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Adultery जब तक है जान

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#४६

“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Shaandar jabardast super update 👌
 

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“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.




बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

kamdev99008

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इस मन्दिर के खण्डित होने में ही कहानी का फ्लैशबैक छुपा है
जो इसके जीर्णोद्धार से सामने आयेगा

फौजी भाई को समय मिले तो यह महागाथा आगे बढ़ेगी
 

Sanju@

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#41

दुधिया जांघो के बीच गहरे काले मुलायम बालो से ढकी नाज की चूत को देखना इतना मादक अनुभव था की मैंने कानो के पीछे से पसीने की बूंदों को बहते हुए महसूस किया. नाज की चूत वाकई में बहुत ही खूबसूरत थी .

“घाघरे को वापिस पहन लो मासी , मेरी दोस्ती इतनी सस्ती नहीं की तुम्हारी चूत उसका मोल लगा सके. और अपने ही घर की औरतो की चूत का मोल लगाया तो फिर मेरी क्या ही हसियत रहेगी. तुम्हे पाने के लिए मुझे ये सब करने की जरूरत नहीं है ,तुम पर तुम्हारी चूत पर वैसे ही हक़ है मेरा, जिस दिन मेरा मन हुआ हक़ से ले लूँगा और उस दिन मना भी नहीं कर पाओगी तुम ” कहते हुए मैंने झुककर घाघरे को ऊपर उठाया और नाज की कमर पर बाँध दिया.

“वैसे बहुत ही ज्यादा गदराई हुई हो तुम मासी ” मैंने नाज को अपनी बाँहों में भरते हुए उसके होंठ को हलके से चूमा


“तेरी दोस्ती की फ़िक्र नहीं देव ” कांपते हुए बोली वो

मैं- फिर क्यों ये घबराहट


नाज- क्योकि दोस्त नहीं वो तेरी, इश्क है वो . न तुझसे न पिस्ता से डर लगता है, डर उस इश्क से है जो तेरी आँखों में है . जो तू उस से करता है . डर उस आने वाले कल से है जो इस इश्क के साथ आएगा.

मैं- इश्क, अरे नहीं मासी. ऐसा तो कुछ नहीं है


मासी- तू बता फिर कैसा है

मैं- पता नहीं . फ़िलहाल दूध है तो दे दे, फिर मुझे जाना ही कहीं

नाज- उसके ही पास जाएगा न

मैं- जब तुम जानती ही हो तो फिर क्यों पूछती हो .

नाज- ठीक है ठीक है.

दूध पीने के बाद मैं पिस्ता के घर को चल दिया . एक रात और रंगीन होने वाली थी . अन्दर जाते ही मैंने पिस्ता को बाँहों में भर लिया और उसके लबो को चूसने लगा.

“थम जा बेसब्रे, ” उसने कहा


मैं-अब सब्र कहाँ सरकार.

“पिस्ता- रोटी भी ना खाई अभी तो ”

मैं- अब सब बाद में


मैंने फुर्ती से पिस्ता का नाडा खोला और आँगन में ही उसको झुका दिया. पिस्ता के गोल नितम्ब बहुत ही प्यारे और शानदार थे , चूँकि पिस्ता गोलमोल लड़की थी तो और भी मजेदार,लंड पर थूक लगाया और चूत में सरका दिया .

“आई, ऐसी भी क्या बेसब्री खसम ” घुटनों पर हाथ रखते हुए बोली वो .

“अब करार ही करार ” मैंने अपने हाथो से उसकी कमर थामी और चुदाई शुरू हो गयी .बीतते सावन की रात में खुले आँगन में चुदाई करने का अलग ही मजा था, हमारे गर्म होते बदनो को ठंडी हवा चूम रही थी .


“बहुत गर्म है तेरा भोसड़ा ” मैंने उसके पुट्ठो को मसलते हुए कहा

“” पिघल रहा है क्या तू बोली वो “

मैं- हाँ मेरी जान.

पिस्ता- मजा आ रहा है


मैं- बहुत

पिस्ता- तो जोर से चोदना , तोड़ कर रख दे मुझे आज

पिस्ता अपना हाथ जांघो के बीच ले गयी और मेरे अन्डकोशो को सहलाने लगी. कसम से उत्तेजना और बढ़ गयी . फिर ना कुछ वो बोली ना मैं बोला . आँगन में थप थप की आवाज गूँज रही थी , सांसे उफन रही थी . कुछ देर बाद मैंने चूत से लंड बाहर निकाल लिया और पिस्ता को खीच कर दिवार के जंगले से सटा दिया.

