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नाज ने भी कुछ ज्यादा नहीं बताया देव के लिए नाज भी एक पहेली है आखिर नाज के पास इतना पैसा आया कहा से और इसे जंगल में क्यों रखा है ???#50
मैं भी उठा और नाज के बदन को एक बार फिर से अपने आगोश में भर लिया
“अभी नहीं जाना कही , अभी मेरे कुछ सवालो के जवाब देने है तुम्हे ” मैंने नाज की गर्दन को चूमते हुए कहा
नाज- इस से ज्यादा बताने की ना मेरी इच्छा ना इससे ज्यादा जानने की तुम्हारी जुर्रत होनी चाहिए
मैं- उफ़ ये सुरूर, ये बदले हुए तेवर क्या छिपा रहे है मासी
नाज- तुम अभी तक नहीं समझे देव, छिपाने की जरुरत उन्हें होती है जिनके मन में चोर हो . मेरा दामन अभी उतना कमजोर तो हरगिज नहीं हुआ.
मैं- अलमारी में रखे ये रूपये किसके है मासी. अगर तुम्हारे है तो फिर इन्हें घर पर होना चाहिए न
नाज- ये भी तो घर ही है ना और किसे परवाह है इनकी तुम्हे चाहिए तो तुम ले सकते हो जितना चाहे तुम्हारा जी करे.
मैं- जरुरत नहीं पर फिर भी मेरे कुछ सवाल है
नाज- फिलहाल तो मुझसे दूर हो जाओ क्योंकि तुम्हारा लंड मेरी चूत में घुसने को फिर से बेताब है और मैं अब चुदना नहीं चाहती .
मैं- चुदाई में ना मेरी मर्जी है न तुम्हारी , लंड जाने और चूत जाने .
नाज- पर ये चूत मेरी है और मेरी मर्जी से ही चुदेगी हटो परे.
नाज ने मुझे धक्का दिया और कपडे पहनने लगी .
“मंदिर से तुम्हारा क्या लेना देना है मासी ” मैंने कहा
नाज- कुछ चीजो से लेना देना जैसा कुछ नहीं होता. जैसे ये जंगल, वो मंदिर. ये सबके होते है अगर कोई माने तो , मंदिर पर एक ज़माने में बहुत रौनक थी ,
मैं- पिताजी ने मंदिर को खंडित क्यों किया
नाज- अतीत के पन्ने पलटने के चक्कर में तुम अपना आज ख़राब कर लोगे देव. मैं बस इतना कहूँगी की ये जिन्दगी एक बार मिलती है इसे सही से जी लेनी चाहिए
मैं- क्या छिपा रही हो तुम मास्सी.
नाज- तुम्हे क्या लगता है देव की क्या है मेरे पास छिपाने को .
मै- बस इतना जानना है की परिवार पर हमले कौन कर रहा है . दुश्मनी की वजह क्या है
नाज- अगर तुमने जान भी लिया तो क्या ही कर लोगे तुम
मैं- ये तो वक्त ही जाने मैं क्या करूँगा
नाज-तो फिर वक्त पर ही छोड क्यों नहीं देते अपने सवाल , वक्त ने चाहा तो तुम्हे जवाब जरुर मिलेंगे. वैसे तुम जब भी चाहो यहाँ आ सकते हो मैं रोकूंगी नहीं पर इतना अहसास रखना की ये राज राज ही रहे. फिलहाल हमे घर चलना चाहिए
मैं और नाज कुछ देर बाद जंगल में चल रहे थे .
नाज- चुप क्यों हो
मैं- तुम जानती हो
नाज- कभी कभी चुप रहना बड़ा फायदेमंद होता है
मैं- तुम समझ नहीं रही मास्सी.
