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- जेठ जी बने छोटी भाभी के गुलाम
मैं जब आगरा से वापिस वाराणस आई तब की है यह कहानी, मेरे पति की फैमिली से है, मेरे पति के बड़े भाई की है जो लखनऊ में BDO के पद पर थे, पर जब उनका उनका अपनी बीवी से तलाक़ हो गया था तो उन्होंने अपनी पोस्टिंग बनारस करा ली थी, और उसके बाद हम साथ मे रहने लगें।
मेरे जेठ जी बड़े शर्मीले, बिल्कुल किसी लड़की की तरह, घर मे किसी को पता नही था कि जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, जब भी घर मे कोई पूछता तो वह सिर झुकाकर शांत हो जातें।
मेरे अंदर भी यह इच्छा थी जानने की, आखिर जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, कुछ ऐसा था जो वह छुपा रहे थें लेकिन मैंने भी ठान ली कि अपने जेठ जी का राज पता करके ही दम लुंगी, अब चुकी मैं उनके छोटे भाई की पत्नी थी और घर की छोटी बहू इसलिए अपने जेठ जी से सीधा सवाल तो नही कर सकती थी, लेकिन अपने तरफ से कोशिश जारी रखी कि जल्द जल्द से यह राज़ पता कर सकूं।
अब थोड़ा अपने जेठ जी और अपने बारे में भी बता दूं, वह दिखने के काफ़ी दुबले पतले और लम्बाई में मेरी बराबरी के थें, मतलब 5 फुट 5 इंच हम दोनो की लंबाई थी, लेकिन शरीर और ताक़त में मैं जेठ जी से कई गुना आगे थी, कॉलेज के समय ही district level पर Weightlifting Championship जीत चुकी थी, और एक हाथ से अपने जेठ जी को उठाकर फेंक सकती थी, मेरी हाथों से कई गुना ज्यादा ताक़त तो मेरे पैरों में थी, मेरी गठीली मजबूत मांसल जाँघों को देखकर किसी भी मर्द की साँसे फूल सकती थी, और जेठ जी जैसे लोगों की तो हवाइयां गुम हो जाती।
लेकिन जेठ जी दिखने में बहुत मासूम और स्वभाव से उतना ही सीधे सादे थें, मुझे विश्वास नहीं होता था कि ऐसे व्यक्ति को भी कोई तलाक दे सकता है, अगर मेरे पति ऐसे होते हैं तो मैं उन्हें कभी तलाक नहीं देती।
अब अपनी तलाक के बाद जेठ जी को बनारस रहते हुए 1 महीने से ज्यादा का समय गुजर चुका था, और धीरे-धीरे मैं भी उन्हें समझने लगी थी, वह बड़े ही मासूम थे, बिल्कुल शांत रहने वाले, हर वक्त चुपचाप रहते, मैं उनके सामने कम ही जाया करती थी लेकिन एक बात मैं मिलाती कि जब भी उनके पास होती तो जेठ जी सिर झुका लेते, जैसे मेरी आंखों में उन्हें देखने की हिम्मत ना हो, जैसे वह मुझसे डर रहे हों, हालांकि जेठ जी जैसे दुबले पतले शरीर वाले मर्द को मेरे जैसे ताकतवर औरतों से डरने की जरूरत थी, लेकिन उन्हें पता था कि मैं उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं करूंगी, और इसके बावजूद भी वह मेरे सामने इस तरह सिर झुकाए खड़े रहते जैसे मुझसे बहुत डरे सहमे हों।
जिस तरीके से वो मेरे सामने सिर झुका कर चुपचाप खड़े रहते उससे एक बात तो मैं पूरे दावे के साथ कह सकती थी कि अगर मैं मजाक में ही अपने जेठ जी को डांट देती तो वह तुरंत रोने लगते।
लेकिन इसके साथ मुझे यह भी आश्चर्य होता कि एक मर्द होकर जेठ जी ऐसा क्यों करते हैं, यह बात मैं समझ नहीं पा रही थी, फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे हैरानी भी हूं और जेठ जी के सारे राज खुल कर सामने आ गए।
