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Adultery जेठ जी बने छोटी भाभी के गुलाम

boss@24

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  • जेठ जी बने छोटी भाभी के गुलाम

मैं जब आगरा से वापिस वाराणस आई तब की है यह कहानी, मेरे पति की फैमिली से है, मेरे पति के बड़े भाई की है जो लखनऊ में BDO के पद पर थे, पर जब उनका उनका अपनी बीवी से तलाक़ हो गया था तो उन्होंने अपनी पोस्टिंग बनारस करा ली थी, और उसके बाद हम साथ मे रहने लगें।

मेरे जेठ जी बड़े शर्मीले, बिल्कुल किसी लड़की की तरह, घर मे किसी को पता नही था कि जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, जब भी घर मे कोई पूछता तो वह सिर झुकाकर शांत हो जातें।

मेरे अंदर भी यह इच्छा थी जानने की, आखिर जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, कुछ ऐसा था जो वह छुपा रहे थें लेकिन मैंने भी ठान ली कि अपने जेठ जी का राज पता करके ही दम लुंगी, अब चुकी मैं उनके छोटे भाई की पत्नी थी और घर की छोटी बहू इसलिए अपने जेठ जी से सीधा सवाल तो नही कर सकती थी, लेकिन अपने तरफ से कोशिश जारी रखी कि जल्द जल्द से यह राज़ पता कर सकूं।

अब थोड़ा अपने जेठ जी और अपने बारे में भी बता दूं, वह दिखने के काफ़ी दुबले पतले और लम्बाई में मेरी बराबरी के थें, मतलब 5 फुट 5 इंच हम दोनो की लंबाई थी, लेकिन शरीर और ताक़त में मैं जेठ जी से कई गुना आगे थी, कॉलेज के समय ही district level पर Weightlifting Championship जीत चुकी थी, और एक हाथ से अपने जेठ जी को उठाकर फेंक सकती थी, मेरी हाथों से कई गुना ज्यादा ताक़त तो मेरे पैरों में थी, मेरी गठीली मजबूत मांसल जाँघों को देखकर किसी भी मर्द की साँसे फूल सकती थी, और जेठ जी जैसे लोगों की तो हवाइयां गुम हो जाती।

लेकिन जेठ जी दिखने में बहुत मासूम और स्वभाव से उतना ही सीधे सादे थें, मुझे विश्वास नहीं होता था कि ऐसे व्यक्ति को भी कोई तलाक दे सकता है, अगर मेरे पति ऐसे होते हैं तो मैं उन्हें कभी तलाक नहीं देती।

अब अपनी तलाक के बाद जेठ जी को बनारस रहते हुए 1 महीने से ज्यादा का समय गुजर चुका था, और धीरे-धीरे मैं भी उन्हें समझने लगी थी, वह बड़े ही मासूम थे, बिल्कुल शांत रहने वाले, हर वक्त चुपचाप रहते, मैं उनके सामने कम ही जाया करती थी लेकिन एक बात मैं मिलाती कि जब भी उनके पास होती तो जेठ जी सिर झुका लेते, जैसे मेरी आंखों में उन्हें देखने की हिम्मत ना हो, जैसे वह मुझसे डर रहे हों, हालांकि जेठ जी जैसे दुबले पतले शरीर वाले मर्द को मेरे जैसे ताकतवर औरतों से डरने की जरूरत थी, लेकिन उन्हें पता था कि मैं उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं करूंगी, और इसके बावजूद भी वह मेरे सामने इस तरह सिर झुकाए खड़े रहते जैसे मुझसे बहुत डरे सहमे हों।

जिस तरीके से वो मेरे सामने सिर झुका कर चुपचाप खड़े रहते उससे एक बात तो मैं पूरे दावे के साथ कह सकती थी कि अगर मैं मजाक में ही अपने जेठ जी को डांट देती तो वह तुरंत रोने लगते।

लेकिन इसके साथ मुझे यह भी आश्चर्य होता कि एक मर्द होकर जेठ जी ऐसा क्यों करते हैं, यह बात मैं समझ नहीं पा रही थी, फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे हैरानी भी हूं और जेठ जी के सारे राज खुल कर सामने आ गए।

गर्मी का मौसम था और मैं किचन में काम कर रही थी, किचन में कोई पंखा नहीं होने की वजह से मेरा पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था, इसलिए सोची कि थोड़ा देर जाकर अपने कमरे में आराम कर लेती हूँ, वैसे किचन में बर्तनों का ढेर पड़ा था, फिर भी सोची कि बस कुछ ही देर की बात है और फिर थोड़ा देर आराम करने के बाद वापस किचन में चली आऊंगी, ऐसे में मैं अचानक किचन से निकली और तेज कदमों के साथ अपने बेडरूम में चली आई, बेडरूम में आने के बाद दरवाजा अंदर से बंद कर दी और बिस्तर पर आकर बैठ गई, कमरे में पंखें के साथ AC भी चल रही थी, इसलिए अंदर आने के साथ ही बड़ी राहत महसूस हुई, मैं बिस्तर पर लेटी हुई थी और मेरे दोनों पैर पलंग से नीचे झूल रहे थे, मेरे पैरों में लगी पायल की खन खन कमरे में गूंज रही थी, और ऊपर दीवार पर लगी AC और पंखे की हवा एक साथ मेरे बदन से पसीने को सुखाने में व्यस्त थे, जैसे वह दोनों मेरे दास हों और अपनी मालकिन को देखकर अपनी ड्यूटी पर लग गए हो, ठीक एक गुलाम की तरह अपनी मालकिन की बदन से पसीने की बूंदों को सुखा रहे थें।

यह सब सोचकर ही मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, काश यह दोनों पंखा और AC कोई मशीन ना होकर इंसान होते और मेरे दो तरफ खड़े होकर अपने हाथों से पंखा चलाते, मैं किसी रानी की तरह इस बिस्तर पर लेटी रहती औऱ मजे से सो रही होती, फिर अपने मन को कोसते हुए कहने लगी "क्या शीतल तू भी क्या क्या सोचती है, इस जमाने में कोई गुलाम या दास कहां से आएगा, अब राजा और रानियों का समय चला गया, उस जमाने में दास और गुलाम हुआ करते थे, अब कहां से आएंगे, अब तो तुझे AC और पंखे से ही काम चलाना होगा"

यही सब सोचते हुए मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, अकेली घर पर थी इसलिए फिजूल की बातें दिमाग में घूम रही थी, कुछ ही देर बिस्तर पर लेटने के बाद सारी थकान दूर हो गई, और अब उठकर किचन में जाने वाली ही थी कि तभी शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई और खुद को निहारने लगी, 28 साल की उम्र थी मेरी, जवान बदन था और शादी के बाद मेरे हुस्न में और ज्यादा निखार आ चुका था, किसी कातिल हसीना की तरह में नजर आती, मेरे पति काफी भाग्यशाली थें जो उन्हें मेरी जैसी पत्नी मिली थी, शीशे के सामने खड़ी होकर कुछ देर तक अपने हुस्न को निहारे जा रही थी, कभी ऊपरी उभार को देखती तो कभी कमर की पतलाई को, देख कर मन ही मन मुस्कुरा देती, कभी अपनी जांघों की मोटाई को देखकर खुद पर गर्व करती, साड़ी के नीचे भी मेरी जाँघों का उभार खुलकर दिख रहा था, जांघों से नीचे देखते हुए अब मेरी नजर अपने पैरों पर थी, पैर में कोई चप्पल नहीं थी और दोनों पैरों पर लगी चांदी की पायल काफी जच रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे इन पायल की भी किस्मत चमक गई हो जो इन्हें इतनी खूबसूरत पैर मिले।

एक बात आप सभी को सच सच बता दुँ कि मुझे अपने हुस्न पर काफी गर्व था, घमंड थी मुझे अपनी जवानी पर, मैं जानती थी कि किसी भी मर्द को मैं अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उसे अपने कदमों में झुका सकती हूं, अगर चाह दुँ तो कोई भी मर्द मेरा कुत्ता बनकर मेरी कदमों में बैठ जाएगा।

कुछ देर तक मैं अपने पैरों को देखती रही, दोनों पैर में पायल की खूबसूरती मुझे काफी अच्छी लग रही थी, लेकिन इसी के साथ अगले ही पल मैं जो देखी उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी, शीशे में मेरे जेठ जी नजर आ रहे थे, वह मेरे बेडरुम में थें, मेरे पलंग के नीचे छुपे हुए किसी चोर की तरह और पलंग के नीचे दुबक कर बैठे थे, अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

जेठ जी मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं और ऐसे पलंग के नीचे क्यों छिपे हैं, जहां से मैं देख रही थी वहां से जेठ जी के शरीर का दाहिना हिस्सा दिख रहा था, वह फर्श पर सिर झुकाए हुए चार पैरों पर बैठे थेँ, बिल्कुल किसी कुत्ते की तरह, उन्हें अभी भी यही लग रहा था कि वह मेरी नजरों से बच जाएंगे, लेकिन अब तो मैं उन्हें देख चुकी थी और अंदर ही अंदर कुछ सोच रही थी कि ऐसा क्या करूं जिससे की जेठ जी के सारे राज मेरे सामने खुलकर आ जाएं, लेकिन फिर सोची कि अगर इस वक्त हड़बड़ी में कुछ की तो फिर सब बिगड़ जाएगा।

जेठ जी चार पैरों पर झुक कर फ़र्श पर बैठे हुए थे और उनका सिर नीचे झुका था, जिस स्थिति में वह बैठे थेँ उसे देखकर पता नहीं क्यों मुझे लगा कि मेरे पलंग के नीचे जेठ जी नहीं बल्कि कोई कुत्ता बैठा हो, एक पालतू कुत्ता, जो मेरा कुत्ता हो और यहां मेरे कमरे में अपनी मालकिन को देखकर पलंग के नीचे छुप गया हो, इसी के साथ यह भी एहसास हुआ कि मेरी पलंग के नीचे बैठा इंसान कोई मामूली इंसान नहीं बल्कि मेरा गुलाम है, मेरा दास है, वहीं गुलाम कुत्ता जो अपनी मालकिन की आवाज सुनते ही पलंग से बाहर आ जाएगा, वही गुलाम जो अपनी हाथों से पंखा हीलाएगा ताकि उसकी मालकिन चैन की नींद सो सके।

मैं काफी देर तक शीशे के सामने खड़ी रही और जेठ जी को निहारती रही, तभी मेरी नजर उनके दोनों हाथों पर गई, उनके दोनों हाथ आगे की तरफ निकले थे, मतलब पलंग से हल्के बाहर, अगर पलंग के पास जाकर मैं चाहूं तो अपनी पैरों से उनके दोनों हाथ को कुचल सकती थी, उनके दोनों हाथ की उंगलियां एक दूसरे को पकड़े हुए थे और यहीं देखकर मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, क्योंकि अब मैं जेठ जी को मजा चखाने वाली थी।

तुरंत अलमीरे के पास गई और दरवाजा खोलकर नीचे के खंड से अपनी एक काले रंग की हील्स निकाली, और शीशे के सामने बैठकर दोनों पैरों में हील्स पहन ली, हिल्स सपाट थी और 3 इंच उठी हुई थी, दोनों पैरों में हील्स पहनकर कर एक बार जेठ जी की तरफ देखी और मन ही मन सोचने लगी "बस अब कुछ पल और इंतजार कर मेरा गुलाम, तेरी मालकिन तुझे अपना कुत्ता बनाने आ रही है"

मैं उठकर पलंग के पास जाने लगी, मैं यकीन नहीं कर पा रही थी कि मेरे बेडरूम में जेठ जी मेरे पलंग के नीचे कुत्ता बनकर बैठे हैं, अरे जेठ जी का स्थान ससुर के बराबर होता है, पति के बड़े भाई होते हैं लेकिन फिर भी इन सब में मेरी क्या गलती थी, वह खुद ही तो मेरे कमरे में आकर कुत्ता बनने पर उतावले थे तो आखिर मैं क्या करती?