“चुतड चौड़े कर जरा ” मैंने कहा तो पिस्ता ने अपने हाथो से कुलहो को फैलाया और मैंने लंड फिर से चूत में सरका दिया. अब खड़े खड़े चुदाई शुरू थी मेरे हाथ उसकी चुचियो को मसल रहे थे . होंठ उसके गालो को चूम रहे थे .



“चीज है जानेमन तू ” मैंने कहा

पिस्ता- इसीलिए तो तुझे दे रही हु

पिस्ता की चूत से बहता काम रस उसकी जांघो तक को भिगोने लगा था .

“गाल पर मत काट, निशान पड़ जायेगा ” तुनक कर बोली वो .

मैं- तो कह देना तेरे यार ने चुसे ये गाल


पिस्ता- मैं तो ढोल बजा दूंगी इस बात का पर फिर सबसे ज्यादा नारजगी तेरे घर वालो को ही होगी, चौधरानी आज नाराज हो रही थी मुझ पर .

मैं- किसे परवाह है छोड़ उनको

पिस्ता- मैं तो झाट न समझू पर तू चुतिया है

मैं- अब जो भी हूँ तेरा हु

पिस्ता- हां खसम, अब जरा जोर लगा छूटने वाला है मेरा

मैं- हा मेरी सरकार.

गांड को आगे पीछे करते हुए कुछ झटको के बाद पिस्ता झड गयी और मैंने भी अपना पानी उसकी गांड पर गिरा दिया.

“सलवार देना मेरी जरा ” उसने कहा


मैं- उठा के ले ले. पानी पीने दे मुझे तो

पिस्ता- हाँ, काम निकलने के बाद तो कहेगा ही

मेरे वीर्य को सलवार से पोंछते हुए बोली वो .

मैं- काम कहाँ निकला, अभी तो रात बाकी है, काम बाकी है

पिस्ता- और नहीं करुँगी, एक बार बहुत है

मैं- एक बार और तो लूँगा ही पर पहले खाना परोस भूख लग आई .


पिस्ता और मैं खाना लेकर बैठ गए .

“दूध नहीं है क्या ” मैंने कहा


पिस्ता- थमेगा तो सब मिलेगा,

मैं- खाना बढ़िया बनाती है तू

पिस्ता- सो तो है तू बता क्या है नयी ताजा

मैं- छोड़, ये बात नाज मास्सी ने कुछ कहा था क्या तेरे को

पिस्ता- नहीं तो , कुछ हुआ क्या

मैं- कुछ नहीं वो जो बात माँ ने तुझे कही वो मुझे मासी ने कहा

पिस्ता- उन् लोगो की बात भी सही है अपनी जगह, तेरे मेरे रिश्ते का ढोल नहीं बजना चाहिए था गाँव में.

मैं- जो हुआ सो हुआ , मासी बोली की मैं इश्क करने लगा हु तुझसे

पिस्ता- पर तू नहीं करता ,

मैं- तुझे क्या लगता है

पिस्ता- देख, देव .मेरी बात को अच्छे से समझ ले. ये सब जो भी हम कर रहे है, मेरे दिल में बहुत कद्र है तेरी . तेरा मेरा जो रिश्ता है वो तू समझता है मैं समझती हूँ, इश्क मोहब्बत फिल्मो के किस्से होते है असली जिन्दगी में बस लेनी देनी होती है .

मैं- और अगर कभी इश्क हो गया तो

पिस्ता- नहीं होगा यार

मैं- ठीक है सरकार, कल शहर जाऊंगा मुनीम से मिलने तू भी चल .

पिस्ता- कल माँ आ जाएगी मुश्किल होगा

मैं- सुबह चलेंगे दोपहर तक आ जायेगे

पिस्ता- चल फिर .

खाना खाने के बाद मैंने और पिस्ता ने एक राउंड और लिया . सुबह नाज भी मेरे साथ हॉस्पिटल जाना चाहती थी पर मैंने बहाना मारा और पिस्ता को लेकर शहर की तरफ चल दिया.

