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Adultery जय का सफर-(Struggle,Adultery,Incest)

कहानी कैसी लगी?


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★Season १★
जय का सफर-(Struggle,Adultery,Incest)
(Episode 1)
किसीने बहुत खूब कहा है,
“ क्या जिंदगी है ओ जिसमे लन्ड खड़ा न हो
कैसी मर्दानगी उसकी जिसके हाथो चूचा बड़ा न हो
चूत का छेद और हाल कैसे हो मेरे हवसी नाथ
चोद दे ना उस चूत रानी को चाहे उसका पति खड़ा हो न हो”
और बुरा लगे तो भी,क्योकि मार्गदर्शन बहुत कुछ सीखा देता है लेखक को,उसके लिए भाषा मायने नही रखती,जड़ बकचोदी न करते हुए.स्टोरी का पहला सीजन पेश करने जा रहा हु.आपके साथ कि आशा है,धन्यवाद!!!

नमस्ते दोस्तो मेरा नाम मि.सेक्सी कुछ लेके आया हु नया नही है पर रोमांचक भरा जरूर है,अच्छा लगे तो भी कमेंट करना
गांव से मुम्बई चाचा के साथ आया हुआ जय चाची और चाचा के प्लान में फासे कैसे चुदाई के हवसी जाल में फस जाता है ओ इस कहानि में मालूम होगा


आजकल की जिंदगी तेज रफ्तार सी हो गयी है.हर एक को अपने सपने पूरे करने में बहोत कठिन से कठिन चुनोतीओंका सामना करना पड़ता है।अइसे ही दिल मे अरमान और मन मे बहोत सपने लिए एक साधारण से गांव में पला बड़ा लड़का अपने सपनो को साकार करने शहर आ पहुंचा,सपनो का शहर मुंबई।
नाम है जय।उम्र करीब 21 साल।अच्छा खासा तगड़ा जवान।गरीब किसान के परिवार में पैदा हुआ एक अनमोल रत्न,जिसमे जन्म से हो या कर्म से संगीत गायकी और हार्मोनियम वादन की अलग सी कला अवगत थी,गांव में उसके इस रत्न का पारखी नही था।
गर्मियों का वक्त था,उसका चाचा छुटियो में गांव आया हुआ था।उसकी इस तम्मना को जानते हुए और भाई की परिस्थिति को समझते हुए उसने जय को मुम्बई लेकर जाने का प्रस्ताव रखा।पहले तो जय के माता पिता ने न नकुर कि पर बाद में मान गये।
कुछ दिन रहने के बाद चाचा जय को लेकर मुम्बई आ गया।जय के लिए शहर वाली जिंदगी नई थी।उसका चाचा एक चॉल में रहता है,उसकी एक 40 साल की बीवी और 5 साल की बेटी है।
चाचा जब जय को घर लेकर आता है तो चाची उसका खूब अच्छे तरह से स्वागत करती है ।चाचा चाची को पूरे परिस्थिति का ज्ञान करा देता है।हालांकि चाचा का रूम बहोत छोटा था पर 4 लोग तो सहजता से रह सकते थे।चाचा ने जय को कुछ दिन रुकने को बोला जबतक उसे कोई काम न ढूंढ ले।दिन अइसे ही जाने लगे।रोज सुबह जल्दी उठना चाची को घर के कामो में मदत करना उसकी दिनचर्या बन चुकी थी।जय की चाची भी घर के काम करने जाती थी तो जय घर पे अकेला हारमोनियम बजाते बैठता था।
एकदिन जब ओ अयसेही घर में बैठा था तो चाल में रहने वाली उसके चाची की दोस्त घर पे आ गयी।चाल का माहौल आम तौर पर क्या रहता है ओ तो सभी अच्छे तरह से जानते है ।जय घर में बनियान और शॉर्ट में बैठा tv देख रहा था,जब चाची की दोस्त अंदर आई तो ओ हड़बड़ा कर खड़ा हुआ।
पहले तो ओ एक दूसरे को ताकते ही रह गए,पर कुछ पल गुजरने के बाद चाची की दोस्त बोली "बेटा निर्मला किधर है"
जय:ओ चाची काम पर गयी है,वैसे आप कौन है?
चाची की दोस्त:निर्मला को बोलना शालू आई थी।
जय :ठीक है।
शालू:वैसे तुम कौन हो,कभी देखा नही?
जय:मैं विकास चाचा का गांव का भतीजा हु,काम के खोज में यह आया हु अभी कूछ दिनों पहले।
शालू:गांव का?अरे तो तुम विजय के लड़के हो,सुमित्रा कैसी है?
जय पहले तो शालू के मुह में मा बाप का नाम सुन चौक गया
उसने हड़बड़ाते हुए कहा:है ठीक सब सब लोग मजे में
शालू:तू तो बहुत बड़ा हो गया रे,(जय को ताड़ते हुए)बचपन में तो मेरे सामने नंगा घूमता था।
जय थोड़ा शर्मा जाता है।
शालू:ठीक है मैं शाम को अति हु।
शालू के जाते हुए ताड़ते हुए जय सोचविचार में पैड जाता है की ये है कोन?मेरे परिवार के बारे में जानती कैसे है?