पलंग के पास आकर ठीक वहीं बैठ गई जिसके नीचे जेठ जी के दोनों हाथ दिख रहे थे, उन्हें अभी भी इसी बात का अंदाजा था कि मैं उन्हें नहीं देख सकती, लेकिन मैं तो बहुत शातिर थी, मेरी निगाहों से बच पाना जेठ जी के लिए या किसी दूसरे के लिए बड़ी मुश्किल था, जेठ जी को अंदाजा भी नहीं था कि उनके छोटे भाई की पत्नी कितनी बड़ी खिलाड़ी है, मैं अपनी एक पैर उठाई और जेठ जी कि दोनों हथेली के ऊपर रख दी, अभी ज्यादा जोर से नहीं दबा रही थी बल्कि अभी बहुत कम वजन उनके हाथों पर थी, मैं जानती थी कि मेरे पैरों में इतनी ताकत है कि अगर अपनी पूरी ताकत से जेठ जी के दोनों हथेली दबा दी तो उनके हथेलियों की हड्डी टूट जाएगी, लेकिन बेचारे को मैं अभी इतना दर्द देना नहीं चाहती थी, हां आगे अगर वक्त या मौका मिला तो ऐसा जरूर करूंगी।

लेकिन फिलहाल तो मैं बस मजे ले कर छोड़ देना चाहती थी, जैसे ही मेरी हील्स जेठ जी के दोनों हथेली पर गई उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी, मैं शीशे में तिरछी निगाहों के साथ जेठ जी को देख रही थी, उनकी हालत खराब हो चुकी थी, उन्हें डर लग रहा था कि कहीं मुझे यह पता ना चल जाए कि मेरे जेठ जी चोर की तरह मेरी पलंग के नीचे छुपे हुए हैं, मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, फिलहाल उन्हें दर्द तो नहीं हो रहा था लेकिन घबराहट काफी बढ़ गई थी, उनके चेहरे पर परेशानी और अपने छोटे भाई की पत्नी का खौफ साफ नजर आ रहा था।

मैं यहीं सोची थी कि अभी अपनी हरकतों से जेठ जी को चौका दूंगी, लेकिन मैं गलत थी, क्योंकि जेठ जी खुद अपनी हरकतों से मुझे चौंकाने वाले थे, मैं हल्के वजन के साथ उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी, और शीशे में हर वक्त उनके तरफ ही देख रही थी, आगे जो कुछ मैं देखी उस पर ही यकीन करनी बड़ी मुश्किल थी, जेठ जी को डर तो लग रहा था लेकिन उसी के साथ वह अपने चेहरे को पलंग के नीचे से आगे बढ़ाते हुए मेरी हिल्स के पास ले आए और अपनी जीभ निकालकर मेरी हील्स चाटने लगें, जहां से मैं उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी वहीं से वह अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरी हील्स को चाट रहे थे, मैं काफी हैरान थी।

दोस्तों आप ही बताइए, यह कोई आम बात तो थी नहीं, एक मर्द होकर और वह भी मेरे जेठ जी होकर मेरी हील्स अपनी जीभ से चाट रहे थें, यह क्या कोई आम बात है, हैरान तो मैं बहुत थी, समझ नहीं पा रही थी कि जेठ जी क्या कर रहे हैं, एक तरफ वह डरे हुए थे और दूसरी तरफ मेरी हिल्स को अपनी जीभ से चाट रहे थे, वह भी एक इंसान होकर एक कुत्ते की तरह अपनी जीभ बाहर निकालकर मेरी गंदी हिल्स को अपनी जीभ से चाटकर साफ कर रहे थे, मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, मैं बार-बार यही सोचती की जेठ जी ऐसा क्यों कर रहे हैं।

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, शीशे में फिर देखी तो जेठ जी वैसे ही मेरी हील्स को बड़े चाव से चाट रहे थें, जैसे कोई कुत्ता हड्डी को चाटता है न ठीक वैसे ही मेरे जेठ जी मेरी हील्स को अपनी जीभ से चाट रहे थें, अब दोस्तों मैं क्या बताऊँ, मेरे पलंग के नीचे बैठा वह कुत्ता, जो रिश्ते में मेरा जेठ था, मेरे पति का बड़ा भाई था, जिसके सामने मैं कभी घूंघट नही हटाई वह इंसान अभी कुत्ता बनकर मेरी गंदी हील्स चाट रहा था।

अब मैं क्या करती, मैं तो बहुत हैरान थी, घर की छोटी बहू थी, आखिर क्या कर सकती थी, यह तो अच्छा हुआ कि अभी घर मे सिर्फ हम दोनो थें, मेरे पति ऑफिस के लिए निकल चुके थेँ और मेरे सास ससुर भगवान का जागरण सुनने निकले थेँ, और घर पर रह गई सिर्फ मैं और मेरा कुत्ता, मतलब मेरे जेठ जी, अब तो समझ नही पा रही थी कि इस इंसान को कुत्ता कहकर बुलाऊँ या जेठ जी।

जब कुछ नही सुझा तो अचानक अपने पैर का दबाव जेठ जी के हथेली पर बढ़ाने लगी, शीशे में देखी तो उनकी छटपटाहट बढ़ने लगी थी लेकिन के साथ वह और तेज़ी से मेरी हील्स को चाटने लगें, मतलब मैं जितना ज़ोर से दबाती जेठ जी उतना ही तेज़ी से मेरी हील्स चाटते थें, अब आप ही बताइए दोस्तों क्या यह किसी इंसान के लछन हैं, नही न, यह तो कोई कुत्ता ही कर सकता है, तो क्या मैं अपने जेठ जी को कुत्ता मान लूँ?
 
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2. पत्नी परमेश्वर :- मेरी बीबी तृषा


मैं ऑफिस जाने की तैयारी में था और मेरी पत्नी तृषा किचन का काम कर रही थी, तैयार होने के साथ ही मेरी नजर अपनी पत्नी तृषा की तरफ ही थी, मेरे लिए वह हमेशा एक रानी और देवी का दर्जा रखती थी, मेरी पत्नी मेरे लिए एक देवी के समान थी, मेरे लिए मेरी पत्नी पूजनीय थी।

अभी किचन में काम करते वक्त तृषा अपने बदन पर सिर्फ एक rose colour की नाइटी पहने हुए थी, इसके अलावां उसके बदन पर एक भी कपड़ा नही था, मैं जानता था कि मेरी पत्नी तृषा ने ऐसा क्यों किया है, आखिर क्यों वह अपने बदन पर सिर्फ एक नाइटी पहनी किचन में काम कर रही थी, क्योंकि वह मुझे छेड़ना चाहती थी, मुझे तड़पाना चाहती थी, तृषा पता था कि उसे ऐसे कपड़ों में देखकर मैं बावला हो जाता हूँ, मुझे हर वक्त अपनी तरफ आकर्षित करने का कोई मौका वह नहीं छोड़ती थी, मुझे तड़पाने में उसे बड़ा मजा आता था।

मेरा नाम राजा है और मैं एक एमएनसी कंपनी में काम करता हूं, मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी राज़ यह है कि मेरे अंदर एक femdom fantasy है, मैं इस चीज़ को मानता हूँ कि औरतों का स्थान हमेशा मर्द से ऊपर है, और मर्द औरतों के पैरों की धूल के बराबर नही हैं, अगर कोई औरत गलती से किसी मर्द को अपने पैरों की धूल समझ ले तो फिर उस मर्द के लिए यह सौभाग्य की बात होगी, मुझे woman supremacy पर पूरा विश्वास था।

शुरू से मेरा एक सपना था कि मैं किसी औरत का नौकर बनकर रहूँ क्योंकि यह किसी भी मर्द के लिए एक सपने की तरह होता है और कौन अपना सपना पूरा करना नही चाहता, और मेरा यह सपना तब पूरा हुआ जब मेरी शादी तृषा से हुई, शादी के बाद जब मुझे पता चला कि तृषा का स्वभाव बिल्कुल एक डोमिनेंट औरत की तरह है तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, ऐसा लगा जैसे ऊपर वाले ने खुद मेरी और तृषा की जोड़ी बनाई हो, वैसे जोड़ियां तो ऊपर वाले ही बनाते हैं, और शादी के बाद मैं हर दिन भगवान को इस बात के लिए शुक्रिया करता हूं कि उन्होंने तृषा को मेरी पत्नी बनाकर भेजा।

तृषा को सबसे पहले मैंने अपने कॉलेज में देखा, वह मुझसे एक साल जूनियर थी और पहली नजर में ही देखकर मैं उसका कायल हो गया, उस दिन कॉलेज में काफी हंगामा हो रहा था, जब मैं हंगामे वाली जगह पहुंच कर देखा तो तृषा एक लोकल मवाली गुंडा को चैलेंज दे रही थी, और अगले ही पल उसे पीटने भी लगी, बेचारा वह मवाली गुंडा अपनी जान बचाकर बड़ी मुश्किल से भाग पाया।

उस वक्त तृषा किसी और की गर्लफ्रेंड थी, उसके बॉयफ्रेंड का नाम था विक्की, किसी कारण से दोनों के बीच तनाव बना और मैंने इसका भरपूर फायदा उठाया, जैसे ही तृषा और विक्की के बीच दूरियां बनी मैं ठीक उसी वक्त तृषा के करीब गया और उसे सांत्वना देने लगा, बहुत जल्द वह मेरी अच्छी दोस्त बनी और फिर मैंने ही उसे शादी के लिए प्रपोज किया।

तृषा के घर वाले भी इस शादी से काफी खुश थे क्योंकि मैं एक अमीर घर का लड़का था और वही तृषा एक साधारण से परिवार से थी, इसलिए तृषा के घर वाले खुशी-खुशी इस शादी को तैयार हो गए, वही मेरे घरवालों को भी कोई खास दिक्कत नहीं थी क्योंकि तृषा एक पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी, इसलिए हमारी शादी दोनों घर के राजामंदी के साथ खुशी-खुशी हो गया, शादी के बाद मेरी फैंटसी और ज्यादा बढ़ने लगी, मैं चाहता था कि तृषा मुझे डोमिनेन्ट करे।

तृषा के शरीर की बनावट ही कुछ ऐसी है कि मैं उससे हर वक्त डोमिनेंट होना चाहता था, तृषा काफी लंबे कद काठी की औरत है, उसका चेहरा इतना मोहक है कि बॉलीवुड की हर एक हीरोइन को मात दे सके।

ऑफिस के लिए तैयार होने के बाद मैंने किचन की तरफ देखते ही पूछा "तृषा, टिफ़िन पैक हुआ"

वह हमेशा की तरह लुभावनी आवाज़ में बोली "ह्म्म्म, हां, बस एक मिनट रुको"

थोड़ी ही देर में तृषा अपने हाथों में टिफिन पकड़े किचन से बाहर निकली, मेरे करीब आई और अपनी हाथ आगे बढ़ाते हुए बहुत ही मीठी आवाज में बोली "यह लो अपनी टिफिन और निकलो ऑफिस के लिए"

मैने तृषा को छेड़ते हुए कहा "आज ऑफिस में बहुत ही जरूरी मीटिंग है और देखो तुम्हारी वजह से आज फिर मुझ में लेट हो जाएगी"

तृषा तुरंत जवाब देते हुए बोली "बहाना मत बनाओ राजा, आज़ मैं वो सब नही करने वाली, अपनी फैंटेसी अपनी जेब मे रखो और निकलो ऑफिस के लिए, वैसे भी मैं काम करके थक गई हूँ"

अब मुझे अपनी बात कहने का मौका मिल गया था, मैंने भी अपनी बात कहने में देर नहीं की और बोला "इसलिए तो मैं इतने दिनों से कह रहा हूं कि एक नौकर रख लेते हैं ताकि वह तुम्हारी मदद कर सके, तुम काम करके थक जाती हो"