नाज- तुम नहीं समझ रहे हो देव, ये जो जासूसी का हठ पकड़ा है तुमने अगर इसे नहीं रोका तो फिर सिवाय पछताने के कुछ बचेगा नहीं. तुम्हे वो सब मिला है जिसके कल्पना भी नहीं कर सकते, एक जवान लड़के को और भला चाहिए ही क्या अथाह पैसा और चोदने को चूत
मैं- तुमने मुझे कभी जाना ही नहीं मासी
नाज- जाना है इसलिए ही तो कहती हु की अपनी जिन्दगी जियो दुसरो के मसले उनको ही सुलझाने दो. जिन्दगी में इतना तजुर्बा तो है मेरा की कुछ चीजो को नसीब भरोसे छोड़ देना चाहिए. बेशक मेरी बातो को तुम मानने वाले हरगिज नहीं हो पर फिर भी मैं तुमसे यही कहूँगी बार “कैसे जाने दू मास्सी, तुम ही बताओ कैसे जाने दू ” मैंने कहा
नाज ने झुक कर धरती से थोड़ी मिटटी अपने हाथ पर रखी और फूंक से उड़ा दी . अपनी अपनी ख़ामोशी में उलझे हम गाँव की सरहद तक आ पहुंचे थे . हवा में कुछ तेजी सी थी .
“क्या हुआ कदम क्यों ठहर से गए तुम्हारे ” नाज ने कहा
मैं- पता नहीं कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा .
पता नहीं कैसी बेचैनी सी थी
“मेरा मन नहीं है घर जाने का मासी ” मैंने कहा और सड़क किनारे ही बैठ गया .
नाज- क्या हुआ
मैं- पता नहीं अचानक से जी घबराने लगा है
“हमें वैध के पास चलना चाहिए ” बोली वो
मैं- नहीं वैसा कुछ नहीं
अचानक से ही घबराहट सी होने लगी थी , पर ये वैसा कुछ नहीं था तबियत ख़राब होने जैसा ये कुछ ऐसा था की कभी कभी दिल अनचाहे ही कहने लगता है की कुछ तो गड़बड़ है कुछ तो अनिष्ट होने वाला है . खैर, घर आते ही मासी ने मुझे गरम दूध का गिलास दिया और खाना बनाने लग गयी. पर मेरा दिल कुछ और कह रहा था, तभी मुझे ध्यान आया जोगन के दिए पन्ने के बारे में तो मैंने जेब में हाथ डाला पर ये क्या जेब तो खाली थी .
“ऐसा कैसे हो सकता है ” मैंने अपने आप से कहा और सोचा की दूसरी जेब में होगा पर पेंट की दोनों जेबे खाली थी , दिमाग में अलग ही भसड मची हुई थी. हो सकता था की कागज वही कही गिर गया हो . मैंने उसी समय वापिस जाने का सोचा
“मासी, किवाड़ बंद कर लो . थोड़ी देर के लिए मैं बाहर जा रहा हु पर जल्दी ही लौट आऊंगा तब तक तुम चोकन्नी रहना, कहो तो पिस्ता को छोड़ जाऊ तुम्हारे पास ” मैंने कहा
नाज- अब रात में कहा जाना है ,
मैं- बस यु गया और यु आया.
नाज- पिस्ता की जरुरत नहीं मैं सोनिया को बुला लुंगी पर जल्दी ही आना तुम , रात में भटकना उचित नहीं.
मैंने नाज के माथे को चूमा और घर से निकल गया. रात गहरा रही थी पर किसे परवाह थी , चूमती हवा के झोंको संग ताल मिलाते हुए मैं अपनी मंजिल की तरफ जा रहा था , देर से बचने के लिए मैंने छोटा रास्ता लिया और कुछ दूर ही पहुंचा था की जंगल में रौशनी देख कर मैं चौंक गया.
“यहाँ कौन हो सकता है ” मैंने खुद से पुछा और उस तरफ बढ़ गया.
यूँ तो जंगल में गाँव वाले आते जाते रहते थे पर चूँकि गैर टाइम था तो सोचने की बात थी , झाड़ियो को हटाते हुए मैं जैसे ही उस तरफ पहुंचा मैंने अपने पैरो को रोक लिया . वो रौशनी गाडी की थी, गाड़ी के अन्दर वाला बल्ब जल रहा था . मुझे बड़ी उत्सुकता हुई थोडा सा और आगे बढ़ा और मैंने देखा की गाड़ी की गद्दी पर कोई बैठा हुआ था और उसकी जांघो के बीच एक औरत झुकी हुई थी...........................