शाम 6 बजे जब उसकी चाची निर्मला घर आ जाती है तो ओ सब कुछ जो घटा ओ बया कर देता है।चाची थोड़ा सोचके इस बात को टालने की कोशिश करती है,और उसे बाहर घूमके आने को बोलती है।जय को ये बात थोड़ी खटक जाती है।पर दिनभर घर पे बैठ ओ भी थक चुका था तो ओ भी बाहर घूमने चला जाता है।
इधर उधर टहलकर जय जब घर आता है तो घर के बाहर से उसे अंदर किसी के होने की आवाज सुनाई देती है।अध खुली खिड़की से ओ अंदर देखती है तो,उसे अंदर वही दोपहर वाली शालू चाची दिखाई देती है।उनके बीच कोई बात चल रही थी।जय ओ सुनने की कोशिश करता है।
शालू:तूने बताया नही,विजय का लड़का आया है।
निर्मला:अरे अभी आया है,बताने ही वाली थी।
शालू:अच्छा,तुम मुझे बताने वाली थी(अजीब सी मुस्कान)
निर्मला:देख शालू जेठ जी और तुम्हारे बीच जो था,ओ कब का खत्म हो चुका है,तुम लोगो की प्रेम कहानी को 23 साल पहले ही हो गयी।तुम्हारे सरफिरे स्वभाव को जानकर ही ओ गांव में जाके शादी किया
शालू:मैंने क्या किया,ओ मुझसे भी शादी कर सकता था।
निर्मला:तुम दोनो में क्या गहमागहमी हुई मालूम नही पर इसका मतलब तुम अभी जय पे डोरे न डाल।बचपन में उसके तूने जो तमाशा किया तब जय बहोत छोटा था अभी ओ जवान है।तेरे इस स्वभाव के वजह से न जेठ जी यहां आते है न किसीको भेजते है।बड़ी मुश्किल से जय को भेजा है।
शालू:तूने ही विकास को बोला न उसको लाने को?
शालू के अचानक बोलने से निर्मला हड़बड़ा गयी।
शालू:सच बोल क्या प्लान है तुम लोगो का?
निर्मला:तुम तो जानती हो,बेटी को पैदा करने में ही कितना समय लग गया,अभी उन्हें बेटाभी चाहिए पर उम्र के हिसाब से उनसे ओ हो नही पा रहा।इसलिए हैम दोनो ने मिल कर सोच समज कर ये कदम उठाया है।
शालू:यानी विकास भी इसमे शामिल है।
निर्मला:हा,ये पूरा प्लान ही उनका है,मैने सिर्फ हा कहा है,जिससे मैं मा भी बन जाउंगी और जय जेठ जी का एकलौता लड़का है तो जो संपत्ति है ओ भी हमारे पास आ जाएगी।
शालू:इस प्लान में मैं भी शामिल होना चाहती हु।मुझे भी अपने अधूरे अरमान पूरे करने है।जो बाप से न हुआ ओ मैं बेटे से करवाउंगी
निर्मला:पर थोड़ा धीरज रख तेरे यही सरफिरे स्वभाव के वजह से बाप छूट गया अब बेटे से हाथ धो बैठोगी,तू जो भी करेगी कर पर इनको उसका पता न चल पाए
शालू:ठीक है,पर कुछ भी बोल विजय का लड़का उससे भी दमदार लगता है।
निर्मला:देख ओ मुझे भी बहुत पसंद आया है,पर जैसे उसका हमे फायदा है वैसे ओ जिसके लिए आया है ओ सपना भी उसका पूरा करना पड़ेगा याफिर करने का दिखावा करना पड़ेगा,क्योकि ओ बहोत होशियार है,गरीबी होते हुए भी उसने अपनी कला को निखारते हुए पढ़ाई पूरी की है,ध्यान नही रखा तो पंछी उड़ जाएगा।
दोनो भी हँसने लगे।
जय को ये सब सुन के थोड़ा अजीब से तो फील हुआ पर उसने भी वैसे रिएक्ट न होते हुए जैसे हूँ रहा है वैसे जाने देने का फैसला किया क्योकि सवाल परिवार का था,माता पिता के भावना ओ का था।बस उसे अभ चौकन्ना रह के नहले पे दहला देना था।


 
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(Episode 2)

