parkas
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Besabari se intezaar rahega next update ka HalfbludPrince bhai....अपडेट लगभग लिख लिया है सुबह पोस्ट हो जाएगा
Besabari se intezaar rahega next update ka HalfbludPrince bhai....अपडेट लगभग लिख लिया है सुबह पोस्ट हो जाएगा
Nice update....#४६
“क्या है वहां पर ” मैंने कहा
नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है
मैं- ऐसी कोई बात नहीं
नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.
आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.
“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो
मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.
नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.
घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.
“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.
“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा
मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी
पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.
मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं
पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी
मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर
पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर
मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप
पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .
मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो
मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.
“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली
पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.
“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो
|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा
बुआ- आज रात को यही पर रुक जा
मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है
बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही
मैं- कोशिश करता हु
बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .
“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा
ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .
“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”
बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.
“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .
“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.
“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .
“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा
“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे
“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.
“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा
“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं
मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं
मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.
नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया
मैं- तुमने सूरत देखि उसकी
नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी
मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.
मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Naaj par hamla ho gya... pista ne बचाया..... kuch to jhol chal rahe hai.#४६
“क्या है वहां पर ” मैंने कहा
नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है
मैं- ऐसी कोई बात नहीं
नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.
आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.
“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो
मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.
नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.
घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.
“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.
“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा
मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी
पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.
मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं
पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी
मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर
पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर
मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप
पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .
मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो
मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.
“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली
पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.
“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो
|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा
बुआ- आज रात को यही पर रुक जा
मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है
बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही
मैं- कोशिश करता हु
बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .
“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा
ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .
“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”
बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.
“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .
“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.
“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .
“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा
“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे
“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.
“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा
“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं
मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं
मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.
नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया
मैं- तुमने सूरत देखि उसकी
नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी
मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.
मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Nice update....#४६
“क्या है वहां पर ” मैंने कहा
नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है
मैं- ऐसी कोई बात नहीं
नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.
आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.
“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो
मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.
नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.
घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.
“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.
“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा
मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी
पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.
मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं
पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी
मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर
पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर
मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप
पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .
मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो
मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.
“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली
पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.
“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो
|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा
बुआ- आज रात को यही पर रुक जा
मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है
बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही
मैं- कोशिश करता हु
बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .
“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा
ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .
“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”
बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.
“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .
“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.
“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .
“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा
“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे
“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.
“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा
“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं
मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं
मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.
नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया
मैं- तुमने सूरत देखि उसकी
नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी
मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.
मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है#40
जोगन की बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मेरे पिता ने इस मंदिर को खंडित किया था. क्या वजह रही होगी जो उन्होंने ये पाप किया होगा. बचपन मैंने पिताजी को हमेशा ही गंभीर देखा था, खून खराबा करते हुए देखा था . वो चाहे कितने ही बाहुबली थे पर हमारे दर से कभी कोई खाली नहीं गया था . गाँव के हर आदमी- औरत के दुःख तकलीफ को उन्होंने अपना समझा था शायद इसलिए गाँव में उनका कद बहुत ऊँचा था .
“किस सोच में डूबा देवा ” पुछा जोगन ने
मैं- अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ ,
जोगन- इसीलिए तो कहा की छोड़ इस बात को , हर कोई अपने नसीब से लड़ता है ये जगह भी अपने नसीब का पा रही है .
मैं- वादा किया है देवा ने अपनी जोगन से , और देव अपनी बात से पलट जाये तो फिर किस मुह से तेरे सामने आएगा. तू तयारी कर , मंदिर आबाद होगा ,जरुर होगा,
जोगन- और उस की कीमत क्या होगी देव, कौन चुकाएगा वो कीमत . मैं अपने अरमान के लिए अगर तेरा नुकसान करवा दू तो फिर क्या ही दोस्ती रहेगी क्या ही तुम रहोगे क्या ही ये जोगन रहेगी.
मैं- कीमते चुकाने के लिए ही होती है , और फिर तेरी मुस्कान के लिए तो ऐसी हजारो कीमते चुका देंगे . फिलहाल एक कप चाय पिला दे और चीनी ज्यादा डालियों .
जोगन मुस्कुराते हुए चूल्हा जलाने बैठ गयी मैं बस उसे देखता रहा. सांझ ढलते ढलते मैं उस से विदा लेकर वापिस गाँव की तरफ मुड गया. कच्चे रस्ते पर सर पर लकडिया उठाये मुझे पिस्ता मिल गयी . ढलते सूरज की रौशनी में उसका चेहरा सुनहरा चमक रहा था .
“मदद करू क्या सरकार ” मैंने कहा
“तू रहने दे खसम, तेरी मदद का मोल चूत देकर चुकाना पड़ेगा.” उसने हँसते हुए कहा
मैं- तेरी चूत अब तेरी कहाँ रही सरकार
पिस्ता- बाते, बनाना तुझसे सीखे, कहाँ था पुरे दिन से , सुबह आलू के परांठे बनाये थे तेरे लिए पर तू आया ही नहीं
मैं- अभी चल के खा लूँगा परांठे भी और तुझे भी
पिस्ता- मैं तो तेरी ही हु
मैं- कोई शक है क्या इस बात में
पिस्ता- तुझे है क्या
मैं- मुझे क्यों होगा भला
पिस्ता- रात को आ जाइयो .
