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Adultery जब तक है जान

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#48

“मंदिर , पर क्यों ”मैंने पुछा

जोगन ने कोई जवाब नहीं दिया वो खड़ी रही , इतनी ख़ामोशी हमारे दरमियान पसर गयी की सांसे तक सहम सहम चुकी थी .

“जवाब चाहता हु मैं ” मैंने फिर से कहा

जोगन- लाला का कहना है की ये मंदिर उसके कुलदेवता का है. बरसो पहले उनकी मिलकियत थी ये पर फिर तुम्हारे पिता ने इसे तहस नहस कर दिया

मैं- मतलब लाला का कहना है की वो अपने मंदिर को फिर से हासिल करना चाहता है . ये बात तुम्हे बहुत हलकी नहीं लगती की बरसो से सुनसान पड़े मंदिर को अब क्यों चाहता है वो. जबकि पिताजी को एक मुद्दत हुई इधर का ख्याल भी किये हुए. लाला का उद्देश्य कुछ और है या फिर तुम मुझे सच नहीं बता रही

जोगन- मैं तुमसे कभी झूठ नहीं बोलती

मैं- सच भी तो ये झूठ से कम नहीं और अगर लाला को मंदिर चाहिए भी तो वो तुमसे क्यों मांग रहा है पिताजी से क्यों नहीं माँगा और जैसा मैंने उस दिन देखा था लाला और पिताजी मुझे घनिष्ट से लगे.

जोगन- मुझसे क्यों मांग रहा था लाला ये मंदिर, बहुत जायज है तुम्हारा पूछना देव और मैं जानती हु की लाख छुपा नहीं पाउंगी मैं इस जवाब को . तुमसे तो ख़ास कर नहीं , बस सोच रही हु की क्या ये सही समय है तुम्हे बताने का या वक्त का और इंतज़ार किया जाये.

मैं- पहेलियाँ मत बुझा जोगन

जोगन- पहेली, ये जिन्दगी पहेली ही तो है हमारी तुम्हारी .ये जिन्दगी भी मेरी और तू भी मेरा.

अचानक से वो जोर जोर से हंसने लगी, क्या पागल थी वो कसम . बहुत देर तक वो हंसती रही और फिर मुझे अपने सीने से लगा लिया.

“जान जायेगा तू तू ही जानेगा . तू नहीं तो फिर कौन जानेगा ” अपने आगोश में भरते हुए उसने मुझे कहा .

“क्यों इतनी परेशान है मेरी जोगन तू , तेरे मन के भार को थोडा हल्का कर ले इतना तो हक़ है मेरा की तेरे मन के दर्द को अपने सीने से लगा सकू ” मैंने उसके कान में कहा

“ये दर्द भी अपना तू भी अपना ” मेरे कान में फुसफुसाते हुए उसने कहा.

अजीब सी हालत थी मेरी पर मैंने खुद को उसके आगोश में छोड़ दिया.

“तेरी जेब में रख दिया है तेरे सवाल के जवाब का पर इसे जब पढना जब मैं साथ ना हु तेरे ” उसने कहा और अपने रस्ते पर बढ़ गयी. जेब में हाथ डाला तो कागज सा महसूस हुआ पर इस से पहले की मैं उसे खोल पाता , पिताजी की जीप को आते देखा मैंने

“क्या कर रहे हो इधर ” पिताजी ने कहा

मैं- सच कहू तो आपसे ही मिलना चाहता था और देखो कायनात की मेहरबानी पिताजी

“आजा ” पिताजी ने इशारा किया और मैं गाड़ी में बैठ गया. जल्दी ही हम कुवे पर थे .

“लाला हरदयाल के बारे में क्या ख्याल है पिताजी आपके ” मैंने सीधे ही सवाल कर लिया

पिताजी- लाला के बारे में क्यों पुछा तुमने

मैं- दरअसल ये सवाल लाला के बारे में नहीं बल्कि मंदिर के बारे में है लाला को क्या दिलचस्पी है मंदिर में

पिताजी- लाला बड़ा धूर्त किस्म का व्यक्ति है वैसे तो पर सियासत चीज ही ऐसी है की ज़माने में सबसे बना कर रखनी पड़ती है . लाला की दिलचस्पी मंदिर में नहीं है बल्कि उसके खंडहर में है. मंदिर के बारे में अनगिनत अफवाहे है की वहां पर भूत-प्रेत है चुड़ैल है पर असल में देव वहां पर टूटी दीवारों की बिखरी बाते है जो खामोश है .