शालू के जाणे के बाद थोडी देर बाहर रुक कर जय घर के अंदर घुसा.जय को अंदर एते देख निर्मला ने उसे पूछा
"जय चाय पिओगे"
जय:"हा चाची"
जय बाथरूम में जाकर हाँथ पाव धोकर TV के सामने आके बैठ गया।
निर्मला चाची ने दो कप चाय लाकर उसके सामने ही बैठ गयी.घरके काम करने वाली औरत थी तो सलवार कमीज(पंजाबी ड्रेस टाइप)कपड़े पहने थे पन गले पे ओढ़नी नही थी।चाची के उस यौवन को जय कुछ देर ताकता ही रह गया।चाची की उम्र करीब 40 के ऊपर ही थी दिखने में सावला रंग,पर उम्र के हिसाब से मोठी थी।किसीको पहले फुरसत में पसंद आये अयसे उसका यौवन नही था।
पर जबसे उन दोनो की बाते जय ने सुनी है तबसे उसका चाची की तरफ देखने का नजरिया बदल गया था।
चाची ने थोड़ा उस बात पे गौर किया पर कोई रिएक्शन नही दिया,क्योकि यही तो उनको चाहिए था।अपने इस नादानी को समज आते ही जय पूर्वस्तिथि में आ गया।उसने भी मन में सोचा की "इनकी जाल में अइसे नही फसेंगे।ये लोक क्या तमाशे करते है उसके मजे लेंगे।क्योकि ये कुछ भी करे फायदा तो मेरा होगा,बस चिंता इस बात की थी की कही इस बात को ढाल बनाकर ओ मेरे नाम से मा बाबा को ब्लैकमेल न करे जिससे उन्हें कोई परेशानी न हो"
जय TV देखते हुए चाय पीने लगा।उस पल के बाद उसने निर्मला की ओर नही देखा।
निर्मला:क्यो जय,कैसा लग रहा है यह पर,खुश तो हो,कोई परेशानी?
जय:कुछ नही चाची,ठीक है,दुनियादारी में उतरना है तो कुछ कुछ सहन करना पड़ेगा,और ये तो मेरा अपना घर है यह पर क्या परेशानी
निर्मला:बाते तो बड़ी अच्छी कर लेते हो,जो कुछ चाहिए तो बेज़िज़क मांग लेना,
जय:जी चाची जरूर
इसबार जय ने चाची को नजर अंदाज करते हुए बात की
चाय खत्म होते ही दोनो कप लेके जप निर्मला ऊठ रही थी तो उसके चुचो की गालिया साफ दिख रही थी,और पसीना होने से उसमे और निखार आ रहा था।पर उस समय जय ने ओ भी नजर अंदाज किया।अब तो निर्मला चौक सी गयी
मन में"क्या हुआ इसको अभी तो लाइन डाल रहा था,अभी कुछ ध्यान ही नही दे रहा है,धत्त तेरे की अच्छी खासी फासे में फसने वाली थी मछली"
शाम को विकास घर पे आ गया।जय छोटी बच्ची के साथ खेल रहा था।1रूम किचन था तो विकास ने आते ही जय की हालचाल पूंछ कर फ्रेश हुआ और किचन में चला गया।
विकास:कुछ बात बनी या नही
निर्मला:एक बार ताक जरूर रहा था पर उसके बाद में कुछ रिएक्शन नही दिखी।
विकास:कुछ भी कर पर उसे इस प्लान के बारे में पता नही चलना चाहिए।
निर्मला:पता नही चलेगा आप उसकी चिंता मत करो,पर मैं इसे काबू में कैसे करू,ओ गोरा चिकना गबरू जवान,और मैं ठहरी सावली मोठी सी औरत,मुझमें कैसे आकर्षित करू,कुछ समझ नही आ रहा
विकास: परेशान होने की बात नही है।थोड़ा सा अंगप्रदर्शन कर ले,काहीपर कुछ हवस भरी बात छेड दे,पारिवारिक मूल्यों को संभालने वाला लड़का है ज्यादा बवाल नही होगा।
निर्मला:कुछ तो जल्दी करना पड़ेगा जी,चूत रोज पानी छोड़ रही है,अभी सहन नही होता।
विकास:थोड़ा धीरज रख मेरी लन्ड की मल्लिका,जड़ जबरदस्ती करेगी तो लड़का और प्रोपर्टी दोनो हाथ से निकल जाएगा,और हा उसके काम के लिए पूछ लिए क्या
निर्मला:हा पूंछ लिया।पर मुझे कुछ ठीक नही लग रहा।मालकिन बड़ी चूदासी है।अक्सर कोई न कोई आता रहता है।कई उसने डोरे डाल दिए तो।
विकास:कल का कल देखेंगे,वैसे भी ओ वैसा लड़का नही है,दिनभर कुछ भी करे रात को तो मिल ही जाएगा।कल भैया पूछेंगे तो कुछ तो जवाब देना है।इसलिए लगा दो।नही तो इस महीने के भैया को हमारे जेब से पैसे देने पड़ेंगे
निर्मला:बात तो हुई है पर मालकिन और उनका परिवार बाह घूमने गया है,मालिक आये है न.जब ओ वापस आएंगे तब लेके जाउंगी उसे.2 3 दिन की बात है
विकास:ठीक है चलो खाना परोसो।मैं जय को बुलाता हु।
 
