#42
“तू ठीक है न चोट तो नहीं लगी तुझे ” मैंने पिस्ता से कहा
पिस्ता- ठीक हु पर ये हुआ क्या
मैं- वही सोच रहा हूँ, आज तो मर ही गये थे
पिस्ता- जब तक मैं हु कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता तेरा
मैं- जानता हु, पर गाडी में बम लगाया गया है . जिसने भी ये कार्यवाही की है गांड तोडनी पड़ेगी उसकी
पिस्ता- सो तो है पर किसको इतना सटीक मालूम था की गाड़ी तू लेकर जायेगा
मैं- मालूम करना पड़ेगा . फिलहाल तो गाँव चलते है
रास्ते भर हमारे बीच ख़ामोशी छाई रही पर मन में सवालों का तूफान था. मरहम पट्टी करवाने के बाद पिस्ता को घर छोड़ा और मैं सीधा नाज के पास पहुंच गया .
“गाड़ी में बम किसने लगाया मासी ” मैंने कहा
नाज- कौन सी गाडी , कैसा बम
मैं- मैं और पिस्ता मरते मरते बचे है तुम्हारे सिवा किसको मालूम था की मैं गाड़ी ले जाने वाला था .
नाज- तू क्या कह रहा है मुझे समझ नहीं आ रहा देव
मैं- मुनीम जी की गाड़ी में बम था ठीक समय पर हम अगर नही उतरे होते तो आज राम नाम सत्य हो गया था . तुम पिस्ता के लिए इतना गिर जाओगी की इस हद तक जाओगी , कभी सोचा नहीं था मासी
नाज ने अपना माथा पीट लिया और सोफे पर बैठ गयी .
“उस बम का निशाना तुम या पिस्ता नहीं बल्कि मैं थी देव ” नाज ने कहा
“गाड़ी में मैं ही जाने वाली थी ,पर ऐन वक्त पर तुम मुझे यही छोड़ गए ” बोली वो
मैं- किसकी इतनी मजाल हो गयी जो यु खुलेआम मेरे परिवार पर हाथ डालेगा.
नाज- तुम्हे इन सब मामलो में पड़ने की जरूरत नहीं है
मैं- तुम्हारा नहीं रहा अब ये मामला , जान जाते जाते बची है मेरी .
“मामला बेहद ही गंभीर हो चला है, कुछ न कुछ करना ही होगा. मै तुम्हे आश्वस्त करती हु दुबारा नहीं होगा ऐसा कुछ ” नाज ने मेरे कंधे पर हाथ रखा
मैं- दुबारा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं होने नहीं दूंगा. तुम से, पिताजी से हो न हो मैं ही निपटाऊंगा इस मामले को अब
धमाके की गूँज अभी भी मेरे कानो में गूँज रही थी . जल्दी ही घर वालो को भी खबर हो ही गयी,माँ और बुआ हद से ज्यादा चिंतित थी . चल क्या रहा था किसी को भी मालूम नहीं था पर मैंने सोच लिया था की करना क्या है. मैं तुरंत ही शहर के लिए निकल गया , हॉस्पिटल में जाते ही मैंने मुनीम पर सवालो की बोछार कर दी.
“तुम्हारी गाड़ी की तलाश में मुझे एक स्टाम्प पेपर मिला था ” पुछा मैंने
मुनीम- हमारे धंधे में लेनदेन होता रहता है कुछ चीजे खरीदी जाती है कुछ बेचीं जाती है तो उनमे स्टाम्प लगते ही रहते है .
मैं- उस रात जंगल में इतनी गहराई में क्या कर रहे थे तुम. मैं जानता हु तुम जो भी कहो पर हमला करने वाले को तुम जानते हो क्योंकि वो भी तुम्हारे ही साथ गाड़ी में था
मुनीम- गाडी में अकेला ही था मैं
मैं- मुनीम जी, तुम सब के चुतियापे में आज मैं मर जाता . तुम्हारी तो पता नहीं पर मेरी जान कीमती है और तुम जैसो के चक्कर में मैं नहीं मरना चाहता. तुम्हारे ऊपर हमला हुआ , फिर दुबारा भी हो सकता है तुम जानो. उस रात तो तुम बच गए आगे क्या मालूम बचो न बचो. तो बिना देर किये मुझे बताओ उस रात कौन था साथ तुम्हारे.
