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Erotica जवानी जानेमन (Completed)

blinkit

I don't step aside. I step up.
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अगले दिन मैं दोपहर तक सोती रही, जब उठी तो दिन चढ़ आया था, देखा तो मैं मम्मी के कमरे में सोई हुई थी और मेरे शरीर पर लेग्गिंग्स उलटी सीडी चड्डी हुई तो और मैं ऊपर से नंगी थी बस एक चादर से ढकी हुई, मैंने जल्दी से पास पड़ा टॉप पहना और हड़बड़ा कर कमरे बहार आयी , दादी कमरे के बहार ही बैठी हुई थी, मुझे देख कर हाल चाल पूछा, एक बल्टोइ में चाय थी उसमे से एक कप में ढाल के मुझे पिने के लिए दिया, मेरा सर चकरा रहा था और एक टीस सी उठ रही थी सर में जैसी कोई दिमाग के अंदर हथोड़ा मार रहा हो, मैंने चाय का कप लेकर स्जल्दी जल्दी चाय पि, चाय पीने से थोड़ी रहत मिली फिर दादी ने मुझे अपनी बाँहों में समेत लिया और रोने लगी, मैं भी उनसे गले लग कर खूब रोई, जब दिन कुछ हल्का हुआ तो दादी ने हाथ मुँह दुला कर खाना खिलाया, शायद दादी ने किसी पडोसी से खाना मंगवाया था, घर में अभी तक न मम्मी का पता था और न पापा का। जैसे तैसे खाना खाने के बाद मैं और दादी अपने कमरे आके बिस्तर पर लेट गए , रात की बात याद करके मुझे रोना आरहा था,
रोते रोते सोच रही थी की कैसी अजीब किस्मत है, इसी दुनियां में ऐसे लोग है जो अगर कोई उनके परिवार पर ऊँगली भी उठा दे तो जान लेने के लिए तैयार है और एक मेरा बाप है जो अपने शराबी यार से नींद की गोली दे कर मेरा रेप करा रहा था, दूसरे से कराना तो तब की तब हरामी खुद अपनी कमसिन बेटी को चोद कर बेटीचोद बनने में लगा हुआ था।
मैं रात की बात सोंच सोंच कर रो रही थी की तभी दादी ने आवाज़ लगायी " चंदू सो गया क्या बेटा " नहीं दादी जाग रही हूँ !
" ठीक है फिर मेरे बिस्तर में आजा " मैं दादी के बिस्तर पर चली गयी और उनसे लिपट कर लेट गयी, एक यही तो थी जिसने एक नहीं दो दो बार मेरी जान बचायी थी। दादी ने भी मुझे कास कर अपने से सत्ता लिए और मुझसे पूछा

दादी : उस लड़के के क्या नाम है चंदू ?
मैं : कौन लड़का दादी ?
दादी : वही जिस से तू रोज़ रात में बात करती है , दर मत मुझे सब सच सच बता की कौन है क्या करता है
मैं क्या बोलती फिर मैंने दादी को सब बता दिया ये भी बता दिया की मैं जॉब करने लगी हूँ

दादी : मुझे थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा था, मैंने तुझे टोका नहीं कभी ये सोच के की तेरे जीवन में पहले ही बहुत दुःख है अगर इस लड़के से बात करके तू खुश है तो तुझे भी खुश होने का पूरा अधिकार है।

मैंने तुझे इस लिए आज पूछा है क्यूंकि एक डेढ़ साल में तू शादी लायक हो जाएगी अगर तू इस लड़के से प्यार करती है तो मैं इस से तेरा बयाह करा दूंगी, मेरे जीवन का अब कोई ठिकना नहीं है और मैं चाहती हूँ की जल्दी से जल्दी तू इस घर से चली जाये और अपने संसार में सुखी रहे। इस परिवार पर बिमला और उसकी पैदा न हुई बेटियों का श्राप है इस घर में कोई सुखी नहीं रह सकता इस लिए तू जल्दी से या तो कहीं और शिफ्ट हो जा या किसी से शादी कर के सुखी जीवन बिता।

मैंने दादी से पूछा की कौन बिमला फिर दादी ने मुझे बिमला और अबॉर्शन की कहानी बताई। मैंने भी दादी को बता दिया की दीपक से मैं मन से प्यार नहीं करती बस मजबूरी है, लेकिन फिर भी अगर वाक़ई शादी के लिए तैयार है तो मैं शादी कर सकती हूँ केवल इसलिए की मुझे इस घर से छुटकारा मिल सके, उसका घर परिवार अच्छा है और बहुत अमीर तो नहीं लेकिन एक अच्छा जीवन जीने लायक पैसे है बस ये और बात है की जब जब दीपक मुझे छूता या प्यार करता है तो मुझे पता नहीं क्यों कुछ भी फील नहीं होता शायद मैं ऐसी ही हूँ जिसको सेक्स का फील नहीं आता। मैंने दादी को विश्वास दिलाया की वो चिंता न करे जिस दिन भी मुझे लगेगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए मैं दीपक के घर चली जाउंगी फिर चाहे उसकी ख़ुशी के लिए बिना फील के ही क्यों न सेक्स करना पड़े।

रात ऐसी ही खमोशी से गुज़री, हमने दिन का बचा खुचा खा कर गुज़ारा कर लिया था, सुभह मम्मी घर आगयी, उनका चेहरा खिला खिला और खुश था आखिर होता भी क्यों ना वो बाबा के आश्रम से आयी थी और प्रसाद में ढेर साड़ी पूरी सब्जी और हलुआ लायी थी, उन्होंने मुझे नहाने के बोलै और और जब मैं नाहा कर वापिस आयी तो जल्दी से प्रसाद थाली में लगा कर परोस दिया, मैं अपने दुःख में भूल ही गयी थी की आज दुर्गा अष्टमी थी आज के दिन कंजिका पूजी जाती है , हाय रे किस्मत जहा बेटियों को देवी मान कर पूजा जाता है वही एक कलयुगी बाप अपनी खुद की बेटी को छोड़ने की धुन में लगा हुआ था, मैंने चुपचाप खाना खाया और दादी को भी खिलाया, माँ ने दादी से पापा का पूछा तो दादी ने बोल दिया की रात में उसने हद से ज़्यदा शराब पि ली थी और चन्द्रमा से जबरदस्ती चिकन बनवा के खाया था तो मैंने लट्ठ मार कर घर से निकल दिया, दादी ने मेरे साथ हुई घटना माँ को नहीं बताई, शायद उनको डर था की कही घर में माँ कोई कलेश न कर दे, वैसे भी बूढ़ा इंसान कलेश से डरता है,

दीपक का कल से कई बार कॉल आया लेकिन मैंने कॉल नहीं उठाया, फिर कोमल का फोन आया तो मैंने फ़ोन उठा के बोल दिया की मेरी तबियत ख़राब है प्लीज मुझे डिस्टब न करे कोई, शाम में फिर एक अनजान नंबर से कॉल आया तो मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन जब 2-३ बार आया तो मैंने गुस्से से झल्ला कर बोला " जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नहीं आता क्या फ़ोन रखो चुपचाप " लेकिन तभी उधेर से आती आवाज़ सुन कर मैं चौंक गयी। "क्या हुआ चंदू बेटा क्या मेरा कॉल करना अच्छा नहीं लगा ? तुमने ही नंबर दिया था तो सोचा आज तुमको कॉल आकर लूँ "

मैं एक डैम से हड़बड़ा गयी ये तो मामा जी की आवाज़ थी, हम हरयाणा के और वो बिहार के तो मुझे झट से उनके टोन से पहचान हो गयी
मैं : सॉरी मामा जी वो कोई परेशां कर रहा था तो उसी को दांत रही थी, आप कैसे है
मामा : मैं ठीक हूँ बेटा , अच्छा सुनो दिन पहले तुम्हारी नानी गुज़र गयी, मैंने सोचा की तुमको या तुम्हारी माँ को कल करू फिर हिम्मत नहीं हुई बेटा, माँ की आखिरी ख़ाहिश थी तुम्हारी माँ से मिलने की जो पूरी नहीं हो सकी , तुम अपनी माँ को बता देना और एक बात, अगर वो ना आना चाहे तो तुम आ जाओ तेरहवी से पहले क्या तुम भी पूजा में शामिल हो जाओ तो शायद माँ की आत्मा को शांति मिल जाये। वो इतनी बुरी नहीं थी जितना तुम्हारी माँ समझती है, वो ख़राब नहीं थी बस हालत ख़राब थे।

मैं मामा की बात सुन कर रोने लगी और उनसे वडा किया की मैं नानी की तेरहवी में ज़रूर आउंगी।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मां प्यार का तो बाप भरोसे का प्रतीक होता है, तभी एक बार चंद्रमा को लगा की बाप शायद बचा ले, लेकिन साले कुछ लोग जन्मजात कमीने होते हैं, और उसका बाप इसी श्रेणी का जानवर है।

बढ़िया अपडेट 👍
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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Maine ye kahani pahli baar likhi aur likhne me bahut saari galtiya ki hai grammatically main sonch raha hu ki is kahani ko puri karne ke baad har aik update ko copy kar ke correct Karu aur same page par dubara post kar du. Kya Aisa karna sambhav hai, ya Aisa karne se story ki sequence to kharab nahi ho jayegi ?

Koi ko Aisa anubhav ho to kripya mujhe batana.

