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Erotica जवानी जानेमन (Completed)

blinkit

I don't step aside. I step up.
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ap inhein ccopy karke edit karke dobara usi post par edit option se post kar sakte hain koi fark nahin padega..................


chandrama ka flashback bahut marmik hai
mujhe pahle hi laga tha uski parivarik prashthbhumi dekhkar

lekin aisa hoga....... ye andaja nahin tha


keep it up
Thank you for you brother!
 
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blinkit

I don't step aside. I step up.
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मां प्यार का तो बाप भरोसे का प्रतीक होता है, तभी एक बार चंद्रमा को लगा की बाप शायद बचा ले, लेकिन साले कुछ लोग जन्मजात कमीने होते हैं, और उसका बाप इसी श्रेणी का जानवर है।

बढ़िया अपडेट 👍
Bilkul sahi kaha mere dost
 

Naik

Well-Known Member
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सुबह सो कर उठी तो सब कुछ नार्मल था, सब रूटीन जैसा, मैंने पापा की ओर देखा यो उनका भी वही रोज़ जैसा रिएक्शन, मैंने भी इस बात को इग्नोर कर दिया की रात में नशे में पापा का हाथ लग गया होगा, वैसे भी मेरी उनकी कुछ खास बनती तो थी नहीं, ऐसे ही कुछ समय गुज़रा और मेरी दसवीं कम्पलीट हो गयी और मैंने गयारहवी में एडमिशन ले लिया, घर में पैसो को तंगी अक्सर रहती थी और मैं पढाई एवरेज थी तो तो मैं मैंने सोचा की कही पार्ट टाइम जॉब कर लूँ, मेरी साथ की सहेलियों को अक्सर अच्छे कपड़ो और जूतों में देखती तो मेरा भी मन भी मचलता वैसे ही बनने सवरने को लेकिन पैसो की दिक्कत पीछा नहीं छोड़ती तब ना, मेरी आगे १८ से कम थी तो अच्छी जॉब मिलने का चांस भी कम ही था फिर भी मैंने बिना घर में बताये जॉब देखनी स्टार्ट कर दी थी, वैसे भी घर में परवा करने वाला था ही कौन, बाप को शराब से फुर्सत नहीं थी तो माँ को अपने भगवान से , दादी बेचारी शरीर से मजबूर मुश्किल से चल फिर पति थी, वैसे भी समय के साथ मेरा घर से लगाव बिलकुल ख़तम होता जा रहा था और मैं बेसब्री से वक़्त गुज़रने का इन्तिज़ार कर रही इस घर से निकल भागने का।

एक दिन माँ ने मुझे प्रॉपर्टी डीलर के पास भेजा (जिसने हमें से मकान दिलवाया था ) कुछ पेपर किसी कारन से उसी के पास रह गए थे। प्रॉपर्टी डीलर अपनी दूकान पर मौजूद नहीं थी वह एक लड़का मिला, उसने बताया की वो थोड़ी देर में आएगा, मैंने उसका अपने पेपर्स का पूछा तो उल्टा बोलै की अपना नो दे दो मैं जब भैय्या आजायेंगे तो कॉल कर दूंगा आके ले जाना, उसकी आँखे मेरे जिस्म का x-रे कर रही थी, फिर भी मन ना चाहते हुए मैंने उसको अपना नंबर दे दिया, मैंने घर आके मम्मी को बता दिया और अपनी पढाई में लग गयी,

उन्ही दिनों में हमारे पड़ोस में एक नई फॅमिली आयी, उनका भी परिवार हमारी स्तिथि में ही था, खींच खाँच कर अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे वो भी। उनकी एक बेटी थी मुस्कान जो मेरी ही उम्र की थी और क्लास भी सेम थी तो मेरी झट से उस से दोस्ती हो गयी, दोस्त के नाम पर मेरे पास कोई नहीं था तो मुस्कान को दोस्त बना कर मुझे अच्छा लगा और हम दोनों पक्की सहेलियां बन गयी।

एक मैं किसी काम से घर के बहार निकल ही रही थी की अचानक एक लड़कने आवाज़ लगायी, मैंने देखा तो वही पार्टी डीलर वाला लड़का खड़ा था मैं उसको देख कर डर सी गयी, मैंने पूछा क्या है, कहने लगा अरे उस दिन के बाद आप आयी ही नहीं हमारी दूकान पर और जो नंबर दिया उस पर तो कोई लेडीज़ उठती है आप नही।

मैं उसको देख कर पता नहीं क्यीं चिढ सी गयी थी, लफनगा सा लड़का, मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था।
चन्द्रमा : हाँ तो वो मम्मी का फ़ोन है, मेरा पास फ़ोन नहीं है
लड़का : ओह्ह अच्छा कोई बात नहीं
चन्द्रमा : ठीक है मैं जा रही हूँ
लड़का : एक मं मेरी बात सुन लो
चन्द्रमा : हाँ बोलो
लड़का : आपके पेपर्स आपको मिल गए क्या ?
चन्द्रमा : नहीं। , तुम्हारा मालिक बस चक्कर कटवाता है देता नहीं है पेपर्स
लड़का : वो देगा भी नहीं
चन्द्रमा : (गुस्से से ) उसके बाप का माल है क्या घर हमारा है तो पेपर्स भी हमारे है
लड़का : वो ऐसा ही करता है, सब के साथ, उनके कुछ पपेर्स अपने पास रख लेता ताकि जब प्रॉपटी बेचना चाहो तो उसी के थ्रू भेंचो तो उसको डबल कमीशन मिलेगा बाकि वो कब्ज़ा नहीं करेगा बस
चन्द्रमा : मैं पुलिस को कम्प्लेन करूँगाी
लड़का : हाँ ये भी करके देख लो, उसका भाई है थाने में सब मिली भगत से हो रहा है

मैं रुहांसि हो गयी, ले दे कर एक ये मकान ही तो है पता नहीं कुछ गड़बड़ हो गयी तो सड़क पर आजायेंगे, फिर अचानक मेरे दिमाग में आया की आखिर ये मुझे इतना कुछ क्यों बता रहा है और ये इतना मेहरबान क्यों हो रहा है ?