जंगल में गाड़ी और गाड़ी में चुदाई पहले नाज को अब पिस्ता की मां को देव ने चूदते हुए देखा है लगता है दोनों को चोदने वाला एक ही इंसान है पिस्ता की मां भी देव को मरवाना चाहती है#51
बहन की लौड़ी दुनिया रे, साला जिसे देखो बस इस छेद के पीछे पागल था जिनमे मैं खुद भी तो शामिल था, वो औरत झुक कर उस आदमी का लंड अपने मुह में ले रही थी . इतना समझते ही मैं थोडा सा आगे और बढ़ा जब तक की मुझे साफ़ साफ़ दिखाई नहीं देने लगा इतना साफ़ की फिर सब फर्क ही मिट गया .ये जो सीन मेरी आँखे देख रही थी किसी और ने मुझे बताया होता तो मैं मानता ही नहीं उस आदमी ने अपने मुह को ढक रखा था पर वो औरत , वो औरत उसे मैं बहुत अच्छे से जानता था .वो कोई और नहीं परमेश्वरी काकी थी
“चल अब आजा ” उस आदमी ने कहा और काकी गाडी में चढ़ गयी . जल्दी ही वो दोनों ऊपर निचे होने लगे और तबियत से अपने जिस्मो की प्यास बुझाने में लग गए मैंने भी उन्हें रोकने, टोकने की जरा भी इच्छा नहीं दिखाई . क्योंकि मेरे मन में अब जो था वो मुझे ना जाने किस रस्ते पर ले जाने वाला था ये बस मेरी नियति ही जानती थी .
“लड़के का कुछ करना होगा ” काकी ने सांसो को दुरुर्स्त करते हुए कहा
“इतना आसान नहीं है उसे हाथ लगाना थोडा सा सब्र कर बाज़ी अपने हाथ में आने को ही है तू उसकी फ़िक्र छोड़ और मुद्दे पर ध्यान दे सरपंच बनते ही तुझे मालूम है न क्या करना है ” आदमी ने गला खंखारते हुए कहा
काकी- बताने की जरूरत नहीं .
आदमी- चौधरी बहुत समय बिता रहा है जंगल में आजकल
काकी- काफी समय से कुछ तलाश रहा है वो , दिन रात एक किये हुए है उसने
आदमी- इसीलिए तो कहा , मालूम कर तो सही क्या चाहत है उसकी. सुना है की मंदिर को फिर से रोशन कर रहा है वो .
काकी- हाँ , इतने बरस बाद ना जाने क्या सूझी उसे
आदमी- तुझे अजीब नहीं लगता
काकी- मेरा क्या लेना देना इसमें.
आदमी- साली तेरी ये अदा ही तो पागल कर जाती है , किसकी बनेगी तू . एक पल भी विश्वास लायाक नहीं है तू .
काकी- तू कौन सा दूध का धुला है . सांप और तेरे में से किसी एक को चुनना हो तो सांप ही बेहतर रहे .
आदमी- चौधरी के परिवार पर हमले कौन करवा रहा है कुछ पता चला क्या तुझे
काकी- पता होता तो उसकी लाश न लटकी होती अब तक, वैसे बन्दे की गांड में दम बहुत है सोचा नहीं उसने जरा भी की पंगा किस से ले रहा है
आदमी-सो तो है .