मैं- मंदिर को आपसे ज्यादा कोई नहीं जानता पिताजी . वो बिखरी बाते भी जरुर आपकी ही जिन्दगी का हिस्सा रही होंगी.

“क्या तू मेरे लिए एक पेग बनाओगे ” पिताजी ने कहा तो मैं गाड़ी से एक बोतल निकाल लाया .

“पानी की जरुरत नहीं ” पिताजी ने कहा

“वैसे तो तुम्हारे सामने ये नहीं करना चाहिए पर हमें सच में इसकी जरुरत है ” पिताजी ने मेरे हाथ से गिलास लेते हुए कहा और कुछ चुसकिया ली .

“तुम्हे क्या लगता है देव, की ये किस्से, कहानिया ये फ़साने क्या होते है ” पुछा उन्होंने

मैं- सच कहूँ तो जिन्दगी के कुछ खास लम्हे जिन्हें हम बार बार जीना चाहते है वो ही आगे जाकर फ़साने बनते है

पिताजी- लाला को मंदिर इसलिए नहीं चाहिए की वो उसका हक़दार है उसे अपने काले कारनामो को अंजाम देने के लिए मंदिर का खंडहर चाहिए ताकि वो वहां पर गैर कानूनी काम उन अफवाहों की आड़ में कर सके पर जब तक हम है उसका ये मंसूबा कभी पूरा नहीं होगा.

मैं- मतलब की ये बात सच है की मंदिर लाला के परिवार का है

पिताजी- मंदिर कभी किसी का नहीं होता , उसके हक़दार वो होते है जो उसे सिरफ मंदिर नहीं समझते उसके हक़दार वो होते है जिनकी लगन होती है वहां पर . जिनका मन होता है वहां पर



मैं- फिर आप मदद क्यों नहीं करते, मंदिर को आबाद करने की हामी भरिये जब मंदिर आबाद होगा तो लाला वैसे ही ये सब नहीं कर पायेगा.



पिताजी- सवाल ये है की तुम्हारी दिलचस्पी क्यों है मंदिर में



मैं- आप ही कहते है ना की कुछ सवालो के जवाब नहीं होते तो बस समझ लीजिये की इस सवाल का भी को जवाब नहीं है

पिताजी- ठीक है , हम किसी पुजारी से मिल कर कोई मुहूर्त देखते है और फिर निर्माण शुरू हो जायेगा.



एक पल को तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ की पिताजी इतनी आसानी से मान गए . पिताजी ने आधे बचे गिलास को वहीँ पर रखा और चले गए रह गया मैं जिसे बहुत देर तक यकीन नहीं था की उसके बाप ने उसकी वो मांग मान ली है जो नामुमकिन सी थी .

ढलती शाम में दूर नजर देखा तो दिल को जैसे किसी का बुलावा सा आया. मेरे कदम जानते थे की मैं कहाँ जाना चाहता हु, जब मैं उन काले पत्थरों के मकान पर पहुंचा तो हल्का अँधेरा शुरू हो गया था , कोई तो कशिश थी जो मुझे हर बार यहाँ खींच लाती थी . दिवार से होते हुए मैं अन्दर की तरफ गया तो ठंडी हवा ने मुझे गहरी सांस लेने पर मजबूर सा कर दिया. कुण्डी पर जैसे ही मैंने हाथ लगाया झटका सा लगा , कुण्डी की सांकल बंद नहीं थी , हौले से मैंने दरवाजे को अन्दर धकेला और जो मैंने देखा...........................................
Shaandar jabardast super Update 👌 💓 💓
Lala ka kirdar to villan wala ho gaya 😏 pitaji bhi Maan gye Mandir bnane ko ab dekhte ki mandir aasni se ban jata hai abhi achand hai 😏
Ab yaha Dev ne kya dekh Liya 😏😏
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#49

“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........



 

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“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........
Shaandar Mast Lajwab Emotional update 💓 💓 🔥 🔥 🔥
 

parkas

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“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 
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