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Adultery जब तक है जान

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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259
#३५
एक हाथ में झोला दुसरे हाथ में पिस्ता का हाथ और सामने बाप . किस्मत का चुतिया होना क्या होता है आज जान रहे थे हम.
“हाथ छोड़ ” पिस्ता ने हौले से कहा

बाप ने बड़ी गहरी नजर हम पर डाली और बस इतना ही कहा की गाडी में बैठो. रस्ते भर ख़ामोशी छाई रही . माथे पर पसीना था दिल में घबराहट मैं पिस्ता की तरफ देखू और वो मेरी तरफ . खैर, रास्ता था कट ही जाना था . घर के बाहर जैसे ही गाडी रुकी हम लोग उतरे और अपने अपने घर जाने लगे की

“रुको , हमने जाने को तो नहीं कहा ” पिताजी ने कहा

मैं जानता था की अब मुश्किल होने वाली है पिताजी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोले- बरखुरदार, जब बेटा बराबर का हो जाये न तो बाप को बहुत ख़ुशी होती है पर वही बेटा नालायकी करे तो उस बाप का क्या ही रसूख रहे . और तू भी सुन ले छोरी.बचपन से तू हमारे घर आती रही , मेरी तो कोई छोरी है न पर तू भी जाने की बेटी का दर्जा हमेशा ही दिया तुझे. पर तुम दोनों नालायक इस बाप का मान न रख पा रहे. मैं जानता हु चढ़ती जवानी का खून जोर मारता है पर इस जिन्दगी में तुम्हे बहुत कुछ देखना है . ये गाँव , गाँव नहीं है ये एक परिवार है , एक घर है जिसका मुखिया हु मैं और मेरे घर में ये कचरा नहीं फैलेगा जो तुम कोशिश कर रहे हो . समझते क्या हो तुम अपने आप को . ये जो फितूर फिल्मो का तुम्हारे अन्दर जोर मार रहा है न की एक हीरो एक हेरोइन होती है तुम्हे बता दू की जिदंगी बहुत अलग होती है . बहुत बेरहम , जब जीवन की तलवार तुम पर वार करेगी तो यकीन मानो कुछ नहीं बचेगा सिवाय उस दुःख के जो तुम्हारा नसीब बन जायेगा. मैं ये भी जानता हूँ की मेरी बाते तुम्हे महज बाते लगेगी क्योंकि इस उम्र में बगावत लाजमी है और पंचायत की रात के बाद कम से कम मैं तो जान गया हु की तुम दोनों मेरे लिए मुश्किल हालात खड़े करते ही रहोगे पर चौधरी फूल सिंह तुमसे कहता है की गाँव में ये कचरा नहीं फैलाने दूंगा .तुम्हारे देखा देखी गाँव में और भी बालक ये व्यभिचार करने का सोचेंगे और मैं ये कभी होने नहीं दूंगा. हाथ में हाथ लिए घूम रहे थे , तुम्हे तो चलो शर्म नहीं , पर कम से कम इस गाँव की , अपने माँ बाप की शर्म तो कर सकते हो न, आज एक बाप तुम्हे तुम्हारी बेहतरी की सलाह दे रहा है पर अगर ये बेशर्मी दोहराई गयी तो हम भूल जायेंगे की तुम हमारी औलादे हो और फिर तुम जानो और तुम्हारा नसीब.


पिताजी ने कहा और जीप लेकर अन्दर चले गये गली में रह गए हम दोनों. मैंने पिस्ता को देखा उसने मुझे देखा और ना जाने क्यों हम मुस्कुरा पड़े. बेशर्मी अपने चरम पर थी. हाथ मुह धो रहा था की पिताजी ने कहा की नाज़ मासी को बुला लाऊ . मैं उनके घर गया तो पाया की बुआ भी वही भी थी. उनको लेकर मैं घर आया तो पिताजी ने बैठक में आने को कहा.