Dhanyawad 🙏
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Maine ye kahani pahli baar likhi aur likhne me bahut saari galtiya ki hai grammatically main sonch raha hu ki is kahani ko puri karne ke baad har aik update ko copy kar ke correct Karu aur same page par dubara post kar du. Kya Aisa karna sambhav hai, ya Aisa karne se story ki sequence to kharab nahi ho jayegi ?

Koi ko Aisa anubhav ho to kripya mujhe batana.

Dhanyawad 🙏
ap inhein ccopy karke edit karke dobara usi post par edit option se post kar sakte hain koi fark nahin padega..................
उस दिन वाटर पार्क वाली घटना के बाद से मैं दीपू से खींची खींची रहने लगी थी, मूड बहुत ख़राब था, पता नहीं क्यों जब भी दीपक मेरे शरीर को छूता तो एक अजीब सी घृणा होती थी मैंने ब्लू फ्लिम में देखा हुआ था की कैसे जब लड़का लड़की एक दूसरे को चूमते या छूते हुए तो कितना मज़ा आता है, मुस्कान ने भी यही बताया था की मर्द जब प्यार करता है या कही छूता है तोह बड़ा मज़ा आता है, बातो बातो में बताया था की यहाँ आने से पहले वो जिस मोहल्ले में रहते थे वहा के एक लड़के से उसका चक्कर था और वो चुपके से रात में वो गली के रस्ते उसकी छत पर आजाता था और और मुस्कान छत के कोने में अपना कमसिन बदन उस लड़के से रगड़वा कर मज़ा पा लेती थी, मुस्कान की सेक्सी बातें सुन कर मेरा भी मचल उठता था की काश मुझे भी कोई ऐसे ही प्यार करे जिसमे मज़ा आये घिन्न नही। खैर सब की इतनी अछि किस्मत कहाँ होती है।

दीपू मेरी इस नाराज़गी से चिढ़ गया था, एक दिन उसने ऑफिस से जल्दी छुट्टी की और मेरी भी छुट्टी करा दी मेरा मन खिन्न हो रहा था लेकिन मैं चुपचाप उसकी बाइक के पीछे बैठ गयी, मैंने पूछा की हम कहा जा रहे है लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, वो मुझे गलियों से घूमता हुआ एक मकान के आगे रुक गया और मुझे उतरने के लिए बोला तो मैंने मना कर दिया, मैं ऐसे अनजान घर में जाने से कतरा रही थी, तभी घर का गेट खुला और लगभग मेरी उम्र की एक सांवली लेकिन आकर्षक लड़की सामने कड़ी थी, लड़की ने साफ़ सुथरे कपडे डाल रखे थे और हल्का सा मेकअप किया हुआ था जिस से वो बड़ी प्यारी लग रही थी। उसने दरवाज़ा खोल कर जोश से हेलो कहा और और हमे अंदर आने का इशारा किया, दीपू चुपचाप घर के अंदर चला गया मजबूरी में मैं भी उसके पीछे पीछे अंदर आगयी, मैं वह कोई ड्रमा नहीं करना चाहती थी बिना जाने के ये किसका घर है लेकिन जिस कॉन्फिडेंस से दीपू अंदर आगे था उस से लगा की ये उसी घर है ,

अंदर जाकर मैं चुपचाप सोफे पर बैठ गयी वो लड़की झट से गिलास में पानी ले आयी और हाथ बढ़ा कर हेलो किया और बोली " मेरा नाम कोमल है भाभी "
मैं भाभी सुन कर चौंक गयी,,,, तो कोमल खिलखिला कर बोली " भाभी भैया ने मुझे सब बता दिया है, आप बहुत प्यारी है, मेरे भैय्या की चॉइस बड़ी अच्छे है " ये सुन कर मैं शर्मा गयी, दीपू ने कभी इतना खुल कर अपने परिवार के बारे में नहीं बताया था, आज अचानक लेकर आगया था वो मेरा झिझकना सवाभाविक था।

थोड़ी देर में दीपू कपडे चेंज करके आगया और वो भी वही एक सोफे पर बैठ गया, कोमल जल्दी से नास्ते का सामान और कोल्डड्रिंक उठा लायी, हम तीनो ने साथ नाश्ता किया और इधर उधर की बातें की, कोमल मुझसे एक क्लास नीचे थी यानि दसवीं में पढ़ती थी, और बहुत चंचल सवभाव की थी, मुझे उस से मिलकर अच्छा लगा, अभी हम इधर उधर की बातें कर ही रहे थे की अचानक किसी ने गेट खटखटाया दीपू ने उठ कर खोला सामने एक चालीस पैंतालीस साल की महिला खड़ी थी जो सीधा अंदर आयी , मुझे सोफे में बैठा देख कर एक मिनट के लिए ठिठकी और फिर मुस्कुराकर पूछा " ये कौन है ? "''''''

इस से पहले मैं कुछ बोलती, कोमल झट से बोल पड़ी, मम्मी ये चन्द्रमा दी है मेरे स्कूल में पढ़ती है लेकिन अब हम दोस्त है, मैं कोमल के साफ़ झूट बोलते देख कर दंग रह गयी, दीपू की माँ ने हमे बैठने का इशारा किया और अंदर चली गयी, अपनी मम्मी के अंदर जाते ही मेरे कान में फुसफुसाई, भैय्या ने अभी केवल मुझे बताया है अपने अफेयर के बारे में मम्मी को नहीं पता तो आगे से मैं आपको चंदू दी ही बुलया करुँगी , ठीक है ना ? मैंने हाँ में गर्दन हिला दी, अभी मेरी उम्र ही क्या थी भाभी सुनना बड़ा अजीब लगा रहा था, कुछ देर कोमल मुझे घर दिखने ले गयी, छोटा सा माकन था लेकिन साफ़ सुथरा और तरीके से बना हुआ, नीचे दो कमरे एक छोटा सा ड्रिंगरूम और किचेन, ऊपर दो कमरे और एक छोटा किचेन था थोड़ा सा खुला एरिया था, कुल मिला कर ठीक ठाक खाती पीती फॅमिली थी।

कुछ देर बैठ कर मैंने घर चलने का बोला तो कोमल माँ के सामने दीपू से बोली की भैय्या चंदू दी को उनके घर ड्राप कर दो, उसकी मम्मी ने भी बोल दिया की हाँ छोड़ आओ आने में रात हो जाएगी कोमल को तो दिक्कत हो सकती है

थड़ी देर में मैं दीपू के साथ उसके घर से निकल गयी, रस्ते में दीपू ने गाडी एक सुनसान जगह में रोकी और साइड में खड़ा हो कर मुझसे बोला
अब हुई तेरी तसल्ली या नहीं, अब तूने मेरा घर देख लिया मेरी मा और सिस्टर से भी मिल लिया, बस थोड़े दिन में मम्मी को तेरे बारे में बता कर शादी कर लूंगा तुझसे। अब अगर मेरे पर विस्वास हो तो मूड ठीक कर और मेरी बात का ढंग से जवाब दिया कर नहीं तो किसी दिन मेरा माथा ख़राब हुआ तो तेरे मुँह पर तेज़ाब फेक दूंगा फिर किसी के सामने भी नहीं आ पायेग। मैं उसकी धमकी सुन कर डर गयी, मैंने जल्दी से कहा की नहीं अब मुझे ट्रस्ट है, और मैं उस से ढग से बात करुँगी।

उस दिन के बाद से मैं दीपू से ठीक से बात करने लगी और चारा भी क्या था मेरे पास, कुछ दिन ठीक गुज़रे, अब सैलरी मिलने लगी थी तो मैंने अपने लिए कुछ कपडे अच्छे कपडे और नया फ़ोन ले लिया था, घर में बताया की टूशन देने लगी हूँ स्कूल के बाद, किसी को खास पवाह तो थी नहीं बस दादी खुश थी मुझे खुश देख कर, कभी कभी मैं दादी के लिए उनकी पसंद की कुछ चीज़े ला देती थी, उस रात वाली घटना के बाद से दादी से मेरा लगाव बढ़ गया था, मैं अपनी सैलरी में से माँ को भी थोड़े पैसे दे देती थी ताकि घर के खर्चो में मदद हो सके, मुझे अच्छा लगने लगा था की चलो घर की कुछ तो स्तिथि ठीक हुई।

एक संडे मैं घर पर थी की अचानक गेट बजा मैने भाग कर खोला तो एक अजनबी खड़ा था, चालीस बयालीस की उम्र का, देखने से लगा रहा था की कोई सभ्य व्यक्ति है, मैंने पूछा क्या काम है तो उसने उसने उल्टा पूछा की क्या ये सविता कुमारी यही रहती है ? हाँ मेरी मम्मी है सविता कुमारी। आप कौन ? ये सुन कर उस आदमी के मुँह से एक चैन की साँस निकली, उसने फिर मुझसे पूछा क्या तुम सरिता की बेटी हो ? मैं तो और क्या ?

