Bahut sahi shabdon ka chunav.जोरू का गुलाम भाग दो
कच्चे टिकोरे और आम रस
जैसा मैंने पहले ही कहा था मेरे उनको फल एकदम पसंद नहीं है लेकिन आम से तो या ऐसी चिढ , बल्कि फोबिया।
एकदम तगड़ा फोबिया। और वो भी एकदम बचपन से ,उनके मायेकवाली किसी ने बताया था की ,क्लास में एक बार टीचर ने सिखाने की कोशिश की , एम फॉर मैंगो , लेकिन वो बोले नहीं। लाख टीचर ने कोशिश की ,मुरगा बना दिया , … लेकिन नहीं।
और जब वो खाना खा रहे हों तो ,अगर टेबल पर आम तो छोड़िये ,टिकोरे की चटनी भी आ जाय , तो एकदम अलप्फ ,मेज से उठ जाएंगे।
छूना तो छोड़िये नाम नहीं ले सकते।
और सब उनको चिढ़ाते थे।
मुझे बहुत बुरा लगता था , उनकी सब आदतों में से ये सबसे ज्यादा , आखिर आम खाने में क्या,...
मैंने तो एक दिन सोचा सबके सामने वो ग़ालिब वाला जोक सुनाऊँ ,
की एक जगह ग़ालिब के कोई दोस्त बैठे थे ग़ालिब आम खा रहे थे , एक गधा आया और सूंघ कर चला गया , उस आदमी ने ग़ालिब का मज़ाक बनाने की कोशिश की , देखिये ग़ालिब साहेब , गधे भी आम नहीं खाते , ग़ालिब ने एक आम चूसते हुए , हंस के जवाब दिया नहीं ज़नाब , गधे ही आम नहीं खाते , ..
पर मैं जानती थी , ये तो एक दम तनतना के उठ के चल देंगे , और वो रात फिर , ..
और उसके बाद मेरी ननद के ,
उस गदहे वाली गली वाली के , जी वो जिस मोहल्ले में रहती थी , जिस गली में उसका पहला घर किसी धोबी का था और गली के बाहर गदहे बंधे रहते थे तो सब लोग उसे गदहे वाली गली कह के कई बार चिढ़ाते भी थे ,
और साथ में जेठानी के ताने
मुझे तो बहुत पसंद थे , दसहरी की तो मलिहाबाद में हम लोगो की एक खूब बड़ी सी बाग़ भी थी , ...
लंगड़ा , चौसा , मलदहिया , सब , लेकिन ये न ,
चलिए न खाएं , न खाएं ,
लेकिन इनकी मायकेवालियों ने जो इसकी एक टेर बना रखी थी ,
भैया को तो एकदम पसंद नहीं है ,
देवर जी , नाम ले के देखो उठ जाएंगे , ...
मैं बस यही सोचती की इन्हे इन्ही सब के सामने एक दिन इन्हे खिलाऊँ यही , तो पता चलेगा ,
ये लड़का अब इनका भैया, देवर नहीं मेरी पति है ,
और ये भी तो और,... जैसे , जैसा इनकी वो ममेरी बहन , भौजाई कहेंगी बस उसी तरह से बिहैव करेंगे , और उसके बाद वो दोनों खासतौर से वो गुड्डी जिस तरह से मुझे देखकर मुस्कराती न , ... मेरी तो बस सुलग के रह जाती , ...
लेकिन नई नई बहू क्या बोलती ,
हाँ बुरा लगने से तो कोई रोक नहीं सकता न ,
इत्ते दिन में मैं समझ गयी थी ,
असली खेल जेठानी का था , वो गुड्डी के लिए इनका जो भी सॉफ्ट हार्ड कार्नर होगा अच्छी तरह समझती थीं , इस लिए उसी की कंधे पर रखकर बन्दूक चलाती थी ,
एक दिन ,अभी भी मुझे याद है ,१० अगस्त।
हम लोग दसहरी आम खा रहे थे मस्ती के साथ ( वो खाना खा के ऊपर चले गए थे )
और तभी मेरी छुटकी ननदिया आई। और मेरे पीछे पड़ गयी।
" भाभी ये आप क्या कर रही हैं ,आम खा रही हैं ?"
