जोरू का गुलाम भाग २५६ पृष्ठ १६०७
अब मेरी बारी
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आपकी यही खूबी कि गुड्डी केवल सेक्स ऑब्जेक्ट नहीं है...एकदम अपनी भाभी पर गयी है![]()
और मैं किसी करेक्टर को सिर्फ सेक्स ऑब्जेक्ट में नहीं बदलना चाहती इसलिए सभी पहलु जरूरी हैं
छोटी सी जिंदगानी और छोटी सी दुनिया...वो क्लास तो सबसे जरूरी है, थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी, कभी भी
Aa gye park m uthal puthal karneभाग २४१ पार्क में,…
बृहस्पति वार -शाम
35,14,010
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हाँ शाम को ये जब आये तो हम दोनों बहुत दिन बाद घूमने गए , एक पार्क था बहुत बड़ा सा, शहर के बाहर,...
और कम्पनी की कार से नहीं, इन्होने किसी की बाइक मांगी, बहुत दिन बाद हम दोनों बाइक पे मैं पीछे चिपक के बैठी, ... और मैं भी मस्ती के मूड में, कुछ इन्हे छेड़ने के लिए कुछ मजे के लिए गुड्डी का स्कर्ट और टॉप पहन लिया था, साडी पहन के बाइक पे चिपक के बैठने का मजा नहीं आता।
और उस पार्क में उन्होंने बहुत कुछ बताया,
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बताती हूँ
लेकिन पहले पार्क के बारे में बताती हूँ,... काफी हिस्सा खुला, लेकिन काफी हिस्सा पेड़ पौधों से भरा, कुछ पुरानी इमारते भी रही होंगी तो उसी इलाके में उनके दीवालों के साये,... और जिन लड़के लड़कियों को ज्यादा गर्मी चढ़ती थी तो वो उसी दीवाल की आड़ में, शलवार सरका, स्कर्ट उठा,... काम चालू,... आठ दस जोड़े तो हरदम चालू रहते थे, देखकर लोग खुद रास्ता बदल देते थे, चुम्मा चाटी, मीसना रगड़ना तो एकदम खुले में भी, ... और सिर्फ टीनेजर ही नहीं कई बार शादी शुदा जोड़े भी, ... शाम को तो और ज्यादा,...
तो बस हम दोनों भी, इनके बस का तो कुछ था नहीं, लेकिन ऐसे रोमांटिक माहौल में मैंने ही शुरुआत की चुम्मा चाटी की,
ये पति भी न बड़ा अजीब चीज होता है, जिसके पास होता है उसी को पता होता है, और मर्दों को तो एकदम पता नहीं होता, पति के फायदे का। अब रहेंगे तो इतनी खीज मचती है, बार बार कहने पर भी, शर्ट बिस्तर पर पड़ी मिलेगी, टूथपेस्ट के ट्यूब का ढक्क्न हरदम खुला रह जाएगा, तौलिया तो बाहर भूलना ही है, चाय का मग बना के लाएंगे तो कोस्टर नहीं, और कोस्टर ले भी आयंगे तो वापस किचेन में मग रख देंगे पर कोस्टर जहाँ का तहाँ, घर में हर चीज की जगह है, एक बार दो बार दस बार बता दो लेकिन नहीं और सन्डे के दिन तो और,
लेकिन तीन दिन में मैं झेल गयी, जब बिस्तर पर शर्ट नहीं पड़ी थी, टूथपेस्ट का ढक्क्न नहीं खुला था, कोस्टर सही जगह रखा था, एक तिनका भी इधर का उधर नहीं हुआ, इतना ख़राब लग रहा था, बस रोना नहीं आ रहा था और सब हो गया। घर घर ही नहीं लग रहा था,
पति के रहने पर झंझट है, लेकिन न रहने पर, बस रहा नहीं जाता। बार बार लगता है, दरवाजा खुला होगा तब भी कोई घंटी बजायेगा, और आते ही जूता कहीं, मोजा कहीं, शर्ट तो बस सीधे बिस्तर पर और चाय की फरमाइश, लेकिन कोई नहीं आता
और सबसे ज्यादा दिक्कत रात को होती है, स्साली कटती ही नहीं। दो दिन तो चलिए इनकी छुटकी बहिनिया थी तो बस उसे पकड़ के,, वार्ना खाली बिस्तर के बारे में सोच के खराब लगता है पर गनीमत थी की आज ये आ गए।
