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Adultery जब तक है जान

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#47

एक बात तो समझ में आ गयी थी की ये तमाम हमले हो रहे थे हमलावर का निशाना मुनीम और नाज थे, पिताजी को भी इस बात का भान था पर ये नहीं मालूम हो रहा था की इस दुश्मनी की क्या वजह थी , ना ही मुनीम ने कुछ बताया था और नाज ने भी हंस कर ही टाल दी बात को. अपनी बेताबी को लेकर मैं पिस्ता के पास पहुंचा

“देव, कहा था तू ” पिस्ता दौड़ कर मेरे गले लग गयी

मैं- क्या बताऊ मैं खुद नहीं जानता कहाँ उलझा हु मैं पर तू बता क्या तूने हमला करने वाले को देखा

पिस्ता- लगभग धर ही लिया था मैंने उसे पर गच्चा खा गयी . पीछा भी किया पर फिर वो जैसे गायब ही हो गया.

मैं- गाँव का कोई हो सकता है क्या चेहरा देखा तूने

पिस्ता- अँधेरा था कुछ कह नहीं सकती पर उसमे फुर्ती बहुत थी , कुशलता थी

मैं- जिस दिन मेरे हत्थे चढ़ा सारी फुर्ती गांड में घुसा दूंगा उसके पर तू इतनी रात को नाज के घर कैसे पहुंची.

पिस्ता-परले पाने में एक कोई शादी थी तो मैं और माँ वही से आ रहे थे की तभी नाज के घर से आवाजे आ रही थी, मैंने सोचा कही तू और नाज झगडा तो नहीं कर रहे तभी दरवाजा खुला और नाज बहार को गिर गई मैं दौड़ी उसकी तरफ .

मैं- मेरी गलती है मुझे पिताजी ने इसी बात के लिए सोने को कहा था नाज के घर पर मैं किसी और को तलाश कर रहा था .

पिस्ता- किसे

मैं- जो होकर भी नहीं है

पिस्ता- क्या बक रहा है

मैं- एक आशियाना है जिसका मालिक उसे भुला गया, जंगल में बहुत सी कहानिया छिपी है पिस्ता, मैं किसी अनजान को तलाश कर रहा था

पिस्ता- क्या चल रहा है तेरे मन में देव, यहाँ इतना सब कुछ हो रहा है और तू जंगल में न जाने क्या तलाश कर रहा है ,होश में आ देव, होश में आकर देख की घर जल रहा है तेरा इस से पहले की ये आग सब कुछ जला दे निकल अपने ख्यालो से बाहर.



मैं- तू मत कर मेरा विश्वास पर एक दिन आएगा जब तू मानेगी की मैं झूठ नहीं कहता

पिस्ता- तुझ पर तो खुद से भी ज्यादा ऐतबार है देव , ये दुश्मन जो भी है इस पर समय रहते लगाम नहीं लगाई गयी तो कही कुछ ऐसा न हो जाए की फिर मलाल भी न किया जा सके, तू नहीं था पर मैंने देखा था नाज को जिस तरह से घसीटा था उसने, अगर रात में नफरत का आलम ऐसा था तो देव जिस दिन वो हमलावर आमने सामने आएगा मुझे खौफ है की कही कुछ ऐसा ना हो जाये की सब बिखर जाये वक्त रहते संभाल ले इस सब को देव, संभाल ले.

पिस्ता की बात सही थी और मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं था . सिवाय पिताजी के ताने सुनने की इस हमले के बाद वो बहुत ही ज्यादा परेशान थे.

“एक काम भी नहीं हो सकता तुमसे ठीक से .क्या ख़ाक संभालोगे इस विरसत को तुम ” पिताजी ने गुस्से से कहा

“तो आपने कौन सा तीर मार लिया , इलाके का सबसे बड़ा बाहुबली अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बेटे की आड़ ले रहा है बड़ी बे गिरती की बात है ” मैंने भी गुस्से से कह दिया

“औकात मत भूल अपनी देव , हमारे बेटे हो इसलिए बर्दास्त कर रहे है कोई और होता तो ” पिताजी ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मैं-बी बेटा समझा ही कहाँ आपने, समझते तो बता नहीं देते की कैसी है ये दुश्मनी जिसकी आग मेरे घर की चोखट तक आ पहुंची है .

पिताजी- काश हमें मालूम होता

मैं- फिर भी कोई तो है जो बहुत शिद्दत से नफरत करता है आप चाहे बताये या न बताये पर मैं अपने परिवार के लिए खड़ा रहूँगा. माना की भूल हुई पर आगे से उस हमलावर के आगे देव नाम की दिवार खड़ी रहेगी.