तृषा अपनी एक हाथ आगे बढ़ाई और मेरे गाल पर चिकोटी काटते हुए शरारती आवाज में बोली "नहीं मैं कोई नौकर नहीं रखूंगी, मुझे पता है तुम नौकर रखना क्यों चाहते हो"

इसके बाद तृषा धीरे से हंसने लगी और बोली "मैं जानती हूं बच्चु की तुम कोई नौकर रखना नहीं चाहते बल्कि खुद नौकर बनकर रहना चाहते हो"

मैं कुछ कहता कि उससे पहले ही तृषा तेज आवाज में बोली "अब ऑफिस के लिए निकलो, अब तुम्हे देर नही हो रही क्या"

मैंने हल्का शर्माते हुए कहा "नही, जबतक तुम मेरी फैंटेसी पूरी नही करोगी तबतक मैं नही जाने वाला"

तृषा बोली "अरे बाबा तुमको कितनी बार समझाऊं, यह सब करने से तुम को क्या मिलता है, कैसे पति हो तुम कि रोजाना ऑफिस जाने से पहले अपनी पत्नी से आशीर्वाद लेना चाहते हो, मैं तुम्हारी मां नहीं हूं बीवी हूं तुम्हारी, और रोज रोज न यह सब करना मुझे अच्छा नहीं लगता, अब अपना बैग उठाओ और ऑफिस के लिए निकलो"

मैंने कहा "Please dear, आज काफी जरूरी मीटिंग है और इसके लिए मुझे ऑफिस खुले दिमाग के साथ पहुंचना होगा तभी काम सही से कर पाऊंगा, जब तक तुम मुझे अच्छे से अपना आशीर्वाद नहीं देती तब तक मेरी आज की ऑफिस मीटिंग सफल नहीं हो पाएगी, तुम जानती हो ना कि जिस दिन तुम मुझे अपना आशीर्वाद देती हो उस दिन मेरा काम कितनी आसानी से सफल हो जाता है" मैं तृषा को समझाने की कोशिश कर रहा था कि वह मेरी बातों को मान ले और आज़ फिर ऑफिस जाने से पहले मुझे अपना आशीर्वाद दे।

तृषा बोली "तुम मेरी कोई बात बिल्कुल नहीं मानते, हर छोटी सी बात पर जिद्द करने लग जाते हो, ओके ठीक है, चलो जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से तुम्हें आज ऑफिस पहुंचने में देरी हो"

मै खुशी से उछल पड़ा "तो फिर चलिए देवी, पूजा घर मे चलते हैं, वहां अच्छे से आपकी पूजा करूंगा और आपका आशीर्वाद लूंगा"

तृषा बोली "नही, जो करना है यहीं करो, वरना मैं दुबारा मौका भी नही दूँगी"

मैंने कहा "नहीं चलो ना पूजा वाले रूम में चलते हैं, प्लीज"

तृषा बोली "नहीं यह गलत बात है, जो करना है यहीं करो, आशीर्वाद तो कहीं भी दी जा सकती है"

तृषा भी अपनी जिद्द पर अड़ गई थी औऱ मुझे डर था कि अगर मैंने ज्यादा जिद्द की तो फिर तृषा गुस्सा भी हो सकती थी, इसलिए हारकर मुझे उसकी यह बात मानने पर मजबूर होना पड़ा।

तृषा मेरे सामने खड़ी थी इसलिए मैं तुरंत सोफे से उतर कर उसके सामने फर्श पर अपने घुटने के बल बैठ गया, मैं पूरी एकाग्रता के साथ अपनी बीवी से आशीर्वाद लेना चाहता था, मेरे लिए वह एक देवी के समान थी, मैं तो उससे पूजा घर के अंदर ले जाकर उसकी पूजा करना चाहता था लेकिन फिलहाल तृषा ने ऐसा करने से मना कर दिया, मैं उसके सामने घुटने के बल बैठकर सबसे पहले अपना सिर उसके पैरों में झुका दिया, मेरा सिर मेरी बीबी के पैरों को छू रहा था और साथ ही उसके पैरों से निकल रही एक मनमोहक खुश्बू मेरे नाक के अंदर जा रही थी।

मेरी इच्छा तो हो रही थी कि अभी कुछ देर तक इसी तरह अपनी बीबी के पैरों पर सिर रखूं औए साथ मे उसके पैरों से निकल रही मोहक खुश्बू का आनंद लेता रहूँ, लेकिन अभी ऑफिस के लिए देर हो रही थी और साथ में मुझे अपनी बीवी से आशीर्वाद भी तो लेना था उसकी पूजा भी तो करनी थी इसलिए मुझे जो भी करना था उसे पूरा करना जरूरी था।

इसलिए वहां से उठकर किचन के अंदर गया और एक थाली में साफ पानी लेकर तृषा के पास आया, तबतक तृषा सोफ़े पर बैठ चुकी थी, मैं जाकर उसके सामने फ़र्श पर बैठ गया और मेरे हाथों में पानी की थाली देखकर तृषा झूठा गुस्सा दिखाते हुए पुछी "अब इस पानी का क्या करोगे, रोज़ रोज़ नया नया नाटक शुरू करते हो"

मैने कहा "आज़ आपका आशीर्वाद लेने के साथ ही आपके पैरों को साफकर उसका चरणामृत पियूंगा"

मेरी बीवी तृषा अपना एक हाथ अपने सिर पर रखते हुए बोली "हे भगवान यह क्या हो गया है तुम्हे, देखो तो मेरे पैर इतने गंदे हो चुके हैं, क्या तुम इसी का चरणामृत पीना चाहते हो, गजब आदमी हो तुम, इसके बदले तो मैं तुम्हें तुरंत आशीर्वाद दे देती तो ही अच्छा था, वरना रोज तुम्हारी यह फेंटेसी तो बढ़ती ही जा रही है"

मैंने पानी की थाली तृषा के पैरों के नीचे कर दिया और उसके दोनों पैर उठाकर थाली में रख दिया, तृषा अपनी नाइटी को हल्का ऊपर खींचकर घुटनों तक कर ली, उसके सफेद पैर घुटने के नीचे से इतने लज़ीज़ नजर आ रहे थे जैसे इच्छा हो रही थी कि सारे दिन अपना जीभ निकालकर अपनी बीवी के दोनों टांगों को चाटता रहूँ, उसकी गोरी टांगे दिखने में ही इतनी लजीज लग रही थी की मेरे मुंह में पानी आ गया, लेकिन मेरे पास अभी इन सब कामों के लिए समय ही नहीं था, मजबूर था मैं, मुझे समय पर ऑफिस पहुंचना था, इसलिए कैसे भी अपने मन को संभाला और फिलहाल अपना ध्यान अपनी बीवी की पूजा पर लगाया, ताकी पूजा करने के बाद अपनी बीवी तृषा का आशीर्वाद ले सकूं।3

तृषा के दोनों पैर पानी में घुलने लगी, उसके पैर में गंदगी का नामोनिशान नहीं था, लेकिन चुकी थोड़ी देर पहले वह किचन में काम कर रही थी इसलिए उसके तलवे में हल्की मिट्टी लगी हुई थी, वही मिट्टी तृषा के तलवे से निकलकर पानी में घुलने लगी और थोड़ी ही देर में थाली की पानी मिट्टी से पूरी तरह घुल गई, मैं अपनी बीवी के दोनों पैरों को थाली से निकालकर अपनी जाँघों के ऊपर रख लिया, अपने रुमाल से उसके दोनों पैरों पर लगी पानी की बूंदों को साफ करने लगा, वह बड़े गौर से मेरे इस सारी हरकत को देख रही थी।

जब मेरी नजर तृषा पर गई तो वह मुस्कुराते हुए पूछी "आखिर क्या मिलता है तुमको यह सब करके, पता नहीं यह कैसी फैंटेसी है, मैंने तो पहले कभी नहीं सुना"

इस वक्त तृषा मेरी बीवी नहीं बल्कि मेरी देवी थी, इसलिए मैंने काफी नर्म आवाज में कहा "आपने अभी बहुत कुछ नहीं सुना है देवी, अभी बहुत कुछ ऐसा है जिसे सुनना और देखना बाकी है"

तृषा से यह सब बात करते हुए मैंने उसके दोनों पैरों से पानी की बूंदे साफ कर दी थी और फिर उसी रुमाल को लेकर अपने चेहरे पर सहलाने लगा, रुमाल की सुगंध और ज्यादा बढ़ गई थी, तृषा अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ ली और बोली "यह क्या कर रहे हो, अपनी रुमाल दो मैं इसे साफ कर दूंगी"

मैंने कहा "देवी प्लीज आप ऐसा मत कहिए, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि जिस रुमाल से मैंने आपके पैरों को साफ किया उसे अपने चेहरे पर चला पा रहा हूं, यह तो मेरा सौभाग्य है, प्लीज आप मुझे मेरे कर्तव्य को पूरा करने से मत रोकिए"

तृषा अपनी हाथ पीछे खींच ली और झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली "बड़े पागल हो तुम राजा, करो तुम्हारी जो इच्छा है करो, मैं नहीं रोकूंगी"

तृषा की दोनों पैर मेरी जाँघ पर थी और फिर मैंने पानी की थाली अपने दोनों हाथ से उठाकर मुंह के पास ले आया, मेरी बीवी जानती थी कि अब मैं इस पानी को पीने वाला हूं, पहले वह मुझे कुछ कहना चाहि लेकिन फिर जब मैंने उसकी तरफ देखा तो वह अपनी बात कहने से रुक गई, उसे पता था कि इस वक्त मैं उसकी कोई बात नहीं सुनने वाला, इस वक्त तो मैं अपनी फेंटेसी वाली दुनिया में था और मेरे लिए अपनी बीवी की पूजा करना और उसका आशीर्वाद लेने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं था।

अपनी बीवी की आंखों में देखकर मैंने वह पानी पीना शुरू कर दिया, वह मुझे देखकर अजीब मुंह बना रही थी जैसे उसे घिन्न आ रही हो, वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसका पति इतनी आसानी से उसके पैरों की धुली गंदी पानी को पी जाएगा, मैं तो वह पानी इतनी आनंद के साथ पी रहा था जैसे वह कोई अमृत हो, मेरे लिए तो अमृत के समान ही था, इतनी मीठी पानी शायद ही मैंने इससे पहले पी हो, पानी स्वाद में मीठा तो लग ही रहा था लेकिन इसके साथ ही साथ उस पानी को पीकर मुझे अपने अंदर जो शांति महसूस हो रही थी उसे बयां नहीं कर सकता।

ऐसा लग रहा था जैसे आज हमारी जिंदगी का एक बहुत बड़ा सपना पूरा हो चुका है, मेरी बीवी मेरे सामने सोफे पर बैठी थी, उसके दोनों पैर मेरे जाँघ पर थे और मैं उस पानी को पी रहा था जिस पानी में थोड़ी देर पहले मैंने अपनी बीवी के दोनों पैरों को साफ किया था।

थोड़ी ही देर में मैंने पूरी खाली खत्म कर दी, मेरी इच्छा थी कि कुछ पानी बाद में पीने के लिए बचा कर रखूँ, लेकिन मेरी प्यास इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि एक बार में ही मैंने पूरी पानी को खत्म कर दिया और फिर थाली को अपनी जीभ से चाटने लगा, मैं उसे जितना चाटता मेरी प्यास उतनी ही बढ़ती जाती, मेरी भूख बढ़ती जा रही थी, लेकिन मुझे अपनी इस प्यास और भूख को कंट्रोल में रखना था ताकि इस वक्त मैं अपनी बीवी तृषा की पूजा कर सकूँ, अगर इस वक्त मैंने अपनी इस भूख को कंट्रोल में रख लिया तो यही मान लूंगा कि अपनी बीवी की पूजा करते हुए मैंने उपवास व्रत रखा है।

मैं तो अभी बहुत कुछ करना चाहता था लेकिन फिलहाल मुझे ऑफिस के देर हो रही थी इसलिए अपनी बीबी से कहा "देवी अब आशीर्वाद देने का समय आ रहा है, जल्दी से अपना आशीर्वाद दे दिजिए"