गर्मी का मौसम था और मैं किचन में काम कर रही थी, किचन में कोई पंखा नहीं होने की वजह से मेरा पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था, इसलिए सोची कि थोड़ा देर जाकर अपने कमरे में आराम कर लेती हूँ, वैसे किचन में बर्तनों का ढेर पड़ा था, फिर भी सोची कि बस कुछ ही देर की बात है और फिर थोड़ा देर आराम करने के बाद वापस किचन में चली आऊंगी, ऐसे में मैं अचानक किचन से निकली और तेज कदमों के साथ अपने बेडरूम में चली आई, बेडरूम में आने के बाद दरवाजा अंदर से बंद कर दी और बिस्तर पर आकर बैठ गई, कमरे में पंखें के साथ AC भी चल रही थी, इसलिए अंदर आने के साथ ही बड़ी राहत महसूस हुई, मैं बिस्तर पर लेटी हुई थी और मेरे दोनों पैर पलंग से नीचे झूल रहे थे, मेरे पैरों में लगी पायल की खन खन कमरे में गूंज रही थी, और ऊपर दीवार पर लगी AC और पंखे की हवा एक साथ मेरे बदन से पसीने को सुखाने में व्यस्त थे, जैसे वह दोनों मेरे दास हों और अपनी मालकिन को देखकर अपनी ड्यूटी पर लग गए हो, ठीक एक गुलाम की तरह अपनी मालकिन की बदन से पसीने की बूंदों को सुखा रहे थें।
यह सब सोचकर ही मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, काश यह दोनों पंखा और AC कोई मशीन ना होकर इंसान होते और मेरे दो तरफ खड़े होकर अपने हाथों से पंखा चलाते, मैं किसी रानी की तरह इस बिस्तर पर लेटी रहती औऱ मजे से सो रही होती, फिर अपने मन को कोसते हुए कहने लगी "क्या शीतल तू भी क्या क्या सोचती है, इस जमाने में कोई गुलाम या दास कहां से आएगा, अब राजा और रानियों का समय चला गया, उस जमाने में दास और गुलाम हुआ करते थे, अब कहां से आएंगे, अब तो तुझे AC और पंखे से ही काम चलाना होगा"
यही सब सोचते हुए मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, अकेली घर पर थी इसलिए फिजूल की बातें दिमाग में घूम रही थी, कुछ ही देर बिस्तर पर लेटने के बाद सारी थकान दूर हो गई, और अब उठकर किचन में जाने वाली ही थी कि तभी शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई और खुद को निहारने लगी, 28 साल की उम्र थी मेरी, जवान बदन था और शादी के बाद मेरे हुस्न में और ज्यादा निखार आ चुका था, किसी कातिल हसीना की तरह में नजर आती, मेरे पति काफी भाग्यशाली थें जो उन्हें मेरी जैसी पत्नी मिली थी, शीशे के सामने खड़ी होकर कुछ देर तक अपने हुस्न को निहारे जा रही थी, कभी ऊपरी उभार को देखती तो कभी कमर की पतलाई को, देख कर मन ही मन मुस्कुरा देती, कभी अपनी जांघों की मोटाई को देखकर खुद पर गर्व करती, साड़ी के नीचे भी मेरी जाँघों का उभार खुलकर दिख रहा था, जांघों से नीचे देखते हुए अब मेरी नजर अपने पैरों पर थी, पैर में कोई चप्पल नहीं थी और दोनों पैरों पर लगी चांदी की पायल काफी जच रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे इन पायल की भी किस्मत चमक गई हो जो इन्हें इतनी खूबसूरत पैर मिले।
एक बात आप सभी को सच सच बता दुँ कि मुझे अपने हुस्न पर काफी गर्व था, घमंड थी मुझे अपनी जवानी पर, मैं जानती थी कि किसी भी मर्द को मैं अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उसे अपने कदमों में झुका सकती हूं, अगर चाह दुँ तो कोई भी मर्द मेरा कुत्ता बनकर मेरी कदमों में बैठ जाएगा।
कुछ देर तक मैं अपने पैरों को देखती रही, दोनों पैर में पायल की खूबसूरती मुझे काफी अच्छी लग रही थी, लेकिन इसी के साथ अगले ही पल मैं जो देखी उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी, शीशे में मेरे जेठ जी नजर आ रहे थे, वह मेरे बेडरुम में थें, मेरे पलंग के नीचे छुपे हुए किसी चोर की तरह और पलंग के नीचे दुबक कर बैठे थे, अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?