ये सुन कर उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी फिर उसने प्यार से मेरे सर हाथ रखा और बोला, जा कर मम्मी को बता दे की तेरा मामा आया है। मैं मामा सुन कर एक दम शोकेड रह गयी और फिर झट से उनके गले लग गयी। जीवन में पहली बार कोई नानी की साइड से हमारे घर आया था या मैं मिली थी , पापा जबसे से मम्मी को बिहार से बियाह के लाये थे तब से न कभी मम्मी अपने गांव गयी और ना वहा से कोई आया था , मैं मामा का हाथ पकडे पकडे घर के अंदर ले आयी, मैंने मामा को चारपाई पर बिठाया और मम्मी को बुला लायी,
मम्मी मामा को देख कर ठिठकी और फिर उनके गले लग गयी, दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे, थोड़ी देर में जब सब शांत हुए तो मामा ने बताया की नाना की डेथ हो गयी है और नानी बहुत बीमार है और उनका समय नज़दीक है वो जाने से पहले एक बार अपनी बेटी को देखना चाहती है,

ये सुन कर पता नहीं क्यों मम्मी भड़क गयी और मामा के साथ जाने के लिए साफ़ मना कर दिया और चिल्ला कर बोली जब उन्होंने बिना मेरी मर्ज़ी के एक बुड्ढे दूबयाहता से मेरी शादी कर दी तब सोचना था ना अब बेकार का प्रेम किस लिए, मैंने तो कसम खा ली है की मैं मरे मु भी ना देखु उनमे से किसी को और अच्छा हुआ बुड्ढा मर गया अगर मेरे सामने आता तो कही मैं ही ना मार देती उसको, अपनी माँ के ये रूप देख कर मैं डर गयी, मामा ने बहुत हाथ पैर जोड़ा पर मम्मी नहीं मानी, आखिर थोड़ी देर बाद मामा मायूस हो कर जाने लगे, जाते जाते उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और गले से लगा कर बोले, दीदी नाराज़ है शायद माँ बाउजी ने उनके साथ गलत किया लेकिन बेटा मैं तब खुद छोटा था तो कुछ नहीं कर पाया, तेरी माँ न सही लेकिन तू कभी एक बार अपने ननिहाल ज़रूर आना, पहले हमारे आर्थिक हालत भी कुछ खास नहीं थे लेकिन अब मेरी शहर में २ कपडे की दूकान है और ईश्वर की खूब किरपा है कह कर उन्होंने अपनी जेब से पांच सौ के कुछ नोट निकले और मेरी मुट्ठी में रख कर चले गए।

उस दिन मुझे अपनी मम्मी से बड़ी नफरत हुई, बेचारे मामा पता नहीं कहा कहाँ धक्के खा कर यहाँ पहुंचे थे और मम्मी ने पानी तक नहीं पूछा था, मुझे मामा बहुत अच्छे लगे थे पढ़े लिखे और समझदार, जाते जाते मैंने उनको अपना नंबर दे दिया था। पापा रात में जब घर आये तो मम्मी ने बतया की उनका भाई शम्भू आया था बिहार से तो पापा ने बहुत गलियां दी मामा को "अब आये साले पहले तो पूरा जीवन पूछा नहीं" , फिर जब पता चला की मुझे पैसे पकड़ा के गए है तो झट से वो पैसे मुझसे छीन लिए, उनके दारु के खर्चे का इंतिज़ाम जो हो गया था।

कुछ दिन बाद नवरात्रे आगये , मम्मी व्रत रखती थी लेकिन मैं नहीं, जीवन में इतने दुःख देख लिए थे की अब भगवान पर से विश्वास उठ गया था, लेकिन समस्या ये थी की मैंने जॉब का नहीं बता रखा था और दशरे से पहले सब स्कूल बंद थे तो मैंने दीपू को ये समस्या बताई तो उसने मुझे छुट्टी दिला दी ऑफिस से, छठे नवरात्रे को मम्मी ने सुबह ही बता दिया की वो आज शाम में जगराते में और अष्ठमी पूजने के बाद ही घर आएँगी, वो उसी बाबा के आश्रम में रुकेंगी, ये अब हमारे लिए कोई नयी बात नहीं थी , जब से मम्मी इस बाबा के चक्कर में पड़ी थी तब से वो अक्सर आश्रम में रुक जाती थी जिस दिन कोई स्पेशल प्रोग्राम होता था। मेरा ऑफिस का ऑफ था तो मैं मुस्कान और कोमल के साथ मेला घूमने चली गयी , जब से दीपू ने कोमल से मिलवाया था तब से मेरी उस से खूब दोस्ती हो गयी थी और हम अक्सर फ़ोन पर घंटो बातें करती थी, दीपू भी नहीं टोकता था और मैं दीपक की बकवास और वही सेक्स करनी की रोज़ रोज़ की डिमांड से बच जाती थी।

मेला घूमने के बाद जब हल्का धुंधला होने लगा तब हम घर लौट आये, कोमल रिक्शे से अपने घर चली गयी और मुस्कान मेरी साथ वापिस आयी, उसका घर मेरे घर से थोड़ा पहले पड़ता था तो वो अपने घर में घुस गयी।

मैं घर पहुंची घर का दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने चारपाई पर पापा बैठे हुए थे और उनके सामने टेबल पर शराब की बोतल और दो गिलास रखे हुए थे। पापा मुझे देख कर चिल्लाये कहा मर रही थी सुबह से कब से तेरा इन्तिज़ार कर रहा हूँ, मैं उनके चिल्लाने से सहम गयी और बिना कुछ बोले दादी के रूम में भाग गयी, पीछे से पापा की फिर आवाज़ आयी भाग कहा रही है ये ले और इसको जल्दी से पका दे बहुत भूख लग रही है, मैंने दादी की ओर देखा बेचारी दादी क्या बोलती मुझे इशारे से बाला की जा जो कह रहा कर दे , मैं वापस पापा के पास गयी तो उन्होंने एक पन्नी मुझे पकड़ा दी , पन्नी में मुर्गे का मीट था, मैंने पापा की ओर हैरत से देखा ,,,,, "पापा हां मीट ही तो है, आज तेरी माँ नहीं है घर में जा जल्दी से अच्छे ढंग से मीट बना ला", मैं मीट खाती थी लेकिन जब से मम्मी ने पूजा पाठ स्टार्ट करि थी तब से छूट गया था और फिर आज पापा लाये वो भी नवरात्रे में, मैंने बिना कुछ बोले किचन में चली गयी और खाना बनाने लगी, मैंने जैसे ही खाना चढ़या था की दरवाज़े से मुझे वही हरामखोर रमेश आता दिखाई दिया, हरामी की शकल ही ऐसी थी की मेरी आत्मा जल जाती थी, मैं दादी के पास आयी की वो क्या खाएंगी घर में कुछ खास था नहीं अब पापा कुछ लाने बहार नहीं भेजंगे, दादी ने बोलै की दिन की थोड़ी दाल बची है वो उसी को खा लेंगी और अगर मेरी इच्छा है तो मैं चिकन खा लू भूखी सोने से तो अच्छा ही है,

मैंने जल्दी जल्दी चिकेन बनाया और रोटी सेंक दी जब तक खाना तैयार हुआ तबतक आठ बजे चुके थे मैंने पापा को बताय की खाना रेडी है तो उन्होंने बोलै की सब यही उठा ला। मैं चिकेन की कढ़ाई और रोटी का डिब्बा दे आयी , फिर पापा ने आवाज़ लगायी की चंदू अपना खान तो ले जा, पापा ने दो रोटी और थोड़ा चिकेन एक कटोरी दाल के मुझे दे दिया और फिर वो रमेश के साथ के साथ दारू पिने लगे, जब मैं खाना ले रही तब रमेश मेंरे जिस्म को घूर घूर कर अजीब सी हसी है रहा था, जब मैंने खाना ले कर पलटी तो उसने पता नहीं पापा से क्या कहा की दोनों है है है करके भद्दी हसी हसने लगे , मैंने अपने कमरे में आकर दादी को खाना खिलाया और उनको दवाई खिला कर सुला दिया, मैं थोड़ी देर पहले बहार से घूम फिर कर आयी थी और बहार सहेलियों के साथ कुछ खा लिया था इसलिए मैंने खाना साइड में रख दिया, तभी दीपू की कॉल आगयी और मैं उस से बात करने लगी, दादी गहरी नींद में थी तो उनसे कोई डर नहीं था, मैंने एक डेढ़ घंटा बात करने के बाद फ़ोन रख दिया की इतनी देर में पापा ने आवाज़ दी मैं भाग कर उनके पास पहुंची तो देखा उन्होंने नई बोत्तोल खोल ली थी, पापा ने ठंडा पानी लाने के लिए बोला , मैंने पानी ला कर दे दिया फिर पापा ने पूछा खाना खा लिया ? मैंने कहा नहीं बस अब खाने जा रही हूँ

मैंने कमरे में वापस आके खाना खाया और फिर बर्तन एक साइड करके मोबाइल चलने लगी, कोई 10-१५ मं बीते होनेगे की मुझे बहुत तीज नींद आयी और मैं फ़ोन साइड में रख कर सो गयी।