तृषा ताना मारते हुए बोली "हो गया तुम्हारा नाटक खत्म, या अभी और कुछ करना भी बाकी है"

मैने कुछ नही कहा और अपना अपनी देवी के सामने झुकाए रखा, वह सोफ़े से उठकर मेरे सामने खड़ी हो गई, अब मुझे अपनी देवी समान बीबी का आशीर्वाद लेना था।

अब मैं बिना देर किए तृषा के पैरों पर झुक गया, वह मेरे सामने खड़ी थी और मैं अपने घुटने पर बैठा अपना सिर अपनी पत्नी के पैरों पर झुका दिया था।

थोड़ी देर बाद अपना सिर उसके पैरों से उठाया और अपने दोनों हाथ से तृषा के पैरों को पकड़ लिया, मैं अभी भी अपनी पत्नी के सामने घुटने के बल बैठा था और जब मेरी नजर तृषा के चेहरे पर गई तो उसके चेहरे पर गर्व और अभिमान का मिलाजुला मिश्रण दिखा।

मैं तृषा के पैरों को अपने हाथ से पकड़कर उसकी पूजा करने लगा, अपनी पत्नी के पैरों को दोनों हाथ से सहला रहा था, वह अपने अंगूठे को धीरे से सिकोड़ ली, जैसे यहां से जाना चाहती हो।

मैं अपनी पत्नी के पैरों को पकड़े हुए उससे प्रार्थना करते हुए बोला "अपना आशीर्वाद दीजिए देवी, इस भक्त पर दया कीजिए और अपना आशीर्वाद देने मेरे अंदर उमड़ रही हलचल को शांत कर दीजिए"

उसके हंसने की आवाज धीरे धीरे मेरे कानों में आ रही थी, वह जानती थी कि इस वक्त मैं काफी ज्यादा सीरियस हूं और जो कुछ कर रहा हूं वह मजाक नहीं है।

मैंने एक बार फिर विनती करते हुए कहा "प्लीज, कम से कम भीख के रुप में ही मुझे आशीर्वाद दे दीजिये"

अगले ही पल तृषा के चेहरे पर गंभीरता झलकने लगी, साथ ही साथ हल्की हँसने की आवाज़ भी आ रही थी, और फिर एकदम से अपनी दोनों हाथ कमर पर रख दी, मुझे उसका ऐसा करना काफी अच्छा लगा, मैं अपना सिर झुका लिया था, मेरा सिर मेरी बीबी के पैरों को छू रहा था और उसी वक्त वह अपनी बायां पैर उठाकर मेरे सिर पर रख दी।

तृषा के हंसने की आवाज और तेज हो चुकी थी, थोड़ी सी हंसी आने की आवाज में वह बोली "All The Best, आज की मीटिंग के लिए मैं तुम्हे आशीर्वाद देती हूँ"

तृषा मेरे सिर पर अपना पैर रखकर मुझे आशीर्वाद दे चुकी थी, मेरी पत्नी मेरे सिर पर अपना पैर रखकर आज के ऑफिस मीटिंग के लिए मुझे आशीर्वाद दे चुकी थी, लेकिन फिर भी मैं वहां से नहीं उठा, मेरा सिर अभी भी झुका हुआ था और मेरे सिर के ऊपर अभी भी मेरी पत्नी तृषा अपनी बाएं पैर को रखे हुए थी।

फिर तृषा अपनी पैर मेरे सिर के ऊपर से हटाकर नीचे फर्श पर रख दी और बोली "उठो ऑफिस के लिए देर नहीं हो रही क्या"

मैंने कहा "नहीं देवी, बस एक बार अपनी पैर फिर से मेरे सिर पर रख दीजिए, मुझे एक बार और आपके आशीर्वाद की जरूरत है"

"My God, सुबह सुबह ही, okay doggie" तृषा इतना बोलकर दुबारा अपने पैर मेरे सिर के ऊपर रख दी।

एक बार फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए बोली "Okay doggie, All the best" और फिर खिलखिलाकर हंसने लगी।

तृषा के पैरों को मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही पानी से साफ किया था, उसके तलवे जब मेरे सिर के ऊपर थें तो तृषा के तलवे से निकल रही ठंडक मुझे अपने सिर पर महसूस हुई, मेरे पूरे शरीर के रोंगटे खड़े होने लगे, यह एहसास मुझे अंदर तक भिगो रहा था, मैं चाहता था कि तृषा कुछ देर तक ऐसे ही अपने तलवे मेरे सिर के ऊपर रखे रहे।

मुझे ऐसा लगा जैसे मैं फिलहाल जन्नत की सैर पर हूं, तृषा अपने पैर मेरे सिर के ऊपर से हटाकर थोड़ा पीछे खड़ी हो गई और मैं उस जगह को अपने होठों से छू लिया जहां पर थोड़ी देर पहले तृषा अपने पैरों को रखकर खड़ी थी।

नीचे के फ़र्श को अपने होठों से चूमते हुए बहुत ही आनंद के साथ कहा "Thanks a lot darling, I am happy"

तृषा बोली "लेकिन यह सब करने में बड़ा ही अजीब लगता है राजा, आज तक में कभी किसी पति को यह सब करते नहीं देखीज़ मेरी सारी सहेलियों की भी शादी हो चुकी हैं लेकिन किसी के भी पति इस तरह की हरकते नहीं करते"

मैंने कहा "लेकिन मुझे यह सब बहुत पसंद है तृषा, तुम देखना कि आज ऑफिस की मीटिंग कितनी ज्यादा सफल रहेगी"

तृषा बोली "अच्छा यह तो शाम के वक्त ही पता चलेगा"

मैं घुटने के बल चलते हुए दो कदम आगे बढ़ा और एक बार फिर अपना सिर तृषा के पैरों में झुका कर अपनी होठ से उसके दोनों पैरों को बारी-बारी चुमकर कहा "इसलिए आज से अब मैं रोजाना ऑफिस जाने से पहले तुम्हारा आशीर्वाद लिया करूंगा और वादा करो कि तुम मुझे मना नहीं करोगी"

तृषा बिना कुछ बोले वहां से जाने लगी और कुछ दूर चलने के बाद बोली "राजा जरा घड़ी की तरफ देखो, कहीं ऐसा ना हो कि आज मीटिंग सफल होने के बदले बॉस तुम्हे जॉब से ही बाहर कर दें, जल्दी ऑफिस के लिए निकलो वरना देर हो जाएगी"

मैं भी अब उठ कर खड़ा हुआ और ऑफिस के लिए निकल गया, रास्ते में मैं काफी खुश था, आज इतनी मन्नतें करने के बाद तृषा यह सब करने के लिए तैयार हुई थी, पता नहीं कितने दिनों से उससे रोज कहता कि वह मुझे ऑफिस निकलने के पहले आशीर्वाद दिया करे, लेकिन वह बार-बार मना कर देती थी, मैंने भी अपनी कोशिश जारी रखी और मेरे कोशिश का ही नतीजा था कि आज मेरी पत्नी मेरे सिर पर अपना पैर रखकर आशीर्वाद देने में सफल रही, लेकिन सिर्फ एक दिन से क्या होता है, मेरी तो इच्छा थी कि आज से रोजाना ऑफिस जाने से पहले और ऑफिस से आने के बाद वह मुझे अपनी आशीर्वाद दिया करे।

मुझे पूरा यकीन था कि एक ना एक दिन तृषा को इस बात का यकीन दिला कर ही रहूंगा कि मेरे लिए वह किसी देवी से कम नहीं है, मेरी पत्नी मेरे लिए देवी है, क्या मैं अपने इस मुकाम में सफल हो पाऊंगा?

देखिए मेरी कहानी "पत्नी परमेश्वर :- मेरी पत्नी ही मेरी देवी है"
 
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chachajaani

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  • जेठ जी बने छोटी भाभी के गुलाम

मैं जब आगरा से वापिस वाराणस आई तब की है यह कहानी, मेरे पति की फैमिली से है, मेरे पति के बड़े भाई की है जो लखनऊ में BDO के पद पर थे, पर जब उनका उनका अपनी बीवी से तलाक़ हो गया था तो उन्होंने अपनी पोस्टिंग बनारस करा ली थी, और उसके बाद हम साथ मे रहने लगें।

मेरे जेठ जी बड़े शर्मीले, बिल्कुल किसी लड़की की तरह, घर मे किसी को पता नही था कि जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, जब भी घर मे कोई पूछता तो वह सिर झुकाकर शांत हो जातें।

मेरे अंदर भी यह इच्छा थी जानने की, आखिर जेठ जी ने मेरी जेठानी को तलाक़ क्यों दिया, कुछ ऐसा था जो वह छुपा रहे थें लेकिन मैंने भी ठान ली कि अपने जेठ जी का राज पता करके ही दम लुंगी, अब चुकी मैं उनके छोटे भाई की पत्नी थी और घर की छोटी बहू इसलिए अपने जेठ जी से सीधा सवाल तो नही कर सकती थी, लेकिन अपने तरफ से कोशिश जारी रखी कि जल्द जल्द से यह राज़ पता कर सकूं।

अब थोड़ा अपने जेठ जी और अपने बारे में भी बता दूं, वह दिखने के काफ़ी दुबले पतले और लम्बाई में मेरी बराबरी के थें, मतलब 5 फुट 5 इंच हम दोनो की लंबाई थी, लेकिन शरीर और ताक़त में मैं जेठ जी से कई गुना आगे थी, कॉलेज के समय ही district level पर Weightlifting Championship जीत चुकी थी, और एक हाथ से अपने जेठ जी को उठाकर फेंक सकती थी, मेरी हाथों से कई गुना ज्यादा ताक़त तो मेरे पैरों में थी, मेरी गठीली मजबूत मांसल जाँघों को देखकर किसी भी मर्द की साँसे फूल सकती थी, और जेठ जी जैसे लोगों की तो हवाइयां गुम हो जाती।

लेकिन जेठ जी दिखने में बहुत मासूम और स्वभाव से उतना ही सीधे सादे थें, मुझे विश्वास नहीं होता था कि ऐसे व्यक्ति को भी कोई तलाक दे सकता है, अगर मेरे पति ऐसे होते हैं तो मैं उन्हें कभी तलाक नहीं देती।

अब अपनी तलाक के बाद जेठ जी को बनारस रहते हुए 1 महीने से ज्यादा का समय गुजर चुका था, और धीरे-धीरे मैं भी उन्हें समझने लगी थी, वह बड़े ही मासूम थे, बिल्कुल शांत रहने वाले, हर वक्त चुपचाप रहते, मैं उनके सामने कम ही जाया करती थी लेकिन एक बात मैं मिलाती कि जब भी उनके पास होती तो जेठ जी सिर झुका लेते, जैसे मेरी आंखों में उन्हें देखने की हिम्मत ना हो, जैसे वह मुझसे डर रहे हों, हालांकि जेठ जी जैसे दुबले पतले शरीर वाले मर्द को मेरे जैसे ताकतवर औरतों से डरने की जरूरत थी, लेकिन उन्हें पता था कि मैं उनके साथ कुछ भी बुरा नहीं करूंगी, और इसके बावजूद भी वह मेरे सामने इस तरह सिर झुकाए खड़े रहते जैसे मुझसे बहुत डरे सहमे हों।

जिस तरीके से वो मेरे सामने सिर झुका कर चुपचाप खड़े रहते उससे एक बात तो मैं पूरे दावे के साथ कह सकती थी कि अगर मैं मजाक में ही अपने जेठ जी को डांट देती तो वह तुरंत रोने लगते।

लेकिन इसके साथ मुझे यह भी आश्चर्य होता कि एक मर्द होकर जेठ जी ऐसा क्यों करते हैं, यह बात मैं समझ नहीं पा रही थी, फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे हैरानी भी हूं और जेठ जी के सारे राज खुल कर सामने आ गए।