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(Episode 3)

विकास:क्यो जय,मन लग गया लगता है तुम्हारा,

जय:हा चाचा,अच्छी जगह है,बहोत पसंद आई मुझे

विकास:चाची बहोत प्यार से खयाल रख रही है तेरा,अभी तक मेरा भी नही रखा इतना

जय:अयसे कुछ बात नही है चाचा ओ सबका ख्याल रखती है,

विकास:अरे वा बहोत प्यार आ रहा है चाची पे
तभी निर्मला बाहर आकर जय के पास उसके गाल खींचते हुए बोलती है
"है ही लाडला भतीजा मेरा,मैं प्यार करू या शादी करू आपसे क्या।"यह बोलते बोलते वह उसको पीछे से उसको बाहो में लेके अपने सीने पर दबाती है।उसका मुह चाची के सलवार के उपर से उसके दुधभरे मोटे चुचो को घिसता है।चाची थोड़ी सिसकी लेती है,पर जैसे ही जय उसको शक से घूरता है ओ झट से"मेरा लाडला बेटा है ही प्यारा"बोलके बात को घुमा देती है।
विकास:क्यो जय करेगा चाची से शादी।बोल?

जय:क्या चाचा कुछ भी।

निर्मला:चलो जी बाते तो होती रहेंगी खाना खा लो।

सब लोग खाना खाके हो जाणे के बाद सब सोने की तयारी करणे लगते है।
1रूम किचन होकर भी 4 से ज्यादा लोग हॉल वाले एरिया में रही सो सकते थे।
इसलिए चाचा दीवार की ओर बाद में चाची फिर उनकी लड़की फिर जय सो गए।
चाचा को नींद में रेंगने की आदत थी तो ओ दीवार से सैट के सोते थे।
आधी रात 12 बजे के आसपास की बात।जय बाथरूम जाने उठा।बाथरूम से आने के बाद जब उसने फ्रिज खोल और पानी पी रहा था तो उसकी नजर टहलते हुए चाची के पास गयी।चाची अब उसके सेड आ चुकी थी बच्ची चाचा और चाची के बीच में थी
चाची ने मैक्सी(नाइटी)पहनी थी।और घुटनो के ऊपर तक आ चुकी थी।चुचो का आकर बाद था तो ओ आधे बाहर लटक रहे थे।
यहापर चाची की भी नींद खुल चुकी थी।पर जय सिर के ऊपर होने की वजह से उनकी अधखुली आंख जय को दिखी नही।ओ तो चाची का रसीला बदन देखने में व्यस्त था।
चाची उसके सामने खड़े किये अलमारी के आयने से जय को देख रही थी।
चाची की अधनंगी टांगेऔर आधे लटके चुचे देख जय का लन्ड हलचल करने लगा,खुजली की वजह से जय उसको शॉर्ट के ऊपर से सहलाने लगा।
ये नजारा तो चाची के होश उड़ा गया।उसने जान भुजके अपनी कोहनी बदली और बेटी के ऊपर हाथ रख कर गांड को थोड़ा बाहर निकाल सो गयी।जिससे उसकी नाइटी गांड तक ऊपर आई।उसने ये अइसे किया जैसे ओ नींदमें हो।पर इस हलचल के परिणामके जय होश में आया और पानी की बोतल फ्रिज में रख जगह पे आके सो गया।
पर उसका लन्ड इतना उत्तेजित था की ओ खड़ा ही था अभीतक।
जय जब जगह पे सोया तब उसको अहसास हुआ की चाची की गांड उसके लन्ड को टच हो रही है।उसने लन्ड को सेट करने की पूरी कोशिश की पर ओ नाकाम रहा।
पर इस कोशिश के दरमियान उसके हाथ चाची के गांड को टच कर गए।इधर पराये तगड़े नौजवान के नए नवेले स्पर्श से चाची सातवे आसमान पे थी।
थोड़ी देर कोई हलचल नही हुई।मौका न चला जाए इस के लिए चाची ने अपनी गांड को और बाहर निकाला।जय का लन्ड अभी चाची के गांड के अंदर तक जा रहा था।
पर जय को आश्चर्य इस बात का हुआ की चाची बिना पेंटी के सोई है और ओ भी एक पराये नौजवान के साथ।
पर उसके पास कोई चारा नही था।रात को उसको कोई बवाल खड़ा नही करना था।जिससे उसके चाचा को कोई कारण मील जाए और ओ खुद फस जाए।
बस उसे कैसे भी संयमसे है रात काटनी थी।पर जबतक उसका मानसिक संयम बन जाए उसके पहले चाची अपनी अगली चाल चल चुकी थी।उसने अपनी गांड को लन्ड पे सटाके हिलाना घूमना चालू किया।जय को ये समज ने में देरी नही लगी की ये नींद में नही जान के किया जा रहा है,मतलब चाची जगी हुई है।
उसने कोई रेस्पोंस नही दिया।पर चाची अपनी हवस अपनी तरह से मिटाने के कोशिश में लगी थी।करीब 15 20 मिंट बाद ओ शांत हो गयी(झड़ गयी)।
जय आंखे बंद करके सिर्फ मजे ले रहा था।चाची उठी बाथरूम जाकर आई।उसने सोने से पहले जय के ऊपर देखा,उसका लन्ड अभी भी तना हुआ था,चाची थोड़ी मुस्करा गयी
मन में"क्या तगड़ा लन्ड है बंदे का,अभी तक खड़ा है,मन करता है अभी चूस लू और चूत में घुसेड दु"
पर ओ कंट्रोल करके जगह पे आके सो गयी।इस बार मुह जय के सामने था।
ओ नीद में होने का नाटक चालू कर दी।
यहां पे तने लन्ड की वजह से जय अपनी हवस काबू नही कर पा रहा था।उसने आंखे खोली तो सामने जो देखा और महसूस किया ओ उसके जीवन का एक नया अनूभव था।
 