सोते सोते अजीब सा सपना आने लगा जैसे हवा में उड़ रही हूँ लेकिन चारो ओर अँधेरा है और फिर इस अँधेरे के आगे हल्का उजाला, अजीब सा सपना ऐसा सपना कभी नहीं आया, मेरे हाथ पैर बिलकुल सुन्न लटके हुए मनो इनमे जान ही ना हो, आँख खोलने की कोशिश की आँख अभी नहीं खुल पा रही, आँख की झिरी से हल्का हल्का एक साया जैसा दिख रहा था फिर वो साया मेरे पास आया और मेरे जिस्म पर हाथ फेरने लगा, उसके जिस्म से बड़ी अजीब बदबू आरही थी मनो शराब पि राखी हो, मेरा दिमाग बिकुल धुंधलाया हुआ था फिर भी मैंने अपनी आँख की झिरी से देख के जान लिया था वो मादरचोद रमेश था, रमेश एक हाथ से मेरा शरीर सहला रहा था तो दूसरे हाथ से मेरे गाल को सहला रहा था, मनो पक्का कर रहा हो की मैं नींद में हूँ की नहीं, पता नहीं कैसी अजीब नींद थी की मैं चाह कर भी न चिल्ला पा रही थी और ना अपने हाथ पाओ हिला प् रही थी,

एक बार रमेश ने जो ज़ोर से मेरा सर हिलाया तो मैंने देखा पापा उसके बगल में खड़े थे और रमेश उनके सामने उनकी कुवारी बेटी के जिस्म से खेल रहा था, रमेश को जब पक्का हो गया की मैं नींद में हूँ तो उसने मेरे टॉप को मेरे जिस्म से नोच फेका फिर मेरे अधनंगे जिस्म से खेलने लगा, रात में घर में मैं ब्रा नहीं पहनती थी इसलिए मैंने ब्रा नहीं डाली थी, मेरी कच्ची चूचियों के देख के रमेश पागल से हो गया और मेरी चूचियों पर टूट पड़ा, मेरा मन कर रहा था की मैं उस हरामी रमेश का मुँह नोच लू लेकिन मेरे शरीर को तो जैसे लकवा मार गया था तभी चूचियां पीते रमेश को पापा ने एक धक्का दिया और उसे मेरे जिस्म से अलग कर दिया, मुझे लगा की अब मैं बच गयी लेकिन कितना गलत थी मैं, पापा रमेश को हटा कर बड़बड़ाये, बहनचोद मेरी बेटी है इस कच्चे माल को तो सबसे पहले मैं चखूँगा और वो खुद मेरी चूचियां अपने मुँह में लेकर चूसने लगे, मेरा दिमाग पहले से ही बोझिल था पता नहीं इन हरामियों ने कौन सी नशे की दवाई खिलाई थी की मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी,

पापा मेरी एक चुकी को चूस रहे थे और और दूसरी को अपने कठोर हाथ से बेदर्दी से रगड़ रहे थे की तभी रमेश ने उनका हाथ खींच कर अलग किया और बड़बड़ाया, साले मैंने तुझे सरिता जैसी चुड़क्कड़ दिलाई, साले मेरा एहसान भूल गया ? चल एक चूची तू पि दूसरी मैं पियूँगा, हाय हम जैसो को तो भगवान जीवन में कभी कभार ऐसा कुंवारा माल देता है, आज नहीं छोडूंगा बहनचाओद क्या कड़क माल है, बहनचोद अगर आज इसको चोद दिया तो जीवन सफल हो जायेगा, फिर वो मेरी दूसरी चूची पर टूट पड़ा, कभी मेरी चूची पीता और कभी मेरी चूची का निप्पल दांत से काटता, अजीब सा नशा था ना कुछ फील हो रहा था और ना आवाज़ निकल रही थी । मेरी दोनों चूचियों पर दोनों किसी जानवर के जैस लगे पड़े थे की अचानक रमेश ने मेरी लेग्गिंग्स खींच के एक झटके में मुझे नंगा कर दिया, मेरे जिस्म से लेगिंग्स हट्टे ही पता नहीं कहा से मेरे शरीर में इतनी ताकत आयी की मैंने अपनी टांग से रमेश को धक्का दे दिया, रमेश बेड से गिर पड़ा और उसका सर दीवार से ज़ोर से टकराया,

दीवार से सर टकराते ही रमेश के मुँह से एक ज़ोर की कराह निकली और वो चिल्ला कर गालीदेने लगा, बहनचोद, बहिन की लौड़ी ने मार दिया बहनचोद, पापा भी घबरा गए और मेरी चूची छोड कर रमेश को सँभालने के लिए उठे, फिर दोनी गलियां देते हुए मेरे जिस्म पर टूट पड़े की तभी पता नहीं कहा से एक डंडा रमेश के सर पर पड़ा और फिर वो डंडा दुबारा हवा में उठा और पापा के कंधे की चमड़ी उधेर गया, बड़ी मुश्किल से मैंने गर्दन घुमाई तो देखा दरवाजे पर दादी डंडा लिए खड़ी है और बिना सोचे समझे रमेश और पापा पर वार कर रही है, दादी बूढी हो चुकी थी चला फिर भी नहीं जाता था लेकिन आज अपनी पोती की इज़्ज़त लूटने से बचने आगयी थी, दादी के लट्ठ से बच कर दोनों आंगन में भागे मुझे बहार से उनके भागने की फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी फिर बंद होने की, थोड़ी देर में दादी लंगड़ाते हुए कमरे में आयी और मेरे सर को अपनी गोद में ले कर फुट फुट कर रोने लगी, बार बार मुझसे माफ़ी मांग रही थी की ये सब उनकी गलती है, काश की मैंने बचपन में ही इसे मार दिया होता, मैंने बेटे की चाह में अपनी बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया फिर पोतियों की जान ले ली शायद इसीलिए भगवान मुझे सजा दी है ऐसी नर पिशाच जैसी संतान दे कर । दादी मेरे सर सहलाती रही और रोती रही, मेरे दिमाग पर फिर से नशा सा छाने लगा और मैं गहरी नींद में सो गयी।
अगले दिन मैं दोपहर तक सोती रही, जब उठी तो दिन चढ़ आया था, देखा तो मैं मम्मी के कमरे में सोई हुई थी और मेरे शरीर पर लेग्गिंग्स उलटी सीडी चड्डी हुई तो और मैं ऊपर से नंगी थी बस एक चादर से ढकी हुई, मैंने जल्दी से पास पड़ा टॉप पहना और हड़बड़ा कर कमरे बहार आयी , दादी कमरे के बहार ही बैठी हुई थी, मुझे देख कर हाल चाल पूछा, एक बल्टोइ में चाय थी उसमे से एक कप में ढाल के मुझे पिने के लिए दिया, मेरा सर चकरा रहा था और एक टीस सी उठ रही थी सर में जैसी कोई दिमाग के अंदर हथोड़ा मार रहा हो, मैंने चाय का कप लेकर स्जल्दी जल्दी चाय पि, चाय पीने से थोड़ी रहत मिली फिर दादी ने मुझे अपनी बाँहों में समेत लिया और रोने लगी, मैं भी उनसे गले लग कर खूब रोई, जब दिन कुछ हल्का हुआ तो दादी ने हाथ मुँह दुला कर खाना खिलाया, शायद दादी ने किसी पडोसी से खाना मंगवाया था, घर में अभी तक न मम्मी का पता था और न पापा का। जैसे तैसे खाना खाने के बाद मैं और दादी अपने कमरे आके बिस्तर पर लेट गए , रात की बात याद करके मुझे रोना आरहा था,
रोते रोते सोच रही थी की कैसी अजीब किस्मत है, इसी दुनियां में ऐसे लोग है जो अगर कोई उनके परिवार पर ऊँगली भी उठा दे तो जान लेने के लिए तैयार है और एक मेरा बाप है जो अपने शराबी यार से नींद की गोली दे कर मेरा रेप करा रहा था, दूसरे से कराना तो तब की तब हरामी खुद अपनी कमसिन बेटी को चोद कर बेटीचोद बनने में लगा हुआ था।
मैं रात की बात सोंच सोंच कर रो रही थी की तभी दादी ने आवाज़ लगायी " चंदू सो गया क्या बेटा " नहीं दादी जाग रही हूँ !
" ठीक है फिर मेरे बिस्तर में आजा " मैं दादी के बिस्तर पर चली गयी और उनसे लिपट कर लेट गयी, एक यही तो थी जिसने एक नहीं दो दो बार मेरी जान बचायी थी। दादी ने भी मुझे कास कर अपने से सत्ता लिए और मुझसे पूछा

दादी : उस लड़के के क्या नाम है चंदू ?
मैं : कौन लड़का दादी ?
दादी : वही जिस से तू रोज़ रात में बात करती है , दर मत मुझे सब सच सच बता की कौन है क्या करता है
मैं क्या बोलती फिर मैंने दादी को सब बता दिया ये भी बता दिया की मैं जॉब करने लगी हूँ

दादी : मुझे थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा था, मैंने तुझे टोका नहीं कभी ये सोच के की तेरे जीवन में पहले ही बहुत दुःख है अगर इस लड़के से बात करके तू खुश है तो तुझे भी खुश होने का पूरा अधिकार है।

मैंने तुझे इस लिए आज पूछा है क्यूंकि एक डेढ़ साल में तू शादी लायक हो जाएगी अगर तू इस लड़के से प्यार करती है तो मैं इस से तेरा बयाह करा दूंगी, मेरे जीवन का अब कोई ठिकना नहीं है और मैं चाहती हूँ की जल्दी से जल्दी तू इस घर से चली जाये और अपने संसार में सुखी रहे। इस परिवार पर बिमला और उसकी पैदा न हुई बेटियों का श्राप है इस घर में कोई सुखी नहीं रह सकता इस लिए तू जल्दी से या तो कहीं और शिफ्ट हो जा या किसी से शादी कर के सुखी जीवन बिता।

