#44
कुछ दिन ऐसे ही गुजर गए आपाधापी में , पिस्ता की माँ ने परचा भर दिया था चुनाव की तैयारी हो रही थी . पिस्ता से मिलने का मौका कम ही लग रहा था ,नाज भी चुप चुप सी रहती थी . पिताजी ने गाडी में बम वाली बात का जिक्र तक नहीं किया था मुझसे अभी तक. समझ से बहार था सब कुछ , ऐसे ही एक दोपहर मैं जोगन संग जोहड़ के पानी में पैर डाले बैठा था .
“कम से कम तू तो कुछ बोल, सबकी तरह तेरे चेहरे पर भी नूर गायब सा है ” मैंने कहा
जोगन- ऐसी तो कोई बात नहीं
मैं- मुझसे नहीं छुपा सकती तू .कोई तो परेशानी है तुझे
जोगन- पिछले कुछ दिनों से अजीब सी कशमकश में उलझी हु.एक तरफ ये जिंदगानी है जो विरासत में मिली है एक तरफ वो राह है जो मुझे घर ले जाती है .
मैं- कितनी बार कहा है तुझसे इतना मत सोच, चल घर चल . पर तू सुनती कहा है मेरी.
जोगन- तेरी ही तो सुनती हु.
मैं- तो फिर क्यों छुपाती है मुझसे
जोगन- न जाने तुझे ऐसा क्यों लगता है .
मैं- मुझे अच्छा नहीं लगता तू यहाँ बियाबान में अकेली रहती है .कितनी बार कहा है गाँव में रह ले पर तू सुनती नहीं
जोगन- मना कहा किया, कहा तो तुझसे जब मन होगा कह दूंगी घर के लिए
मैं - चल छोड़ इन बातो को . कुछ नयी बात कर
जोगन- नयी बाते तो तू ही बता, चुनावो में क्या चल रहा है
मैं- क्या ख़ाक चल रहा है , तुझे बताया तो सही पिताजी ने इस बार काकी को सरपंची में उतारा है जीत जाएगी आराम से बल्कि यु कहूँ की जीती पड़ी है
जोगन- कहने को तो चुनाव का मतलब कुछ और होता है पर असल जीवन में वोट की कोई कद्र ही नहीं , गाँव का दबंग जिसे चाहे कठपुतली बना कर नचा सकता है
मैं- कहती तो तू सही है ,पर ये बाते महज बाते है असल जीवन में कोई क्रांति का झंडा नहीं उठाता
जोगन- यही तो बात है गुलामी,नसों में भरी पड़ी है
“लोग चाहते ही नहीं अपने हक़ की आवाज उठाना ” मैंने कहा
जोगन- पर तू तो हक़ की बात करता है
मैं- हक़ की बात,जानती है कभी कभी सोचता हूँ मैं और तू एक ही है. तू दुनिया से बेगानी मैं घर से बेगाना .लगता है तेरा मेरा नाता है कोई जो एक सी बात करते है
जोगन- नाता तो है
मैं मुस्कुरा दिया.उसकी आँखों में देखना एक अलग ही तरह का सकून था . दिन पर दिन बीत रहे थे ,चुनाव नजदीक आ चूका था . पर किसे परवाह थी ,मैं और पिस्ता जब देखो चुदाई में लगे रहते है जंगल में, खेतो में हमने हद से जायदा चुदाई कर डाली थी .पिस्ता का जोबन बहुत गदरा गया था . हम दोनों के परिवारों को इस बात से बहुत नफरत थी पर वो लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे . कम से कम मैं तो ऐसा ही समझता था . जब तक की उस दोपहर पिस्ता के घर दो चार गाडिया आकर खड़ी नहीं हो गयी.
“अरे देवा, तू तैयार नहीं हुआ अभी तक ” नाज ने मुझसे कहा
मैं- किसलिए
“तुझे नहीं पता क्या ” नाज बोली
मैं- क्या नहीं पता
नाज- आज तेरी रांड की सगाई है
नाज ने मुझ पर हँसते हुए ताना मारा .
