sunoanuj
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Bahut barhiya kahani hai… or last update gajab update hain …
Super updateमैं वह से वापिस आगयी लेकिन मैं जानती थी जिस रास्ते पर अब सरिता चल चुकी है अब इस से वापसी नामुमकिन है। इस रस्ते का अंजाम ने बिरले ही किसी को सुख दिया हो। मेरा मन बार बार कचोट रहा था की अब जब भी सरिता मिले तो उसको समझाउ लेकिन अंदर से मैं भलीभांति जानती थी के वो मानने वाली नहीं है। इस समय वो जो कुछ कर रही थी उसकी वही ठीक लग रहा था और इंसान जब ऐसी इस्तिथि में हो तो उनको समझाना बेकार है।
अब तक तो चोरी चोरी प्रेम था लेकिन जब प्रेम के साथ सम्भोग शामिल हो जाये तब वो अँधा और बहरा हो जाता है, सरिता भी प्रेम और सम्भोग के आनंद में खोयी ये भूल गयी की गांव में केवल वो दोनों ही नहीं और भी लोग रहते है और गांव में रहने वालो की भी आँख और कान है उन्हें सब सुनाई देता है और सब दिखाई भी, मुझे पता था की ये भंडा जल्दी ही फूटेगा और फूटा भी।
मैं एक दोपहर कल्लू हलवाई के घर उसकी पत्नी का हाल चाल लेने गयी थी की राधा की माँ मुझे ढूंढते ढूंढते वह आ पहुंची , हांफते हुए बताया की मालिक ने बुलया है अभी। मेरा मन अंदर से डोल गया फिर भी मैं भगवान के नाम लेती लेती रामशरण जी के घर जा पहुंची, घर का दरवाज़ा बंद था, अंदर से पण्डितायीं ने किवार खोला और मैं अंदर चली गयी, राधा की माँ को बाहर से वापस भेज दिया। अंदर पहुंची तो देखा सरिता आंगन में जमीन पर औंधी पड़ी सुबुक रही थी और पंडित रामशरण एक कुर्सी पर बैठे आग उगलती आँखों से सरिता को घूर रहे थे , मैंने पंडित जी की ओर देख के पूछा "सरिता को क्या हुआ ? "
रामशरण : ( गुर्राते हुए ) ये तो तुम बताओ भाभी, इस गांव की हर खबर तो तुम्हारे पास ही होती है ना
काकी : मैं समझी नहीं भैय्या, क्या बोल रहे हो आप
रामशरण : भोली मत बनो भाभी, सब तुम्हारी नाक के नीचे हुआ और तुमने भनक तक न लगने दी, तुमको पता है ना की मैंने आपको हमेशा परिवार के जैसा माना फिर भी आपने ऐसा किया।
काकी : (अनजान बनते हुए )आखिर बताओ तो भैय्या हुआ क्या है ?
