम लोग मोहल्ले में पहुँच गया मैंने पाया की माँ दरवाजे पर ही खड़ी थी .

“देव , रुक जरा ” माँ ने टोका और मैं जानता था की क्या कहेंगी वो


“बराबर के बेटे को पीटते हुए मैं अच्छी नहीं लगूंगी, मुझे मजबूर न कर. समझाया था न तुझे की इस लड़की का साथ मत कर पर तू इतना बड़ा हो गया है की अपनी माँ की सुनेगा नहीं ” माँ ने कहा

मैं- मैंने पहले भी बताया माँ, की वो बस दोस्त है मेरी .

माँ- दोस्त होती तो जाने देती ,चौपाल में जो मेरी आँखों ने देखा था उस रात से डरने लगी हु मैं देव. डरती हु की कहीं किसी दिन इस दोस्ती को तू इस दहलीज पर न ले आये. डरती हु मैं उस आने वाले दिन से क्योंकि उस दिन तू तू नहीं रहेगा, तेरा बाप , तेरा बाप नहीं रहेगा और मैं नहीं जानती मेरा क्या होगा.

“मैंने उस दिन भी कहा था मुझ पर नहीं तो अपनी परवरिश पर तो यकीन रख माँ ” मैंने कहा

माँ- इसीलिए तो डरती हु, ठीक है तू कर अपने मन की पर मुझसे वादा कर की ये लडकी कलेश की जड नहीं बनेगी


मैं- फ़िक्र ना कर माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा

अन्दर जाकर मैंने हाथ मुह धोये और घर के छोटे-मोटे काम किये और नाज के घर की तरफ चल पड़ा. नाज के चेहरे पर आज अलग ही नूर था , इतनी खूबसूरत वो पहले कभी नहीं लगी थी . नीले घाघरे और सफ़ेद ब्लाउज में ओढनी ओढ़े कितनी ही प्यारी लग रही थी .

“खाना परोस दू, अभी बनाया ही है ” उसने कहा


मैं- नहीं, भूख नहीं मुझे मासी

नाज- जो कर्म कर रहे हो आजकल भूख तो ज्यादा लगनी चाहिए तुम्हे

मैं- नंगा आदमी दुसरे नंगे को अगर नंगा कहे तो ये नंगेपन की तौहीन है ना

नाज- औलादों को बिगड़ते हुए भी तो नहीं देख सकती क्या करू

मैं- अजीब है ये तमाम दुनियादारी . सबके अलग फ़साने है

नाज- तुम जो भी कहो पर सच बदल नहीं जायेगा.

मैं- और क्या होता है ये सच . कुछ नही होता सच मासी. तुम चाहे पिस्ता को किसी भी नजर से देखो, मुझे कुछ भी समझो पर मासी फर्क नहीं पड़ता.


नाज- जानती हु फर्क नहीं पड़ता. खासकर उम्र के इस नाजुक दौर में

मैं- क्या करे मासी, मैं समझा नहीं सकता तुम समझ नहीं पाओगी.

नाज- मैं चाहू तो बहुत कुछ कर सकती हूँ उस लड़की के साथ , चुटकियो में कहाँ गायब हो गयी , थी या नहीं थी कौन जाने फिर .

मैं- धमकी दे रही हो मासी तुम.


“आइना दिखा रही हूँ तुम्हे ” बोली वो

मैं- कोशिश कर के देख लो मासी .

नाज- मैं नहीं चाहती वो लड़की तुम्हारी जिन्दगी में आये, तुम्हारी माँ नहीं चाहती वो तुम्हारी जिन्दगी में आये ये परिवार नहीं चाहता की तुम बर्बाद हो जाओ उसकी सोहबत में

मैं- कुछ देर के लिए ही सही, उसकी पनाह में जी लेता हु मैं, मुझे समझती है वो . वो मेरे साथ इसलिए नहीं की कोई लालच है उसे, अपना दोस्त समझती है वो मुझे . जिस आन बाण शान की झूठी बातो में ये परिवार जी रहा है न मासी ,वो नींव कमजोर पड़ चुकी है . देख लो, तुम्हारे पकवानों को ना कह कर मैं उसके घर की रोटी खाने जा रहा हु.

“ऐसा क्या है उस लड़की में जो परिवार तक को ये जवाब दे रहे हो तुम ” नाज ने थोड़ी तल्खी से कहा


मैं- मेरे हिस्से का सकून है उसके पास

नाज- पिस्ता का साथ छोड़ दे देव, बदले में तुझे जो चाहिए , जो भी तू कहेगा ,तेरी हर ख्वाहिश ,सब तुझे मिलेगा मेरा वादा है तुझसे

“क्या कीमत चुकओगी मासी, क्या मोल लगाओगी तुम ” मैंने कहा

“जो तू उससे ले रहा है उस से बहुत बेहतर, बहुत कुछ ” नाज ने कहा और अपने घाघरे का नाडा खोल दिया.................................

Ab kaisi tabiyat he aapki HalfbludPrince Manish Bhai


Uff.....ye vaade............dev dil se jayada kaam le raha he...........dimag se kam..........

Jogan se vada to kar aaya dev mandir ko dobara banane ka....................lekin mandir toda kyun..........ye abhi bhi suspense hi he.......

Chahe wo jogan ke case me ho ya fir pista ke................

Maa, Pitaji, Naaz sab ke sab use mana kar rahe he pista se mail joal badhane se........lekin vahi dhaak ke tin paat............

unch nich jaat paat vala matter jyada lag raha he mujhe yaha par.......

Naaz ne ab naada bhi khol diya...........

Agli update ka intezar rahge Bhai
 

Ajju Landwalia

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#41

दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................

Gazab ki update he HalfbludPrince Manish Bhai,

Gaadi me bomb shayad naaz aur dev ke liye lagaya gaya hoga...............

Vo to pista ka sahi time par mut aa gaya..............varna kahani khatam hi thi dono ki

Keep rocking bro
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#42

“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा


पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या

मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे

पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा

मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी

पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा

मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है

रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .

“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा


नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम

मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .

नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव

मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी


नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .

“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा

“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो


मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.

नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है


मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .

“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा


मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.

“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने


मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .

मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था


मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं

मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.


मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से

मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .

एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .

“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .


न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .

“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .

वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.

“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा


पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती

मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.

पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का

मैं- बढ़िया है

पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से

मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये

पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब

मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके


पिस्ता- कैसी बाते

मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा

पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता

मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे


पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .

मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु

पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.

मैं- देगी क्या

पिस्ता- नहीं, अभी नहीं


पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............
 
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