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अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता।
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता।।
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में,
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता।।
ये मज़ा था दिल्लगी का कि बराबर आग लगती,
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता।।
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते,
अगर अपनी जिन्दगी का हमें ऐतबार होता।।
______"दाग़" देहलवी
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता।।
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में,
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता।।
ये मज़ा था दिल्लगी का कि बराबर आग लगती,
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता।।
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते,
अगर अपनी जिन्दगी का हमें ऐतबार होता।।
______"दाग़" देहलवी