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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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amita

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जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी



भाग १


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"मेरे भैय्या, आम छू भी नहीं सकते ,…"



" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते "


चिढ़ाते हुए मैं बोली।

जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।





" अरे ये , "


और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।




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" पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "





उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।


" ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "


मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।


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और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …

और जब मैं ऊपर कमरे की ओर गयी तो उसे दिखा के ,

मेरे होंठों से न सिर्फ आमरस टपक रहा था बल्कि मेरी जुबान पे एक छोटी सी फांक अभी भी थी


जैसे बच्चे चिढ़ाते हैं बस वैसे , उसे दिखाते हुए , मैंने जुबान दिखायी और जुबान से ज्यादा , उसपर रखी आम की फांक , और धड़धड़ा के सीधे सीढ़ियां चढ़ गयी ऊपर अपने कमरे की ओर।


लेकिन मेरे कानों में सिर्फ उसकी बात गूँज रही थी , और मैंने दिल में तय कर लिया ,

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की अपनी इस छुटकी छिनार ननदिया को



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की , मेरे भैय्या ये मेरे भैय्या वो , देख तेरे ये नए नए आये कच्चे टिकोरे ,तेरे सीधे सादे भैय्या को न खिलाये तो कहना।




मैं भी न कहीं से कहानी शुरू कर देती हूँ ,इसलिए तो न तो मेरी कहानी को कोई पढता है और न लाइक करता है। अरे कहानी शुरू से शुरू कर और अंत पे खत्म और फिर जब कहानी अपनी हो , अपनी जुबानी हो तो फिर ये उछल कूद क्यों ,

ओके ओके चलिए शुरू से शुरू करती हूँ।


शादी के बाद मेरी विदायी , मम्मी मुझे गलें भेंट रही थी और जब बाकी मम्मी नौ नौ आंसू रोती हैं , बेटी को ससुराल में अच्छे से रहने के कायदे ,सास के पैर छूने के बारे में सिखाती हैं वो मेरे कान में बोल रही थीं ,

' देख जैसा इसके मायकेवालों ने ट्रेन किया हो न एकदम उसके उल्टा , शादी के बाद एकदम बदल जाए तो बात है।

अगर स्मोकर हो न तो एकदम नान स्मोकर और अगर हाथ न लगाता हो तो चेन स्मोकर ,

तभी तो मायकेवालियों को लगेगा की , .... पूरी दुनिया को लगे की शादी के बाद एकदम बदल गया। तभी तो , …"

मैंने अपना पल्लू सम्हालते हुए धीरे से हामी में सर हिलाया।


वो मेरे हबी ,

लेकिन पहले अपने बारे में तो बता दूँ आप में बहुत से तो ,....

ओ के ओ के , साथ में जो फोटो अटैच है न बस वही समझ लीजिये आलमोस्ट ,



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Fantastic start.
keep it up
 

amita

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मेरे हबी



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चलिए बहुत हो गयी अपनी तारीफ मुद्दे पे आती हूँ।


मेरे हबी , लम्बे पतले हैंडसम , बल्कि खूबसूरत , जैसे लड़कों को मैं और सहेलियां ,' चिकना माल ' कहती थीं एकदम वैसा ,

हैंडसम से ज्यादा ब्युटीफुल ,

बहुत शर्मीले , शादी में तो मेरी किसी कजिन ने हँसते हुए कमेंट भी किया , एकदम लौंडिया छाप , बेसिकली उनके रंग, फीचर्स और लजाने के कारण ,

लेकिन वैसे वो हर मामले में 'नार्मल ' थे।


शादी के बाद फर्स्ट नाइट को दो बार , …


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जितना मेरी शादीशुदा सहेलियों और भाभियों ने किस्से सुनाये थे , उसके हिसाब से नार्मल ही था।

और ' वो ' भी जो मैंने पढ़ा औसत से थोड़ा ज्यादा ही होगा।

हम लोग थोड़े दिन के लिए हनीमून पर भी गए लेकिन , हनीमून ठीक ठीक बल्कि अच्छा था , घूमे भी ,मजा भी किया


लेकिन कुछ दिन में ही ,

कुछ पिनप्रिक्स ,

नहीं नहीं ये पिन साइज प्रिक नहीं जैसा मैंने पहले कहा था न ऐवरेज से २० ही रहा होगा

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जो मैंने भाभियों , सहेलियों से सुना था उसके अलावा कई सेक्स सर्वे पढ़े थे , उसके हिसाब से।

हाँ कमल जीजू ऐसा नहीं था , लेकिन उनका तो एब्नार्मल ही कुछ ,…

(अब आप पूछेंगे की कमल जीजू कौन , मेरी मौसेरी बहन चीनू के हसबैंड ,मुझसे कुछ ही बड़ी और उनकी शादी के बाद रिसेप्शन में भी हम लोग गए थे। अगली दिन सुबह ही मम्मी ने बताया की चीनू हस्पताल गयी।

मैं घबड़ा गयी लेकिन मम्मी मुस्करा रही थीं


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और तब तक मौसी हॉस्पिटल से आ गयीं और वो भी बजाय परेशान होने के मुस्करा रही थी ,बोली

चीनू को शाम के पहले ही छोड़ देंगे , बस ये बोल रही थी की डॉकटरनी , की बस जरा दो तीन दिन सम्हल के उसके बाद जैसे मर्जी , और उसका बालिश्त भर का ,


मम्मी ने मौसी को छेड़ा , तेरी समधन कहीं गधे घोड़े के पास तो नहीं गयी थी , तब मुझे माजरा समझ आया )


ऊप्स , ये कहानी बार बार भटक जा रही है।


हाँ तो मैं पिनप्रिक्स के बारे में कह रही थी. बातें तो बड़ी छोटी छोटी थीं लेकिन थी कुछ अटपट।

चलिए एक एक कर के बता ही देती हूँ ,

१- उनका ड्रेस सेन्स -

बहुत ही रिजिड था।

ग्रे या व्हाइट या बस उसी तरह की शर्ट्स ,एक बार मैं एक पिंक शर्ट उनके लिए ले आई , कोई ख़ास मौका था तो बस वैसे उछले ये की , बस चीखे चिल्लाये नहीं ,लेकिन मुंह बना के। और कभी पहना नहीं उसे।

जैसे अंग्रेजी में कहते हैं न , ' ही वाज वियरिंग हिज सो काल्ड मैस्क्यूलिनिटी आन हिज शोल्डर्स। '


ऐसे ही एक बार क्लब में , लेडीज डे था शायद ,

ये कहा गया की सभी लेडीज अपने हसबैंड को , एक लेडीज मेकअप कराएंगी। और कितनो ने अपने हस्बेंड्स को पिंक लिपस्टिक लगायी और उन्होंने स्पोर्टिंगली न सिर्फ लगवायी , बल्कि बिना झिझक पूरी क्लब इवनिंग में टहलते रहे।

और मैं इन्हे जानती थी ,इसलिए बस एक भोली सी छोटी सी नन्ही सी बिंदी उनके माथे पे लेगा दी.

और उनका चेहरा एकदम गुस्से से लाल , जैसे बिंदी न हो किसी ने उनका सेक्स चेंज कर दिया हो।


और सब लोग हम दोनों की ओर देख रहे थे।

इत्ती शर्म आई मुझे , सब के सामने घड़ों पानी पड़ गया। बता नहीं सकती कितना खराब लगा /

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मेरी एक सहेली थी साइको में मास्टर करने के साथ उसने हस्बेंड साइकोलॉजी में मेजर किया था , जब मैंने उसे ये बात बताई तो वो बोली ,' रिप्रेस्ड फेमिनिटी ' की साइन है।

उनके अंदर 'इन्नेट फेमिनिटी ' है जिसे वो सिर्फ सप्रेस ही नहीं करना चाहते बल्कि उन्हें डर है की कहीं सबको ये पता न चल जाए।

मुझे कुछ तो समझ में आया लेकिन , …


२. उनका टेस्ट खाने पीने का -

खाना -पीना। पीने का तो सवाल ही नहीं कुछ भी सिवाय नलके के पानी के। शुद्ध शाकाहारी , टी टोटलर , नान स्मोकर , ठीक है मैं चलिए अड्जस्ट कर लेती ,

लेकिन उनकी वो छिपकली ममेरी बहन ,मेरी छिनार ननदिया , उसकी बात ऐसे चुभती थी ,कान में की ,

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Shaandar
 

amita

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...मेरी छुटकी ननदिया


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और सबसे बढ़कर वो उनकी ममेरी बहन।



वो पास के मोहल्ले में थी लेकिन अक्सर आ जाती थी। गुड्डी नाम था।

अभी ग्यारहवीं में गयी है,और जैसे इस उमर की लड़कियों में होती है , एकदम चैटर बॉक्स.



और एकदम चिपकू , अपने भैय्या से , हर समय , मेरे भैया ये नहीं करते , मेरे भैया वो नहीं करते।



लेकिन लगती कैसी थी ?


मैं ये कह सकती थी जैसे ग्यारहवीं में पढने वाली लड़कियां लगती हैं , वाली जिनपे अभी अभी जवानी चढ़ी हो।

लेकिन ये बेईमानी होगी।




जब मेरी शादी में आई थी बारात में तो उसके कच्चे टिकोरे ही आग लगा रहे थे


और अब तो कुछ दिन पहले जवानी की राते मुरादों के दिन वाली उम्र हो गयी।



मैं और मेरी जिठानी उसे चिढ़ाते थे , अरे अब तो इंटर में आ गयी है इंटरकोर्स कर ले तो ऐसा बिदकती थी की





लम्बी ठीक ठाक , ५-४ होगी ,

गोरी ,हंसती है तो गाल में गहरे गड्ढे पड़ते हैं।



और उभार ,


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एकदम जम के दिखते हैं , खूब कड़े कड़े कच्ची अमिया जैसे छोटे लेकिन मस्त, उसके क्लास की लड़कियों से कुछ ज्यादा ही बड़े ।





हिप्स भी कड़े और गोल।





जैसा की फिराक ने कहा था , वैसी ही बल्कि थोड़ी बढ़ चढ़ कर ,




लड़कपन की अदा है जानलेवा
गजब की छोकरी है हाथ भर की





और मुझे भी कई बार लगा की सिर्फ वही नहीं चिपकी रहती , इनके मन में भी उसके लिए कुछ 'सॉफ्ट ( या हार्ड !) कार्नर ' है।






शादी के कुछ दिन बाद गाने हो रहे थे और मुझे मेरी जेठानी ने उकसाया गारी गाने के लिए ,

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और गारी का असली टारगेट तो ननद ही होती है , तो बस मैं चालू हो गयी उसके टिकोरों की खुल के तारीफ करने







मंदिर में घी के दिए जले मंदिर में


मैं तुमसे पूछूं हे ननदी रानी , हे गुड्डी रानी ,


तोहरे जोबना का कारोबार कैसे चले ,






और उसका सम्बन्ध पहले अपने भैया फिर सैयां से जोड़ने ,


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बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,

बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,

अरे हलवइया का लड़का तो गुड्डी जी का यार रे , अरे गुड्डी रानी का यार रे ,


लड्डू पे लड्डू खिलाये चला जाय , , अरे चमचम पे चमचम चुसाये चला जाय ,


कहना ना माने रे , अरे कहना ना माने रे ,


बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,


बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,

अरे दरजी का लड़का तो गुड्डी जी का यार रे अरे ननदिया का यार रे ,

अरे चोलिया पे चोलिया सिलाये चला जाय , अरे जुबना उसका दबाये चला जाए


कहना ना माने रे , अरे कहना ना माने रे ,

बार बार ननदी दरवाजे दौड़ी जाए कहना ना माने रे ,

बार बार गुड्डी दरवाजे दौड़ी जाय कहना न माने रे ,




अरे मेरी सासु जी का लड़का , तो गुड्डी जी का यार रे गुड्डी जी का यार

अरे सेजों पर मौज उड़ाए चलाय जाय कहना ना माने रे।

अरे मेरी मम्मी का लड़का , अरे मेरा प्यारा भैया तो गुड्डी जी का यार रे , अरे ननदिया का यार रे ,..


टाँगे दोनों उठाये चला जाय , अरे जाँघे उसकी फैलाये चला जाय



कहना ना माने रे





और उसी समय कहीं से वो आगये , फिर ऐसे घूरा उन्होंने की तुरंत गाना बजाना सब बंद।


और उस दिन तो मैं उस के चक्कर में इतना ,कह नहीं सकती कितना खराब लगा।

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उनकी एक आदत और ख़राब ,


कोई भी सामान अपनी जगह नहीं रखते ,सब इधर उधर।




एकदिन तकिये के नीचे कंडोम रखे थे जो सरक कर बिस्तर पर आगये ,



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कोई आया तो जल्दी से मैंने पास में पड़े हमारे वेडिंग अल्बम में उसे रख दिया।



रात में वो कमरे में आये , तो वेडिंग एल्बम उन्होंने खोल कर देखा।


कंडोम जिस पेज पर थे , वहां गुड्डी की फोटोग्राफ्स थे ,शादी में डांस करते।

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मैंने उन्हें इतना गुस्सा और दुखी कभी नहीं देखा था। वो वैसे भी कैंसरियन थे , राशि के हिसाब से ,

और गुस्सा होने पे या अकसर वैसे भी अपने शेल में घुस जाते थे।


उन्होंने कंडोम उठाकर झटक कर फर्श पर फ़ेंक दिया जैसे मैंने कैसी गन्दी चीज गुड्डी की तस्वीर के साथ रख दी हो।

और फिर सम्हाल कर उस की फोटो को पोंछा और अपने हाथ से नीचे वाले ड्राअर में एलबम को रख के बंद किया।


और बिना मुझसे कुछ बोले , मेरी ओर पीठ कर के सो गए।
Badhiya
 

amita

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Thanks so much just started , it is a story of different kind , different genre and based on experiences of a young housewife , please keep on gracing this thread
Seems very good story.
Please carry on
 

Azagar Dada

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Ye kahani maine xossip pe padhi ha.par wo band hone ke Karan puri na ho payi. Thanks to restart.
 
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Kabir

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superb start
 
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komaalrani

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जोरू का गुलाम भाग दो


कच्चे टिकोरे और आम रस


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जैसा मैंने पहले ही कहा था मेरे उनको फल एकदम पसंद नहीं है लेकिन आम से तो या ऐसी चिढ , बल्कि फोबिया।

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एकदम तगड़ा फोबिया। और वो भी एकदम बचपन से ,उनके मायेकवाली किसी ने बताया था की ,क्लास में एक बार टीचर ने सिखाने की कोशिश की , एम फॉर मैंगो , लेकिन वो बोले नहीं। लाख टीचर ने कोशिश की ,मुरगा बना दिया , … लेकिन नहीं।




और जब वो खाना खा रहे हों तो ,अगर टेबल पर आम तो छोड़िये ,टिकोरे की चटनी भी आ जाय , तो एकदम अलप्फ ,मेज से उठ जाएंगे।

छूना तो छोड़िये नाम नहीं ले सकते।

और सब उनको चिढ़ाते थे।

मुझे बहुत बुरा लगता था , उनकी सब आदतों में से ये सबसे ज्यादा , आखिर आम खाने में क्या,...


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मैंने तो एक दिन सोचा सबके सामने वो ग़ालिब वाला जोक सुनाऊँ ,

की एक जगह ग़ालिब के कोई दोस्त बैठे थे ग़ालिब आम खा रहे थे , एक गधा आया और सूंघ कर चला गया , उस आदमी ने ग़ालिब का मज़ाक बनाने की कोशिश की , देखिये ग़ालिब साहेब , गधे भी आम नहीं खाते , ग़ालिब ने एक आम चूसते हुए , हंस के जवाब दिया नहीं ज़नाब , गधे ही आम नहीं खाते , ..