“रांड तो तुम भी हो मासी ” मैंने कहा और पिस्ता के घर की तरफ दौड़ पड़ा. दरवाजे पर ही मुझे पिस्ता मिल गयी. काले सूट में साली क्या ही जोर की लग रही थी .
“क्या हो रहा है ये पिस्ता ” मैंने कहा
पिस्ता- देव, मुझे खुद नहीं पता .थोड़ी देर पहले ही मुझे बताया गया की रिश्ते वाले आने वाले है .
मैं कुछ कहता की तभी पीछे पीछे नाज भी आ पहुंची थी .
“किसी भी तरह का तमाशा करने की जरूरत नहीं है मेहमानों के सामने . रिश्ता तुम्हारे पिताजी करवा रहे है ” नाज ने कहा
न चाहते हुए भी मैं अन्दर चला गया. मालूम हुआ की पिस्ता के रिश्ते की बात पिताजी ने ही चलवाई थी . बहुत ही बड़े लोग थे वो राजनीती में नाम था , जिस लड़के से पिस्ता की शादी होनी थी वो भी आगे जाकर विधायक बनने वाला था .
“देव, वहां क्यों खड़े हो . यहाँ आकर बैठो .नए रिश्तेदारों से मिलो .कुछ नाश्ता पानी करो ” पिताजी ने मुझे कहा
मुस्कुराते हुए मैंने दो टुकड़े बर्फी उठा ली और चाय के साथ खाने लगा. मैंने महसूस किया की नाज की नजरे मुझ पर ही जमी पड़ी थी . बातो बातो में मेरा परिचय पड़ोसी गाँव के लाला हरदयाल से करवाया गया जो पिताजी और पिस्ता के होने वाले ससुराल वालो के बीच में था, कहने का मतलब इस रिश्ते का असली बिचोलिया .
“देव कभी आओं हमारे गरीबखाने पर भी ” लाला ने कहा
मैं- मैं जरुर आऊंगा लाला जी नियति मुझे जरुर मौका देगी आपका मेहमान बनने का
लाला कुछ और कहता उस से पहले ही पिस्ता आ गयी रोके की रस्म के लिए . साली को इतनी खूबसूरत तो पहले कभी नहीं देखा था .उस एक लम्हे में मैंने कायनात को देखा ,दिल को धड़कते हुए महसूस किया.मैंने इश्क किया. जब पिस्ता को रोके में मांग टीका दिया गया तो मेरी आँखों से दो आंसू निकल कर गिर गए. उस दिन मैंने इतना तो जाना की नमक की इन बूंदों का कोई वजूद नहीं होता. दिल में बसाकर उस प्यारी सी सूरत को मैं नाज के घर आया .कुछ बोझ सा लग रहा था ,थोडा पानी पिया और चादर ओढ़ ली.
“उठ रे देवा, कितना सोयेगा ” ये आवाज मेरी माँ की थी .
माँ- उठ तो सही
मैं- तबियत थोड़ी नासाज सी है मा सोने दो
माँ- उठ तो सही कुछ बात करनी है तुझसे
मैं-मुझे भी बात करनी है अभी करनी है . क्या जरुरत थी पिताजी को पिस्ता का रिश्ता करवाने की
माँ- तो क्या करते, तुम लोगो ने तो शर्म लिहाज बेच खाई थी . शुक्र मना रिश्ता ही करवाया ये तो मैं बीच में हु वर्ना ना जाने क्या क्या हो सकता था . गाँव में परिवार की इज्जत का जो फलूदा तुम दोनों ने किया है ये तो कुछ भी नहीं है . और तू तो गर्व कर तेरी दोस्त का रिश्ता इतने बड़े घर में हुआ है .
“रिश्ता ही तो हुआ है मा. .”..............................