“मुनीम की तबियत ठीक है जल्दी ही घर आ जायेगा .और हम जल्दी ही हमला करने वाले को तलाश कर लेंगे. पर चूँकि हम एक परिवार ही है तो परिवार की सुरक्षा के लिए हमने कुछ निर्णय लिए है .हमारे आदमी अब से पहरा देंगे दोनों घरो पर ” पिताजी ने कहा

मैं- पहरे वाली बात सही है पर पिताजी उस से आपके रुतबे को ठेस न पहुंचे , कही दुनिया ये न सोच ले की चौधरी साहब घबरा गए और फिर पहरेदार रहेंगे तो दुश्मन चोकन्ना हो जायेगा फिर उसे पकड़ने में दिक्कत भी हो सकती है

पिताजी ने घूर कर देखा मुझे और बोले- तो तुम क्यों नहीं लेते जिम्मेदारी .

मैं- मैं क्या करू इसमें

पिताजी- तुम चुप रहो बस . परिवार को सावधान रहना होगा. वैसे तो हम व्यवस्था कर देंगे पर फिर भी खेत-खलिहान में जाते समय सावधानी जरुरी है और तुम देव, जब तक मुनीम घर नहीं आ जाता रात को तुम नाज के घर सोओगे . उस घर की सुरक्षा तुम्हारे कंधो पर है उम्मीद है हमें निराशा नहीं होगी .

मैं - कोई दिक्कत नहीं है

पिताजी- कल तुम नाज के साथ सहर जाओगे, हॉस्पिटल .

मैंने हाँ में सर हिला दिया . कुछ देर और पिताजी हमें समझाते रहे .करने को कुछ ख़ास नहीं था तो मैं चौबारे में आ गया और बिस्तर पकड़ लिया .कुछ देर ही सोया होऊंगा की बुआ ने चाय का कप पकड़ाते हुए मुझे उठाया .काले सूट में कहर ढा रही थी बुआ . मादकता से भरपूर बुआ के हुस्न का जाम सामने हो तो चाय कौन ही पिएगा मैंने बुआ को अपनी बाँहों में भर लिया और बुआ के लाल होंठ चूसने लगा. पर बुआ ने मुझे खुद से अलग कर दिया और बोली- चाय पी ले.

मैंने उसका हाथ पकड़ लिया.

“कहा न नहीं ” बुआ ने सख्ती से कहा और निचे चली गयी मैं बुआ के ब्यवहार को समझ नहीं पाता था कभी तो खुद ही मचल जाती थी कभी बिलकूल ही शरीफ बन जाती थी . खैर मैं जोगन की तरफ चल दिया. खंडित मंदिर में दिया जलाये बैठी थी वो मैं भी उसके पास बैठ गया .

“क्या देखती रहती है तू ” मैंने सवाल किया

वो- माँ, माँ को देखती हु मैं

मैं- माँ को तो सब देखते है और ये माँ हम सब को देखती है . थोड़ी फुर्सत निकाल कर कभी मुझे भी देख ले.

जोगन- तुझे ही तो देखती हूँ .

मैं- थोडा और देख ले फिर

वो- हट बदमाश , चल चाय पिलाती हु आजा

“कुछ परेशां सा दीखता है तू ” उसने पुछा

मैं- वही पुराणी बात, बाप के मुनीम पर हमला हुआ है . ना जाने कौन दुश्मन है बाप का जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा और बाप हमें जीने नहीं दे रहा

वो- तेरा फर्ज बनता है इन हालातो में परिवार का साथ देने का

मैं- कहती तो तू सही है पर मेरा घर , घर कम चिड़ियाघर ज्यादा है . एक से एक नाटक होते रहते है वहां पर .


वो- फिर भी तुझे जिमीदारी लेनी चाहिए

मैं- तू कहती है तो मैं कोसिस करूँगा

थोडा समय और जोगन के साथ बिताने के बाद मैं वापिस मुड गया .कच्ची पगडण्डी से होते हुए मैं चले जा रहा था की ....................
 
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HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#19

आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .

पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.

“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .

“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .

कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.

भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा

मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में

“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे

मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो

मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .

“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो

मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .

“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा

मैं- आधी रोटी और लूँगा

वो मुस्कुरा पड़ी .

“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा

वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ

मैं- कल आएगी क्या

वो- क्यों भला

मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के

वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी

“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा

वो- जानती हु

मैं- तो फिर देव ही कह न

वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक

मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो

“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा

मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना

वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ

मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .

“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा

“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है

दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.

“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा


“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .

“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने

मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है

पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है

मैं- बुआ तो ठीक नहीं है

पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है


मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
 
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Tiger 786

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#18

देव उठो देव

पिघले शीशे की तरह वो चीख मेरे कानो के पर्दों को झुलसा रही थी . आँखों में उसकी तस्वीर तो थी पर वो नहीं थी , नहीं थी वो. मैंने तलवार उठाई और गुस्से में क्या किया कोई परवाह नहीं थी . जब मैंने अपना मुह पोंछा तो चारो तरफ अगर कुछ था तो सिर्फ लाशे और कांपता हुआ लाला.

“तू वजह जानना चाहता था न की क्यों मैंने तेरे बेटे का वो हाल किया . बताता हु तुझे ” मैंने लाला पर वार किया और उसके हाथ की उंगलिया धरती पर गिर गयी . लाला की चीख गूंजने लगी.

मैंने एक नजर मंत्री पर डाली . जिसके चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी.

“मेले में तेजा ने उस पाक दामन को गन्दा करने की सोची थी जिस आँचल को मैंने थामा हुआ था . तेरे बेटे को गुरुर था की कोई उसका झांट भी नहीं उखाड़ सकता और देख आज एक भी झांट नहीं बचा उसके पास . मैंने तेजा से कहा था माफ़ी मांग ले पर साले को चुल थी, तेरी नाकाम परवरिश की, उसको लगता था की तू बहुत बड़ी तोप है . तेरा बेटा है तो जो चाहे करेगा पर देख मैं खड़ा हूँ आज यहाँ और सात साल पहले भी खड़ा था हक़ के लिए, इंसाफ के लिए पर अफ़सोस तू नहीं रहेगा , क्या कहा था तूने एक सौदा करते है ये रात मेहरबान है , बेशक ये रात मेहरबान है ” मैंने कहा और अगले वार के साथ लाला का दायाँ हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया

“तू तो अभी से घबरा गया लाला, अभी तो कसाईपना देखना है तुझे ” बोटी बोटी काटते हुए गरज रहा था मैं उस रात. लाला का काम तमाम करने के बाद मैं मंत्री की तरफ मुखातिब हुआ .

“बहन के लंड मंत्री, आ तू भी बदला लेले रोकी की गांड तोड़ने का . ” इस से पह्ले की मैं मंत्री का नंबर लगाता पिस्ता ने मुझे रोक लिया

“नहीं देव नहीं , तुझे मेरी कसम ”

“कोई और हैं इस गाँव में जिसके अन्दर बदला लेने की चुल मची हो ” मैंने चिल्ला कर पुछा पर कोई आवाज नहीं आई.

“पानी ले आ जरा पिस्ता ” मैंने कहा और दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ घूँट पिए कुछ थूक दिया .

“मंत्री , तेरे बेटे की हालत का जिम्मेदार मैं नहीं हु, न मेरी उस से पहले कोई दुश्मनी थी न आज है . मैं अपने आप से परेशान हु मुझे और तंग न करो . होंगे तुम शहर के मालिक मुझे मेरे गाँव में रहने दो ना तुम मेरे रस्ते आओ न मैं कभी तुम्हे परेशान करूँगा. समझ आये तो ठीक बाकी मर्जी तुम्हारी ” मैंने मंत्री से कहा

“बहु चलो ” मंत्री मरी सी आवाज में बोला

पर पिस्ता टस से मस नहीं हुई.

“सुना नहीं तुमने बहु ” मंत्री से सख्ती से कहा

पिस्ता- मैं यही रहूंगी पिताजी

मंत्री- जानती हो क्या कह रही हो इसका नतीजा क्या होगा

पिस्ता -कल क्या हो किसने सोचा पर आज के लिए मैंने अपना फैसला ले लिया है

मंत्री- तुम्हे पछताना न पड़े

पिस्ता- पछताई तो मैं कभी भी नहीं


मंत्री पैर पटकते हुए चला गया रह गए हम दोनों और वहां पड़ी लाशे.