“गाडी ले आया वाह जी वाह ” पिस्ता बोली


मैं- मुनीम की है , जब तक वो हॉस्पिटल में रहेगा मैं ही चलाऊंगा इसे सोच लिया मैंने

पिस्ता- बढ़िया है

बाते करते हुए हम गाँव से काफी आगे निकल आये थे, की तभी पिस्ता ने गाड़ी रोकने को बोला

“क्या हुआ ” मैंने कहा


पिस्ता- मूत आया है

मैं- गाड़ी में ही मूत दे

पिस्ता- रोक न यार


मैं- ठीक है

गाड़ी साइड में रोकते ही पिस्ता झाड़ियो की तरफ गयी मूतने. मुझे तो चुल थी तो मैं उसके पीछे हो लिया

“चैन से मूत तो लेने दे न ” बोली वो


मैं- सुन यहाँ देगी की कसम से मजा आ जायेगा

पिस्ता- यहाँ नहीं सड़क के बीचोबीच करते है फुल मजा आयेगा

मैं- क्या कह रही है

पिस्ता- चूतिये बेहूदा बाते क्यों करता है हर समय तू . मेरे कोई झांतो में आग लगी है जो कहीं भी पसर जाऊ

पिस्ता की बात का मैं कोई भी जवाब देता उस से पहले ही मेरे कानो के परदे हिल गए. इतने जोर से धमाका हुआ की मैं और पिस्ता झाड़ियो में आगे को गिर गए. कुछ देर तो समझ ही नहीं आया की हुआ क्या है . खुद को सँभालते हुए हम सड़क पर आये तो देखा की गाडी धू-धू करके जल रही थी ......................
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
पिस्ता ने देव को बचा लिया नहीं तो दोनों भगवान को प्यारे हो जाते देखा जाए तो गाड़ी मुनीम की थी तो ये देव के लिए नहीं था लगता है ये नाज के लिए था
 
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S M H R

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“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
Nice update
 

Raj_sharma

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#४६

“क्या है वहां पर ” मैंने कहा

नाज- तू जाने क्या है वहां पर , मैं उस वजह को जानना चाहती हु जिसकी वजह से तू इस बात पर अड़ गया है

मैं- ऐसी कोई बात नहीं

नाज- इन हाथो में खेला है तू, मेरी सरपरस्ती में बड़ा हुआ है तुझे तुझसे बेहतर जानती हु.

आगे मैंने कोई बात नहीं की कोई फायदा ही नहीं था. वो मुझे देखती रही मैं उसे देखती रही. उसकी आँखों में मैंने ना जाने क्या देखा अचानक से वो उठी और मेरे माथो को चूम लिया.

“अगर मेरा बेटा हुआ होता तो वो बिलकुल तेरे जैसा होता ” बोली वो

मैं- अब भी तेरा बेटा ही हु मास्सी.

नाज ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. जिन्दगी में पहली बार उसकी आँखों में मैंने पानी के कतरे देखे.

घर से निकल कर मैं पिस्ता से मिलना चाहता था पर घर के बहार ही मुझे मिल गयी.हमारी नजरे मिली और मिल कर रह गयी.

“अन्दर आजा ” बुआ ने शरमाते हुए कहा. अन्दर घुसते हुए मैंने आहिस्ता से बुआ की गांड को थपथपाया बुआ आह भर कर रह गयी. अन्दर पिताजी हुक्का पी रहे थे.

“आजकल पैर धरती पर नहीं पड़ रहे बरखुरदार के सुना है बड़े बड़े फैसले लिए जा रहे है ” पिताजी ने तंज कसा

मैं- मैंने तो बस निर्णय लिया बड़ा आपने बना दिया पिताजी

पिताजी- ये जो तुम्हारे तेवर है न , ये जो ऐंठ है तुम्हारी . ये तुम्हे बर्बाद कर देगी एक दिन और जब तक तुम इस बात को समझोगे देर हो चुकी होगी.

मैं- मेरे अन्दर कोई गुरुर नहीं

पिताजी- उस खंडहर में क्या दिलचस्पी है तुम्हारी

मैं- कोई दिलचस्पी नहीं , मेरा तो कोई वास्ता भी नहीं उस से पर इतनी हसरत जरुर है की , ऐसी जगह आबाद ही अच्छी लगती है. पर जिस तरह से आपने उन मजदूरो को काम करने से रोका है आपकी दिलचस्पी बखूबी है वहां पर

पिताजी- तुझे ऐसा लगता है तो मालूम कर ले वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने की धुन सवार है तुझ पर

मैं- मुझ पर नजर रख रहे है आप

पिताजी- अपनी औलाद की खैर-खबर रखना है पिता का फर्ज है खासकर जब औलाद तुम जैसी हो .