रामशरण : रहने दो काकी तुमने और इस मनहूस ने मिलके मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी, सारे जीवन की तपस्या भांग कर दी, मैंने पुरे जीवन अपने और अपने परिवार पर एक दाग नहीं लगने दिया और इस कलंकिनी ने पुरे गांव समाज के सामने पुरे परिवार के मुँह पर कालिख पोत दी
ऐसा बोलते बोलते रामशरण अपनी कुर्सी से उठ कर सरिता के पास पहुंचे और एक लात उसके पेट पर ज़ोर से मारी, सरिता दर्द से बिलबिला उठी और ज़मीन पर सीधी हो को कर चित लेट गयी। उसका चेहरा लाल भभोका हो रहा था और होंठ फैट के किनारी से खून और लार टपक रहा था, पण्डितायीं से अपनी पति की ये दुर्दशा देखि ना गयी लपक कर बेटी के पास पहुंची लेकिन रामशरण का गुस्सा सातवे आसमान पर था, पण्डितायीं को धक्का दे कर दूर हटाया फिर सरिता की ओर झुक कर देखा देखा और दांत पिस्ता हुआ गुर्राया " बोल फिर मिलने जाएगी तू उस नीच पाखंडी से"। सरिता जो ज़मीन पर चित लेती आसमान की ओर देख रही थी कुछ बड़बड़ायी, रामशरण ने फिर एक चांटा उसके गाल पर ज्यादा और चिल्लाया, जोर से बोल ताकि तेरी माँ और काकी को भी सुनाई दे, ताकि इनको भी पता लगे की तू कितना गिर चुकी है, बोल कुतिया, बता इन सबको भी" कह कर रामशरण ने ससरिता के शरीर को झिंझोर दिया
सरिता : (जोर से ) हाँ हाँ जाउंगी मैं दीनू के पास, रोज़ जाउंगी, आपको जो करना है कर लो लेकिन मैं उसी के पास जाउंगी और उसी के साथ रहूंगी।
ये सुनके फिर रामशरण ने फिर एक जोरदार लात सरिता के कमर पर जड़ दी, सरिता दर्द से दोहरी हो कर चिल्लाने लगी, पण्डितायीं से अब सबर ना हुआ आखिर इकलौती बेटी थी लाढ से पला था, लपक के बेटी के पास गयी और उसका सर अपने गोदी में रख लिया
पण्डितायीं : बस पंडित जी अब मत मारो, मैं समझाउंगी इसको ये नहीं जाएगी फिर कभी
मैं भी जल्दी से पंडित जी के पास पहुंची, " पंडित जी और मत मारो, जवान लड़की है मैं समझा के देखती हूँ "
रामशरण : इसे समझा लो, अगर मान जाये तो ठीक नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।
इतना कह कर पंडित रामशरण अपने कमरे चला गया, हम दोनों औरतो ने मिलकर बड़ी मुश्किल से सरिता को उठाया और दालान में बिछी एक चारपाई पर ला कर उसको लिटा दिया, पण्डितायीं भाग कर पानी ले आयी और कुछ घूँट सरिता को पिलाया और उसका सर गोद में लेके पण्डितायीं वही चारपाई पर बैठ गयी और रोने लगी।
पण्डितायीं : भाभी मेरे तो भाग ही फुट गए, इस करमजली ने कही का न छोड़ा
मैं : आखिर हुआ क्या इसने किया क्या है ?
पण्डितायीं : अरे इस करमजली ने चककर चलाया हुआ है सुम्मु धोबी के लड़के के साथ, हमे तो खबर ही नहीं थी, रोज़ दिन ढले मुझसे बोलके जाती थी की बुधिया काकी के घर जा रही हूँ और फिर ये उस हरामी के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिरती थी, वो तो हरिया नाई ने देख लिया और आज इनको बताया दिया, अब ये हरिया पुरे गांव में गाता फिरेगा और पूरे गांव समाज में हमारी इज़्ज़त मिटटी में मिलाएगा।
मैं : पण्डितायीं तुम हरिया की चिंता ना करो मैं उसको संभल लुंगी, उसकी खुद की बेटी का चककर चल रहा है दूर गांव में उसको खुद पता नहीं है, मैं उसको समझा दूंगी बात संभल जाएगी,