चन्द्रमा : तो भैय्या तुम मुझे ये सब क्यों बता रहे हो ?
लड़का : सबसे पहले तो मुझे भैय्या मत बोलो, दूसरी बात ये की मैं एक दिन में ये नौकरी छोड़ना वाला हूँ
चन्द्रमा : अच्छा फिर ?
लड़का : फिर ये की मैं तुमको तुम्हारे पेपर निकल के दे सकता हूँ , मैंने तुम्हारे पेपर्स देखे है
चन्द्रमा : ठीक है आप दिला दो मैं मम्मी को बोलके आपको पैसा दिला दूंगी कुछ ना कुछ
लड़का : ना ना ना ,,,,,मुझे पैसे नहीं चाहिए
चन्द्रमा : फिर क्या चाहिए ?
लड़का : मैं पेपर्स केवल एक शर्त पर और केवल तुमको दूंगा, और वो शर्त है की मैं तुमसे फ्रैंडशिप करना चाहता हूँ
चन्द्रमा : जी नहीं मैं ऐसे किसी से फ्रैंडशिप नहीं कर सकती सॉरी
लड़का : फिर ठीक है, ये भी सोंच लो पेपर नहीं मिलेंगे,

मैं मन ही मन कोसने लगी की ये क्या नयी मुसीबत है, लेकिन ये लड़का जो भी बोल रहा था सच बोल रहा था, क्यूंकि मैं और मम्मी पता नहीं कितनी बार जा चुके थे उस प्रॉपर्टी वाले के पास लेकिन हर बार वो कुछ न कुछ बहाना बना कर टाल देता था, और यही काम उसने मुस्कान के परिवार के साथ किया था तो जो भी था इस लड़के की बात में झूठ नहीं था, मेरे पास भी कोई चारा था और मैंने कहा ठीक है मैं फ्रैंडशिप के तैयार हूँ लेकिन ओनली फ्रैंडशिप और कुछ नहीं।

वो झट से खुश हो गया बोला ठीक है, अब जल्दी से अपना नंबर दो मैं जब कॉल करूँगा तब मिलने आजाना, मैंने उसको बताया की मेरे पास फ़ोन नहीं है तो वो थोड़ा मेस हुआ, फिर मुझे याद आया की मुस्कान के पास है उसका अपना पर्सनल फ़ोन तो मैंने उसको मुस्कान का नो दे दिया और बताया की हम दोनों अक्सर दोपहर में साथ होते है और पढाई करते है। वो नंबर लेकर चला गया और जाते जाते अपना नाम दीपक बताया।

उस दिन के बाद दीपक अक्सर मुस्कान के नंबर पर कॉल करके बात करता था, कुछ दिन बात करके पता चला की वो रोहतक का रहने वाला है और यहाँ अपनी माँ और सिस्टर के साथ रहता है, माँ एक पार्लर में काम करके गुज़ारा करती है, उसकी पिता की डेथ हो गयी थी काफी पहले और उनकी पेंशन आती है, डबल इनकम होने के कारन उसकी आर्थिक स्तिथि ठीक थी।

एक दिन मैं और मुस्कान पढाई कर रहे थे की उसका फ़ोन आये की वो आज मिलेगा, मैंने मन कर दिया की फ्रैंडशिप केवल फ़ोन पर और मिलना जुलना बिलकुल नहीं, लेकिन जब उसने कहा की वो आज पेपर्स लेकर आएगा तो भला मैं मना कैसे करती, मैंने झट से हाँ कर दी, उसने घर से थोड़ी दूर एक होटल का नाम बताया और वह पहुंचने के लिए बोला, मैं शाम में मम्मी से बहाना बना कर दीपक से मिलने पहुंच गयी,

आज दीपक बन सवार कर परफ्यूम वारफूमे लगा कर आया था, हम दोनों वह एक टेबल पर बैठ आगये और हाल चाल पूछने लगे, फिर उसने कुछ खाने का मांगा लिया, मैंने बहुत दिनों बाद बहार का कुछ खाया था, मुझे अच्छा लगा फिर जब उसने मुझे पेपर्स दिए तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैं किसी बच्चों जैसे खुश हो कर दीपक के गले लग गयी , दीपक की मनो लोटरी लग गयी, लेकिन मुझे झट से अपनी गलती का एहसास हुआ और मैं अलग हो कर बैठ गयी,

दीपक : वाह बहुत गर्म हो यार तुम
मैं : पागल हो क्या जो ऐसी बात कर रहे हो
दीपक : बात सुनो धयान से, मैंने ये बहुत बड़ा रिस्क लेके ये पेपर्स चोरी किये है, अगर मालिक को पता लगा न तो मुझे यही अरेस्ट करा देगा और ये सब केवल मैंने तुम्हारे लिए किये किया है समझी ना और अगर बात समझ नहीं आयी तो मैं ये पेपर्स वापिस ले रहा हूँ,

मैं : नहीं ठीक है मैं समझ गयी
दीपक : गुड ! तो अभी जो तुमने हुग किया ये मुझे मिलती रहनी चाहिए, और अभी जब हम यहाँ से चलेंगे तो बाइक पर मेरे पीछे चिपक कर बैठना हुग करके और अगर मेरी बात मंज़ूर नहीं है तो पेपर छोड़ो और घर जाओ

मैं : नहीं नहीं जो तुम बोलोगे वो मैं करुँगी बस ये पेपर्स नहीं दे सकती
दीपक : गुड ! और हाँ ये मत सोचना की पेपर्स मिलने के बाद मेरा फ़ोन उठाना बंद कर दो, अगर मुझे लगा की तुम मेरा चूतिया काट रही हो तो मैं तो भले मैं जेल चला जाऊंगा तुम्हारी प्रॉपर्टी के भी साथ जाएगी जब मैं भैय्या का बताऊंगा की तुमने मुझसे पेपर्स चोरी करवाए था
मैं : नहीं दीपक प्लीज ऐसा कुछ नहीं होगा, तुम जब बोलोगे मैं तुमसेमिलने आउंगी और तुमसे चिपक कर बैठूंगी बाइक पर
दीपक : बहुत अच्छा, चलो फिर चलते है

मेरा सारा मज़ा ख़राब हो गया था, कुछ मिनट पहले जो बहार का खा पि कर और पेपर्स मिलने की ख़ुशी थी और जो मेरे मन में दीपक की एक अच्छी इमेज बानी थी सब बर्बाद हो गयी, शायद दीपक ऐसा ओछापन नहीं दिखता तो क्या पता मैं खुद उसको हुग कर लेती जो मैंने गलती से कर भी दिया था, आखिर उसने इतना बाद काम जो क्या था मेरे लिए।

बहार निकल कर दीपक ने बाइक स्टार्ट की और मैं उसके पीछे हुग करके बैठ गयी, ये मैंने पहली बार ऐसा किया था और मुझे अजीब लग रहा था, दीपक तो मारे ख़ुशी के निहाल था आखिर मुझ जैसी गोरी चिट्टी और सुन्दर लड़की उससे चिपक कर बैठी थी, वो बार बार ब्रेक मार कर अपनी पीठ मेरी छोटी छोटी मासूम चूचियों पर घिस रहा था, ये मेरे लिए एक नयी अनुभूति थी, मज़े का कुछ खास पता नहीं था लेकिन जब भी वो ऐसा करता तो मेरे शरीर में एक कर्रूँट जैसा दौड़ जाता

खैर मैंने घर आकर मम्मी को पेपर्स दिए तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा लेकिन मैंने उनको दीपक का नहीं बता कुछ बस इतना बोला की एक लड़के ने मेरी हेल्प की बदले में तीन हज़ार देने होंगे, ये प्लान दीपक ने ही बताया था मुझे माँ से झूट बोलना अच्छा नहीं लग रहा था आखिर मुझसे घरकी आर्थिक हालत छुपी तो नहीं थी , लेकिन माँ ने झट से तीन हज़ार रूपये दे दिए जो मैंने दीपक के हाथ पर रख दिए