गर्मी का मौसम था और मैं किचन में काम कर रही थी, किचन में कोई पंखा नहीं होने की वजह से मेरा पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था, इसलिए सोची कि थोड़ा देर जाकर अपने कमरे में आराम कर लेती हूँ, वैसे किचन में बर्तनों का ढेर पड़ा था, फिर भी सोची कि बस कुछ ही देर की बात है और फिर थोड़ा देर आराम करने के बाद वापस किचन में चली आऊंगी, ऐसे में मैं अचानक किचन से निकली और तेज कदमों के साथ अपने बेडरूम में चली आई, बेडरूम में आने के बाद दरवाजा अंदर से बंद कर दी और बिस्तर पर आकर बैठ गई, कमरे में पंखें के साथ AC भी चल रही थी, इसलिए अंदर आने के साथ ही बड़ी राहत महसूस हुई, मैं बिस्तर पर लेटी हुई थी और मेरे दोनों पैर पलंग से नीचे झूल रहे थे, मेरे पैरों में लगी पायल की खन खन कमरे में गूंज रही थी, और ऊपर दीवार पर लगी AC और पंखे की हवा एक साथ मेरे बदन से पसीने को सुखाने में व्यस्त थे, जैसे वह दोनों मेरे दास हों और अपनी मालकिन को देखकर अपनी ड्यूटी पर लग गए हो, ठीक एक गुलाम की तरह अपनी मालकिन की बदन से पसीने की बूंदों को सुखा रहे थें।

यह सब सोचकर ही मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, काश यह दोनों पंखा और AC कोई मशीन ना होकर इंसान होते और मेरे दो तरफ खड़े होकर अपने हाथों से पंखा चलाते, मैं किसी रानी की तरह इस बिस्तर पर लेटी रहती औऱ मजे से सो रही होती, फिर अपने मन को कोसते हुए कहने लगी "क्या शीतल तू भी क्या क्या सोचती है, इस जमाने में कोई गुलाम या दास कहां से आएगा, अब राजा और रानियों का समय चला गया, उस जमाने में दास और गुलाम हुआ करते थे, अब कहां से आएंगे, अब तो तुझे AC और पंखे से ही काम चलाना होगा"

यही सब सोचते हुए मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, अकेली घर पर थी इसलिए फिजूल की बातें दिमाग में घूम रही थी, कुछ ही देर बिस्तर पर लेटने के बाद सारी थकान दूर हो गई, और अब उठकर किचन में जाने वाली ही थी कि तभी शीशे के सामने जाकर खड़ी हो गई और खुद को निहारने लगी, 28 साल की उम्र थी मेरी, जवान बदन था और शादी के बाद मेरे हुस्न में और ज्यादा निखार आ चुका था, किसी कातिल हसीना की तरह में नजर आती, मेरे पति काफी भाग्यशाली थें जो उन्हें मेरी जैसी पत्नी मिली थी, शीशे के सामने खड़ी होकर कुछ देर तक अपने हुस्न को निहारे जा रही थी, कभी ऊपरी उभार को देखती तो कभी कमर की पतलाई को, देख कर मन ही मन मुस्कुरा देती, कभी अपनी जांघों की मोटाई को देखकर खुद पर गर्व करती, साड़ी के नीचे भी मेरी जाँघों का उभार खुलकर दिख रहा था, जांघों से नीचे देखते हुए अब मेरी नजर अपने पैरों पर थी, पैर में कोई चप्पल नहीं थी और दोनों पैरों पर लगी चांदी की पायल काफी जच रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे इन पायल की भी किस्मत चमक गई हो जो इन्हें इतनी खूबसूरत पैर मिले।

एक बात आप सभी को सच सच बता दुँ कि मुझे अपने हुस्न पर काफी गर्व था, घमंड थी मुझे अपनी जवानी पर, मैं जानती थी कि किसी भी मर्द को मैं अपने हुस्न के जाल में फंसा कर उसे अपने कदमों में झुका सकती हूं, अगर चाह दुँ तो कोई भी मर्द मेरा कुत्ता बनकर मेरी कदमों में बैठ जाएगा।

कुछ देर तक मैं अपने पैरों को देखती रही, दोनों पैर में पायल की खूबसूरती मुझे काफी अच्छी लग रही थी, लेकिन इसी के साथ अगले ही पल मैं जो देखी उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी, शीशे में मेरे जेठ जी नजर आ रहे थे, वह मेरे बेडरुम में थें, मेरे पलंग के नीचे छुपे हुए किसी चोर की तरह और पलंग के नीचे दुबक कर बैठे थे, अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

जेठ जी मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं और ऐसे पलंग के नीचे क्यों छिपे हैं, जहां से मैं देख रही थी वहां से जेठ जी के शरीर का दाहिना हिस्सा दिख रहा था, वह फर्श पर सिर झुकाए हुए चार पैरों पर बैठे थेँ, बिल्कुल किसी कुत्ते की तरह, उन्हें अभी भी यही लग रहा था कि वह मेरी नजरों से बच जाएंगे, लेकिन अब तो मैं उन्हें देख चुकी थी और अंदर ही अंदर कुछ सोच रही थी कि ऐसा क्या करूं जिससे की जेठ जी के सारे राज मेरे सामने खुलकर आ जाएं, लेकिन फिर सोची कि अगर इस वक्त हड़बड़ी में कुछ की तो फिर सब बिगड़ जाएगा।

जेठ जी चार पैरों पर झुक कर फ़र्श पर बैठे हुए थे और उनका सिर नीचे झुका था, जिस स्थिति में वह बैठे थेँ उसे देखकर पता नहीं क्यों मुझे लगा कि मेरे पलंग के नीचे जेठ जी नहीं बल्कि कोई कुत्ता बैठा हो, एक पालतू कुत्ता, जो मेरा कुत्ता हो और यहां मेरे कमरे में अपनी मालकिन को देखकर पलंग के नीचे छुप गया हो, इसी के साथ यह भी एहसास हुआ कि मेरी पलंग के नीचे बैठा इंसान कोई मामूली इंसान नहीं बल्कि मेरा गुलाम है, मेरा दास है, वहीं गुलाम कुत्ता जो अपनी मालकिन की आवाज सुनते ही पलंग से बाहर आ जाएगा, वही गुलाम जो अपनी हाथों से पंखा हीलाएगा ताकि उसकी मालकिन चैन की नींद सो सके।

मैं काफी देर तक शीशे के सामने खड़ी रही और जेठ जी को निहारती रही, तभी मेरी नजर उनके दोनों हाथों पर गई, उनके दोनों हाथ आगे की तरफ निकले थे, मतलब पलंग से हल्के बाहर, अगर पलंग के पास जाकर मैं चाहूं तो अपनी पैरों से उनके दोनों हाथ को कुचल सकती थी, उनके दोनों हाथ की उंगलियां एक दूसरे को पकड़े हुए थे और यहीं देखकर मैं मन ही मन मुस्कुराने लगी, क्योंकि अब मैं जेठ जी को मजा चखाने वाली थी।

तुरंत अलमीरे के पास गई और दरवाजा खोलकर नीचे के खंड से अपनी एक काले रंग की हील्स निकाली, और शीशे के सामने बैठकर दोनों पैरों में हील्स पहन ली, हिल्स सपाट थी और 3 इंच उठी हुई थी, दोनों पैरों में हील्स पहनकर कर एक बार जेठ जी की तरफ देखी और मन ही मन सोचने लगी "बस अब कुछ पल और इंतजार कर मेरा गुलाम, तेरी मालकिन तुझे अपना कुत्ता बनाने आ रही है"

मैं उठकर पलंग के पास जाने लगी, मैं यकीन नहीं कर पा रही थी कि मेरे बेडरूम में जेठ जी मेरे पलंग के नीचे कुत्ता बनकर बैठे हैं, अरे जेठ जी का स्थान ससुर के बराबर होता है, पति के बड़े भाई होते हैं लेकिन फिर भी इन सब में मेरी क्या गलती थी, वह खुद ही तो मेरे कमरे में आकर कुत्ता बनने पर उतावले थे तो आखिर मैं क्या करती?

पलंग के पास आकर ठीक वहीं बैठ गई जिसके नीचे जेठ जी के दोनों हाथ दिख रहे थे, उन्हें अभी भी इसी बात का अंदाजा था कि मैं उन्हें नहीं देख सकती, लेकिन मैं तो बहुत शातिर थी, मेरी निगाहों से बच पाना जेठ जी के लिए या किसी दूसरे के लिए बड़ी मुश्किल था, जेठ जी को अंदाजा भी नहीं था कि उनके छोटे भाई की पत्नी कितनी बड़ी खिलाड़ी है, मैं अपनी एक पैर उठाई और जेठ जी कि दोनों हथेली के ऊपर रख दी, अभी ज्यादा जोर से नहीं दबा रही थी बल्कि अभी बहुत कम वजन उनके हाथों पर थी, मैं जानती थी कि मेरे पैरों में इतनी ताकत है कि अगर अपनी पूरी ताकत से जेठ जी के दोनों हथेली दबा दी तो उनके हथेलियों की हड्डी टूट जाएगी, लेकिन बेचारे को मैं अभी इतना दर्द देना नहीं चाहती थी, हां आगे अगर वक्त या मौका मिला तो ऐसा जरूर करूंगी।

लेकिन फिलहाल तो मैं बस मजे ले कर छोड़ देना चाहती थी, जैसे ही मेरी हील्स जेठ जी के दोनों हथेली पर गई उनके चेहरे पर घबराहट साफ झलक रही थी, मैं शीशे में तिरछी निगाहों के साथ जेठ जी को देख रही थी, उनकी हालत खराब हो चुकी थी, उन्हें डर लग रहा था कि कहीं मुझे यह पता ना चल जाए कि मेरे जेठ जी चोर की तरह मेरी पलंग के नीचे छुपे हुए हैं, मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी, फिलहाल उन्हें दर्द तो नहीं हो रहा था लेकिन घबराहट काफी बढ़ गई थी, उनके चेहरे पर परेशानी और अपने छोटे भाई की पत्नी का खौफ साफ नजर आ रहा था।

मैं यहीं सोची थी कि अभी अपनी हरकतों से जेठ जी को चौका दूंगी, लेकिन मैं गलत थी, क्योंकि जेठ जी खुद अपनी हरकतों से मुझे चौंकाने वाले थे, मैं हल्के वजन के साथ उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी, और शीशे में हर वक्त उनके तरफ ही देख रही थी, आगे जो कुछ मैं देखी उस पर ही यकीन करनी बड़ी मुश्किल थी, जेठ जी को डर तो लग रहा था लेकिन उसी के साथ वह अपने चेहरे को पलंग के नीचे से आगे बढ़ाते हुए मेरी हिल्स के पास ले आए और अपनी जीभ निकालकर मेरी हील्स चाटने लगें, जहां से मैं उनके दोनों हथेली को दबाए हुए थी वहीं से वह अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरी हील्स को चाट रहे थे, मैं काफी हैरान थी।

दोस्तों आप ही बताइए, यह कोई आम बात तो थी नहीं, एक मर्द होकर और वह भी मेरे जेठ जी होकर मेरी हील्स अपनी जीभ से चाट रहे थें, यह क्या कोई आम बात है, हैरान तो मैं बहुत थी, समझ नहीं पा रही थी कि जेठ जी क्या कर रहे हैं, एक तरफ वह डरे हुए थे और दूसरी तरफ मेरी हिल्स को अपनी जीभ से चाट रहे थे, वह भी एक इंसान होकर एक कुत्ते की तरह अपनी जीभ बाहर निकालकर मेरी गंदी हिल्स को अपनी जीभ से चाटकर साफ कर रहे थे, मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं थी, मैं बार-बार यही सोचती की जेठ जी ऐसा क्यों कर रहे हैं।