जेठ जी मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं और ऐसे पलंग के नीचे क्यों छिपे हैं, जहां से मैं देख रही थी वहां से जेठ जी के शरीर का दाहिना हिस्सा दिख रहा था, वह फर्श पर सिर झुकाए हुए चार पैरों पर बैठे थेँ, बिल्कुल किसी कुत्ते की तरह, उन्हें अभी भी यही लग रहा था कि वह मेरी नजरों से बच जाएंगे, लेकिन अब तो मैं उन्हें देख चुकी थी और अंदर ही अंदर कुछ सोच रही थी कि ऐसा क्या करूं जिससे की जेठ जी के सारे राज मेरे सामने खुलकर आ जाएं, लेकिन फिर सोची कि अगर इस वक्त हड़बड़ी में कुछ की तो फिर सब बिगड़ जाएगा।
जेठ जी चार पैरों पर झुक कर फ़र्श पर बैठे हुए थे और उनका सिर नीचे झुका था, जिस स्थिति में वह बैठे थेँ उसे देखकर पता नहीं क्यों मुझे लगा कि मेरे पलंग के नीचे जेठ जी नहीं बल्कि कोई कुत्ता बैठा हो, एक पालतू कुत्ता, जो मेरा कुत्ता हो और यहां मेरे कमरे में अपनी मालकिन को देखकर पलंग के नीचे छुप गया हो, इसी के साथ यह भी एहसास हुआ कि मेरी पलंग के नीचे बैठा इंसान कोई मामूली इंसान नहीं बल्कि मेरा गुलाम है, मेरा दास है, वहीं गुलाम कुत्ता जो अपनी मालकिन की आवाज सुनते ही पलंग से बाहर आ जाएगा, वही गुलाम जो अपनी हाथों से पंखा हीलाएगा ताकि उसकी मालकिन चैन की नींद सो सके।
मैं काफी देर तक शीशे के सामने खड़ी रही और जेठ जी को निहारती रही, तभी मेरी नजर उनके दोनों हाथों पर गई, उनके दोनों हाथ आगे की तरफ निकले थे, मतलब पलंग से हल्के बाहर, अगर पलंग के पास जाकर मैं चाहूं तो अपनी पैरों से उनके दोनों हाथ को कुचल सकती थी, उनके दोनों हाथ की उंगलियां एक दूसरे को पकड़े हुए थे और यहीं देखकर मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, क्योंकि अब मैं जेठ जी को मजा चखाने वाली थी।
तुरंत अलमीरे के पास गई और दरवाजा खोलकर नीचे के खंड से अपनी एक काले रंग की हील्स निकाली, और शीशे के सामने बैठकर दोनों पैरों में हील्स पहन ली, हिल्स सपाट थी और 3 इंच उठी हुई थी, दोनों पैरों में हील्स पहनकर कर एक बार जेठ जी की तरफ देखी और मन ही मन सोचने लगी "बस अब कुछ पल और इंतजार कर मेरा गुलाम, तेरी मालकिन तुझे अपना कुत्ता बनाने आ रही है"
मैं उठकर पलंग के पास जाने लगी, मैं यकीन नहीं कर पा रही थी कि मेरे बेडरूम में जेठ जी मेरे पलंग के नीचे कुत्ता बनकर बैठे हैं, अरे जेठ जी का स्थान ससुर के बराबर होता है, पति के बड़े भाई होते हैं लेकिन फिर भी इन सब में मेरी क्या गलती थी, वह खुद ही तो मेरे कमरे में आकर कुत्ता बनने पर उतावले थे तो आखिर मैं क्या करती?