मुनीम- तुम्हारा कोई लेना देना नहीं भाई जी इन सब से
मैं- कोई बात नहीं, मैं मालूम तो कर ही लूँगा पर हमलावर जो भी है कोई तो कारण रहा ही होगा जो इतनी शिद्दत से तुमको मारना चाहता है. वापसी में मुझे देर हो गयी थी बरगद के पेड़ निचे बैठ कर मैं गहन सोच में डूबा था, जो कड़ी इस कहानी में मुझे परेशान कर रही थी वो कड़ी नाज थी . जितना वो सरल दिख रही थी उतनी थी नहीं ये तो मैं समझ ही गया था .उस शाम मैंने नाज को यही चुदते देखा था पर कौन था वो अगर ये मालूम हो जाये तो कुछ नया मालूम हो सकता था. कुछ भी करके मुझे उस सख्स की तलाश करनी ही थी . नाज की नब्ज़ पकड़ने के लिए उसे शीशे में उतरना जरुरी था . इस मामले में मुझे पिस्ता की मदद लेनी ही थी. अचानक ही बारिश शुरू हो गयी , मेरे पास तीन रस्ते थे ,कुवे पर जाना, जोगन के पास जाना या फिर उसी घर में जो सबसे छिपा था .
एक बार फिर से मैं उस खामोश इमारत को वो मुझे देख रही थी .
“क्या कहानी है तुम्हारी ” कहते हुए मैंने दरवाजा खोला और अन्दर जाके लालटेन जलाई. ये चार दीवारे और दो कमरे .जंगल के बेहद अंदरूनी घने इलाके में कोई क्यों ही बनाएगा . और अब पता नहीं कबसे यहाँ कोई नहीं आया था शायद मेरे सिवाय .मैंने एक बार फिर अलमारी खोली, पैसे वैसे के वैसे ही रखे थे. आखिर यहाँ कोई आता जाता क्यों नहीं था,इस घर का मालिक क्यों भूल गया था इसे. नोटों की गड्डियो को सलीके से रखते हुए मेरी नजर अलमारी में बनी उस छोटी सी दराज पर पड़ी जिसमे एक लाकेट था. चांदी की चेन में जड़ा लाकेट बेहद खूबसूरत .
न चाहते हुए भी मैं अपने मन को रोक नहीं सका बेहद ही खूबसूरत उस लाकेट को मैंने अपनी जेब में रख लिया. निचे के खाने में रखे पैसे मैंने हटाये तो वहां पर मुझे एक छोटी सी डायरी मिली जिसमे कुछ लिखा था .
“दम घुट रहा है जिन्दगी से खुल कर रो भी नही सकते,दर्द इतना है की की कुछ कह भी नहीं सकते ” कोरे पन्ने पर लिखी इस लाइन ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. न जाने क्यों मुझे बहुत जायदा दिलचस्पी हो गयी थी इस घर के मालिक के बारे में . क्या कहानी थी उसकी क्या हुआ होगा उसके साथ .
वहां से लौटने के बाद मैं पिस्ता से मिला.
“क्या हाल है मेरी सरकार ” मैंने कहा
पिस्ता- गांड फटी पड़ी है,कोई पुन्य किया होगा जो बच गयी वर्ना अब तक तो मिटटी नसीब हो गयी होती
मैं- चिंता मत कर आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा.
पिस्ता- माँ, लौट आई है . कल फॉर्म भरेगी सरपंची का
मैं- बढ़िया है
पिस्ता- मुझे तो ये सब फालतू का नाटक लगे है . हमारा क्या ही लेना देना राजनीती से
मैं- क्या पता इसमें ही तुम्हारा भला हो ना जाने कब सोया नसीब जाग जाये
पिस्ता- फिर भी मुझे जम नहीं रहा ये सब
मैं- सुन , गाँव में कोई ऐसा है क्या जो मुझे कुछ पुराणी बाते बता सके
पिस्ता- कैसी बाते
मैं- जानना चाहता हु की पिताजी ने जंगल वाले मंदिर को क्यों तोडा
पिस्ता- तेरे पिताजी से ही क्यों नही पूछ लेता
मैं- सीधे मुह बात तो करते नहीं वो , तुझे लगता है की वो मुझे बता देंगे
पिस्ता- सबके अपने अपने फ़साने होते है , जवानी के दिनों में सब कुछ न कुछ करते रहते है , हो सकता है किसी नादानी में ही उन्होंने वैसा कुछ कर दिया हो .
मैं- हो सकता है पर दिक्कत ये है की मैं वो मंदिर आबाद करना चाहता हु
पिस्ता- नेक ख्याल है , खैर मैं चलती हु.
मैं- देगी क्या
पिस्ता- नहीं, अभी नहीं
पिस्ता के जाने के बाद मैं घर गया तो मालूम हुआ की माँ- पिताजी अपने किसी मित्र के घर जा रहे है और अगले दिन ही लौटेंगे . पिताजी ने मुझे घर पर ही रहने को कहा और वो लोग चले गए. शाम रात में घिरने लगी थी . बिजली नहीं थी . लालटेन की रौशनी में अन्न्धेरा अजीब सा लग रहा था . सीढियों की तरफ गया ही था की तभी निचे को आती बुआ मुझसे टकराई और उसे गिरने से बचाने के लिए मैंने बुआ को अपनी बाँहों में ले लिया...............