जी, जी रात में वो सब जो आप सोच रहे हैं वो तो होता ही है, नहीं करेगा तो मैं उसकी माँ बहन, लेकिन उससे भी बहुत जरूरी बातें हैं। चक्कर क्या है इस फोरम में पति पत्नी से ज्यादा तो बाकी सब कहानियां रहती हैं, कुछ तो मैं शेयर कर सकती हूँ,
सबसे बड़ी बात है, रात में अगर नींद न आ रही हो और ये जनाब खरार्टे ले रहे हों, तो बस उठा के, " हे जरा देख के आओ, बाहर वाले दरवाजे को बंद किया की नहीं, और हाँ उठे हो तो फ्रिज में दूध भी रख देना " जब की अच्छी तरह से याद हो की मैंने खुद दरवाजा भी बंद किया है और दूध भी रखा है, फिर रात में उठा के, किसी की बुराई करनी हो, खास तौर से इनके मायके वालों /वालियों की, कई हफ्ते बाद पड़ने वाले किसी काम की याद दिलाना ही
और मैं तो जुडिसियरी और क़ानून दोनों में विश्वास रखती हूँ, इसलिए मैं भी मानती हूँ की मैराइटल रेप अपराध नहीं है और अगर अपराध नहीं है तो करने में क्या हर्ज है, फिर ये कहाँ लिखा है की सिर्फ पति ही कर सकता है, और वैसे भी रेप शेप इनके बस का नहीं तो मैं ही हफ्ते में दो चार बार मैराइटल रेप कर ही देती हूँ, ये भी सीख जायेंगे तो इनके मायके में बहुत सी छिपकलियां है, उनका शिकार भी इन्ही से,
तो आज जब से इनके वापस आने की खबर मिली थी तभी से बहुत अच्छा लग रहा था, हाँ एक बात और, ये एक नियम है की पति से कभी नहीं कहा जाता की तेरे साथ अच्छा लग रहा है, उसका काम है समझे। क्या अच्छा लगता है क्या बुरा उसकी बीबी को, और हाँ पति के साथ नेसेसरी अल्टेरशन करना भी जरूरी होता है, भले २०-२५ साल मायके वालियों के साथ रहे लेकिन उसके बाद के ५०-६० साल तो मेरे साथ कटाने हैं तो फिर अपनी पसंद के हिसाब से, और पसंद से ज्यादा पहले से अलग लगाना चाहिए, मूंछे हो तो क्लीन शेव्ड, वेजिटेरियन हो नॉन -वेज, उसके घर वालों को पता चल जाये,
लेकिन मेरा वाला कुछ ज्यादा ही सीधा है, और जब उन्होंने कहा की शाम को बाहर चलते हैं तो मैं भी एकदम रोमांटिक मूड में आ गयी और फिर बाइक पे बैठ के तो और
और बाइक में तो रोमांटिक होने का हक बनता है, शादी के शुरू के दिनों में, इनके मायके में तो शुरू शुरू के दिनों में, न तुम हमें जानो, न हम तुम्हे जानो टाइप, रात भर ये लड़का चढ़ा रहता था लेकिन अपनी माँ और भौजाई के सामने, एकदम अच्छा बच्चा, बस दूर दूर से ललचाता, खैर छोड़िये उन दिनों की बातों को, कित्ती बार to बता चुकी हूँ, लेकिन जब इनकी पोस्टिंग पे जिद्द करके इनके साथ आयी, पहले तो एक पुराना सा लम्ब्रेटा स्कूटर, फिर वो गया और बाइक आयी, और पीछे चिपक के, जितना ये शर्माते, उतना मैं और चिपकती, कभी चुपके से कान पे इनके चुम्मी ले लेती तो कभी गले के पिछले हिस्से पे, पहली रात को ही मुझे मालूम पड़ गया था मेरे जुबना का जादू, तो कभी खूब लो कट ब्लाउज तो कभी टाइट कुरता, और पीछे से बरछी धँसाते,
धीरे धीरे इनकी हिम्मत बढ़ी, मेरी और बढ़ी, तो बस मेरी लालची उँगलियाँ, बिच्छू की तरह इनके जींस के ऊपरी हिस्से पर भी बाइक पर डोलने लगती, अगल बगल जब कभी खेत देखती, बाग़ देखती तो इन्हे उकसाती भी, ' हे थोड़ी सी पेट पूजा, कहीं भी, कभी भी "
