बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया#51
बहन की लौड़ी दुनिया रे, साला जिसे देखो बस इस छेद के पीछे पागल था जिनमे मैं खुद भी तो शामिल था, वो औरत झुक कर उस आदमी का लंड अपने मुह में ले रही थी . इतना समझते ही मैं थोडा सा आगे और बढ़ा जब तक की मुझे साफ़ साफ़ दिखाई नहीं देने लगा इतना साफ़ की फिर सब फर्क ही मिट गया .ये जो सीन मेरी आँखे देख रही थी किसी और ने मुझे बताया होता तो मैं मानता ही नहीं उस आदमी ने अपने मुह को ढक रखा था पर वो औरत , वो औरत उसे मैं बहुत अच्छे से जानता था .वो कोई और नहीं परमेश्वरी काकी थी
“चल अब आजा ” उस आदमी ने कहा और काकी गाडी में चढ़ गयी . जल्दी ही वो दोनों ऊपर निचे होने लगे और तबियत से अपने जिस्मो की प्यास बुझाने में लग गए मैंने भी उन्हें रोकने, टोकने की जरा भी इच्छा नहीं दिखाई . क्योंकि मेरे मन में अब जो था वो मुझे ना जाने किस रस्ते पर ले जाने वाला था ये बस मेरी नियति ही जानती थी .
“लड़के का कुछ करना होगा ” काकी ने सांसो को दुरुर्स्त करते हुए कहा
“इतना आसान नहीं है उसे हाथ लगाना थोडा सा सब्र कर बाज़ी अपने हाथ में आने को ही है तू उसकी फ़िक्र छोड़ और मुद्दे पर ध्यान दे सरपंच बनते ही तुझे मालूम है न क्या करना है ” आदमी ने गला खंखारते हुए कहा
काकी- बताने की जरूरत नहीं .
आदमी- चौधरी बहुत समय बिता रहा है जंगल में आजकल
काकी- काफी समय से कुछ तलाश रहा है वो , दिन रात एक किये हुए है उसने
आदमी- इसीलिए तो कहा , मालूम कर तो सही क्या चाहत है उसकी. सुना है की मंदिर को फिर से रोशन कर रहा है वो .
काकी- हाँ , इतने बरस बाद ना जाने क्या सूझी उसे
आदमी- तुझे अजीब नहीं लगता
काकी- मेरा क्या लेना देना इसमें.
आदमी- साली तेरी ये अदा ही तो पागल कर जाती है , किसकी बनेगी तू . एक पल भी विश्वास लायाक नहीं है तू .
काकी- तू कौन सा दूध का धुला है . सांप और तेरे में से किसी एक को चुनना हो तो सांप ही बेहतर रहे .
आदमी- चौधरी के परिवार पर हमले कौन करवा रहा है कुछ पता चला क्या तुझे
काकी- पता होता तो उसकी लाश न लटकी होती अब तक, वैसे बन्दे की गांड में दम बहुत है सोचा नहीं उसने जरा भी की पंगा किस से ले रहा है
आदमी-सो तो है .