अगले दिन दीपक उन पैसो से मेरे लिए एक सेकंड हैंड फ़ोन ले आया और उसमे सिम भी लगा हुआ था, अब मुझे और दीपक को बात करने में आसानी हो गयी, मैं घरवालों से नज़रे बचा कर दीपक से घंटो बाते करती थी, फिर एक दिन मैंने मैंने अपने जॉब करने के बारे में बताया तो एक दम खुश हो गया और उसने मुझे अपनी कंपनी में जहा वो क्रेडिट कार्ड का काम होता था वह जॉब दिला दी, दीपक ने प्रॉपर्टी डीलर के यहाँ काम कर चूका था तो फर्जी पेपर्स बनवाने में एक्सपर्ट था, वो लोगो के फर्जी पेपर्स बनवा के कार्ड्स बनवा देता था तो कंपनी वाले उस से बहुत खुश थे, मैं भी खुश थी की अब मेरी जॉब लग गयी थी बिना किसी डाक्यूमेंट्स के और मैं किसी पर डिपेंड नहीं थी।

हम एक ही ऑफिस में काम करते थे साथ ही आना जान होता था, एक दिन हमने कंपनी में टारगेट पूरा कर लिया तो कम्पनी हम सबको वाटर पार्क लेके गयी, मैं पहली बार ऐसी जगह आयी तो मैंने खूब मस्ती की, थोड़ी देर में मैंने देखा तो हमारे साथ के सारे इधर उधर गायब हो गए

मैंने ढूँढा तो दीपक दिख गया जो मेरे पास ही आ रहा था, मैंने पूछा सब कहा है तो उसने एक ओर इशारा किया और हम उधर चले गए।
वहा कुछ केबिन्स बने हुए थे दीपक ने एक केबिन की ओर इशारा किया के इसके अंदर जाकर बैठ जाओ, मुझे अजीब लगा लेकिन मैं बिना कुछ बोले अंदर चली गयी, अंदर एक छोटी से सेट्टी पड़ी हुई थी और अजीब सी स्मेल आरही थी, दीपक मेरे पीछे अंदर आया लेकिन अगले ही पल वो एक मिनट रुको बोल के बहार भागा, मैं उल्लू की तरह बैठी उधर देखने लगी, तभी अचानक मुझे किसी लड़की के कराहने की आवाज आने लगी और वो आवाज़ मैं पहचान ली वो हमारे साथ काम करने वाली लड़की दीपा की थी, फिर मैंने धयान लगाया तो वो आवाज़ बराबर वाले केबिन से आरही थी, उसकी कराह के साथ साथ थापा थप की आवाज ताल से ताल मिला रही थी, मैं फ़ौरन समझ गयी की ये काबेन्स चुदाई करने के लिए बने है और दीपा अपने यार से चुदवा रही थी, मेरे पुरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गयी, अमिन समझ गयी की दीपक मुझे इस केबिन में छोड़ने के लिए लाया था, मैंने झांक कर देखा दीपक वह एक लड़के से कुछ ले रहा था शायद कंडोम जो वो साथ लाना भूल गया था, मेरी उम्र कम थी लेकिन मैं इतनी भी बेवक़ूफ़ नहीं थी मैंने मुस्कान के साथ चुदाई की कुछ विडोज़ देखि थी और क्लास की लड़कियों से चुदाई के बारे में सुन रखा था,

मैं बिना देर किये केबिन से बहार निकली लेकिन तभी दीपक ने पीछे आकर पकड़ लिया और केबिन के अंदर घसीट लाया,
कहा भाग रही हो चन्द्रमा ? अभी तो कुछ हुआ ही नहीं है है मेरी जान, बस एक बार करने दे फिर उसके बाद चाहे कभी मत करना
मैं : मैं नहीं दीपक मैं ये नहीं कर सकती किसी भी कीमत पर
दीपक : अरे कुछ नहीं होता, बस मज़ा आएगा बहुत, फिर रोज़ करवाएगी

मैं : नहीं दीपक : प्लीज ये मत कर मेरे साथ, (लेकिन दीपक कहा मैंने वाला था उसने मुझे उस सेट्टी पर गिरा दिया और मेरी गीली टीशर्ट के ऊपर से ही मेरी चूचियां रगड़ने लगा, वो इतनी बेदर्दी से चूचियां मसल रहा था की मैं दर्द से चिल्ला उठी, मैंने उसको धक्का दिया और चिल्ला कर बोला " दीपक अगर तूने अगर कुछ और किया तो मैं चिला दूंगी की तू मेरा रेप कर रहा है, और तुझे पता नहीं है तो बता दू की मैं अभी अट्ठारह की नहीं हुई साड़ी उम्र झेल में कट जाएगी तेरी ये सुन कर दीपक की गांड फैट गयी, वो फिर मुझसे अलग हुआ और धमकियाँ देने लगा की वो जॉब से निकलवा सेगा और वही प्रोपेर्टी वाली धमकी।

मैं जॉब छोड़ना नहीं चाहती थी और न ही पेपर्स का बवाल खड़ा करना चाहती थी और मुझे पता था की दीपक से पन्गा करके कोई फ़ायदा नहीं तो मुझे कुछ रास्ता निकना था, अचानक मेरे दिमाग में विचार आया और मैंने दीपक को बोला

मैं : देख दीपक तू मुझे चोदना चाहता है ना, तो मैं चुदवाने के लिए तैयार हूँ तुझसे लेकिन शादी के बाद ?
तुम मुझसे अट्ठारह के बाद शादी कर ले फिर रात दिन चोदना, मैं जानती हूँ की तुझे मुझ जैसी गोरी चिट्टी लड़की पसंद है और यहाँ हमारे मोहल्ले में सब मेरे से कम ही है तो तो मुझसे शादी कर ले और जितना मर्जी उतना चोद मैं तुझे कभी मना नहीं करुँगी।

मेरी बात सुन कर दीपक भी एक मं के सोच में पड़ गया, उसे मेरी माइनर वाली बात ने ज़ायदा डरा दिया था और ये ऑफर भी उनको ठीक लगा, उसने कहा थी है अब तुझे शादी के बाद ही छोडूंगा बहिन की लौड़ी, साली तुझे चोद चोद के रंडी न बनाया तो मेरा नाम भी दीपक नहीं।

ये सुन कर मेरे मन को राहत मिली की चलो थोड़ी दिनों के लिए जान छूटी बाकि बाद की बाद में देखंगे, हम बहार निकल आये केबिन से, बाकि सब अभी तक अपने अपने केबिन में चुदाई में लगे हुए थे शायद, बहार निकल कर दीपक ने पानी में चलने का इशारा किया और हम पानी में खेलने लगे, पानी में नहाते हुए दीपक बार बार मेरे जिस्म को रगड़ रहा था मैंने विरोध किया तो गुररया, बेहेन की लोड़ी मान जा चुप चाप, एक तो तूने चुदाई का सारा मूड सत्यानास कर दिया और हाथ भी मत लगाने दे, चुपचाप जो कर रहा हूँ करने दे, मैं भी चुप हो गया मुझे भी पता था ओपन पूल में ज़्यादा कुछ कर नहीं पायेगा और लोग भी थे पूल में तो तसल्ली थी, वैसे भी दीपक के खड़े लुंड पर धोखा हुआ था तो इतना तो बनता था, फिर मैंने उसको मना नहीं किया लेकिन मुझे कुछ खास मज़ा नहीं आ रहा था शायद ज़बरदति में मज़ा नहीं आता है।
Tow istarah se Deepak se dosti huwi or baad m deemak ki tarah chipak gaya chandrma se
Baherhal dekhte h aage kia huwa
Badhiya shaandar update
 