दो पल सकूं की तलाश में मैं घर से बाहर निकल गया कदम जानते थे की कहाँ जाना है पर जैसा मैंने कहा आज का दिन ही साला मनहूस था बड के पेड़ के पास मुझे वो दिखा उसे देख कर मैं कुछ समझ नहीं पाया .जोगन लाला हरदयाल के साथ खड़ी थी ऐसा लग रहा था की जैसे लाला भड़का हुआ था जोगन पर . पर जब तक मैं वहां पहुँचता लाला अपनी गाड़ी में बैठकर जा चूका था .

“तुम यहाँ ” जोगन ने कहा

“मेरी छोड़ ये बता लाला क्या कह रहा था तुझसे , क्या चल रहा था ये सब ” एक ही साँस में मैंने कई सवाल कर डाले

जोगन- बैठ जा, पानी लाती हु तेरे लिए

“बात मत घुमा जो पुछा है जवाब दे ” मैंने उसके चेहरे पर आई शिकन को देखते हुए कहा

जोगन- लाला के बेटे ने कल हाथ पकड़ लिया था मेरा उसके गाँव में तो लाला माफ़ी मांग रहा था

ये सुन कर मुझे बहुत ही गुस्सा आया.

“कौन है लाला का बेटा नाम बता उसका मुझे ” मैंने कहा

जोगन- बात सुन देव मेरी ,

मैं- सुना नहीं तूने, नाम बता उसका मुझे

जोगन- मेरा मामला है मैं सुलझा लुंगी देव

मैं- तेरा मामला , तू अभी इतनी परायी नहीं हुई मेरे लिए की कोई भी ऐरा गैरा तुझसे इतनी बदतमीजी कर जाए

जोगन-तू सुन क्यों नहीं रहा मेरी

मैं- क्या सुनु , आज हाथ पकड़ा है कल न जाने क्या करेगा .चल, अभी के अभी चल मेरे साथ देखू जरा कौन ऐसा पैदा हो गया जिसने हाथ पकड़ लिया तेरा.और वैसे भी मुझे लगा नहीं की लाला तुझसे माफ़ी मांग रहा था मुझे तो लगा की धमका रहा था वो तुझे .

जोगन- तू गुस्से में है समझेगा नहीं तू

मैं- तो बताती क्यों नहीं

जोगन- तुझे नहीं बताउंगी तो किसे बताउंगी

मैं- बातो से मत टाल ,मैंने पहले भी कहा था तुझसे की अकेली मत रह अब तो तुझे एक पल अकेला नहीं छोड़ने वाला . अकेली नहीं रहेगी तू आज के बाद

जोगन- तो कहाँ जाउंगी बता. तू ही बता

मैं- जहाँ तू सुरक्षित रह सके

जोगन- मैं सुरक्षित ही हूँ तू जब नहीं था तब भी तो जी रही थी मैं

मैं- तब मैं नहीं था , और तू कैसे बात कर रही है ये पराई पराई

जोगन- एक तू ही तो है मेरा.

मैं- तो फिर बताती क्यों नहीं लाला क्यों धमका रहा था तुझे

जोगन- लाला कुछ चाहता है मुझसे

मैं- क्या


“मंदिर ” जोगन ने बहुत ही धीमे से कहा
Gajab likhte ho sarkaar, bas thode jaldi-2 agar update mile to maja aajaye👌🏻👌🏻
 
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#49

“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........
To naaj ko lapet diya gaya aakhir, waise maal garam tha bhai ji😁
Awesome update
 

kamdev99008

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#49

“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........
बहुत जबर्दस्त
जंगल का राज खुल गया, ये नाज की ख्वाहिशों का आशियाना था।

तो पैसा भी नाज का ही है, लेकिन इस आशियाने को नाज के साथ बसाने की ख्वाहिश किसने की थी?
मुनीम तो है नहीं वो सिर्फ केयरटेकर है नाज़ का
मेरा शक तो चौधरी साहब यानि पिताजी पर है :D
 

park

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#49

“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........
Nice and superb update....
 
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“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

“टूटे सपने, बिखरी हसरतो जनाजा है ये घर जहाँ कभी आ जाती हु भटकते हुए ”नाज ने कहा और उठ कर कपडे बदलने लगी...........



बहुत ही सुंदर लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
जंगल के बीच उस सुनसान घर नाज का हैं और नाज उसी घर में देव के तगडे लंड से चुद कर तृप्त हो गई
बडा ही शानदार अपडेट है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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“ये तमाम जज्बात एक तरफ ,तुम्हे यहाँ यु देखने की हसरत ये मुलाकात एक तरफ ” मेरे होंठ बस इतना ही कह सके.