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, शीशे में फिर देखी तो जेठ जी वैसे ही मेरी हील्स को बड़े चाव से चाट रहे थें, जैसे कोई कुत्ता हड्डी को चाटता है न ठीक वैसे ही मेरे जेठ जी मेरी हील्स को अपनी जीभ से चाट रहे थें, अब दोस्तों मैं क्या बताऊँ, मेरे पलंग के नीचे बैठा वह कुत्ता, जो रिश्ते में मेरा जेठ था, मेरे पति का बड़ा भाई था, जिसके सामने मैं कभी घूंघट नही हटाई वह इंसान अभी कुत्ता बनकर मेरी गंदी हील्स चाट रहा था।

अब मैं क्या करती, मैं तो बहुत हैरान थी, घर की छोटी बहू थी, आखिर क्या कर सकती थी, यह तो अच्छा हुआ कि अभी घर मे सिर्फ हम दोनो थें, मेरे पति ऑफिस के लिए निकल चुके थेँ और मेरे सास ससुर भगवान का जागरण सुनने निकले थेँ, और घर पर रह गई सिर्फ मैं और मेरा कुत्ता, मतलब मेरे जेठ जी, अब तो समझ नही पा रही थी कि इस इंसान को कुत्ता कहकर बुलाऊँ या जेठ जी।

जब कुछ नही सुझा तो अचानक अपने पैर का दबाव जेठ जी के हथेली पर बढ़ाने लगी, शीशे में देखी तो उनकी छटपटाहट बढ़ने लगी थी लेकिन के साथ वह और तेज़ी से मेरी हील्स को चाटने लगें, मतलब मैं जितना ज़ोर से दबाती जेठ जी उतना ही तेज़ी से मेरी हील्स चाटते थें, अब आप ही बताइए दोस्तों क्या यह किसी इंसान के लछन हैं, नही न, यह तो कोई कुत्ता ही कर सकता है, तो क्या मैं अपने जेठ जी को कुत्ता मान लूँ?
Disgusting and sick story. Use your talent in posting better erotic stories
 

mastmast123

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क्या बकवास है यहीं आगे क्यों नहीं पोस्ट करते हो क्यूँ कहीं और जाएं आगे पढ़ने को, यही सब करना था तो क्यों यहाँ शुरू की, हमको चुतिया बनाने के लिए, गधा समझते हो हमको क्या???
 

boss@24

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3. दो भाभियाँ और बेचारा देवर

मेरा नाम मोनिका है और यह मेरी कहानी है, मैं अपने ससुराल की सबसे बड़ी बहू हूँ, मेरे सास-ससुर और मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश गाँव मे रहते थें, प्रकाश गाँव के ही हाई स्कूल में पढ़ता था और मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ शहर में थी।

शहर में सिर्फ हम दो औरतें ही थीं क्योंकि हम दोनो के पति विदेश में रहकर छोटे मोटे काम किया करते थें, और हमदोनो शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए जातीं।

यह कहानी तब शुरू होती है जब मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश अपने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुका था और अब उसे आगे पढ़ने के लिए कॉलेज में दाखिला लेना था, मेरे पति 10वी के बाद नही पढ़ पाए थें लेकिन वह चाहते थें की उनका सबसे छोटा भाई कॉलेज तक कि पढ़ाई पढ़े, इसलिए वह अपने छोटे भाई प्रकाश को शहर के ही किसी कॉलेज में नामांकन लेने के लिए बोलें, यहीं वक्त था जब प्रकाश हमारे साथ शहर में आकर रहने लगा।

प्रकाश को हमारे साथ रहने में कोई परेशानी नही हुई, उसकी दो दो भाभियाँ एकसाथ उसकी खिदमत करने के लिए बैठी थीं, घर मे सबसे छोटा था इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते, लेकिन इसी वजह से प्रकाश की कुछ आदतें बिगड़ गई थी, वह हमदोनो औरतों की कोई बात नही सुनता था और सिर्फ अपनी मनमानी करता था।

मैं तो उसकी सारी गलतियां नज़रंदाज़ कर दिया करती थी लेकिन मेरी देवरानी शिल्पा को गुस्सा आ जाता था, वह मुझसे आकर शिकायत करती की "दीदी, आप अपने इस लाडले देवर को समझा दो, इसकी बदमाशियां बढ़ती ही जा रही है, अब मैं बर्दास्त नही करने वाली"

मैं पुछी "अरे बताओ तो पहले की हुआ क्या"

शिल्पा बोली "कोई एक बात है जो बताऊं, उसके रोज़ रोज़ का यहीं हाल है, अभी मैं एक किताब पढ़ रही थी और वह नास्ता कर रहा था, आप अभी बाथरूम में नहाने गई थीं न उसी वक्त, उसने पानी मांगा और मैं थोड़ी देर बाद ही उठकर उसे पानी की ग्लास दी, तो जानती हैं दीदी उसने क्या किया"

मैं पुछी "क्या किया उसने"

शिल्पा बोली "वह नालायक पानी की ग्लास झटके से फेंक दिया, और बोला कि इतनी देर क्यों हो गई लाने में, आप ही बताइए दीदी की ग्लास से मुझे चोट भी तो लग सकती थी, उसे ज़रा भी परवाह नही की मैं उसकी भाभी हूँ, बस अपनी मनमानी करता है"

मैं शिल्पा को शान्त करते हुए बोली "अच्छा तुम शान्त हो जाओ, मैं उससे बात करती हूँ, मैं भी देख रही हूँ उसकी बदमाशियां, उसके दोनो बड़े भाई और माँ-बाप ने मिलकर उस लड़के का मन बढा दिया है, उसे सही रास्ते पर लेकर आना ही होगा"

शिल्पा बोली "हाँ दीदी, आप कुछ करो वरना मैं अब उसे बर्दास्त नही करने वाली, आगे से मेरे साथ ऐसी हरकतें की तो मार मारकर उसका बुता बना दूँगी"

चुकी सुबह का वक्त था और हम दोनों अपने स्कूल जाने वाली थी इसलिए मैं शिल्पा को शांत रहने के लिए बोली और हम दोनों तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गए, हम दोनों छोटे बच्चों के स्कूल में पढ़ाते थे इसलिए हमें सुबह के 8 बजे निकलना होता था और दोपहर के 1 बजे तक हम दोनों वापस आ जाते थे, वही दूसरी तरफ मेरा देवर प्रकाश 10 बजे के करीब निकलता और 3 बजे कॉलेज से वापस आता।

उसी दिन दोपहर में जब हम दोनों स्कूल से वापस आए तो हमेशा की तरह कुछ देर आराम करने लगे, आराम करते हुए हमें 2 बज गए और अब हम दोनों ने मिलकर दोपहर का खाना बनाने की तैयारी में लग गए, प्रकाश रोजाना 3 बजे आया करता था इसलिए हमें लगा कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा लेकिन पता नहीं क्यों वह 2 बजे ही अपनी कॉलेज से वापस आ गया, और आने के साथ ही अपनी बैग एक तरफ फेंक कर चिल्लाते हुए बोला "मेरा खाना लगाओ जल्दी, बहुत भूख लगी है"

हम दोनों औरतें किचन में काम कर रही थी, शिल्पा बोली "देखो दीदी आ गया आपका लाडला देवर, इस लड़के को तो बोलने की भी तमीज नहीं है, कोई बात धीमी आवाज़ में नही बोल सकता, हर बात इसे चिल्ला चिल्लाकर बोलने की आदत है"

मैं सब्जी काट रही थी इसलिए शिल्पा से बोली "अच्छा एक गिलास ठंडा पानी लेकर जाओ और प्रकाश को बता दो कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा, तब तक वह आराम करे"

शिल्पा ने वैसा ही किया जैसा मैंने उससे कहा था, और एक गिलास में ठंडा पानी लेकर किचन से बाहर निकल गई, थोड़ी ही देर में हॉल से दोनों के चिल्लाने की आवाज आई, शिल्पा तेज आवाज में बोली "दीदी, दीदी इधर आओ, देखो इस नालायक ने मेरे साथ क्या किया"

मैं जल्दी से किचन से बाहर निकली और हॉल में गई तो देखी की शिल्पा के बदन का ऊपरी हिस्सा पानी से भीगा हुआ था और दोनों आपस में बहस कर रहे थे, मैं तुरंत दोनों के पास गई और पुछी "क्या हुआ ऐसे क्यों चिल्ला रही थी और तुम्हारे शरीर पर पानी क्यों है"

शिल्पा काफी गुस्से में थी, वह प्रकाश की तरफ देखकर चिल्लाते हुए बोली "इस नालायक ने दीदी, इसी नालायक ने यह सब किया है, आपके लाडले देवर ने, आज मैं इसे नहीं छोड़ने वाली, आज मैं मार मार कर इसका बुता बना दूंगी"

इतना बोल कर शिल्पा इधर-उधर कुछ ढूंढने लगी और जैसे ही उसकी नजर झाड़ू के तरफ गई वह दौड़ते हुए गई और झाड़ू उठा लाई।

शिल्पा बहुत ज्यादा गुस्से में थी, वह झाड़ू लेकर प्रकाश के करीब गई और उसे मारने ही वाली थी कि इतने में मैं शिल्पा का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश में लग गई "क्या कर रही हो शिल्पा, बस करो, मैं इससे बात करती हूँ न"

प्रकाश बेशर्मो की तरह हमारे सामने खड़ा होकर हँस रहा था, फिर अपनी दांत दिखाते हुए बोला "अरे मारने दो भाभी इसे, ज़रा मैं भी देखूं की यह छमिया कैसे मारती है"

प्रकाश के मुँह से यह सुनकर मुझे भी बुरा लगा, मैं शिल्पा के हाथ से पूरी ताक़त के साथ झाड़ू छीनकर फेंक दी और प्रकाश के करीब जाकर उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाई "तुझे कुछ भी बोलने की तमीज़ नही है, अपनी भाभी को ऐसे छमिया कहकर बुलाएगा"

मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई, शिल्पा बोली "बहुत अच्छा दीदी, और मारो इस नालायक को"

मैं प्रकाश की तरफ देख रही थी, वह अपना सिर झुकाकर चुपचाप खड़ा था, शायद अपनी भाभी से पहली थप्पड़ खाने के बाद बेचारे को होश आया होगा, मेरे अंदर भी थोड़ी हिम्मत आई और इस बार प्रकाश के दाहिने कान को पकड़कर ज़ोर से मोड़ दी और बोली "मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर आगे से ऐसी गलती की तो बहुत मार पड़ेगी, अब जाकर कमरे में आराम करो, जब खाना बन जायेगा तो मैं बुला दूँगी"

इतना बोलकर मैं तुरंत पीछे हटी और शिल्पा के साथ वापस किचन में आ गई, मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई और उसकी कान पकड़ी, वहीं शिल्पा भी हैरान थी, किचन में आते ही वह मुझे अपनी दोनो बाहों में पीछे से पकड़ ली और धीरे से हँसते हुए बोली "वाह दीदी, आपने तो कमाल कर दिया, मज़ा आ गया कसम से"

मैं भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी "अच्छा, अब खाना बनाने की तैयारी करो"

हमदोनो औरतें फिर से अपने काम मे लग गए, मैं बार बार यहीं सोच रही थी कि अपने देवर प्रकाश को कैसे थप्पड़ लगा दी और साथ ही उसके कान को पकड़कर मोड़ भी दी, यह सोंचकर मैं अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी, तभी प्रकाश किचन के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया।

हमदोनो औरतें उसे देखकर हैरान रह गईं, वह रो रहा था और उसकी आंखें लाल लाल हो चुकी थी, शिल्पा यह देखकर हँसने लगी और बोली "पीटाने के बाद अब रुलाई आ रही है बच्चे को, बेचारा, तू तू तू तू"

शिल्पा की बात सुनकर मुझे भी हँसी आ गई, लेकिन तभी मेरी नज़र उसके हाथ पर गई, वह मोबाइल पकड़े हुए था, मुझे कुछ शक हुआ, तभी मोबाइल से मेरे पति की आवाज़ आई "मोनिका, यह क्या कर रही हो तुम दोनो मेरे भाई के साथ"