मैंने उसे इग्नोर कर दिया फिर वो बोली
"मेरे भैय्या , आम छू भी नहीं सकते ,…"
" अरे तूने कभी अपनी ये कच्ची अमिया उन्हें खिलाने की कोशिश की , कि नहीं , शर्तिया खा लेते "
चिढ़ाते हुए मैं बोली।
जैसे न समझ रही हो वैसे भोली बन के उसने देखा मुझे।
" अरे ये , "
और मैंने हाथ बढ़ा के उसके फ्राक से झांकते , कच्चे टिकोरों को हलके से चिकोटी काट के चिढ़ाते हुए इशारा किया और वो बिदक गयी।
ये देख रही हो , अब ये चाहिए तो पास आना पड़ेगा न "
मुस्करा के मैंने अपने गुलाबी रसीले भरे भरे होंठों की ओर इशारा करके बताया।
और एक और दसहरी आम उठा के सीधे मुंह में , …"
और एक पीस उसको भी दे दिया , वो भी खाने लगी , मजे से।
मम्मी ने भेजे थे खास अपनी बाग़ के मलिहाबाद से , एक्सपोर्ट क्वालिटी वाले
थे भी बहुत रसीले वो।
लेकिन वो फिर चालू हो गयी ,
"पास भी नहीं आएंगे आपके , मैं समझा रही हूँ आपको , मैं अपने भैया को आपसे अच्छी तरह समझतीं हूँ, आपको तो आये अभी तीन चार महीने भी ठीक से नहीं हुए हैं . अच्छी तरह से टूथपेस्ट कर के , माउथ फ्रेशनर , … वरना,… "
उस छिपकली ने गुरु ज्ञान दिया।
मैं एड़ी से चोटी तक तक सुलग गयी ,ये ननद है की सौत और मैंने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया।
" अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
मैंने दांव फ़ेंक दिया।
Shaandarलग गयी बाजी
"अच्छा , चलो लगा लो बाजी। अब इस साल का सीजन तो चला गया , अगले साल आम के सीजन में अगर तेरे इन्ही भैय्या को तेरे सामने आम न खिलाया तो कहना। "
मैंने दांव फ़ेंक दिया।
लेकिन वो भी , एकदम श्योर।
" अरे भाभी आप हार जाएंगी फालतू में , उन्हें मैं इत्ते दिनों से जानती हूँ। खाना तो दूर वो छू भी लें न तो मैं बाजी हार जाउंगी। "
वो बोली।
लेकिन मैं पीछे हटने वाली नहीं थी ,
" ये मेरे गले का हार देख रही हो पूरे सवा लाख का है। असली कुंदन , अगर तुम जीत गयी तो तुम्हारा ,वरना बोलो क्या लगाती हो बाजी तुम ,"
तब तक मेरी जेठानी भी आगयी और उसे चिढ़ाती बोलीं ,
" अरे इसके पास तो एक ही चीज है देने के लिए। "
पर मेरी छुटकी ननद , एकदम पक्की श्योर बोली।
" आप हार जाइयेगा। "
जेठानी फिर बोलीं , मेरी ननद से
" अरे अगर इतना श्योर है तो लगा ले न बाजी क्यों फट रही है तेरी। "
और ऑफर मैंने पेश किया ,
"ठीक है तू जीत गयी तो हार तेरा और मैं जीत गयी तो बस सिर्फ चार घंटे तक जो मैं कहूँगी ,मानना पडेगा। "
पहली बार वो थोड़ा डाउट में थी।
" अरे मेरे सीधे साधे भैया को जबरन पकड़ के उसके मुंह में डाल दीजियेगा आप लोग , फिर कहियेगा ,जीत गयीं "
बोली गुड्डी।
" एकदम नहीं वो अपने हाथ से खाएंगे , बल्कि तुझसे कहेंगे ,तेरे हाथ से खुद खाएंगे अब तो मंजूर।
और तुझे भी अपने हाथ से खिलायंगे। एक साल के अंदर। अब मंजूर। "
मैंने शर्त साफ की और वो मान गयी।
मेरी जेठानी ने मेरे कान में कहा ,
"सुन तेरा हार तो अब गया।"
और कुछ ही दिन में उनका ट्रांसफर हो गया , घर से काफी दूर।
और मैं भी उनकी जॉब वाली जगह पे आ गयी।
Gajab hai yar fir se padh kar maja aa gaya
Shaandar