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Adultery जब तक है जान

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नाज के इस नए आशियाने का पता देव को जोगन से प्राप्त हुआ , इसका मतलब यही हुआ न कि नाज के बारे मे जितना जोगन जानती है उसका आधा प्रतिशत भी देव को नही मालूम । मै शुरू से कहते आ रहा हूं यह दोनो महिलाएं - जोगन और नाज - काफी मिस्ट्रीयस पर्सनलटी है । खासकर नाज के बारे मे अवश्य कहना चाहता हूं कि देव ठाकुर को इन मोहतरमा से जरा सावधान रहना चाहिए ।
इस जंगल के रैन बसेरे मे ऐसा क्या था जो नाज मैडम देव ठाकुर पर बिछ बिछ सी गई ? जब खुद को सौंपना ही था तो पहले ही क्यों नही ? फिलहाल की हालात से यह भी जाहिर हो रहा है कि इस रैन बसेरे का मालिक कोई और ही व्यक्ति है जो ठाकुर साहब भी हो सकते है और गांव का लाला भी ।
लाला का सीधा संबंध जोगन से स्थापित हो चुका है लेकिन ठाकुर साहब से होना बाकी है ।

बेहतरीन अपडेट फौजी भाई । खासकर नाज और देव का रोमांटिक कन्वर्सेशन तो बहुत ही अधिक खुबसूरत था । ये पढ़कर ऐसा लगा एक बार फिर से फौजी भाई इज बैक ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट भाई ।
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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मैं भी उठा और नाज के बदन को एक बार फिर से अपने आगोश में भर लिया

“अभी नहीं जाना कही , अभी मेरे कुछ सवालो के जवाब देने है तुम्हे ” मैंने नाज की गर्दन को चूमते हुए कहा

नाज- इस से ज्यादा बताने की ना मेरी इच्छा ना इससे ज्यादा जानने की तुम्हारी जुर्रत होनी चाहिए

मैं- उफ़ ये सुरूर, ये बदले हुए तेवर क्या छिपा रहे है मासी

नाज- तुम अभी तक नहीं समझे देव, छिपाने की जरुरत उन्हें होती है जिनके मन में चोर हो . मेरा दामन अभी उतना कमजोर तो हरगिज नहीं हुआ.

मैं- अलमारी में रखे ये रूपये किसके है मासी. अगर तुम्हारे है तो फिर इन्हें घर पर होना चाहिए न

नाज- ये भी तो घर ही है ना और किसे परवाह है इनकी तुम्हे चाहिए तो तुम ले सकते हो जितना चाहे तुम्हारा जी करे.

मैं- जरुरत नहीं पर फिर भी मेरे कुछ सवाल है

नाज- फिलहाल तो मुझसे दूर हो जाओ क्योंकि तुम्हारा लंड मेरी चूत में घुसने को फिर से बेताब है और मैं अब चुदना नहीं चाहती .

मैं- चुदाई में ना मेरी मर्जी है न तुम्हारी , लंड जाने और चूत जाने .

नाज- पर ये चूत मेरी है और मेरी मर्जी से ही चुदेगी हटो परे.

नाज ने मुझे धक्का दिया और कपडे पहनने लगी .

“मंदिर से तुम्हारा क्या लेना देना है मासी ” मैंने कहा

नाज- कुछ चीजो से लेना देना जैसा कुछ नहीं होता. जैसे ये जंगल, वो मंदिर. ये सबके होते है अगर कोई माने तो , मंदिर पर एक ज़माने में बहुत रौनक थी ,

मैं- पिताजी ने मंदिर को खंडित क्यों किया

नाज- अतीत के पन्ने पलटने के चक्कर में तुम अपना आज ख़राब कर लोगे देव. मैं बस इतना कहूँगी की ये जिन्दगी एक बार मिलती है इसे सही से जी लेनी चाहिए

मैं- क्या छिपा रही हो तुम मास्सी.

नाज- तुम्हे क्या लगता है देव की क्या है मेरे पास छिपाने को .

मै- बस इतना जानना है की परिवार पर हमले कौन कर रहा है . दुश्मनी की वजह क्या है

नाज- अगर तुमने जान भी लिया तो क्या ही कर लोगे तुम

मैं- ये तो वक्त ही जाने मैं क्या करूँगा

नाज-तो फिर वक्त पर ही छोड क्यों नहीं देते अपने सवाल , वक्त ने चाहा तो तुम्हे जवाब जरुर मिलेंगे. वैसे तुम जब भी चाहो यहाँ आ सकते हो मैं रोकूंगी नहीं पर इतना अहसास रखना की ये राज राज ही रहे. फिलहाल हमे घर चलना चाहिए

मैं और नाज कुछ देर बाद जंगल में चल रहे थे .

