Sanju@
Well-Known Member
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ये तो वही बात हो गई कि:
मुझे ख़बर थी मेरा इन्तजार घर में रहा,
ये हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा ।।
मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है,
इबादत-ए-इश्क़ गर सफर से हो जाए, तब क्या हिदफ, क्या ही ठिकाना है
हादसे तो होते रहेंगे ताउम्र, आख़िर इक उससे ही तो नाचीज़ का याराना है
मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है,
हादसा कोई भी इस शहर में हो सकता है।।
आपका स्नेह सहर्ष हृदय तक राज भाई...
व्यस्तता से इतर अब हम भी बैठा करेंगे हर उस चौराहे पे...
जहाँ से आप अंजान बनकर बस खोने ही बाले होगे ।