पण्डितायीं : अरे भाभी आप उसको तो संभल लेंगी लेकिन इसको तो समझाओ ये पगला गयी है अपने बाप से जुबान लड़ा रही है।
मैं : पण्डितायीं बहुत समझा चुकी लेकिन ये कहा सुन्नति है किसी की
पण्डितायीं : हाँ भाभी, मुझे पता लग गया था, मैंने बहुत समझाया लेकिन नहीं मानी, मुझसे वचन ले लिया था की किसी को न बताऊ, लेकिन आज जब आपको पता चल ही गया है तो बता रही हूँ , पंडित जी को मत बताना, साल होने को आया है तब से इन दोनों का चक्कर है।
मैंने और पण्डितायीं ने सरिता को उस दिन लाख समझाया लेकिन सरिता टस से मस नहीं हुई थक हार कर हम दोनों ने पंडित जी को झूट बोल दिया की हाँ बोल रही है अबसे नहीं मिलेगी उस दीनू से।
कुछ देर बाद मैं घर आगयी, रस्ते में मैं हरिया के घर होती हुई आयी और उसे समझा दिया इशारो में, अभी तक हरिया ने एक दो लोगो तक ही बात पहुचायी थी, हरिया समझदार था समझ गया की उसकी भी जवान बेटी है इसलिए बात मान गया, वैसे भी पंडित रामशरण के परिवार की बात थी।
अगली सुबह मैं सबसे पहले सुम्मु के घर जा पहुंची, सुबह सुबह सुम्मु कपडे धोने जाती था, इस टाइम उसकी घरवाली अकेली होती थी, मुझे देख कर उसने मेरा सत्कार किया और चारपाई पर बिठाने के बाद जल्दी से कर एक थाली में लड्डू सजा लायी, " ये लो दीदी मुँह मीठा करो "
मैं अचकचा गयी " किस ख़ुशी में ? "
" अरे आपको नहीं पता अपने दीनू का नौकरी पक्का हो गया है, शहर में सरकारी होटल बना है उसी में"
"ओह्ह अच्छा, बधाई हो अब तेरे भी दुःख दूर होंगे " कब हुआ ये
" अरे क्या बताऊ दीदी बहुत दिन से साहब लोगो की सेवा कर रहा था, अब जाके उन्होंने पक्का किया है, होटल में कमरा का चादर तकिया बदलने का काम है, साहब लोग बोला है बाद में धोने का काम भी इसके बापू को मिलेगा "
" ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है तूने, लेकिन मैं एक बुरी खबर सुनाने आयी हूँ "
"क्या बुरी खबर दीदी ?" एक दम से उसके चेहरे का रंग उड़ गया था
"यही की पंडित रामशरण को सरिता और दीनू का पता चल गया है "
" मैं समझी नहीं क्या पता चल गया है मालिक साब को "
"अब तू इतनी भोली मत बन यही जो तेरे बेटे और सरिता के बीच चक्कर चल रहा है वो ही पता चल गया है और पंडित जी मार पिट के सरिता का घर में बंद कर दिया है अब तू भी अपने बेटे को संभल नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा"
"माँ कसम दीद मुझे नहीं पता कुछ भी, मुझे तो लगा था की गुड़िया रानी मेरे पास सिलाई सीखने आती थी, मैं गरीब इसी बात से खुश थी की मालिक की बिटिया हमारे घर बैठ कर हम गरीबो का सम्मान ऊंचा कर रही है, मुझे तनिक भी पता होता तो मैं खुद मालिक को बता कर आती, उनके इतने उपकार है हमारे परिवार पर भला हम ऐसा सोच भी कैसे सकते है "
"हाँ तो मैं तुझे यही समझने आयी थी, इस से पहले मालिक तुझे बुलाये दीनू को साथ ले जा और मालिक से माफ़ी मांग ले नहीं तो बाद में बहुत मुश्किल हो जाएगी, तेरा आदमी सीधा साधा है, पुरखो से मिलजुल कर इस गांव में रहे हो, मैं नहीं चाहती की कोई ऐसा काण्ड हो जिस से किसी प्रकार की मुसीबत तेरे परिवार पर आये। "