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(Episode 4)

जगह कम थी और निर्मला चाची जय से सटके सोई थी।जिस चुचो को जय दूर से देख रहा था ओ अभी उसके एकदम नजर के सामने थे।ओ अपने हाथो को सिर के नीचे रख सोने की कोशिश करने लगा।पर नसीब तो आज निर्मला के साथ था।कम जगह की वजह से मूडी हुई कलाही की कोई निर्मला के चुचो को घिस रही थी।निर्मला सहर गयी।चुचे इतने बड़े और कोमल थे की अपनी कोहनी चुचो को लग रही है इसका जय को ध्यान नही आया।कुछ पल के बाद निर्मला ने खुद ही अपने आप को हिलाते हुए चुचे उसके कलाही की कोहनी पर घिसना चालू किये।इस हरकत के नतीजे जय का लन्ड तन के उछलने लगा।निर्मला तो हवस से भरी थी,बस आनंद ले रही थी।निर्मला जयके से और सटके सो गयी।जय का लन्ड उसके चूतके ऊपरी हिस्से पर घिसने लगा।जय आंख बन्द कर खुद को काबू करने लगा।उसने अपने हाथो को सीधा कर लिया।पर ओ दोनो इतने करीब थे की अभी कोई भी अपने काबू में नही था।निर्मला की गर्म सांसे जय को बेहाल कर रही थी।
जय का चेहरा पूरा लाल हो चुका था।
निर्मला ने इस मौके का फायदा उठाते हुए।उसके शॉर्ट में हाथ डाल लन्ड को पकड़ लिया।अचानक हुई इस हरकत से जय ने फट से आंखे खोल दी
जय:"चाची***"
जय कुछ बोल पाता उससे पहले उसने उसकी मुह पर हाथ दबा कर शांत रहने का इशारा किया।जय भी उस समय बेबस हो गया था।चाची ने उसकी शॉर्ट पैरो से नीचे दबाके उसके लन्ड को पूरा आज़ाद कर दिया।
निर्मला उसके लन्ड को सहलाये जा रही थी।टोपे से नीचे तक उसको हिला रही थी।उसने उसका एक हाथ अपने चुचो पे दबा दिया।निर्मला के लन्ड हिलाने से जय को थोड़ा सुकून मिला।ओ मजे लेने लगा।हवस के चलते और लन्ड के बहोत ज्यादा तन जाने से उसे बीच में दर्द होता था।जब भी निर्मला उसके लन्ड पर जोर देकर हिलाती तब जय मदहोशी में चाची के चुचे दबा देता।पर ये सिलसिला जड़ देर नही टिका।कुछ पल भर में जय ने चाची के नाइटी पर अपना सारा माल झड़ा दिया।चाची ने उसी नाइटी से उसका लन्ड पोंछ कर उसकी शॉर्ट सीधी कर दी।
दोनो भी अभी शांत होकर सो गए।
सुबह के वक्त जय चाचा के बेटी को नर्सरी छोड़ने चला गया।चाची चाचा दोनो काम पे जाएंगे इस की वजह से ओ एक जो एक्स्ट्रा चावी थी वो भी ले गया।नर्सरी से लौटने के बाद उसने देखा की दरवाजा खुला है।उसने चप्पल रखने की जगह चाची का चप्पल देखा।मतलब चाची काम पे नही गयी थी।
जय बाथरूम में हाथ पाव धोके पानी पीने गया तो।किचन से आवाज आई।
"जय नाश्ता लगा दु क्या बेटा??"
जय: हा ठीक है
निर्मला चाय और नास्ता लेके बाहर आई वही अपने सलवार कमीज में।किचन के काम करते वक्त ओ पसीने से भीग चुकी थी।जिसके परिणाम उसके बड़े चुचे जो आधे बाहर थे उन्होंने हवस भरा आकार लेके रखा था।चुचो के ऊपर नोकदार निप्पल का भी दीदार हो रहा था।इस अवस्था में चाची को देख जय को रात के ओ हवस के पल याद आ गए।चाची ने उसके मन में चल रहे विचारो को समझ लिया।
रात में जो हुआ उससे ओ तो बहोत खुश और उत्साहित थी पर जब जय को कल रात के घटना के बाद भी निर्भयता से देखते हुआ पा कर उसका जिगरा ठंडी सांसे लेने लगा।