पलंग के पास आकर ठीक वहीं बैठ गई जिसके नीचे जेठ जी के दोनों हाथ दिख रहे थे, उन्हें अभी भी इसी बात का अंदाजा था कि मैं उन्हें नहीं देख सकती, लेकिन मैं तो बहुत शातिर थी, मेरी निगाहों से बच पाना जेठ जी के लिए या किसी दूसरे के लिए बड़ी मुश्किल था, जेठ जी को अंदाजा भी नहीं था कि उनके छोटे भाई की पत्नी कितनी बड़ी खिलाड़ी है, मैं अपनी एक पैर उठाई और जेठ जी कि दोनों हथेली के ऊपर रख दी, अभी ज्यादा जोर से नहीं दबा रही थी बल्कि अभी बहुत कम वजन उनके हाथों पर थी, मैं जानती थी कि मेरे पैरों में इतनी ताकत है कि अगर अपनी पूरी ताकत से जेठ जी के दोनों हथेली दबा दी तो उनके हथेलियों की हड्डी टूट जाएगी, लेकिन बेचारे को मैं अभी इतना दर्द देना नहीं चाहती थी, हां आगे अगर वक्त या मौका मिला तो ऐसा जरूर करूंगी।
लेकिन फिलहाल तो मैं बस मजे ले कर छोड़ देना चाहती थी, जैसे ही मेरी हील्स जेठ जी के दोनों हथेली पर गई उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी, मैं शीशे में तिरछी निगाहों के साथ जेठ जी को देख रही थी, उनकी हालत खराब हो चुकी थी, उन्हें डर लग रहा था कि कहीं मुझे यह पता ना चल जाए कि मेरे जेठ जी चोर की तरह मेरी पलंग के नीचे छुपे हुए हैं, मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, फिलहाल उन्हें दर्द तो नहीं हो रहा था लेकिन घबराहट काफी बढ़ गई थी, उनके चेहरे पर परेशानी और अपने छोटे भाई की पत्नी का खौफ साफ नजर आ रहा था।
मैं यहीं सोची थी कि अभी अपनी हरकतों से जेठ जी को चौका दूंगी, लेकिन मैं गलत थी, क्योंकि जेठ जी खुद अपनी हरकतों से मुझे चौंकाने वाले थे, मैं हल्के वजन के साथ उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी, और शीशे में हर वक्त उनके तरफ ही देख रही थी, आगे जो कुछ मैं देखी उस पर ही यकीन करनी बड़ी मुश्किल थी, जेठ जी को डर तो लग रहा था लेकिन उसी के साथ वह अपने चेहरे को पलंग के नीचे से आगे बढ़ाते हुए मेरी हिल्स के पास ले आए और अपनी जीभ निकालकर मेरी हील्स चाटने लगें, जहां से मैं उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी वहीं से वह अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरी हील्स को चाट रहे थे, मैं काफी हैरान थी।
दोस्तों आप ही बताइए, यह कोई आम बात तो थी नहीं, एक मर्द होकर और वह भी मेरे जेठ जी होकर मेरी हील्स अपनी जीभ से चाट रहे थें, यह क्या कोई आम बात है, हैरान तो मैं बहुत थी, समझ नहीं पा रही थी कि जेठ जी क्या कर रहे हैं, एक तरफ वह डरे हुए थे और दूसरी तरफ मेरी हिल्स को अपनी जीभ से चाट रहे थे, वह भी एक इंसान होकर एक कुत्ते की तरह अपनी जीभ बाहर निकालकर मेरी गंदी हिल्स को अपनी जीभ से चाटकर साफ कर रहे थे, मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, मैं बार-बार यही सोचती की जेठ जी ऐसा क्यों कर रहे हैं।
मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, शीशे में फिर देखी तो जेठ जी वैसे ही मेरी हील्स को बड़े चाव से चाट रहे थें, जैसे कोई कुत्ता हड्डी को चाटता है न ठीक वैसे ही मेरे जेठ जी मेरी हील्स को अपनी जीभ से चाट रहे थें, अब दोस्तों मैं क्या बताऊँ, मेरे पलंग के नीचे बैठा वह कुत्ता, जो रिश्ते में मेरा जेठ था, मेरे पति का बड़ा भाई था, जिसके सामने मैं कभी घूंघट नही हटाई वह इंसान अभी कुत्ता बनकर मेरी गंदी हील्स चाट रहा था।
अब मैं क्या करती, मैं तो बहुत हैरान थी, घर की छोटी बहू थी, आखिर क्या कर सकती थी, यह तो अच्छा हुआ कि अभी घर मे सिर्फ हम दोनो थें, मेरे पति ऑफिस के लिए निकल चुके थेँ और मेरे सास ससुर भगवान का जागरण सुनने निकले थेँ, और घर पर रह गई सिर्फ मैं और मेरा कुत्ता, मतलब मेरे जेठ जी, अब तो समझ नही पा रही थी कि इस इंसान को कुत्ता कहकर बुलाऊँ या जेठ जी।
जब कुछ नही सुझा तो अचानक अपने पैर का दबाव जेठ जी के हथेली पर बढ़ाने लगी, शीशे में देखी तो उनकी छटपटाहट बढ़ने लगी थी लेकिन के साथ वह और तेज़ी से मेरी हील्स को चाटने लगें, मतलब मैं जितना ज़ोर से दबाती जेठ जी उतना ही तेज़ी से मेरी हील्स चाटते थें, अब आप ही बताइए दोस्तों क्या यह किसी इंसान के लछन हैं, नही न, यह तो कोई कुत्ता ही कर सकता है, तो क्या मैं अपने जेठ जी को कुत्ता मान लूँ?
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