मैंने दादी से पूछा की कौन बिमला फिर दादी ने मुझे बिमला और अबॉर्शन की कहानी बताई। मैंने भी दादी को बता दिया की दीपक से मैं मन से प्यार नहीं करती बस मजबूरी है, लेकिन फिर भी अगर वाक़ई शादी के लिए तैयार है तो मैं शादी कर सकती हूँ केवल इसलिए की मुझे इस घर से छुटकारा मिल सके, उसका घर परिवार अच्छा है और बहुत अमीर तो नहीं लेकिन एक अच्छा जीवन जीने लायक पैसे है बस ये और बात है की जब जब दीपक मुझे छूता या प्यार करता है तो मुझे पता नहीं क्यों कुछ भी फील नहीं होता शायद मैं ऐसी ही हूँ जिसको सेक्स का फील नहीं आता। मैंने दादी को विश्वास दिलाया की वो चिंता न करे जिस दिन भी मुझे लगेगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए मैं दीपक के घर चली जाउंगी फिर चाहे उसकी ख़ुशी के लिए बिना फील के ही क्यों न सेक्स करना पड़े।

रात ऐसी ही खमोशी से गुज़री, हमने दिन का बचा खुचा खा कर गुज़ारा कर लिया था, सुभह मम्मी घर आगयी, उनका चेहरा खिला खिला और खुश था आखिर होता भी क्यों ना वो बाबा के आश्रम से आयी थी और प्रसाद में ढेर साड़ी पूरी सब्जी और हलुआ लायी थी, उन्होंने मुझे नहाने के बोलै और और जब मैं नाहा कर वापिस आयी तो जल्दी से प्रसाद थाली में लगा कर परोस दिया, मैं अपने दुःख में भूल ही गयी थी की आज दुर्गा अष्टमी थी आज के दिन कंजिका पूजी जाती है , हाय रे किस्मत जहा बेटियों को देवी मान कर पूजा जाता है वही एक कलयुगी बाप अपनी खुद की बेटी को छोड़ने की धुन में लगा हुआ था, मैंने चुपचाप खाना खाया और दादी को भी खिलाया, माँ ने दादी से पापा का पूछा तो दादी ने बोल दिया की रात में उसने हद से ज़्यदा शराब पि ली थी और चन्द्रमा से जबरदस्ती चिकन बनवा के खाया था तो मैंने लट्ठ मार कर घर से निकल दिया, दादी ने मेरे साथ हुई घटना माँ को नहीं बताई, शायद उनको डर था की कही घर में माँ कोई कलेश न कर दे, वैसे भी बूढ़ा इंसान कलेश से डरता है,

दीपक का कल से कई बार कॉल आया लेकिन मैंने कॉल नहीं उठाया, फिर कोमल का फोन आया तो मैंने फ़ोन उठा के बोल दिया की मेरी तबियत ख़राब है प्लीज मुझे डिस्टब न करे कोई, शाम में फिर एक अनजान नंबर से कॉल आया तो मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन जब 2-३ बार आया तो मैंने गुस्से से झल्ला कर बोला " जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नहीं आता क्या फ़ोन रखो चुपचाप " लेकिन तभी उधेर से आती आवाज़ सुन कर मैं चौंक गयी। "क्या हुआ चंदू बेटा क्या मेरा कॉल करना अच्छा नहीं लगा ? तुमने ही नंबर दिया था तो सोचा आज तुमको कॉल आकर लूँ "

मैं एक डैम से हड़बड़ा गयी ये तो मामा जी की आवाज़ थी, हम हरयाणा के और वो बिहार के तो मुझे झट से उनके टोन से पहचान हो गयी
मैं : सॉरी मामा जी वो कोई परेशां कर रहा था तो उसी को दांत रही थी, आप कैसे है
मामा : मैं ठीक हूँ बेटा , अच्छा सुनो दिन पहले तुम्हारी नानी गुज़र गयी, मैंने सोचा की तुमको या तुम्हारी माँ को कल करू फिर हिम्मत नहीं हुई बेटा, माँ की आखिरी ख़ाहिश थी तुम्हारी माँ से मिलने की जो पूरी नहीं हो सकी , तुम अपनी माँ को बता देना और एक बात, अगर वो ना आना चाहे तो तुम आ जाओ तेरहवी से पहले क्या तुम भी पूजा में शामिल हो जाओ तो शायद माँ की आत्मा को शांति मिल जाये। वो इतनी बुरी नहीं थी जितना तुम्हारी माँ समझती है, वो ख़राब नहीं थी बस हालत ख़राब थे।

मैं मामा की बात सुन कर रोने लगी और उनसे वडा किया की मैं नानी की तेरहवी में ज़रूर आउंगी।
chandrama ka flashback bahut marmik hai
mujhe pahle hi laga tha uski parivarik prashthbhumi dekhkar

lekin aisa hoga....... ye andaja nahin tha

keep it up
 

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चन्द्रमा की माँ का चरित्र भी संदेह के दायरे में है
सन्यासियों के आश्रमों का ये नया खेल मुझे गंदगी के सिवा कुछ नहीं लगता..........
स्त्रियॉं को पूजा-पाठ के लिए घर और मंदिर होते हुये वो आश्रमों में रहने क्यूँ जाती हैं? अजीब सी बात है....

देखते हैं आगे शायद ये राज भी खुले

अभी तो चंद्रमा को नानी के यहाँ भी जाना है
 
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उस दिन वाटर पार्क वाली घटना के बाद से मैं दीपू से खींची खींची रहने लगी थी, मूड बहुत ख़राब था, पता नहीं क्यों जब भी दीपक मेरे शरीर को छूता तो एक अजीब सी घृणा होती थी मैंने ब्लू फ्लिम में देखा हुआ था की कैसे जब लड़का लड़की एक दूसरे को चूमते या छूते हुए तो कितना मज़ा आता है, मुस्कान ने भी यही बताया था की मर्द जब प्यार करता है या कही छूता है तोह बड़ा मज़ा आता है, बातो बातो में बताया था की यहाँ आने से पहले वो जिस मोहल्ले में रहते थे वहा के एक लड़के से उसका चक्कर था और वो चुपके से रात में वो गली के रस्ते उसकी छत पर आजाता था और और मुस्कान छत के कोने में अपना कमसिन बदन उस लड़के से रगड़वा कर मज़ा पा लेती थी, मुस्कान की सेक्सी बातें सुन कर मेरा भी मचल उठता था की काश मुझे भी कोई ऐसे ही प्यार करे जिसमे मज़ा आये घिन्न नही। खैर सब की इतनी अछि किस्मत कहाँ होती है।

दीपू मेरी इस नाराज़गी से चिढ़ गया था, एक दिन उसने ऑफिस से जल्दी छुट्टी की और मेरी भी छुट्टी करा दी मेरा मन खिन्न हो रहा था लेकिन मैं चुपचाप उसकी बाइक के पीछे बैठ गयी, मैंने पूछा की हम कहा जा रहे है लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, वो मुझे गलियों से घूमता हुआ एक मकान के आगे रुक गया और मुझे उतरने के लिए बोला तो मैंने मना कर दिया, मैं ऐसे अनजान घर में जाने से कतरा रही थी, तभी घर का गेट खुला और लगभग मेरी उम्र की एक सांवली लेकिन आकर्षक लड़की सामने कड़ी थी, लड़की ने साफ़ सुथरे कपडे डाल रखे थे और हल्का सा मेकअप किया हुआ था जिस से वो बड़ी प्यारी लग रही थी। उसने दरवाज़ा खोल कर जोश से हेलो कहा और और हमे अंदर आने का इशारा किया, दीपू चुपचाप घर के अंदर चला गया मजबूरी में मैं भी उसके पीछे पीछे अंदर आगयी, मैं वह कोई ड्रमा नहीं करना चाहती थी बिना जाने के ये किसका घर है लेकिन जिस कॉन्फिडेंस से दीपू अंदर आगे था उस से लगा की ये उसी घर है ,

अंदर जाकर मैं चुपचाप सोफे पर बैठ गयी वो लड़की झट से गिलास में पानी ले आयी और हाथ बढ़ा कर हेलो किया और बोली " मेरा नाम कोमल है भाभी "
मैं भाभी सुन कर चौंक गयी,,,, तो कोमल खिलखिला कर बोली " भाभी भैया ने मुझे सब बता दिया है, आप बहुत प्यारी है, मेरे भैय्या की चॉइस बड़ी अच्छे है " ये सुन कर मैं शर्मा गयी, दीपू ने कभी इतना खुल कर अपने परिवार के बारे में नहीं बताया था, आज अचानक लेकर आगया था वो मेरा झिझकना सवाभाविक था।

थोड़ी देर में दीपू कपडे चेंज करके आगया और वो भी वही एक सोफे पर बैठ गया, कोमल जल्दी से नास्ते का सामान और कोल्डड्रिंक उठा लायी, हम तीनो ने साथ नाश्ता किया और इधर उधर की बातें की, कोमल मुझसे एक क्लास नीचे थी यानि दसवीं में पढ़ती थी, और बहुत चंचल सवभाव की थी, मुझे उस से मिलकर अच्छा लगा, अभी हम इधर उधर की बातें कर ही रहे थे की अचानक किसी ने गेट खटखटाया दीपू ने उठ कर खोला सामने एक चालीस पैंतालीस साल की महिला खड़ी थी जो सीधा अंदर आयी , मुझे सोफे में बैठा देख कर एक मिनट के लिए ठिठकी और फिर मुस्कुराकर पूछा " ये कौन है ? "''''''