कल तक जो जय को आकर्षित करने के योजना के विचार से परेशान थी उसको आज पूरा सुकून सा फील हो रहा था
पर यहां पर जय विचलित था,उसे कलरात हुई घटना पर अपराधी सा महसूस हो रहा था।
चाची अपने अंदाज में हसते मुस्कराते हुए,उसके सामने इस तरह बैठी की आधे से ज्यादा चुचे जय को दिख जाए।अइसी नशीली औरत के चुचे देख किसका भी लन्ड फूत्कार मार देगा,वही हाल जय का भी हुआ।उसे इस बात का अहसास होते ही उसने लन्ड को दबाने की कोशिश की।उसकी इस कोशिश को देख निर्मला फुले नही समा रही थी।पर उसे मजे लेने थे,ओ अइसा बर्ताव कर रही थी मानो जैसे उसे कुछ दिख ही नही रहा हो।
जय कामना के आगोश में थर थर कांप रहा था।निर्मला ने उसके सामने चाय करदी।जय ने थरकते कांपते हांथो से चाय का कप उठाया और मुह में लगाने लगा पर उसका ध्यान अभी भी चाची की उस मोटी चूचो पे था।इस का नतीजा ये हुआ की चाय गर्म थी और ओंठो पर लगाते ही उसके ओंठ पर जलन महसूस हुई और उसने कप छोड़ दी।अब हुआ यू की शॉर्ट तो भीगी ही पर उसका लन्ड भी उस गरमाहट का शिकार बना।
ओ एकदम से चिल्लाया "चाची चाची,जल गया आह दर्द हो रहा है"
दोनो जो हवस में डूबेथे थोड़ी ही देर में होश में आ गए।
चाची ने कुछ आव देखा न ताव झटसे अंदर से गिला कपड़ा ले आई और उसके शार्ट के ऊपर से पोंछने लगी।जब उसने पूरे शार्ट पर दबाके कपड़ा फेरा,उस के वजह से शॉर्टऔर गीली हो गयी।पहले ही नशीले बदन की आंखमिचोली से लन्ड गरम होकर तन रहा था,उसी वक्त उस नशीली औरत के कोमल हाथो का स्पर्श होते ही उसका लन्ड लोहे सा तन गया।
दोनो को इसबात का महसूस हुआ तो।दोनो ने एक दूसरे के आंखों में देखा और कुछ पल एके दूसरे को अइसे ही ताकते रहे।दोनो की आंखे एक दूसरे को भीड़ चुकी थी।पंखे की ह ने भी ठंडे हवाओ का रुख उनकी तरफ कर दिया।
जाने या अनजाने में दोनो करीब आने लगे।दोनो की सांसे अभी उस ठंडे हवाओ में गरमाहटपैदा कर रही थी।ओ चुभती गर्म सासे दोनो में और चुदास भे रही थी।
एक ही पल में दोनो के ओंठ एक दूसरे से भीड़ गए।दोनो ने आंखे बन्द कर दी और एकदूसरे के ओंठो का रसपान करने लगे।जय गांव में रहा था पर उसे चुदाई का पूरा ज्ञान था।निर्मला मुम्बई शहर की मचलती रसीली आंटी थी।दोनो का मिलन जैसे आंखों और दिल को लुभाने वाला था।
निर्मला ने जय को अपने बाहो में खींच लिया।खुद पीठ पे सो कर उसे अपने बाहो में कस के दबाये उसके ओंठो को चूसे जा रही थी।
उनकी हवस आगे बढ़े इससे पहले बाहर से किसीने आवाज दी
"पोस्टमैन"
दोनो अलग हुई।चाची ने बेडपे रखी टॉवल को शरीर पे ओढ़ के दरवाजे पर चली गयी,हवस में उनको दरवाजा खुला होने का ध्यान न रहा।
जय उठा जाकर फ्रेश होकर शॉर्ट बदली और बाहर बेड पे आकर बैठ गया।
दोपहर का कहना हुआ।पर तबतक दोनो सिर्फ आँखों से ही बाते कर कहे थे ,दोनो में से एके के भी मुह से शब्द नही निकल रहा था।
आखिर कर इस चुप्पी को तोड़ते हुए जय निर्मला से बोला
"चाची ये सही नही है"
निर्मला:"क्या?"
जय:"चाची ये कल रात से जो हो रहा है ओ।मैं चाचा को धोखा नही दे सकता"
निर्मला:मत दो धोखा,मैंने कब कहा धोखा देने को
जय:पर जो हो रहा है ओ तो*****!!?!
जय के बातो को काट के:उसका कुछ नही होता,वैसे भी तू तो घर का ही लड़का है,और उसमे बुरी बात क्या है,मैं भी खुश तू भी खुश
जय:और चाचा?
निर्मला:तू चाचा की जरूरत से ज्यादा चिंता कर रहा है,अगर दिल से उसे खुश देखने की दिल की तम्मना है तो एक जरिया है।
जय:क्या?
निर्मला:देख तेरे चाचा से अभी चुदाई नही होती(चुदाई शब्द सुनते है जय की आँख कान चौड़े होते है),चौक मत सही कह रही हु,फिर भी ओ एक बेटा चाहते है,मैं अभी मोटी हो गयी हु,अगर तू मेरे साथ सबंन्ध बना लेता है तो होने वाले बच्चे से सारा घर आनंद से भर जायेगा।
निर्मला के आंखों में नमी सी आ गयी।
जय को उस दीं की बाते याद आ गयी।ओ थोड़ा कशमकश में पड़ गया।
जय कुछ न बोले घर से बाहर निकल गया।उसकी जाती परछाही को निर्मला ताकती रह गयी।
 