Naik

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उस दिन वाटर पार्क वाली घटना के बाद से मैं दीपू से खींची खींची रहने लगी थी, मूड बहुत ख़राब था, पता नहीं क्यों जब भी दीपक मेरे शरीर को छूता तो एक अजीब सी घृणा होती थी मैंने ब्लू फ्लिम में देखा हुआ था की कैसे जब लड़का लड़की एक दूसरे को चूमते या छूते हुए तो कितना मज़ा आता है, मुस्कान ने भी यही बताया था की मर्द जब प्यार करता है या कही छूता है तोह बड़ा मज़ा आता है, बातो बातो में बताया था की यहाँ आने से पहले वो जिस मोहल्ले में रहते थे वहा के एक लड़के से उसका चक्कर था और वो चुपके से रात में वो गली के रस्ते उसकी छत पर आजाता था और और मुस्कान छत के कोने में अपना कमसिन बदन उस लड़के से रगड़वा कर मज़ा पा लेती थी, मुस्कान की सेक्सी बातें सुन कर मेरा भी मचल उठता था की काश मुझे भी कोई ऐसे ही प्यार करे जिसमे मज़ा आये घिन्न नही। खैर सब की इतनी अछि किस्मत कहाँ होती है।

दीपू मेरी इस नाराज़गी से चिढ़ गया था, एक दिन उसने ऑफिस से जल्दी छुट्टी की और मेरी भी छुट्टी करा दी मेरा मन खिन्न हो रहा था लेकिन मैं चुपचाप उसकी बाइक के पीछे बैठ गयी, मैंने पूछा की हम कहा जा रहे है लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, वो मुझे गलियों से घूमता हुआ एक मकान के आगे रुक गया और मुझे उतरने के लिए बोला तो मैंने मना कर दिया, मैं ऐसे अनजान घर में जाने से कतरा रही थी, तभी घर का गेट खुला और लगभग मेरी उम्र की एक सांवली लेकिन आकर्षक लड़की सामने कड़ी थी, लड़की ने साफ़ सुथरे कपडे डाल रखे थे और हल्का सा मेकअप किया हुआ था जिस से वो बड़ी प्यारी लग रही थी। उसने दरवाज़ा खोल कर जोश से हेलो कहा और और हमे अंदर आने का इशारा किया, दीपू चुपचाप घर के अंदर चला गया मजबूरी में मैं भी उसके पीछे पीछे अंदर आगयी, मैं वह कोई ड्रमा नहीं करना चाहती थी बिना जाने के ये किसका घर है लेकिन जिस कॉन्फिडेंस से दीपू अंदर आगे था उस से लगा की ये उसी घर है ,

अंदर जाकर मैं चुपचाप सोफे पर बैठ गयी वो लड़की झट से गिलास में पानी ले आयी और हाथ बढ़ा कर हेलो किया और बोली " मेरा नाम कोमल है भाभी "
मैं भाभी सुन कर चौंक गयी,,,, तो कोमल खिलखिला कर बोली " भाभी भैया ने मुझे सब बता दिया है, आप बहुत प्यारी है, मेरे भैय्या की चॉइस बड़ी अच्छे है " ये सुन कर मैं शर्मा गयी, दीपू ने कभी इतना खुल कर अपने परिवार के बारे में नहीं बताया था, आज अचानक लेकर आगया था वो मेरा झिझकना सवाभाविक था।

थोड़ी देर में दीपू कपडे चेंज करके आगया और वो भी वही एक सोफे पर बैठ गया, कोमल जल्दी से नास्ते का सामान और कोल्डड्रिंक उठा लायी, हम तीनो ने साथ नाश्ता किया और इधर उधर की बातें की, कोमल मुझसे एक क्लास नीचे थी यानि दसवीं में पढ़ती थी, और बहुत चंचल सवभाव की थी, मुझे उस से मिलकर अच्छा लगा, अभी हम इधर उधर की बातें कर ही रहे थे की अचानक किसी ने गेट खटखटाया दीपू ने उठ कर खोला सामने एक चालीस पैंतालीस साल की महिला खड़ी थी जो सीधा अंदर आयी , मुझे सोफे में बैठा देख कर एक मिनट के लिए ठिठकी और फिर मुस्कुराकर पूछा " ये कौन है ? "''''''

इस से पहले मैं कुछ बोलती, कोमल झट से बोल पड़ी, मम्मी ये चन्द्रमा दी है मेरे स्कूल में पढ़ती है लेकिन अब हम दोस्त है, मैं कोमल के साफ़ झूट बोलते देख कर दंग रह गयी, दीपू की माँ ने हमे बैठने का इशारा किया और अंदर चली गयी, अपनी मम्मी के अंदर जाते ही मेरे कान में फुसफुसाई, भैय्या ने अभी केवल मुझे बताया है अपने अफेयर के बारे में मम्मी को नहीं पता तो आगे से मैं आपको चंदू दी ही बुलया करुँगी , ठीक है ना ? मैंने हाँ में गर्दन हिला दी, अभी मेरी उम्र ही क्या थी भाभी सुनना बड़ा अजीब लगा रहा था, कुछ देर कोमल मुझे घर दिखने ले गयी, छोटा सा माकन था लेकिन साफ़ सुथरा और तरीके से बना हुआ, नीचे दो कमरे एक छोटा सा ड्रिंगरूम और किचेन, ऊपर दो कमरे और एक छोटा किचेन था थोड़ा सा खुला एरिया था, कुल मिला कर ठीक ठाक खाती पीती फॅमिली थी।

कुछ देर बैठ कर मैंने घर चलने का बोला तो कोमल माँ के सामने दीपू से बोली की भैय्या चंदू दी को उनके घर ड्राप कर दो, उसकी मम्मी ने भी बोल दिया की हाँ छोड़ आओ आने में रात हो जाएगी कोमल को तो दिक्कत हो सकती है

थड़ी देर में मैं दीपू के साथ उसके घर से निकल गयी, रस्ते में दीपू ने गाडी एक सुनसान जगह में रोकी और साइड में खड़ा हो कर मुझसे बोला
अब हुई तेरी तसल्ली या नहीं, अब तूने मेरा घर देख लिया मेरी मा और सिस्टर से भी मिल लिया, बस थोड़े दिन में मम्मी को तेरे बारे में बता कर शादी कर लूंगा तुझसे। अब अगर मेरे पर विस्वास हो तो मूड ठीक कर और मेरी बात का ढंग से जवाब दिया कर नहीं तो किसी दिन मेरा माथा ख़राब हुआ तो तेरे मुँह पर तेज़ाब फेक दूंगा फिर किसी के सामने भी नहीं आ पायेग। मैं उसकी धमकी सुन कर डर गयी, मैंने जल्दी से कहा की नहीं अब मुझे ट्रस्ट है, और मैं उस से ढग से बात करुँगी।