“खून खराबा बहुत हो गया देव, इसे संभालना मुश्किल होगा ” पिस्ता ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .

“हो तो गया ” मैंने कहा

हमारी आँखे एक दुसरे से मिली, कुछ इशारे हुए और मैंने गाड़ी से तेल की पीपी निकालना शुरू किया, पिस्ता ने लाशो को इकठ्ठा करना शुरू किया . सबूत मिटाने की बचकानी कोशिश .

“आने वाला समय मुश्किल होगा ” पिस्ता ने गाडी में बैठते हुए कहा

मैं- वो भी देखेंगे

कुछ देर बाद गाड़ी वहां पहुँच गयी जो रास्ता गाँव की तरफ जाता था पर मैंने उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया.

“गाँव नहीं तो कहाँ ” पिस्ता ने अपनी जुल्फों को बांधते हुए कहा

मैं- जान जाएगी

मैंने गाडी जंगल की तरफ मोड़ दी. रात अँधेरे को चीर कर सुबह में मिल जाना चाहती थी और मैं यादो को चीर कर अतीत में पहुंचना चाहता था . आँखों में भर आये पानी के कतरों को आस्तीन से साफ़ किया मैंने आसमान में बदल गरजने लगे थे . जंगल के तक़रीबन हिस्से को पार करने के बाद आख़िरकार मैं उस जगह पर पहुच ही गया जो न जाने कब से बाट देख रही थी की कोई तो आएगा उसके सूनेपन को बाँटने .

“तो तुम सच ही कहते थे इस बारे में ” पिस्ता ने लगभग चहकते हुए कहा

मैं- तुमने कभी माना भी तो नहीं था

पिस्ता- दीवानों की बातो का भला माना भी है किसीने
मैं- दीवानगी का वो एक दौर था जो तेरी ना के साथ बीत गया था तू चली गयी रह गए हम और ये घर .

“तेरा हर इल्जाम कबूल है सर्कार ” पिस्ता ने कहा

काले पत्थरों से बना वो घर जंगल में इस तरह से छिपा था की पहली नजर में कोई देख ही नहीं पाए. चारो तरफ सफेदे के पेड़ो से घिरा हुआ पत्थरों का ढेर ही लगता था जब तक की कोई गहरी नजरो से समझ न सके,थोडा जोर लगाना पड़ा दरवाजा खोलने के लिए .बरसो बाद रौशनी हुई थी यहाँ पर चिमनी की लौ मेरी तन्हाई को जला देने को बेताब सी थी .


बर्तनों पर धुल जमी थी, बिस्तर रुसवा था पानी का मटका सूखा पड़ा था . वक्त ने मेरी तरह इसे भी भुला दिया था .

“तुम आ गए हो वो भी आ जाएगी ” पिस्ता ने मेरा हाथ थामते हुए कहा

“सोना चाहता हु कुछ देर ” मैंने इतना कहा और पिस्ता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .

“दुःख के दिन बीते देव, हमें भी अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर ” मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा पिस्ता ने .
“सुख , ” मैंने हौले से कहा और उस दिन की याद में खो गया जब से ये कहानी, ये फ़साना शुरू हुआ .


आँख खुली तो घर में चीख-पुकार मची थी . कुछ नहीं सुझा तो चोबारे से निचे आया जिन्दगी में मैंने पहली बार अपनी माँ को रोते हुए देखा था . दिल इतनी जोरो से धडकने लगा था ,एक लड़के के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो होता है जब उसकी माँ की आँखों में आंसू हो.
“क्या हुआ माँ . ” बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया.
पर इस से पहले की माँ जवाब देती आँगन में जीप आकर रुकी और .................................
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Iron Man

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#19

आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .

पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.

“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .

“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .

कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.

भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा

मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में

“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे

मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो

मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .

“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो

मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .


“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा

मैं- आधी रोटी और लूँगा

वो मुस्कुरा पड़ी .

“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा

वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ

मैं- कल आएगी क्या

वो- क्यों भला

मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के

वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी

“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा

वो- जानती हु

मैं- तो फिर देव ही कह न

वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक

मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो

“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा

मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना

वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ

मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .

“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा

“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है

दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.

“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा


“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .

“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने

मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है

पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है

मैं- बुआ तो ठीक नहीं है

पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है


मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
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#18

देव उठो देव

पिघले शीशे की तरह वो चीख मेरे कानो के पर्दों को झुलसा रही थी . आँखों में उसकी तस्वीर तो थी पर वो नहीं थी , नहीं थी वो. मैंने तलवार उठाई और गुस्से में क्या किया कोई परवाह नहीं थी . जब मैंने अपना मुह पोंछा तो चारो तरफ अगर कुछ था तो सिर्फ लाशे और कांपता हुआ लाला.

“तू वजह जानना चाहता था न की क्यों मैंने तेरे बेटे का वो हाल किया . बताता हु तुझे ” मैंने लाला पर वार किया और उसके हाथ की उंगलिया धरती पर गिर गयी . लाला की चीख गूंजने लगी.

मैंने एक नजर मंत्री पर डाली . जिसके चेहरे पर हवाइया उड़ रही थी.

“मेले में तेजा ने उस पाक दामन को गन्दा करने की सोची थी जिस आँचल को मैंने थामा हुआ था . तेरे बेटे को गुरुर था की कोई उसका झांट भी नहीं उखाड़ सकता और देख आज एक भी झांट नहीं बचा उसके पास . मैंने तेजा से कहा था माफ़ी मांग ले पर साले को चुल थी, तेरी नाकाम परवरिश की, उसको लगता था की तू बहुत बड़ी तोप है . तेरा बेटा है तो जो चाहे करेगा पर देख मैं खड़ा हूँ आज यहाँ और सात साल पहले भी खड़ा था हक़ के लिए, इंसाफ के लिए पर अफ़सोस तू नहीं रहेगा , क्या कहा था तूने एक सौदा करते है ये रात मेहरबान है , बेशक ये रात मेहरबान है ” मैंने कहा और अगले वार के साथ लाला का दायाँ हाथ उसके जिस्म से अलग हो गया

“तू तो अभी से घबरा गया लाला, अभी तो कसाईपना देखना है तुझे ” बोटी बोटी काटते हुए गरज रहा था मैं उस रात. लाला का काम तमाम करने के बाद मैं मंत्री की तरफ मुखातिब हुआ .

“बहन के लंड मंत्री, आ तू भी बदला लेले रोकी की गांड तोड़ने का . ” इस से पह्ले की मैं मंत्री का नंबर लगाता पिस्ता ने मुझे रोक लिया

“नहीं देव नहीं , तुझे मेरी कसम ”

“कोई और हैं इस गाँव में जिसके अन्दर बदला लेने की चुल मची हो ” मैंने चिल्ला कर पुछा पर कोई आवाज नहीं आई.

“पानी ले आ जरा पिस्ता ” मैंने कहा और दिवार का सहारा लेकर बैठ गया . कुछ घूँट पिए कुछ थूक दिया .

“मंत्री , तेरे बेटे की हालत का जिम्मेदार मैं नहीं हु, न मेरी उस से पहले कोई दुश्मनी थी न आज है . मैं अपने आप से परेशान हु मुझे और तंग न करो . होंगे तुम शहर के मालिक मुझे मेरे गाँव में रहने दो ना तुम मेरे रस्ते आओ न मैं कभी तुम्हे परेशान करूँगा. समझ आये तो ठीक बाकी मर्जी तुम्हारी ” मैंने मंत्री से कहा

“बहु चलो ” मंत्री मरी सी आवाज में बोला

पर पिस्ता टस से मस नहीं हुई.

“सुना नहीं तुमने बहु ” मंत्री से सख्ती से कहा

पिस्ता- मैं यही रहूंगी पिताजी

मंत्री- जानती हो क्या कह रही हो इसका नतीजा क्या होगा

पिस्ता -कल क्या हो किसने सोचा पर आज के लिए मैंने अपना फैसला ले लिया है

मंत्री- तुम्हे पछताना न पड़े

पिस्ता- पछताई तो मैं कभी भी नहीं


मंत्री पैर पटकते हुए चला गया रह गए हम दोनों और वहां पड़ी लाशे.