मैं- बहुत बढ़िया बात है ये तो

मैं ऊपर चला गया कुछ देर बात बुआ भी आ गयी.

“क्यों उलझता फिरता है भाईसाहब से तू ” बुआ बोली

पर मैंने बुआ की बात को कोई तवज्जो नहीं दी और सीधा बुआ को अपनी बाँहों में भर के बुआ के होंठो से अपने होंठो को जोड़ लिया. बुआ के मखनी होंठ जो जुड़े तो मेरा लंड सीधा बुआ की चूत पर टक्कर मारने को बेताब होने लगा.

“छोड़ , अभी समय नहीं है ये सब करने का ” बोली वो

|”कब करोगी फिर ” मैंने बुआ की गांड को मसलते हुए कहा

बुआ- आज रात को यही पर रुक जा

मैं- मन तो है पर पिताजी का हुकम है नाज के पास ही सोना है

बुआ- फिर तो नहीं मिल पायेगी, तुझे चाहिए तो आना पड़ेगा ही

मैं- कोशिश करता हु

बुआ और मैंने साथ ही खाना खाया , नाज के घर जाने से पहले न जाने क्यों मेरे मन में खेतो की तरफ जाने का विचार आया तो मैं उस तरफ चल दिया. बड़ा सा बरगद का पेड़ अँधेरे में खामोश खड़ा था , इसी चबूतरे पर मैंने नाज को चुदते देखा था .

“तुम्हारी भी कोई कहानी है क्या ” बेख्याली में मैंने पेड़ से पुछा

ये जंगल इतना मासूम नहीं था ये बात तहे दिल से मानता था मैं. मुनीम पर हमला भी इसी जंगल में हुआ था . इसी जंगल में वोमंदिर था जिसे मेरे पिता ने खंडित कर दिया था. इतने गंभीर हमले के बाद भी मुनीम ने जुबान नहीं खोली थी और सबसे अनोखी बात वो छिपा हुआ घर जो बेताब था की कोई आये और उसकी खामोश दास्तान को सुने. न जाने क्यों मुझे लगाव सा हो गया था उस घर से. और एक बार फिर मैं उस घर में मोजूद था. लालटेन की धीमे लौ में एक बार फिर से मैं उस अलमारी को खोले खड़ा था .

“बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज, मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”



बार बार बहुत बार मैंने कागज पर लिखी इन लाइनों को पढ़ा और यकीन किया की इस घर का राजदार मैं अकेला तो बिलकुल नहीं हु, इसके वारिस ने भुलाया तो हरगिज नहीं था इसे.पर वो कौन था ये बड़ी तलब थी अब मेरे लिए.

“कितना बेताब हु मैं तुम्हारी दास्ताँ सुनने के लिए , एक बार मुझे अपना तो मानो ” मैंने उन दीवारों से कहा . कौन था वो जिसे इन पैसो की चाहत नहीं थी, कौन था वो जिसने अपनी यादो को यहाँ छोड़ दिया था कौन था वो जो होकर भी अजनबी हो गया था . यही सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी मालूम ही नहीं हुआ. आँख खुली तो सुबह बड़ी खूबसूरत थी पर कहाँ जानता था की ये सुबह मेरी किस्मत की शाम करने को बेताब थी . गाँव पहुंचा तो मोहल्ले में बहुत से लोग आजू बाजू खड़े थे , खुसर पुसर कर रहे थे , मेरा माथा ठनक गया .धड़कने बहुत जोरो से बढ़ गयी .

“क्या, क्या हुआ ” मैंने पुछा.

“मुनीम की लुगाई पर हमला हुआ कल रात ” भीड़ में से किसी एक ने कहा और अचानक से ही जैसे मेरे घुटने टूट से गए. हाँफते हुए मैं नाज के घर पहुंचा तो पाया की सब कुछ अस्त व्यस्त था , बिखरा हुआ .

“मासी कहाँ है ” मैंने पुछा

“वैध जी के यहाँ ले गए है ” सुनते ही मैं वैध की तरफ हो लिया. वहां पर सब कोई मोजूद थे

“मास्सी ,” मेरी आँखों से आंसू गिर पड़े.

“ठीक हु देव , ठीक हु ” मास्सी ने कहा

“सब मेरी गलती है मास्सी , मुझे तुम्हे अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था, मैं कैसे माफ़ करूँगा खुद को ” रोते हुए बोला मैं

मास्सी- कुछ नहीं हुआ, हलकी फुलकी चोटे है, वैध जी ने कहा है की घबराने की कोई बात नहीं

मैं-कौन था ,मुझे बताओ मासी. आज उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा.