sunoanuj

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Jabardast shuruaat hai .. dekhte hai kanha jaati hai kahani...
 
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(Episode 5)

जय हमेशा की तरह जबसे मुम्बई आया था तबसे जब भी घर में ऊब जाता तो चॉल के एक कोने में समुंदर की तरफ एक नीलू मौसी और उसका पति अपना एक चाय का ठेला डाले रखे थे.वहां जाके बैठ जाता उसको ताजी हवा भी मिल जाती और समुंदर किनारे दिल भी बहल जाता.नीलू मौसी की और उसकी अच्छीखासी पहचान हो गयी थी।सर्व गुणसम्पन्न जय को खाना बनाना भी आता था।तो कभी कभी ओ चाची को चाय या पकोड़े बनाने में मदत कर देता था।
उसदिन जय बहोत विचलित था।हरदिन की तरह ओ अपनी जगह आकर बैठ गया।नीलू मौसी के पति ने उसको पुकारा
"क्यों जय कैसे हो,चाय पिओगे"
जय तो कल से जो घटनाये उसके साथ घट रही है उसमे उलझ गया था।

"क्या मैं सही जगह आया हु?कही मैं फस तो नही गया?चाची की मदत करनी चाहिए?चाचा चाचीके मन मे सच मे कोई लोभ नही है संपत्ती का?"इस सवालोंके भूलभुलैया में अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा

"क्या हुआ बेटा,आज कुछ उदास हो,तबियत ठीक नही क्या?"

जी हा ओ नीलू मौसी थी:"चाची ने कुछ कहा।"
जय :वो वो मौसी बात अइसी है की

जय के चेहरे का पसीना देख बात के गहराई को समझते उसने उसको अंदर ले गयी।

नीलू मौसी:देख जय कोई परेशानी है तो मुझे बता,मैं कुछ कर पा सकू तो,घूंट घूंट के रहने से कुछ नही होगा'
जय ने कुछ सोच कर जो घटना अबतक घटी ओ सब मौसी को बया कर दी।मौसी को उसके भोले पन पे हंसी आ रही थी पर समय हसी मजाक वाला सही था।
उसने जय को कहा"तू मेरी बात मानेगा,अगर हातो मैं तुझे सुजाव दूंगी"

जय:"चाची इस अनजान शहर में एक तुम ही बची हो।कुछ सुजाव कर दो ,सवालो से मेरा सर फट रहा है।"