" मैं समझ गयी दीदी, आने दो दीनू के बापू को, आज ही मैं दीनू को लेकर जाउंगी और मालिक से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग लेंगे "
मैं सुम्मु की पत्नी को समझा कर घर आगयी, मुझे सरिता की चिंता थी की पता नहीं क्या हुआ होगा उसके साथ, इसी उधेरबुन में शाम हो गयी, अभी अँधेरा नहीं हुआ था इतने में मैंने सुम्मु को दीनू को हाथ पकड़ कर मेरे घर की ओर आते हुए देखा
सुम्मु : दीदी मैं इसको ले के आया हूँ अगर आप भी साथ चलो मेरी हिम्मत नहीं हो रही अकेले मालिक के सामने जाने की
मैं भी चाहती थी कैसे भी हो ये बात अब यही समाप्त हो जाये इसलिए मैं उन्दोनो के साथ पंडित रामशरण के घर जा पहुंची।
मैं वह से वापिस आगयी लेकिन मैं जानती थी जिस रास्ते पर अब सरिता चल चुकी है अब इस से वापसी नामुमकिन है। इस रस्ते का अंजाम ने बिरले ही किसी को सुख दिया हो। मेरा मन बार बार कचोट रहा था की अब जब भी सरिता मिले तो उसको समझाउ लेकिन अंदर से मैं भलीभांति जानती थी के वो मानने वाली नहीं है। इस समय वो जो कुछ कर रही थी उसकी वही ठीक लग रहा था और इंसान जब ऐसी इस्तिथि में हो तो उनको समझाना बेकार है।
अब तक तो चोरी चोरी प्रेम था लेकिन जब प्रेम के साथ सम्भोग शामिल हो जाये तब वो अँधा और बहरा हो जाता है, सरिता भी प्रेम और सम्भोग के आनंद में खोयी ये भूल गयी की गांव में केवल वो दोनों ही नहीं और भी लोग रहते है और गांव में रहने वालो की भी आँख और कान है उन्हें सब सुनाई देता है और सब दिखाई भी, मुझे पता था की ये भंडा जल्दी ही फूटेगा और फूटा भी।
मैं एक दोपहर कल्लू हलवाई के घर उसकी पत्नी का हाल चाल लेने गयी थी की राधा की माँ मुझे ढूंढते ढूंढते वह आ पहुंची , हांफते हुए बताया की मालिक ने बुलया है अभी। मेरा मन अंदर से डोल गया फिर भी मैं भगवान के नाम लेती लेती रामशरण जी के घर जा पहुंची, घर का दरवाज़ा बंद था, अंदर से पण्डितायीं ने किवार खोला और मैं अंदर चली गयी, राधा की माँ को बाहर से वापस भेज दिया। अंदर पहुंची तो देखा सरिता आंगन में जमीन पर औंधी पड़ी सुबुक रही थी और पंडित रामशरण एक कुर्सी पर बैठे आग उगलती आँखों से सरिता को घूर रहे थे , मैंने पंडित जी की ओर देख के पूछा "सरिता को क्या हुआ ? "
रामशरण : ( गुर्राते हुए ) ये तो तुम बताओ भाभी, इस गांव की हर खबर तो तुम्हारे पास ही होती है ना
काकी : मैं समझी नहीं भैय्या, क्या बोल रहे हो आप
रामशरण : भोली मत बनो भाभी, सब तुम्हारी नाक के नीचे हुआ और तुमने भनक तक न लगने दी, तुमको पता है ना की मैंने आपको हमेशा परिवार के जैसा माना फिर भी आपने ऐसा किया।
काकी : (अनजान बनते हुए )आखिर बताओ तो भैय्या हुआ क्या है ?
रामशरण : रहने दो काकी तुमने और इस मनहूस ने मिलके मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी, सारे जीवन की तपस्या भांग कर दी, मैंने पुरे जीवन अपने और अपने परिवार पर एक दाग नहीं लगने दिया और इस कलंकिनी ने पुरे गांव समाज के सामने पुरे परिवार के मुँह पर कालिख पोत दी