इस से पहले मैं कुछ बोलती, कोमल झट से बोल पड़ी, मम्मी ये चन्द्रमा दी है मेरे स्कूल में पढ़ती है लेकिन अब हम दोस्त है, मैं कोमल के साफ़ झूट बोलते देख कर दंग रह गयी, दीपू की माँ ने हमे बैठने का इशारा किया और अंदर चली गयी, अपनी मम्मी के अंदर जाते ही मेरे कान में फुसफुसाई, भैय्या ने अभी केवल मुझे बताया है अपने अफेयर के बारे में मम्मी को नहीं पता तो आगे से मैं आपको चंदू दी ही बुलया करुँगी , ठीक है ना ? मैंने हाँ में गर्दन हिला दी, अभी मेरी उम्र ही क्या थी भाभी सुनना बड़ा अजीब लगा रहा था, कुछ देर कोमल मुझे घर दिखने ले गयी, छोटा सा माकन था लेकिन साफ़ सुथरा और तरीके से बना हुआ, नीचे दो कमरे एक छोटा सा ड्रिंगरूम और किचेन, ऊपर दो कमरे और एक छोटा किचेन था थोड़ा सा खुला एरिया था, कुल मिला कर ठीक ठाक खाती पीती फॅमिली थी।

कुछ देर बैठ कर मैंने घर चलने का बोला तो कोमल माँ के सामने दीपू से बोली की भैय्या चंदू दी को उनके घर ड्राप कर दो, उसकी मम्मी ने भी बोल दिया की हाँ छोड़ आओ आने में रात हो जाएगी कोमल को तो दिक्कत हो सकती है

थड़ी देर में मैं दीपू के साथ उसके घर से निकल गयी, रस्ते में दीपू ने गाडी एक सुनसान जगह में रोकी और साइड में खड़ा हो कर मुझसे बोला
अब हुई तेरी तसल्ली या नहीं, अब तूने मेरा घर देख लिया मेरी मा और सिस्टर से भी मिल लिया, बस थोड़े दिन में मम्मी को तेरे बारे में बता कर शादी कर लूंगा तुझसे। अब अगर मेरे पर विस्वास हो तो मूड ठीक कर और मेरी बात का ढंग से जवाब दिया कर नहीं तो किसी दिन मेरा माथा ख़राब हुआ तो तेरे मुँह पर तेज़ाब फेक दूंगा फिर किसी के सामने भी नहीं आ पायेग। मैं उसकी धमकी सुन कर डर गयी, मैंने जल्दी से कहा की नहीं अब मुझे ट्रस्ट है, और मैं उस से ढग से बात करुँगी।

उस दिन के बाद से मैं दीपू से ठीक से बात करने लगी और चारा भी क्या था मेरे पास, कुछ दिन ठीक गुज़रे, अब सैलरी मिलने लगी थी तो मैंने अपने लिए कुछ कपडे अच्छे कपडे और नया फ़ोन ले लिया था, घर में बताया की टूशन देने लगी हूँ स्कूल के बाद, किसी को खास पवाह तो थी नहीं बस दादी खुश थी मुझे खुश देख कर, कभी कभी मैं दादी के लिए उनकी पसंद की कुछ चीज़े ला देती थी, उस रात वाली घटना के बाद से दादी से मेरा लगाव बढ़ गया था, मैं अपनी सैलरी में से माँ को भी थोड़े पैसे दे देती थी ताकि घर के खर्चो में मदद हो सके, मुझे अच्छा लगने लगा था की चलो घर की कुछ तो स्तिथि ठीक हुई।

एक संडे मैं घर पर थी की अचानक गेट बजा मैने भाग कर खोला तो एक अजनबी खड़ा था, चालीस बयालीस की उम्र का, देखने से लगा रहा था की कोई सभ्य व्यक्ति है, मैंने पूछा क्या काम है तो उसने उसने उल्टा पूछा की क्या ये सविता कुमारी यही रहती है ? हाँ मेरी मम्मी है सविता कुमारी। आप कौन ? ये सुन कर उस आदमी के मुँह से एक चैन की साँस निकली, उसने फिर मुझसे पूछा क्या तुम सरिता की बेटी हो ? मैं तो और क्या ?

ये सुन कर उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी फिर उसने प्यार से मेरे सर हाथ रखा और बोला, जा कर मम्मी को बता दे की तेरा मामा आया है। मैं मामा सुन कर एक दम शोकेड रह गयी और फिर झट से उनके गले लग गयी। जीवन में पहली बार कोई नानी की साइड से हमारे घर आया था या मैं मिली थी , पापा जबसे से मम्मी को बिहार से बियाह के लाये थे तब से न कभी मम्मी अपने गांव गयी और ना वहा से कोई आया था , मैं मामा का हाथ पकडे पकडे घर के अंदर ले आयी, मैंने मामा को चारपाई पर बिठाया और मम्मी को बुला लायी,
मम्मी मामा को देख कर ठिठकी और फिर उनके गले लग गयी, दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे, थोड़ी देर में जब सब शांत हुए तो मामा ने बताया की नाना की डेथ हो गयी है और नानी बहुत बीमार है और उनका समय नज़दीक है वो जाने से पहले एक बार अपनी बेटी को देखना चाहती है,

ये सुन कर पता नहीं क्यों मम्मी भड़क गयी और मामा के साथ जाने के लिए साफ़ मना कर दिया और चिल्ला कर बोली जब उन्होंने बिना मेरी मर्ज़ी के एक बुड्ढे दूबयाहता से मेरी शादी कर दी तब सोचना था ना अब बेकार का प्रेम किस लिए, मैंने तो कसम खा ली है की मैं मरे मु भी ना देखु उनमे से किसी को और अच्छा हुआ बुड्ढा मर गया अगर मेरे सामने आता तो कही मैं ही ना मार देती उसको, अपनी माँ के ये रूप देख कर मैं डर गयी, मामा ने बहुत हाथ पैर जोड़ा पर मम्मी नहीं मानी, आखिर थोड़ी देर बाद मामा मायूस हो कर जाने लगे, जाते जाते उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और गले से लगा कर बोले, दीदी नाराज़ है शायद माँ बाउजी ने उनके साथ गलत किया लेकिन बेटा मैं तब खुद छोटा था तो कुछ नहीं कर पाया, तेरी माँ न सही लेकिन तू कभी एक बार अपने ननिहाल ज़रूर आना, पहले हमारे आर्थिक हालत भी कुछ खास नहीं थे लेकिन अब मेरी शहर में २ कपडे की दूकान है और ईश्वर की खूब किरपा है कह कर उन्होंने अपनी जेब से पांच सौ के कुछ नोट निकले और मेरी मुट्ठी में रख कर चले गए।

उस दिन मुझे अपनी मम्मी से बड़ी नफरत हुई, बेचारे मामा पता नहीं कहा कहाँ धक्के खा कर यहाँ पहुंचे थे और मम्मी ने पानी तक नहीं पूछा था, मुझे मामा बहुत अच्छे लगे थे पढ़े लिखे और समझदार, जाते जाते मैंने उनको अपना नंबर दे दिया था। पापा रात में जब घर आये तो मम्मी ने बतया की उनका भाई शम्भू आया था बिहार से तो पापा ने बहुत गलियां दी मामा को "अब आये साले पहले तो पूरा जीवन पूछा नहीं" , फिर जब पता चला की मुझे पैसे पकड़ा के गए है तो झट से वो पैसे मुझसे छीन लिए, उनके दारु के खर्चे का इंतिज़ाम जो हो गया था।

कुछ दिन बाद नवरात्रे आगये , मम्मी व्रत रखती थी लेकिन मैं नहीं, जीवन में इतने दुःख देख लिए थे की अब भगवान पर से विश्वास उठ गया था, लेकिन समस्या ये थी की मैंने जॉब का नहीं बता रखा था और दशरे से पहले सब स्कूल बंद थे तो मैंने दीपू को ये समस्या बताई तो उसने मुझे छुट्टी दिला दी ऑफिस से, छठे नवरात्रे को मम्मी ने सुबह ही बता दिया की वो आज शाम में जगराते में और अष्ठमी पूजने के बाद ही घर आएँगी, वो उसी बाबा के आश्रम में रुकेंगी, ये अब हमारे लिए कोई नयी बात नहीं थी , जब से मम्मी इस बाबा के चक्कर में पड़ी थी तब से वो अक्सर आश्रम में रुक जाती थी जिस दिन कोई स्पेशल प्रोग्राम होता था। मेरा ऑफिस का ऑफ था तो मैं मुस्कान और कोमल के साथ मेला घूमने चली गयी , जब से दीपू ने कोमल से मिलवाया था तब से मेरी उस से खूब दोस्ती हो गयी थी और हम अक्सर फ़ोन पर घंटो बातें करती थी, दीपू भी नहीं टोकता था और मैं दीपक की बकवास और वही सेक्स करनी की रोज़ रोज़ की डिमांड से बच जाती थी।

मेला घूमने के बाद जब हल्का धुंधला होने लगा तब हम घर लौट आये, कोमल रिक्शे से अपने घर चली गयी और मुस्कान मेरी साथ वापिस आयी, उसका घर मेरे घर से थोड़ा पहले पड़ता था तो वो अपने घर में घुस गयी।