”दिन भर भटकते है अपने आप से भागते है , ना ये दिल कही ठहरा ना ये इंतज़ार रुका , खामोश परिंदा हु मै फाद्फादाता है अपनी कैद में , ना खुद को पाया ना ये घर छूटा ” बिना किसी परवाह के बोली वो



“तो आप है वो जिसे यु देखने की तम्मना लिए भटकता फिर रहा था मैं बहुत पूछती थी ना तुम की कहाँ बीतती है मेरी राते, किसके आगोश में पिघलता हूँ मैं तो मासी एक रिश्ता कुछ भी तुमसे जुड़ता है मेरा की तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो , मैं ही मैं हु तो क्या मैं हु ” मैंने कहा



“कैसे तलाश किया इस घर को तुमने ” नाज बोली

मैं- नसीब मास्सी, नसीब मुझे एक शाम यहाँ ले आया

नाज- नसीब, ये सब नसीब का ही तो लिखा है. नसीब ही बहुत बरस पहले मुझे यहाँ ले आया था .

“ये जोड़ा क्यों पहना है तुमने मासी ” मैंने सवाल किया

“ये जोड़ा, क्या बताऊ तुम्हे देव इस सवाल का जवाब तो आजतक नहीं मिला ” नाज ने कहा

मैं- पर खूबसूरत बहुत लग रही हो इसमें तुम , इतनी की बस देखता ही रहू तुम्हे

नाज मुस्कुराई और बोली- इतना तो हक़ है तुम्हे

दो कदम आगे बढ़ा मैं और नाज की की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी बाँहों में भर लिया. गदराई औरत के मदहोश जिस्म की खुशबु मेरे “आज पूछ सकती हो की किसके आगोश में पिघल रहा हूँ मैं ” मैंने नाज के कान को अपने लबो से छूते हुए कहा

नाज- ये रात , ये बात कभी सोचा नहीं था कभी जाना नहीं था

नाज ने बेपरवाही से मेरे गाल को चूमा

“हटो जरा, उतार दू इस जोड़े को ” बोली वो

मैं- कुछ देर और देखने दो ,क्या पता कल हो ना हो

मैंने नाज की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया .

“क्या इरादा है ” बोली वो

मैं- बस इतना की तुम सामने बैठी रहू मैं तुम्हे देखता रहू

नाज- पर तुम्हारे लब ये कहने में कांप क्यों रहे है

मैं- शायद तुम्हारे हुस्न की तपिश का असर है

नाज- तपिश में झुलसा जाता है देव , शायद तुम्हे फर्क नहीं पता अभी इन बातो का

मैं-हो सकता है की पता ना हो पर फ़िलहाल तो यु है की मुझसे ये सकून ना छीना जाए.

मेरा हाथ पीठ से होते हुए नाज की गान्ड तक आ पहुंचा और मस्ती में मैंने उसके बाए नितम्ब को कस के मसला नाज की दहकती सांसे मेरे लबो पर पड़ रही थी और अगले ही पल नाज ने अपने होंठो को मेरे होंठो से जोड़ दिया. हलकी ठंड से भरी रात में सुनसान कमरे में हम दोनों के दुसरे के लबो को चूस रहे थे, नाज के होंठ जैसा मैं पहले भी बता चूका बहुत ही मुलायम थे.उसने अपना मुह हल्का सा खोला और मेरे मुह में अपनी जीभ को डाल दिया . जैसे ही हमारी जीभे आपस में रगड़ खाई तो बदन अपने आप एक दुसरे का सहयोग करने लगे. मेरा तना हुआ लंड नाज के लहंगे पर चोट मारने लगा था . बहुत देर तक हमारे होंठ आपस में जुड़े रहे .

“किसी दिन मैंने तुमसे कहा था की मैं अपनी मर्जी से दूंगी तुम्हे और नसीब देखो क्या खूब जगह चुनी है तक़दीर ने ,क्या खूब सलूक है तक़दीर का ” बहुत ही ख़ामोशी से बोली वो .

अचानक से हवा का झोंका आया और चिमनी बुझ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया मैंने नाज को अपनी गोदी में बिठा लिया और उसको किस करते हुए लहंगे को उठा कर कुल्हो पर हाथ फेरने लगा. नाज इस तरह से गोदी में चढ़ी थी की उसकी चूत बिलकुल फिट हो गयी मेरे लंड पर . अगर कपड़ो की कैद नहीं होती तो अब तक लंड चूत की गहराईयों में समां चूका होता . इतनी बेचैनी, इतनी गर्मी मैंने बुआ या पिस्ता में नहीं महसूस की थी नाज मेरे होंठो को चबा ही तो जाना चाहती थी .