यह आवाज़ सुनकर शिल्पा अपने सिर पर घुँघट करके मोबाइल की तरफ पीठ करके खड़ी हो गई, और अब मोबाइल के सामने मैं थी, प्रकाश अपने भाई को वीडियो कॉल लगा चुका था और अब मेरी तरफ देखकर कातिल मुस्कान बिखेर रहा था, मैं समझ गई कि अगर कोई अपने छोटे भाई को इस तरह रोते हुए देखे तो वह क्या समझेगा, मैं कुछ बोलती इससे पहले ही मेरे पति ने कहा "तुमसे ये उम्मीद नही थी मोनिका, तुमदोनो मिलकर मेरे भाई को परेशान कर रही हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे की इसपर हाथ उठाने की, दोहपर में कॉलेज से थक हारकर प्रकाश घर आया और तुमने खाना देने की बजाए उसको थप्पड़ से मारने लगी"

मुझे नही पता था कि इस प्रकाश ने मेरे पति से क्या क्या शिकायतें की थी, मैं अपने पति को समझाती रही लेकिन वह एक बात नही सुने और उल्टे हमदोनो औरतों को हिदायतें दे दिए कि प्रकाश के साथ आगे से ऐसा कुछ भी नही होना चाहिए।

इसके बाद मेरे बड़े देवर यानी शिल्पा के पति का भी फ़ोन आया, उन्होंने भी हमदोनो को हिदायतें दी, ऐसा नही था कि मैं अपने पति से डरती थी, बल्कि हमदोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थें, लेकिन इस वक्त मेरे पति विदेश में थें इसलिए उन्हें ज्यादा परेशान नही करना चाहती थी और साथ ही उनके हर आदेश को मानने के लिए तैयार हो गई।

उस रात मेरे सास ससुर ने भी फ़ोन किया और हमदोनो औरतों को खरी खोटी सुनाई, हमे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि कोई हमारी बात सुनने को तैयार नही था, पता नही प्रकाश ने कितना मक्खन लगाकर शिकायतें की थी कि वे सभी काफ़ी गुस्सा थें।

इस दिन की घटना के बाद प्रकाश की बदमाशियां बढ़ती गई, अब वह मेरे साथ भी छेड़खानी करने लगा, जानबूझकर गलत जगह हाथ फिरा देता और शैतानी मुस्कान बिखेरने लगता, हमदोनो औरतें अपने इस देवर से परेशान हो चुकी थीं, हमदोनो अपने पति को परेशान भी करना नही चाहते थें, इएलिये मैं एक ऐसी योजना बनाई ताकि प्रकाश को सबक सिखाया जा सके, उसे भी पता चले कि मोनिका भाभी से पंगा लेने का अंज़ाम क्या होता है?

मैं जानती थी कि प्रकाश जिस उम्र में है उस उम्र के लड़कों को ताक़त से भी बल्कि जिश्म की लालच से अगर चाहा जाए तो अपना गुलाम भी बनाया जा सकता है।

मै एक ऐसा प्लान बना चुकी थी जिसमे प्रकाश पूरी तरह से फसने वाला था, और एक बार वह मेरी चुंगल में बस आ जाए फिर मैं उसका वो हाल करूँगी की उसे यकीन भी नही होगा कि यहीं औरत कभी उसकी भाभी हुआ करती थी।

स्कूल से दो सप्ताह की छूटी ले ली, अपने प्लान के बारे में शिल्पा को भी नही बताई थी, उसने जब पूछा कि मैने छूटी क्यों ली तो मैं सिर्फ इतना ही बोली कि कुछ दिन आराम करना चाहती हूँ, और इसके बाद से धीरे धीरे मैं प्रकाश को seduce करना शूरु कर दी, उसके सामने अश्लील हरकतें करने लगी, वह किसी भूखे भेड़िए की तरह मुझे देखता, मैं भी यहीं चाहती थी, और दो से तीन दिन बीतने के बाद मैं प्रकाश को लेकर शॉपिंग करने मॉल के लिए निकल गई, अब वह मेरी हर बात किसी पालतू कुत्ते की तरह मानने लगा था, मैं जब भी कुछ कहती तो वह एक पालतू कुत्ते की तरह अपना सिर हिला देता, मॉल में शॉपिंग करते समय मेरे देवर ने मेरी काफ़ी मदद की, हर वक्त मेरा पर्श लेकर मेरे पीछे पीछे चलता रहा।

और कुछ देर शॉपिंग करने के बाद मैं सीधा लेडीज टॉयलेट की तरफ बढ़ गई, मैने प्रकाश से कुछ नही कहा फिर भी वह एक पालतू कुत्ते की तरह लेडीज टॉयलेट तक मेरे पीछे पीछे आता रहा।

इसके बाद मै वो चीज़ कह डाली जिसे सुनकर मेरा देवर प्रकाश हैरानी से मेरी तरफ देखने लगा, मैं जैसे ही टॉयलेट रूम के अंदर गई वैसे ही दरवाज़ा बन्द करके प्रकाश से बोली "चलो अब अपने सभी कपड़े उतारकर नंगे हो जाओ"

जब वह मुझे हैरानी से देखने लगा तो मैं मुस्कुराते हुए बोली "जल्दी करो प्रकाश, देर हो रही है, अब मुझसे बर्दास्त नही होता, जल्दी करो, आज़ हमदोनो काफ़ी मज़े करने वाले हैं"

मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर मेरे देवर को लगा कि मैं यहां मस्ती की मूड में हूं और वह जल्दी जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा, उसे इस बात की कोई परवाह नही थी कि सामने जो औरत खड़ी है वो रिश्ते में उसकी भाभी लगती है, अगले ही पल वह पूरी तरह से नंगा खड़ा था।

मेरा सामने खड़ा मेरा देवर अब पूरी तरह से मेरे काबू में था, बस इसे किसी तरह मैं अपना गुलाम बनाकर अपना बदला पूरा करना चाहती थी, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था, मैं भी धीरे से मुस्कुराई और बोली "तुम्हारे लंड के नीचे जो दो बड़े बड़े बॉल लटक रहे हैं, उसे क्या कहते हैं"

प्रकाश मेरी बात सुनकर हँसने लगा और बोला "वाह भाभी, आप भी बड़ी आसानी से लंड बोल दीं, वैसे इसे दोनो बॉल को आंड़ कहते हैं, आप इसे गोटी भी कह सकती हैं"

मैं फिर धीरे से मुस्कुराकर बोली "नही आंड़ कहना ही सही है, वैसे एक बात बताओ, क्या अपना यह आंड़ मेरे हवाले कर सकते हो, तुम्हे पूरी तरह से अपनी यह दोनो आंड़ मुझे Submit करनी होगी, हमेशा हमेशा के लिए"

प्रकाश मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसे मेरी बात समझ मे ही नही आई, फिर कुछ सोंचकर बोला "अरे भाभी यह आपका ही है, जो मर्ज़ी आए कीजिए, किसने रोका है"

मैं समझ गई कि प्रकाश मेरे कहने का मतलब नही समझ पाया, मेरे कहने का मतलब था कि वह अपनी दोनो आंड़ मुझे समर्पित कर दे ताकि मेरी जो इच्छा हो वह कर सकूं और साथ ही साथ उसे डोमिनेन्ट करने के लिए अपना पहला कदम आगे बढाऊँ, खैर धीरे धीरे वह खुद समझ जाएगा।

मेरा देवर अपनी निगाहें मेरी चुत पर टिकाए हुए था, मैं अभी भी पूरी तरह कपड़े में थी फिर भी उसकी नज़र मेरी जाँघों के बीच ही टिकी हुई थी।

मैं साड़ी के ऊपर से ही अपनी गाँड़ की तरफ इशारा करते हुए पुछी "बताओ प्रकाश, अपनी भाभी की गाँड़ चूमने का भी इरादा है क्या" प्रकाश हां में सिर हिला दीया, मैं उसे फ़र्श पर घुटने के बल बैठने का आदेश दी और खुद पीछे मुड़कर अपनी गाँड़ की उभार अपने देवर के सामने कर दी, वह बावला हो चुका था, साड़ी के ऊपर से ही मेरी गाँड़ की उभार को देखकर उसके पसीने छूट रहे थें, वह घुटने के बल चलता हुआ मेरे करीब आया और अपना चेहरा मेरी गाँड़ पर दबाने लगा, साड़ी के ऊपर से ही अपनी भाभी की गाँड़ को मेरा देवर महसूस करने की कोशिश में था।

मैं भी अपनी जाँघों को हल्का नीचे झुका दी जिससे मेरी गाँड़ मेरे देवर के चेहरे पर और ज्यादा दबने लगी, प्रकाश को मज़ा तो जरूर आ रहा होगा लेकिन साथ ही साथ मेरी चुत भी गीली हो रही थी।

तभी मेरे देवर प्रकाश ने पूछा "भाभी, क्या एक बार आपकी गाँड़ को चूम सकता हूँ"

मै हां बोली और अपनी साड़ी उसे नीचे से उठाने का आदेश दी, प्रकाश दोनो हाथ से मेरी साड़ी उठाकर मेरी गाँड़ देखने लगा, मैने अंदर सिर्फ एक पेटिकोट पहनी थी, इसके अलावां कोई पैंटी नही थी, मेरा देवर मेरी गाँड़ को बहुत करीब से निहार रहा था, फिर वह अपनी होठों से मेरी गाँड़ को दोनो तरफ से चूमने लगा।

मेरी गाँड़ को चूमते हुए उसे खुद को काबू में रखना मुश्किल लग रहा था, शायद उसने पहली बार किसी औरत की गाँड़ इतने करीब से देखी रही, वह अपने लंड की बढ़ती गर्मी को शांत करना चाहता था, इसलिए साड़ी मुझे पकड़ने के लिए कहा "भाभी प्लीज साड़ी को कुछ देर तक पकड़ लीजिए"

मैं भी देखना चाहती थी कि आखिर मेरा देवर आगे क्या करता है, अपनी साड़ी दोनो हाथ से पकड़कर कमर तक घिंच ली और पीछे मुड़कर देखने लगी, मेरा देवर प्रकाश अपनी एक हाथ से मेरी गाँड़ की दरार को फैला रहा था और फिर अपनी जीभ गाँड़ की दरार में ले जाकर वहाँ चाटने लगा, वहीं दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़कर मुठ मारने लगा, मतलब मेरे देवर को अपनी भाभी की गाँड़ चाटकर काफ़ी मज़ा आ रहा था, मैं भी तो यहीं चाहती थी और अब मेरे बिछाए जाल में प्रकाश के लिए फ़सना और आसान हो गया।

मैं अपनी जाँघों को और नीचे दबा दी जिससे मेरे देवर की जीभ मेरी गाँड़ की छेद में और ज्यादा दब गई, वह जितनी तेजी से मेरा गाँड़ चाटता उतनी ही तेज़ी से अपनी लंड पकड़कर मुठ मारता, मैं चाहती तो इसी वक्त अपनी गाँड़ उसके चेहरे के ऊपर से हटाकर उसके मुठ मारने की लालसा को खत्म कर सकती थी, लेकिन मैं उसकी लालसा को बढ़ाना चाहती थी, इसलिए आराम से अपने देवर को मुठ मारने दी और अगले ही पल टॉयलेट फर्श पर उसके लंड से वीर्य की धार निकलकर गिरने लगी, अब मैं उसके तरफ मुड़कर खड़ी हो गई और अपने देवर को अपनी चुत का दीदार कराने लगी, उसकी निगाहें मेरी चुत पर टिक गई, उसके लंड से वीर्य गिर रही थी और उसी वक्त मैं अपनी एक पैर से अपने देवर की दोनो आंड़ को दबा दी, वह बेचारा फ़र्श पर झुक गया और अपनी दोनो आंड़ को सहलाते हुए मेरी तरफ देखने लगा, बेचारे को हल्की चोट लग आई थी, मैं हंसते हुए बोली "ऐसे क्या देख रहे हो, यह मेरी गाँड़ चाटने की फीस है"