उस दिन के बाद से मैं दीपू से ठीक से बात करने लगी और चारा भी क्या था मेरे पास, कुछ दिन ठीक गुज़रे, अब सैलरी मिलने लगी थी तो मैंने अपने लिए कुछ कपडे अच्छे कपडे और नया फ़ोन ले लिया था, घर में बताया की टूशन देने लगी हूँ स्कूल के बाद, किसी को खास पवाह तो थी नहीं बस दादी खुश थी मुझे खुश देख कर, कभी कभी मैं दादी के लिए उनकी पसंद की कुछ चीज़े ला देती थी, उस रात वाली घटना के बाद से दादी से मेरा लगाव बढ़ गया था, मैं अपनी सैलरी में से माँ को भी थोड़े पैसे दे देती थी ताकि घर के खर्चो में मदद हो सके, मुझे अच्छा लगने लगा था की चलो घर की कुछ तो स्तिथि ठीक हुई।

एक संडे मैं घर पर थी की अचानक गेट बजा मैने भाग कर खोला तो एक अजनबी खड़ा था, चालीस बयालीस की उम्र का, देखने से लगा रहा था की कोई सभ्य व्यक्ति है, मैंने पूछा क्या काम है तो उसने उसने उल्टा पूछा की क्या ये सविता कुमारी यही रहती है ? हाँ मेरी मम्मी है सविता कुमारी। आप कौन ? ये सुन कर उस आदमी के मुँह से एक चैन की साँस निकली, उसने फिर मुझसे पूछा क्या तुम सरिता की बेटी हो ? मैं तो और क्या ?

ये सुन कर उस व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी फिर उसने प्यार से मेरे सर हाथ रखा और बोला, जा कर मम्मी को बता दे की तेरा मामा आया है। मैं मामा सुन कर एक दम शोकेड रह गयी और फिर झट से उनके गले लग गयी। जीवन में पहली बार कोई नानी की साइड से हमारे घर आया था या मैं मिली थी , पापा जबसे से मम्मी को बिहार से बियाह के लाये थे तब से न कभी मम्मी अपने गांव गयी और ना वहा से कोई आया था , मैं मामा का हाथ पकडे पकडे घर के अंदर ले आयी, मैंने मामा को चारपाई पर बिठाया और मम्मी को बुला लायी,
मम्मी मामा को देख कर ठिठकी और फिर उनके गले लग गयी, दोनों एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे, थोड़ी देर में जब सब शांत हुए तो मामा ने बताया की नाना की डेथ हो गयी है और नानी बहुत बीमार है और उनका समय नज़दीक है वो जाने से पहले एक बार अपनी बेटी को देखना चाहती है,

ये सुन कर पता नहीं क्यों मम्मी भड़क गयी और मामा के साथ जाने के लिए साफ़ मना कर दिया और चिल्ला कर बोली जब उन्होंने बिना मेरी मर्ज़ी के एक बुड्ढे दूबयाहता से मेरी शादी कर दी तब सोचना था ना अब बेकार का प्रेम किस लिए, मैंने तो कसम खा ली है की मैं मरे मु भी ना देखु उनमे से किसी को और अच्छा हुआ बुड्ढा मर गया अगर मेरे सामने आता तो कही मैं ही ना मार देती उसको, अपनी माँ के ये रूप देख कर मैं डर गयी, मामा ने बहुत हाथ पैर जोड़ा पर मम्मी नहीं मानी, आखिर थोड़ी देर बाद मामा मायूस हो कर जाने लगे, जाते जाते उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और गले से लगा कर बोले, दीदी नाराज़ है शायद माँ बाउजी ने उनके साथ गलत किया लेकिन बेटा मैं तब खुद छोटा था तो कुछ नहीं कर पाया, तेरी माँ न सही लेकिन तू कभी एक बार अपने ननिहाल ज़रूर आना, पहले हमारे आर्थिक हालत भी कुछ खास नहीं थे लेकिन अब मेरी शहर में २ कपडे की दूकान है और ईश्वर की खूब किरपा है कह कर उन्होंने अपनी जेब से पांच सौ के कुछ नोट निकले और मेरी मुट्ठी में रख कर चले गए।

उस दिन मुझे अपनी मम्मी से बड़ी नफरत हुई, बेचारे मामा पता नहीं कहा कहाँ धक्के खा कर यहाँ पहुंचे थे और मम्मी ने पानी तक नहीं पूछा था, मुझे मामा बहुत अच्छे लगे थे पढ़े लिखे और समझदार, जाते जाते मैंने उनको अपना नंबर दे दिया था। पापा रात में जब घर आये तो मम्मी ने बतया की उनका भाई शम्भू आया था बिहार से तो पापा ने बहुत गलियां दी मामा को "अब आये साले पहले तो पूरा जीवन पूछा नहीं" , फिर जब पता चला की मुझे पैसे पकड़ा के गए है तो झट से वो पैसे मुझसे छीन लिए, उनके दारु के खर्चे का इंतिज़ाम जो हो गया था।

कुछ दिन बाद नवरात्रे आगये , मम्मी व्रत रखती थी लेकिन मैं नहीं, जीवन में इतने दुःख देख लिए थे की अब भगवान पर से विश्वास उठ गया था, लेकिन समस्या ये थी की मैंने जॉब का नहीं बता रखा था और दशरे से पहले सब स्कूल बंद थे तो मैंने दीपू को ये समस्या बताई तो उसने मुझे छुट्टी दिला दी ऑफिस से, छठे नवरात्रे को मम्मी ने सुबह ही बता दिया की वो आज शाम में जगराते में और अष्ठमी पूजने के बाद ही घर आएँगी, वो उसी बाबा के आश्रम में रुकेंगी, ये अब हमारे लिए कोई नयी बात नहीं थी , जब से मम्मी इस बाबा के चक्कर में पड़ी थी तब से वो अक्सर आश्रम में रुक जाती थी जिस दिन कोई स्पेशल प्रोग्राम होता था। मेरा ऑफिस का ऑफ था तो मैं मुस्कान और कोमल के साथ मेला घूमने चली गयी , जब से दीपू ने कोमल से मिलवाया था तब से मेरी उस से खूब दोस्ती हो गयी थी और हम अक्सर फ़ोन पर घंटो बातें करती थी, दीपू भी नहीं टोकता था और मैं दीपक की बकवास और वही सेक्स करनी की रोज़ रोज़ की डिमांड से बच जाती थी।

मेला घूमने के बाद जब हल्का धुंधला होने लगा तब हम घर लौट आये, कोमल रिक्शे से अपने घर चली गयी और मुस्कान मेरी साथ वापिस आयी, उसका घर मेरे घर से थोड़ा पहले पड़ता था तो वो अपने घर में घुस गयी।