“खून खराबा बहुत हो गया देव, इसे संभालना मुश्किल होगा ” पिस्ता ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .

“हो तो गया ” मैंने कहा

हमारी आँखे एक दुसरे से मिली, कुछ इशारे हुए और मैंने गाड़ी से तेल की पीपी निकालना शुरू किया, पिस्ता ने लाशो को इकठ्ठा करना शुरू किया . सबूत मिटाने की बचकानी कोशिश .

“आने वाला समय मुश्किल होगा ” पिस्ता ने गाडी में बैठते हुए कहा

मैं- वो भी देखेंगे

कुछ देर बाद गाड़ी वहां पहुँच गयी जो रास्ता गाँव की तरफ जाता था पर मैंने उसे दूसरी दिशा में मोड़ दिया.

“गाँव नहीं तो कहाँ ” पिस्ता ने अपनी जुल्फों को बांधते हुए कहा

मैं- जान जाएगी

मैंने गाडी जंगल की तरफ मोड़ दी. रात अँधेरे को चीर कर सुबह में मिल जाना चाहती थी और मैं यादो को चीर कर अतीत में पहुंचना चाहता था . आँखों में भर आये पानी के कतरों को आस्तीन से साफ़ किया मैंने आसमान में बदल गरजने लगे थे . जंगल के तक़रीबन हिस्से को पार करने के बाद आख़िरकार मैं उस जगह पर पहुच ही गया जो न जाने कब से बाट देख रही थी की कोई तो आएगा उसके सूनेपन को बाँटने .

“तो तुम सच ही कहते थे इस बारे में ” पिस्ता ने लगभग चहकते हुए कहा

मैं- तुमने कभी माना भी तो नहीं था

पिस्ता- दीवानों की बातो का भला माना भी है किसीने
मैं- दीवानगी का वो एक दौर था जो तेरी ना के साथ बीत गया था तू चली गयी रह गए हम और ये घर .

“तेरा हर इल्जाम कबूल है सर्कार ” पिस्ता ने कहा

काले पत्थरों से बना वो घर जंगल में इस तरह से छिपा था की पहली नजर में कोई देख ही नहीं पाए. चारो तरफ सफेदे के पेड़ो से घिरा हुआ पत्थरों का ढेर ही लगता था जब तक की कोई गहरी नजरो से समझ न सके,थोडा जोर लगाना पड़ा दरवाजा खोलने के लिए .बरसो बाद रौशनी हुई थी यहाँ पर चिमनी की लौ मेरी तन्हाई को जला देने को बेताब सी थी .


बर्तनों पर धुल जमी थी, बिस्तर रुसवा था पानी का मटका सूखा पड़ा था . वक्त ने मेरी तरह इसे भी भुला दिया था .

“तुम आ गए हो वो भी आ जाएगी ” पिस्ता ने मेरा हाथ थामते हुए कहा

“सोना चाहता हु कुछ देर ” मैंने इतना कहा और पिस्ता ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .

“दुःख के दिन बीते देव, हमें भी अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर ” मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा पिस्ता ने .
“सुख , ” मैंने हौले से कहा और उस दिन की याद में खो गया जब से ये कहानी, ये फ़साना शुरू हुआ .


आँख खुली तो घर में चीख-पुकार मची थी . कुछ नहीं सुझा तो चोबारे से निचे आया जिन्दगी में मैंने पहली बार अपनी माँ को रोते हुए देखा था . दिल इतनी जोरो से धडकने लगा था ,एक लड़के के लिए सबसे मुश्किल वक्त वो होता है जब उसकी माँ की आँखों में आंसू हो.
“क्या हुआ माँ . ” बड़ी मुश्किल से मैं कह पाया.
पर इस से पहले की माँ जवाब देती आँगन में जीप आकर रुकी और .................................
बहुत ही गजब और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
देव ने मौत तांडव मचा कर लाला और उसके साथीयों का नरसंहार कर डाला साथ ही साथ मंत्री की भी गांड फाड दी और पिस्ता के साथ जंगल में बने घर पर आ गया
ये अतीत में और क्या क्या हुआ हैं देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया अपडेट।

अतीत में क्या हुआ उसकी शुरुवात भी धमाकेदार ही है।
 

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#19

आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .

पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.

“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .

“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .

कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.

भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा

मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में

“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे

मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो

मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .

“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो

मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .


“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा

मैं- आधी रोटी और लूँगा

वो मुस्कुरा पड़ी .

“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा

वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ

मैं- कल आएगी क्या

वो- क्यों भला

मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के

वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी

“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा

वो- जानती हु

मैं- तो फिर देव ही कह न

वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक

मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो

“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा

मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना

वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ

मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .

“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा

“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है

दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.

“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा


“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .

“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने

मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है

पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है

मैं- बुआ तो ठीक नहीं है

पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है


मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
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आँगन में जीप आकर रुकी और धक्के से बुआ को फेंक दिया गया. मैंने बुआ को देखा हाल-बेहाल आँखों का काजल आंसुओ से जंग हार चूका था .गोरे गालो पर थप्पड़ के निशान उपडे हुए थे . दर्द से कराही वो
“बुआ ,क्या हुआ तुम्हे ” मैं बुआ की तरफ आआगे बढ़ा ही था की हाथ में बन्दूक लिए पिताजी जीप से उतरे और हिकारत से बुआ की तरफ देखते हुए माँ से बोले- इसे काबू में रखना सावित्री,चौधरी को अपनी साख बहुत प्यारी है बहन न होती तो आज इसकी भी लाश गिरा देता .इसके जैसी से तो बहन होती ही ना तो ठीक रहता .

पिताजी ने हिकारत से थूका और अपने कुरते पर लगे खून को नलके के पानी से धोने लगे.

“बुआ ” मैंने बुआ का हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया. बुआ किसी बुत की तरह कुर्सी पर बैठी खिड़की से बाहर को देखे जा रही थी .

“बुआ, थोडा पानी पी लो ” मैंने गिलास बुआ को दिया कुछ घूँट पानी उनके गले से निचे उतरा और फिर वो रोने लगी . रोती ही रही जब तक की उसके मन का गुबार कम नहीं हो गया वो रोती ही रही . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या कहू, कैसे संभालू उसे . मैं घुटनों के बल बैठा और बुआ की गोदी में अपना सर रख दिया . उनके आंसू मेरे दिल में उतरने लगे थे .

कुछ दिन घर का माहौल बड़ा मनहूस था , जिस घर की सुबह आरती की गूँज से होती थी मातम सा पसरा हुआ था बुआ न कुछ खाती थी ना पीती थी उनकी आँखों के आंसू सूखते ही नहीं थे. पिताजी रात रात भर घर नहीं आते थे और जब आते तो उनके कपडे खून में रंगे होते थे . अपना ही घर कैद सा लगने लगा था .जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो एक बोझिल दोपहर मैं घर से निकल आया. कहते हैं न की जिन्दगी में कोई न कोई दिन ऐसा आता है जब आपको लगता है की यही तो था मेरा लम्हा , वो दोपहर भी कुछ ऐसी ही थी , ऐसा तो बिलकुल नहीं था की मैं उसे जानता नहीं था पर उस दिन नजरो ने न जाने किस नजर से उसे देखा की फिर और कुछ कभी देख ही नहीं पाये.

भरी दुपहरी में पीपल के निचे बने चबूतरे पर बैठी वो रोटी खा रही थी . पीले सूट पर नीला दुपट्टा आलती पालती मारे बैठी वो मुझे उस बियाबान में किसी खिले गुलाब सी लगी .
“छोटे चौधरी तुम यहाँ इस उजाड़ में ” उसने निवाला तोड़ते हुए बेपरवाही से कहा

मैं- तुम भी तो हो इस उजाड़ में

“हमारा तो रोज का ही काम है , पशु न चारायेंगे तो कैसे काम चलेगा हमारा पर तुम महलो वाले कभी कभी ही दीखते है न यहाँ ” उसकी बात बात कम ताना सा ज्यादा लगी मुझे

मैं- महल, काश तू कभी महलो की कैद को समझ पाये.
मैं उसके पास ही बैठ गया .