कुछ देर बाद हमदोनो घर वापस आ गए, रात में सोते वक्त मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ बिस्तर पर लेटी हुई थी और वह मेरी टांगों के बीच में जाकर मेरी चुत चाट रही थी, हां आपने सही सुना, मेरी दीवार बनी शिल्पा मेरी चुत चाट रही थी, क्योंकि हमदोनो सिर्फ देवरानी-जेठानी ही नही बल्कि एक-दूसरे के लेस्बियन पार्टनर थें।

मैं उससे नही बताई की आज़ दोपहर में अपने देवर के साथ क्या की थी, लेकिन जब वह मेरी चुत चाट रही थी उस वक्त शिल्पा को थोड़ा बहुत शक हुआ, क्योंकि मेरी चुत पहले से ही गीली थी, दरअसल मॉल से आने के बाद अपने देवर के साथ बिताए पलों को याद करके काफ़ी गर्म हो चुकी थी, इसलिए सोने से पहले बाथरूम में जाकर कुछ देर तक अपनी चुत मसलती रही, मुठ मारकर ही बाहर आई थी, इसलिए मेरी चुत अभी तक गीली थी।

अगले दिन मंगलवार था और मैं खुद को काफ़ी powerfull महसूस कर रही थी, जानबूझकर साड़ी के बदले एक पतली सी नाइटी निकाली और उसे ही पहन ली जो लम्बाई में मेरे घुटने के पास तक थी, इसके अलावां मेरे जिश्म पर एक भी कपड़ा नही था, जबतक शिल्पा घर पर रही तबतक प्रकाश मेरे बदन को बस देखकर रह जाता, उसकी हिम्मत नही हो रहा थी आगे बढ़कर कुछ करने की, लेकिन शिल्पा के स्कूल जाने के बाद हमदोनो को पता था कि अब आगे बहुत कुछ होने वाला है।

शिल्पा अपने तय समय पर स्कूल के लिए निकल गई, जब वह स्कूल निकल रही थी उस वक्त प्रकाश टेबल के पास बैठकर नास्ता कर रहा था, मैं तुरंत प्रकाश के पास जाकर खड़ी हो गई, वह मेरे कपड़े को देखकर बेचैन हो उठा, आंखें फाड़ फाड़कर मुझे देख रहा था, तभी मैं अचानक से अपनी नाइटी को ऊपर उठा ली और अपनी चुत प्रकाश को दिखाने लगी, वह नाश्ता कर रहा था और मेरी मखमली चुत देखकर इतना बावला हो गया कि नाश्ता करना छोड़ कर मेरी चुत की तरफ देखने लगा, जैसे मेरी चुत चाटने का परमिशन मांग रहा हो।

मैं धीरे से मुस्कुराई और बिना कुछ बोले टॉयलेट रूम की तरफ चल दी, मैं अपनी तरफ से भी जितना हो सकता था उतना गांड मटका कर चल रही थी, मैंने प्रकाश से एक शब्द भी नहीं कहा था, फिर भी मेरा देवर अपना नाश्ता छोड़कर मेरे पीछे पीछे किसी कुत्ते की तरह चलने लगा, एक बार फिर से हम दोनों टॉयलेट रूम में खड़ी थी लेकिन यह टॉयलेट रूम किसी मॉल का नहीं बल्कि हमारे घर का था।

टॉयलेट रूम के अंदर जाने के साथ ही मेरा देवर प्रकाश दरवाजा बंद कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे सामने नंगा फर्श पर घुटने के बल बैठ गया, एक ही दिन की ट्रेनिंग में उसने काफी कुछ सीख रखा था, और अब मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं लगा, उसने खुद ब खुद नंगा होकर फ़र्श पर बैठे देखकर मुझे भी हँसी आ गई।

अपनी एक पैर उठाई और धीरे से उसके दोनों आंड़ पर किक मारते हुए बोली "गुड बॉय आगे से ऐसे ही बिना बताए मेरे सामने नंगे होकर तैयार रहना"

अचानक मेरे देवर का लंड एकदम टाइट और कड़क हो गया, वह मेरे सामने फर्श पर बैठकर मुठ मारना शुरू कर दिया, मैं एक बार फिर अपनी लात से उसके दोनों आंड़ पर किक मारी, ताकि वह मुठ मारना बंद करे, लेकिन मेरे किक मारने के बाद वह और ज्यादा उत्तेजित हो गया और तेजी से मुठ मरने लगा, मैं उसे रोकना चाहती थी इसलिए एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर मारी और रुकने का आदेश दी।

थप्पड़ खाने के बाद मेरे देवर को होश आया और उसने मुठ मारना बंद किया, मेरी तरफ सवालिए नजरों से देखने लगा कि आखिर मैंने थप्पड़ मारकर रुकने के लिए क्यों कहा, तब मैं बोली "आगे से एक बात का ध्यान रखना, तुम्हें मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुम्हें अपनी गाँड़ चूमने-चाटने को दूँगी"

वह मेरे सामने घुटने के बल बैठा था, इसलिए जहां से मैं उसे देख रही थी वहां से वह चोरी चोरी निगाहों से मेरी चुत देखने की कोशिश में था, जो एक छोटी सी और पतली से नाइटी से ढकी हुई थी।

मैं पुछी "क्या तुम सच मे बेशर्म हो प्रकाश, तुम्हें शर्म नहीं आती अपनी भाभी के सामने ऐसे फर्श पर बैठकर मुठ मारते हुए, बिल्कुल बेशर्म ही हो क्या प्रकाश"

मेरी बात सुनकर वह शर्म से अपना सिर झुका लिया, उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि मैं अचानक ऐसी बात कहूंगी, वह अपनी सिर शर्म से झुकाया और मैं एक बार फिर उसके दोनों आंड़ पर अपने पैर से किक मारी, इस बार मेरे पैर से मारी गई किक काफी जोर की थी और दर्द से तड़पते हुए प्रकाश फर्श पर लुढ़क गया, अपने दोनों हाथ से अपनी आंड़ को पकड़ कर दर्द से तड़पते हुए मेरी तरफ देख रहा था।

मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरे सामने एक जवान मर्द नंगा फर्श पर लेटा हुआ था, मेरी चुत भी गीली हो रही थी, मैं थोड़ा आगे बढ़ी और प्रकाश के शरीर के दोनों तरफ अपनी टांगे करके खड़ी हो गई, वह मेरी दोनों टांगों के बीच में फ़र्श पर लेटा हुआ था और मैं ठीक उसके ऊपर खड़ी होकर अपनी चुत मसलने लगी।

मेरा देवर प्रकाश मेरी तरफ अजीब निगाहों से देख रहा था, तभी मैं अपनी एक पैर उठाकर उसके चेहरे पर धीरे से किक मारी और आदेश दी "चल मेरे पैर चाट"

टॉयलेट रूम की फर्श पर मेरा देवर नंगा बैठकर मेरे पैरों को चूमने-चाटने लगा, कभी एक पैर को चूमता तभी दूसरे पैर को, और साथ ही साथ एक बार फिर मुठ मारना शुरू कर दिया, एक तरफ वह मेरे पैर को चूमते चाटते हुए मुट्ठ मार रहा था और दूसरी तरफ मैं उसके सामने खड़ी होकर अपनी दोनों टांगे फैलाकर अपनी चुत मसल रही थी, लेकिन बस एक बात का मुझे दुख था कि इन सभी चीजों से प्रकाश को कोई कष्ट नहीं हो रही बल्कि वह तो पूरे मजे ले कर मुठ मारने में व्यस्त था।

लेकिन मैं उसे कष्ट देना चाहती थी ताकि अपनी बदनामी का बदला ले सकूँ, पिछले कुछ दिनों में वह हम दोनों देवरानी-जेठानी को जितना परेशान किया था उसका अंजाम तो उसे भुगतना ही था।

इसलिए मैं अपनी चुत मसलते हुए प्रकाश से बोली "अगर एक बार और तुम अपनी दोनों आंड़ पर मुझे पैरों से किक मारने दोगे तो मैं तुम्हें फिर अपनी गांड की छेद चूमने और चाटने का मौका दूंगी"

इतना शानदार ऑफर प्रकाश ठुकरा नहीं पाया और तुरंत अपने घुटने के बल बैठकर अपनी दोनों टांगे फैला दिया ताकि बीच में लटक रही उसकी दोनों आंड़ के लिए इतनी जगह मिल जाए की मैं आसानी से अपनी पैर उठाकर किक मार सकूँ, उसका लंड जितना कठोर था उतनी ही कठोर उसकी दोनों आंड़ दिखाई पड़ रही थी, मैं अपनी एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाई और अपने देवर की आंखों में देखकर पुछी "अगर तुम इसी तरह पूरी जिंदगी खुद को मुझे समर्पित कर दोगे तो मैं हमेशा तुम्हें अपनी गाँड़ छेद चाटने का मौका दूंगी, जो मज़े इस वक्त तुम ले रहे हो वह सारी जिंदगी मिलेगी, लेकिन बदले में तुम्हें खुद को मुझे समर्पित करना होगा"

मुझे लगा कि मेरी बातों को सुनकर मेरा देवर मेरे सामने रोएगा गिड़गिड़ाएगा कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूं, लेकिन मेरी बात सुनकर मेरा देवर प्रकाश बिल्कुल शांत रहा, मैं अपने हाथ उसके चेहरे पर से हटा दी और उसके चेहरे के सामने ही अपनी मदमस्त फूली हुई चुत को मसलने लगी, ऐसा पहली बार था जब मैं अपने देवर के सामने अपनी चुत मसल रही थी, प्रकाश अपनी आंखें फाड़ फाड़ कर मेरी चुत को देख रहा था और मुठ भी मार रहा था, इसलिए मैं एक बार फिर से उसकी दोनों आंड़ पर हल्की दबाव के साथ कीक मारी और बोली "तुझे मेरी बात एक बार में समझ में नहीं आई क्या, मैंने कहा था ना कि तुझे मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुझसे अपनी गांड की चाटने को कहूंगी, इसके अलावा तू बिना मेरी इजाजत के मुठ नहीं मार सकता"

इतना बोल कर मैं वहां से हटकर टॉयलेट रूम की दीवारों पर जहां शीशा टंगी हुई थी वहां आकर खड़ी हो गई, शीशे में मैं देख सकती थी कि मेरा देवर मेरी गाँड़ को देखते हुए अपने लंड को सहला रहा था।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़के ने कल तक हम दो औरतों का जीना हराम कर रखा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठा हुआ है, और मैं उसकी हालत इतनी खराब कर चुकी हूँ कि वह बिना मेरी इजाजत के मुठ भी नहीं मार सकता, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज उसी के घर में टॉयलेट रूम के अंदर मैं उसके दोनों आंड़ पर अपने पैरों से किक मार रही थी, उसे बेइज्जत कर रही थी, फिर भी वह चुपचाप नंगा फर्श पर बैठा हुआ था।

यह ताकत थी एक औरत के जिस्म की, मैं जानती थी कि अगर प्रकाश को घुटने पर लाना है तो मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करनी होगी और मेरा निशाना एकदम सटीक लगा था, आज प्रकाश मेरे सामने मेरे कदमों में झुका हुआ था, इस वक्त मैं जैसा कहती वह वैसा ही करता।

मैं शीशे में प्रकाश की तरफ देखी और उसके चेहरे को देख कर मुस्कुरा दी, अपने देवर को नंगा देखकर मेरी चुत भी गीली होने लगी थी, मैं भी अपनी चुत को मसालना शुरू कर दी, एक तरफ मैं खड़ी होकर अपनी चुत मसल रही थी और दूसरी तरफ शीशे में दिखी तो मेरा देवर मेरे पीछे फर्श पर नंगा बैठ कर भीख मांग रहा था ताकि मैं उसे अपनी गांड के छेद चूमने और चाटने की इजाजत दे दुँ, एक ही दिन में कितना कुछ बदल गया था, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठकर किसी भीगी बिल्ली की तरह भीख मांगने पर विवश था।
 
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