इस चंद्रमुखी का तो मुख गुलाबी से लाल हो गया...बात तो सही है. गाड़ी लम्बी चलानी हो तो पेट्रोल चाहिये. और लम्बी चलवानी हो तो देशी घी चाहिये ही चाहिये.
अब तक की कोमलजी की सभी कहानियो मे मुनिया को पहेली बार नाम मिला है. और मिला तो वो भी छिनार नांदिया की मुनिया को.
चंद्रमुखी
वाह री नांदिया छिनार गुड्डी बाई. तू नशीब वाली है. तेरी मुनिया का तो नाम करण हुआ है.
ये कोमलिया के पुरे ससुराल को यही तरीका समझ मे आता है. उन्हें कोमलिया ने आम ऐसे खिलाकर समझया. (मेरे भैया वो. मेरे भैया ये. मेरे भैया आम नहीं खाते )
अब उनकी बहेनिया की चद्रमुखी मे खीरा. वाह माझा आ गया.
ये गुड्डी बाई तो सच मे असली छिनार है. अब बेंगन चाहिये.
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