नाज- कोई चोर था शायद,ये तो शुक्र है की पिस्ता ऐन वक्त पर पहुँच गयी तो बचाव हो गया

मैं- तुमने सूरत देखि उसकी

नाज- मैं तो नहीं देख पाई पर पिस्ता ने उसका पीछा किया था उसकी हाथापाई हुई थी

मैं- ये गलती दुबारा नहीं होगी. मैं तलाश कर लूँगा उसे चाहे वो जो कोई भी हो.

मैंने नाज के माथे को चूमा और पिस्ता से मिलने के लिए चल दिया.
BOhot hi lajbaab update tha foji bhaiya, naaj per hamla hua, or wo bhi tab, jab dev waha nahi tha, matlab wo jo bhi tha use pata thi ye baat, matlab wo inka jaankaar hi hai, us kaale patthro wali imarat ka kya raaj hai?:bat: Sabse badhiya wo saayri lagi:
बहुत अलग सा है इश्क का मिजाज,
मेरी ये ख़ामोशी और तेरे लाख सवाल ”👌🏻👌🏻
Ek
baar fir se aapki lekhni ka jaadu sir chadhkar bol raha hai bhai 👌🏻👌🏻
 
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#18

देव उठो देव

पिघले शीशे की तरह वो चीख मेरे कानो के पर्दों को झुलसा रही थी . आँखों में उसकी तस्वीर तो थी पर वो नहीं थी , नहीं थी वो. मैंने तलवार उठाई और गुस्से में क्या किया कोई परवाह नहीं थी . जब मैंने अपना मुह पोंछा तो चारो तरफ अगर कुछ था तो सिर्फ लाशे और कांपता हुआ लाला.

“तू वजह जानना चाहता था न की क्यों मैंने तेरे बेटे का वो हाल किया . बताता हु तुझे ” मैंने लाला पर वार किया और उसके हाथ की उंगलिया धरती पर गिर गयी . लाला की चीख गूंजने लगी.

मैंने एक नजर मंत्री पर डाली . जिसके चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी.

“मेले में तेजा ने उस पाक दामन को गन्दा करने की सोची थी जिस आँचल को मैंने थामा हुआ था . तेरे बेटे को गुरुर था की कोई उसका झांट भी नहीं उखाड़ सकता और देख आज एक भी झांट नहीं बचा उसके पास . मैंने तेजा से कहा था माफ़ी मांग ले पर साले को चुल थी, तेरी नाकाम परवरिश की, उसको लगता था की तू बहुत बड़ी तोप है . तेरा बेटा है तो जो चाहे करेगा पर देख मैं खड़ा हूँ आज यहाँ और सात साल पहले भी खड़ा था हक़ के लिए, इंसाफ के लिए पर अफ़सोस तू नहीं रहेगा , क्या कहा था तूने एक सौदा करते है ये रात मेहरबान है , बेशक ये रात मेहरबान है ” मैंने कहा और अगले वार के साथ लाला का दायाँ हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया

“तू तो अभी से घबरा गया लाला, अभी तो कसाईपना देखना है तुझे ” बोटी बोटी काटते हुए गरज रहा था मैं उस रात. लाला का काम तमाम करने के बाद मैं मंत्री की तरफ मुखातिब हुआ .

“बहन के लंड मंत्री, आ तू भी बदला लेले रोकी की गांड तोड़ने का . ” इस से पह्ले की मैं मंत्री का नंबर लगाता पिस्ता ने मुझे रोक लिया

“नहीं देव नहीं , तुझे मेरी कसम ”

“कोई और हैं इस गाँव में जिसके अन्दर बदला लेने की चुल मची हो ” मैंने चिल्ला कर पुछा पर कोई आवाज नहीं आई.

“पानी ले आ जरा पिस्ता ” मैंने कहा और दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ घूँट पिए कुछ थूक दिया .

“मंत्री , तेरे बेटे की हालत का जिम्मेदार मैं नहीं हु, न मेरी उस से पहले कोई दुश्मनी थी न आज है . मैं अपने आप से परेशान हु मुझे और तंग न करो . होंगे तुम शहर के मालिक मुझे मेरे गाँव में रहने दो ना तुम मेरे रस्ते आओ न मैं कभी तुम्हे परेशान करूँगा. समझ आये तो ठीक बाकी मर्जी तुम्हारी ” मैंने मंत्री से कहा

“बहु चलो ” मंत्री मरी सी आवाज में बोला

पर पिस्ता टस से मस नहीं हुई.