मैं घर पहुंची घर का दरवाज़ा खुला हुआ था और सामने चारपाई पर पापा बैठे हुए थे और उनके सामने टेबल पर शराब की बोतल और दो गिलास रखे हुए थे। पापा मुझे देख कर चिल्लाये कहा मर रही थी सुबह से कब से तेरा इन्तिज़ार कर रहा हूँ, मैं उनके चिल्लाने से सहम गयी और बिना कुछ बोले दादी के रूम में भाग गयी, पीछे से पापा की फिर आवाज़ आयी भाग कहा रही है ये ले और इसको जल्दी से पका दे बहुत भूख लग रही है, मैंने दादी की ओर देखा बेचारी दादी क्या बोलती मुझे इशारे से बाला की जा जो कह रहा कर दे , मैं वापस पापा के पास गयी तो उन्होंने एक पन्नी मुझे पकड़ा दी , पन्नी में मुर्गे का मीट था, मैंने पापा की ओर हैरत से देखा ,,,,, "पापा हां मीट ही तो है, आज तेरी माँ नहीं है घर में जा जल्दी से अच्छे ढंग से मीट बना ला", मैं मीट खाती थी लेकिन जब से मम्मी ने पूजा पाठ स्टार्ट करि थी तब से छूट गया था और फिर आज पापा लाये वो भी नवरात्रे में, मैंने बिना कुछ बोले किचन में चली गयी और खाना बनाने लगी, मैंने जैसे ही खाना चढ़या था की दरवाज़े से मुझे वही हरामखोर रमेश आता दिखाई दिया, हरामी की शकल ही ऐसी थी की मेरी आत्मा जल जाती थी, मैं दादी के पास आयी की वो क्या खाएंगी घर में कुछ खास था नहीं अब पापा कुछ लाने बहार नहीं भेजंगे, दादी ने बोलै की दिन की थोड़ी दाल बची है वो उसी को खा लेंगी और अगर मेरी इच्छा है तो मैं चिकन खा लू भूखी सोने से तो अच्छा ही है,

मैंने जल्दी जल्दी चिकेन बनाया और रोटी सेंक दी जब तक खाना तैयार हुआ तबतक आठ बजे चुके थे मैंने पापा को बताय की खाना रेडी है तो उन्होंने बोलै की सब यही उठा ला। मैं चिकेन की कढ़ाई और रोटी का डिब्बा दे आयी , फिर पापा ने आवाज़ लगायी की चंदू अपना खान तो ले जा, पापा ने दो रोटी और थोड़ा चिकेन एक कटोरी दाल के मुझे दे दिया और फिर वो रमेश के साथ के साथ दारू पिने लगे, जब मैं खाना ले रही तब रमेश मेंरे जिस्म को घूर घूर कर अजीब सी हसी है रहा था, जब मैंने खाना ले कर पलटी तो उसने पता नहीं पापा से क्या कहा की दोनों है है है करके भद्दी हसी हसने लगे , मैंने अपने कमरे में आकर दादी को खाना खिलाया और उनको दवाई खिला कर सुला दिया, मैं थोड़ी देर पहले बहार से घूम फिर कर आयी थी और बहार सहेलियों के साथ कुछ खा लिया था इसलिए मैंने खाना साइड में रख दिया, तभी दीपू की कॉल आगयी और मैं उस से बात करने लगी, दादी गहरी नींद में थी तो उनसे कोई डर नहीं था, मैंने एक डेढ़ घंटा बात करने के बाद फ़ोन रख दिया की इतनी देर में पापा ने आवाज़ दी मैं भाग कर उनके पास पहुंची तो देखा उन्होंने नई बोत्तोल खोल ली थी, पापा ने ठंडा पानी लाने के लिए बोला , मैंने पानी ला कर दे दिया फिर पापा ने पूछा खाना खा लिया ? मैंने कहा नहीं बस अब खाने जा रही हूँ

मैंने कमरे में वापस आके खाना खाया और फिर बर्तन एक साइड करके मोबाइल चलने लगी, कोई 10-१५ मं बीते होनेगे की मुझे बहुत तीज नींद आयी और मैं फ़ोन साइड में रख कर सो गयी।

सोते सोते अजीब सा सपना आने लगा जैसे हवा में उड़ रही हूँ लेकिन चारो ओर अँधेरा है और फिर इस अँधेरे के आगे हल्का उजाला, अजीब सा सपना ऐसा सपना कभी नहीं आया, मेरे हाथ पैर बिलकुल सुन्न लटके हुए मनो इनमे जान ही ना हो, आँख खोलने की कोशिश की आँख अभी नहीं खुल पा रही, आँख की झिरी से हल्का हल्का एक साया जैसा दिख रहा था फिर वो साया मेरे पास आया और मेरे जिस्म पर हाथ फेरने लगा, उसके जिस्म से बड़ी अजीब बदबू आरही थी मनो शराब पि राखी हो, मेरा दिमाग बिकुल धुंधलाया हुआ था फिर भी मैंने अपनी आँख की झिरी से देख के जान लिया था वो मादरचोद रमेश था, रमेश एक हाथ से मेरा शरीर सहला रहा था तो दूसरे हाथ से मेरे गाल को सहला रहा था, मनो पक्का कर रहा हो की मैं नींद में हूँ की नहीं, पता नहीं कैसी अजीब नींद थी की मैं चाह कर भी न चिल्ला पा रही थी और ना अपने हाथ पाओ हिला प् रही थी,

एक बार रमेश ने जो ज़ोर से मेरा सर हिलाया तो मैंने देखा पापा उसके बगल में खड़े थे और रमेश उनके सामने उनकी कुवारी बेटी के जिस्म से खेल रहा था, रमेश को जब पक्का हो गया की मैं नींद में हूँ तो उसने मेरे टॉप को मेरे जिस्म से नोच फेका फिर मेरे अधनंगे जिस्म से खेलने लगा, रात में घर में मैं ब्रा नहीं पहनती थी इसलिए मैंने ब्रा नहीं डाली थी, मेरी कच्ची चूचियों के देख के रमेश पागल से हो गया और मेरी चूचियों पर टूट पड़ा, मेरा मन कर रहा था की मैं उस हरामी रमेश का मुँह नोच लू लेकिन मेरे शरीर को तो जैसे लकवा मार गया था तभी चूचियां पीते रमेश को पापा ने एक धक्का दिया और उसे मेरे जिस्म से अलग कर दिया, मुझे लगा की अब मैं बच गयी लेकिन कितना गलत थी मैं, पापा रमेश को हटा कर बड़बड़ाये, बहनचोद मेरी बेटी है इस कच्चे माल को तो सबसे पहले मैं चखूँगा और वो खुद मेरी चूचियां अपने मुँह में लेकर चूसने लगे, मेरा दिमाग पहले से ही बोझिल था पता नहीं इन हरामियों ने कौन सी नशे की दवाई खिलाई थी की मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी,