“ऐसे क्या देख रहा है ” उसने कहा

मैं-आधी रोटी देगी क्या , रात से कुछ खाया नहीं मैंने
“क्यों मजाक करे है छोटे चौधरी . तू म्हारी रोटी खायेगा . ये हवाए बड़ी तेजी से बातो को फैलाती है किसी को मालूम हुआ तो मुझसे ज्यादा तेरी जग हंसाई होगी गाँव में ” बोली वो

मैं- रोटी तो रोटी होवे है मेरे घर की हो या तेरे घर की . मालूम ना था की रोटी की भी जात होती है . भूख लगी थी तो मांग ली .

“बाते अच्छी करते हो तुम, टींट का आचार है चलेगा तुझे ” बोली वो

मैंने सर हिलाया. उसने एक रोटी आगे की .


“लस्सी की तरफ निगाह न कर कतई न दूंगी ” उसने कहा

मैं- आधी रोटी और लूँगा

वो मुस्कुरा पड़ी .

“तू रोज़ आती है इधर ” मैंने पुछा

वो- रोज तो नहीं पर मन जब भी करे आ जाती हूँ

मैं- कल आएगी क्या

वो- क्यों भला

मैं- पता नहीं , पर अच्छा लगा तुझे देख के

वो- ऐसा क्या देख लिया मुझमे छोटे चौधरी

“देव ,नाम है मेरा ” मैंने कहा

वो- जानती हु

मैं- तो फिर देव ही कह न

वो- तूने भी तो नहीं लिया मेरा नाम अभी तक

मैं-जुबान पर तेरे आचार का चटखारा मोजूद है अभी तक तेरा नाम लिया तो स्वाद खो जायेगा वो

“और खा लेना , तुम भी क्या याद करोगे ” उसने कहा

मैं- ठीक है कल से मेरे नाम की रोटी अलग से बना लेना

वो- चल बाते बहुत हुई, कुछ लकडिया बीन लेती हु फिर निकलती हु घर की तरफ

मैं उसे लकडिया बीनते हुए देखता रहा . फिर उसने अपनी बकरियों को हांका और जाने लगी .

“सुन जरा, फिर मिलेगी क्या ” मैंने कहा

“पिस्ता नाम है मेरा, और दूसरी बात मिलने वाले कभी ऐसे नहीं पूछते, बस मिल लिया करते है

दो पल की ख़ुशी घर आते ही गायब हो गयी.

“बुआ, कब तक ऐसे खामोश रहोगी . मैं नहीं जानता क्या हुआ है आपके साथ पर आप की मुस्कान रौनके है इस घर की , आप की चुप्पी मेरे कलेजे को छील रही रही है . इस घर में एक आप ही तो हो मेरी , आप ही तो हो वो जिसकी ऊँगली पकड़ कर चला मैं अपने लाडले को इतना तो हक़ दो की आपके दुःख को बाँट सके वो ” मैंने बुआ से कहा


“कुछ नहीं हुआ, कुछ भी तो नहीं हुआ मुझे. तू आज नहीं समझेगा पर एक दिन आएगा जब जान जायेगा तू ” बुआ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा.

“देवा,” तभी निचे से पिताजी की आवाज आई और मैं सहमते हुए उनके पास गया .

“ तुम्हारी माँ ने बताया की आजकल तुम कुछ नाराज से हो . खाना पीना भी ठीक से नहीं हो रहा .” कहा उन्होंने

मैं- घर का माहौल ठीक नहीं है शायद उसका असर है

पिताजी- क्या हुआ है घर के माहौल को , हमें तो सब ठीक लगता है

मैं- बुआ तो ठीक नहीं है

पिताजी- तुम्हे उसकी चिंता करने की जरुरत नहीं है अभी बैठे है हम . तुम्हारे खेल-कूद के दिन है यार दोस्त बनाओ थोडा बाहर की हवा खाओ . किसी भी चीज की जरुँत हो तो हम बैठे है


मैंने कुछ नहीं कहा बस अपने बाप को समझने की कोसिस करते रहा और फिर बिना कुछ कहे घर से बाहर निकल गया .................
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
 
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