काकी- वैसे मंदिर में ऐसा क्या है जो सबकी इतनी दिलचस्पी है उसमे , इतने सालो से वीरान ही तो पड़ा था बिना किसी की नजरो में आये छानबीन कर ही लेते और की भी होगी तो अचानक से ये सब क्यों
आदमी- मंदिर का राज़ चौधरी से बेहतर कोई नहीं जानता . बाकी सबकी तो अपनी अपनी कहानिया है कोई कहता है की खजाना है , कोई कहता है भूत-प्रेत है पर खंडहर पर चौधरी ने अपनी सरपरस्ती रखी आज तक. और तू छानबीन की बात करती है चौधरी की मर्जी के बिना कोई पैर भी नहीं रख सकता उस रस्ते पर . कितने ही लोगो की जान गयी पर उनके पैर मंदिर की सीढिया ना चढ़ सके. खैर रात बहुत हुई निकलना चाहिए अब
. कुछ बाते और की उनने और फिर काकी गाड़ी से उतर कर चलने लगी, वो आदमी भी जाने लगा और मैं फंस गया किसके पीछे जाऊ आदमी के या फिर काकी को धरु . असमंजस टुटा तब तक गाडी जा चुकी थी . तो काकी के पीछे पीछे ही चल दिया. अँधेरे में भी मेरी नजर काकी की गांड पर जमी थी जिसे आज से पहले कभी उस नजर से नहीं देखा था . चालीस- बयालीस साल की काकी हष्ट-पुष्ट औरत थी . मेहनतकश देह की मालिकिन पर ये क्या खिचड़ी पका रही थी ये टेंशन वाली बात थी . अचानक ही मेरे पाँव में काँटा गड गया और उसे निकालने में कुछ क्षण ही लगे होंगे पर इतने में ही काकी गायब ही तो हो गयी . दिमाग में बहुत सी बाते लिए मैं सीधा गाँव में पंहुचा, सिर्फ पिस्ता ही तो थी जिसपर मुझे हद से जायदा विश्वास था . जल्दी ही उसके कमरे में था मैं .
“ऐसे क्यों आया ” किवाड़ बंद करते हुए बोली वो .
मैं- जरुरत थी तेरी.
पिस्ता- दे दूंगी , पर बता तो दिया कर
मैं- चूत नहीं चाहिए , बस रहना चाहता हु तेरे साथ
पिस्ता ने कुछ देर देखा मुझे और बाँहों से निकल गयी. एक गिलास पानी दिया उसने मुझे और बोली- क्या बात है
मैं- कुछ अजीब महसूस किया क्या तूने
पिस्ता- जैसे की
मैं सीधा सीधा कह नहीं सकता था की थोड़ी देर पहले तेरी माँ जंगल में चुद रही थी किसी से .
पिस्ता- बोल ना क्यों चुप है
मैं- तेरी माँ मुझे मरवाना चाहती है
एक ही साँस में मैंने पिस्ता से कह दिया. कुछ देर तक वो मुझे घूरती रही और फिर खिलखिला के हंसने लगी . मैं पागलो जैसे उसे देखता रहा .
“क्या तू भी कुछ भी बकता है , हमारे पास खाने को रोटी तो है ना .जो औरत तेरे बाप की सरपरस्ती में दिन काट रही है वो तुझे मरवाना चाहती है मैं ही मिली तुझे चुतिया बनाने को ” बोली वो .
मैं- कैसे समझाऊ तुझे
पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी रसोई में ले गयी .
“देख, हमारे हालात, सुबह सुबह आधे गाँव के घरो में झाड़ू निकालते है तब जाकर दो वक्त की रोटिया मिलती है . मेरे तन पर जो ये कपडे है तेरी माँ दिलाती है मुझे . ये थोडा बहुत जो भी तुझे दीखता है तेरे माता-पिता की वजह से है , और मेरी माँ उनके अहसानों को तुझे मरवा कर चुकाएगी ” बोली वो
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने सीने से लगा लिया . समझ नहीं आ रहा था की कैसे बात करू उस से , कैसे बताऊ उसे की मैंने जंगल में क्या देखा क्या सुना था .
“हो सकता है मुझे ग़लतफ़हमी हुई हो ” मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा
पिस्ता- अब जिसकी छोरी को दिन रात चोदेगा तू तो गुस्से में थोडा बहुत तो बोल ही देगी न
मैं- सही कहती है तू मेरी सरकार
मैंने पिस्ता की गांड की गोलाइयो को कस कर दबाया और उसके होंठो को चूम कर छोड़ दिया.
“चलता हु ” मैंने कहा
पिस्ता- रुक जा
मैं- नहीं , पर कल दोपहर तू मुझे बड के पास मिलियो मंदिर चलेंगे कल
पिस्ता- जो हुकुम खसम
वहां से निकल कर मैं नाज के घर आ चूका था , तभी मेरे दिमाग में वो बात आई जो बहुत पहले मुझे सूझ जानी चाहिए थी अब बस इंतज़ार था मासी के सोने का..................
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा