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जोरू का गुलाम भाग २४५ , गीता और गाजर वाला, पृष्ठ १५२४
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गुड्डी की अदाएं और जलवों से चारों खाने चित्त...गुड्डी डरने वालों में से नहीं है....
न केवल बग बग की कहानी... बल्कि तुम एक मारोगे तो हम चार मारेंगे...komaalrani जी, आपने तो इस अपडेट में 'घर-घर की कहानी' को 'बग-बग की कहानी' बना दिया!
सच कहूं तो ये पार्ट पढ़कर ऐसा लगा जैसे "मिशन इम्पॉसिबल" का देसी भारतीय वर्जन देख लिया हो, बस टॉम क्रूज़ की जगह एक "ठरकी" (जिसे आपने बड़े प्यार से महा-ठरकी बनाया) और उसकी धूर्त बीवी हैं, जो "चोरों के घर में मोर" बनकर छा गए!
वो फोन-नुमा बग डिटेक्टर तो जैसे घर की लक्ष्मण रेखा बन गया! सीरियल वालों की तरह "कौन बनेगा कीड़ा पकड़ने वाला" का गेम खेलते हुए:
"पंखे के पीछे कैमरा? स्विचबोर्ड में माइक? भाई, ये तो हमारे बचपन के 'आँख-मिचौनी' से भी आगे निकल गया!"
500 मीटर की ट्रांसमिशन रेंज पता चलते ही समझ आया—"ये जासूसी अब स्थानीय नहीं, सेटेलाइट लेवल की हो गई है!"
और फिर, "सिर्फ गाजर बेचने वाला ठेला" और डबल मीनिंग डायलॉग का कॉम्बो तो हिट हो गया! गुड्डी और गीता का "साइज़ चेक" करना: "भैया, लम्बाई-मोटाई देखूंगी! ठेले वाले का छूट देकर भी निप्पल्स पर नजर रखना.. ये डिस्काउंट नहीं, डिस्ट्रक्शन था!और फिर वो "नीचे वाला मुंह" वाली लाइन... "भाभी जी, आपकी साली ने तो सीधे गेम सेट-मैच कर दिया!"
फिर आया वो शावर वाला सीन: जहां बातें नहीं, "काम" हुआ! आपने "प्राइवेसी" की बात करनी थी, लेकिन "34C vs बाबू के बाबू" का मैच छिड़ गया! "शावर में कैमरा लगा है? कोई बात नहीं, लाइव स्ट्रीमिंग करते हैं!" "मुंह से बोल नहीं सकते? तो मुंह से कुछ और कर लो!" वाला सीन... "भाई, ये 'कीड़े' वाले अब तक सपने देख रहे होंगे!"
और अंत में फूड ट्रक वाला ट्विस्ट.. इडली-डोसा बेचने वाला ट्रक जो असल में स्पाई सेंटर निकला! और वो चिमनी वाला सेटेलाइट डिश... अब तो पता चला कि 'धुआंधार' एंटरटेनमेंट का मतलब क्या होता है!
और एक बात... जब चोर आपके घर में मोर बन जाए, तो उसे नाचने दो.. पर अपना डांस स्टेप भी तैयार रखो! कीड़े वालों को लगा वो "स्मार्ट" हैं, लेकिन आपके हीरो-हीरोइन ने "स्मार्टफोन से भी स्मार्ट" मूव चल दी!
टेंशन + मस्ती + जासूसी + गर्मागर्मी का बेहतरीन कॉम्बो था। अब इंतज़ार है अगले अपडेट का.. जहाँ शायद गाजर वाले का असली इरादा और सुजाता की नई स्कीम के बारे में पता चले!
अगली बार शावर में बात करने से पहले काम शुरू करने का टाइमर सेट कर देना.. वरना फिर से मुख्य मुद्दा छूट जाएगा!
किसी फिल्म में ट्रेन वाला ये कमाल देखने को मिला था...ऐसे फंदे से नजरों को धोखा देना आसान...
और विरोधी .. मुँह ताकते रह जाएंगे...
लेकिन जानकारों के लिए किसी नशे कम नहीं...शेयर बाजार भी चक्करघिन्नी से कम नहीं है...
सही कहा... दिल्ली, मुंबई, गाजियाबाद , बनारस के जिक्र में वास्तविकता का पुट...मुंबई.. पुराना बॉम्बे के आइकोनिक जगहों का जगह जगह उद्धरण .. बहुत मजेदार और विश्वसनीय लगा...
शेयर बाजार एक जंगल है... जहाँ मार काट मची है...जैसे शेर और शेरनियां एक बार शिकार करने के बाद हफ्ते तक आराम फरमाते हैं...
चुपचाप थोड़े पिटेगा...दुश्मन भी अपने पत्ते आजमा रहा है...
और झड़ खुद जाती है...मीनल तो शेयर बाजार को खड़ा करने में उस्ताद हैं हीं साथ में क्लाइंट का भी खड़ा करवा देती है...
साम दाम दंड भेद सारी नीतियां अपनाएगा...घर का भेदी... लंका ढाने के लिए.. विरोधियों को सारे गुप्त राज फाश कर रहा है..
जो जैसा करेगा.. वैसा भरेगा...टिट फॉर टैट....