मैं- तेरे लिए लाऊ क्या कुछ
पिस्ता- तेरे सिवा और क्या चाह मेरी
मैं- उफ्फ्फ ये अदा , घायल कर गयी मुझे
पिस्ता- घायल तो रात को करुँगी तुझे , अब बाते ना बना और जल्दी चल, अँधेरा घिर आया.
आपस में हंसी- मजाक करते हुए हम लोग मोहल्ले में पहुँच गया मैंने पाया की माँ दरवाजे पर ही खड़ी थी .
“देव , रुक जरा ” माँ ने टोका और मैं जानता था की क्या कहेंगी वो
“बराबर के बेटे को पीटते हुए मैं अच्छी नहीं लगूंगी, मुझे मजबूर न कर. समझाया था न तुझे की इस लड़की का साथ मत कर पर तू इतना बड़ा हो गया है की अपनी माँ की सुनेगा नहीं ” माँ ने कहा
मैं- मैंने पहले भी बताया माँ, की वो बस दोस्त है मेरी .
माँ- दोस्त होती तो जाने देती ,चौपाल में जो मेरी आँखों ने देखा था उस रात से डरने लगी हु मैं देव. डरती हु की कहीं किसी दिन इस दोस्ती को तू इस दहलीज पर न ले आये. डरती हु मैं उस आने वाले दिन से क्योंकि उस दिन तू तू नहीं रहेगा, तेरा बाप , तेरा बाप नहीं रहेगा और मैं नहीं जानती मेरा क्या होगा.
“मैंने उस दिन भी कहा था मुझ पर नहीं तो अपनी परवरिश पर तो यकीन रख माँ ” मैंने कहा
माँ- इसीलिए तो डरती हु, ठीक है तू कर अपने मन की पर मुझसे वादा कर की ये लडकी कलेश की जड नहीं बनेगी
मैं- फ़िक्र ना कर माँ, ऐसा कुछ नहीं होगा
अन्दर जाकर मैंने हाथ मुह धोये और घर के छोटे-मोटे काम किये और नाज के घर की तरफ चल पड़ा. नाज के चेहरे पर आज अलग ही नूर था , इतनी खूबसूरत वो पहले कभी नहीं लगी थी . नीले घाघरे और सफ़ेद ब्लाउज में ओढनी ओढ़े कितनी ही प्यारी लग रही थी .
“खाना परोस दू, अभी बनाया ही है ” उसने कहा
मैं- नहीं, भूख नहीं मुझे मासी
नाज- जो कर्म कर रहे हो आजकल भूख तो ज्यादा लगनी चाहिए तुम्हे
मैं- नंगा आदमी दुसरे नंगे को अगर नंगा कहे तो ये नंगेपन की तौहीन है ना
नाज- औलादों को बिगड़ते हुए भी तो नहीं देख सकती क्या करू
मैं- अजीब है ये तमाम दुनियादारी . सबके अलग फ़साने है
नाज- तुम जो भी कहो पर सच बदल नहीं जायेगा.
मैं- और क्या होता है ये सच . कुछ नही होता सच मासी. तुम चाहे पिस्ता को किसी भी नजर से देखो, मुझे कुछ भी समझो पर मासी फर्क नहीं पड़ता.
नाज- जानती हु फर्क नहीं पड़ता. खासकर उम्र के इस नाजुक दौर में
मैं- क्या करे मासी, मैं समझा नहीं सकता तुम समझ नहीं पाओगी.
नाज- मैं चाहू तो बहुत कुछ कर सकती हूँ उस लड़की के साथ , चुटकियो में कहाँ गायब हो गयी , थी या नहीं थी कौन जाने फिर .
मैं- धमकी दे रही हो मासी तुम.
“आइना दिखा रही हूँ तुम्हे ” बोली वो
मैं- कोशिश कर के देख लो मासी .
नाज- मैं नहीं चाहती वो लड़की तुम्हारी जिन्दगी में आये, तुम्हारी माँ नहीं चाहती वो तुम्हारी जिन्दगी में आये ये परिवार नहीं चाहता की तुम बर्बाद हो जाओ उसकी सोहबत में
मैं- कुछ देर के लिए ही सही, उसकी पनाह में जी लेता हु मैं, मुझे समझती है वो . वो मेरे साथ इसलिए नहीं की कोई लालच है उसे, अपना दोस्त समझती है वो मुझे . जिस आन बाण शान की झूठी बातो में ये परिवार जी रहा है न मासी ,वो नींव कमजोर पड़ चुकी है . देख लो, तुम्हारे पकवानों को ना कह कर मैं उसके घर की रोटी खाने जा रहा हु.
“ऐसा क्या है उस लड़की में जो परिवार तक को ये जवाब दे रहे हो तुम ” नाज ने थोड़ी तल्खी से कहा
मैं- मेरे हिस्से का सकून है उसके पास
नाज- पिस्ता का साथ छोड़ दे देव, बदले में तुझे जो चाहिए , जो भी तू कहेगा ,तेरी हर ख्वाहिश ,सब तुझे मिलेगा मेरा वादा है तुझसे
“क्या कीमत चुकओगी मासी, क्या मोल लगाओगी तुम ” मैंने कहा
“जो तू उससे ले रहा है उस से बहुत बेहतर, बहुत कुछ ” नाज ने कहा और अपने घाघरे का नाडा खोल दिया.................................