लेकिन बात चुम्मा चाटी से आगे कभी बढ़ी नहीं। लेकिन आज मैं ज्यादा ही गरमाई थी। तीन दिन से उपवास, ये जनाब गायब थे और असल में इनके साथ तो हफ्ते भर से ऊपर कुछ नहीं हुआ, और इतना लम्बा इस लौंडे के साथ गैप शादी के बाद पहली बार हुआ था, पीरियड में ये बेचारा बहुत तड़पता था तो लिप सर्विस तो मैं दे ही देती थी, और एक एक बूँद इसको दिखा के गड़प कर जाती, लेकिन हम बहनों का जो रूल था की साली का पहला हक़ तो तीन दिन रीनू और जीजू लोग थे तो इनके साथ इनकी बहन ने और मेरी बहन ने मस्ती की, मैं ललचा भी नहीं सकती थी।
वो मजा कार में कभी नहीं आता जो बाइक में अपने मर्द के पीछे चिपक के बैठने में आता है, और आज मौसम भी जबरदस्त था, टी ठंडी थदनि हवा चल रही थी, खरगोश ऐसे दो चार बादल आसमान में हमारे साथ साथ चल रहे थे, कभी हम आगे हो जाते, कभी बादल, दोनों और पेड़ों की कतारें और उसके बाद खेत, पार्क शहर से थोड़ा सा दूर पड़ता था, मैं गुनगुना रही थी
हवा के संग संग
और ये भी साथ दे रहे थे,
कस के एक बार जोबना का धक्का मार के मैंने हाथ बढ़ा के सीधे ' मोटू ' के ऊपर, थोड़ा सोया थोड़ा जगा कस के मैंने दबा दिया और चिढ़ाते हुए बोली,
" जागो सोने वालों, बहुत आराम कर लिए तीन दिन, अब ओवरटाइम करना होगा बच्चू। आज तो तेरी मैं ले के रहूंगी, नीले गगन के टेल, मरद मेरा, मोटू मेरा मैं चाहे जो करूँ "
और आज बजाय झिझकने के वो भी गरमाये थे। ठुनक कर मोटू ने अपना इरादा बता दिया, लेकिन जब मैं पहली रात नहीं डरी, खुद अपने हाथ से इनका पाजामे का फंसा हुआ नाड़ा खोला तो आज क्या घबड़ाती।
और थोड़ी देर में हम दोनों दीवाल की आड़ में, इनकी गोद में मैं बैठी,
दुष्ट खूंटा खड़ा मेरे पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रहा था. अब अपनी भौजाई बहन और साली की गाँड़ मार मार के उसे भी पिछवाड़े का मजा मिल गया था, और मैं और अपने चूतड़ से रगड़ रगड़ के उसे और तंग कर रही थी,...
और उन्होंने बात शुरू की, ‘बम्बई विजय’ में उन्होंने घर को, मुझे गुड्डी को. एकदम दूर ही रखा था,... लेकिन अब
खतरे घर के आस पास आ गए थे तो उन्होंने बात शुरू की,..
खतरों की, घर पे क्या हो रहा है क्या करना है।
" अबे मादरचोद, शुरू से बता,... " उनका गाल काट के मैं कान में बोली,..
This too evokes stimulation and titillation.एकदम सही कहा आपने और इसी के साथ कहानी में टर्न भी, फायनेंसियल थ्रिलर की ओर
आम के आम .. गुठलियों के दाम...यही तो पैसे के पैसे भी और स्पर्श सुख भी, नयन सुख भी
और सबसे बड़ी बात...चोर के घर मोर
इसलिए ग्लोबल धुरंधरों से सामना और उनको पटखनी....एम् एन सी कम्पनी है और ग्लोबलाइजेशन के दौर में सब कुछ जुड़ा है
Khud to maje le rahe hai dusro ko bhi bharpur dilwa rahe hai...... मस्ती पार्क में
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लेकिन तभी मैंने देखा एक दो लोग चक्कर काट रहे थे,
बात सही थी. आड़ का फायदा उठा के सिर्फ गोद में बैठा के बात थोड़े ही करते हैं, अगर इतना पीछे पड़ने वालों का खतरा था, तो हम लोगों को भी काम चालू कर देना चाहिए
और एक लड़की लड़का जिनका बाइक हम लोगों की बाइक के साथ ही घुसी थी,... वो लड़की अपना स्कूल का टॉप स्कर्ट में घुसाती, टाँगे फैलाये, वापस लौट रही थी, खुश मुस्कराती। मतलब कार्यक्रम सफल रहा, गुड्डी से भी छोटी रही होगी, मुस्कराते हुए उसने मेरी ओर देखा और मैंने अंगूठे और तर्जनी को जोड़ के गोल छेद का इशारा किया और ऑलमोस्ट खिखिलाते हुए, उसने मुझे भी थम्स अप का संकेत दिया
और यहाँ कार्यक्रम अभी शुरू भी नहीं हुआ था, ...