“सुना नहीं तुमने बहु ” मंत्री से सख्ती से कहा

पिस्ता- मैं यही रहूंगी पिताजी

मंत्री- जानती हो क्या कह रही हो इसका नतीजा क्या होगा

पिस्ता -कल क्या हो किसने सोचा पर आज के लिए मैंने अपना फैसला ले लिया है

मंत्री- तुम्हे पछताना न पड़े

पिस्ता- पछताई तो मैं कभी भी नहीं


मंत्री पैर पटकते हुए चला गया रह गए हम दोनों और वहां पड़ी लाशे.

“खून खराबा बहुत हो गया देव, इसे संभालना मुश्किल होगा ” पिस्ता ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .

“हो तो गया ” मैंने कहा

हमारी आँखे एक दुसरे से मिली, कुछ इशारे हुए और मैंने गाड़ी से तेल की पीपी निकालना शुरू किया, पिस्ता ने लाशो को इकठ्ठा करना शुरू किया . सबूत मिटाने की बचकानी कोशिश .

“आने वाला समय मुश्किल होगा ” पिस्ता ने गाडी में बैठते हुए कहा

मैं- वो भी देखेंगे

कुछ देर बाद गाड़ी वहां पहुँच गयी जो रास्ता गाँव की तरफ जाता था पर मैंने उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया.

“गाँव नहीं तो कहाँ ” पिस्ता ने अपनी जुल्फों को बांधते हुए कहा

मैं- जान जाएगी

मैंने गाडी जंगल की तरफ मोड़ दी. रात अँधेरे को चीर कर सुबह में मिल जाना चाहती थी और मैं यादो को चीर कर अतीत में पहुंचना चाहता था . आँखों में भर आये पानी के कतरों को आस्तीन से साफ़ किया मैंने आसमान में बदल गरजने लगे थे . जंगल के तक़रीबन हिस्से को पार करने के बाद आख़िरकार मैं उस जगह पर पहुच ही गया जो न जाने कब से बाट देख रही थी की कोई तो आएगा उसके सूनेपन को बाँटने .

“तो तुम सच ही कहते थे इस बारे में ” पिस्ता ने लगभग चहकते हुए कहा

मैं- तुमने कभी माना भी तो नहीं था

पिस्ता- दीवानों की बातो का भला माना भी है किसीने
मैं- दीवानगी का वो एक दौर था जो तेरी ना के साथ बीत गया था तू चली गयी रह गए हम और ये घर .

“तेरा हर इल्जाम कबूल है सर्कार ” पिस्ता ने कहा

काले पत्थरों से बना वो घर जंगल में इस तरह से छिपा था की पहली नजर में कोई देख ही नहीं पाए. चारो तरफ सफेदे के पेड़ो से घिरा हुआ पत्थरों का ढेर ही लगता था जब तक की कोई गहरी नजरो से समझ न सके,थोडा जोर लगाना पड़ा दरवाजा खोलने के लिए .बरसो बाद रौशनी हुई थी यहाँ पर चिमनी की लौ मेरी तन्हाई को जला देने को बेताब सी थी .


बर्तनों पर धुल जमी थी, बिस्तर रुसवा था पानी का मटका सूखा पड़ा था . वक्त ने मेरी तरह इसे भी भुला दिया था .

“तुम आ गए हो वो भी आ जाएगी ” पिस्ता ने मेरा हाथ थामते हुए कहा

“सोना चाहता हु कुछ देर ” मैंने इतना कहा और पिस्ता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .

“दुःख के दिन बीते देव, हमें भी अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर ” मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा पिस्ता ने .
“सुख , ” मैंने हौले से कहा और उस दिन की याद में खो गया जब से ये कहानी, ये फ़साना शुरू हुआ .