मैं घर पहुंची घर का दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने चारपाई पर पापा बैठे हुए थे और उनके सामने टेबल पर शराब की बोतल और दो गिलास रखे हुए थे। पापा मुझे देख कर चिल्लाये कहा मर रही थी सुबह से कब से तेरा इन्तिज़ार कर रहा हूँ, मैं उनके चिल्लाने से सहम गयी और बिना कुछ बोले दादी के रूम में भाग गयी, पीछे से पापा की फिर आवाज़ आयी भाग कहा रही है ये ले और इसको जल्दी से पका दे बहुत भूख लग रही है, मैंने दादी की ओर देखा बेचारी दादी क्या बोलती मुझे इशारे से बाला की जा जो कह रहा कर दे , मैं वापस पापा के पास गयी तो उन्होंने एक पन्नी मुझे पकड़ा दी , पन्नी में मुर्गे का मीट था, मैंने पापा की ओर हैरत से देखा ,,,,, "पापा हां मीट ही तो है, आज तेरी माँ नहीं है घर में जा जल्दी से अच्छे ढंग से मीट बना ला", मैं मीट खाती थी लेकिन जब से मम्मी ने पूजा पाठ स्टार्ट करि थी तब से छूट गया था और फिर आज पापा लाये वो भी नवरात्रे में, मैंने बिना कुछ बोले किचन में चली गयी और खाना बनाने लगी, मैंने जैसे ही खाना चढ़या था की दरवाज़े से मुझे वही हरामखोर रमेश आता दिखाई दिया, हरामी की शकल ही ऐसी थी की मेरी आत्मा जल जाती थी, मैं दादी के पास आयी की वो क्या खाएंगी घर में कुछ खास था नहीं अब पापा कुछ लाने बहार नहीं भेजंगे, दादी ने बोलै की दिन की थोड़ी दाल बची है वो उसी को खा लेंगी और अगर मेरी इच्छा है तो मैं चिकन खा लू भूखी सोने से तो अच्छा ही है,

मैंने जल्दी जल्दी चिकेन बनाया और रोटी सेंक दी जब तक खाना तैयार हुआ तबतक आठ बजे चुके थे मैंने पापा को बताय की खाना रेडी है तो उन्होंने बोलै की सब यही उठा ला। मैं चिकेन की कढ़ाई और रोटी का डिब्बा दे आयी , फिर पापा ने आवाज़ लगायी की चंदू अपना खान तो ले जा, पापा ने दो रोटी और थोड़ा चिकेन एक कटोरी दाल के मुझे दे दिया और फिर वो रमेश के साथ के साथ दारू पिने लगे, जब मैं खाना ले रही तब रमेश मेंरे जिस्म को घूर घूर कर अजीब सी हसी है रहा था, जब मैंने खाना ले कर पलटी तो उसने पता नहीं पापा से क्या कहा की दोनों है है है करके भद्दी हसी हसने लगे , मैंने अपने कमरे में आकर दादी को खाना खिलाया और उनको दवाई खिला कर सुला दिया, मैं थोड़ी देर पहले बहार से घूम फिर कर आयी थी और बहार सहेलियों के साथ कुछ खा लिया था इसलिए मैंने खाना साइड में रख दिया, तभी दीपू की कॉल आगयी और मैं उस से बात करने लगी, दादी गहरी नींद में थी तो उनसे कोई डर नहीं था, मैंने एक डेढ़ घंटा बात करने के बाद फ़ोन रख दिया की इतनी देर में पापा ने आवाज़ दी मैं भाग कर उनके पास पहुंची तो देखा उन्होंने नई बोत्तोल खोल ली थी, पापा ने ठंडा पानी लाने के लिए बोला , मैंने पानी ला कर दे दिया फिर पापा ने पूछा खाना खा लिया ? मैंने कहा नहीं बस अब खाने जा रही हूँ

मैंने कमरे में वापस आके खाना खाया और फिर बर्तन एक साइड करके मोबाइल चलने लगी, कोई 10-१५ मं बीते होनेगे की मुझे बहुत तीज नींद आयी और मैं फ़ोन साइड में रख कर सो गयी।

सोते सोते अजीब सा सपना आने लगा जैसे हवा में उड़ रही हूँ लेकिन चारो ओर अँधेरा है और फिर इस अँधेरे के आगे हल्का उजाला, अजीब सा सपना ऐसा सपना कभी नहीं आया, मेरे हाथ पैर बिलकुल सुन्न लटके हुए मनो इनमे जान ही ना हो, आँख खोलने की कोशिश की आँख अभी नहीं खुल पा रही, आँख की झिरी से हल्का हल्का एक साया जैसा दिख रहा था फिर वो साया मेरे पास आया और मेरे जिस्म पर हाथ फेरने लगा, उसके जिस्म से बड़ी अजीब बदबू आरही थी मनो शराब पि राखी हो, मेरा दिमाग बिकुल धुंधलाया हुआ था फिर भी मैंने अपनी आँख की झिरी से देख के जान लिया था वो मादरचोद रमेश था, रमेश एक हाथ से मेरा शरीर सहला रहा था तो दूसरे हाथ से मेरे गाल को सहला रहा था, मनो पक्का कर रहा हो की मैं नींद में हूँ की नहीं, पता नहीं कैसी अजीब नींद थी की मैं चाह कर भी न चिल्ला पा रही थी और ना अपने हाथ पाओ हिला प् रही थी,

एक बार रमेश ने जो ज़ोर से मेरा सर हिलाया तो मैंने देखा पापा उसके बगल में खड़े थे और रमेश उनके सामने उनकी कुवारी बेटी के जिस्म से खेल रहा था, रमेश को जब पक्का हो गया की मैं नींद में हूँ तो उसने मेरे टॉप को मेरे जिस्म से नोच फेका फिर मेरे अधनंगे जिस्म से खेलने लगा, रात में घर में मैं ब्रा नहीं पहनती थी इसलिए मैंने ब्रा नहीं डाली थी, मेरी कच्ची चूचियों के देख के रमेश पागल से हो गया और मेरी चूचियों पर टूट पड़ा, मेरा मन कर रहा था की मैं उस हरामी रमेश का मुँह नोच लू लेकिन मेरे शरीर को तो जैसे लकवा मार गया था तभी चूचियां पीते रमेश को पापा ने एक धक्का दिया और उसे मेरे जिस्म से अलग कर दिया, मुझे लगा की अब मैं बच गयी लेकिन कितना गलत थी मैं, पापा रमेश को हटा कर बड़बड़ाये, बहनचोद मेरी बेटी है इस कच्चे माल को तो सबसे पहले मैं चखूँगा और वो खुद मेरी चूचियां अपने मुँह में लेकर चूसने लगे, मेरा दिमाग पहले से ही बोझिल था पता नहीं इन हरामियों ने कौन सी नशे की दवाई खिलाई थी की मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी,

पापा मेरी एक चुकी को चूस रहे थे और और दूसरी को अपने कठोर हाथ से बेदर्दी से रगड़ रहे थे की तभी रमेश ने उनका हाथ खींच कर अलग किया और बड़बड़ाया, साले मैंने तुझे सरिता जैसी चुड़क्कड़ दिलाई, साले मेरा एहसान भूल गया ? चल एक चूची तू पि दूसरी मैं पियूँगा, हाय हम जैसो को तो भगवान जीवन में कभी कभार ऐसा कुंवारा माल देता है, आज नहीं छोडूंगा बहनचाओद क्या कड़क माल है, बहनचोद अगर आज इसको चोद दिया तो जीवन सफल हो जायेगा, फिर वो मेरी दूसरी चूची पर टूट पड़ा, कभी मेरी चूची पीता और कभी मेरी चूची का निप्पल दांत से काटता, अजीब सा नशा था ना कुछ फील हो रहा था और ना आवाज़ निकल रही थी । मेरी दोनों चूचियों पर दोनों किसी जानवर के जैस लगे पड़े थे की अचानक रमेश ने मेरी लेग्गिंग्स खींच के एक झटके में मुझे नंगा कर दिया, मेरे जिस्म से लेगिंग्स हट्टे ही पता नहीं कहा से मेरे शरीर में इतनी ताकत आयी की मैंने अपनी टांग से रमेश को धक्का दे दिया, रमेश बेड से गिर पड़ा और उसका सर दीवार से ज़ोर से टकराया,

दीवार से सर टकराते ही रमेश के मुँह से एक ज़ोर की कराह निकली और वो चिल्ला कर गालीदेने लगा, बहनचोद, बहिन की लौड़ी ने मार दिया बहनचोद, पापा भी घबरा गए और मेरी चूची छोड कर रमेश को सँभालने के लिए उठे, फिर दोनी गलियां देते हुए मेरे जिस्म पर टूट पड़े की तभी पता नहीं कहा से एक डंडा रमेश के सर पर पड़ा और फिर वो डंडा दुबारा हवा में उठा और पापा के कंधे की चमड़ी उधेर गया, बड़ी मुश्किल से मैंने गर्दन घुमाई तो देखा दरवाजे पर दादी डंडा लिए खड़ी है और बिना सोचे समझे रमेश और पापा पर वार कर रही है, दादी बूढी हो चुकी थी चला फिर भी नहीं जाता था लेकिन आज अपनी पोती की इज़्ज़त लूटने से बचने आगयी थी, दादी के लट्ठ से बच कर दोनों आंगन में भागे मुझे बहार से उनके भागने की फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी फिर बंद होने की, थोड़ी देर में दादी लंगड़ाते हुए कमरे में आयी और मेरे सर को अपनी गोद में ले कर फुट फुट कर रोने लगी, बार बार मुझसे माफ़ी मांग रही थी की ये सब उनकी गलती है, काश की मैंने बचपन में ही इसे मार दिया होता, मैंने बेटे की चाह में अपनी बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया फिर पोतियों की जान ले ली शायद इसीलिए भगवान मुझे सजा दी है ऐसी नर पिशाच जैसी संतान दे कर । दादी मेरे सर सहलाती रही और रोती रही, मेरे दिमाग पर फिर से नशा सा छाने लगा और मैं गहरी नींद में सो गयी।
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malikarman