पापा मेरी एक चुकी को चूस रहे थे और और दूसरी को अपने कठोर हाथ से बेदर्दी से रगड़ रहे थे की तभी रमेश ने उनका हाथ खींच कर अलग किया और बड़बड़ाया, साले मैंने तुझे सरिता जैसी चुड़क्कड़ दिलाई, साले मेरा एहसान भूल गया ? चल एक चूची तू पि दूसरी मैं पियूँगा, हाय हम जैसो को तो भगवान जीवन में कभी कभार ऐसा कुंवारा माल देता है, आज नहीं छोडूंगा बहनचाओद क्या कड़क माल है, बहनचोद अगर आज इसको चोद दिया तो जीवन सफल हो जायेगा, फिर वो मेरी दूसरी चूची पर टूट पड़ा, कभी मेरी चूची पीता और कभी मेरी चूची का निप्पल दांत से काटता, अजीब सा नशा था ना कुछ फील हो रहा था और ना आवाज़ निकल रही थी । मेरी दोनों चूचियों पर दोनों किसी जानवर के जैस लगे पड़े थे की अचानक रमेश ने मेरी लेग्गिंग्स खींच के एक झटके में मुझे नंगा कर दिया, मेरे जिस्म से लेगिंग्स हट्टे ही पता नहीं कहा से मेरे शरीर में इतनी ताकत आयी की मैंने अपनी टांग से रमेश को धक्का दे दिया, रमेश बेड से गिर पड़ा और उसका सर दीवार से ज़ोर से टकराया,

दीवार से सर टकराते ही रमेश के मुँह से एक ज़ोर की कराह निकली और वो चिल्ला कर गालीदेने लगा, बहनचोद, बहिन की लौड़ी ने मार दिया बहनचोद, पापा भी घबरा गए और मेरी चूची छोड कर रमेश को सँभालने के लिए उठे, फिर दोनी गलियां देते हुए मेरे जिस्म पर टूट पड़े की तभी पता नहीं कहा से एक डंडा रमेश के सर पर पड़ा और फिर वो डंडा दुबारा हवा में उठा और पापा के कंधे की चमड़ी उधेर गया, बड़ी मुश्किल से मैंने गर्दन घुमाई तो देखा दरवाजे पर दादी डंडा लिए खड़ी है और बिना सोचे समझे रमेश और पापा पर वार कर रही है, दादी बूढी हो चुकी थी चला फिर भी नहीं जाता था लेकिन आज अपनी पोती की इज़्ज़त लूटने से बचने आगयी थी, दादी के लट्ठ से बच कर दोनों आंगन में भागे मुझे बहार से उनके भागने की फिर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी फिर बंद होने की, थोड़ी देर में दादी लंगड़ाते हुए कमरे में आयी और मेरे सर को अपनी गोद में ले कर फुट फुट कर रोने लगी, बार बार मुझसे माफ़ी मांग रही थी की ये सब उनकी गलती है, काश की मैंने बचपन में ही इसे मार दिया होता, मैंने बेटे की चाह में अपनी बेटियों को पैदा होने से पहले मार दिया फिर पोतियों की जान ले ली शायद इसीलिए भगवान मुझे सजा दी है ऐसी नर पिशाच जैसी संतान दे कर । दादी मेरे सर सहलाती रही और रोती रही, मेरे दिमाग पर फिर से नशा सा छाने लगा और मैं गहरी नींद में सो गयी।
Wakai n chanda k saath bahot bura ho raha h pehle Deepak kia Kam tha jo ab gher m hi baap or uska dost
Dekhte h aage kia hota h
 

Naik

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अगले दिन मैं दोपहर तक सोती रही, जब उठी तो दिन चढ़ आया था, देखा तो मैं मम्मी के कमरे में सोई हुई थी और मेरे शरीर पर लेग्गिंग्स उलटी सीडी चड्डी हुई तो और मैं ऊपर से नंगी थी बस एक चादर से ढकी हुई, मैंने जल्दी से पास पड़ा टॉप पहना और हड़बड़ा कर कमरे बहार आयी , दादी कमरे के बहार ही बैठी हुई थी, मुझे देख कर हाल चाल पूछा, एक बल्टोइ में चाय थी उसमे से एक कप में ढाल के मुझे पिने के लिए दिया, मेरा सर चकरा रहा था और एक टीस सी उठ रही थी सर में जैसी कोई दिमाग के अंदर हथोड़ा मार रहा हो, मैंने चाय का कप लेकर स्जल्दी जल्दी चाय पि, चाय पीने से थोड़ी रहत मिली फिर दादी ने मुझे अपनी बाँहों में समेत लिया और रोने लगी, मैं भी उनसे गले लग कर खूब रोई, जब दिन कुछ हल्का हुआ तो दादी ने हाथ मुँह दुला कर खाना खिलाया, शायद दादी ने किसी पडोसी से खाना मंगवाया था, घर में अभी तक न मम्मी का पता था और न पापा का। जैसे तैसे खाना खाने के बाद मैं और दादी अपने कमरे आके बिस्तर पर लेट गए , रात की बात याद करके मुझे रोना आरहा था,
रोते रोते सोच रही थी की कैसी अजीब किस्मत है, इसी दुनियां में ऐसे लोग है जो अगर कोई उनके परिवार पर ऊँगली भी उठा दे तो जान लेने के लिए तैयार है और एक मेरा बाप है जो अपने शराबी यार से नींद की गोली दे कर मेरा रेप करा रहा था, दूसरे से कराना तो तब की तब हरामी खुद अपनी कमसिन बेटी को चोद कर बेटीचोद बनने में लगा हुआ था।
मैं रात की बात सोंच सोंच कर रो रही थी की तभी दादी ने आवाज़ लगायी " चंदू सो गया क्या बेटा " नहीं दादी जाग रही हूँ !
" ठीक है फिर मेरे बिस्तर में आजा " मैं दादी के बिस्तर पर चली गयी और उनसे लिपट कर लेट गयी, एक यही तो थी जिसने एक नहीं दो दो बार मेरी जान बचायी थी। दादी ने भी मुझे कास कर अपने से सत्ता लिए और मुझसे पूछा

दादी : उस लड़के के क्या नाम है चंदू ?
मैं : कौन लड़का दादी ?
दादी : वही जिस से तू रोज़ रात में बात करती है , दर मत मुझे सब सच सच बता की कौन है क्या करता है
मैं क्या बोलती फिर मैंने दादी को सब बता दिया ये भी बता दिया की मैं जॉब करने लगी हूँ

दादी : मुझे थोड़ा थोड़ा अंदाज़ा था, मैंने तुझे टोका नहीं कभी ये सोच के की तेरे जीवन में पहले ही बहुत दुःख है अगर इस लड़के से बात करके तू खुश है तो तुझे भी खुश होने का पूरा अधिकार है।

मैंने तुझे इस लिए आज पूछा है क्यूंकि एक डेढ़ साल में तू शादी लायक हो जाएगी अगर तू इस लड़के से प्यार करती है तो मैं इस से तेरा बयाह करा दूंगी, मेरे जीवन का अब कोई ठिकना नहीं है और मैं चाहती हूँ की जल्दी से जल्दी तू इस घर से चली जाये और अपने संसार में सुखी रहे। इस परिवार पर बिमला और उसकी पैदा न हुई बेटियों का श्राप है इस घर में कोई सुखी नहीं रह सकता इस लिए तू जल्दी से या तो कहीं और शिफ्ट हो जा या किसी से शादी कर के सुखी जीवन बिता।