सब कुछ मैं इनके बस पर थोड़े ही छोड़ सकती, स्कर्ट अपनी कमर के ऊपर मैंने समेटी, पैंट इनकी थोड़ी नीचे सरकायी और मूसल बाहर, ढक्कन न मैंने नीचे लगाया था न ऊपर, और तिझरिया में सरसों का तेल ढूंढने के चक्कर में जो टाइम लगा, आफिस से फोन आ गया, मेरा पिछवाड़ा बच गया, इसलिए मैं इस बार पहले से अंजुरी भर तेल अगवाड़े पिछवाड़े लगा के आयी थी।
मेरी चूतड़ की रगड़ाई का असर, ... और मैंने ही पकड़ के सेंटर भी किया,
गप्प,... सुपाड़ा अंदर चला गया, ... कितना अच्छा लगा बता नहीं सकती, कित्ते दिन बाद ऐसे खुले में साजन की गोद में साजन का खूंटा
कंट्रोल मैंने अपने हाथ में ले लिया था, जैसे शादी के बाद से ही इनकी हर चीज का कंट्रोल
अच्छा हुआ मैं अंदर तक कडुवा तेल चुपड़ के आयी थी, मोटू का मोटा सर गप्प से घुस गया, और मेरी गुलाबो उसे निचोड़ कर दबोच कर मजे ले रही थी, जल्दी न मुझे थी न इन्हे ने मेरी गुलाबो को, स्कूल के लड़के लड़कियों की तरह नहीं जो कम से कम पांच छह इस समय पार्क के अलग अलग कोने में यही काम कर रहे थे,
और मैंने टॉप भी अपना उठा दिया,
मेरे दोनों जुबना खुल के बाहर आ गए।
मैंने साजन का एक हाथ पकड़ के उन पे, दूसरे हाथ से ये मेरी पीठ पकड़े थे और एक हाथ से मैंने इनकी पीठ को पकड़ रखा था। हम दोनों एक पुरानी टूटी दीवाल के सहारे बैठे थे, करीब पांच छ फिट ऊँची रही होगी , पास ही में आम और पाकुड़ के दो चार पेड़ भी थी और सामने एक ऊँची सी हेज थी, इसलिए जब तक कोई ध्यान से न देखे, बस ये पता लगता की एक यंग कपल बैठे हैं, लड़की मर्द की गोद में है, लेकिन ज्यादातर लड़कियों के इस पार्क में बैठने का तरीका यही था, जो आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे, उन जोड़ो ने भी लड़की को गोद में बैठा के अंदर हाथ डाल के मजे तो ले ही रहे थे।
मैंने थोड़ा सा कर जोड़ लगाया, हलके से उन्होंने भी नीचे से धक्का दिया, और पांच छह धक्के के बाद, करीब आधा चार पांच इंच तो घुस ही गया। लेकिन इतने दिनों में मैं बीसो तरीके सीख चुकी थी, कोई जरूरी नहीं है की धक्के ऊपर नीचे से ही दिए जाए, मैं कभी गोल गोल हलके हलके चक्कर काटती, तो कभी दाएं बाएं, मेरी प्रेमगली का कोई कोना नहीं बच रहा था जो अच्छे से रगड़ नहीं रहा था और ये भी अब पूरे मस्ती में, कभी गाल चूमते, कभी झुक के होंठ जोबन का रस लेते, मुझसे पहले ये भूल गए थे की हम दोनों घर में नहीं पार्क में हैं
और जब ये ऐसे मस्ती में चुदाई करते थे तो मैं भी पागल हो जाती थी, और इस तरह खुले में पार्क में, नील आसमान के नीचे, जब हवा हम दोनों की देह को सहला रही थी, चिड़ियों की आवाजें हमें और उकसा रही थी, और खस तौर से जवान हो रहे लड़के लड़कियां, जो बीच बीच में जगह की तलश में इधर उधर दिख रहे थे ,