नाज- चुप क्यों हो

मैं- तुम जानती हो

नाज- कभी कभी चुप रहना बड़ा फायदेमंद होता है

मैं- तुम समझ नहीं रही मास्सी.

नाज- तुम नहीं समझ रहे हो देव, ये जो जासूसी का हठ पकड़ा है तुमने अगर इसे नहीं रोका तो फिर सिवाय पछताने के कुछ बचेगा नहीं. तुम्हे वो सब मिला है जिसके कल्पना भी नहीं कर सकते, एक जवान लड़के को और भला चाहिए ही क्या अथाह पैसा और चोदने को चूत

मैं- तुमने मुझे कभी जाना ही नहीं मासी

नाज- जाना है इसलिए ही तो कहती हु की अपनी जिन्दगी जियो दुसरो के मसले उनको ही सुलझाने दो. जिन्दगी में इतना तजुर्बा तो है मेरा की कुछ चीजो को नसीब भरोसे छोड़ देना चाहिए. बेशक मेरी बातो को तुम मानने वाले हरगिज नहीं हो पर फिर भी मैं तुमसे यही कहूँगी बार “कैसे जाने दू मास्सी, तुम ही बताओ कैसे जाने दू ” मैंने कहा

नाज ने झुक कर धरती से थोड़ी मिटटी अपने हाथ पर रखी और फूंक से उड़ा दी . अपनी अपनी ख़ामोशी में उलझे हम गाँव की सरहद तक आ पहुंचे थे . हवा में कुछ तेजी सी थी .

“क्या हुआ कदम क्यों ठहर से गए तुम्हारे ” नाज ने कहा

मैं- पता नहीं कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा .

पता नहीं कैसी बेचैनी सी थी

“मेरा मन नहीं है घर जाने का मासी ” मैंने कहा और सड़क किनारे ही बैठ गया .

नाज- क्या हुआ

मैं- पता नहीं अचानक से जी घबराने लगा है

“हमें वैध के पास चलना चाहिए ” बोली वो

मैं- नहीं वैसा कुछ नहीं

अचानक से ही घबराहट सी होने लगी थी , पर ये वैसा कुछ नहीं था तबियत ख़राब होने जैसा ये कुछ ऐसा था की कभी कभी दिल अनचाहे ही कहने लगता है की कुछ तो गड़बड़ है कुछ तो अनिष्ट होने वाला है . खैर, घर आते ही मासी ने मुझे गरम दूध का गिलास दिया और खाना बनाने लग गयी. पर मेरा दिल कुछ और कह रहा था, तभी मुझे ध्यान आया जोगन के दिए पन्ने के बारे में तो मैंने जेब में हाथ डाला पर ये क्या जेब तो खाली थी .

“ऐसा कैसे हो सकता है ” मैंने अपने आप से कहा और सोचा की दूसरी जेब में होगा पर पेंट की दोनों जेबे खाली थी , दिमाग में अलग ही भसड मची हुई थी. हो सकता था की कागज वही कही गिर गया हो . मैंने उसी समय वापिस जाने का सोचा

“मासी, किवाड़ बंद कर लो . थोड़ी देर के लिए मैं बाहर जा रहा हु पर जल्दी ही लौट आऊंगा तब तक तुम चोकन्नी रहना, कहो तो पिस्ता को छोड़ जाऊ तुम्हारे पास ” मैंने कहा

नाज- अब रात में कहा जाना है ,

मैं- बस यु गया और यु आया.

नाज- पिस्ता की जरुरत नहीं मैं सोनिया को बुला लुंगी पर जल्दी ही आना तुम , रात में भटकना उचित नहीं.

मैंने नाज के माथे को चूमा और घर से निकल गया. रात गहरा रही थी पर किसे परवाह थी , चूमती हवा के झोंको संग ताल मिलाते हुए मैं अपनी मंजिल की तरफ जा रहा था , देर से बचने के लिए मैंने छोटा रास्ता लिया और कुछ दूर ही पहुंचा था की जंगल में रौशनी देख कर मैं चौंक गया.

“यहाँ कौन हो सकता है ” मैंने खुद से पुछा और उस तरफ बढ़ गया.

यूँ तो जंगल में गाँव वाले आते जाते रहते थे पर चूँकि गैर टाइम था तो सोचने की बात थी , झाड़ियो को हटाते हुए मैं जैसे ही उस तरफ पहुंचा मैंने अपने पैरो को रोक लिया . वो रौशनी गाडी की थी, गाड़ी के अन्दर वाला बल्ब जल रहा था . मुझे बड़ी उत्सुकता हुई थोडा सा और आगे बढ़ा और मैंने देखा की गाड़ी की गद्दी पर कोई बैठा हुआ था और उसकी जांघो के बीच एक औरत झुकी हुई थी...........................
 
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