आँख खुली तो घर में चीख-पुकार मची थी . कुछ नहीं सुझा तो चोबारे से निचे आया जिन्दगी में मैंने पहली बार अपनी माँ को रोते हुए देखा था . दिल इतनी जोरो से धडकने लगा था ,एक लड़के के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो होता है जब उसकी माँ की आँखों में आंसू हो.
“क्या हुआ माँ . ” बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया.
पर इस से पहले की माँ जवाब देती आँगन में जीप आकर रुकी और .................................
Wahh.. kya baat hai foji sahab.bas isi lekhne ne hi to mujhe yaha kheech liya, mai kafi saal se xf se juda hua tha, aapki or story bhi padhi hai maine , sabse badhiya to dil apna or preet parai lagi, or bhi padhi hai, lekin afsoos kuch adhuri bhi rah gai😞 khair mujhe aapki ye kahani, or Raj Sharma bhai ki ek kahani ne is forum per register karne per majboor kar diya, taki coments kar saku, to aapse gujaris hai ki aise hi likhte rahiye, aapke reader's or bhi hai jo silently read karte hai,:bow::bow:aise hi likhte raho vhau
 

Tiger 786

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#45



“जो हो रहा है सही हो रहा है ” माँ ने कहा और चली गयी . रह गया मैं सोचते हुए की ये साला सही है या गलत. पर मैं ये नहीं जानता था की चुनोतिया असल में होती कैसी है ये वक्त बेक़रार था मुझे बताने को . कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा था तो मैंने जोगन के पास जाने का सोचा और किस्मत देखो वो मुझे बड के पेड़ वाले चबूतरे पर बैठी मिल गयी.

“”तू यहाँ क्या कर रही है ” मैंने सवाल किया

जोगन- इंतज़ार

मैं- किसका

वो- वक्त का

मैं- क्या बकती रहती है तू , पल्ले ही नहीं पड़ती तेरी बाते

वो-तो तुझे नहीं दिख रहा क्या बैठी हूँ यहाँ पर

मैं- दिख तो रहा है खैर मत बता

जोगन- तुझे ना बताउंगी तो किस से कहूँगी अपने मन की

मैं- कुछ संजीदा सी है आज क्या बात है

जोगन- भला कौन संजीदा नहीं इस जहाँ में तुझे देख तेरे चेहरे का भी तो नूर गायब है .

मैं- क्या बताऊ तुझे, तुझसे कुछ छिपा भी तो नहीं. घर वालो से कलेश तय है देखना है की कब होगा कितना हो .खैर, मैंने इंतजाम कर लिया है दो चार दिन में मजदूर लोग पहुँच जायेगे खंडहर पर फिर तू जैसे चाहे निर्माण करवा लेना.

जोगन- तो कलेश करने का बीड़ा उठा लिया तूने . मेरे लिए क्यों अपने घर की शांति में आग लगाना चाहता है

मैं- वो घर भी अपना तू भी अपनी .

जोगन मुस्कुरा पड़ी पर बस पल दो पल के लिए

“एक बार फिर सोच ले , कदम बढ़ा तो वापस ना होगा ” बोली वो

मैं- तूने तो भाग्य देखा है मेरा, जब दुःख ही लिखा है तो क्या थोडा क्या ज्यादा कम से कम ख़ुशी तो रहेगी की अपनी दोस्त की ख्वाहिश पूरी की .

जोगन- तू समझता क्यों नहीं

मैं- तू समझाती भी तो नहीं

जोगण- डरती हु मैं

मैं- किस से

जोगन- अपने आप से अपने नसीब से ,

मैं- नसीब का तो पता नहीं पर मैं कर्म को मानता हु, तू भी मान अगर लड़ाई कर्म और नसीब की है तो फिर देखेंगे इन हाथो की लकीरों में लिखी बाते कितनी सच है .

जोगन ने मेरे माथे को चूमा और बोली- क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में .जी तो रही थी ना तेरे बिना भी मैं

मैं-ये बात मुझसे नहीं तेरे हाथो की लकीरों से पूछ, तू तोदुनिया का भाग देखती है ना फिर देख ले क्या लिखा है तेरे भाग में

जोगन- इसीलिए तो पूछती हु की क्यों आया तू मेरी जिन्दगी में

मैं- तेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने, तेरे वनवास को ख़त्म करने. पहली मुलाकात में तूने कहा था की तू घर को तलाशती है . मैं तुझे तेरे घर जरुर ले जाऊंगा

जोगन ने अपनी ऊँगली मेरे होंठो पर रखी और बोली- बस और कुछ मत बोल .

वापसी में मुझे पिस्ता मिली .

“कब से देख रही हु कहाँ गायब है तू ” बोली वो .

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

वो- बैठ पास मेरे

हम दोनों सडक किनारे ही बैठ गए.