मैंने दादी से पूछा की कौन बिमला फिर दादी ने मुझे बिमला और अबॉर्शन की कहानी बताई। मैंने भी दादी को बता दिया की दीपक से मैं मन से प्यार नहीं करती बस मजबूरी है, लेकिन फिर भी अगर वाक़ई शादी के लिए तैयार है तो मैं शादी कर सकती हूँ केवल इसलिए की मुझे इस घर से छुटकारा मिल सके, उसका घर परिवार अच्छा है और बहुत अमीर तो नहीं लेकिन एक अच्छा जीवन जीने लायक पैसे है बस ये और बात है की जब जब दीपक मुझे छूता या प्यार करता है तो मुझे पता नहीं क्यों कुछ भी फील नहीं होता शायद मैं ऐसी ही हूँ जिसको सेक्स का फील नहीं आता। मैंने दादी को विश्वास दिलाया की वो चिंता न करे जिस दिन भी मुझे लगेगा की अब मुझे इस घर में नहीं रहना चाहिए मैं दीपक के घर चली जाउंगी फिर चाहे उसकी ख़ुशी के लिए बिना फील के ही क्यों न सेक्स करना पड़े।

रात ऐसी ही खमोशी से गुज़री, हमने दिन का बचा खुचा खा कर गुज़ारा कर लिया था, सुभह मम्मी घर आगयी, उनका चेहरा खिला खिला और खुश था आखिर होता भी क्यों ना वो बाबा के आश्रम से आयी थी और प्रसाद में ढेर साड़ी पूरी सब्जी और हलुआ लायी थी, उन्होंने मुझे नहाने के बोलै और और जब मैं नाहा कर वापिस आयी तो जल्दी से प्रसाद थाली में लगा कर परोस दिया, मैं अपने दुःख में भूल ही गयी थी की आज दुर्गा अष्टमी थी आज के दिन कंजिका पूजी जाती है , हाय रे किस्मत जहा बेटियों को देवी मान कर पूजा जाता है वही एक कलयुगी बाप अपनी खुद की बेटी को छोड़ने की धुन में लगा हुआ था, मैंने चुपचाप खाना खाया और दादी को भी खिलाया, माँ ने दादी से पापा का पूछा तो दादी ने बोल दिया की रात में उसने हद से ज़्यदा शराब पि ली थी और चन्द्रमा से जबरदस्ती चिकन बनवा के खाया था तो मैंने लट्ठ मार कर घर से निकल दिया, दादी ने मेरे साथ हुई घटना माँ को नहीं बताई, शायद उनको डर था की कही घर में माँ कोई कलेश न कर दे, वैसे भी बूढ़ा इंसान कलेश से डरता है,

दीपक का कल से कई बार कॉल आया लेकिन मैंने कॉल नहीं उठाया, फिर कोमल का फोन आया तो मैंने फ़ोन उठा के बोल दिया की मेरी तबियत ख़राब है प्लीज मुझे डिस्टब न करे कोई, शाम में फिर एक अनजान नंबर से कॉल आया तो मैंने फ़ोन काट दिया लेकिन जब 2-३ बार आया तो मैंने गुस्से से झल्ला कर बोला " जब एक बार कॉल काट दिया तो समझ नहीं आता क्या फ़ोन रखो चुपचाप " लेकिन तभी उधेर से आती आवाज़ सुन कर मैं चौंक गयी। "क्या हुआ चंदू बेटा क्या मेरा कॉल करना अच्छा नहीं लगा ? तुमने ही नंबर दिया था तो सोचा आज तुमको कॉल आकर लूँ "

मैं एक डैम से हड़बड़ा गयी ये तो मामा जी की आवाज़ थी, हम हरयाणा के और वो बिहार के तो मुझे झट से उनके टोन से पहचान हो गयी
मैं : सॉरी मामा जी वो कोई परेशां कर रहा था तो उसी को दांत रही थी, आप कैसे है
मामा : मैं ठीक हूँ बेटा , अच्छा सुनो दिन पहले तुम्हारी नानी गुज़र गयी, मैंने सोचा की तुमको या तुम्हारी माँ को कल करू फिर हिम्मत नहीं हुई बेटा, माँ की आखिरी ख़ाहिश थी तुम्हारी माँ से मिलने की जो पूरी नहीं हो सकी , तुम अपनी माँ को बता देना और एक बात, अगर वो ना आना चाहे तो तुम आ जाओ तेरहवी से पहले क्या तुम भी पूजा में शामिल हो जाओ तो शायद माँ की आत्मा को शांति मिल जाये। वो इतनी बुरी नहीं थी जितना तुम्हारी माँ समझती है, वो ख़राब नहीं थी बस हालत ख़राब थे।

मैं मामा की बात सुन कर रोने लगी और उनसे वडा किया की मैं नानी की तेरहवी में ज़रूर आउंगी।
Bahot badhiya update bhai
Maa ashram se itni khili khili aayi Kahi waha Inka koyi chakker tow nahi chal raha
Chanda ki naani bhi chal basi baherhal dekhte jab chanda nanihal jaati h tow waha kia hota h
 

Ajju Landwalia

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blinkit Bhai,

Dono hi updates behad shandar he........chandrma ki zindagi me itne dukh ho sakte he........ye to kisi ne bhi nahi socha hoga.......

Bhala ho uski dadi ka jo dono baar use apne baap ke gande irado se bacha liya.............. iski maa bhi mujhe behad ajib lag rahi he...gahr me jawan beti ke hote huye babao ke chakkar me gahr se gayab rehna kuch thik nahi lag raha

Keep posting Bhai
 

blinkit

I don't step aside. I step up.
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Bahot badhiya update bhai
Maa ashram se itni khili khili aayi Kahi waha Inka koyi chakker tow nahi chal raha
Chanda ki naani bhi chal basi baherhal dekhte jab chanda nanihal jaati h tow waha kia hota h
Ye story ke part hai mere dimag me lekin story me sex ka angle kuch khas nahi likha hai maine isliye lagta hai readers ka instrest kam hai meri story me isliye sonch raha hoon jaldi se sameer aur chandrma ka sex kra ke story ka the end kar du.
 

malikarman

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Ye story ke part hai mere dimag me lekin story me sex ka angle kuch khas nahi likha hai maine isliye lagta hai readers ka instrest kam hai meri story me isliye sonch raha hoon jaldi se sameer aur chandrma ka sex kra ke story ka the end kar du.
Aap writer ho
Aap apna kaam imandari se karo
Baki readers dekh lenge
 
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Sanjuhsr

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Ye story ke part hai mere dimag me lekin story me sex ka angle kuch khas nahi likha hai maine isliye lagta hai readers ka instrest kam hai meri story me isliye sonch raha hoon jaldi se sameer aur chandrma ka sex kra ke story ka the end kar du.
Yar aur kitna response chahte to ho itne badiya readers aapki kahani ko support kar rahe hai sab parshanhsa kar rahe hai , agar ab bhi aisa lagta hai to ab kya hi kha jaye is bare me,
Agar aap sex padhne walo ke comment me intersted hai to kuchh aur bat hai,
 
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