पर मैं जानती थी , ये तो एक दम तनतना के उठ के चल देंगे , और वो रात फिर , ..

और उसके बाद मेरी ननद के ,

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उस गदहे वाली गली वाली के , जी वो जिस मोहल्ले में रहती थी , जिस गली में उसका पहला घर किसी धोबी का था और गली के बाहर गदहे बंधे रहते थे तो सब लोग उसे गदहे वाली गली कह के कई बार चिढ़ाते भी थे ,


और साथ में जेठानी के ताने


मुझे तो बहुत पसंद थे , दसहरी की तो मलिहाबाद में हम लोगो की एक खूब बड़ी सी बाग़ भी थी , ...


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लंगड़ा , चौसा , मलदहिया , सब , लेकिन ये न ,

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चलिए न खाएं , न खाएं ,

लेकिन इनकी मायकेवालियों ने जो इसकी एक टेर बना रखी थी ,


भैया को तो एकदम पसंद नहीं है ,
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देवर जी , नाम ले के देखो उठ जाएंगे , ...

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मैं बस यही सोचती की इन्हे इन्ही सब के सामने एक दिन इन्हे खिलाऊँ यही , तो पता चलेगा ,

ये लड़का अब इनका भैया, देवर नहीं मेरी पति है ,

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और ये भी तो और,... जैसे , जैसा इनकी वो ममेरी बहन , भौजाई कहेंगी बस उसी तरह से बिहैव करेंगे , और उसके बाद वो दोनों खासतौर से वो गुड्डी जिस तरह से मुझे देखकर मुस्कराती न , ... मेरी तो बस सुलग के रह जाती , ...

लेकिन नई नई बहू क्या बोलती ,

हाँ बुरा लगने से तो कोई रोक नहीं सकता न ,


इत्ते दिन में मैं समझ गयी थी ,

असली खेल जेठानी का था , वो गुड्डी के लिए इनका जो भी सॉफ्ट हार्ड कार्नर होगा अच्छी तरह समझती थीं , इस लिए उसी की कंधे पर रखकर बन्दूक चलाती थी ,





एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।


हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे )



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और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी।



" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"


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मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली



"मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"



" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते "

चिढ़ाते हुए मैं बोली।


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जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।


" अरे ये , "

और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।



ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "

मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।


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और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"

और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।



मम्मी ने भेजे थे खास अपनी बाग़ के मलिहाबाद से , एक्सपोर्ट क्वालिटी वाले


थे भी बहुत रसीले वो।



लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,


"पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "



उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।



मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।

" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "


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मैंने दांव फ़ेंक दिया।
 

komaalrani

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लग गयी बाजी

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"अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "

मैंने दांव फ़ेंक दिया।


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लेकिन वो भी , एकदम श्योर।



" अरे भाभी आप हार जाएंगी फालतू में , उन्हें मैं इत्ते दिनों से जानती हूँ। खाना तो दूर वो छू भी लें न तो मैं बाजी हार जाउंगी। "


वो बोली।

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लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी ,


" ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे सवा लाख का है। असली कुंदन , अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"

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तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,



" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "



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पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली।


" आप हार जाइयेगा। "


जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से


" अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "


और ऑफर मैंने पेश किया ,

"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "

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पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।


" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं "


बोली गुड्डी।

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" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर।


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और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "



मैंने शर्त साफ की और वो मान गयी।






मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा ,

"सुन तेरा हार तो अब गया।"

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और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर।


और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
 

komaalrani

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Seems very good story.
Please carry on


Thanks just posted second part , will post one part every day , to keep the speed , it is almost a novella ,...

but it deserves discerning readers like you , please do find time to grace this story
 
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