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अगले दिन मैं दोपहर तक सोती रही, जब उठी तो दिन चढ़ आया था, देखा तो मैं मम्मी के कमरे में सोई हुई थी और मेरे शरीर पर लेग्गिंग्स उलटी सीडी चड्डी हुई तो और मैं ऊपर से नंगी थी बस एक चादर से ढकी हुई, मैंने जल्दी से पास पड़ा टॉप पहना और हड़बड़ा कर कमरे बहार आयी , दादी कमरे के बहार ही बैठी हुई थी, मुझे देख कर हाल चाल पूछा, एक बल्टोइ में चाय थी उसमे से एक कप में ढाल के मुझे पिने के लिए दिया, मेरा सर चकरा रहा था और एक टीस सी उठ रही थी सर में जैसी कोई दिमाग के अंदर हथोड़ा मार रहा हो, मैंने चाय का कप लेकर स्जल्दी जल्दी चाय पि, चाय पीने से थोड़ी रहत मिली फिर दादी ने मुझे अपनी बाँहों में समेत लिया और रोने लगी, मैं भी उनसे गले लग कर खूब रोई, जब दिन कुछ हल्का हुआ तो दादी ने हाथ मुँह दुला कर खाना खिलाया, शायद दादी ने किसी पडोसी से खाना मंगवाया था, घर में अभी तक न मम्मी का पता था और न पापा का। जैसे तैसे खाना खाने के बाद मैं और दादी अपने कमरे आके बिस्तर पर लेट गए , रात की बात याद करके मुझे रोना आरहा था,
रोते रोते सोच रही थी की कैसी अजीब किस्मत है, इसी दुनियां में ऐसे लोग है जो अगर कोई उनके परिवार पर ऊँगली भी उठा दे तो जान लेने के लिए तैयार है और एक मेरा बाप है जो अपने शराबी यार से नींद की गोली दे कर मेरा रेप करा रहा था, दूसरे से कराना तो तब की तब हरामी खुद अपनी कमसिन बेटी को चोद कर बेटीचोद बनने में लगा हुआ था।
मैं रात की बात सोंच सोंच कर रो रही थी की तभी दादी ने आवाज़ लगायी " चंदू सो गया क्या बेटा " नहीं दादी जाग रही हूँ !
" ठीक है फिर मेरे बिस्तर में आजा " मैं दादी के बिस्तर पर चली गयी और उनसे लिपट कर लेट गयी, एक यही तो थी जिसने एक नहीं दो दो बार मेरी जान बचायी थी। दादी ने भी मुझे कास कर अपने से सत्ता लिए और मुझसे पूछा

दादी : उस लड़के के क्या नाम है चंदू ?
मैं : कौन लड़का दादी ?
दादी : वही जिस से तू रोज़ रात में बात करती है , दर मत मुझे सब सच सच बता की कौन है क्या करता है
मैं क्या बोलती फिर मैंने दादी को सब बता दिया ये भी बता दिया की मैं जॉब करने लगी हूँ

दादी : मुझे थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा था, मैंने तुझे टोका नहीं कभी ये सोच के की तेरे जीवन में पहले ही बहुत दुःख है अगर इस लड़के से बात करके तू खुश है तो तुझे भी खुश होने का पूरा अधिकार है।

मैंने तुझे इस लिए आज पूछा है क्यूंकि एक डेढ़ साल में तू शादी लायक हो जाएगी अगर तू इस लड़के से प्यार करती है तो मैं इस से तेरा बयाह करा दूंगी, मेरे जीवन का अब कोई ठिकना नहीं है और मैं चाहती हूँ की जल्दी से जल्दी तू इस घर से चली जाये और अपने संसार में सुखी रहे। इस परिवार पर बिमला और उसकी पैदा न हुई बेटियों का श्राप है इस घर में कोई सुखी नहीं रह सकता इस लिए तू जल्दी से या तो कहीं और शिफ्ट हो जा या किसी से शादी कर के सुखी जीवन बिता।

मैंने दादी से पूछा की कौन बिमला फिर दादी ने मुझे बिमला और अबॉर्शन की कहानी बताई। मैंने भी दादी को बता दिया की दीपक से मैं मन से प्यार नहीं करती बस मजबूरी है, लेकिन फिर भी अगर वाक़ई शादी के लिए तैयार है तो मैं शादी कर सकती हूँ केवल इसलिए की मुझे इस घर से छुटकारा मिल सके, उसका घर परिवार अच्छा है और बहुत अमीर तो नहीं लेकिन एक अच्छा जीवन जीने लायक पैसे है बस ये और बात है की जब जब दीपक मुझे छूता या प्यार करता है तो मुझे पता नहीं क्यों कुछ भी फील नहीं होता शायद मैं ऐसी ही हूँ जिसको सेक्स का फील नहीं आता। मैंने दादी को विश्वास दिलाया की वो चिंता न करे जिस दिन भी मुझे लगेगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए मैं दीपक के घर चली जाउंगी फिर चाहे उसकी ख़ुशी के लिए बिना फील के ही क्यों न सेक्स करना पड़े।

रात ऐसी ही खमोशी से गुज़री, हमने दिन का बचा खुचा खा कर गुज़ारा कर लिया था, सुभह मम्मी घर आगयी, उनका चेहरा खिला खिला और खुश था आखिर होता भी क्यों ना वो बाबा के आश्रम से आयी थी और प्रसाद में ढेर साड़ी पूरी सब्जी और हलुआ लायी थी, उन्होंने मुझे नहाने के बोलै और और जब मैं नाहा कर वापिस आयी तो जल्दी से प्रसाद थाली में लगा कर परोस दिया, मैं अपने दुःख में भूल ही गयी थी की आज दुर्गा अष्टमी थी आज के दिन कंजिका पूजी जाती है , हाय रे किस्मत जहा बेटियों को देवी मान कर पूजा जाता है वही एक कलयुगी बाप अपनी खुद की बेटी को छोड़ने की धुन में लगा हुआ था, मैंने चुपचाप खाना खाया और दादी को भी खिलाया, माँ ने दादी से पापा का पूछा तो दादी ने बोल दिया की रात में उसने हद से ज़्यदा शराब पि ली थी और चन्द्रमा से जबरदस्ती चिकन बनवा के खाया था तो मैंने लट्ठ मार कर घर से निकल दिया, दादी ने मेरे साथ हुई घटना माँ को नहीं बताई, शायद उनको डर था की कही घर में माँ कोई कलेश न कर दे, वैसे भी बूढ़ा इंसान कलेश से डरता है,

दीपक का कल से कई बार कॉल आया लेकिन मैंने कॉल नहीं उठाया, फिर कोमल का फोन आया तो मैंने फ़ोन उठा के बोल दिया की मेरी तबियत ख़राब है प्लीज मुझे डिस्टब न करे कोई, शाम में फिर एक अनजान नंबर से कॉल आया तो मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन जब 2-३ बार आया तो मैंने गुस्से से झल्ला कर बोला " जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नहीं आता क्या फ़ोन रखो चुपचाप " लेकिन तभी उधेर से आती आवाज़ सुन कर मैं चौंक गयी। "क्या हुआ चंदू बेटा क्या मेरा कॉल करना अच्छा नहीं लगा ? तुमने ही नंबर दिया था तो सोचा आज तुमको कॉल आकर लूँ "

मैं एक डैम से हड़बड़ा गयी ये तो मामा जी की आवाज़ थी, हम हरयाणा के और वो बिहार के तो मुझे झट से उनके टोन से पहचान हो गयी
मैं : सॉरी मामा जी वो कोई परेशां कर रहा था तो उसी को दांत रही थी, आप कैसे है
मामा : मैं ठीक हूँ बेटा , अच्छा सुनो दिन पहले तुम्हारी नानी गुज़र गयी, मैंने सोचा की तुमको या तुम्हारी माँ को कल करू फिर हिम्मत नहीं हुई बेटा, माँ की आखिरी ख़ाहिश थी तुम्हारी माँ से मिलने की जो पूरी नहीं हो सकी , तुम अपनी माँ को बता देना और एक बात, अगर वो ना आना चाहे तो तुम आ जाओ तेरहवी से पहले क्या तुम भी पूजा में शामिल हो जाओ तो शायद माँ की आत्मा को शांति मिल जाये। वो इतनी बुरी नहीं थी जितना तुम्हारी माँ समझती है, वो ख़राब नहीं थी बस हालत ख़राब थे।

मैं मामा की बात सुन कर रोने लगी और उनसे वडा किया की मैं नानी की तेरहवी में ज़रूर आउंगी।
Good one
 
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