काकी- वैसे मंदिर में ऐसा क्या है जो सबकी इतनी दिलचस्पी है उसमे , इतने सालो से वीरान ही तो पड़ा था बिना किसी की नजरो में आये छानबीन कर ही लेते और की भी होगी तो अचानक से ये सब क्यों
आदमी- मंदिर का राज़ चौधरी से बेहतर कोई नहीं जानता . बाकी सबकी तो अपनी अपनी कहानिया है कोई कहता है की खजाना है , कोई कहता है भूत-प्रेत है पर खंडहर पर चौधरी ने अपनी सरपरस्ती रखी आज तक. और तू छानबीन की बात करती है चौधरी की मर्जी के बिना कोई पैर भी नहीं रख सकता उस रस्ते पर . कितने ही लोगो की जान गयी पर उनके पैर मंदिर की सीढिया ना चढ़ सके. खैर रात बहुत हुई निकलना चाहिए अब
. कुछ बाते और की उनने और फिर काकी गाड़ी से उतर कर चलने लगी, वो आदमी भी जाने लगा और मैं फंस गया किसके पीछे जाऊ आदमी के या फिर काकी को धरु . असमंजस टुटा तब तक गाडी जा चुकी थी . तो काकी के पीछे पीछे ही चल दिया. अँधेरे में भी मेरी नजर काकी की गांड पर जमी थी जिसे आज से पहले कभी उस नजर से नहीं देखा था . चालीस- बयालीस साल की काकी हष्ट-पुष्ट औरत थी . मेहनतकश देह की मालिकिन पर ये क्या खिचड़ी पका रही थी ये टेंशन वाली बात थी . अचानक ही मेरे पाँव में काँटा गड गया और उसे निकालने में कुछ क्षण ही लगे होंगे पर इतने में ही काकी गायब ही तो हो गयी . दिमाग में बहुत सी बाते लिए मैं सीधा गाँव में पंहुचा, सिर्फ पिस्ता ही तो थी जिसपर मुझे हद से जायदा विश्वास था . जल्दी ही उसके कमरे में था मैं .
“ऐसे क्यों आया ” किवाड़ बंद करते हुए बोली वो .
मैं- जरुरत थी तेरी.
पिस्ता- दे दूंगी , पर बता तो दिया कर
मैं- चूत नहीं चाहिए , बस रहना चाहता हु तेरे साथ
पिस्ता ने कुछ देर देखा मुझे और बाँहों से निकल गयी. एक गिलास पानी दिया उसने मुझे और बोली- क्या बात है
मैं- कुछ अजीब महसूस किया क्या तूने
पिस्ता- जैसे की
मैं सीधा सीधा कह नहीं सकता था की थोड़ी देर पहले तेरी माँ जंगल में चुद रही थी किसी से .
पिस्ता- बोल ना क्यों चुप है
मैं- तेरी माँ मुझे मरवाना चाहती है
एक ही साँस में मैंने पिस्ता से कह दिया. कुछ देर तक वो मुझे घूरती रही और फिर खिलखिला के हंसने लगी . मैं पागलो जैसे उसे देखता रहा .
“क्या तू भी कुछ भी बकता है , हमारे पास खाने को रोटी तो है ना .जो औरत तेरे बाप की सरपरस्ती में दिन काट रही है वो तुझे मरवाना चाहती है मैं ही मिली तुझे चुतिया बनाने को ” बोली वो .
मैं- कैसे समझाऊ तुझे
पिस्ता ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी रसोई में ले गयी .
“देख, हमारे हालात, सुबह सुबह आधे गाँव के घरो में झाड़ू निकालते है तब जाकर दो वक्त की रोटिया मिलती है . मेरे तन पर जो ये कपडे है तेरी माँ दिलाती है मुझे . ये थोडा बहुत जो भी तुझे दीखता है तेरे माता-पिता की वजह से है , और मेरी माँ उनके अहसानों को तुझे मरवा कर चुकाएगी ” बोली वो
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने सीने से लगा लिया . समझ नहीं आ रहा था की कैसे बात करू उस से , कैसे बताऊ उसे की मैंने जंगल में क्या देखा क्या सुना था .
“हो सकता है मुझे ग़लतफ़हमी हुई हो ” मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा
पिस्ता- अब जिसकी छोरी को दिन रात चोदेगा तू तो गुस्से में थोडा बहुत तो बोल ही देगी न
मैं- सही कहती है तू मेरी सरकार
मैंने पिस्ता की गांड की गोलाइयो को कस कर दबाया और उसके होंठो को चूम कर छोड़ दिया.
“चलता हु ” मैंने कहा
पिस्ता- रुक जा
मैं- नहीं , पर कल दोपहर तू मुझे बड के पास मिलियो मंदिर चलेंगे कल
पिस्ता- जो हुकुम खसम
वहां से निकल कर मैं नाज के घर आ चूका था , तभी मेरे दिमाग में वो बात आई जो बहुत पहले मुझे सूझ जानी चाहिए थी अब बस इंतज़ार था मासी के सोने का..................