जहाँ हम लोग चालू थे, वहां पास में ही स्कूल की एक लड़की, लड़का, और स्कूल यूनिफार्म से ही लग रहा था, स्कूल बंक कर के आये थे दोनों, लड़की ज्यादा जोश में लग रही थी, लड़का थोड़ा झिझक रहा था, और मुझे बदमाशी सूझी, मैंने इन्हे हलके से धक्का दिया, और ये दोनों हाथों के सहारे बस हरी घास पे और मैं ऊपर, एकदम वीमेन ऑन टॉप वाली पोजीशन में, और मैंने जोर से गरियाया, " स्साले आज तेरे सारे खानदान को चोद के रख दूंगी, चुदवाने के लिए आये हैं तो खुल के मजे ले न "
और अब उस लड़की लड़के का ध्यान मेरी ओर, ये तो जमीन पर लेटे थे, और मैंने कमर थोड़ी सी ऊपर की, इनका बित्ते भर का मेरी कलाई से भी मोटा खूंटा मेरी बिल से धीरे धीरे बाहर आया, सुपाड़ा अभी भी अंदर था, मेरे जोबन खुले,
और उस लड़की ने, जो अब तक अपने ब्वाय फ्रेंड के जींस के ऊपर से सहला रही थी, रगड़ रही थी, झट्ट से ज़िप खोली और सोया जागा खूंटा मुंह में गप्प कर लिया, और उस लड़के को हम लोगो की ओर इशारा किया, और मुंह में लेने से पहले बोली,
" देख न यार, इत्ते मुश्किल से तो आये हैं, तो मजे ले ले, "
और जहाँ हम लोग लेटे थे बस थोड़ी ही दूर पे एक झाडी में वो भी जोड़ा चालू हो गया।
लेकिन उसकी आवाज सुन के वो दोनों जो थोड़ी देर पहले तांक झाँक कर रहे थे, लग रहा था उस दीवाल के पीछे बैठ के हम लोगो की बात सुनने की कोशिश में थे, और अभी अपनी जगह बना रहे थे , एकदम खड़े हो गए और उनके फिर से बैठने के पहले मैंने देख लिया और इन्हे भी अंदाज हो गया, और ये भी बैठ के
और एक बार फिर से मैं इनकी गोद में बैठी, धक्को में कोई कमी नहीं आयी थी
लेकिन वो उस फोन नुमा चीज में दिखाना चाहते थे कुछ अब वो काम कैसे होता,... जो स्साले इनके पीछे पड़े थे, उन्होंने एक असेसमेंट रिपोर्ट बनायीं थी इनके बारे में, दो तीन दिन पहले की ही , और वो पूरी की पूरी हैक हो के इस फोन नुमा चीज में थी, जिसे पढ़ना भी जरूर था,... आज के जमाने में लड़की के पास मोबाइल हो और हेड फोन न और वो भी कार्डलेस,...
यार चल जरा म्यूजिक की ताल पे मस्ती करते हैं, लगा न वो भोजपुरी सात आइटम वाला
मैंने देखा की उस रिपोर्ट को आडियो में सुनने का भी जुगाड़ था, बस एक ईयर फोन मैंने इनके कान में घुसाया और एक अपने अपने कान में, फोन इनकी शर्ट के जेब में खोंसा सुन हम दोनों रिपोर्ट रहे थे लेकिन मैं ऐसे झूम रही थी जैसे वो गाना सुन रही हों, और गाने की धुन पे धक्का मार रही होऊं और ये भी साथ में गा भी रहे थे, बीच बीच में, सात आइटम , अरे सात आइटम, अरे सैंया मारे ला सेजिया पर,
रिपोर्ट की हेडिंग सुन के ही मैं जोश में आ गयी एकदम सही थी, जिसने भी बनाई अच्छी तरह से इनको समझा,
Yes.. this requires smart and shrewd moves along with contacts to turn the tide.Thanks, that is why story has moved to Delhi and Mumbai in the corridors of power and financial capital
And combination will be deadlier...Institutional investors and govt. support along with financial acumen