ऐसा बोलते बोलते रामशरण अपनी कुर्सी से उठ कर सरिता के पास पहुंचे और एक लात उसके पेट पर ज़ोर से मारी, सरिता दर्द से बिलबिला उठी और ज़मीन पर सीधी हो को कर चित लेट गयी। उसका चेहरा लाल भभोका हो रहा था और होंठ फैट के किनारी से खून और लार टपक रहा था, पण्डितायीं से अपनी पति की ये दुर्दशा देखि ना गयी लपक कर बेटी के पास पहुंची लेकिन रामशरण का गुस्सा सातवे आसमान पर था, पण्डितायीं को धक्का दे कर दूर हटाया फिर सरिता की ओर झुक कर देखा देखा और दांत पिस्ता हुआ गुर्राया " बोल फिर मिलने जाएगी तू उस नीच पाखंडी से"। सरिता जो ज़मीन पर चित लेती आसमान की ओर देख रही थी कुछ बड़बड़ायी, रामशरण ने फिर एक चांटा उसके गाल पर ज्यादा और चिल्लाया, जोर से बोल ताकि तेरी माँ और काकी को भी सुनाई दे, ताकि इनको भी पता लगे की तू कितना गिर चुकी है, बोल कुतिया, बता इन सबको भी" कह कर रामशरण ने ससरिता के शरीर को झिंझोर दिया
सरिता : (जोर से ) हाँ हाँ जाउंगी मैं दीनू के पास, रोज़ जाउंगी, आपको जो करना है कर लो लेकिन मैं उसी के पास जाउंगी और उसी के साथ रहूंगी।
ये सुनके फिर रामशरण ने फिर एक जोरदार लात सरिता के कमर पर जड़ दी, सरिता दर्द से दोहरी हो कर चिल्लाने लगी, पण्डितायीं से अब सबर ना हुआ आखिर इकलौती बेटी थी लाढ से पला था, लपक के बेटी के पास गयी और उसका सर अपने गोदी में रख लिया
पण्डितायीं : बस पंडित जी अब मत मारो, मैं समझाउंगी इसको ये नहीं जाएगी फिर कभी
मैं भी जल्दी से पंडित जी के पास पहुंची, " पंडित जी और मत मारो, जवान लड़की है मैं समझा के देखती हूँ "
रामशरण : इसे समझा लो, अगर मान जाये तो ठीक नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा।
इतना कह कर पंडित रामशरण अपने कमरे चला गया, हम दोनों औरतो ने मिलकर बड़ी मुश्किल से सरिता को उठाया और दालान में बिछी एक चारपाई पर ला कर उसको लिटा दिया, पण्डितायीं भाग कर पानी ले आयी और कुछ घूँट सरिता को पिलाया और उसका सर गोद में लेके पण्डितायीं वही चारपाई पर बैठ गयी और रोने लगी।
पण्डितायीं : भाभी मेरे तो भाग ही फुट गए, इस करमजली ने कही का न छोड़ा
मैं : आखिर हुआ क्या इसने किया क्या है ?
पण्डितायीं : अरे इस करमजली ने चककर चलाया हुआ है सुम्मु धोबी के लड़के के साथ, हमे तो खबर ही नहीं थी, रोज़ दिन ढले मुझसे बोलके जाती थी की बुधिया काकी के घर जा रही हूँ और फिर ये उस हरामी के साथ गुलछर्रे उड़ाती फिरती थी, वो तो हरिया नाई ने देख लिया और आज इनको बताया दिया, अब ये हरिया पुरे गांव में गाता फिरेगा और पूरे गांव समाज में हमारी इज़्ज़त मिटटी में मिलाएगा।
मैं : पण्डितायीं तुम हरिया की चिंता ना करो मैं उसको संभल लुंगी, उसकी खुद की बेटी का चककर चल रहा है दूर गांव में उसको खुद पता नहीं है, मैं उसको समझा दूंगी बात संभल जाएगी,
पण्डितायीं : अरे भाभी आप उसको तो संभल लेंगी लेकिन इसको तो समझाओ ये पगला गयी है अपने बाप से जुबान लड़ा रही है।
मैं : पण्डितायीं बहुत समझा चुकी लेकिन ये कहा सुन्नति है किसी की
पण्डितायीं : हाँ भाभी, मुझे पता लग गया था, मैंने बहुत समझाया लेकिन नहीं मानी, मुझसे वचन ले लिया था की किसी को न बताऊ, लेकिन आज जब आपको पता चल ही गया है तो बता रही हूँ , पंडित जी को मत बताना, साल होने को आया है तब से इन दोनों का चक्कर है।
मैंने और पण्डितायीं ने सरिता को उस दिन लाख समझाया लेकिन सरिता टस से मस नहीं हुई थक हार कर हम दोनों ने पंडित जी को झूट बोल दिया की हाँ बोल रही है अबसे नहीं मिलेगी उस दीनू से।