मौसी:देख जय,तेरा तेरे माता पिता के सिवाय एक ही है ओ है चाचा और उसका परिवार,तुम अगर अयसेही घर जाओगे तो तुम्हारे पिताजी वैसे भी परेशान होंगे,और निट्ठल्ला बेटा किसको चाहिए,देख जब तक तुम हो तुम्हारे माता पिता सुखी रहेंगे,अगर तुम चाचा का परिवार भी सुखी कर दोगे तो ओ भी खुश तू भी खुश,इन बातो में नुकसान कहा है,चाची बच्चे के लिए बाहर मुह मारे उससे अच्छा,उनका तुम ही सहारा बन जाओ"

जय मौसी को बहोत मानता था,उनकी बातो है असर हमेशा उसके दिलो दिमाग में होता था।इसबार भी वही हुआ।

बहुत देर रात हो चुकी थी।जय ने मौसी को अलविदा कहा और घर आ गया
चाचा आज जल्दी आया था।

चाचा:अरे जय आ गए।अच्छा हुआ।चलो खाना खा लेते है।

जय:आज जल्दी?

चाचा:अरे हा जय,वो मेरा सेठ का फैमिली फंक्शन है लोनावला उधर जा रहा हु।तुम्हे जल्दी नही तो....

जय:कोई नही 9 तो बज ही गए है,चलो फिर"

आज सब लोग खाना एकसाथ खा लिए,
चाचा जाने की तयारी में लगा,चाची उनको छोड़ने गयी,तबतक जय फ्रेश होकर बेड पे बैठा।
निर्मला ने उसको देखा और मुस्करा के किचन में चली गयी।
मौसी की बातो के असर के परिणाम स्वरूप जय ने हिम्मत जुटाई और किचन में चला गया।

चाची धोये बर्तन फैला रही थी,ना जाने क्यो पर आज उसने सारी पहनी थी।उसकी मोटी गांड फूल के दिख रही थी।कमर इतनी मोटी होने के बाद भी लन्ड को बेकाबू करने में काफी थी।उसका ओ मादक नशीला पिछवाड़े का बदन देख कर जय का लन्ड तन गया।ओ धीरे से पीछे जाके चाची को दबोच लिया।
दबोचते ही तना हुआ जय का लन्ड चाची के भीगे सारी को ठुस्ता हुआ गांड के अंदर सट गया।
लन्ड के चुभाव और नौजवान के स्पर्श से निर्मला का पूरा रसभरा बदन सहर गया।उसने लाल गुलाबी होंठ दाँतोतले दबा दिए।

चाची:आज जाके प्यार आ रहा है मेरे पे,कितना तड़पा कर क्या मिला।

जय:छोड़ो उस बातो को चाची,अभी जो चाहे सेवा करवा लो"।

जय ने निर्मला को अपनी तरफ घुमाया,वैसे लन्ड भी घिसते हुए चूत के ऊपर तड़फड़ने लगा।

निर्मला:अरे तेरा लन्ड बहोत प्यासा लग रहा है।लगता है चूत की खुशबू लेनी है उसको।

जय:हा मुझे भी अयसेही कुछ कुछ महसूस हो रहा है
रुको उसको थोड़ा शांत कर लू।

निर्मला घुटनो पे बैठ गयी और शॉर्ट नीचे कर के लन्ड को आझाद कर दिया।जैसे ही शॉर्ट में दबाया हुआ लन्ड आज़ाद हुआ,तो ओ चाची के मुह पर घिस गया।निर्मला ने उसको ऊपर से नीचे तक सहलाया।थोड़ा हिलाया जिससे ओ थोड़ा तन जाए।उसने जैसे ही लन्ड के टोपे की चमड़ी नीचे खींची जय चिल्लाया"आह चाची*****"
निर्मला ने झट से उसके लन्ड के टोपे को अपने कोमल ओंठो से ढक दिया।
जय ने राहत की सांस छोड़ी।उसको मजा आने लगा।
चाची ने भी वही सिलसिला जारी रखा।उसने उसके टोपे को मुह में रख लन्ड की मुथ मारनी चालू की।ओ लन्ड को टोपे से लेकर अंडो तक चाटनी लगी।उसका पूरा लन्ड मुह में लेकर मजे लेने लगी।
कुछ देर के इस सिलसिले के बाद जय झड़नेवाला था,उसने चाची निर्मला से कहा भी,पर नए लन्ड की मिलन की खुशी में ओ सब भूल गयी

जय थोड़ा अकड़ा और उसके मुह में झड़ दिया।
"सॉरी चाची"जय।
को बात नही जय।तुम सोने की तयारी करो"निर्मला।
जय शॉर्ट सीधा कर बाहर गया।
 
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