पिस्ता- बोल कुछ तो

मैं- कम से कम बता तो सकती थी न की तेरा रिश्ता होने वाला है

पिस्ता- तेरी कसम , मुझे तो खुद तभी मालूम हुआ जब वो लोग घर आ गए. सब कुछ अचानक से हो गया.

मैं- मेरे बाप की साजिश है ये तुझे मुझसे दूर करने की

पिस्ता- बात तो सही है तेरी पर एक ना एक दिन तो ये सब होना ही था

मैं- जानता हु पर कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा . लग रहा है की कुछ छूट रहा है , कुछ छीना जा रहा है मेरा.

पिस्ता- समझती हु देव, पर हर लड़की की जिंदगानी में ये दिन कभी ना कभी आता ही है जब वो किसी की दुल्हन बनती है अपनी गृहस्थी बसाती है . ये तो दस्तूर है जिन्दगी का .

“नहीं समझ पा रहा तू क्या कह रही है ” मैंने कहा

पिस्ता- तू भी जानता है की मैं क्या कह रही हु

ज़िन्दगी में पहली बार मैंने उसकी आँखों में पानी के कतरे देखे.

“ये मादरचोद दुनिया कभी नहीं समझ पायेगी देव इस दोस्ती को ” पिस्ता ने कहा

मैं- मना क्यों नहीं कर देती तू ब्याह के लिए

पिस्ता- इनको मना कर दूंगी पर कितनो को मना करुँगी एक न एक दिन तो ब्याह करवाना ही पड़ेगा न.

मैं- तू समझ नहीं रही

लगभग रो ही तो पड़ा था मैं

“न देव ना. रोक ले इन जज्बातों को . तेरे दिल को तुझसे ज्यादा जानती हु मैं दिल की बात को जुबान पर मत ला. मत बाँध मेरे पैरो में वो बेड़िया जिनका बोझ उठाया ना जा सके. ” पिस्ता ने कहा

“तू जानती है फिर भी ” मैंने कहा

“एक तुझे ही तो जाना है सरकार ” बोली वो .

“तुझसे जुदा न हो पाउँगा, तेरे बिना ना रह पाऊंगा. ”

पिस्ता- जानती हु , इसलिए तो समझा रही हु तुझे और फिर तुझसे मुझे भला कौन ही जुदा कर पायेगा. पिस्ता तो तेरी है , तेरी ही रहेगी.

मैं- फिर ये जुदाई क्यों

पिस्ता- जिस्म ही तो जुदा हो रहा है रूह तो तेरे पास ही है न

“तेरे बिना क्या ही वजूद रहेगा मेरा , ये जिन्दगी जीना तेरे साथ ही सीखा मैंने. ये हंसी- ये ख़ुशी सब तुझसे ही तो है ” मैंने कहा

पिस्ता-मेरे दिल से पूछ, मेरी धडकनों से पूछ कोई माने ना माने पर तुझमे ही रब देखा मैंने.

मैं- तो फिर सब जानते हुए भी क्यों अनजान बनती है तू

पिस्ता- मैं कहू फिर देव, तू ही बता क्या कहू कैसे समझाऊ तुझे

पिस्ता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बहुत देर तक हम दोनों रोते ही रहे. शाम न जाने कब रात में बदल गयी , थके कदमो से हम लोग वापिस आये.

“ये चेहरा क्यों उतरा हुआ है तुम्हारा ” पुछा नाज ने

मैं-तबियत नासाज सी है कुछ

नाज- मालूम हुआ की मजदूरो से बात की तुमने खंडित मंदिर को दुबारा बनाने के लिए

मैं- तुम कैसे मालूम

नाज- घर पर आये थे वो चौधरी साहब से इजाजत मांगने

मैं- इसमें इजाजत की क्या बात है, मेरी इच्छा है मंदिर दुबारा बने.वैसे भी ऐसी जगह सूनी नहीं रहनी चाहिए.

नाज-देव, मुझे लगता है की तुम्हे एक बार अपने पिता से चर्चा कर लेनी चाहिए.उनकी सलाह लेने में कोई बुराई तो नहीं

मैं- निर्णय ले चूका हु मैं मासी

नाज-अपनी मासी की बात नहीं मानेगा

मैं- मासी के लिए तो जान भी दे दू

नाज ने मेरे सर को सहलाया और बोली- कल तू मेरे साथ चलेगा

मैं- कहा

नाज- उसी खंडित मंदिर में.
Awesome update
 
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