बहुत से चुम्बनों के बाद मैंने नाज को चारपाई पर लिटाया और बिना किसी लिहाज के नाज के लहंगे को उसकी कमर तक उठा दिया.

“आह ” मेरे कठोर हाथो ने जब नाज की मांसल, मुलायम जांघो को भींचा तो नाज अपनी आहो को रोक ना पाए.

“क्या ही हुस्न है मासी ” मैंने कहा और नाज की जांघो को फैला दिया. ये तो अँधेरे का सितम था वर्ना नाज को नंगी देखने का अलग ही सुख था . नाज की चूत की खुशबु मेरे तन में उतर ही तो गयी जब मैंने अपना चेहरा उसकी कच्छी पर लगाया.

“पुच ” हलके से मैंने कच्छी के ऊपर से ही उसकी चूत को चूमा तो नाज का बदन उन्माद से भरता चला गया. अगले ही पल मेरी उंगलिया नाज की कच्छी की इलास्टिक में उलझी हुई थी . पेशाब की हलकी गंध किसी जाम से कम जहर नहीं घोल रही थी उस वक्त. और जब मेरी लपलपाती जीभ नाज के झांटो से उलझी तो वो बिना कसमसाये रह ना सकी.

“देव, ” मस्ती से बोली वो और मेरे सर पर अपना हाथ टिका दिया. मजबूती से नाज की गदराई जांघो को थामे मैं उसकी चूत चूस रहा था , जिन्दगी ने मुझे दुबारा ये मौका दिया जब नाज की चूत पर मेरे होंठ लगे थे . पर आज देव यही नहीं रुकना चाहता था , जैसे ही उसकी चूत ने नमकीन पानी बहाना शुरू कर दिया मैंने अपने लंड को बाहर निकाला और नाज की चूत के मुहाने पर टिका दिया.

अगले ही पल लंड चूत के छेद को फैलाते हुए अन्दर को जाने लगा और मैंने नाज की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ा लिया.

“आह, धीरे रे ” नाज मस्ती के कसमसाई और हमारी चुदाई शुरू हो गयी . धीरे धीरे मैं नाज पर पूरी तरह से छा गया और उसने लबो को चुमते हुए नाज को चोदना शुरू किया.

“पच पच ” की आवाज उस खामोश कमरे में गूंजने लगी थी .

“गाल नहीं , निशान पड़ जायेगा ” नाज अपने पैरो को मेरी कमर पर लपेटते हुए बोली.

“बहुत लाजवाब हो तुम मासी ” मैंने कहा

“तेरी रांड से गर्म हु न ” शोखी से बोली वो

मैं- हाँ,

हुमच हुमच कर मैं नाज को चोदे जा रहा था . और वो भी अपनी कमर को उचकते हुए चुदाई का पूरा मजा ले रही थी जब तक की वो झड़ नहीं गयी. इतनी जोर से सीत्कार मारते हुए नाज की चूत ने पानी छोड़ दिया लंड और तेजी से उसकी चूत में फिसलने लगा. जैसे ही वो थकने लगी मैंने नाज को उठा कर खड़ी कर दिया और पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े लेने लगा उसकी. मेरे हाथ बेदर्दी से नाज के उभारो को मसल रहे थे , कभी वो दर्द से सिसकती तो कभी मस्ती से. जल्दी ही वो दुबारा से गर्म हो चुकी थी और चुदते हुए अपनी चूत के दाने को ऊँगली से सहलाते हुए चुदाई का सुख प्राप्त करने लगी.

बढती ठण्ड में भी हमारे बदन से पसीना यु टपक रहा था की जैसे किसी पहलवान ने बहुत कसरत की हो पर किसे परवाह थी एक दुसरे के जोर की आजमाइश करते हुए आखिर हम दोनों अपने अपने सुख को प्राप्त हो गए. मैंने नाज के कुल्हो पर अपने वीर्य की बरसात कर दी. जिन्दगी में इतना वीर्य तो पहले कभी नहीं निकला था . चुदाई के बाद मैं नाज को लेकर चारपाई पर पसर गया नाज मेरी बाँहों में झूल गयी .



“तो तुम हो इस घर की मालिक ” मैंने नाज से कहा

नाज- नहीं, मालिक नहीं कह सकते तुम ये मकान कभी सपना था एक घर होने का .

मैं- तो क्या कहानी है इस घर की

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