कुछ देर बाद मैं घर आगयी, रस्ते में मैं हरिया के घर होती हुई आयी और उसे समझा दिया इशारो में, अभी तक हरिया ने एक दो लोगो तक ही बात पहुचायी थी, हरिया समझदार था समझ गया की उसकी भी जवान बेटी है इसलिए बात मान गया, वैसे भी पंडित रामशरण के परिवार की बात थी।
अगली सुबह मैं सबसे पहले सुम्मु के घर जा पहुंची, सुबह सुबह सुम्मु कपडे धोने जाती था, इस टाइम उसकी घरवाली अकेली होती थी, मुझे देख कर उसने मेरा सत्कार किया और चारपाई पर बिठाने के बाद जल्दी से कर एक थाली में लड्डू सजा लायी, " ये लो दीदी मुँह मीठा करो "
मैं अचकचा गयी " किस ख़ुशी में ? "
" अरे आपको नहीं पता अपने दीनू का नौकरी पक्का हो गया है, शहर में सरकारी होटल बना है उसी में"
"ओह्ह अच्छा, बधाई हो अब तेरे भी दुःख दूर होंगे " कब हुआ ये
" अरे क्या बताऊ दीदी बहुत दिन से साहब लोगो की सेवा कर रहा था, अब जाके उन्होंने पक्का किया है, होटल में कमरा का चादर तकिया बदलने का काम है, साहब लोग बोला है बाद में धोने का काम भी इसके बापू को मिलेगा "
" ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है तूने, लेकिन मैं एक बुरी खबर सुनाने आयी हूँ "
"क्या बुरी खबर दीदी ?" एक दम से उसके चेहरे का रंग उड़ गया था
"यही की पंडित रामशरण को सरिता और दीनू का पता चल गया है "
" मैं समझी नहीं क्या पता चल गया है मालिक साब को "
"अब तू इतनी भोली मत बन यही जो तेरे बेटे और सरिता के बीच चक्कर चल रहा है वो ही पता चल गया है और पंडित जी मार पिट के सरिता का घर में बंद कर दिया है अब तू भी अपने बेटे को संभल नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा"
"माँ कसम दीद मुझे नहीं पता कुछ भी, मुझे तो लगा था की गुड़िया रानी मेरे पास सिलाई सीखने आती थी, मैं गरीब इसी बात से खुश थी की मालिक की बिटिया हमारे घर बैठ कर हम गरीबो का सम्मान ऊंचा कर रही है, मुझे तनिक भी पता होता तो मैं खुद मालिक को बता कर आती, उनके इतने उपकार है हमारे परिवार पर भला हम ऐसा सोच भी कैसे सकते है "
"हाँ तो मैं तुझे यही समझने आयी थी, इस से पहले मालिक तुझे बुलाये दीनू को साथ ले जा और मालिक से माफ़ी मांग ले नहीं तो बाद में बहुत मुश्किल हो जाएगी, तेरा आदमी सीधा साधा है, पुरखो से मिलजुल कर इस गांव में रहे हो, मैं नहीं चाहती की कोई ऐसा काण्ड हो जिस से किसी प्रकार की मुसीबत तेरे परिवार पर आये। "
" मैं समझ गयी दीदी, आने दो दीनू के बापू को, आज ही मैं दीनू को लेकर जाउंगी और मालिक से हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग लेंगे "
मैं सुम्मु की पत्नी को समझा कर घर आगयी, मुझे सरिता की चिंता थी की पता नहीं क्या हुआ होगा उसके साथ, इसी उधेरबुन में शाम हो गयी, अभी अँधेरा नहीं हुआ था इतने में मैंने सुम्मु को दीनू को हाथ पकड़ कर मेरे घर की ओर आते हुए देखा
सुम्मु : दीदी मैं इसको ले के आया हूँ अगर आप भी साथ चलो मेरी हिम्मत नहीं हो रही अकेले मालिक के सामने जाने की
मैं भी चाहती थी कैसे भी हो ये बात अब यही समाप्त हो जाये इसलिए मैं उन्दोनो के साथ पंडित रामशरण के घर जा पहुंची।